02 अक्तूबर 2009 की पूर्व संध्या पर भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के महान पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्म दिवस और विगत माह आयोजित किए गए हिंदी पखवाड़े के संपन्न किए जाने वाले समारोह को कुछ इस प्रकार से आयोजित किया कि आमंत्रित श्रोतागणों ने उदात्ता की परम अवस्था में न केवल कविता के विभिन्न रसों का आस्वादन लिया बल्कि बड़ी बेबाकी के साथ वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर की गई प्रतीकात्मक बिम्बों के माध्यम से उन अनुभूति के क्षणों को जिया भी.
भारतीय सांकृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक
श्री वीरेंद्र गुप्ता के प्रशासन का यह पहला कार्यक्रम था. उन्होंने दीप प्रज्ज्वलित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया.
इस कवि सम्मेलन में आमंत्रित किए गए कविगण मंचीय कविता जगत के सितारे थे. इन जगमगाते सितारों में
बेकल उत्साही,डॉ.कन्हैयालाल नंदन,उदय प्रताप सिंह,अशोक चक्रधर, बुद्धिनाथ मिश्र,दीक्षित धनकौरी,गजेंद्र सोलंकी,आलोक श्रीवास्तव और कवयित्री
रश्मि सानन थीं.
कवि सम्मेलन के संचालक कवि
अशोक चक्रधर ने उपस्थित कवियों और अतिथियों का परिचय कराया. रश्मि सानन ने मां सरस्वती की वंदना मधुर कंठ से प्रस्तुत कर इंद्रलोक का सा समां बांध दिया.गजेंद्र सोलंकी ने मातृभूमि कीवंदना प्रस्तुत करते हुए आजादी के शहीदों व क्रांतिकारियों की भूमिका को याद कराया.उन्होंने छोटे-छोटे दोहों से जो समां बांधा उसे श्रोता सुनकर झूम उठे. चूंकि इस कवि सम्मेलन का आयोज 02 अक्तूबर की पूर्व संध्या पर किया गया था और हिन्दी पख्वाड़े का समापन समारोह भी था इसलिए गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री को याद किया जाना लाजिमी बात थी और सोलंकी की ये पंक्तियां स्मरणीय बन गईं---
जिसके आगे स्वर्गपुरी भी लगती जैसे बांदी है,
कि जिसका जर्रा-जर्रा हीरा-मोती, सोना-चांदी है.
अपनी इस भारत माता पर कैसे न मुझको गर्व न हो,
कि जिसका बेटा लाल बहादुर,जिसका बेटा गांधी हो.इसके बाद उन्होंने जो कविताएं सुनाईं,वे एक से बढ़कर एक थीं. इनमें कुछ ऐसी थीं जिसे श्रोता कवि के साथ एकात्म होकर उन पंक्तियों को दोहराने के लिए सम्मोहित था, यथा—
धड़कता प्यारा हिंदुस्तान,नयन का तारा हिंदुस्तान,जहां से न्यारा हिंदुस्तान,
कि गंगा की कलकल सीने में,चंदन सी महक पसीने में,
मन में मुरली की मधुर तान ........इसके पूर्व
रश्मि सानन की ये पंक्तियां भी श्रोताओं की ओर से खूब सराही गईं....
नाम लेकर चलते रहे तन्हा-तन्हा.
ठोकर खाकर संभलते रहे तन्हा-तन्हा.
अजनबी बनकर सीख लिया,
हम अपनी पहचान बदलते रहे तन्हा-तन्हा.कवि
आलोक श्रीवास्तव की कविताएं काफी ऊंचाइयों का स्पर्श कराती रहीं.गीत से कहे गए उनके दोहे अंदर तक झकझोर गए.यथा---
भौंचक्की है आत्मा, सांसें भी हैरान,
हुक्म दिया है जिस्म ने खाली करो मकान.
आंखों में लग जाएं तो नाहक निकले खून,
बेहतर है छोटे रखें रिश्तों के नाखून,
तुझ में मेरा मन हुआ कुछ ऐसा तल्लीन,
जैसे गाएं सूर को आबिदा परवीन.
गुलमोहर सी जिंदगी,धड़कन जैसे फांस.
दो तोले का जिस्म है,सौ- सौ टन की सांस.
चंदा कल आया लेकर जब बारात,
हीरा खाकर सो गई एक दुखियारी रात.
गनीमत है नगरवालो लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गांव में अक्सर दारोगा लूट जाता है.
चांद अगर पूरा चमके तो उसका दाग खटकता है,
एक बुराई तय है सभी इज्जतदारों में.
कल रात सुना है अंबर ने, सिर फोड़ लिया दीवारों से,
आखिर तुमने क्या कह डाला, सूरज चांद-सितारों से.
दो-एक दिन नाराज रहेंगे बाबूजी की फितरत है,
चांद कहीं टेढा रहता है सालों-साल सितारों से.
….. …. ….. …… …… ……
यह सोचना गलत है कि तुम पर नजर नहीं,
मशरूफ हम बहुत हैं , मगर बेखबर नहीं.
अबतो खुद अपने खून ने साफ कह दिया,
मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं.
आ ही गए हैं ख्वाब तो फिर जाएंगे कहां?
आंखों से आगे फिर इनकी कोई रहगुजर नहीं.बुद्धिनाथ मिश्र श्रृंगार रस के कवि माने जाते हैं.जब वे मंच पर काव्यपाठ के लिए उपस्थित होते हैं तो श्रोताओं की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं.प्रेम रस से भिगी उनकी दो कविताएं मंच पर काफी लोकप्रिय रही हैं, यथा—
तुम मेरे समीप आओगे मैने कभी नहीं सोचा था. और
एक बार जाल और फेंक रे मछेरे जाने किस मछली में बंधन की चाह हो.काफी सराही गईं.
