Tuesday, February 23, 2010

हैबीटैट सेंटर में ममता किरण का काव्य पाठ



दिल्ली में ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ तथा ‘इंडिया हैबीटैट सेंटर’ बौद्धिक सांस्कृतिक गतिविधियों के महाकेंद्र माने जाते हैं। मुख्य फाटक से भीतर जाते ही एक विशाल हाल में एक से बढ़ कर एक चित्र-प्रदर्शनियाँ देखने को मिलती हैं तो किसी किसी सभागार में कविता के बहुत सुन्दर आयोजन हो रहे होते हैं। समीर कक्कड़ द्वारा स्थापित ‘यूनिवर्सल पोइट्री’ पिछले वर्ष स्थापित कविता से जुड़ी एक संस्था है जो प्रति माह काव्य गोष्ठियों में किसी एक विशिष्ट कवि की कविताओं के अतिरिक्त हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी के कई कवियों के कविता पाठ का आयोजन करती है। यह बहुत सुखद अनुभूति है कि लगभग डेढ़ घंटे में तीन चार भाषाओं में कविता के असंख्य रंग दिखने लगें। यहाँ अनुभवी कवि भी आते हैं तो युवा कवि अपनी नई वैचारिकता व उत्साह के साथ अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं। कभी-कभी विदेशों के विशिष्ट कवि भी अपनी काव्य-प्रस्तुति करते हैं।

दि. 10 फरवरी 2010 को ‘गुलमोहर हाल’ की काव्य गोष्ठी में ममता किरण ने विशिष्ट कवि के रूप में अपनी कुछ ताज़ा रचनाएँ प्रस्तुत की तथा एक बार फिर यह प्रमाणित किया कि वे छंद-मुक्त कविता तथा गज़ल, दोनों में महारत-हासिल कवयित्री हैं। मानवीय संबंधों में किसी भी प्रकार की गिलगिली संवेदना से मुक्त, उनकी पंक्तियाँ स्वाभाविक रूप से एक निर्झरिणी सी प्रवाहित होती हैं. कई पंक्तियाँ बहुत प्यारापन सा लिए रहती हैं। जैसे:

तारों भरे आसमान के साथ/ चाँद का साथ साथ चलना/ सफर में अच्छा लगता है/ कितना अच्छा होता/ इस सफर में चाँद की जगह तुम साथ होते!

या-

एक दूजे में खोना है,
चाँद-गगन सा होना है।

जहां मिलन से जुडी ये प्यारी पंक्तियाँ हैं, वहीं विरह की वेदना, जो शायद विश्व भर की कवयित्रियों की चिरपरिचित काव्य-भूमि है, पर भी ममता की कलम निर्बाध चलती है-

कभी इक पेड़ सायादार था जो,
वही अब तनहा तनहा ढल रहा है।

पर अक्सर मुझे यह लगता है कि ममता कभी कभी दार्शनिक भी हो जाती हैं या भक्ति-भाव से जुड जाती हैं। नीचे जो पंक्तियाँ उद्धृत हैं, उन्हें भगवन से भी जोड़ा जा सकता है और सांसारिक प्रेम से भी, या फिर प्रेम स्वाभावतः अलौकिक होता है, चाहे वह मनुष्य से हो या रचेता से-

ये रख अहसास तू तनहा नहीं है,
कि तेरे साथ कोई चल रहा है.

प्रेम और भक्ति मिल कर एक ही तत्व बन जाते होंगे शायद।

विरह के भाव ममता की एक तरही गज़ल में भी आते हैं। (तरही गज़ल का मिसरा है: तुझे ए जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं) -

जो राहों में तेरी यादें बहुत टकराती हैं मुझ से
तो रुक कर ख़ाक तेरे कूचे की हम छान लेते हैं.



गज़ल की परिभाषा यह कि सभी शेर अलग-अलग विषयों पर और परस्पर स्वतंत्र रहते हैं। इसी स्वतंत्रता के तहत इस तरही गज़ल का यह सामाजिक शेर-

छुपा है दिल में क्या उनके ये सब हम जान लेते हैं,
मुखौटा ओढ़ने वालों को हम पहचान लेते हैं

ममता किरण का एक प्रिय विषय है ‘माँ’। मेरा व्यक्तिगत आकलन है कि जितनी मर्म-स्पर्शी पहचान वे माँ की रखती हैं, शायद किसी अन्य विषय की नहीं. नीचे दी हुई काव्य-पंक्तियाँ अपना वक्तव्य खुद प्रस्तुर करती हैं-

बीमार जर्जर बूढ़ी माँ/याद करती है अपने बेटे को/लिखवाती है चिट्ठी पड़ोस की लड़की से/ अब ज़रूरत नहीं है तुम्हारे भेजे पैसे और दवाओं की/ सिर्फ तुम आ जाओ/ बैठो मेरे पास/ तुम्हारे बचपन की स्मृतियों में तलाशूँ अपना अतीत/ अपने जीवन की संतुष्टि।

इस गोष्ठी में कई अन्य कवियों यथा लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, सीमाब सुल्तानपुरी, ममता अग्रवाल आदि ने अपनी सशक्त कवितायें पढ़ी। इस के अतिरिक्त कजाखस्तान की कवयित्री अक्बोता महमूदिया ने कई सशक्त रूसी कवितायें पढ़ी। समीर कक्कड़ द्वारा सभी कवियां के धन्यवाद के साथ गोष्ठी संपन्न हुई।

रिपोर्ट– प्रेमचंद सहजवाला।

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पाठक का कहना है :

mridula pradhan का कहना है कि -

mamta kiran jee ki kavita-path padhker bahot achcha laga .bahot sunder likhtin hain.

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