'आनंदम' संगीत व साहित्य संस्था दिल्ली की एक सुप्रसिद्ध संस्था है जो अपनी सशक्त संगीत व साहित्यिक गतिविधियों के लिए सुपरिचित है। इस के संस्थापक जगदीश रावतानी 'आनंदम' संगीत कॉलेज के संस्थापक व प्रिंसिपल हैं, जहाँ कई विद्यार्थी संगीत की शिक्षा ले रहे हैं। इसके अतिरिक्त 'आनंदम' की मासिक काव्य गोष्ठियां भी सुपरिचित हैं, जिन में हिंदी-उर्दू के समकालीन कवि अपनी कविताओं गज़लों का पाठ करते हैं। 11 अगस्त 2009 (मंगलवार) को दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम के निकट स्थित 'दीवानचंद ट्रस्ट' के सभागार में 'आनंदम' संस्था द्वारा एक वर्ष पूरा होने पर एक मधुर काव्य-संध्या का आयोजन किया गया, जिस की अध्यक्षता प्रसिद्ध शायर जगदीश जैन ने की। यह सभागार 'दीवानचंद ट्रस्ट' के निदेशक एम.के. गौड़ के सहयोग से इस काव्य संध्या के लिए उपलब्ध हुआ तथा अनेक व्यस्तताओं के बावजूद गौड़ काव्य संध्या में अंत तक उपस्थित रहे। गोष्ठी का संचालन हिंदी साहित्य की जानी-मानी शख्सियत ममता किरण ने किया। गोष्ठी में 'आनंदम' अध्यक्ष जगदीश रावतानी व ममता किरण के अतिरिक्त लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, रविन्द्र 'रवि', मनमोहन 'तालिब', शहादत अली निज़ामी, कैसर अज़ीज़, दर्द देहलवी, ज़र्फ़ देहलवी, मजाज अमरोहवी, नमिता राकेश, नूर-उल-ऐन कैसर कासमी, सत्यवान, दीपंकर गुप्ता, आशा शैली, आनंद गोपाल सिंह बिष्ट, साक्षात भसीन, सतीश सागर, पुरुषोत्तम वज्र, व मुन्नवर सरहदी आदि ने अपनी सशक्त कविताएँ पढ़ कर समा बांध दिया। गोष्ठी, आज की कविताओं के प्रस्तुतीकरण को देखते हुए, एक विशिष्ट गोष्ठी लग रही थी। आकाशवाणी दिल्ली में निदेशक लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने इस गोष्ठी में जो ग़ज़ल पढ़ी उस का हर शेर, कवि मन को जिस मानवीय संवेदना ने बुना है, उस की एक झलक देता है, जैसे:
अपने कट जाने से बढ़ कर ये फिकर पेड़ को है घर परिंदों का भला कैसे उजड़ता देखे
चाहे पारिवारिक संबंधों की विसंगतियों की बेबाक अभिव्यक्ति हो, चाहे शहर में चलते फिरते इंसानों के बीच व्याप्त एक चुभती सी अजनबियत, बाजपेयी एक अद्वितीय प्रभाव के साथ रचना लिखते व कहते हैं.
गांव के सम्मुख शहर की हीनता को अपने अंदाज़ में कह गया रविन्द्र 'रवि' का यह शेर:
हमारे गांव में जुगनू भी खुलकर जगमगाते हैं तुम्हारे शहृ में तो चाँद भी मद्धम निकलता है
रविन्द्र 'रवि' ग़ज़ल के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं, जिन की अभिव्यक्ति मर्म को छूती है।
शहृ है तो शहृ के बाज़ार में बिकते आदमी का ज़िक्र भी होगा ही!... वयोवृद्ध शायर मनमोहन 'तालिब' ऐसी गोष्ठियों में अपनी वरिष्ठता व महारत की छाप हमेशा छोड़ कर रहते हैं. उन का यह शेर इस प्रगतिशील युग में आदमी की स्थिति को निर्ममता से पेश कर गया:
क्या हो गया इस दौर में नायाब है इन्साँ हम देर से बाज़ार में खामोश खड़े हैं
शहृ और गांव के कंट्रास्ट पर ही ममता किरण ने पढ़ा:
जब से दादी रह गई है गांव, बच्चे शहृ में तब से ही रातों में परियों का उतरना ना हुआ।
कुछ कवियों ने ईश्वर की इबादत या संतों दरवेशों के प्रति अपने उद्गार अशआर के ज़रिये प्रस्तुत किये। जैसे सूफी दरवेशों पर दर्द देहलवी का यह शेर:
फाकाकशी में जिस ने गुज़ारी थी ज़िन्दगी भूखों के पेट भर दिए उस के मज़ार ने
और ईश्वर भक्ति का नमिता राकेश का अंदाज़:
गौहर-ए-अश्क़ को पलकों में पिरोना साईं मुझ को आता नहीं दामन को भिगोना साईं
नमिता राकेश
'आनंदम' अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने एक कविता और एक 'तरही ग़ज़ल' सुनाई जिस का एक मिसरा 'उदासी बाल खोले सो रही है' प्रसिद्ध शायर बशीर बद्र का है। 'तरही ग़ज़ल' किसी भी प्रसिद्ध शायर की किसी ग़ज़ल के एक मिसरे को आधार बना कर उसी काफिये रदीफ़ पर अपनी ग़ज़ल लिखने को कहते हैं। रावतानी जी की निम्न शेरों पर गौर करें:
ख़ुशी दुनिया से गायब हो रही है उदासी बाल खोले सो रही है किसी से भी परेशानी नहीं है मेरी खुद से लड़ाई हो रही है.
