Wednesday, April 14, 2010

डैलस, अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति ने आयोजित किया अपना 25वाँ कवि सम्मेलन

डैलस।


कविता सुनाते आश करण अटल

अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति (अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की शृंखला का आरम्भ 9 अप्रैल 2010 को डैलस से हुआ। उत्तरी अमेरिका में यह संस्था प्रत्येक वर्ष तक़रीबन पंद्रह से सत्रह कार्यक्रम करवाती है। डॉ नन्दलाल सिंह, डॉ सुधा ओम ढींगरा और श्री अलोक मिश्रा इस संस्था के आधार स्तम्भ हैं। इन्हीं के अथक प्रयास से इस बार भी कवि सम्मेलनों के सोलह कार्यक्रम विभिन्न शहरों में संपन्न होंगे। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के तत्वावधान में प्रस्तुत हास्य कवि सम्मलेन में भारत के बहुचर्चित हास्य कवि श्री महेंद्र अजनबी, श्री आश करण अटल और श्री अरुण जेमिनी जी ने भाग लिया। डैलस संभाग की अध्यक्षा श्रीमती निशि भाटिया को श्री जयन्त चौधरी ने मंच पर आमंत्रित किया। निशि जी ने सभी स्वयंसेवकों के नाम बताते हुए उनको धन्यवाद दिया और कार्यक्रम को विधिवत तरीके से आरम्भ कराया। कार्यक्रम का प्रारंभ परम्परागत तरीके से एकल विद्यालयों के शुभचिंतक श्रीमती कल्पना फ्रूटवाला और श्री किशोर फ्रूटवाला ने दीप प्रज्वलित कर तथा श्रीमती कुसुम गुप्ता के नेतृत्व में सरस्वती वंदना से हुआ। आगे मंच संचालन के लिए निशि जी ने अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति के संयोजक डॉ.नन्दलाल सिंह को आमंत्रित किया। नन्दलाल जी की वाक्पटुता और हास्य मिश्रित कथन ने लोगों का खूब मनोरंजन किया और मन मोह लिया। डैलस में आयोजित ये 25वां कवि सम्मलेन था। आज के इस फ़िल्मी युग में जब 700 से भी ज्यादा लोग कवि सम्मलेन का आनंद लेते हैं तो मन असीम आनंद से भर जाता है। इस का पूरा श्रेय नन्दलाल जी को जाता है। आज से 25 साल पहले इसका प्रारंभ हुआ था, तब कुछ लोग ही ऐसे कार्यक्रमों में आते थे, पर धीरे-धीरे लोग आते गए और कारवाँ बनता गया और आज ये कारवाँ काव्यप्रेमियों के जत्थे में परिवर्तित हो चुका है। नन्दलाल जी के शब्दों में "आज कवि सम्मलेन का रजत जयंती समारोह है। डैलस में दिसम्बर 85 में पहले कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया था। स्वयं सेवकों/सेविकाओं की कार्य निष्ठा से ही हम आज यहाँ तक पहुंचे हैं। आज के इस कार्यक्रम के प्रचार और प्रसार के लिए मैं फन एशिया और जैक गोदवानी का आभारी हूँ"। नन्दलाल जी ने कवियों को सारगर्भित परिचय के साथ मंच पर आमंत्रित किया। पुष्पगुच्छ भेंट कर महेंद्र अजनबी जी का स्वागत श्रीमती अनीता सिंघल ने, आश किरण अटल जी का श्रीमती नीतू अग्रवाल ने और अरुण जेमिनी जी का श्रीमती परम अग्रवाल ने किया। मंच पर कवियों के आते ही पूरा हॉल करतल ध्वनि से गुंजायमान हो उठा।
कवि सम्मलेन का संचालन श्री अरुण जेमिनी जी ने किया। अरुण जेमिनी जी ने श्री नन्दलाल जी, श्री अशोक जी और ज्योति जी, करिश्मा हिम्मत सिंघानी जी के साथ सभी का धन्यवाद किया। इन पंक्तियों के साथ किया उन्होंने महेन्द्र अजनबी जी को मंच पर आमंत्रित किया.....

