Saturday, June 13, 2009

न्यूयॉर्क की एक शाम अंजना संधीर के नाम

न्यूयॉर्क । संयुक्त राज्य अमेरिका

दिनांक 7, जून 2009 को पूर्णमासी के दिन श्रीमती पूर्णिमा देसाई के शिक्षायतन के देवालय में डॉ अंजना संधीर के सम्मान में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन सफलता पूर्ण संपूर्ण हुआ। वातावरण की पवित्रता में माँ की स्तुति गायन वन्दनीय रहा।

आगाज़ी शब्दों में पूर्णिमा देसाई शिक्षायतन की संस्थापिका एवं निर्देशिका ने ये कहते हुए "मैं एक ऐसी विभूति को बुला रही हूँ जिन्होंने साहित्य के प्रचार में, संस्कृति के प्रचार में अपना योगदान दिया है और वह है डा. अंजना संधीर, जिन्होंने मंच की शान बढाते हुए दीप प्रज्वलित किया। शिक्षायतन संस्था के संगीत विभाग से जुड़े सुर-सागर के माहिर पंडित कमल मिश्रा जी ने माता के चरणों में गुलाब के फूलों को अर्पित करते हुए सरस्वती वंदना की।

अपने भावों को व्यक्त करते हुए अंजना जी ने कहा " मै यहीं हूँ, यहीं थी और यहाँ से कहीं नहीं गयी" और अपनी व्याख्यान में कुछ न कहते हुए उन्होने यू. के. से आए श्री कृष्ण कुमार जो को सादर आमंत्रित किया, जिन्होंने अपने विचार प्रस्तुत करने से पहले पूर्णिमा जी को बधाई की पात्र मानते हुए अंजना के लिये कहा कि " अंजना जी का काम बोलता है" यह हर नारी जाति के लिए गर्व की बात रही जो "प्रवासिनी के बोल" और "प्रवासी आवाज़" के मंच पर अपने आपको स्थापित कर पाई है। अंजना जी का कहना और मानना है कि अमेरिका के हर शहर में उसका एक घर है और सीमाओं से परे उनके रिश्ते हैं जिनकी कोई सरहद नहीं बाँध पाएगी।

भावों के आदान-प्रदान के पश्चात काव्य गोष्ठी का आरंभ हुआ, जिसका स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी से कम न था। रचना-पाठ का शुरूआत डा. दाऊजी गुप्त ने किया, जो लखनऊ से पधारे थे। यू. के. से आये डा. कृष्ण कुमार ने अपनी रचना पाठ के बाद अपने साथी साहित्यकारों और कविगणों को आवाज़ दी जिनमें वहां मौजूद थे श्री कृष्ण कन्हैया, श्री नरेन्द्र कोहली, जय वर्मा, श्रीमती स्वर्ण तलवाड़। उसके ही पश्चात अनूप और रजनी भार्गव ने अपनी नन्हीं नन्हीं कविताओं के कपोलों से ज़िन्दगी के अंकुरित नए रंग माहौल में भर दिए। टोरंटो से श्री गोपाल बगेल जी ने सुरमई धुन में अपनी रचना सुनाई। फिर मंच को थामा न्यू यार्क तथा न्यू जर्सी के कविओं में जिनमें शामिल रही श्री अशोक व्यास, श्री ललित अहलुवालिया, मंजू राई, बिन्देश्वरी अग्रवाल, अंजना संधीर, पूर्णिमा देसाई, गौतमजी, पुष्पा मल्होत्रा, नीना वाही, अनुराधा चंदर, डा. अनिल प्रभा, गिरीश वैद्य, देवी नागरानी, लखनऊ से आई श्रीमती शशि तिवारी और उनकी सुपुत्री शिवरंजनी। श्रोताओं में रहे श्री कथूरिया जी, परवीन शाहीन, रेनू नंदा और अनेक साहित्यप्रेमी। यहाँ डॉ. सरिता मेहता का ज़िक्र करना भी ज़रूरी होहगा, जो खुद विध्याधाम संस्था की निर्देशिका है और साथ में एक अच्छी कवयित्री भी और इस काव्य सुधा की शाम में उनका पूरी तरह से सहकार रहा।

अंत में पूर्णिमा जी ने अंजना जी का सम्मान "साहित्य मणि' की उपाधि से श्री दाऊजी गुप्त के हाथों से करवाया और सभी कविगणों का साधुवाद किया। अंत में रात्रि-भोजन का भी उत्तम प्रबंध था।

प्रस्तुति- देवी नागरानी

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2 पाठकों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

Sarvpratham mein is anterrastriya goshti me aye sabhi saraswati ke upasako ko aur "Anjana sandhir" ke samannit hone par badhayi deti hoon.Jinke kam aur sankalp ne sansar ki seemao ko jod diya hai.Purnima ke prayaso ne sahitya ki mashal ko prakashit kar rakha hai.sasakt kadam-goshti ki safalta ke liye badhayi .
prastuti ke liye Devi Nagrani ka abhar.
Manju Gupta, Navi Mumbai.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मैं हुन्दयुग्म के माध्यम से अंजना संधीर को बधाई देना चाहूँगा.

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