Showing posts with label Udghatan. Show all posts
Showing posts with label Udghatan. Show all posts

Saturday, October 2, 2010

बीसवीं सदी हाशिए के लोगों की शताब्दी हैं- वी एन राय

2 अक्टूबर । वर्धा

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी के चार महान कवियों की जन्मशती वर्ष के अवसर पर उनकी रचनाओं पर चर्चा के बहाने बीसवीं शताब्दी के अर्थ को समझने के लिए देश भर से बड़े साहित्यकारों को आमंत्रित कर सेमिनार का आयोजन किया है। गांधी जयन्ती के दिन प्रारम्भ हुए इस कार्यक्रम का उद्‌घाटन प्रसिद्ध समालोचक नामवर सिंह द्वारा किया गया। यह रिपोर्ट लिखते समय नामवर जी का उद्‍घाटन भाषण चल रहा था। वे नागार्जुन की चर्चा करते हुए उनका दोहा सुना रहे थे।

खड़ी हो गयी चाँपकर कंकालों की हूक।
नभ में विपुल विराट सी शासन की बंदूक॥

जली ठूँठ पर बैठ कर गयी कोकिला कूक
बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक
-----------------------------(नागार्जुन)

इससे पहले कुलपति वी.एन.राय ने अपने विषय प्रवर्तन भाषण में बीसवीं सदी को हाशिए के लोगों की शताब्दी बताया। स्त्रियों, दलितों और गुलाम देश के नागरिकों को मनुष्य के रूप में जीने का हक मिला। जन्मशती के चार कवि हैं- 1-सच्चिदानन्द हीरानंद वात्सायन ‘अज्ञेय’ 2-शमशेर, 3- केदारनाथ अग्रवाल, 4-नागार्जुन ।

निर्मला जैन-
(12:05 अपराह्न)

प्रख्यात आलोचक निर्मला जैन ने अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया। समय की छाप हर एक रचना पर पड़ती है। इन चारों कवियों में बहुत मूल्य चिंता दिखती है।

शमशेर को कवियों का कवि क्यों कहा जाता है? इसकी व्याख्या जरूर होनी चाहिए।

“बात बोलेगी हम नहीं। भेद खोलेगी बात ही” लेकिन शमशेर ने कविता के अलावा भी बहुत कुछ कहा है।

रिपोर्ट- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी (दोपहर 12‍ः10 बजे तक की कवरिंग)

Monday, August 23, 2010

दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल द्वारा निदान क्लिनिक का उदघाटन



नई दिल्लीः अखिल भारतीय स्तर पर कार्यरत गैर सरकारी संस्था सरस्वती एजुकेशनल वेलफेयर एवारनेस(सेवा)के तत्वाधान में शिव मंदिर के पास साई नगर, बदरपुर, नई दिल्ली में दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल द्वारा निदान क्लिनिक का उदघाटन किया गया ।
इस अवसर पर डा. के.के. तिवारी, डा. आर कान्त, डा. एन के सिंह, संस्था के अध्यक्ष श्रीमती अनिता पाण्डेय, महासचिव श्री धुरेन्द्र राय, समाजसेवी श्री रामजीवन मॉझी, श्री दिनेश गुप्ता, श्री रवि शंकर, श्री कृपा शंकर आदि सहित अन्य गन्य मान्य व्यक्ति मौयूद थे। इस केन्द्र का संचालन डा. एन. के. सिंह तथा डा. अश्विनि कुमार सिंह करेंगे। श्री लाल ने सेवा द्वारा इस तरह के केन्द्र के स्थापना पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि गरीबों को इसका लाभ अब क्षेत्र में ही अवश्य मिलेगा।

प्रस्तुतिः सोनू गुप्ता
फोन 9953113075

Tuesday, February 2, 2010

कपिल सिब्बल की दो टूक बातें – 19 वें ‘विश्व पुस्तक मेला’ (30 Jan – 7 Feb) की उद्घाटन रिपोर्ट



‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ द्वारा प्रति दो वर्ष में ‘विश्व पुस्तक मेला’ का आयोजन पुस्तक प्रेमियों के लिए एक त्यौहार की तरह होता है. हजारों प्रकाशक, लाखों पुस्तकें और लाखों पुस्तक प्रेमी एक सैलाब की तरह दिल्ली के प्रगति मैदान में उमड़ते देखे जा सकते हैं.

