Wednesday, December 16, 2009

एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली द्वारा ‘समझ का माध्यम : शृंखला की समीक्षा’ पर एक परिचर्चा कार्यक्रम (16 दिसम्बर 2009) का आयोजन

14 दिसम्बर 2009

एनसीईआरटी के भाषा विभाग ने ‘समझ का माध्यम’ परिसंवाद शृंखला की शुरुआत की है। इस परिसंवाद शृंखला की शुरुआत पटना में (27-28 अगस्त 2008) हुई थी। दूसरा कार्यक्रम वाराणसी में (19-20 नवंबर 2008) और तीसरा कार्यक्रम उदयपुर में 5-6 फरवरी, 2009 हुआ था। इन तीनों कार्यक्रमों में देश के जाने-माने शिक्षाविद, विषय-विशेषज्ञ, राज्य शैक्षिक संस्थान और बोर्ड के सदस्य के साथ-साथ देश के कोने-कोने से आए अध्यापक शामिल हुए और विचार रखे।

इन परिसंवादों से यह बात निकलकर आई कि बच्चों की समझ बनाने के लिए माध्यम के रूप मे उनकी अपनी भाषा, बहुभाषिक शिक्षा और भाषाओं में संवाद का होना जरूरी है।

आज़ादी के बाद के पिछले सारे शिक्षा संबंधी दस्तावेजों में भी मातृभाषा को समझ के माध्यम (खासतौर से प्राथमिक शिक्षा) के रूप में लागू किए जाने की बात कही गई और बच्चों की समझ में सहायक उनकी अपनी भाषा, उनकी स्वतंत्रा अभिव्यक्ति को महत्व दिया गया। लेकिन आज लगभग 60 वर्षों बाद भी ऐसा पूरी तरह न हो सका। एक ओर घर की भाषा और स्कूल की भाषा में अंतर बढ़ता चला गया तो दूसरी ओर अंग्रेज़ी सहित भारतीय भाषाओं के बीच संवाद भी टूटा। मानसिक बोझ इस कदर बढ़ा कि बच्चों की अपनी समझ, अपनी अभिव्यक्ति कहीं दब कर रह गई। इसीलिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2005) में इस बात को पुरजोर तरीके से पिफर से कहने की जरूरत पड़ी कि बच्चों की घर की भाषा स्कूल में भी उनकी समझ का माध्यम बने ताकि बच्चे रटने की बजाय समझकर पढ़ने की दिशा में आगे बढ़ें। शिक्षा उनके लिए बोझ न बनकर एक आनंददायी अनुभव बने।

इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए एन सी ई आर टी के भाषा विभाग ने एक पहल की और शिक्षाविदों और अध्यापकों के साथ मिलकर देश भर में एक बहस चलाई। यह बहस पटना, वाराणसी और उदयपुर में दो दिवसीय परिसंवाद के रूप के आयोजित हुई। बच्चों की अपनी भाषा ही उनकी समझ का माध्यम हो सकती है - इस बात पर सबकी सहमति भी बनी। पर इसमें सबसे बड़ी समस्या क्रियान्वयन की है। इन गोष्ठियों से उभरकर यह बात भी आई कि इस दिशा में एक व्यापक तैयारी की ज़रूरत होगी, न केवल अकादमिक बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक भूमिका को लेकर एक तैयारी करनी होगी।

इस कार्यक्रम में प्रो. कृष्ण कुमार, प्रो. अनिता रामपाल, प्रो. अरूण कमल, श्री रोहित ध्नकर, डॉ. एच. के दिवान, प्रो. राजेश सचदेवा, प्रो. रामजन्म शर्मा, प्रो. ए. के . मिश्रा, डॉ. संध्या सिंह, डॉ. कीर्ति कपूर, एनसीईआरटी, एससीईआरटी, विभिन्न बोर्ड के सदस्य तथा शिक्षक और शिक्षक प्रशिक्षक शामिल होगें।

प्रेषक-
संध्या सिंह
रीडर, भाषा विभाग
एनसीईआरटी

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पाठक का कहना है :

alka mishra का कहना है कि -

बहुत देर में जगे आप लोग
सुबह हुए तो ज़माना गुजर गया
खैर ....देर आयद दुरुस्त आयद
लेकिन इसमें अभिभावकों को जरूर शामिल करना चाहिए जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपने बच्चों को मिल्क ड्रिंक कराते हैं ,दूध नहीं पिलाते, शेक हैण्ड कराते हैं नमस्ते नहीं कराते .
बच्चा बेचारा न घर का होता है न घाट का

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