नयी दिल्ली। ‘‘कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण अद्भुत ही नहीं ऐतिहासिक भी है। इतनी कविताओं का लिखना उनकी प्रतिभा का विस्फोट तो है ही, साथ ही इनमें रचनाकार की सर्जनात्मक ऊर्जा की भी दाद देनी होगी।’’ ये बातें मूर्द्धन्य आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने उद्भ्रांत की तीन काव्य-कृतियों ‘अस्ति’ (कविता संग्रह), ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) एवं ‘राधामाधव’ (प्रबंध काव्य) के लोकार्पण के अवसर पर शुक्रवार दिनांक 17 जून, 2011 को हिन्दी भवन, दिल्ली में आयोजित ‘समय, समाज, मिथक: उद्भ्रांत का कवि-कर्म’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहीं।
नामवर जी ने उद्भ्रांत के पूरे रचनात्मक जीवन पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि उनकी ‘सूअर’ शीर्षक कविता नागार्जुन की मादा सूअर पर लिखी कविता के बाद उसी विषय पर ऐसी कविता लिखने के उनके साहस को प्रदर्शित करती है जिसके लिये वे बधाई पात्र हैं। उनकी सर्जनात्मक ऊर्जा की दाद देनी होगी। हिन्दी भाषा में पांच सौ पृष्ठों के पहले वृहद्काय कविता संग्रह ‘अस्ति’ का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि कवि अपने शब्दों के द्वारा इसी दुनिया में एक समानान्तर दुनिया रचता है, जो विधाता द्वारा रची दुनिया से अलग होकर भी संवेदना से भरपूर होती है। मिथकों को माध्यम बनाकर उन्होंने जो रचनाएं की हैं, वे भी उनकी समकालीन दृष्टि के साथ उनकी बहुमुखी उर्वर प्रतिभा को प्रदर्शित करती हैं।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ. शिवकुमार मिश्र ने ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) का लोर्कापण करते हुए कहा कि इसमें कवि ने महाभारत का एक तरह से पुनर्पाठ आधुनिक संदर्भ में बेहद गंभीरता के साथ किया है। युधिष्ठिर को केन्द्र में रखकर जिस तरह से उनको और उनके माध्यम से महाभारत के दूसरे महत्त्वपूर्ण चरित्रों को वे प्रश्नों के घेरे में लाये हैं, वह अद्भुत है और इससे युधिष्ठिर औरअन्य मिथकीय चरित्रों के दूसरे पहलुओं के बारे में जानने का भी हमें मौक़ा मिलता है। महाकवि प्रसाद की ‘कामायनी’ से तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वह महाकाव्य नहीं है, लेकिन महत् काव्य ज़रूर है। ‘अभिनव पांडव’ को कवि ने महाकाव्य कहा है और अपनी भूमिका ‘बीजाक्षर’ में इस सम्बंध में बहस की है और अपने तर्क दिये हैं, लेकिन मैं इसे विचार काव्य कहूँगा जो महत् काव्य भी है और मेरा विश्वास है कि आने वाले समय में हिन्दी के बौद्धिक समाज में यह व्यापक विचारोत्तेजना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि ‘राधामाधव’ काव्य बहुत ही मनोयोग से लिखा गया काव्य है, जिस पर बिना गहराई के साथ अध्ययन किए जल्दबाजी में टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी रचनाएं समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। अपनी पचास वर्ष से अधिक समय की रचना-यात्रा में उनके द्वारा पचास-साठ से अधिक पुस्तकें लिखना सुखद आश्चर्य का विषय है।
वरिष्ठ आलोचक डॉ. नित्यानंद तिवारी ने ‘राधामाधव’ का लोकार्पण करते और कवि की अनेक रचनाओं के उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ है और लिखने की शैली भी अलग है। मिथकों को लेकर उन्होंने कई रचनाएं की हैं जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें संदेह नहीं कि वे हिन्दी के सुप्रतिष्ठित कवि हैं। उनका रचनात्मक आवेग बहुत तीव्र है और उनके पास अक्षय भंडार है। पूतना के माध्यम से आदिवासी स्त्राी जीवन का चरित्रा-चित्राण अनोखा है। कवि ने अपने सम्पूर्ण काव्य-सृजन को समकालीन बनाने की हर संभव कोशिश की है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। सत्यप्रकाश मिश्र, राममूर्ति त्रिपाठी और रमाकांत रथ जैसे अनेक भारतीय विद्वानों ने उनकी इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि बिना राधा के आख्यान को रचे राधाभाव को रचना ‘राधामाधव’ का महत्त्वपूर्ण तत्व है। इसमें स्त्राी विमर्श भी है जिससे कवि की अलग पहचान बनती है। इनके समूचे साहित्य में मूल पंूजी आख्यान है और आख्यान को साधना बहुत बड़ी बात है।
