कोटा। 26 सितम्बर। जनवादी लेखक संघ की मासिक काव्य गोष्ठी माह के अंतिम रविवार को हिंदी दिवस को समर्पित रही। जलेस कार्यकारिणी ने सर्वप्रथम तलवंडी स्थित अपने कार्यालय में प्रख्यात साहित्यकार कन्हैया लाल नंदन के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। जलेस की प्रगतिशील परम्परा की उदारता के चलते सर्वप्रथम जलेस और शहर के प्रिय क्रांतिकारी रचनाकार ब्रजेश सिंह झाला ‘पुखराज’ के महावीर नगर प्रथम पर स्थित निवास पर दोपहर ढाई बजे गोष्ठी का शुभारंभ ‘पुखराज’ की सरस्वती वंदना से हुआ।
आरंभ में लाखेरी से पधारे शायर सुनील एस- उर्मिल मुख्य अतिथि और शहर के जाने माने साहित्यकार सूरजमल जैन ने अध्यक्ष के रूप में आसन ग्रहण किया। जलेस अध्यक्ष श्री रघुनाथ मिश्र ने पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए गोष्ठी को हिंदी दिवस (14 सितम्बर) को समर्पित कर सभी पधारे साहित्यकारों रचनाकारों को हिंदी पर अपनी रचनाओं की प्रस्तुति के लिए आह्वान किया। उन्होंने राष्ट्रभाषा के संवर्द्धन, प्रोत्साहन, और संरक्षण पर जोर देते हुए हिंदी की अथक यात्रा के बारे में अपना सारगर्भित वक्तव्य दिया। कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रिका ‘दृष्टिकोण’ के प्रबंध सम्पादक और कवि नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती ‘मोती’ को सौंपा गया। काव्यपाठ का आरंभ कवि महेंद्र शर्मा की कविता ‘गलत चुना तो पछताएगी, बोल जिंदगी किधर जाएगी’ से हुआ। इसी बीच जयपुर के जाने माने ग़ज़लकार अखिलेश तिवारी के आने से माहौल में ताजगी आ गयी। कविता के बाद श्री तिवारी को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। ‘पानी को तो पानी लिख’ काव्य संग्रह के रचनाकार श्री आर सी शर्मा आरसी ने अपनी प्रख्यात रचना ‘एक अरसे की अनबुझी प्यास हूँ, पार्थ का दिग्भ्रमित आत्मविश्वास हूँ, जो महल मेरे सपनों का हो न सका, मैं उसीका अधूरा शिलान्यास हूँ’ सुना कर धीरे-धीरे गोष्ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। सतीश मीणा ने ‘हरियाली के बीच रंग गया, नंदकिशोर अनमोल ने ‘हम हिंदी हैं गर्व हमें कि हिंदुस्तान हमारा’ गीत से हिंदी और हिंदुस्तानी होने पर गर्व जताया, बीच-बीच में नवराचनाकारों को जोश दिलाते हुए संचालक नरेंद्रचक्रवती ‘मोती’ ने अपनी ग़ज़ल सुनाई ‘गाहे बगाहे क़लम चलाया करो, ‘गीतांकुर’ से फिर चर्चा में आये छोटी बहर के रचनाकार शायर डॉ0 नलिन ने ग़ज़ल सुनाई ‘यह सदा है चाक सीने की, तमन्ना है और जीने की’, शहर की उभरती कवयित्री प्रमिला आर्य ने अपना गीत ‘गर तू पाना चाहे मंजिल, आशाओं के दीप जला’ गाकर दाद बटोरी, शरद तैलंग की ग़ज़ल ‘बात दलदल की करे जो कंवल क्या समझे, दर्द जिसने न सहा हो वो ग़ज़ल क्या समझे’ सुन कर तालियों से गोष्ठी गूँज उठी, महेंद्र नेह ने जनवादी कविता ‘उन्होंने हमारे हाथों से छीने औजार खाली हाथ रह गये, उन्होंने हमें जलालत दी हम उसे भी सह गये ‘ सुना कर सफ़दर हाशमी की याद ताजा कर दी। डॉ0 गयास फ़ाईज़ ने शृंगार रस की ग़जल से माहौल को नई ऊँचाई प्रदान की ‘तेरी यादों तेरे खयालों में, खो गया हूँ मैं उजालों में, बन सँवरने की क्या ज़रूरत है, अच्छे लगते हो बिखरे बालों में’, राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान में क्रांतिकारी कवि पुखराज ने जहाँ सरस्वती वंदना हिंदी की सशक्त कविता से की, वहीं अपने काव्य पाठ में राष्ट्र के प्रति अपने प्रेम को ‘रक्त के कतरों से सींचा है जहॉं सारा चमन, अश्रुपूरित नयन करते उन शहीदों को नमन’ सुना कर जलेस की गरिमा को बढ़ाया। शायर इमरोज ने हिंदी दिवस को समर्पित ग़ज़ल सुनाई ‘तुम्हारे सामने हिंदी ग़ज़ल एलान कर देगी, तेरी भाषा विवादों का सफ़ा मैदान कर देगी’ सुनाई। वयोवृद्ध और वरिष्ठ कवि निर्मल पाण्डेय ने अपनी कविता से संकल्प की बात की ‘हो कठिन पर्वत मगर संकल्प हो, दृढ़ चरण धर कर किसी अंजाम को देंगे। पार्थ ने फिर रख दिया गांडीव धरती पर, यह खबर हम खासकर घनश्याम को देंगे’, प्रख्यात शायर पुरुषोत्तम यक़ीन ने आज की ग़रीबी और महंगाई पर व्यंगय सुनाया ‘जिंदगी की व्यथायें क्यों लिख दीं, इतनी महंगी दवायें क्यों लिखदीं’। अन्य रचनाकारों रघुनंदन हठीला, शकूर अनवर, अखिलेश तिवारी, सुनील उर्मिल, अखिलेश अंजुम, गोरस प्रचंड, आर सी गुप्ता, सुरेंद्र गौड़, हलीम आईना, चाँद शेरी, ओम नागर, वेद प्रकाश परकाश, इमरोज, शून्याकांक्षी, वैभव सौमानी, आनंद हजारी ने भी अपनी अपनी रचनायें पढ़ीं। कार्यक्रम के अंत में श्री मिश्र ने जयपुर से पधारे साहित्यकार श्री अखिलेश तिवारी को ‘आकुल’ की पुस्तक ‘जीवन की गूँज’ और स्वयं की पुस्तक ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’ भेंट कर उन्हें सम्मानित किया। तीन घंटे चली गोष्ठी में शामिल शहर के साहित्य संस्थानों विकल्प, आर्यावर्त आदि के प्रतिनिधियों और लगभग 35 रचनाकारों साहित्यकारों ने उपस्थित हो कर जलेस गोष्ठी को समारोह का रूप दे दिया और समारोह को साहित्य रस से सराबोर कर अविस्मरणीय बना दिया।
गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती ‘मोती’
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