संगीत तपस्या और निरंतर सिखाते रहने की प्रक्रिया है ,जिसे आज भी मैं सिख रही हूँ .यह कहना है देश बिदेश में भोजपुरी की संस्कृति बचने की प्रयासरत सिंगर सीमा तिवारी का .हाल ही में आयोजीत एक कार्यक्रम में भाग लेने आयी सीमा तिवारी से हमारे संबाददाता ने भोजपुरी संगीत के पहलूओं पर बात चीत की:
प्रश्न :सबसे पहला सवाल भोजपुरी संगीत में आपकी शुरुआत कैसे हुई और आज इस स्तर पर कैसे पहुँची?
उत्तर:संगीत की शुरुआत हमारी बचपन से ही हुई,छोटे मोटे कार्यक्रम तो विद्यालय स्तर पर ही होते रहते थे .लेकिन इसमें निखार आया सन २००२ में .पठाई के साथ साथ दो तीन घंटे का रोज अभ्यास करना उस समय आसान नहीं होता था.इसका पुरा पूरा श्रेया मैं अपने पिताजी को देना चाहती हूँ .शादी के बाद मेरे पति डॉ साहब का भी सहयोग रहता है.
प्रश्न:संगीत के माध्यम से भोजपुरी संस्कृति बचाने का प्रयाश कर रही हैं आज अपने आप को कितना सफल मान रही है?
उत्तर:शत प्रतिशत भोजपुरी संस्कृति खतरे में है इसे हर व्यक्ति को जिसे भी भोजपुरी की खुश्बू याद है, उसे सहेजना चाहिए क्योंकी कहा जाता है की जिसका भी इतिहास बदलना हो उसकी संस्कृति बदल दो. हम वो नहीं होने देंगे संगीत समाज का अगुआ होता है. उससे संस्कृति और इतिहास दोनों को बचाया जा सकता है. मेरा इसी दिशा में प्रयाश जारी है.
प्रश्न :भोजपुरी संगीत के क्षेत्र में आगे आप क्या करना चाहती है?
उत्तर: भोजपुरी के क्षेत्र में नया कार्य करना चाहती हूँ अश्लील गीतों को हटाना चाहती हूँ जिससे भोजपुरी के प्रति जो भ्रांतियां पैदा हो गयी हैं वो दूर हो सके .
प्रश्न:संगीत के क्षेत्र में कोई यैसा पल जो आज भी आपको याद आता है?
उत्तर:संगीत का हर पल ही एक कलाकार के लिए सुनहरा होता है लेकिन कुछ ऐसे पल होते है जो भुलाने योग्य नहीं होते हैं. वाकया "बलिया मोहोतस्वा" का है उसी समय कारगील की लड़ाई खत्म हुई थी और बलिया जिले का भी एक जवान शहीद हुआ था उस शहीद का पार्थिव शरीर जब तिरंगे में लपेट कर उसके माँ को सौंपी गयी थी उसी घटना पर आधारित मेरे पिताजी ने एक गीत लिखा था "देखनी तिरंगा में बबुववा के छाती दूना हो गईल" इसी गीत को मैंने प्रस्तुत किया था और इस गीत को गाते गाते मेरे आँखों से अश्रुधारा निकल गई .और सामने बैठे लाखों श्रोताओं की आखें नम हो गई थी. यह मेरे लिए नहीं भूलने वाला पल है .
प्रश्न :आपको इस गीत पर उत्तर प्रदेश राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चूका है इसके बारे में भी कुछ बतावें.
उत्तर:जी हाँ यह वही गीत था जिस पर तत्कालीन राज्यपाल माननीय विष्णु कान्त शास्त्री ने २००४ में मुझे पुरस्कृत किया था.
प्रश्न :आज के दौर में भोजपुरी कलाकारों को खुद को स्थापित करने के लिए अश्लीलता का सहारा लेना पद रहा है कैसे चुनौतियो का सामना करती हैं?
उत्तर: बिलकुल ठीक कहा आपने लेकिन आप एक कलाकार बता दे जो ऐसे गीत गाकर पद्म श्री ले लिया हो. यदि पद्मश्री की बात आती है तो उसमे सिर्फ श्रीमती शारदा सिन्हा जी ही है और वो अश्लील गीत गाकर नहीं लिया गया है.अभी इसी साल २०१० के गणतंत्र दिवस पर इंडिया गेट पर हमारे कटनी और रोपनी गीत बजे क्या यह अश्लीलता से संभव था. मैं जानती हूँ आजकल संगीत महफीलों में नया चलन देखने को मिल रहा है एक तरफ सिंगर गाना गा रहे होते हैं तो दूसरे तरफ नृत्य का आयोजन चलता रहता है ऐसे में भोजपुरी आयोजकों को ध्यान रखना चाहिए की गीत और नृत्य का अलग-अलग स्थान होना चाहिए क्योंकि दोनों की अलग अलग मर्यादाएं है.कला का आयोजन सिर्फ शोहरत और पैसा कमाने के लिए न हो संस्कृति को सहेजने के लिए भी हो.यह तभी संभव है जब कलाकार अपने में नियंत्रित रहेंगे।
प्रश्न: इस महीने आप विदेश दौरा पर जा रही है इसके बारे में कुछ बताएं.
उत्तर: जी हाँ, भारत सरकार द्वारा हमें गुयाना भेजा जा रहा है,वहाँ कई जगह कार्यक्रम होंगे जो २५ अप्रैल से ५ मई तक चलेगा.
प्रश्न: गुयाना के प्रदर्शन में आप अपने संस्कृति को कैसे प्रदर्शित करेंगी
उत्तर: भोजपुरी संस्कृति बिधावों की भंडार है जैसे -सोहर, खेलवना, विवाह गीत, हल्दी गीत, जेवनार, जनेऊ गीत आदि कई ऐसी विधाएं है में कोशिश करुँगी की इन सारी मिटटी की खुशबुओं को गुयाना में छोड़ कर आऊँ।
प्रश्न: भोजपुरी संगीत सुनने वालों के लिए क्या सन्देश देना चाहती हैं?
उत्तर: सबसे पहले श्रोताओं को धन्यवाद देती हूँ. और उनके लिए एक छोटी सी गुजारिश यह है के वही गीत सुने जो आपकी संस्कृति से जुड़े हों और अश्लील न हो.
प्रश्न: अच्छा सीमा जी बहुत बहुत धन्यबाद अपने अपना समय दिया।
ऊतर :जी, धन्यवाद, नमस्कार
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