2 अक्टूबर । वर्धा
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी के चार महान कवियों की जन्मशती वर्ष के अवसर पर उनकी रचनाओं पर चर्चा के बहाने बीसवीं शताब्दी के अर्थ को समझने के लिए देश भर से बड़े साहित्यकारों को आमंत्रित कर सेमिनार का आयोजन किया है। गांधी जयन्ती के दिन प्रारम्भ हुए इस कार्यक्रम का उद्घाटन प्रसिद्ध समालोचक नामवर सिंह द्वारा किया गया। यह रिपोर्ट लिखते समय नामवर जी का उद्घाटन भाषण चल रहा था। वे नागार्जुन की चर्चा करते हुए उनका दोहा सुना रहे थे।
खड़ी हो गयी चाँपकर कंकालों की हूक।
नभ में विपुल विराट सी शासन की बंदूक॥
जली ठूँठ पर बैठ कर गयी कोकिला कूक
बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक
-----------------------------(नागार्जुन)
इससे पहले कुलपति वी.एन.राय ने अपने विषय प्रवर्तन भाषण में बीसवीं सदी को हाशिए के लोगों की शताब्दी बताया। स्त्रियों, दलितों और गुलाम देश के नागरिकों को मनुष्य के रूप में जीने का हक मिला। जन्मशती के चार कवि हैं- 1-सच्चिदानन्द हीरानंद वात्सायन ‘अज्ञेय’ 2-शमशेर, 3- केदारनाथ अग्रवाल, 4-नागार्जुन ।
निर्मला जैन-
(12:05 अपराह्न)
प्रख्यात आलोचक निर्मला जैन ने अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया। समय की छाप हर एक रचना पर पड़ती है। इन चारों कवियों में बहुत मूल्य चिंता दिखती है।
शमशेर को कवियों का कवि क्यों कहा जाता है? इसकी व्याख्या जरूर होनी चाहिए।
“बात बोलेगी हम नहीं। भेद खोलेगी बात ही” लेकिन शमशेर ने कविता के अलावा भी बहुत कुछ कहा है।
रिपोर्ट- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी (दोपहर 12ः10 बजे तक की कवरिंग)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
टिप्पणी देने वाले प्रथम पाठक बनें
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)