Thursday, August 5, 2010

आनंदम् के दो वर्ष पूर्ण



दो वर्षों तक अपनी निरंतरता कायम रखते हुए आनंदम् की काव्य गोष्ठी एक बार पुनः कनॉट प्लेस स्थित मैक्स इंश्योरेंस के सभागार में दो माह के ग्रीष्म कालीन अंतराल के बाद बुधवार 21 जुलाई की शाम 6 बजे पूरे जोशो ख़रोश के साथ संपन्न हुई। गोष्ठी में सर्व श्री सतीश सागर, दर्द देहलवी, ज़र्फ़ देहलवी, वीरेंद्र क़मर, पुरुषोत्तम वज्र, शैलेश सक्सैना, जगदीश रावतानी, भूपेन्द्र कुमार, मनमोहन शर्मा तालिब, लाल बिहारी लाल, नागेश चंद्रा, शिव कुमार मिश्र मोहन, डॉ. विजय कुमार, डॉ. ए. कीर्ति वर्धन, श्रीमती दिनेश आहूजा व विजय कुमार ग्रोवर इत्यादि कविगणों ने भाग लिया। समसामयिक विषयों पर कही गई मार्मिक रचनाओं पर शायरों व कवियों ने ख़ूब दाद पाई। गोष्ठी का संचालन भूपेन्द्र कुमार ने किया। गोष्ठी में पढ़ी गई कुछ रचनाओँ की बानगी देखें–

दर्द देहलवी-

पूछते हो हम से तुम, किस लिए उदासी है
ख़्वाहिशें ज़्यादा हैं, ज़िंदगी ज़रा सी है

वीरेंद्र क़मर-

तिरी नाक़िश-ख़याली है गुमाँ है
तिरे क़दमों के नीचे कहकशाँ है

ज़माना आज भी आशिक़ है जिसका
हमारे पास वो उर्दू ज़ुबाँ है

पुरुषोत्तम वज्र-

शहरीपन रिश्ते नातों की ख़ुशबू लूट गया
हमसे ही अब गाँव हमारा पीछे छूट गया

ज़र्फ़ देहलवी-

ज़िंदगी में प्यार होना चाहिए
प्यार का इज़हार होना चाहिए

प्यार में दुश्वारियाँ होती हैं मगर
प्यार में इक़रार होना चाहिए

सतीश सागर-

मन को स्वर नहीं बना पाए
चाह थी, फिर भी नहीं बना पाए

द्वार, आँगन, छतें बना लीं पर
आज तक घर नहीं बना पाए

जगदीश रावतानी आनंदम्-

ज़िदगी को सजा नहीं पाया
बोझ इसका उठा नहीं पाया

नाम जगदीश है कहा उसने
और कुछ बता नहीं पया

लाल बिहारी लाल के हाइकू-

राम का नाम बहुत
बहुत ही आसान
मुक्ति का मार्ग

पड़े फुहार
भीजे बदन पर
जले गतरी

डॉ. ए. कीर्तिवर्धन-

जिस दिन मकाँ घर में बदल जाएगा
सारे शहर का मिज़ाज बदल जाएगा

आने दो रोशनी तालीम की मेरी बस्ती में
देखना बस्ती का भी अंदाज़ बदल जाएगा

भूपेन्द्र कुमार-

करो कितना ही हमको क़ैद लोहे की सलाखों में
हैं पंछी हम खुले आकाश के परवाज़ करना तय है

शैलेश सक्सैना-

ख़ुद से बेहतर सच्चाई को जानता है कौन
शायर ज़िंदा है या मरा मानता है कौन

शिव कुमार मिश्र मोहन-

किसको सुनाएँ अपने दर्दो का सिलसिला
मेरे लिए तो लगता बेदर्द है ज़माना

मेरे उदास मन में एक बार तुम भी आना
शायद सिमट कर आए गुज़रा हुआ ज़माना

नागेश चंद्रा-

आज मुझे कुछ और भी दो
एक नई सोच की भोर भी दो

कहाँ छिपे आँखों के तारे
सहम गए हैं बच्चे सारे

किलकारी कुछ शोर भी दो

डॉ. विजय कुमार-

ग़ज़ल, नज़्म, नग्मा, रुबाई में ढालूँ
मुहब्बत को मेरी यूँ अलफाज़ देना

अंत में आनंदम् के अध्यक्ष श्री जगदीश रावतानी ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस गोष्ठी के साथ ही आनंदम् की स्थापना के दो वर्ष पूरे होने पर अनेक मित्रों व कविगणों ने आनंदम् के संस्थापक जगदीश रावतानी जी को तहे दिल से बधाई दी।