Wednesday, December 31, 2008

व्यंग के पुरोधा राम ठाकुर 'दादा' नहीं रहे

जबलपुर, १९-१२-२००९ । हास्य-व्यंग के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने वाले अनूठे शिल्पी श्री राम ठाकुर 'दादा' के निधन से संस्कारधानी के साहित्य जगत में सन्नाटा व्याप्त है। वर्ष १९९४ में मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री दिग्विजय सिंह एवं ख्यातिलब्ध साहित्यकार-शिक्षाविद श्री शिव मंगल सिंह 'सुमन' के कर कमलों से वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके दादा ने स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत-काव्य में हास्य-व्यंग विषय पर शोधोपाधि प्राप्त की थी। उनका जन्म २८ जनवरी १९४६ को ग्राम बरंगी, तहसील सोहागपुर, जिला होशंगाबाद में हुआ था। उनके समृद्ध रचना संसार में हास्य-व्यंग संग्रह 'दादा के छक्के', लघुकथा संग्रह 'अभिमन्यु का सत्ताव्यूह', व्यंग निबंध संग्रह 'ऐसा भी होता है', व्यंग उपन्यास 'पच्चीस घंटे', गद्य संग्रह 'मेरी प्रतिनिधि व्यंग रचनाएं', व्यंग लेख संग्रह ' प से पर्स, पिल्ला और पति', हास्य खंड काव्य 'दादा की रेल यात्रा' आदि प्रमुख हैं।

दादा ने साहित्य निर्देशिका, पोपट तथा अभिव्यक्ति पत्रिकाओं का सम्पादन किया था। दूर संचार विभाग में वरिष्ठ दूरभाष पर्यवेक्षक रहे दादा की सरलता, सहजता तथा अपनापन आजकल दुर्लभ होता जा रहा है। दादा की अंत्येष्टि स्थानीय रानीताल स्थित श्मशान ग्रह में हुई। दादा को विनम्र श्रद्दाँजलि अर्पित करते हुए उनकी कुछ पंक्तियाँ पाठकों के लिए प्रस्तुत है--

मंहगाई को प्रथम मनाऊँ, जो सुरसा सम बढ़ती जाय।
भ्रष्टाचार को शीश झुकाऊँ, जिसकी जवानी चढ़ती जाय।
कथा बखानूं मैं रेलों कीश्रोता सुनियो कान लगाय।
सुमरन कर लूँ रेल मंत्री का, जिनकी रेल चले लहराय।

Thursday, December 18, 2008

मुम्बई त्रासदी पर लंदन में हुई हिन्दी-उर्दू की एक मिली जुली कथा-गोष्ठी

जिस दिमाग़ में धर्म या मज़हब रहता है वहां दहश्तग़र्दी के लिये कोई स्थान नहीं –काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी

लंदन |13 दिसंबर 2008| कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स द्वारा आयोजित साझा हिन्दी-उर्दू कथागोष्ठी में मेहमानों को स्वागत करते हुए कॉलिन्डेल की काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने कहा, “मुंबई की त्रासदी के बाद हमें यह ज़रूरी लगा कि हिन्दी-उर्दू की एक मिली जुली कथा-गोष्ठी करवा कर हम विश्व को संदेश दे सकते हैं कि साहित्य द्वारा दो देशों के नागरिकों में एक सहज वातावरण पैदा किया जा सकता है। मैं नहीं मानती कि आतंकवाद का कोई मज़हब होता है। दरअसल मैं तो कहूंगी जिस दिमाग़ में मज़हब या धर्म का वास होता है, वहां दहश्तग़र्दी के लिये कोई स्थान नहीं होता है।” इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री आनन्द कुमार जबकि अध्यक्ष थे प्रोफ़ेसर अमीन मुग़ल।
इस कथागोष्ठी में हिन्दी कथाकार दिव्या माथुर ने अपनी महत्वपूर्ण कहानी पंगा का पाठ किया तो उर्दू का प्रतिनिधत्व किया नजमा उसमान की कहानी मज्जु मियां ने। इस महत्वपूर्ण गोष्ठी में अन्य लोगों के अतिरिक्त शामिल हुए डा. अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेना, सफ़िया सिद्दीक़ी, हुमा प्राइस, परवेज़ आलम, ख़ुर्शीद सिद्दीक़ी, परिमल दयाल, रेहाना सिद्दीक़ी, डा. हमीदा, सीमा कुमार, केबीएल सक्सेना।
(सामने बैठे नजमा उसमान, ज़कीया ज़ुबैरी, दिव्या माथुर)
(खड़े हैं – तेजेन्द्र शर्मा, अचला शर्मा, प्रों.अमीन मुग़ल, सलीम अहमद ज़ुबैरी, परवेज़ आलम)


