आज शाम गांधी शांति प्रतिष्ठान में पीपुल्स विजन, दिल्ली औरहिंद-युग्म डॉट कॉम के सौजन्य से लेखक-प्रकाशक संबंध और प्रकाशन में आने वाली समस्याएं विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें प्रतिनिधि लेखक और प्रकाशक उपस्थित हुए। गौरतलब है कि इस दिन ‘एक शाम एक कथाकार’ के अंतर्गत वरिष्ठ कथाकार ‘अब्दुल बिस्मिल्लाह’ का कहानीपाठ और उस पर नीलाभ और जयप्रकाश कर्दम की परिचर्चा निश्चित थे। लेकिन अब्दुल बिस्मिल्लाह के अचानक अत्यधिक बीमार हो जाने के कारण कार्यक्रम की रूपरेखा को बदलना पड़ा।
हिंदयुग्म डॉट कॉम के नियंत्रक और निदेशक शैलेश भारतवासी ने इस संबंध में अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि इस वर्ष उन्होंने कोई 12 पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इन पुस्तकों के प्रकाशन में उन्हें कोई अतिरिक्त दबाव महसूस नहीं हुआ बल्कि इस तकनीकी युग में कागज से लेकर हर चीज की आउट सोर्सिंग करते हुए बड़ी आसानी से उन्होंने पुस्तकें प्रकाशित कर दीं। उन्होंने स्वीकार किया कि देश में अनेक नवोदित लेखक हैं जो अपनी पांडुलिपि को प्रकाशित कराने हेतु धन का जुगाड़ खुद करते हैं और उन्हीं के सहयोग से वे पुस्तकों का प्रकाशन करते हैं। शैलेश भारतवासी ने माना कि नये प्रकाशकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे गंभीर और जनोपयोगी सामग्रियाँ कहाँ से लायें।
लोकमित्र प्रकाशन के आलोक शर्मा का कहना था कि प्रकाशन कोई सरल कार्य नहीं है बल्कि इसमें प्रकाशक अपनी पूंजी लगाता है इसलिए वह येन-केन प्रकारेण वह वापस लेना चाहता है।
नीलाभ प्रकाशन से संबद्ध वरिष्ठ पत्रकार और कवि नीलाभ ने प्रकाशन क्षेत्र से जुड़े दुखद पक्षों की ओर संकेत करते हुए कहाकि इस पेशे में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि हर कोई कमीशन देकर प्रकाशक बन गया है, जिसमें न तो पुस्तक की क्वालिटी देखी जाती है और न ही पुस्तक की उपादेयता ही सिद्ध हो पाती है। पुस्तक थोक खरीद में कमीशन के आधार पर खरीद तो ली जाती है लेकिन वे पुस्तकें कहां जाती हैं, किसी को पता नहीं। यहां प्रकाशक तो मुनाफा कमा लेता है लेकिन लेखक अपने हक से वंचित रह जाता है। उन्होंने वर्तमान इलेक्ट्रानिक्स युग विशेषकर ब्लागिंग की ओर संकेत करते हुए कहाकि जो प्रयोग यहां आजकल चल रहा है, वह यूरोप में बीते वर्षों में हो चुका है, किंतु आखिरकार वे मुद्रण पर ही आ गए हैं। वहां पुस्तकें बड़ी मात्रा में बिकती हैं।
भारतीय ब्लागिंग की दशा और दिशा पर अपने विचार ब्लागर कवि कुमार मुकुल ने रखे। वरिष्ठ लेखक एवं मिनहाज प्रकाशन से संबद्ध शमशेर अहमद खान ने अपने गुरु डॉ. दूधनाथ सिंह को प्रणाम करते हुए हुए बताया कि हिंदी लेखन यदि समय सापेक्ष है तो पाठक उसके लेखन को हाथों-हाथ लेता है। विजय आपरेशन के दौरान केवल एक महीने के भीतर लिखी गई कारगिल के शहीद पुस्तक प्रकाशक समय प्रकाशन के कई संस्करण प्रकाशित हुए और लेखक को रायल्टी भी प्राप्त हुई। अभी तक ऐसे विषयों पर अंग्रेजी लेखकों का वर्चस्व हुआ करता था। प्रकाशक जो राशि भ्रष्टाचार पर व्यय करते हैं, वे उस राशि को गांव, ब्लॉक, जिला स्तर पर जाकर संगोष्टियों का आयोजन करें जिससे नया पाठक वर्ग तैयार होगा और पुस्तकों की सार्थकता भी सिद्ध होगी। आज दिल्ली में कितने स्कूल और कालेज हैं। मोटी-मोटी फीसें ली जाती हैं लेकिन उनके पुस्तकालयों में हिंदी की पुस्तकें नाममात्र को मिलेंगी जबकि फीस की रकम हिंदी वालों की जेब से ली जाती है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. दूधनाथ सिंह ने प्रकाशकों और लेखकों के अनेक किस्से सुनाए जिसमें हमेशा लेखक ही खसारे में रहा है। ब्लॉगिंग की तरफ इंगित करते हुए उन्होंने कहाकि यह केवल महानगरों में ही कुछ लोगों तक सीमित है। जिस देश में शटडाउन होता हो वहां ब्लागिंग केवल वाचालता ही कही जाएगी। अभी गांव तक केवल धार्मिक पुस्तकें ही पहुंची हैं, शायद अगली पीढ़ी तक यह हो जाए तो प्रसन्नता की ही बात होगी।
मंच का संचालन वरिष्ठ आलोचक आनंद प्रकाश ने किया। इस संगोष्ठी में पीपुल्स विजन के सचिव रामजी यादव समेत अनेक कवि, साहित्यकार एवं समीक्षक मौजूद थे।
रिपोर्ट- मुनीश परवेज राणा
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