Friday, December 11, 2009

कैलाश गौतम स्मृति समारोह में कुमार विश्वास का काव्यपाठ


काव्यपाठ करते डॉ॰ कुमार विश्वास
इलाहाबाद।

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।।
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है।
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है।।



इन पंक्तियों से काव्यजगत और कविसम्मेलनी मंचों पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाकर लोकप्रियता के नये रिकार्ड कायम करने वाले युवा कवि और गीतकार डॉ. कुमार विश्वास ने जब खचाखच भरे एकेडेमी सभागार में माइक सम्हाला तो वातावरण मिश्रित भावों से भर उठा था। एक तरफ़ स्व.कैलाश गौतम की पुण्य तिथि के अवसर पर सहज ही उतर आयी उदासी का भाव सबके मन में बैठा हुआ था तो दूसरी ओर कैलाश जी की लिखी कविताओं के अनेक उद्धरण पूर्व वक्ताओं से सुनकर सभी श्रोता उनके विलक्षण कवित्व से आह्लादित भी थे।

कुमार विश्वास ने गौतम जी को याद करते हुए कहा कि कैलाश गौतम एक सच्चे और साहसी कवि थे। समाज की विडम्बनाओं को जिस हिम्मत और ताकत से व्यक्त करते थे वैसा बिरले लोगों में ही मिलता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कैलाश जी काव्यजगत में हमेशा अण्डरएस्टिमेटेड रहे।

अपनी कविताओं में उन्होंने आदमी की आम संवेदनाओं के विविध रूपों को प्रस्तुत किया। उनकी रूमानी कविताओं ने विशेषकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अपने अनेक प्रसिद्ध मुक्तक सुनाकार खूब तालियाँ बटोरी।

1.
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया

2.
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

3.
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ


4.
पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या


5.
समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता



उन्होंने अपनी चुटीली व्यंग्योक्तियों से मीडिया और चैनलों पर प्रहार किया और कैलाश गौतम को याद करते हुए कहा कि कैलाश गौतम एक बड़े कवि हैं क्योंकि वे जिम्मेदारियों के बोध के कवि हैं। उन्होंने ग्लोबल विलेज की बात करते हुए कहा कि भारत में उपनिषदों में ग्लोबल विलेज की बात ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के रूप में बहुत पहले ही कही गयी है। उन्होंने अपने वक्तव्यों के माध्यम से समाज में फैली विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने देशभक्ति के जज्बे को प्रदर्शित करते हुए गीत पढ़ा-

शौहरत न अता करना मौला, दौलत न अता करना मौला।
बस इतना अता कना चाहें, जन्नत न अता करना मौला।।
शम्ए वतन की लौ पर, जब कुर्बान पतंगा हो।
होठो पर गंगा हो हाथों पर तिरंगा हो।


उन्होंने अपनी लम्बी कविता ‘पगली लड़की’ के कुछ अंश भी सुनाए जो बहुत सराहे गये।

अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसू के संग होते हैं,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।


इससे पहले कार्यक्रम का शुभारम्भ माता सरस्वती एवं स्व० श्री कैलाश गौतम जी के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ श्री रामकेवल जी, श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, डॉ० शिव गोपाल मिश्र, डॉ० कुमार विश्वास ने किया। इस अवसर पर सुधांशु उपाध्याय, प्रदीप कुमार, यश मालवीय एवं कैलाश गौतम जी के मित्र एवं सहयोगियों ने कैलाश गौतम जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करके भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

एकेडेमी के सचिव राम केवल जी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि स्व० कैलाश गौतम जी की स्मृति में आयोजित यह कार्यक्रम एक बहुत ही छोटा सा प्रयास है जिसके माध्यम से गौतम जी को स्मरण किया जा रहा है। एकेडेमी के कोषाध्यक्ष श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने शाल भेंट कर आमंत्रित कवि डा० कुमार विश्वास का स्वागत किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी श्री संजय प्रसाद (आई०ए०एस०) ने कहा कि स्व० श्री कैलाश गौतम जी को मंच के माध्यम से मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। हमारे समाज में जो साम्प्रदायिक जहर है उनके प्रति कवि की संवेदना मात्र रचना नहीं है। कवि की वाणी में लेखनी में हर वर्ग के लिए कोई सन्देश होता है। रचनाएं शक्ति प्रदान करती है। आदमी दुविधा में हो तो वह सही मार्ग प्रदर्शित करती है। इस शहर ने बड़े नामचीन कवियों, साहित्यकारों को जन्म दिया है। यहां के चप्पे-चप्पे में इतिहास है। सही मायने में गौतम जी को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब उनके बताये मार्ग पर चलने का प्रयास करें। हर नागरिक की एक जिम्मेदारी होती है, उसे निभाये तो सपनों के भारत को साकार कर सकता है।