कथा यूके के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा ने सूचित किया कि यह कथा यू.के. की गोष्ठियों का दसवां साल है। दिव्या माथुर की कहानी पंगा के बारे में उन्होंने कहा कि यह सही मायने में हिन्दी की अंतर्राष्ट्रीय कहानी है। इस कहानी का विषय, निर्वाह, भाषा और बिम्ब सभी नयापन लिये हैं। कहानी का आधार लन्दन की कारों की नम्बर प्लेटें हैं। कहानी की मुख्यपात्रा एक अधेड़ सेवानिवृत भारतीय मूल की महिला है। तेजेन्द्र शर्मा ने आगे कहा कि दिव्या ने इस कहानी में जो टेक्नीक अपनाई है उसमें कहानी सुनाने से हट कर वे कहानी दिखाती हैं।
आनंद कुमार, ज़कीया ज़ुबैरी, उषा राजे सक्सेना, सफ़िया सिद्दीकी, परवेज़ आलम, परिमल दयाल, डा. हमीदा एवं ख़ुर्शीद सिद्दीकी आदि सभी एकमत थे कि कहानी चलती हुई कार की यात्रा के साथ साथ उन सभी सड़कों पर उन्हें साथ ले चलती है। पन्ना (कहानी की मुख्य पात्रा) की हर प्रतिक्रिया उन्हें सहज और सही लगती है।
डा. अचला शर्मा ने दिव्या को उनकी कहानी की भाषा, विट और विषय के चुनाव के लिये बधाई दी। अध्यक्ष प्रो. अमीन मुग़ल के अनुसार कहानी तीन स्तरों पर यात्रा करती है। पहले स्तर पर आती है कारों की नम्बर प्लेटें जिनकी कड़ियां एक कहानी बनाती चलती हैं। उसके बाद आती है पन्ना की कार की यात्रा। ये दोनों स्तर एक सीधी लाइन की तरह चलते हैं। फिर उन नम्बर प्लेटों से दिमाग़ में पैदा हुई भावनाएं, वो अपनी एक कहानी बनाती हैं। वो एक तरह सेतरंगों की तरह चलता है। मज़ेदार बात यह है कि उन तरंगों में भी एक छिपी हुई सरल रेखा चलती रहती है, जो कुछ पन्ना के साथ जो घटित होता है। उन्होंने दिव्या माथुर की कहानी को आधुनिक कहानी की एक अच्छी मिसाल बताया।
नजमा उसमान की कहानी मज्जु मियां के बारे में तेजेन्द्र शर्मा ने बताया कि यह कहानी किस्सागोई शैली की कहानी है जिसमें चरित्र के भीतर की यात्रा न दिखा कर लेखक सारा किस्सा ख़ुद अपने लफ़्जों में बयान करता है। नजमा की भाषा चुटीली थी और अदायगी प्रभावशाली।
उषा राजे सक्सेना, आनन्द कुमार, परवेज़ आलम, ख़ुर्शीद सिद्दीकी, सफ़िया सिद्दीकी, डा. हमीदा, को लगा कि कहानी में मज्जु मियां का चरित्र बहुत मज़ेदार है। कहानी की भाषा बहुत विट लिये है। ज़कीया ज़ुबैरी का कहना था कि पाकिस्तान से ब्रिटेन आये हर घर में मज्जु मियां जैसा एक न एक रिश्तेदार ज़रूर होता है।
वकील होने के नाते, हुमा प्राइस ने दोनों कहानियों को लीगल कोण से परखा। परिमल दयाल का कहना था कि पाठक को कहानी और अधिक प्रभावित कर सकती थी यदि मज्जु मियां के बारे में केवल बताया न जाता बल्कि उन्हें कुछ करते हुए दिखाया जाता। वहीं डा. अचला शर्मा को लगा कि कहानी जिस प्रभावशाली ढंग से शुरू हुई, उसे अंत तक निभाया नहीं जा सका। कहानी बहुत जल्दबाज़ी में ख़त्म कर दी गई। पाठक की प्यास बुझ नहीं पाई।
प्रो. अमीन मुग़ल ने नजमा उसमान की कहानी को और मज्जु मियां के चरित्र को मज़ेदार बताया और कहा कि नजमा जी ने अपने चरित्र के केवल एक पहलू को उजागर किया है। मज्जु मियां के चरित्र के दूसरे पहलू और अन्दरूनी भावनाओं का चित्रण नहीं किया गया। मगर कहानी मज़ेदार बन पाई है।
गोष्ठी में हिन्दी-उर्दू के रिश्तों, आधुनिक कहानी, प्रगतिशील कहानी आदि पर भी जम कर बहस हुई। अंत में तेजेन्द्र शर्मा ने नजमा उसमान एवं दिव्या माथुर को धन्यवाद देते हुए सभी मेहमानों की बारिश के मौसम में कथागोष्ठी में आने के लिये सराहना की।
मेहमानों ने जितना आनन्द कहानियों का उठाया उतना ही लुत्फ़ ज़कीया जी द्वारा सजाई गयी नाश्ते की मेज़ ने दिया। हिन्दी-उर्दु कहानी गोष्ठी के लिये त्यौहार के मौसम के अनुकूल मेज़ को क्रिसमिस के थीम से सजाया गया था। महमानों ने ज़कीया जी की मेज़बानी की खुले दिल से तारीफ़ की। कार्यक्रम के मेज़बान थे ज़कीया एवं सलीम ज़ुबैरी।

