रिपोर्ट: तरुण रावतानी
दि.17 नवम्बर 2009 को नई दिल्ली में कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित 'हिमालय हाउस' में 'Max New York' जीवन बीमा कंपनी के सौहार्द्र से 'आनंदम' की नवम्बर माह की काव्य गोष्ठी सम्पन्न हुई जो इस शरद ऋतु की पहली काव्य गोष्ठी थी. गोष्ठी की अध्यक्षता मुन्नवर सरहदी ने की तथा संचालन ममता किरण ने किया. मंच पर 'आनंदम' संस्थापक जगदीश रावतानी व लक्ष्मी शंकर वाजपेयी भी उपस्थित रहे. गोष्ठी में रविन्द्र शर्मा 'रवि' , शिव कुमार मिश्र 'मोहन' , नईम बदायूनी, वीरेंद्र 'कमर', मजाज अमरोहवी, नश्तर अमरोहवी, मासूम गाज़ियाबादी, रज़ी अमरोहवी, विजय कुमार, जय प्रकाश शर्मा 'विविध', सुनील जैन राही, मनमोहन तालिब, जगदीश जैन, विशन लाल, सैलेश कुमार, सतीश सागर, उपेन्द्र दत्त, पुरुषोत्तम वज्र, शोभना मित्तल, रणविजय राव, नागेश चन्द्र, भूपेन्द्र कुमार, सुरेन्द्र कुमार ने भाग लिया. गोष्ठी की पहली कविता शिव कुमार मिश्र 'मोहन' ने पढ़ी जो पिछली चंद गोष्ठियों से 'आनंदम' से जुड़े हैं. कविता की कुछ पंक्तियाँ:
कौन सा बम चिथड़ों में बदल दे/ कब बहा ले जाएं उफनती नदियाँ/ कहीं किसी हादसे के चटखारे लेते चैनलों में/ मेरा नाम उछल न जाए/ सोचता हूँ/ समझता हूँ/ फिर भी भूल जाता हूँ/ शायद इसलिए/ मैं कोई कविता सुनाता हूँ...
कुछ अन्य कवि जो 'आनंदम' में पहली बार आए थे ने भी अच्छी कविताएँ पढ़ी. जैसे:
चमार का गधा गाय के साथ/ चौपाल पर/ चौपाल में हंगामा सुबह से शाम तक/ शाम को सरपंच का फैसला चमार के घर/ सुबह चमार की जवान लड़की अस्त व्यस्त कपड़ों में/ चौपाल में कोई हंगामा नहीं/ हंगामा नहीं/ हंगामा नहीं' (सुनील जैन 'राही').
गोल गोल हाथों से रोटियां बनाती थी/ गर्म गर्म रोटियों पे माखन लगती थी/ हटी माँ की नज़र तो छीन रोटी कागा भागा... (नागेश चन्द्र).
दिल्ली की गोष्ठियों में सक्रिय शोभना मित्तल अक्सर अच्छी कविताओं के लिए जानी जाती हैं. उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ:
(बैल कुत्ते से) - 'हल हो या कोल्हू/ मैं तो सिर्फ जुता हूँ/ और तू सदा से ठाली है / हाँ, मेरा नाम बेचारगी का मुहावरा है/ पर तेरा नाम गाली है...
कविता के साथ-साथ शायरी और ग़ज़ल की गर्माहट भी खूब थी जिस में मासूम 'गाज़ियाबदी', लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, रविन्द्र शर्मा 'रवि', जगदीश जैन, मनमोहन 'तालिब', वीरेंद्र 'क़मर' आदि छाए रहे. कुछ सशक्त शेर:
सभी सपने नहीं टूटे अभी दो चार बाक़ी हैं,
कहो अश्कों से आँखों में अभी अंगार बाक़ी हैं (रविन्द्र शर्मा 'रवि').
उस को शायद इस लिए ही देर से मंज़िल मिली
वो हमेशा ऐसे रस्ते पर चला जो था सही (लक्ष्मी शंकर वाजपेयी).
हमेशा तंगदिल दानिश्वरों से फासला रखना
मणि मिल जाए तो क्या सांप डसना छोड़ देता है (मासूम गाज़ियाबदी).
हम से ज़िक्रे बहार मत कीजे
हम ने देखा नहीं बहारों को (नईम बदायूनी).
अख़बारों में खुनी मंज़र मत छापो,
बच्चे इन तस्वीरों से डर जाते हैं (जतिंदर परवाज़).
रूठ जाएं तो उन को मनाया करो
मान जाएं तो खुद रूठ जाया करो (मजाज अमरोहवी).
गम मुहब्बत का पाल रखा है,
ख़ाक दिल का ख्याल रखा है (वीरेंद्र क़मर)
बहुत खुश हो रहे हो मगरिबी तहज़ीब अपना कर
खड़े हो कर मगर फिर भी 'डिनर' अच्छा नहीं लगता (नश्तर अमरोहवी)
न हिन्दू की न मुस्लिम की किसी ग़लती से होता है
यहाँ दंगा सियासतदान की मर्ज़ी से होता है (प्रेमचंद सहजवाला).
अंत में गोष्ठी अध्यक्ष मुनव्वर सरहदी ने हमेशा की तरह अपनी शायरी से हाल में कहकहे बिखेर दिए. उन का एक शेर:
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
रहे वो बज़्म में जब तक न वो निकले न हम निकले.
आनंदम की इस गोष्ठी में कवियों व श्रोताओं की संख्या पिछली गोष्ठियों से अधिक थी जो 'आनंदम' की लोकप्रियता की ओर संकेत करती है. 'आनंदम' अध्यक्ष जगदीश रावतानी द्वारा धन्यवाद दिए जाने के बाद गोष्ठी सम्पन्न हुई.
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2 पाठकों का कहना है :
गोष्ठी की निरन्तरता आश्वस्त करती है।हम भी आएंगे इक रोज
सहजवाला जी बहुत सुन्दर रिपोर्टिंग करते हैं और सबसे सुन्दर बात ये है कि इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि किसी भी शेर का कोई लफ्ज़ इधर उधर न हो .उनके इस निस्वार्थ उद्यम के लिए साधुवाद .(रवि )
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