इस अवसर पर शहर के प्रतिष्ठत और लोकप्रिय गीतकार यश मालवीय ने स्व० कैलाश गौतम को याद करते हुए कहा कि मैं कैलाश गौतम जी के जाने के पश्चात उनको लिखी हुई एक चिट्ठी सुनाता हूं। इस चिट्ठी में मालवीय जी ने कैलाश गौतम की स्मृतियों को मार्मिक ढंग से याद करते हुए कहा कि "तुम गंगा के देवव्रत थे, तुम यमुना के बंधु जैसे थे, तुममें संस्कृतियों का संगम लहराता था। तुम झूंसी से अरैल, अरैल से किले तक शरद की धूप और चांदनी आत्मा में उतरने देते थे, कहते थे- "याद तुम्हारी मेरे संग वैसे ही रहती है, जैसे कोई नदी किले से सटके बहती है।" साथ ही यश मालवीय जी ने गौतम जी की स्मृति में एक कविता भी प्रस्तुत की।

माध्यमिक शिक्षा परिषद के अपर सचिव श्री प्रदीप कुमार जी ने कहा कि मैं गाजीपुर में था जब समाचार पत्रों में पढ़ा कि कैलाश गौतम जी नहीं रहे। सुनते ही उनकी कविता अमौसा का मेला आंखों के सामने आ गयी ऐसा लगा मानो अमौसा के मेले में सब खो गया। कैलाश गौतम देह से शहर में रहे पर मन गांव में था। कैलाश गौतम के काव्य में ग्रामीण जीवन की विसंगतियां आंखों के समक्ष आ जाती थीं वह निश्चित रूप से अतुलनीय थे।


उपस्थित श्रोतागण

श्लेष गौतम ने अपने पिता श्री कैलाश गौतम को गीतात्मक शब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित की।

उनके गीत के बोल थे -
सूरज डूबा चांद छिपा, तारे भी टूट गये।
नेह का बन्धन बना रहा पर देह के छूट गये

उनके दूसरे गीत के बोल थे
हुआ न कोई न होई होगा पिता तुम्हारे बाद,
पल पल तुमको याद कर रहा आज इलाहाबाद।।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ० शिवगोपाल मिश्र ने कहा कि मैं कैलाश गौतम को बहुत पहले से जानता हूं। मैं उनकी ग्रामीण पृष्ठभूमि की कविताओं को पसन्द करता हूं। जो कवि जनता के बीच से आयेगा उसे शासन-प्रशासन से डर नहीं लगेगा। हमारे नये कवि कई विधाओं में काम कर रहे हैं। आज सभागार की भीड़ को देखकर प्रसन्नता हो रही कि लोग कवि गोष्ठियों में शामिल हो रहे हैं और नये लोगों को सम्मानित कर रहे हैं।


कार्यक्रम का संचालन इमरान प्रतापगढ़ी ने कैलाश गौतम से जुड़ी भावविभोर कर देने वाली यादों को स्मरण करते हुए किया। वह बीच-बीच में कैलाश गौतम से जुड़े संस्मरणों से गौतम जी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए एक कविता प्रस्तुत की-

सूनी सूनी दीवारे सूना सूना ये घर है,
है उदास तारीखें और चुप कलेण्डर है।
मैंने खुद से जब पूंछा क्यों उदास मंजर है
तो दिल ये चीख कर बोला, आज नौ दिसम्बर है।


कार्यक्रम के अन्त में एकेडेमी के कोषाध्यक्ष श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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पाठक का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

kailash gautam ji hindi hasya k ek aise kavi the jinke sthan ki purti kadapi nhi ho sakti



rudra nath tripathi "punj"
varanasi ......

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