लंदन के चर्चित हिन्दी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा पर प्रकाशित अभिनंदन-ग्रंथ 'वक़्त के आइने में' का लोकार्पण नई दिल्ली के राजेन्द्र भवन सभागार में हुआ। पुस्तक का विमोचन वरिष्ठ आलोचक प्रो॰ नामवर सिंह, वरिष्ठ कहानीकार कृष्णा सोबती और हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने किया। इस अभिनंदन-ग्रंथ के संपादक हरि भटनागर हैं जो एक वरिष्ठ कथाकार हैं और चर्चित साहित्यिक पत्रिका रचना-समय के संपादक भी हैं। इस पुस्तक में देश-विदेश के कथा आलोचकों तथा कहानीप्रेमियों की तेजेन्द्र की कहानियों पर रायों को संकलित किया गया है। अपने सम्पादकीय वक्तव्य में हरि भटनागर ने कहा कि जब वे इंडिया टुडे के लिए पिछले साठ सालों में प्रकाशित श्रेष्ठ २५ कहानियों का संकलन कर रहे थे तो उन्होंने तेजेन्द्र की एक कहानी 'कब्र का मुनाफ़ा' को भी इसमें ज़गह दी थी। यह जानने के बाद उनको कई धमकी भरे खत और फोन आए। उन्हें बहुत अफसोस था कि ज्यादातर पाठक-लेखक नाम से कहानियाँ पढ़ते हैं और उसपर अपनी राय बनाते हैं।
आधारवक्तव्य देते हुए युवा कहानीकार और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्राध्यापक अजय नावरिया ने कहा कि तेजेन्द्र की कहानियाँ समय की उपज हैं जो भारत के बाहर भारतीयों की ज़िदगियों को देखने का अवसर देती हैं। तेजेन्द्र की कहानियों और उनके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं, जिन्हें इस पुस्तक में सुसंकलित किया गया है। उन्हें यह ग्रंथ बहुत ज़रूरी लगता है।
कार्यक्रम के संचालक अजीत राय ने बताया कि वे २ साल पहले तक तेजेन्द्र शर्मा को कथाकार नहीं मानते थे। वे उन्हें विश्व हिन्दू परिषद का समर्थक और कट्टर हिन्दूवादी मानते थे। जब वे लंदन गए तो तेजेन्द्र ने उन्हें कुछ कहानियाँ पढ़ने को दी, लेकिन उन्होंने उसे कूड़े में फेंक दिया। लेकिन जब पढ़ा तो पढ़ते चले गए, उनके सामने एक नई दुनिया खुल गई।
कार्यक्रम के मुख्य-अतिथि प्रो॰ नामवर सिंह ने तेजेन्द्र को एक समर्थ कथाकार बताया और यह उम्मीद व्यक्त की कि वे भविष्य में और भी प्रौढ़ कहानियाँ लिखेंगे। हरि भटनागर ने कहा कि वे आने वाले समय में अन्य साहित्यकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर भी इस तरह के संकलन के प्रकाशन की योजना बना रहे हैं।
नूर ज़हीर ने इस ग्रंथ में संकलित सुधा ओम धींगरा का तेजेन्द्र के नाम पत्र पढ़कर सभी दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया। राजेन्द्र यादव ने भी इस कार्यक्रम तथा इस अभिनंदन-ग्रंथ का स्वागत किया। उन्होंने प्रवासी रचनाकार से यह सवाल भी पूछा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारत में लगातार उपजी तनाव की स्थिति के लिए क्या उनका सोने की ईंटें भेजना जिम्मेदार नहीं है। प्रवासी साहित्यकारों को अपनी लेखनी को कभी इस गुत्थी को सुलझाने में भी इस्तेमाल करना चाहिए।
कृष्णा सोबती ने तेजेन्द्र को एक कुशल कहानीकार बताया और कुछ-एक कहानियों के दृश्य तथा वक्तव्य पढ़कर सुनाए। उनकी एक कहानी 'टेलीफोन लाइन' को उन्होंने 'पहले हाथ का माल' यानी भोगी गई कहानी बताया और कहा कि लेखन-पाठन के इतने लम्बे तजुर्बे के बावज़ूद उन्हें यह बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि यह कहानी यहाँ खत्म होगी।
कार्यक्रम में कहानीकार कन्हैयालाल नंदन, लीलाधर मंडलोई, मुम्बई से सूरज प्रकाश, मधु अरोरा, जमशेदपुर से विजया शर्मा, भोपाल से आशा सिंह, हंगरी की हिन्दी विद्वान मारिया, सुभाष नीरव इत्यादि साहित्यकार उपस्थित थे।
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2 पाठकों का कहना है :
तेजेंद्र जी को बहुत-बहुत बधाई. उनकी कहानी युग्म पर पढने-सुनने को कब मिलेगी? इस समाचार के साथ मिल जाती तो सोने में सुहागा होता. दिल्ली मं न होने से ग्रन्थ तो मिलेगा नहीं.
बहुत बहुत बधाई ... इंतजार है उनकी कहानियों को पढ पाने का।
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