Sunday, August 15, 2010

क्षितिज शर्मा की कहानियाँ व्यवस्था में रहकर व्यवस्था के अस्वीकार की कहानियाँ हैं- राजेन्द्र यादव

एक शाम एक कथाकार-1




आप इस पूरे कार्यक्रम को सुन भी सकते हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें-

कुल प्रसारण समय- 1 घंटा 23 मिनट 45 सेकण्ड । अपनी सुविधानुसार सुनने के लिए यहाँ से डाउनलोड करें।


नई दिल्ली।

13 अगस्त 2010 को पीपुल्स विजन, दिल्ली, हिन्द-युग्म और गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में 'एक शाम एक कथाकार' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ कथाकार क्षितिज शर्मा ने कहानीपाठ किया। अध्यक्षता हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने की। क्षितिज शर्मा के कृतित्व पर समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट और कथाकार महेश दर्पण ने अपने विचार रखे। संयोजन हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी तथा युवा कवि व लेखक रामजी यादव ने किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ आलोचक आनंद प्रकाश ने किया।

पीपुल्स विजन निकट भविष्य में हर महीने एक ऐसी गोष्ठी के आयोजन को लेकर कटिबद्ध है जिसमें एक कथाकार अपनी कहानियों का पाठ करे और कहानी के जानकार और आम पाठक उपसर अपनी ईमानदार टिप्पणियाँ करें। कथाकार की प्रशस्ति करना ही मात्र इस गोष्ठी का उद्देश्य नहीं हो, बल्कि कहानीकार को तल्ख और वास्तविक प्रतिक्रियाएँ तत्काल मिलें। इस आयोजन में पीपुल्स विजन को हिन्द-युग्म डॉट कॉम और गांधी शांति प्रतिष्ठान का सहयोग प्राप्त है।

इसी शृंखला की पहली कड़ी के तौर पर वरिष्ठ कथाकार क्षितिज शर्मा ने अपनी कहानी 'अनुत्तरित' का पाठ किया। क्षितिज ने इस कहानी का बहुत ही धीमा और नीरस पाठ किया। यह बात वहाँ उपस्थित श्रोताओं और विशेषज्ञों ने भी रेखांकित की। लेकिन गोष्ठी की सफलता इस बात में भी थी कि कोई भी श्रोता कथापाठ के दौरान टस से मस नहीं हुआ। संचालक आनंद प्रकाश ने क्षितिज शर्मा के कथापाठ से पहले ही वहाँ मौज़ूद सभी रचनाकारों से यह सवाल पूछा कि आज के रचनाक्षेत्र में सभी अच्छी बातें, ग्राह्य बातें या पक्ष की बातें किसी सेट फॉर्मुले के तौर पर आती हैं, समकालीन रचनाओं में शत्रु पक्ष की विशेषताओं और क्रूरताओं की ओर स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। तो क्या शत्रु पक्ष के आवश्यक मूल्यांकन के बिना इन रचनाओं की सार्थकता एक निश्चित बिंदु के आगे सम्भव है? क्षितिज शर्मा ने इस सवाल का उत्तर देते हुए कहा कि वो अपनी रचनाओं में दोनों पक्षों का एक बराबर उल्लेख इसलिए भी नहीं करते कि कहीं पाठक दोनों में उलझ ने जाये, उसे दो रास्ते न मिल जायें और वह उनमें कहीं भटक न जाये। इसलिए वे शत्रु पक्ष का वर्णन इशारों में करते हैं।

महेश दर्पण ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं यह तो नहीं कहूँगा कि 'अनुत्तरित' क्षितिज शर्मा की प्रतिनिधि कहानी है, लेकिन इनकी लगभग सभी कहानियों में अपने समय के बड़े प्रश्न मौज़ूद हैं। इस समाज में, इस व्यवस्था में या इस समाज में जीने को विवश व्यक्ति के पास इन सवालों के जवाब मौज़ूद हैं या नहीं यह एक अलग बात है। महेश ने श्रोताओं को बताया कि आलोचकों और पाठकों का क्षितिज शर्मा की ओर ध्यान तब गया जब इनके उपन्यास 'उकाव' को एक ऐसे प्रकाशन ने पुरस्कृत किया, जिसने उसे छापा नहीं था। महेश ने कहा कि यदि किसी को क्षितिज के कहानियो के केन्द्र-बिन्दु की तलाश करनी हो तो पहले उसे पर्वतीय स्त्रियों के संघर्षों को बहुत करीब से देखना होगा।



महेश दर्पण ने क्षितिज शर्मा को शैलेश मटियानी और शेखर जोशी की परम्परा का कथाकार कहा और कहा कि इन कथाकारों को मालूम है कि पहाड़ी स्त्रियों के दुःख-दर्द क्या हैं, कैसे वो अपने पीठ पर वो पहाड़ लादे हैं, जिन्हें पहाडी जीवन कहते हैं। क्षितिज शर्मा अपनी कहानियों में बहुत कम बोलते हैं, वे अपने आपको बहुत पीछे रखते हैं। यदि आप शैलेश मटियानी की केवल 'अर्धांगिनी' को याद रखें, तो क्षितिज की कहानियों के स्त्री-पात्रों की तुलना आप कर सकते हैं। क्षितिज शर्मा बहुत धीमी गति से चलने वाले कथाकार हैं। अपनी कहानियों को पढ़ते वक्त वे उन्हें दुश्मन की कहानी जैसा भी स्नेह नहीं देते। बिलकुल भी इन्वाल्व नहीं होते। अपनी कहानियों का इतना नीरस पाठ क्षितिज शर्मा ही कर सकते हैं।

