22 अक्टूबर 2009। नई दिल्लीआनंदम् की 15वीं मासिक गोष्ठी कनॉट प्लेस के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मैक्स न्यू यॉर्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के सभागार में 20 अक्तूबर, 2009 को शाम 5.30 बजे वरिष्ठ शायर जनाब
जगदीश जैन की अध्यक्षता में आयोजित की गई। गोष्ठी में मासूम ग़ाज़ियाबादी, मुनव्वर सरहदी, उमर बचरायूनी, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी व बाग़ी चाचा जैसे लब्ध प्रतिष्ठित शायर भी मौजूद थे। गोष्ठी का सरस संचालन ममता किरण ने अपने ख़ूबसूरत अंदाज़ में किया।
गोष्ठी में इनके अलावा इन रचनाकारों ने भी अपनी कविताओं व ग़ज़लों से ख़ूब वाहवाही बटोरी-
वीरेन्द्र कमर, क़ैसर अज़ीज़, शिव कुमार मिश्र मोहन, डॉ. विजय कुमार, जगदीश रावतानी, भूपेन्द्र कुमार, प्रेम चंद सहजवाला, वीरेन्द्र कुमार मन्सोत्रा, मनमोहन तालिब, शैलेश सक्सैना, विशन लाल, दिनेश आहूजा एवं प्रभा मल्होत्रा। पढ़ी गई रचनाओं की कुछ बानगी देखें-
जगदीश जैन-एक छन्दमुक्त रचना के माध्यम से आपने आधुनिक रावण का चरित्र चित्रित करते हुए कुछ यूँ कहा-
सीता तो फिर सीता है
आज का रावण तो लक्षमण को भी हर लेता है
आपकी ग़ज़ल का एक शेर भी काबिले ग़ौर है-
था बकौले मीर दिल्ली, एक शहरे इंन्तख़ाब
क्या ख़बर थी वो भी, ख्वाबों का नगर हो जाएगामुनव्वर सरहदी-ज़िन्दगी गुज़री है यूँ तो अपनी फ़रज़ानों के साथ
रूह को राहत मगर मिलती है दीवानों के साथलक्ष्मीशंकर वाजपेयी-रास्ते जब नज़र न आएँगे
लोग पगडंडियाँ बनाएँगे
ख़ौफ़ सारे ग्रहों पे है कि वहाँ
आदमी बस्तियाँ बसाएँगेमासूम ग़ाज़ियाबादी-कोई महफिल तबीयत से अगर रंगीन होती है
वहाँ सादा लिबासों की बड़ी तौहीन होती है
ग़रीबी देख कर घर की वो फ़रमाइश नहीं करते
नहीं तो उम्र बच्चों की बड़ी शौकीन होती हैउमर बचरायूनी-इश्क़ जो दार पर नहीं पहुँचा
अपने मीयार तक नहीं पहुँचा
ग़ैर तो ग़ैर हैं अयादत को
यार भी यार तक नहीं पहुँचाबाग़ी चाचा-तोड़ दे ब जाति और धर् की मचान को
भूल जा चाहे भी तू गीता और क़ुरान को
बँट चुकी है ये धरती आज टुकड़ों में बहुत
धर्म तू बना ले अपना पूरे आसमान कोवीरेन्द्र क़मर-मुसीबत पसीने में जो तरबतर है
यक़ीनन ये माँ की दुआ का असर है
उसे ये ज़माना कहाँ रास आया
मियाँ शेर कहने का जिस पे हुनर हैजगदीश रावतानी आनंदम्-आपने आस्तिकता और नास्तिकता के प्रश्न को दो कैंसर ग्रस्त व्यक्तियों के माध्यम से उठाते हुए अपने भावपूर्ण अंदाज़ में एक आज़ाद नज़्म पेश की जिसकी अन्तिम पंक्तियाँ हैं-
हैरान हूँ विपरीत भाव देख कर
नास्तिक दीपक सुबह-शाम भगवान को याद करता है
और आस्तिक सूरज ने अपने घर में बने मंदिर तक को तोड़ दिया हैममता किरण-
देखा चिड़िया को नया नीड़ बनाते जिस पल
मन में जीने की ललक जाग उठी फिर सेक़ैसर अज़ीज़-पामाल कर रहे हैं जो इंसाँ की ज़िन्दगी
या रब सरों से टाल दे उन हादसात को
उसकी नज़र में वक्त का अक्से जमील था
अल्लाह ने बनाया था जब कायनात कोभूपेन्द्र कुमार-अक्स सच्चा दिखा न पाता तो
आइना, आइना नहीं होता
सनसनीख़ेज़ हो ख़बर तो भी
जाने क्यूँ चौंकना नहीं होताडॉ॰ विजय कुमार-उसने जब मुझ पे तेग उठा ही ली
मैं ही सर को बचा के क्या करताशिव कुमार मिश्र मोहन-बुझते हुए दिये को तुम यूँ जलाए रखना
कुछ यादें ज़िन्दगी की दिल में छुपाए रखनाशैलेश सक्सैना-रिश्तों को कैसे अब निभाया जाए
सबक ये नया अब सिखाया जाएप्रेमचंद सहजवाला-देवता सच के न मोहताज थे फूलों के कभी
यूँ बहुत लोग यहाँ रस्म निभाने आएमनमोहन तालिब-आप तो रोज़ घर बुलाते हैं
हम नई बस्तियाँ बसाते हैंवीरेन्द्र कुमार मन्सोत्रा-दिल के ज़ख़्म दिल में छुपा लीजिए
मत बैठो इस तरह यारो
दूसरों के सामने तो मुस्कुरा दीजिएप्रभा मल्होत्रा-वाल्मीकि नहीं मिले मुझे, देवी नहीं बनी मैं
मैंने गर्भस्थ शिशु का रक्षण किया है
क्योंकि मैं भी सीता हूँदिनेश आहूजा-अपनी अतुकांत कविता के माध्यम से आपने नारी की विवशताओं का एक सजीव चित्र प्रस्तुत किया।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर जनाब जगदीश जैन ने सभी रचनाकारों को अच्छी रचनाएँ प्रस्तुत करने के लिए बधाई दी और आनंदम् के अध्यक्ष जगदीश रावतानी का इस बात के लिए विशेष रूप से धन्यवाद किया कि उन्होंने आनंदम् को उत्कृष्टता के इस मुकाम तक पहुँचाया।
कार्यक्रम के अंत में आनंदम् के अध्यक्ष
जगदीश रावतानी ने सभी रचनाकारों एवं श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया और मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के प्रबन्धन का गोष्ठी के लिए स्थान उपलब्ध कराने के लिए विशेष रूप से धन्यवाद किया।
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3 पाठकों का कहना है :
बहुत सुंदर-सुंदर रचनाएं हैं। सच में आनंदम माहौल हो गया। खबर के लिए अभार।
aadab bhai kafi din ho gaye aap kaise hain
rawtani saheb
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