Indian Society of Authors हर महीने के तृतीय शुक्रवार को India International Centre के Dining hall में ‘मेरी पसंददीदा कविताएँ’ शीर्षक से एक गोष्ठी करती है, जिस में मंच से कोई प्रसिद्ध कवि अन्य कवियों द्वारा रचित अपनी मनपसंद कविताएँ प्रस्तुत करता है. दि. 18 दिसंबर 2009 की गोष्ठी Indian Society of Authors की एक यादगार गोष्ठी थी जिस में प्रसिद्ध कवियत्री ममता किरण ने अपने अध्ययन के आधार पर विश्व भर के कवियों की हिंदी में अनूदित रचनाओं में से अपनी पसंदीदा रचनाएँ प्रस्तुत की. इस गोष्ठी की अध्यक्षता पूर्व सांसद व कवि उदय प्रताप सिंह ने की तथा हिंदी के प्रकाशक कवि विश्वनाथ इस गोष्ठी के मुख्य अतिथि रहे. मंच पर अन्य विशिष्ट अतिथि के रूप में थे ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक कवि दिनेश मिश्र तथा प्रसिद्ध हिन्दीसेवी डॉ. कुसुम वीर.
ममता किरण ने विश्व भर के लगभग 36 सशक्त हस्ताक्षर प्रस्तुत किये जिनमें अमरीका के वाल्ट व्हिटमैन व ब्रायन टर्नर, पुर्तगाल के फर्नांडो पेसोवा, गुयाना के मार्टिन कार्टर व लीबिया के इदरीस मुहम्मद तैय्यब के अतिरिक्त पोलैंड के कई कवि व भारत से पंजाबी, डोगरी, बांग्ला, बोडो और हिंदी-उर्दू के सर्वप्रिय हस्ताक्षर यथा गोपालदास नीरज, गुलज़ार, निदा फाज़ली, बशीर बद्र, दुष्यंत कुमार, कुंवर नारायण, ज्ञानेंद्र पति, नरेश सक्सेना, लीलाधर मंडलोई, विष्णु नगर, सुनीता जैन, राजेंद्र नाथ रहबर, कन्हैयालाल वाजपेयी आदि सम्मिलित थे.
गुयाना के कवि मार्टिन कार्टर जो अपने देश के स्वाधीनता संघर्ष से जुड़े रहे, की कविता ‘जेल की कोठरी’ आज प्रस्तुत सशक्त-तम कविताओं में से एक रही. इस की कुछ पंक्तियाँ:
हाँ/ वह दिन आग की लपटों की तरह/ पूरी दुनिया को भर देगा/अपनी आगोश में/ लाएगा उजियारा/ आलोकित हो उठेगा धरती का कण कण/ऐसा होगा जब/तब एक बार फिर/उठ कर खड़ा हो जाऊँगा मैं/और अट्ठाहस करता निकल जाऊंगा/ बाहर इस कैदखाने से (अनुवाद अक्षय कुमार).
लीबिया के कवि इदरीस मुहम्मद तैय्यब की छंद-मुक्त कविता की कुछ सशक्त पंक्तियाँ:
कुछ महीने पहले/महसूस हुआ/कि जिंदगी मेरे साथ समझौता कर रही है/ मुझे नहीं मालूम था/ कि नियति गुप्त रूप से हंस रही थी मुझ पर/अपने अगले वार की तैयारी करते हुए (अनुवाद इन्दुकांत आंगरीस).
