वीडिओ संपादन एवं प्रस्तुति श्रीकन्त मिश्र 'कान्त'
चंडीगढ़। ‘बेशक देश में लोकतांत्रिक प्रणाली है, लेकिन आम जनता क्या आजादी से अपने बारे में सोच सोचती है। क्या लोग आजादी से काम कर सकते हैं। इंसाफ पाने के इंतजार में आम आदमी मौत के द्वार तक पहुंच जाता है,लेकिन इंसाफ नहीं मिल पाता। इस सबके बावजूद आम जनता इसी सिस्टम का पालन करने को मजबूर है और मिलकर इस सिस्टम के खिलाफ आवाज नहीं उठाती।’ देश के सिस्टम पर प्रहार करता नाटक ‘फुटबाल के बराबर अंडा’ सेक्टर-17 स्थित आईटीएफटी की बेसमेंट के मंच पर पेश किया आईटीएफटी के कलाकारों ने। नाटक की कहानी में पुलिस तंत्र में फैले भ्रष्टाचार पर कटाक्ष किया गया
एसएचओ बेनीवाल अपने नए स्टेशन में आकर उस समय परेशान हो जाता है जब उसे पता चलता है कि उस थाना क्षेत्र में कोई चोरी या अन्य अपराध नहीं होता। वह अपने हवलदारों के माध्यम से डकैतों तक यह संदेश पहुंचाता है कि वे बेफिक्र होकर उसके क्षेत्र में अपनी गतिविधियां चला सकते हैं। इतना ही नहीं, वह हवलदार से किसी भी व्यक्ति को पकड़ लाने का आदेश देता है तो हवलदार एक तमाशा दिखाने वाले को पकड़ लाता है। एसएचओ तमाशे वाले की बुरी तरह पिटाई करवाता है जिस पर तमाशे वाले उसके खिलाफ कोर्ट में केस कर देता है। लेकिन 30 साल तक इंतजार के बाद भी उसे इंसाफ नहीं मिल पाता और अंत में इंसाफ मिलने की उम्मीद लिए ही उसकी मौत हो जाती है। तमाशे वाले का किरदार निभाने वाले अंश ने दर्शकों के दिल पर अमिट छाप छोड़ तो अन्य पात्रों एसएचओ बने जगमीत, पत्रकार बनी अपराजिता, हवलदार बने नम्रता और अमन ने भी अपने-अपने पात्रों के साथ बखूबी न्याय किया। नाटक का लेखन और निर्देश चक्रेश कुमार का था ।
‘फुटबाल के बराबर अंडा’
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पाठक का कहना है :
इंसाफ पाने के इंतजार में आम आदमी मौत के द्वार तक पहुंच जाता है,लेकिन इंसाफ नहीं मिल पाता। ये स्थिति किसी भी देश और समाज के लिए शर्मनाक होने के साथ-साथ इंसानियत को भी शर्मसार करने का काम करता है / हम सब को इसके लिए एकजुट होकर सोचना चाहिए और कुछ ठोस उपाय भी करना चाहिए /विचारणीय प्रस्तुती / हम चाहते हैं की आप लोग भी इंसानियत की मुहीम में अपना योगदान दें ,कुछ ईमेल भेजकर / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
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