रिपोर्ट- प्रेमचंद सहजवाला
(बाएं से)-सिन्धी अकादमी सचिव सिन्धु भाग्या मिश्रा, मिठो मेहर व शौकत शोरो, वरिष्ठ सिन्धी साहित्यकार सी.जे. दासवानी व 'सिन्धी अकादमी' उपाध्यक्ष एम.के. जेटली और सिन्धी कवि कथाकार अमुल आहूजा
यदि भारत के सिन्धी समुदाय की वरिष्ठ पीढ़ी के दिल को एक बार टटोला जाए, तो लाखों सिन्धी जो सिंध में जन्मे, अपने हृदय में विभाजन का दोहरा दर्द आज भी समेटे हुए नज़र आएँगे. देश अकारण विभाजित हुआ, यह महसूस करने के साथ साथ, उन के मन में अभी तक इस बात की एक टीस सी बरक़रार है कि विभाजन के समय फैले पाशविक जुनून ने उन से उनकी जन्मभूमि भी छीन ली। आज भी किसी वयोवृद्ध सिन्धी से बात की जाए, तो इतने वर्षों बाद भी उस की आँखें सिंध की यादों से छलछला जाएंगी। भले ही वह दर्द, अब कई वर्षों के गुज़रते, दिल के अन्दर ही कहीं सो गया है, पर इस सोई-जागी भावना को व्यक्त करने के लिए मुझे अक्सर पाकिस्तानी शायर अहमद फ़राज़ के एक शेर का सहारा लेना पड़ता है:
फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं
मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूं भी नहीं।
सिंध की दर्द भरी याद किसी भी बुज़ुर्ग को विचलित किये बिना नहीं रह सकती. कई लोग, वहाँ रहने वाले 'अपनों' से बिछुड़ गए। यहाँ आ कर शरणार्थी होने के संघर्ष देखे. जब कुछ वर्ष पहले किसी संजीब भट्टाचार्जी ने अचानक एक जनहित याचिका दे डाली कि राष्ट्रगान से 'सिंध' शब्द हटा दिया जाए, क्यों कि सिंध अब भारत का हिस्सा नहीं रहा, तब सिन्धी समुदाय की भावना को ठेस पहुँची थी, क्यों कि 'जन गण मन ,,,' में 'पंजाब सिंध गुजरात मराठा...' का जो ज़िक्र है, वह केवल भौगोलिक नहीं, वरन् संबंधित समुदायों के लोगों से भी सम्बद्ध है. सर्वोच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को ठुकराया और याचक को लताड़ा भी कि यह 'Public Intrest Litigation' नहीं, 'Publicity Intrest Litigation' है। बहरहाल, अपनी जन्मभूमि से बिछुड़ कर आए सिन्धी समुदाय ने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया। आज उल्हासनगर (जो विभाजन के बाद एक महा शरणार्थी स्थल बन गया था) जाएं तो वहां के सिन्धी समुदाय ने जिस संकल्प के साथ और जिस जिजीविषा के साथ एक उजड़े-उजड़े से लगते ग़रीब शरणार्थी नगर को अपनी व्यापारिक व बौद्धिक प्रतिभा द्वारा एक महानगर में बदल दिया है, (जहाँ अब करोड़पति सिन्धी व्यापारी रहते हैं), वह संकल्प अपने आप में एक मिसाल है। उल्हासनगर, वीसापुर जैसे कई नगरों में सिन्धी शरणार्थियों को बसाने में जिन गांधीवादी नेता जैरामदास दौलतराम ने सब से ज़्यादा जद्दोजहद की, उन्हें स्वाधीनता संघर्ष में 'सिंध के गांधी' माना जाता था।
आज जसवंत सिंह की विवादस्पद पुस्तक 'Jinnah - India - Partition- Independence' के कारण विभाजन का ज़ख्म एक बार फिर उभर आया है, और हर भारतवासी शायद उन असली ताक़तों की खोज में लग गया है, जिन के कारण देश को एक शाश्वत, असहनीय चोट सहनी पड़ीं थी. परन्तु साहित्य एक ऐसी मानव-शक्ति है जो भौगोलिक सीमाओं को नहीं जानती मानती। भारत पाकिस्तान के बीच पंजाबी, सिन्धी, उर्दू व अन्य भाषाओँ के साहित्य का आदान प्रदान निरंतर होता रहता है। सुपरिचित सिन्धी लेखिका वीना श्रृंगी द्वारा स्थापित संस्था 'मारुई' दोनों देशों के साहित्यकारों को जोड़ने वाली एक कड़ी है, जिस