मुस्कुराती जिंदगानी चाहिए
काव्य में ऐसी रवानी चाहिए
सारी दुनिया अपनी हो जाती है बस
एक उसकी मेहरबानी चाहिए


महेंद्र अजनबी जी ने बच्चों की बातों को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। जिनको सुनकर हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गए एक उदाहरण देखिये-

एक बच्ची से पूछा गया कि राम-लक्ष्मण तो ठीक पर सीता जी वन क्यों गईं?
बच्ची ने कहा,
सीता जी के वनवास जाने में बहुत बड़ी सीख है..
तीन-तीन सास जब घर में हो तो जंगल ही ठीक है..


ट्रक के पीछे लिखी पंक्तियों और समाचार पत्र के शीर्षकों से हास्य की उत्पति कैसे होती है बताया। जब कवि एक पंक्ति पढ़ता है और श्रोता उस को पूरी कर देता है, उससे किस तरह हास्य उत्पन्न होता है, एक उदाहण देखिये---

जेल में कवि सम्मलेन हो रहा था ...
कवि बोला आदमी यूँ हालातों में जकड़ा नहीं जाता
कैदी बोला कुत्ते की पूँछ पे पैर पड़ा न होता तो मैं पकड़ा नहीं जाता

ट्रेन की भीड़ पर सुनाई गईं उनकी हास्य व्यंग्य की कविता खूब सराही गई...

ट्रेन में इतनी भीड़ थी भाई
कि हाथ को मुँह भी नहीं देता था दिखाई
एक आदमी ने बीड़ी सुलगाई
और मेरे मुहँ में लगाई


हास्य रस की डरावनी कविता सुनाने जा रहा हूँ, कह के महेंद्र जी ने भूतों पर लिखी अपनी कविता सुनाई जिसमें व्यंग्य के नुकीले बाण थे-

वे एक दूसरे से बतिया रहे थे
आदमियों के एक से बढ़ के एक भयानक किस्से सुना रहे थे
ये कल रात ही शहर हो के आया है
इस पर जरूर किसी आदमी का साया है
किसी झाड़ फूँक वाले को बुलाओ इस पर से आदमी उतरवाओ
-------
पेड़ से उल्टा लटका देगा और वोट माँगेगा
और याद रख अपने इलाके की वोटर लिस्ट में तो
तू वैसे भी अभी तक नहीं मरा होगा
---
एक वरिष्ठ भूत बोला उन इन्सानों की बस्तियों के बारे में सोच
जो साथ-साथ होते हुए भी वीरान है
उनसे ज्यादा आबाद तो कब्रिस्तान और श्मशान हैं....



लोगों को हँसाते महेन्द्र अजनबी

इस के बाद अरुण जेमिनी जी ने आश करण अटल जी को मंच पर ये कहते हुए बुलाया कि इनके नाम को लिखने में हमेशा गलती हुई है, इन के नाम में आशा भोंसले वाला आश है, कुम्भकर्ण वाला करण है, और अटल बिहारी बाजपेई वाला अटल है... तीन-तीन नामों का सम्मिश्रण हैं।
मिडिया पर सुनाई उनकी कविता ने सभी का मन मोह लिया....

क्या उनको पता था कि अंतिम साँस लेने के बाद वो मर जायेंगे...
जी पता था...
जब उनको पता था कि अंतिम साँस लेने के बाद वो मर जायेंगे तो उन्होंने अंतिम साँस क्यों ली?
जी राष्ट्रहित में ..


"हाइवे के हमदम" शीर्षक की कविता ने लोगों को इतना हँसाया की आँखें झलक उठीं ...

ये है दुनिया का सब से बड़ा ओपन एयर शौचालय
आप यहाँ क्या कर रहे है?
जी में यहाँ क्या कर रहा हूँ ये तो आप देख ही रहे हैं...
पर आप यहाँ क्या कर रहे हैं?