आलोचक डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि विवेच्य संग्रह ‘अस्ति’ में इतनी तरह की और इतने विषयों की कविताएं हैं जो पूरी दुनिया को समेटती हैं। उद्भ्रांत जी की कविताओं में पर्यावरण के साथ-साथ पशु-पक्षियों और संसार के समस्त प्राणियों की संवेदना को महसूस किया जा सकता है। संग्रह की अनेक कविताएं अद्भुत हैं। साहित्यकार धीरंजन मालवे ने कविता संग्रह ‘अस्ति’ पर केन्द्रित आलेख का पाठ करते हुए कहा कि कवि ने कविता की हर विधा को सम्पूर्ण बनाने में अपनी भूमिका निभाई है और उनकी कृतियों से यह साफतौर पर ज़ाहिर होता है कि उद्भ्रांत नारी-सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर हैं। इसके साथ ही उन्होंने दलित चेतना के साथ अनेक विषयों पर बेहतरीन कविताएं लिखीं हैं।
संगोष्ठी का बीज-वक्तव्य देते हुए जनवादी लेखक संघ की दिल्ली इकाई के सचिव प्रखर आलोचक डॉ. बली सिंह ने कहा कि आज के दौर में इतने तरह के काव्यरूपों में काव्य रचना बेहद मुश्किल है, लेकिन उद्भ्रांत जी इसे संभव कर रहे हैं। उनकी कविताएं विचारों से परिपूर्ण हैं। यहाँ सांस्कृतिक मसले बहुत आये हैं और पहले की अपेक्षा उनकी कविताओं में स्मृतियों की भूमिका बढ़ी है। ‘राधामाधव’ स्मृतियों का विलक्षण काव्य है। ‘अभिनव पांडव’ में स्त्रिायों के प्रति बराबरी के दर्जे के लिये कई सवाल उठाये गये हैं जो आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने इस उत्तर आधुनिक समय में आई उद्भ्रांत की मिथकाधारित और विचारपूर्ण समकालीन कविताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया।
प्रारम्भ में, कवि उद्भ्रांत ने तीनों लोकार्पित कृतियों की चुनिंदा कविताओं और काव्यांशों का प्रभावशाली पाठ करने के पूर्व ‘अस्ति (कविता-संग्रह)’ जिसे उन्होंने ‘कविता और जीवन के प्रति आस्थावान’ अपने सुधी और परम विश्वसनीय पाठक-मित्र के निमित्त ‘समर्पित किया है- की प्रथम प्रति बड़ी संख्या में उपस्थित सुधी श्रोताओं में से एक वरिष्ठ कवि श्री शिवमंगल सिद्धांतकर को तथा ‘राधा-माधव’- जिसे उन्होंने पत्नि और तीनों बेटियों के नाम समर्पित किया है- की प्रथम प्रति श्रीमती उषा उद्भ्रांत को भेंट की। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए दूरदर्शन महानिदेशालय के सहायक केन्द्र निदेशक श्री पी.एन. सिंह द्वारा कवि के सम्बंध में दी गई इन दो महत्त्वपूर्ण सूचनाओं ने सभागार में मंच पर उपस्थित विद्वानों और सुधी श्रोताओं को हर्षित कर दिया कि वर्ष 2008 में ‘पूर्वग्रह’ (त्रौमासिक) में प्रकाशित उनकी जिस महत्त्वूपर्ण लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के पुस्तकाकार संस्करण को लोकार्पित करते हुए नामवर जी ने उसे उस समय तक की उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित किया था-को वर्ष 2008 के ‘अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। इसके अलावा उडीसा से पद्मश्री श्रीनिवास उद्गाता जी-जिन्होंने रमाकांत रथ के ‘सरस्वती सम्मान’ से अलंकृत काव्य ‘श्रीराधा’ का उड़िया से हिन्दी में तथा धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ का हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद किया था-ने कवि को सूचित किया है कि वे आज लोकार्पित ‘राधामाधव’ का भी हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद कर रहे हैं जो बहुत जल्द उड़िया पाठक-समुदाय के समक्ष आयेगा। धन्यवाद-ज्ञापन हिन्दी भवन के प्रबंधक श्री सपन भट्टाचार्य ने किया।