के अंतर्गत कई बार दोनों देशों के साहित्यकारों ने मिल कर सेमिनार किये हैं. गुजरात के कच्छ इलाके में आदीपुर (गांधीधाम) में स्थित Indian Institute of Sindhology और पाकिस्तान के हैदराबाद (सिंध) में स्थित Institute of Sindhology दोनों देशों के साहित्य संगम के दो धड़े हैं, जिन के माध्यम से सिन्धी साहित्य का आदान प्रदान व शोध इत्यादि होते रहते हैं। दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित 'सिन्धी अकादमी' केवल दिल्ली के ही नहीं, भारत भर के साहित्यकारों की मिलन स्थली है, जहाँ प्रति माह साहित्यिक बैठकें होती हैं तथा वर्ष भर में नृत्य, नाटक आदि के कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते रहते हैं। हिंदी की तरह सिन्धी भाषियों को भी अपनी भाषा के भविष्य की कम चिंता नहीं है। अधिकांश वरिष्ठ सिन्धी इस बात पर चिंतित रहते हैं कि सिन्धी भाषा का भविष्य क्या है। क्योंकि बच्चे हिंदी या अंग्रेज़ी तो बोलते हैं, पर सिन्धी नहीं बोलते। पर सिन्धी अकादमी इस मामले में अपना अभूतपूर्व योगदान जारी रखे है। सिन्धी भाषा को बढ़ावा देने हेतु उस की साहित्यिक गोष्ठियां, प्रसिद्ध पुस्तकों के विमोचन व साहित्य चर्चा, व वार्षिक स्तर पर पुरस्कार सम्मान नियमित रूप से होते रहते हैं।
(बाएं से)-'सिन्धी अकादमी' उपाध्यक्ष एम.के. जेटली अत्ता मुहम्मद का स्वागत करते हुए, 'सिन्धी अकादमी' उपाध्यक्ष एम.के. जेटली शौकत शोरो का स्वागत करते हुए, श्री सी.जे. दासवानी मिठो मेहर का स्वागत करते हुए और सिन्धी कवि कथाकार जगदीश रावतानी
तारीख 5 सितम्बर 2009 को काश्मीरी गेट स्थित 'सिन्धी अकादमी' के कार्यालय के सभागार में एक यादगार कार्यक्रम हुआ, जिस में पाकिस्तान के प्रसिद्ध साहित्यकार शौकत शोरो की अध्यक्षता में प्रसिद्ध शायर- गायक मिठो मेहर ने शाह अब्दुल लतीफ़ के कलामों से उपस्थित सिन्धी जनता को भाव-विभोर कर दिया. शाह अब्दुल लतीफ़ (1689-1752) सिंध के विश्व प्रसिद्ध सूफी कवि थे, जिन्होंने सिन्धी भाषा को विश्व के मंच पर स्थापित किया। शाह लतीफ़ का कालजयी काव्य-संकलन 'शाह जो रसालो' सिन्धी समुदाय के हृदयकी धड़कन सा है. और सिंध का सन्दर्भ विश्व में शाह लतीफ़ की भूमि के रूप में भी दिया जाता है, जिस की सात नायिकाओं मारुई, मूमल, सस्सी, नूरी, सोहनी, हीर तथा लीला को सात रानियाँ भी कहा जाता है। ये सातों रानियाँ पवित्रता, वफादारी और सतीत्व के प्रतीक रूप में शाश्वत रूप से प्रसिद्ध हैं। इन सब की जीत प्रेम और वीरता की जीत है. शाह अब्दुल लतीफ़ एक सूफी संत थे जिन के बारे में राजमोहन गाँधी ने अपनी पुस्तक Understanding the Muslim Mind में लिखा है कि जब उनसे कोई पूछता था कि आप का मज़हब क्या है, तो कहते थे कोई नहीं। फिर क्षण भर बाद कहते थे कि सभी मज़हब मेरे मज़हब हैं। सूफी दर्शन कहता है कि जिस प्रकार किसी वृत्त के केंद्र तक असंख्य अर्द्ध- व्यास पहुँच सकते हैं, वैसे ही सत्य तक पहुँचने के असंख्य रास्ते हैं। हिन्दू या मुस्लिम रास्तों में से कोई एक आदर्श रास्ता हो, ऐसा नहीं है। कबीर की तरह शाह भी प्रेम को उत्सर्ग से जोड़ते हैं। प्रेम तो सरफरोशी चाहता है। इसीलिए शाह अपने एक पद में कहते हैं:
सूली से आमंत्रण है मित्रो,
क्या तुम में से कोई जाएगा?
जो प्यार की बात करते हैं,
उन्हें जानना चाहिए,
कि सूली की तरफ ही उन्हें शीघ्र जाना चाहिए!