इसके बाद उन्होंने अपनी कविता "क्या हमारे पूर्वज बंदर थे" सुनाई। ये कविता राजिस्थान में कक्षा 11 की पाठ्यपुस्तक में पढ़ाई जाती है।
अरुण जेमिनी जी ने हँसीवर्षा के इस क्रम को जारी रखा। उनके हरयाणवी अन्दाज ने कविता को और भी मनोरंजक बना दिया।

एक आदमी कुत्ते को घुमा रहा था दूसरे ने पूछा----
ताऊ कुत्ते को घुमरिया है के
नहीं ये तो ऊंट है कद छोटा रह गया है



संयोजक नंदलाल और संचालक अरुण जैमिनी

अरुण जेमिनी जी की कविता "21वीं में सदी में ढूँढ़ते रह जाओगे" ने हास्य के साथ लोगों को सोचने पर भी विवश कर दिया।

चीजों में कुछ चीजें बातों में कुछ बातें वो होंगी
जिन्हें कभी देख नहीं पाओगे
21वीं में सदी में ढूँढ़ते रह जाओगे
अध्यापक जी सचमुच पढ़ाये
अफसर जो रिश्वत न खाये
बुद्धिजीवी जो राह दिखाये
कानून जो न्याय दिलाये
बाप जो समझाए
और ऐसा बेटा जो समझ जाये
ढूँढ‌़ते रह जाओगे
नेहरु जैसी इज़्ज़त
सुभाष जैसी हिम्मत
पटेल के इरादे
शास्त्री सीधे-साधे
पन्ना धाय का त्याग
राणा प्रताप की आग
अशोक का बैराग
तानसेन का राग
चाणक्य का नीति ज्ञान
इन्दिरा गाँधी जैसी बोल्ड
और महात्मा गाँधी जैसा गोल्ड
ढूँढ़ते रह जाओगे

कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री अखिल कुमार जी ने पिछले कवि सम्मेलनों का स्लाइड शो दिखाया, जिस को दर्शकों ने खूब सराहा। श्री संजीव अग्रवाल, श्री मोती अग्रवाल और श्री अभय गर्ग का ही प्रयास था की सुव्यवस्थित हॉल, सुसज्जित मंच और सुस्वादिष्ट भोजन की सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।


उपस्थित श्रोतागण

अंतरराष्ट्रीय हिंदी समीति ने हिंदी का नन्हा सा जो दिया जलाया था, वो आज सूरज बन चमक रहा था। इस का भान इसी बात से हो रहा था कि आज 700 से भी अधिक लोग इस हास्य कविसम्मेलन का आन्नद लेने के लिए यहाँ एकत्रित थे। लगातार तीन घंटा तीस मिनट चले इस कवि सम्मलेन में हँसते-हँसते लोगों के पेट में बल पड़ गए। जीवन की आपाधापी में हम हँसना लगभग भूल ही गए हैं, इस तरह के आयोजन हमें जीने की नई उर्जा देते हैं। कुछ लोगों के अनुसार तो वो आज जितना हँसे हैं, उतना जीवन में शायद ही कभी हँसे हों। उनका ये भी कहना था कि बड़े-बड़े कॉन्सर्ट में जाने से अच्छा है कि कवि सम्मेलनों में जाया जाए। मिडलैंड और ह्यूस्टन के कार्यक्रम भी बहुत सराहनीय रहे। 9 मई तक इनके कार्यक्रम चलेंगे। इन कवि सम्मेलनों में हिन्दी भाषी जब एक छत तले इकट्ठे होते हैं तो अमेरिका में भी भारत बसा महसूस होता है। चारों तरफ देश की महक फैली महसूस होती है।

रिपोर्ट- रचना श्रीवास्तव

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3 पाठकों का कहना है :

संगीता पुरी का कहना है कि -

हिंदी की ज्‍यो‍त जलते रहे .. सभी प्रतिभागियों को बधाई !!

bhawna का कहना है कि -

अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के सभी सदस्यों कार्यकर्ताओ को बधाई

rachana का कहना है कि -

sangita ji aur bhawna ji
aap apne apne vichar likhe aap dono ka dhnyavad
rachana

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