डॉ. अहमद अली बर्की 'आज़मी' ने सादगी भरे अंदाज़ में पढ़ा;
हम अर्ज़े-तमन्ना करते रहे, उस पर न हुआ कोई भी असर, था इतना ज़ियादा सदमा-ए-ग़म हम सहते सहते सह न सके
दिल्ली की गोष्ठियों मुशायरों में वातावरण गंभीर होते हुए भी सब को उस गंभीरता से मुक्ति दिलाने व कवियों शायरों को अपने हास्य से चित्त करने वाली एक लोकप्रिय शख्सियत हैं 82 वर्षीय शायर मुनव्वर सरहदी। कविता सुनाने के लिए उन के खड़े होते ही गोष्ठी-कक्ष मानो अग्रिम रूप से ही कहकहों से भर जाता है। यहाँ भी चंद मुक्तक जो उन्होंने पेश किये, उन में से एक नमूना यहाँ प्रस्तुत है:
मैं पढ़ा लिखा था, इसलिए मरते ही मुझ को जन्नत मिली हर फ़रिश्ता हूर को ख़त मुझ से लिखवाता रहा.
कुछ अन्य कवियों की कविताओं गज़लों के अंश भी प्रस्तुत हैं:
कैसर अज़ीज़ - हमें अपनी पनाहों में रखे है यूं वतन अपना हमारे जिस्म को जैसे छुपाए पैरहन अपना
शहादत अली निज़ामी ज़िन्दगी तुझ से कोई शिकवा नहीं है अब मुझे कम नहीं तूने दिए आंसू हंसी खुशबू चुभन
नूर-उल-ऐन कैसर मिली हैं एक ही रस्ते पे जा कर सभी राहें जुदा होते हुए भी
आशा शैली उस हवा के सामने खुद्दार सर झुकते नहीं जिसने रंगों के लिए तितली कोई बदनाम की
ज़र्फ़ 'देहलवी' मुझे अपने खोने का गम नहीं मिले तुम, है ये भी तो कम नहीं
मुज़फ्फर ज़मीर झाल्वी उसे सिवाय तबाही के कुछ नहीं मिलता किसी के हक़ में जो झूठा बयान देता है
पुरुषोत्तम वज्र अगर वादा किया है ज़िन्दगी भर साथ चलने का सफ़र के बीच आ कर हमसफ़र छोड़ा नहीं जाता
गोष्ठी अध्यक्ष जगदीश जैन ने अंत में अपनी एक सशक्त कविता व ग़ज़ल पेश की। एक शेर यहाँ प्रस्तुत है:
मैं न अन्दर से समुन्दर हूँ न बाहर आसमाँ बस मुझे इतना समझ जितना नज़र आता हूँ मैं
प्रतिभागी कवि
रावतानी ने अंत में गौड़ का विशेष धन्यवाद करते हुए सभी कवियों का आभार प्रकट किया व इस बीच 'आनंदम' के एक वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में कवियों का मुंह भी मीठा कराया गया। 'आनंदम' गोष्ठियां अब तक पश्चिम विहार में 'आनंदम' संगीत विद्यालय में होती रही। पर शिवाजी स्टेडियम (राजीव चौक) दिल्ली का एक केंद्रीय सार्वजनिक स्थल है, जहाँ मेट्रो आदि के कारण पहुँचने में सुगमता होगी। रावतानी ने 'आनंदम' की भावी गोष्ठियां भी यहीं होने की आशा जतायी।
नियंत्रक जी ... अब कुत्तों का भौंकना हद से ऊपर हो रहा है....अब तक हमने इन पे तरस खाया..... हमारी गलती थी..मगर आदत है अपनी..... अब गोली मारो ( डिलीट कर दीजिये.... को...)