उक्त दोनों विदेशी कविताओं से एक अह्सास बहुत शिद्दत से होना स्वाभाविक था कि मानव-मन कदाचित दुनिया के हर कोने में एक सा है. जीवन-शैली में ज़मीन-आसमान का फर्क हो, देश-काल के अनुसार घटना-दुर्घटना के रूप बदलते रहें, लेकिन अहसास अपने शाश्वत, सार्वभौमिक रूप में वही का वही, जैसे समुद्र का पानी वही का वही, पहाड़ का ठोसत्व वही की वही, और मौसम के रंग भी वही के वही. उक्त दोनों कविताएँ भिन्न विषयों पर हैं, फिर भी एक सार्वभौमिक मानव-मन से साक्षात्कार कराती हैं, जिन में अगर पंजाबी कवियत्री अमृता प्रीतम की निम्न पंक्तियाँ जोड़ें तो लगे कि पूरी मानव जाति आपस में जुड कर बेहद अलौकिक रूप से एक ही पदार्थ में बदल गई है:
मैं तुझे फिर मिलूंगी/ कहाँ किस तरह, पता नहीं/शायद तेरे तखय्युल की चिंगारी बन/ तेरे कैनवास पर उतरूंगी/...मैं और कुछ नहीं जानती/ पर इतना जानती हूँ/ कि वक्त जो भी करेगा/ यह जनम मेरे साथ चलेगा/यह जिस्म खत्म होता है/ तो सब कुछ खत्म हो जाता है/पर चेतना के धागे/ कायनात के कण होते हैं/ मैं उन कणों को चुनूंगी/मैं तुझे फिर मिलूंगी.
ममता किरण अपनी रचनाओं की प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए जानी-मानी कवियत्री हैं और अपनी उसी छवि को बनाए रख कर उन्होंने सभागार में उपस्थित कई विशिष्टजनों यथा उद्योगपति काशीनाथ मेमानी, फ़िल्मकार लवलीन थधानी, कमला सिंघवी, पद्मश्री सुनीता जैन, डॉ. गंगाप्रसाद विमल, अजित कुमार, वीरेंद्र सक्सेना तथा ‘देशबंधु’ पत्र के संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव आदि को मन्त्र-मुग्ध सा बांधे रखा.
ममता किरण का एक प्रिय विषय माँ और उस से जुडी संवेदनाएं भी है, सो न्यू यार्क की हुमेरा रहमान की निम्न पंक्तियाँ भी उनकी ही संवेदनशील चयन दृष्टि का परिणाम हो सकती हैं:
वो एक लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ कहा मुझ को/ मैं एक शाख से कितना घना दरख़्त हुई.
और मुनव्वर राणा का यह शेर:
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
मानवीय संवेदनाओं से अस्तित्व तथा रोज़ी-रोटी भी शायद अभिन्न रूप से जुड़े हैं, यह मैराज़ फैज़ाबादी के निम्नलिखित शेर से स्पष्ट है:
जिंदा रखे है मुझे मेरी ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते.
कविता-प्रेमी जानते हैं कि कविता को उस के असंख्य विषयों को एक ही थाल में सजाने से ही सम्पूर्णता प्राप्त होती है, सो उक्त रंगों में आत्माभिव्यक्ति पर बशीर बद्र का यह दो टूक शेर जोड़ कर पढ़िए:
मुखालिफत से मेरी शख्सियत संवरती है
मैं दुश्मनों का बहुत एहतिराम करता हूँ
या कृष्ण बिहारी नूर का यह शेर:
हज़ार गम सही दिल में मगर खुशी तो है
हमारे होंठों पे मांगी हुई हंसी तो नहीं
देश के माहौल से भी कविता भला कैसे विलग हो सकती है. इस के केवल दो उदहारण काफी हैं:
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
यह बताना तक ज़रूरी नहीं लगता कि ऐसी अमर पंक्तियाँ हिंदी गज़ल पढ़ने वालों के दिलों की धड़कन दुष्यंत कुमार ने रची हैं.
और रसूल अहमद सागर का यह शेर:
मंदिरों से मस्जिदों तक का सफर कुछ भी न था
बस हमारे ही दिलों में दूरियां रख दी गई
कुल मिला कर आज की शाम कविताओं, गज़लों, दोहों व नज़्मों के एक नायाब से गुलदस्ते सी लगी जिस में ममता किरण की चयन-दृष्टि की उत्कृष्टता का पूरा योगदान रहा.
रिपोर्ट – Indian Society of Authors रिपोर्ट विभाग
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2 पाठकों का कहना है :
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति...अच्छी खबर के लिए हिन्दयुग्म का अभार!
रिपोर्ट का स्टाइल प्रेमचंद सहजवाला जैसा है. क्या उन्होंने इंडियन सोसाइटी ऑफ़ औथोर्स का रिपोर्ट विभाग ज्वाइन किया है? shalini
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