--सुरेन्द्र कुमार

आनंदम की दिसम्बर गोष्ठी संपन्न



'आनंदम' संस्था संगीत व साहित्य की एक सुपरिचित संस्था है जो प्रतिमाह दूसरे रविवार को एक काव्य गोष्ठी का आयोजन करती है.  दिनांक 14 दिसम्बर को 'आनंदम' के संस्थापक जगदीश रावतानी के निवास पर इस माह की गोष्ठी का आयोजन हुआ. गोष्ठी में रविन्द्र शर्मा रवि, जगदीश रावतानी, नमिता राकेश, अनुराधा शर्मा, पराग अगरवाल , मनमोहन शर्मा 'तालिब', प्रेमचंद सहजवाला, साक्षात् भसीन, नागेन्द्र पाठक, फखरुद्दीन अशरफ, जीतेन्द्र प्रीतम आदि कवियों ने हिस्सा लिया. गोष्ठी की पहली ग़ज़ल युवा कवयित्री अनुराधा शर्मा ने पढ़ी.  अनुराधा उर्दू शायरी  में एक नया परन्तु सशक्त नाम है, उनके दो शेर प्रस्तुत हैं:

सरेआम  शम्मा  से सवाल  मत  कर 
परवाने  का  जीना मुहाल  मत कर
आंखों  की मुंडेरों  से फिसलते  हुए कहे
माज़ी  का इतना  भी ख़याल  मत कर


पराग अगरवाल की इन पंक्तियों ने प्रभावित कर दिया:

आगाज़ हुआ हैं जबसे तामीर-ए-आशियाने का
तब से इन हवाओ को नाराज़ देख रहा हूँ
या देख रहे हो समंदर में गौर से 
मैं इसका मुसलसल रियाज़ देख रहा हूँ



सुपरिचित कवयित्री नमिता राकेश की कुछ पंक्तियों वातावरण को चटपटा बना दिया:

अपनी क्या तकदीर जनाब/ हवा में जैसे तीर जनाब/ कुछ गजलें कुछ गीत फकत/ है अपनी जागीर जनाब

पर इस पूरे माहौल पर प्रख्यात कवि  रविन्द्र शर्मा 'रवि' अपनी सशक्त गज़लों के साथ छा गए.  पिछले दशक में देश में एक ज़हरीला साम्प्रदायिक वातावरण पनपा. रविन्द्र शर्मा 'रवि' का यह शेर उन सभी सांप्रदायिक ताकतों के लिए एक दो टूक सलाह है.

किसी भी कौम को बदनाम कर देना नहीं अच्छा,
यहाँ पर भी बुरे होंगे, वहां पर भी भले होंगे.


इसी ग़ज़ल के कुछ और नायाब शेर:

जो औरों के बनाए रास्तों पर ही चले होंगे
समंदर में नहीं वो लोग साहिल पर पले होंगे
ये माना रोशनी की है बहुत शोहरत ज़माने में 
मगर शातिर अंधेरे तो चरागों के तले होंगे.


'आनंदम' संस्थापक जगदीश रावतानी ने भी हिंदू-मुस्लिम विषय को अपने ढंग से उठाया:

दिन ईद का है आ के गले से लगा मुझे 
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है.


प्रख्यात कवि बलदेव वंशी ने अंत में बेहद प्रेरणादायक कविताओं से वातावरण की गरिमा बढ़ा दी. अंत में जगदीश  रावतानी द्वारा प्रस्तुत धन्यवाद् प्रस्ताव से गोष्ठी संपन्न हुई.