सिन्धी अकादमी सभागार में शौकत शोरो, मिठो मेहर व एक अन्य साथी अत्ता मोहम्मद का स्वागत करते हुए प्रसिद्ध सिन्धी समालोचक हीरो ठाकुर ने कहा कि Institute of Sindhology से हाल ही में सेवा निवृत्त शौकत शोरो, तथा मिठो मेहर व अत्ता मुहम्मद के आगमन से हमें बेहद ख़ुशी हो रही है. शौकत शोरो ने अपनी एक सशक्त कहानी पढ़ी और मिठो मेहर ने शाह लतीफ़ के कलाम सुना कर एक बेहद भाव विह्वल वातावरण पैदा कर दिया. कलाम गाने से पहले उन्होंने विभाजन के दर्द को महसूस करते और कराते हुए कहा कि आप सब (जो सिंध छोड़ आए), के पास इल्म था, अदब (साहित्य) था, काबलियत थी.. आप सब हम से जुदा हो गए...
'सस्सी पुन्नू की शाश्वत प्रेम कथा, (जिस में सस्सी अपनी सहेलियों के साथ अपने परदेसी प्रियतम पुन्नू को पाने के लिए न जाने कैसे कैसे बीहड़ रास्तों, जंगलों पर्वतों से गुज़रती एक अंतहीन यात्रा करती है), पर शाह के कलाम को दर्दीली आवाज़ में पेश करने के बाद उन्होंने कहा कि दुनिया में जितने भी हकीम हैं, उनके पास हर दर्द का इलाज है, पर प्रेम और महबूब की याद... इन दोनों के दर्द का इलाज दुनिया के बड़े से बड़े हकीम के पास नहीं...
अभी वे गायन समाप्त कर के बैठे ही कि सभागार विचलित सा महसूस करने लगा और हर तरफ से मिठो की पुरकशिश आवाज़ में और अधिक कलाम सुनने की फरमाइश हुई, जैसे दिल अभी भरा न हो. इस दूसरे दौर में मिठो ने कुछ अन्य शायरों और सिन्धी शायरी के एक और विश्व-प्रसिद्ध मील पत्थर शेख अयाज़ की भी शायरी सुनाई। शेख अयाज़ (1923-1997) सिंध में बीसवीं सदी के शाह लतीफ़ माने जाते हैं, जिन्होंने शायरी को एक आधुनिक रूप दिया।
मिठो की आवाज़ और सुध बुध खो चुके सिन्धी-प्रेमी। यह शाम सचमुच एक यादगार शाम रही। इस अवसर पर भारत के सिन्धी कवियों जगदीश रावतानी, अमुल आहूजा, रतन ईसरानी आदि ने भी अपनी कवितायें पढ़ी तथा शौकत शोरो के कर-कमलों से साहित्यकार रतन ईसरानी की धार्मिक पुस्तक 'शब्द गुरु' का विमोचन भी हुआ।
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3 पाठकों का कहना है :
सर्वप्रथम रतन इसरानी जी को 'शब्द गुरु 'कृति के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित कर रही हूं.और भी इसी तरह अपनी कृतियों द्वारा साहित्य के उपवन को महकाएँगे .
ज्ञानवर्द्धक आलेख से सिंध के साहित्यकारों के बारे में पता लगा .
मुम्बई की सिन्धी साहित्य अकादमी भी सिन्धी के रचनाकारों को बढावा देती है .
कल ही समाचार पत्र में पढा कि उल्लास नगर के सिन्धी स्कूल बंद हो रहे हैं .बच्चे सिन्धी पढना नहीं चाहते .दुःख लगा . मेरे विचार से सिन्धी भाषा का भी उतना महत्व है जितना अन्य भारतीय भाषाओं का .
उपयोगी जानकारी के लिए आभार .
सहजवाला जी बहुत ही अच्छी रिपोर्ट पेश की खासतौर पर साहित्य के बारे में जो यह बात कही बहुत पसंद आई.
"परन्तु साहित्य एक ऐसी मानव-शक्ति है जो भौगोलिक सीमाओं को नहीं जानती मानती।."
इसी बात को पढ़कर मेरे मन में जावेद अख्टर साहब का लिख एक गीत याद आ गया.
पंछी नदिया पवन के झोंके
कोई सरहद न इन्हें रोके
सोचो तुमने मैंने क्या पाया इन्सां होके.
सहजवाला जी की रिपोर्ट से एक बात और पता चली मुझे.
"कि 'जन गण मन ,,,' में 'पंजाब सिंध गुजरात मराठा...' का जो ज़िक्र है, वह केवल भौगोलिक नहीं, वरन् संबंधित समुदायों के लोगों से भी सम्बद्ध है. सर्वोच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को ठुकराया और याचक को लताड़ा भी कि यह 'Public Intrest Litigation' नहीं, 'Publicity Intrest Litigation' है। "
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