महेश ने आगे कहा- "क्षितिज शर्मा की कहानियों को अमरकांत की कहानियों की तरह एकबार पढ़कर नहीं समझा जा सकता। मैं समझता हूँ कि क्षितिज 'ताला बंद है' से आगे बढ़े हैं। इधर की कुछ कहानियों में क्षितिज ने नये कथ्यों की खोज की है, जिसमें आज के समाज और व्यक्ति की चिंताएँ हैं और उनके समाधान का संकेत है।"

पंकज बिष्ट ने कहा कि मुझे क्षितिज शर्मा की पहली कहानी 'रोटी' को प्रकाशित करने का सौभाग्य प्राप्त है। क्षितिज शर्मा पहाड़ी जीवन और उसकी संवेदना जिस इंटीमेसी, जिस समझ के साथ देखते हैं, मेरा ख्याल है कि आज के समय के और किसी दूसरे पहाड़ी कहानीकार में वह नही मिलती। इसमें कोई शक नहीं है कि जब क्षितिज पहाड़ पर लिखते हैं तो वे शैलेश मटियानी के करीब होते हैं। लेकिन शैलेश मटियानी और क्षितिज शर्मा में यह फर्क है कि शैलेश मानवीय-संवेदना की कहानियाँ लिखते हैं, लेकिन क्षितिज शर्मा पहाड़ी जीवन के टूटते-बिखरते जाने की व्यथा लिखते हैं, पहाड़ी जीवन में पैदा होने वाली विकृतियों और उसके दुष्परिणाम की कहानियाँ लिखते हैं। क्षितिज शर्मा की कहानी में शैलेश मटियानी की शैली का प्रभाव देखना हो तो क्षितिज शर्मा की 'जागर' कहानी पढ़ी जा सकती है।

पंकज बिष्ट ने क्षितिज शर्मा की कहानी 'ताला बंद है' को हिन्दी की उल्लेखनीय कहानी कहा। पंकज ने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि क्षितिज शर्मा ने केवल पहाड़ी जीवन की कहानियाँ लिखी हैं, इनकी यहाँ की भी कहानियाँ भी उल्लेखनीय हैं। क्षितिज शर्मा की कहानियाँ निम्न मध्यवर्ग का बहुत गहराई से वर्णन करती हैं।

वरिष्ठ कथाकार राजेन्द्र यादव ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि मुझे हमेशा इस जगह से शिकायत है क्योंकि यहाँ कभी बात सुनाई देती हैं और कभी सुनाई ही नहीं देतीं। मैं क्षितिज शर्मा की कहानी सुन नहीं पाया, इसलिए मैं भी उस कहानी पर कुछ कहने का अधिकारी नहीं हूँ। क्षितिज शर्मा एक लो-लाइन व्यक्ति हैं। न वे अधिकारी हैं, न कोई संपादक और न कोई हाई प्रोफाइल व्यक्ति। मतलब कि हम उनकी कहानियों को बिना किसी दबाव के पढ़ सकते हैं। मैंने क्षितिज की 4-5 कहानियों को पढ़ा हैं, लेकिन 'उकाव' उपन्यास को पढ़ने से पहले मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि क्षितिज पहाड़ी जीवन के संघर्षों को इतने निकट से जानते हैं। आजादी के बाद की हिन्दी कहानियाँ वैक्यिक्तिक थीं। उनके केन्द्र में व्यक्ति था। वह समाज को स्वीकारता था। वह स्त्री-पुरुष के संबंधों की कहानियाँ थीं। आज की कहानियों के केन्द्र में भी व्यक्ति है, लेकिन वह व्यक्ति के आस-पास, उसकी समस्त यात्रा की कहानियाँ हैं, जिनमें समाज में रहते हुए भी समाज का अस्वीकार है। मैं समझता हूँ कि क्षितिज की कहानियाँ भी इसी अस्वीकार की कहानियाँ हैं, जिनमें व्यवस्था की बात करते हुए व्यवस्था का अस्वीकार है।



राजेन्द्र यादव ने आगे कहा कि क्षितिज शर्मा एक ठंडे कहानीकार हैं, जिनके पात्रों को पढ़कर, जानकर हम किसी तरह की उत्तेजना, उद्विग्नता, उदग्रता का अनुभव नहीं करते। वे सामान्य तरह की कहानियाँ है। मुझे लगता है कि इस तरह की सामान्यता को भी समझने के लिए हमें व्यक्ति में जाना होता है, भीड़ को समझने के लिए भी कुछ व्यक्तियों की ही तस्वीरें बनानी पड़ती हैं। इस व्यक्ति को सामाजिक संदर्भों में समझे बिना कहानी अपने आप को नहीं पढ़वा सकती। कई बार ये कहानियाँ लगभग समाजशास्त्रीय अध्ययन लगती हैं। और मुझे इस तरह की कहानियों से थोड़ी सी शिकायत है। मैं समझता हूँ कि क्षितिज शर्मा की कहानियाँ इस बात के लिए आश्वस्त करती हैं कि कहानी एक समाजशास्त्रीय अध्ययन नहीं है, किसी व्यक्ति का निजी और एकांतिक अनुभव नहीं हैं।

अंत में रामजी यादव ने आभार व्यक्त किया।

प्रस्तुति- www.hindyugm.com