Saturday, May 15, 2010

राष्ट्रीय अनुवाद मिशन और राष्ट्र को चुनौतियाँ विषयक संगोष्ठी



राष्ट्रीय अनुवाद मिशन के गठन से अनुवाद के क्षेत्र का विस्तार किसा प्रकार किया जाए जिससे अंतरराष्ट्रीय साहित्य भारतीय जन-जन तक पहुँच सके, इस बात को ध्यान में रखते हुए नई दिल्ली सांध्यकालीन हिन्दी संस्थान द्वारा भारतीय विद्या भवन, कस्तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्ली में डॉ. नगेन्द्र स्मृति साहित्यिक संगोष्ठी तथा संस्थान द्वार संचालित अनुवाद पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण विद्यार्थियों के लिए प्रमाणपत्र वितरण समारोह का आयोजन किया गया।

प्रारंभ में सुविख्यात भाषाविज्ञानी, संस्थान के निदेशक और हिन्दी भाषा के प्रकांड विद्वान प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी ने बीज भाषण दिया। प्रो. गोस्वामी ने अपने वक्तव्य में बताया कि राष्ट्रीय अनुवाद मिशन की स्थापना प्रधानमंत्री की प्ररेणा से और राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के प्रयास से सन् 2006 में हुई थी। इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भारतीय भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान आधारित साहित्य को अनुवाद द्वारा जन-जन तक पहुँचाना है। उच्च स्तरीय कोश, थिसारिस आदि अनुवाद उपकरणों और कंप्यूटर साफ़्टवेयरों का उत्पादन करना है। अनुवाद की गुणवत्ता की वृद्धि के लिए लघु अवधीय नवीकरण पाठ्यक्रम तथा शोध परियोजनाओं से अनुवाद संबंधी शिक्षा प्रदान करनी है। इसी संदर्भ में प्रो. गोस्वामी ने ये प्रश्न उठाए कि क्या उच्च शिक्षा के सत्तर मुख्य कार्यक्षेत्रों के साहित्य का उच्च स्तरीय अनुवाद समय पर हो पाएगा। यदि है तो क्या-क्या मानदंड अपनाए गए हैं? भारतीय और विश्व की क्लासिकल कृत्तियों के अनुवाद का चयन किन आधारों पर किया जाएगा? इसमें पुनरावृत्ति की आशंका तो नहीं होगी। अनुवाद मिशन द्वारा निर्धारित 73 करोड़ 90 लाख रुपए का बजट समय पर खर्च हो पाएगा और हुआ भी तो, कितना कार्य होगा और वह कितना लाभकारी, उपयोगी तथा शीघ्र हो पाएगा? क्या इसके लिए कोई रोडमैप बनाया गया है? अनुसृजन की दृष्टि से क्या यह अनुवाद मूल पाठ लग पाएगा। मशीनी अनुवाद कब तक विकसित हो पाएँगे और उनके कार्य में कितनी गुणवत्ता होगी। प्रो. गोस्वामी ने इस प्रकार के प्रश्न उठा कर अनुवाद मिशन की कार्य प्रणाली पर अपने विचार व्यक्त किए।

प्रगत संगणन विकास केन्द्र (सी-डैक) नोएडा के निदेशक और कंप्यूटर वैज्ञानिक श्री वी.एन. शुक्ल ने बताया कि अंग्रेज़ी-हिन्दी मशीनी अनुवाद का विकास पूरा हो चुका है और अंग्रेज़ी-पंजाबी, अंग्रेज़ी-बंगाली, अंग्रेज़ी-उर्दू, अंग्रेज़ी-मलयालम मशीनी अनुवाद का विकास अब चल रहा है। इसके साथ भारतीय भाषाओं के परस्पर अनुवाद और मुख्यतः हिन्दी से भारतीय भाषाओं के मशीनी अनुवाद विकसित किए जा रहे हैं। इनमें अधिकतर पर्यटन, स्वास्थ्य, प्रशासन संबंधी अनुवाद हो रहे है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय राष्ट्रीय अनुवाद मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मशीन आधारित अनुवाद के विकास के लिए प्रयासरत है। इस अनुवाद के मानव अनुवाद की अपेक्षा अत्यंत शीघ्र होने की संभावना है।

साहित्य अकादमी के उपसचिव और ‘समकालीन साहित्य’ पत्रिका के संपादक श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं के अतिरिक्त कई ऐसी गैर-अनुसूचित भाषाएँ और बोलियाँ हैं, जिनका साहित्य काफ़ी स्तरीय है। इस पर प्रश्न उठाया जा सकता है कि इन भाषाओं में रचित साहित्य और लोक साहित्य की उपेक्षा क्यों की जा रही है।

संगोष्ठी की अध्यक्ष सुश्री सुरेंद्र सैनी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में अनुवाद की उपयोगिता और सार्थकता पर अपने विचार प्रकट करते हुए यह आशा व्यक्त प्रकट की कि अनुवाद मिशन से अनुवाद के क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि होगी। इसके बाद संस्थान द्वारा संचालित स्नातकोत्तर अनुवाद पाठ्यक्रम के छात्रों को अध्यक्ष महोदया द्वारा प्रमाणपत्र और पुरस्कार वितरित किए गए। संस्थान के सचिव डॉ. जय नारायण कौशिक ने संस्थान का परिचय देते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। अनुवाद पाठ्यक्रम के संयोजक डॉ. पूरनचंद टंड़न ने संगोष्ठी और वितरण समारोह का संचालन करते हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद किया। डॉ. धर्मपाल आर्य (पूर्व कुलपति, गुरूकुल कांगड़ी, हरिद्वार) श्री ओम प्रकाश अरोड़ा (वरिष्ठ पत्रकार), प्रो. ठाकुर दास (वरिष्ठ भाषाविद्), डॉ. हरीश कुमार सेठी (इग्नु), डॉ. शिव कुमार शर्मा (दिल्ली वि.वि.) आदि विद्वानों की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।


डॉ. रमा द्विवेदी

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पाठक का कहना है :

अनुनाद सिंह का कहना है कि -

राष्ट्रीय अनुवाद मिशन के सिर पर बहुत महती जिम्मेदारी है। क्या अभी तक उनका कुछ 'आउटपुट' आया है या अभी भी 'तैयारी' ही चल रही है। सरकारी तंत्र में दीर्घसूत्रता सबसे बड़ी समस्या है।

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