लगता है नियंत्रकों को केवल और केवल कितनी हिट हुईं इसी का खयाल है तभी वे अनाम को तूल देने में तुले हैं यह गलत बात है इस पर गम्भीरता से विचार कर कोई एक्श्न लें वरना जिसे यह वफ़ादार कह रहा है और जिन्हे मैं हितैषी मानता हूं ्युग्म के छोड़ जाएंगे,साहिब और इस या किसी अनाम का यह कहना कि आप अपनी नापसन्द हटा भी रहे हैं और भी गलत तरीका है मैं पहले भी कह चुका हूं कि ऐसी टिप्पणी पर पहले तो किसी को कमेन्ट ही नहीं करना चाहिये फ़िर यह animouse अपनीमौत मर जाएगा श्याम सखा श्या
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15 पाठकों का कहना है :
'आनंदम' की झलक ने सच मे समा बांध दिया।..
ख़ुशी दुनिया से गायब हो रही है
उदासी बाल खोले सो रही है
किसी से भी परेशानी नहीं है
मेरी खुद से लड़ाई हो रही है.
सुंदर प्रस्तुति..
यह पढ़ने पर हिन्दी युग्म के वफादार जरुर भौकेंगे ,,,,
'आनंदम' के एक वर्ष पूरे होने और सभी कवियों को बधाई .कविताएँ सुनकर ऐसा लगा कि हम भी वहीं बैठे आनन्द ले रहें हो .
हिन्दयुग्म एक बकवास और वाहियात किस्म के कचरे का पिटारा है ............ इसका हिंदी साहित्य में कोई यागदान नहीं है ....
एनी माउस कमेंट्स, जो स्तरहीन हों उन्हें डिलीट कर देना चाहिए .........
हिन्दयुग्म के नियंत्रक को गंभीरता से इस बात पर गौर करना होगा
नियंत्रक जी ...
अब कुत्तों का भौंकना हद से ऊपर हो रहा है....अब तक हमने इन पे तरस खाया..... हमारी गलती थी..मगर आदत है अपनी.....
अब गोली मारो ( डिलीट कर दीजिये.... को...)
आज पहली बार दैश-दैश में गाली दे रहा हूँ..
सभी शे'र अपनी अपनी जगह पुरसर थे लेकिन इन से सबसे ज्यादा मुतास्सिर हुआ.
जब से दादी रह गई है गांव, बच्चे शहृ में
तब से ही रातों में परियों का उतरना ना हुआ।
मैं पढ़ा लिखा था,
इसलिए मरते ही मुझ को जन्नत मिली
हर फ़रिश्ता हूर को ख़त मुझ से लिखवाता रहा.
मैं न अन्दर से समुन्दर हूँ न बाहर आसमाँ
बस मुझे इतना समझ जितना नज़र आता हूँ मैं
nomber 2.....aur
nomber 6 comment deleat kar diiye shailesh ji....
aur nahi dekha jaa rahaa..
मनु जी,
इतने लोगों में से आपने ही क्यों कमेन्ट किया...
क्या यह मेरी बात को साबित नहीं करता... आप सचमुच वफादार हो,,,..
हिन्दी युग्म को वफादारी पुरस्कार भी देना चाहिए.... आपको ही म मिलेगा,,,
milaa hai janu..
iske alaa3aa bahut kuchh milas hai........
ise yoo le le n aaaakr...
comment kiyaa hai..
abhee to.........
bhaunk to aap rahe hao.........
प्रिय मनुजी,
जानकार खुशी हुयी की आप ही हिन्दी युग्म के सबसे वाफदार्र - - हो.
सैलेश ने आपको कब से रख इसे पता नहीं चला...
हिन्दी युग्म को आपकी वफादारी पर नाज़ है,,,
आप अपनी नाम मनु से मोनू रख लो आपके काम से मेल खता है..
बाय बाय मोनू
हम मनु ही सही हैं...
मोना डार्लिंग...
:)
लगता है नियंत्रकों को केवल और केवल कितनी हिट हुईं इसी का खयाल है तभी वे अनाम को तूल देने में तुले हैं यह गलत बात है इस पर गम्भीरता से विचार कर कोई एक्श्न लें वरना जिसे यह वफ़ादार कह रहा है और जिन्हे मैं हितैषी मानता हूं ्युग्म के छोड़ जाएंगे,साहिब और इस या किसी अनाम का यह कहना कि आप अपनी नापसन्द हटा भी रहे हैं और भी गलत तरीका है मैं पहले भी कह चुका हूं कि ऐसी टिप्पणी पर पहले तो किसी को कमेन्ट ही नहीं करना चाहिये फ़िर यह animouse अपनीमौत मर जाएगा
श्याम सखा श्या
shyaam ji kaa kahaa bilkul sahi hai...
par filhaal...
dil hai ke maantaa hi nahin...
:)
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