रमणिका फाउण्डेशन द्वारा साहित्य अकादमी सभागार में आयोजित डॉ. सुधीर सागर का कविता संग्रह 'बस! एक बार सोचो` तथा श्रीमती कुन्ती की 'अंधेरे में कंदील` का लोकार्पण रमणिका फाउंडेशन की अध्यक्ष सुश्री रमणिका गुप्ता, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के उपाध्यक्ष श्री एस. एस.नूर एवं वरिष्ट कवयित्री सुश्री अनामिका के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ।
मुख्य अतिथी श्री एस.एस.नूर ने अपने वक्तव्य में कहा काव्य भाषा दोनों कवियों के पास है। काव्यशास्त्र की गहरी पहचान है। इस कविता-संग्रह में यथार्थ से उपजी नई काव्य-भाषा देखने को मिलती है। 'बस! एक बार सोचो` की कविताओं के लिए अनामिका जी ने 'मेरे अंदर एक और आदमी` शीर्षक कविता का जिक्र खासतौर पर किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार एक शरीर में अनेक व्यक्ति निवास करते हैं। कुन्ती की कविता 'उजाले की किरण` में सकारात्मक उर्जा को बदलने की शक्ति है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं सुश्री रमणिका गुप्ता ने कहा 'ठाकुर का कुआं` कविता छोटी जरूर है लेकिन ये गहरी तथा लम्बी बात कहती है। अंधेरे में कंदील कविता के आरंभ में खरपतवार` शब्द का प्रयोग सहज और सही है जो खेतिहर मजदूरों से जुड़ा है। प्रेम वही करता है जो क्रांतिकारी होता है। कविताओं में कुछ न कुछ करने की भूख है। इस कार्यक्रम में दोनों कवियों ने अपनी चुनी हुई कविताओं का पाठ किया। तत्पश्चात श्री रमेश प्रजापति में कविता पर आलेख पाठ प्रस्तुत करते हुए कहा कि 'बस! एक बार सोचो` की कविता उत्पीड़ितों और शोषितों का प्रकाशपुन्ज है। अजय नावरिया ने कहा डॉ. सागर की कविताओं में चित्रात्मक अभिव्यक्ति है। जबकि कुन्ती की कविताओं में स्त्री है। विशिष्ट अतिथि श्री योगेन्द्र कुमार शर्मा 'निधि मेल` के संपादक ने कहा दोनों ही बुन्देली भाषा के अच्छे साहित्यकार हैं। दोनों की कविताओं में स्त्री एवं दलित विमर्श दिखाई देता है। कवि विवेक मिश्र ने कहा कि दोनों की पुस्तकों में शोषितों एवं उत्पीड़ितों की पीड़ा को मार्मिक ढंग से रखा। कार्यक्रम का संचालन छत्तीसगढ के दलित साहित्यकार संजीव खुदशाह ने किया। अंत में साहित्यकार श्री रूपनारायण सोनकर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम में मैत्रेयी पुष्पा, असगर वजाहत, सुधा अरोड़ा, अनिता भारती, मदन कश्यप सहित अनेक साहित्यकारों ने शिरकत की।
प्रस्तुति : रमणिका फाउंडेशन
डिफेंस कालोनी
नयी दिल्ली
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