Friday, April 22, 2011

सुविख्यात भाषाविज्ञानी और आलोचक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी की मॉरिशस यात्रा



विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरिशस के तृतीय आधिकारिक कार्यारंभ दिवस पर भारत के सुविख्यात भाषाविज्ञानी और आलोचक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी को मुख्य अतिथि के रूप में मॉरिशस में आने का निमंत्रण दिया गया। प्रो. गोस्वामी 06 फ़रवरी, 2011 को मॉरिशस पहुँचे और उनका स्वागत विश्व हिन्दी सचिवालय के महासचिव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र और उप महासचिव गंगाधर सिंह गुलशन सुखलाल ने किया।

11 फ़रवरी, 2011 को सचिवालय का आधिकारिक कार्यारंभ दिवस पर महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के सभाकक्ष में सचिवालय की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य और मॉरिशस के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री माता बदल अजामिल की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इसमें प्रो. गोस्वामी ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने वक्तव्य में ‘अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में हिन्दी’ विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि विदेशों में रह रहे हिन्दी भाषी भारतीयों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - एक वर्ग में वे देश आते हैं जिनमें भारतीय मूल के लोग वर्षों पहले गए थे और वहीं बस गए हैं। इनमें मॉरिशस, फीजी, गुयाना, सूरिनाम, टोबेगो एवं त्रिनिदाद देश आते हैें। इन देशों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग होता है। इनमें हिन्दी का सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ है, साहित्यिक सृजन का संदर्भ है और प्रयोजनमूलक संदर्भ है। इन देशों में साहित्य रचना तो होती है, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अस्मिता का भी प्रश्न ज्वलंत रहता है। दूसरे वर्ग में वे देश आते हैं जो आधुनिक युग में नौकरी के लिए भारत से बाहर गए और वही अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में प्रयोजनमूलक कार्य के लिए वहीं बस गए। इनमें अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, इंग्लैंड, हालैंड, मलेशिया, सिंगापुर आदि देश हैं जिनके प्रवासी भारतीय अर्थात् ‘डायस्पोरा’ अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता बनाए रखने के लिए अपनी भाषा हिन्दी को आवश्यक मानते हैं। तीसरे वर्ग में पाकिस्तान, नेपाल, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका आदि पड़ोसी देश एक ही भाषा-परिवार की भाषाएं बोलते हैं और इसी कारण उनका हिन्दी से परिचय होना स्वाभाविक है। चौथे वर्ग में रूस, जापान, कोरिया, मंगोलिया, चीन आदि देशों तथा एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका महाद्वीपों के लगभग 150 देशों में हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था है। इन देशों में हिन्दी बोली-सुनी नहीं जाती, किंतु भारतीय दर्शन, संस्कृति और साहित्य के अध्ययन के लिए हिन्दी की आवश्यकता महसूस की जाती है। इसीलिए यहाँ हिन्दी के शैक्षिक संदर्भ का विशेष महत्व है। इसके बाद काव्यगोष्ठी का कार्यक्रम आयोजित किया गया। अंत में अजामिल जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में मॉरिशस में हिन्दी में रचे जा रहे साहित्य का परिचय दिया। भारतीय उच्चायुक्त के द्वितीय सचिव श्री मीमांसक ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में हिन्दी की गरिमा को बढ़ाने में मॉरिशस के योगदान की प्रशंसा की। इसका संचालन सचिवालय के उप महासचिव श्री गुलशन सुखलाल ने किया। इसमें मॉरिशस के हिन्दी साहित्यकार रामदेव धुरंधर, श्रीमती भानुमति नागदान, हिन्दी संगठन के अध्यक्ष श्री राजनारायण गति, महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के प्रोफ़ेसर डॉ. सुंदर, डॉ. राजरानी गोबिन और श्री कुमारदत्त गुदारी विनय ने सक्रिय भाग लिया।

प्रो. गोस्वामी ने 10 फरवरी, 2011 को सचिवालय के महासचिव और उपमहासचिव सहित मॉरिशस के राष्ट्रपति महामहिम श्री अनिरुद्ध जगनाथ से राष्ट्रपति निवास में भेंट की। उनके साथ भारत-मॉरिशस के संबंधों तथा हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार पर बातचीत हुई। भारत के उच्चायुक्त माननीय श्री मधुसूदन गणपति से भी भेंट हुई और उनके साथ हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर चर्चा हुई। प्रो. गोस्वामी ने महामहिम राष्ट्रपति को ‘हिंदी का भाषिक और सामाजिक परिदृश्य’ पुस्तक भेंट की। माननीय उच्चायुक्त को ‘आधुनिक हिंदीः विविध आयाम’ पुस्तक भेंट की। इसके अतिरिक्त उपउच्चायुक्त श्री प्रशांत पिसे से भी औपचारिक भेंट हुईै।



प्रो. गोस्वामी ने मॉरिशस ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन में दो रेडियो कार्यक्रम तथा टेलीविज़न कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इनमें भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर गंभीर चर्चा हुईं दो दिन मॉरिशस भ्रमण करते हुए प्रो. गोस्वामी ने मॉरिशस के सौंदर्य के दर्शन किए। इस समूची यात्रा में सचिवालय के महासचिव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र और उप महासचिव श्री गंगाधर सिंह गुलशन सुखलाल का आतिथ्य-सत्कार स्तुत्य था।