प्रस्तुतकर्ता
तेजभान
ए-131, जहांगीरपुरी,
नई दिल्ली-110033
मोबाईल: 9968423949
नामवर जी ने उद्भ्रांत के पूरे रचनात्मक जीवन पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि उनकी ‘सूअर’ शीर्षक कविता नागार्जुन की मादा सूअर पर लिखी कविता के बाद उसी विषय पर ऐसी कविता लिखने के उनके साहस को प्रदर्शित करती है जिसके लिये वे बधाई पात्र हैं। उनकी सर्जनात्मक ऊर्जा की दाद देनी होगी। हिन्दी भाषा में पांच सौ पृष्ठों के पहले वृहद्काय कविता संग्रह ‘अस्ति’ का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि कवि अपने शब्दों के द्वारा इसी दुनिया में एक समानान्तर दुनिया रचता है, जो विधाता द्वारा रची दुनिया से अलग होकर भी संवेदना से भरपूर होती है। मिथकों को माध्यम बनाकर उन्होंने जो रचनाएं की हैं, वे भी उनकी समकालीन दृष्टि के साथ उनकी बहुमुखी उर्वर प्रतिभा को प्रदर्शित करती हैं।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ. शिवकुमार मिश्र ने ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) का लोर्कापण करते हुए कहा कि इसमें कवि ने महाभारत का एक तरह से पुनर्पाठ आधुनिक संदर्भ में बेहद गंभीरता के साथ किया है। युधिष्ठिर को केन्द्र में रखकर जिस तरह से उनको और उनके माध्यम से महाभारत के दूसरे महत्त्वपूर्ण चरित्रों को वे प्रश्नों के घेरे में लाये हैं, वह अद्भुत है और इससे युधिष्ठिर औरअन्य मिथकीय चरित्रों के दूसरे पहलुओं के बारे में जानने का भी हमें मौक़ा मिलता है। महाकवि प्रसाद की ‘कामायनी’ से तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वह महाकाव्य नहीं है, लेकिन महत् काव्य ज़रूर है। ‘अभिनव पांडव’ को कवि ने महाकाव्य कहा है और अपनी भूमिका ‘बीजाक्षर’ में इस सम्बंध में बहस की है और अपने तर्क दिये हैं, लेकिन मैं इसे विचार काव्य कहूँगा जो महत् काव्य भी है और मेरा विश्वास है कि आने वाले समय में हिन्दी के बौद्धिक समाज में यह व्यापक विचारोत्तेजना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि ‘राधामाधव’ काव्य बहुत ही मनोयोग से लिखा गया काव्य है, जिस पर बिना गहराई के साथ अध्ययन किए जल्दबाजी में टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी रचनाएं समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। अपनी पचास वर्ष से अधिक समय की रचना-यात्रा में उनके द्वारा पचास-साठ से अधिक पुस्तकें लिखना सुखद आश्चर्य का विषय है।
वरिष्ठ आलोचक डॉ. नित्यानंद तिवारी ने ‘राधामाधव’ का लोकार्पण करते और कवि की अनेक रचनाओं के उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ है और लिखने की शैली भी अलग है। मिथकों को लेकर उन्होंने कई रचनाएं की हैं जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें संदेह नहीं कि वे हिन्दी के सुप्रतिष्ठित कवि हैं। उनका रचनात्मक आवेग बहुत तीव्र है और उनके पास अक्षय भंडार है। पूतना के माध्यम से आदिवासी स्त्राी जीवन का चरित्रा-चित्राण अनोखा है। कवि ने अपने सम्पूर्ण काव्य-सृजन को समकालीन बनाने की हर संभव कोशिश की है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। सत्यप्रकाश मिश्र, राममूर्ति त्रिपाठी और रमाकांत रथ जैसे अनेक भारतीय विद्वानों ने उनकी इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि बिना राधा के आख्यान को रचे राधाभाव को रचना ‘राधामाधव’ का महत्त्वपूर्ण तत्व है। इसमें स्त्राी विमर्श भी है जिससे कवि की अलग पहचान बनती है। इनके समूचे साहित्य में मूल पंूजी आख्यान है और आख्यान को साधना बहुत बड़ी बात है।
