चुन्नी बाबू के रूप में गिरीश और पारो के रूप में प्रभा
शिमला।
पिछले दिनों शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में अखिल भारतीय रंग एवं कला मंच ’डिजाइन इंडिया’ द्वारा भारत में पहली बार, बांग्ला उपन्यासकार शरत्चन्द्र की अमर कृति देवदास पर आधारित तथा प्रख्यात लेखक श्री जगदम्बा प्रसाद दीक्षित द्वारा मंच के लिए रूपान्तरित नाटक देवदास की दो सफल प्रस्तुतियां अभिमन्यु पांडेय के निर्देशन में की गई। अभिमन्यु पिछले कई वर्षों से मुम्बई में रंगमंच तथा छोटे पर्दे की गतिविधियों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। हाल ही में उनके द्वारा निर्देशित नाटक ’मैं एकाकी’ काफी चर्चा में रहा है जिसके अब तक 19 मंचन हो चुके हैं।
इस नाटक को करने का श्रेय शिमला के कलाकार गिरीश हरनोट को जाता है जो पिछले पांच सालों से मुम्बई में कई सीरियलों में अभिनय कर चुके है और बड़े कमर्शियल ब्रांडों के विज्ञापनों में मॉडल के रूप में अपनी व्यावसायिक पहचान बना चुके हैं। दीक्षित ने इस नाटक के मंचन का उत्तरदायित्व गिरीश को सौंपा जिन्होंने इसके मंचन के लिए अपनी गृहभूमि शिमला चुनी और गेयटी थियेटर के जिर्णोद्धार के ऐतिहासिक अवसर पर स्थानीय कलाकारों के साथ इसकी दो सफल प्रस्तुतियां 6 और 10 जुलाई, 2009 को बिना किसी सरकारी सहयोग से कीं। इन प्रस्तुतियों का सम्पूर्ण संयोजन ’डिजाइन इंडिया’ के मुख्य संरक्षक एवं समन्वयक एस.आर हरनोट किया। इन प्रस्तुतियों को प्रसिद्ध रंग कर्मी हबीब तनवीर और हिमाचल वासी मनोहर सिंह को समर्पित किया गया।
कलाकारों के साथ मुख्य अतिथि कृष्ण किशोर
डिजाइन इंडिया द्वारा प्रस्तुत नाटक देवदास का प्रतिपादन रूपान्तरकार ने आज के देशकाल के सामाजिक सरोकारों के दृष्टिगत अलग ढंग से किया है जिसकी वजह से इस कथा को एक नया रूप मिला है। क्षरित हो रहे ठेठ रूढ़िग्रस्त बांगला समाज और सांस्कृतिक परिवेश की कथा होते हुए भी नाटक का यह संस्करण मूलतः एक अति यर्थाथवादी मंचीय निष्पादन है जो हमारे समय की नई पीढ़ियों के आंतरिक आक्रोश और भावोन्नयन को जाहिर करता है। यह नाटक बीती सदी के पहले दशक में लिखा गया था जिसका अब तक तीन बार फिल्मांकन हुआ है। हर बार एक नए देवदास की कल्पना लेकर। नाटक के इस रूप में इसका पहली बार मंचन हुआ है, एक बिल्कुल नए और समसामयिक भावबोध के साथ। प्रस्तुत नाटक की विशेषता यह है कि इसका स्थायी भाव प्रेम की असफलता के साथ-साथ उससे उत्पन्न मनुष्य के अस्तित्व की दुश्वारियां भी हैं जिन्हें नाटककार दीक्षित ने मूलतः जीवन और मरण के विचारबिन्दुओं के माध्यम से हल किया है। यह एक श्रेण्य नाटक है जिसे समझने और सही आस्वादन के लिए आम और सुधि दर्शक को इसके एब्सर्ड शैली-शिल्प और ठोस विचार-दर्शन की गहराईयों व जटिलताओं से भी गुजरना होगा तथा नाटक की विलक्षण विरूपता से साक्षात्कार करना होगा।
पारो के रूप में स्वाति और चौधरी के रूप में राकेश |
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पहली प्रस्तुति में मुख्य अतिथि श्री कृष्ण किशोर, आस्टिन यूएसए से प्रकाशित इण्डो-अमेरिकन पत्रिका ’अन्यथा’ एवं अंग्रेजी पत्रिका 'Otherwise' के संपादक थे जिन्होंने डिजाइन इंडिया को पच्चास हजार रूपए के सहयोग देने की घोषणा की। उनके साथ प्रसिद्ध दलित लेखक व चिंतक मोहनदास नैमिशराय भी मौजूद थे। दूसरी प्रस्तुति में मुख्य अतिथि-श्रीमती आशा स्वरूप, मुख्य सचिव, हि॰प्र॰ सरकार एवं विशेष अतिथि के रूप में श्री मंजूर एहतेशाम, प्रख्यात कहानीकार पधारे जिन्होंने नाटक और कलाकारों की भूमिकाओं को खूब सराहा।
चुन्नी बाबू के रूप में गिरीश
प्रस्तुति- एस.आर.हरनोट
ओम भवन, मोरले बैंक इस्टेट, निगम विहार, शिमला-171002 मोः 098165 66611
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4 पाठकों का कहना है :
नाटक में सफलता के साथ अभिनय करना एक बड़ी उपलब्धि है .नई सोच और इस से जुड़े सभी जनों को बधाई .नई मुंबई में अगर इसका मंचन हो तो हमें देखने को मिलेगा .नई फोटो देखने को मिली ,पात्रो को जान सके .विश्व में यश मिले इसी शुभकामना के साथ -मंजू गुप्ता .
बहुत ख़ूब ।
यह एक अच्छा प्रयास है इसके द्वारा उन लोगों को भी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला जो नये हैं
बहुत बढ़िया
acting एक क़दम है जिसमे आप छुपी हुई चीज़ों को सामने लाते हैं
हेनरी वार्ड के शब्दों में
"Every artist dips his brush in his own soul, and paints his own nature into his pictures."
खलील जिब्रान के शब्दों में
"Art is a step from what is obvious and well-known toward what is arcane and concealed."
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