Tuesday, December 2, 2008

ताज होटेल में हिन्दी सेवी राजीव सारस्वत की मौत

राजीव से ही ईमेल द्वारा प्राप्त उन्हीं का चित्र
आज डॉ॰ कृष्ण कुमार (लंदन में एक हिन्दी-संस्था के प्रमुख जो पिछले हफ्ते भारत में थे) का आगामी कार्यक्रम जानने के लिए जब मैंने कवि देवमणि पाण्डेय को फोन किया तो ज्ञात हुआ कि ताज होटेल में हुई आतंकी घटनाओं ने एक हिन्दी कवि राजीव सारस्वत को भी लील लिया है। मुझे ऐसा लगा कि शायद राजीव सारस्वत नाम का कोई व्यक्ति हिन्द-युग्म को ईमेल करता रहा है। देवमणि जी से चर्चा के दौरान ही मैंने हिन्द-युग्म की ईमेल खाते में 'राजीव सारस्वत' खोजा तो पाया कि दिवंगत राजीव सारस्वत जनवरी २००८ से अक्टूबर २००८ तक लगातार हिन्द-युग्म को ईमेल करते रहे थे। हिन्द-युग्म द्वारा १२ जनवरी २००८ को अणुशक्तिनगर, मुम्बई में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भी राजीव सारस्वत ने काव्य-पाठ किया था। जनवरी से लेकर अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में कई बार राजीव सारस्वत ने हिस्सा लिया। ईद-विशेषांक पर हिन्द-युग्म ने इनकी एक कविता भी प्रकाशित की थी। राजीव सारस्वत कम्प्यूटर से भी खूब जुड़े रहे। ऑरकुट पर इन्होंने 'राजभाषा-सेवी' नाम की एक कम्यूनिटी भी बनाई थी, जिस पर ये अधिक सक्रिय नहीं रह सके। कल मुम्बई में राजीव सारस्वत का अंतिम संस्कार हुआ। दिवंगत आत्मा के बारे में और मुम्बई की घटनाक्रम के बारे में और अधिक लिख भेजा है कवि देवमणि पाण्डेय ने। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दे।

--शैलेश भारतवासी
नियंत्रक, प्रधान संपादक, हिन्द-युग्म


सोमवार 1 दिसम्बर को अपने परिजनों को रोता बिलखता छोड़कर कवि एवं हिन्दीसेवी राजीव सारस्वत पंचतत्व में विलीन हो गए। मुम्बई में पांचसितारा होटल ताज पर हुए आतंकी हमले ने इस मुस्कराती ज़िन्दगी को मौत में तबदील कर दिया। वे इस होटल में अपने अधिकारियों के साथ राजभाषा कार्यान्वयन से जुड़ी संसदीय समिति की बैठक में भाग लेने के लिए आए हुए थे। मुरादाबाद (उ.प्र.) के मूल निवासी 50 वर्षीय राजीव सारस्वत हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरशन लि. (HPCL) में प्रबंधक (राजभाषा) के पद पर कार्यरत थे। हँसमुख और मिलनसार स्वभाव वाले राजीव सारस्वत का व्यक्तित्व अभिनेताओं जैसा था। कवि और लेखक होने के साथ ही प्रश्नमंच और क्विज जैसे कार्यक्रमों के संचालन में उन्हें महारत हासिल थी।

पहली दिसम्बर की शाम को 'राजीव सारस्वत अमर रहे' नारे के साथ जब उनके आवास मिलेनियम टावर, सानपाड़ा, नई मुम्बई से उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई, तो मित्रों, परिचितों, पड़ोसियों, सहकर्मियों, और सहित्यकारों को मिलाकर हज़ार से भी अधिक लोगों ने उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी। रचनाकार जगत से जो लोग वहां मुझे नज़र आए उनमें उनमें शामिल थे- डॉ.विजय कुमार, डॉ.सरोजिनी जैन, विभा रानी, अक्षय जैन, पूर्ण मनराल, बसंत आर्य, अरविंद राही, अनंत श्रीमाली, राजेश्वर उनियाल, वागीश सारस्वत, अशोक तिवारी, सतीश शुक्ला, जाफ़र रज़ा, लोचन सक्सेना, राजेन्द्र गुप्ता, एम.एल.गुप्ता, रविदत्त गौड़, उमाकांत वाजपेयी, सुरेश जैन, अशोक बाफना, गुजराती कवि चेतन फ्रेमवाला और अभिनेता-कवि विष्णु शर्मा। कॉलेज जाने वाली दो बेटियों के पिता राजीव सारस्वत का अंतिम संस्कार यू.के. से आए उनके बड़े भाई नरेश सारस्वत ने किया।