19 वां पुस्तक मेला भी उसी त्यौहार शृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में 30 जनवरी 2010 को मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा उद्घाटित हुआ. कपिल सिब्बल की एक विशेषता यह कि वे बहुत उत्साह से अपने मंत्रालय में एक स्फूर्ति सी भर देते हैं. केवल निपटाऊ तरीके से काम करके जनता को झूठे आश्वासनों द्वारा आश्वस्त रखना उनकी कार्य शैली में शामिल नहीं है. जिस तरीके से कपिल सिब्बल ने मानव संसाधन मंत्री की शपथ लेते ही भारतीय शिक्षा प्रणाली में अचानक कुछ क्रन्तिकारी परिवर्तन करने शुरू कर दिए उस से शिक्षा से जुड़े सभी महत्वपूर्ण लोगों की चेतनाओं का झकझोर दिया जाना निश्चित सा था. उन के विषय में कहने से पहले मेरी स्मृति अचानक कुछ पूर्व मानव संसाधन मंत्रियों की ओर सहज ही चली जाती है. वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार के मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी कुछ विचित्र सा चेहरा ले कर जनता के सामने प्रस्तुत हुए. अपनी तथा अपनी पार्टी की चिर-परिचित सांप्रदायिक छवि की प्रमाणिकता सी देते उन्होंने करोड़ों रूपए प्राचीन भारत के इतिहास पर शोध के लिए बहाने शुरू कर दिए जिस में उनकी सनक यही थी कि प्राचीन भारत की अधिकाधिक गौरवशाली छवि जनता के सामने प्रस्तुत की जाए और क्यों कि प्राचीन भारत में अधिकाधिक हिंदू राजा थे सो हिंदू गौरव प्राचीन भारत के गौरव का पर्यायवाची बन कर लगे हाथों उनकी पार्टी के लिए हिंदू वोट भी बटोर देगा. उसी हिंदू गौरव की सनक में उन्होंने विश्वविद्यालयों में ज्योतिष पढाने का नया शगूफा छोड़ दिया था. इस के आलावा कभी सरस्वती वंदना कभी वंदे मातरम, हिंदू गौरव उन की दुखती रग बन गई और इस से देश की धर्म-निरपेक्ष छवि को कितनी क्षति पहुंचेगी यह उनकी फ़िक्र में शामिल था ही नहीं. बहरहाल, बहुत बे-आबरू हो कर ...के अंदाज़ में सन 2004 में NDA सरकार को जनता ने हटा दिया तो अर्जुन सिंह मानव संसाधन मंत्री बने जो इतने वृद्ध थे कि चाह कर भी शायद वो उत्साह न पद कर सके जिस की दरकार थी, हालांकि उन्होंने मंडल आयोग के आरक्षण को निजी स्कूलों कालेजों में भी लागू करने का अच्छा कदम उठाया जो फिलहाल अदालती युद्ध में खटाई में सा पड़ा हुआ है.






(कपिल सिब्बल का वक्तव्य)

कपिल सिब्बल ने कोई भी विवादस्पद या सांप्रदायिक काम न कर के सीधे ही शिक्षा प्रणाली में कुछ क्रन्तिकारी कदम उठाने शुरू कर दिए जिन के बारे में सोचते सब थे पर कार्यान्वित करने का साहस कम में था. दसवीं कक्षा के बोर्ड की परीक्षाएं समाप्त की तथा बारहवी में भी ग्रेडिंग सिस्टम लागू करनी के बात की. . संयोग कि पुस्तक मेले के उद्घाटन भाषण में उन्होंने सब से पहले इसी विषय को छुआ. उन्होंने मंच पर उपस्थित विद्वान इतिहासकार विपिनचंद्र समेत उन सभी लोगों को आड़े हाथों लिए जिन्होंने यह प्रश्न उछाला कि दसवीं के बोर्ड की परीक्षा समाप्त करने का आखिर उद्देश्य क्या था. उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि फिर तो मैं क्षमा चाहता हूँ क्यों कि मैं तो फेल हो गया हूँ. पर यह कौन कहता है कि हम चाहते हैं कि बच्चों की परीक्षाएं ही न हों और अध्यापक उन्हें पढाएं ही नहीं, और न ही विद्यार्थी पुस्तकें पढ़ें! स्वयं को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि हम तो बल्कि चाहते हैं कि विद्यार्थियों का लगातार परीक्षण होता रहे, न केवल उस एक परीक्षा में! विद्यार्थी केवल अपनी उन पाठ्य पुस्तकों और कक्षा की चारदीवारी में ही न फंसा रहे. बल्कि उस चारदीवारी के बाहर झांक कर वह दुनिया देखे और पाठ्य पुस्तकों के अलावा भी अन्य पुस्तकें पढ़े. उस के मूल्यांकन अध्यापक केवल उस एक अंतिम परीक्षा से न कर के निरंतर पूरा वर्ष उस से संपर्क में रह कर करते रहें! यही तो पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा था और हम तो जवाहरलाल नेहरु के पद-चिह्नों पर चल रहे हैं!
उन्होंने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि भारत में 37 भाषाओँ में लाखों पुस्तकें प्रकाशित होती हैं और अकेले अंग्रेजी में ही भारत विश्व में अंग्रेजी पुस्तकें प्रकाशित करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर है.

एक महत्वपूर्ण अवलोकन

स्कूली शिक्षा के बाद अचानक उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही कि आज प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रोनिक्स में क्रांति आई हुई है पर उन्हें डर है कि विधार्थी तो अब e-books की ओर उन्मुख होंगे और पुस्तकें खरीदेंगे ही नहीं, जो कि एक चिंताजनक बात होगी. स्वयं अपना उदहारण देते हुए उन्होंने कहा कि वे प्रतिमाह पुस्तकों की दुकान पर जाते हैं तथा विश्व भर की नई पुरानी पुस्तकों के शीर्षक जांच कर घर लौटते हैं तो हाथों में कई नई और महत्वपूर्ण पुस्तकें होती हैं. एक प्रकार से उन्होंने पुस्तक की सत्ता को दूरदर्शन व कम्प्युटर के आगे झुकने न देने की ओर संकेत दिए.
उन्होंने यह भी कहा कि आज हर कोई शिक्षा लेते समय या पढते समय यही देखटा है कि उसे कितना पैसा मिलेगा. पर ज़रूरत इस बात की है कि आज हमें एक सेकूलर सहनशील वातावरण की ज़रूरत है. कपिल सिब्बल के समग्र भाषण को देखा जाए तो उपस्थित श्रोताओं के लिए ही नहीं वरन मंच पर उपस्थित विद्वानगण के लिए भी सोचने को काफी कुछ महत्वपूर्ण था और यदि समाज का चिंतन सही धारा में बढ़ा तो नई सोच के इस मसीहा का कार्यकाल एक सफल कार्यकाल माना जाएगा.


(टिकट खरीदने के लिए लाइन में खड़े आगंतुक)



(मेला में हिन्द-युग्म का स्टॉल और हिन्द-युग्म के कार्यकर्ता)

रिपोर्ट- प्रेमचंद सहजवाला
फोटो- शमशेर अहमद खान