नंदन जी की कविताएं जीवन के अनुभवों से गुजरकर यथार्थ में ऐसी पगी होती हैं कि श्रोता उसमें स्वयं को देखने लगता है. आपकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं—
जब से लगने लगे हैं अस्पताल के चक्कर,
सारी दुनिया मुझे बीमार नजर आती है.
और जहां मैं अपना दर ढूढ्ने निकला था,
वहां मुझे दीवार ही दीवार नजर आती है.
मेरे जेहन में कोई ख्वाब था,
उसे देखना भी अजाब था.
वह बिखर गया मेरे सामने,यह इल्जाम मेरे ही सिर गया.डॉ.
उदय प्रताप सिंह राष्ट्रीय परिदृश्य में जब अपनी अनुभूतियों को श्रोताओं तक ले जाते हैं तब श्रोतागण भी देश के हालात और बेबसी पर केवल समझने के अलावा कुछ नहीं कर पाता है. यथा—
पछुआ की ऐसी बीमारी,नई फसल पर संकट भारी,
उजड़ गई जब बगिया सारी,
तब चेती पुरवाई क्या?
बात समझ में आई क्या?
मेहनतकश को मुश्किल राशन,
उनका सोने का सिंहासन,
हर सिंहासन पर एक रावण, देते राम दुहाई क्या? बात समझ में आई क्या?
अपमानित हो रहा पसीना,
मुश्किल है इज्जत से जीना.
बेईमानी ताने सीना,
करती ये नेताई क्या? बात समझ में आई क्या?बेकल उत्साही वरिष्ठ कवि हैं, मंच पर उनकी उपस्थित कवियों में जीवन का संचार भर देती है. अमीर खुसरो, रहीम और रसखान की परंपरा में आधुनिक भारत में वे अनेकता में एकता के प्रतीक हैं. जिस अवसर पर भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने इस कौमी एकता पर आधारित कवि सम्मेलन का आयोजन करवाया था . अपनी पहली पंक्तियों में उन्होंने यों बयां कर दिया----
बापू जी की हर सिक्के पर छ्पी हुई तस्वीर,
रिश्वत में हम खर्च करें यही मेरी तकदीर.
मेरे पुरखे जायसी, रहिमन और रसखान,
मैं सुगंध हूं देश की, देश है मेरी जान.
देश है मेरी जान,कि सब हैं मेरे शैदाई,
गीत,छंद, अतुकांत, गजल, दोहे, चौपाई.
मैं हिंदी हूं ,यार मेरी औकात न पूछो,
मैं भारत की ज्योति, मेरी जात न पूछो. इस यादगार कवि सम्मेलन का कुशल संचालन हास्य सम्राट कविवर
अशोक चक्रधर ने किया. कविता पाठ के उपरांत संचालन कर रहे हास्य कवि ने जो तीर फेंके उसे श्रोताओं ने सिर-आंखोम ले लिया. बानगी देखें—
जल नहीं जंगलों में मिलता है,
खून मिल जाए तो नहाते हैं.
वीरप्पन की गजल गाते हैं,
एक जंगल है तेरी मूंछों मे,
हम राह जहां भूल जाते हैं. कविता पाठ का यह कार्यक्रम अपने निर्धारित समय से काफी आगे तक चला लेकिन श्रोताओं की ्कविता सुनने की प्यास नहीं बुझी. नौ रत्नों की कविताएं ऐसी थीं जिसे श्रोतागण बार-बार सुनने का आग्रह करते जा रहे थे.
इस कवि सम्मेलन में विशेष अतिथिगणों में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री रामकृपाल सिंहा,सांसद श्री टी. मेनीया, पूर्व सांसद श्री हरिकेश बहादुर, डॉ. कृष्णवीर चौधरी,श्रीमती कुसुमवीर,डॉ. परमानंद पांचाल, हरचरण सिंह जोश, श्री वीरेंद्र प्रभाकर, श्री फोतेदार, प्रो. सत्यकाम, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, नारायण कुमार, डॉ. कमल किशोर गोयंका, डॉ. हरिपाल सिंह, उमाशंकर मिश्र सहित अनेक कला एवं संस्कृति से जुड़े लोग उपस्थित थे.
उत्कृष्ठ कोटि के कार्यक्रम का धन्यवाद ज्गापन गगनांचल के संपादक
अजय कुमार गुप्ता द्वारा किया गया. महानिदेशक श्री वीरेंद्र गुप्ता ने आमंत्रित कवियों पुष्पगुच्छ भेंट कर आभार प्रदर्शन किया.
शमशेर अहमद खान,
2-सी,प्रैस ब्लॉक,
पुराना सचिवालय,
सिविल लाइंस,
दिल्ली---110054
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4 पाठकों का कहना है :
भौंचक्की है आत्मा, सांसें भी हैरान,
हुक्म दिया है जिस्म ने खाली करो मकान
बहुत सुंदर पंक्तियां हैं। एक से बडकर एक कविताएं हैं। आनंद आ गया। खबर के लिए आभार।
शमशेर की रिपोर्ट में बहुत ही अच्छे शेर पढने को मिले.
'kaumi ekataa kaa sandesh detaa sarvotkrisht kavi sammelan'padhakar achchha lagaa. aur aise karyakram ,aise maukon par atiaavashyak hai. desh ki do mahaan vibhutiyon kaa janm din. isase desh ki ekataa aur akhandataa ko aur bal milegaa.
सांस्कृतिक एकता पर स्लोगन चाहिए
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