नई दिल्ली। 23 जून 2009 की शाम 5 बजे हिंदी भवन दिल्ली में हास्य व्यंग्य के प्रख्यात कवि अल्हड़ बीकानेरी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी जगत के प्रख्यात कलमकारों, पत्रकारों, अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर-राष्ट्रीय संस्थाओं के पदाधिकारियों एवं प्रशासनिक प्रतिनिधियों ने हिंदी मंच के वरिष्ठ कवि अल्हड़ बीकानेरी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस शोक सभा में अधिकतर कवियों ने सपत्नीक भाग लिया।
हिन्दी साहित्य के जाने-माने हास्य कवि
श्यामलाल शर्मा उर्फ अल्हड़ बीकानेरी का बुधवार को निधन हो गया था। वह 72 वर्ष के थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटे और दो पुत्रियां हैं। उनके परिवार से पता चला कि अल्हड़ बीकानेरी को सांस लेने में तकलीफ के चलते पिछले गुरुवार को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
सभा का संचालन एवं प्रारंभ करते हुए हास्य के प्रसिद्ध कवि प्रवीण शुक्ल ने कहा कि अल्हड़ जी के यहाँ मेरा आना-जाना लगा रहता था, मैं उनसे भावनात्मक रूप से इस कदर जुड़ा हुआ हूँ ये आघात सहन कर पाना मेरे लिये मुश्किल हो गया है। प्रवीण शुक्ल ने कहा कि उनके पास अल्हड़ जी की एक पुस्तक की अप्रकाशित पाण्डुलिपि रखी हुई है, जिसे अब वो प्रकाशित करवाने का कार्य करेंगे। डॉ॰ शेरजंग गर्ग व कवि हलचल हरयाणवी ने अपने श्रद्धा शब्द-सुमन अर्पित करते हुए संवेदनाएं व्यक्त की।
सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि मैं समझ नही पा रहा हूँ यह सब क्या हो रहा है? एक के बाद एक हमें यह आघात क्यों मिल रहे हैं, उन्होंने कहा अल्हड़ जी का जाना हास्य कविताओं की क्षति है, अब इस बारे में नई पीढ़ी को सोचना चाहिये, मैं तो उन्हीं के साथ का हूँ, अब वे लोग सोचें जिन्हें हास्य को आगे बढ़ाना है, यही हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी। मैं आगे कुछ नहीं कह पाऊँगा, मेरा मौन ही उनको श्रद्धांजली है।
प्रसिद्ध कवि बालस्वरूप राही ने बीकानेरी को छंद-ग़ज़ल का माहिर बताया और उन्हें एक शास्त्रीय कवि की संज्ञा दी। बहुतों ने अल्हड़ को हास्य कविता का सूफी कवि भी बताया।
हिंदी के वरिष्ठतम कवियों में से एक बाल कवि बैरागी ने नम आखों से उन्हें याद किया। उन्होंने कहा कि वह पिछले चालीस वर्षों से साथ थे। उन्हें इस तरह अचानक छोड़ कर नहीं जाना चाहिये था, वो हमारे बीच आज नहीं हैं, इस बात पर विश्वास कर पाना कठीन हो रहा है, उनका साहित्य जगत से जाना एक अपूर्णीय क्षति है।
कवि उदयप्रताप ने भी अल्हड़ के बारे में अपने संस्मरण बताते हुए श्रद्धा-सुमन भेंट किये व हास्य जगत के प्रति गहरी चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमारे लिये यह अत्यंत दुख की बात है कि एक हास्य का महान पुरोधा आज हमारे बीच नहीं है।
अल्हड़ के पुत्र अशोक शर्मा जो सूचना एवं जनसंपर्क विभाग हरियाणा के दिल्ली स्थित कार्यालय में उप निदेशक के पद पर कार्यरत हैं, ने अपने पिता को याद करते हुए कविता की कुछ पंक्तियाँ समर्पित की, जिसे सुनकर गमगीन माहौल में भी हँसी का फ़व्वारा फूट पड़ा था। जो अल्हड़ ने उनके विवाह के अवसर पर उनके लिये लिखी थी जब उन्हें बेटे के ससुराल में पिता की अपेक्षा पुत्र समझ कर उनकी समधन ने उनसे सवाल किया था कि वह किस कॉलेज में पढ़ते हैं। बड़े दुख की बात है कि आज वही हँसी का फ़व्वारा हमारे बीच से लुप्त हो गया है।
हास्य कवि डॉ अशोक चक्रधर ने भी अपनी संवेदनाएँ प्रकट करते हुए हिन्दी-भवन के संचालक से अनुरोध किया कि अगले छः महीने तक यहाँ कोई शोक सभा न रखी जाय। एवं डॉ कुमार विश्वास ने भी अपनी संवेदनायें प्रकट की। कुमार ने कहा कि वो इस तरह हमें अकेला छोड़ गये हैं कि विश्वास नहीं होता, अभी नई पीढ़ी को उनसे बहुत कुछ सीखना था।