आलोचक डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि विवेच्य संग्रह ‘अस्ति’ में इतनी तरह की और इतने विषयों की कविताएं हैं जो पूरी दुनिया को समेटती हैं। उद्भ्रांत जी की कविताओं में पर्यावरण के साथ-साथ पशु-पक्षियों और संसार के समस्त प्राणियों की संवेदना को महसूस किया जा सकता है। संग्रह की अनेक कविताएं अद्भुत हैं। साहित्यकार धीरंजन मालवे ने कविता संग्रह ‘अस्ति’ पर केन्द्रित आलेख का पाठ करते हुए कहा कि कवि ने कविता की हर विधा को सम्पूर्ण बनाने में अपनी भूमिका निभाई है और उनकी कृतियों से यह साफतौर पर ज़ाहिर होता है कि उद्भ्रांत नारी-सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर हैं। इसके साथ ही उन्होंने दलित चेतना के साथ अनेक विषयों पर बेहतरीन कविताएं लिखीं हैं।
संगोष्ठी का बीज-वक्तव्य देते हुए जनवादी लेखक संघ की दिल्ली इकाई के सचिव प्रखर आलोचक डॉ. बली सिंह ने कहा कि आज के दौर में इतने तरह के काव्यरूपों में काव्य रचना बेहद मुश्किल है, लेकिन उद्भ्रांत जी इसे संभव कर रहे हैं। उनकी कविताएं विचारों से परिपूर्ण हैं। यहाँ सांस्कृतिक मसले बहुत आये हैं और पहले की अपेक्षा उनकी कविताओं में स्मृतियों की भूमिका बढ़ी है। ‘राधामाधव’ स्मृतियों का विलक्षण काव्य है। ‘अभिनव पांडव’ में स्त्रिायों के प्रति बराबरी के दर्जे के लिये कई सवाल उठाये गये हैं जो आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने इस उत्तर आधुनिक समय में आई उद्भ्रांत की मिथकाधारित और विचारपूर्ण समकालीन कविताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया।
प्रारम्भ में, कवि उद्भ्रांत ने तीनों लोकार्पित कृतियों की चुनिंदा कविताओं और काव्यांशों का प्रभावशाली पाठ करने के पूर्व ‘अस्ति (कविता-संग्रह)’ जिसे उन्होंने ‘कविता और जीवन के प्रति आस्थावान’ अपने सुधी और परम विश्वसनीय पाठक-मित्र के निमित्त ‘समर्पित किया है- की प्रथम प्रति बड़ी संख्या में उपस्थित सुधी श्रोताओं में से एक वरिष्ठ कवि श्री शिवमंगल सिद्धांतकर को तथा ‘राधा-माधव’- जिसे उन्होंने पत्नि और तीनों बेटियों के नाम समर्पित किया है- की प्रथम प्रति श्रीमती उषा उद्भ्रांत को भेंट की। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए दूरदर्शन महानिदेशालय के सहायक केन्द्र निदेशक श्री पी.एन. सिंह द्वारा कवि के सम्बंध में दी गई इन दो महत्त्वपूर्ण सूचनाओं ने सभागार में मंच पर उपस्थित विद्वानों और सुधी श्रोताओं को हर्षित कर दिया कि वर्ष 2008 में ‘पूर्वग्रह’ (त्रौमासिक) में प्रकाशित उनकी जिस महत्त्वूपर्ण लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के पुस्तकाकार संस्करण को लोकार्पित करते हुए नामवर जी ने उसे उस समय तक की उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित किया था-को वर्ष 2008 के ‘अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। इसके अलावा उडीसा से पद्मश्री श्रीनिवास उद्गाता जी-जिन्होंने रमाकांत रथ के ‘सरस्वती सम्मान’ से अलंकृत काव्य ‘श्रीराधा’ का उड़िया से हिन्दी में तथा धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ का हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद किया था-ने कवि को सूचित किया है कि वे आज लोकार्पित ‘राधामाधव’ का भी हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद कर रहे हैं जो बहुत जल्द उड़िया पाठक-समुदाय के समक्ष आयेगा। धन्यवाद-ज्ञापन हिन्दी भवन के प्रबंधक श्री सपन भट्टाचार्य ने किया।
प्रस्तुतकर्ता
तेजभान
ए-131, जहांगीरपुरी,
नई दिल्ली-110033
मोबाईल: 9968423949
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पाठक का कहना है :
भाई, इस खबर का उपयोग ’जनशब्द’ पर कर रहा हूँ...आभार.
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