Sunday, December 13, 2009

अखबार से सहकार का भाव: शैलेय



उदयपुर। 10 नवम्बर सूचनाएं संवेदनाओं को पोषित करती हैं और रक्त शिराओं की भांति सामाजिक हृदय के स्पंदन को गतिशील रखती है। यदि आज का मीडिया विज्ञापन के दबाव में अपनी देह को विखंडित कर रहा है तो यह पत्रकारिता के समक्ष बड़ा जोखिम है। सुपरिचित कवि-कथाकार शैलेय ने उदयपुर के माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के नवगठित मीडिया अध्ययन केन्द्र में ’पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार’ विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि अखबार आदमी का सबसे बड़ा दोस्त है जो सहकार का भाव पैदा करता है। यह हमें सजग-सतर्क बनाते हुए देश-काल-परिस्थिति का सही मूल्यांकन करने की शक्ति भी देता है। उन्होंने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी को वह संस्कार किये जाने की जरूरत है जिससे वह सामाजिक सरोकारों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सके। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (मान्य विश्वविद्यालय) द्वारा आयोजित पंचायत राज स्वर्ण जयन्ती समारोह के अन्तर्गत आयोजित इस व्याख्यान के मुख्य अतिथि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, उदयपुर केन्द्र निदेशक प्रो. अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि बाजार वाद और भूमण्डलीकरण के बीच से ही भूखमरी, रोजगार और सूचनाओं की बहसों ने जन्म लिया है। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि यह ऐसा समय है जब श्वेत-श्याम में चीजों का विभाजन पूर्णतः बेमानी हो गया है और परिदृश्य धुंधला गया है। उन्होने हालिया घटनाओं का उल्लेख कर बताया कि जब हमारी सहिष्णुताएं खतरे में हैं तब मीडिया को वह विवेकपूर्ण संस्कार देना होगा जो मनुष्यता के लिए आवश्यक है। प्रो. चतुर्वेदी ने मीडिया पाठ्यक्रमों को तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ समकालीन देश व समाज के अध्ययन से भी जोड़ने की आवश्यकता प्रतिपादित की। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार और ’प्रत्यूष’ के सम्पादक विष्णु शर्मा ’हितैषी’ ने पत्रकारों की युवा पीढ़ी का आह्वान किय की वह अपनी सामाजिक प्रतिबद्वता को चिन्हित करे ताकि पत्रकारिता के सरोकारों की सचमुच व्यापक प्रतिष्ठा सम्भव हो। हितैषी ने कहा कि विकृतियों के लिये केवल मीडिया को दोष देना अनुचित होगा क्योंकि बदलाव के लिये सबकी जिम्मेदारी साझी है। उन्होने उदाहरण देकर बताया कि बाजार के दबावों के बीच भी अपने सामाजिक सरोकारों को मीडिया ने चुनौती की तरह निभाया है। मानविकी संकाय अध्यक्ष प्रो. श्रीनिवासन अय्यर ने कहा कि क्षरण के विरूद्व अक्षर धर्म को अपनी भूमिका फिर से रेखांकित करनी होगी जिसे पत्रकारिता, शिक्षा और साहित्य की त्रिवेणी बनाती है। इससे पहले महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एन. के. पण्ड्या ने अतिथियों का स्वागत किया और मीडिया अध्ययन केन्द्र के समन्वयक डॉ. पल्लव ने विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो. भवानी शंकर गर्ग के संदेश का वाचन किया।

अध्यक्षीय उद्‍बोधन में जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (मान्य विश्वविद्यालय) की कुलपति प्रो. दिव्य प्रभा नागर ने कहा कि सामाजिक सरोकारों वाली पत्रकारिता ने ही राजस्थान विद्यापीठ जैसी संस्थाओं को जन्म दिया है। उन्होने विश्वविद्यालय द्वारा मीडिया अध्ययन केन्द्र के प्रारम्भ को गौरवपूर्ण उपलब्धि बताते हुए कहा कि यहा होने वाला अध्ययन अध्यापन पत्रकारिता के सामाजिक सरोकारों को प्रगाढ़ करेगा। प्रो. नागर ने मीडिया के समक्ष अभावग्रस्त दुनिया की जरूरतों को उजागर करने की चुनौती बतायी। समारोह में प्रो. नागर ने केन्द्र द्वारा प्रकाशित परिचय पुस्तिका का विमोचन भी किया। संचालन केन्द्र की छात्रा मुक्ता व्यास ने किया। लोक शिक्षण प्रतिष्ठान के निदेशक सुशील कुमार ने आभार व्यक्त किया। समारोह में आकाशवाणी के निदेशक डॉ. इन्द्र प्रकाश श्रीमाली, बुनियादी शिक्षा के सम्पादक के. आर. शर्मा, डॉ. लक्ष्मी नारायण नन्दवाना, प्रो. सुरेन्द्र भाणावत, प्रो. पी. आर. व्यास सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, पत्रकार और विद्यार्थी उपस्थित थे।


प्रेषक- डॉ. पल्लव

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पाठक का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

यदि आज का मीडिया विज्ञापन के दबाव में अपनी देह को विखंडित कर रहा है तो यह पत्रकारिता के समक्ष बड़ा.... कथाकार शैलेय ने मीडिया के अस्तित्व पर बहुत सही टिप्पणी की है। दरअसल समाचार पत्र अब तक इस बीमारी से बचे हुए हैं। जो अब तक लोगों के साथ तारतम्य बिठाये हुए हैं। शैलेय जी को बहुत-बहुत बधाई।

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