हिन्दी-भवन से डॉ गोविन्द व्यास ने अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त की व हिन्दी-भवन की ओर से एक शोक प्रस्ताव पढ़ा गया जिसमें अल्हड़ जी के जीवन की विविध घटनाओं व उपलब्धियों का जिक्र किया गया, उन्होंने बताया कि कवि अल्हड़ बीकानेरी का जन्म 17 मई 1937 को रेवाड़ी जिले के बीकानेर गांव में हुआ था। उनकी शब्द-यात्रा 1962 से गीत-गजल में पदार्पण से शुरू हुई। 1967 से उन्होंने देश-विदेश में आयोजित हास्य कवि सम्मेलनों में भाग लेना शुरू किया।
बीकानेरी की रचनाएं प्रमुख पत्र पत्रिकाओं और आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर प्रसारित हुईं। 1986 में उन्होंने हरियाणवी फीचर फिल्म छोटी साली के गीत कहानी का लेखन और निर्माण कार्य किया। अल्हड़ बीकानेरी ने लगभग 15 पुस्तकें लिखीं जिनमें भज प्यारे तू सीताराम, घाट घाट घूमें, अभी हंसता हूं, अब तो आंसू पोंछ, भैंसा पीवे सोम रस ठाठ गजल के रेत पर जहाज, अनछुए हाथ खोल न देना द्वार और जय मैडम की बोर रे प्रसिद्ध रहीं।
1981 में उन्हें ठिठोली पुरस्कार, दिल्ली, 1986 में काका हाथरसी पुरस्कार और वर्ष 2000 में उज्जैन का टेपा तथा कानपुर का मानस पुरस्कार मिला। वर्ष 2004 में उन्हें बदायूं का व्यंग्य श्री और नरेंद्र मोहन सम्मान, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती जैसे सम्मानों से नवाजा गया। हरियाणा सरकार ने 2004 में उन्हें हरियाणा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद की तरफ़ से महेश चंद्र शर्मा ने भी श्रद्धांजली अर्पित करते हुए गहरा दुख जताया।
कवयित्री डॉ सरिता शर्मा ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि अल्हड़ जी ही उनकी प्रेरणा रहे हैं, यह बात अन्तिम समय में उन्हें पता चली यह उनका दुर्भाग्य है कि उन्हे गुरु मानने के कुछ समय बाद ही वो हमे छोड़ चले, किन्तु इसे सौभाग्य भी कहा जा सकता है कि इतने महान कवि मेरे गुरू थे। उनका आशीर्वाद सदा हमारे साथ बना रहेगा।
कवयित्री डॉ कीर्ति काले भी वहाँ उपस्थित थीं व उन्होंने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए बेहद दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अल्हड़ जी को सच्ची श्रद्धांजलि तभी अर्पित हो सकती है जब मंच पर सिर्फ़ काव्य पाठ ही हो, न कि अन्य कुछ सुनाया जाये।
कवि राजेश चेतन तथा कवि दिनेश रघुवंशी जी ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए खेद प्रकट किया, राजेश चेतन ने कहा कि वे अपने कवि मित्रों तथा जो कवि नही हैं उन्हें भी समय-समय पर एस एम एस के द्वारा तमाम जानकारियां देते रहे हैं।
इसके अतिरिक्त सभा में उपस्थित काव्य जगत के सभी वरिष्ठ एवं युवा कवियों यथा कवि महेंद्र शर्मा, कवि महेंद्र अजनबी, कवि गजेंद्र सौलंकी, कवयित्री सुनीता शानू, अविनाश वाचस्पति, कवि पवन चन्दन, संपत सरल, कवि बागी चाचा, शम्भू शिखर, सतिश सागर, कवि दीपक गुप्ता, कवयित्री ऋतु गोयल, कवि हरमिंदर पाल, साधना चैनल के कार्यक्रम-निर्माता प्रवीण आर्य, आकाशवाणी के निदेशक लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, अरूण जैमिनी, कवि वेदप्रकाश तथा दिवंगत कवि के घनिष्ठम शिष्य पुरूषोत्तम बज्र इत्यादि ने भी दिवगत कवि अल्हड़ बीकानेरी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नमन किया।
अल्हड़ जी की निम्न पंक्तियों के साथ हम सभी हिन्द-युग्मी उन्हें सादर श्रद्धांजली अर्पित करते हैं, जो आज भी हिन्दी-भवन सभागार में गूँज रही हैं...
