भद्रजनों को संबोधित करते मुख्य अतिथि शमशेर अहमद ख़ानबांसी(सिद्धार्थ नगर) ’’हिंदी का ज्ञान रखने वाला शिक्षित नवयुवक कभी बेरोजगार नहीं हो सकता, क्योंकि भारतवर्ष के भीतर यदि कोई भाषा संपर्क भाषा के रूप में कार्य कर सकती है तो वह हिंदी ही है।"
यह विचार विगत दिनों स्थानीय राजा रतनसेन महाविद्यालय के सभागार में राजभाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा, केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान, नई दिल्ली वरिष्ठ सहायक निदेशक शमशेर अहमद खान ने व्यक्त किए। उन्होंने हिंदी की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कहा कि लोकतंत्रात्मक भारत में संघ की राजभाषा हिंदी रखी गई ताकि आजाद भारत में संघ सरकार का शासन आम हिंदुस्तानी की जुबान में चलाया जा सके। जिसका उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 में किया गया है। उन्होंने अनुच्छेद 345, 346 और 347 का भी हवाला दिया जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि राज्यों की भी राजभाषा या राजभाषाएं उस राज्य में बोलने वाले लोगों की होंगी। जैसाकि विदित है उत्तर प्रदेश की दो राजभाषाएं हिंदी तथा उर्दू है और दिल्ली में दिल्ली सरकार की भाषायी जनसंख्या के आधार पर हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी है। लेकिन अगर मान लिया जाय तमिल भाषियों का एक बडा समुदाय दिल्ली में आ बसता है और जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से राज्य की पांचवी भाषा तमिल की माँग करता है तो यह संविधान सम्मत कार्य होगा।
विगत दिनों महाराष्ट्र का भाषायी विवाद बिल्कुल असंवैधानिक कार्य था। लिहाजा देशवासियों को ऐसे विवादस्पद लोगों से सावधान रहना चाहिए। भाषायी विवाद से अधिक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एकता और देश की अखंडता है।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते उन्होंने हिंदी की लिपि देवनागरी की विशेषताएं भी बताया और इसे विश्व की श्रेष्ठतम लिपियों में एक बताया। उन्होंने अब्दुर्रहीम खानखाना को श्रेष्ठ अनुवादक और श्रेष्ठ भाषाविद बताया।
संगोष्ठी के श्रोता संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कालेज के प्रबंधक एवं बांसी रियासत के राजकुमार जयप्रताप सिंह ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कहा कि आज हिंदी का प्रयोग व्यापक स्तर पर हो रहा है। यह भद्रजनों की भाषा है। भूमंडलीकरण के इस युग में वैश्विक स्तर की कंपनियां अपने उत्पादों पर देवनागरी लिपि का प्रयोग करने लगी हैं। विदेशी फिल्में और सीरियल हिंदी में डब होने लगे हैं।
सरकारी कामकाज में हिंदी का ही प्रयोग किया जाना चाहिए तभी सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की सफलता मानी जाएगी। बी.एड. के विभागाध्यक्ष नंदलाल चौधरी ने अतिथियों को संगोष्ठी में सहभागिता के लिए आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना और दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ, जिसमें सर्वप्रथम महाविद्दालय के प्रबंधक ने मुख्य अतिथि को माल्यार्पण कर अंगवस्त्र से सम्मानित किया तथा प्राचार्य व संरक्षक डॉ.हरेश प्रताप सिंह ने मुख्य अतिथि शमशेर अहमद खान के व्यक्तित्व व कृतित्व पर बहुत ही सुंदर शैली में प्रकाश डालते हुए संगोष्ठी में सम्मिलित सभी अतिथियों का स्वागत किया।
मंच की शान इस अवसर पर महाविद्दालय के ओम प्रकाश राय, डॉ. विजय कुमार राय, डॉ. जगदंबा गौड़, डॉ. अर्चना मिश्र, डॉ. संतोष सिंह, डॉ. अब्दुल वकी, डॉ. जय नारायण मिश्र, डॉ. सुनील श्रीवास्तव, डॉ. श्कीकुद्दीन, लालदेव सिंह, डॉ. अशोक पांडेय, डॉ. प्रभुदयाल शर्मा, डॉ.अनिल प्रजापति, डॉ.ज्योतिमा राय, हरिशंकर तिवारी, प्रधानाचार्य रतनसेन इंटर कालेज राधेश्याम चतुर्वेदी, अरुण कुमार मिश्र, राजेश शर्मा, रणजीत सिंह, संतराम द्विवेदी व भोजपुरी फिल्म निर्देशक एस. के. भरद्वाज तथा समस्त छात्र-छात्राओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
संगोष्ठी के बाद का वातावरण
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7 पाठकों का कहना है :
’’हिंदी का ज्ञान रखने वाला शिक्षित नवयुवक कभी बेरोजगार नहीं हो सकता, क्योंकि भारतवर्ष के भीतर यदि कोई भाषा संपर्क भाषा के रूप में कार्य कर सकती है तो वह हिंदी ही है।"
शमशेर अहमद ख़ान जी!
आपको बहुत-बहुत बधाई।
ज्ञानवर्धक संगोष्ठी से शमशेर जी के विचार अवगत हुए .विचारकों , विद्वानों ने हिंदी के महत्व के बारे में पहले ही जान लिया था .आभार.
भारत मे निश्चित रूप से हिन्दी भाषा से बेहतर कोई भाषा नही है,
भारत मे ही नही अब विश्व मे भी हिन्दी अपनी पहचान बना चुकी है,
शमशेर अहमद ख़ान जी बधाई!!!
शमशेर जी ने गुनने लायक बात कही है।
’’हिंदी का ज्ञान रखने वाला शिक्षित नवयुवक कभी बेरोजगार नहीं हो सकता, क्योंकि भारतवर्ष के भीतर यदि कोई भाषा संपर्क भाषा के रूप में कार्य कर सकती है तो वह हिंदी ही है।"
कार्यक्रम की प्रस्तुति बहुत आकर्षक है। साधुवाद।
अच्छी बात यह है कि शमशेर जी ने सिद्धार्थनगर जैसी छोटी जगहों पर जागृति फैला रहे हैं।
शमशेर अहमद ख़ान साहब को मुबारकबाद.
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