दलित साहित्यकार रूप नारायण सोनकर की कृति डंक का लोकार्पण पिछले दिनों इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक विंदेश्वर पाठक ने किया। उन्होंने कृति के बारे में अपनी राय ज़ाहिर करते हुए कहा कि समाज जो व्यवहार दलितों के साथ कर रहा है, उसका वर्णन इसमें है। इस अवसर इर गगनांचल के संपादक अजय गुप्ता, एचटी मीडिया समूह के प्रकाशक राकेश शर्मा और शुक्रवार के संपादक प्रदीप पंडित और मंच के कवि सुरेश नीरव भी मंचासीन थे। गौरतलब है कि एक दलित लेखक की कृति पर आयोजित कार्यक्रम में गैर दलित बुद्धिजीवियों की उपस्थिति ही अधिक थी।
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7 पाठकों का कहना है :
Ab sahitykaar bhi dalit hone laga...shailesh ji...kam se kam is shreni ko to jati,dhram, varn ke bandhan aur upnaam se mukt rahiye.......kalamkaar ki ek hi jaati, dhram, majhab hota hai aur wo hai Insaaniyat, Manavta...aur jismein ye nahi wo kalamkaar kahlane laayak nahi....bhale hai is desh ki sarkaare use kitne hi Inaamon se navaje.
किसी साहित्यकार के ये दलित शब्द मुझे समझ में नहीं आता ........................... साहित्य भी इससे अछूता नहीं रही .............. हाय ये कैसे विडंबना है ...............
Priya ji se sahmat hoon. Kalamkar ko bhi jati dharm me na banto.
भले ही 'दलित साहित्यकार' मुहावरा विचित्र भी लगता है और लगता है जैसे साहित्यकार भी अब 'कोटे' में आ गए हैं. पर फिर भी मैं अपनी अटकल-पच्चू अकल का घोड़ा दौड़ाता हूँ जिस साहित्य में दलित जीवन को चित्रित किया गया हो व समाज में दलितों की स्थिति को रेखांकित किया गया हो, उसे तकनीकी तौर पर 'दलित साहित्य' कहा गया है और यह मुहावरा सर्व-विदित है. मैं समझता हूँ कि दलित साहित्यकार से तात्पर्य उस साहित्यकार से है जो दलित साहित्य लिखता है. इस आधार पर हम किसी कृति को दलित कृति भी कह सकते हैं, जैसे दलित कविता दलित कहानी आदि. डॉ. महीप सिंह की संचेतना पत्रिका का 'दलित-कथा विशेषांक' सर्व-विदित है. अतः यदि हम दलित साहित्यकार मुहावरे को सही परिप्रेक्ष्य में लेंगे तो यह मुहावरा हमें तंग नहीं करेगा.
‘दलित’ शब्द का अर्थ है- जिसका दहन और दमन हुआ है, दबाया गया है, उत्पीड़ित, शोषित, सताया हुआ, गिराया हुआ, उपेक्षित, घृणित, रौंदा हुआ, मसला हुआ, कुचला हुआ, विनिष्ट, मर्दित, पस्त-हिम्मत, हतोत्साहित, वंचित आदि। Kya lekhak khud ko dalit kahalwane mein gauranvit anubhav karete hain? ab to wo samajik dhara ke sashkat aur abhinn ang hai........Wo to shoshit nahi hai........Haan shoshiton aur peedto ke aawaz ko logon tak sahitya ke madhyam se pahuchana achchi baat hai ....Kya ucch Jaati mein shoshit, peedit, Upekshit log nahi hote.....Unpar likhi rachna ke rachnakaar ko kya naam denge aap ? Roop Narayan Sonkar ji ko Dalit pukare jaane par unhe swaym aapati honi chaihiye ........Yadi wo laabh ki apeksha nahi karte hain to
Prem chand Sahajwala ji ....Shabdo ka akaal nahi hai Naya shabd khojiye.....Prem chand ne to bhaut likha....unkeliye dalit sahityakaar shab ka istemaal nahi hua......Shabdo ka akaal nahi hai....shabdkosh se naya shabd khojiye .....Ye aapatiyaan jayaz hain.
प्रिया जी, मुझे भी यही लग रहा था कि दलित साहित्यकार शब्द अच्छा भला दिग्भ्रमित कर देने वाला सर-चकराऊ सा मुहावरा है और हर कोई इसे मेरी तरह से नहीं लेगा. मैं जानना चाहूँगा कि यदि हम उसे 'दलित-हितैषी साहित्यकार' कहें तो कैसा लगेगा? आप भी बेहतर मुहावरे सुझा सकती हैं. बहरहाल कभी कभी शब्दों का जाल जंजाल भी बान जाता है यह इस रिपोर्ट ने साबित कर दिया.
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