ख़ुद पे हँसने की कोई राह निकालूँ तो हँसूँ
अभी हँसता हूँ ज़रा मूड में आ लूँ तो हँसूँ
जिनकी साँसों में कभी गंध न फूलों की बसी
शोख़ कलियों पे जिन्होंने सदा फब्ती ही कसी
जिनकी पलकों के चमन में कोई तितली न फँसी
जिनके होंठों पे कभी भूले से आई न हँसी
ऐसे मनहूसों को जी भर के हँसा लूँ तो हँसूँप्रस्तुति- सुनीता शानू
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6 पाठकों का कहना है :
पहली खबर देना
भी सच्ची श्रद्धांजलि ही है।
हास्य कवि श्यामलाल शर्मा उर्फ अल्हड़ बीकानेरी जी एक महान कवी थे. मेरी श्रद्दांजली. साथ ही हिन्दयुग्म का आभारी. संचार हम लोगो तक पहुँचने के लिए.
कवियों की यही अदा निराली है
न रहके भी हमेशा पास रहते है
जिंदा हों तो लोग उनकी कही सुनते हैं
गर मर गये तो उनकी कही कहते हैं
मेरी और से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजिली
हिन्द युग्म को धन्यवाद
दीपाली पन्त तिवारी "दिशा"
कवियों की यही अदा निराली है
न रहके भी हमेशा पास रहते है
जिंदा हों तो लोग उनकी कही सुनते हैं
गर मर गये तो उनकी कही कहते हैं
मेरी और से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजिली
हिन्द युग्म को धन्यवाद
दीपाली पन्त तिवारी "दिशा"
मन तो करता है की बहुत कुछ लिखूं अल्हड जी पर, अभी तो एक छंद उनका यहाँ प्रस्तुत कर उन्हने श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ
"साधू नहीं संत नहीं, गुरु या महंत नहीं
मुझे कोई मंदिर या मठ नहीं चाहिए
भोगे हुए सत्य को उतारूं कोरे कागज़ पे
कविता में छल या कपट नहीं चाहिए
मन से सुकाव्य को सराहें चार सुधिजन
कनरसियो का जमघट नहीं चाहिए
आया हो जो कवियों की चप्पलें चुराने हेतु
ऐसा श्रोता मंच के निकट नहीं चाहिए"
हिन्दी-हास्य जगत को फ़िर से
आज बहाना है आँसू।
सूनापन बढ़ गया हास्य में
चला गया है कवि धाँसू ।।
ऊपरवाला दुनिया के गम
देख हो गया क्या हैरां?
नीचेवालों को ले जाकर
दुनिया को करता वीरां।।
शायद उस से माँग-माँगकर
हमने उसे रुला डाला ।
अल्हड औ' आदित्य बुलाये
उसने कर गड़बड़ झाला।।
इन लोगों से तुम्हीं बचाओ,
इन्हें हँसाया-मुझे हँसाओ।
दुनियावालों इन्हें पढो हँस,
इनसे सदा प्रेरणा पाओ।।
ज़हर ज़िन्दगी का पीकर भी
जैसे ये थे रहे हँसाते।
नीलकंठ बन दर्द मौन पी,
क्यों न आज तुम हँसी लुटाते?
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