मुस्कराती ज़िन्दगी की दर्दनाक मौत


यह मुस्कराती ज़िन्दगी जिस तरह मौत में तबदील हुई उसे देखकर ये लाइनें बार-बार याद आतीं हैं-

हमेशा के लिए दुनिया में कोई भी नहीं आता
पर जैसे तुम गए हो इस तरह कोई नहीं जाता


मित्रों और सहकर्मियों से टुकड़े-टुकडे में जो जानकारी हासिल हुई उसे सुनकर दिल दहल जाता है। अभी तक फ़िज़ाओं में कुछ ऐसे सवाल तैर रहे हैं जिनके जवाब नहीं मिल पाए हैं। अभी तक इस सचाई का पता नहीं चल सका है कि राजीव सारस्वत आतंकवादियों का शिकार हुए या एनएसजी कमांडों की गलतफ़हमी के कारण मारे गए। कुछ सिरे जोड़कर यह दर्दनाक कहानी इस तरह बनती है। बुधवार 26 दिसम्बर को वे होटल ताज में संसदीय समिति के दौरे के कारण रूम नं.471 में कार्यालयीन ड्यूटी पर तैनात थे। इस कमरे को कंट्रोल रूम (सूचना केन्द्र) का रूप दिया गया गया था। यानी बैठक से संबंधित सभी फाइलों और काग़ज़ात को यहां रखा गया था। राजीव सारस्वत के साथ उनके तीन और सहकर्मी भी यहां मौजूद थे। रात में दो सहकर्मी सांसदों के साथ रात्रिभोज के लिए तल मंज़िल पर डाइनिंग हाल में गए। आधे घंटे बाद तीसरे सहकर्मी ने कहा कि मैं नीचे देखकर आता हूं कि इन लोगों के लौटने में देर क्यों हो रही है। अब राजीव सारस्वत कमरे में अकेले थे। ठीक इसी समय आतंकवादियों ने धावा बोल दिया सहकर्मियों ने तत्काल फोन करके उन्हें हमले की जानकारी दी और सावधानी बरतने की सलाह दी। आतंकवादी गोलीबारी करते हुए सीधे ऊपर चढ़ गए। इसका फ़ायदा उठाकर ताज के स्टाफ ने डाइनिंग हाल के लोगों को पिछले दरवाज़े से सुरक्षित बाहर निकाल दिया। पहले सेना ने और कुछ घंटे बाद एनएसजी ने ताज को पूरी तरह अपनी गिरफ़्त में ले लिया। राजीव सारस्वत अपने मोबाइल के ज़रिए लगातार अपने परिवार और मित्रों के सम्पर्क में थे। लग रहा था कि थोड़ी देर में यह खेल समाप्त हो जाएगा मगर ऐसा नहीं हुआ और रात गुज़र गई।

राजीव सारस्वत के सहकर्मियों ने पुलिस से अनुरोध किया कि कमरा नं.471 में एचपीसीएल का कंट्रोल रूम है। उसमें राजीव सारस्वत फंसे हुए हैं। कृपया यह जानकारी एनएसजी तक पहुंचाएं। पुलिस ने बताया कि ताज पर अब सारा नियंत्रण एनएसजी का है, और उनसे सम्पर्क करने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। एक मित्र ने बताया कि एचपीसीएल के अधिकारियों ने दिल्ली तक फोन किया। मगर राजीव सारस्वत की मदत में कामयाब नहीं हो पाए। गुरुवार 27 नवम्बर को अपराह्न 3.45 बजे राजीव सारस्वत के कमरा नं. 471 पर दस्तक हुई। राजीव ने समझा कि बचाव दल आ गया है। फिर भी उन्होंने अंदर की जंज़ीर लगाकर बाहर झांकने की कोशिश की, बाहर खड़े आतंकवादी ने गोली चला दी जो उनके हाथ में लगी। उन्होंने फौरन दरवाज़ा बंद करके अपने एक सहकर्मी को फोन किया। सहकर्मी ने उन्हें सलाह दी कि आगे कोई कितना भी खटखटाए मगर दरवाज़ा नहीं खोलना। राजीव ने तत्काल पत्नी को फोन किया कि हाथ में गोली लग गई है दर्द बहुत है मगर किसी तरह बरदाश्त कर लेंगे।

शाम 5.30 बजे मित्र अरविंद राही ने फोन पर मुझे बताया कि राजीव से सम्पर्क टूट गया है और घर वाले बहुत परेशान हैं। हमने अस्पताल से लेकर अख़बारों तक में फोन किया मगर कोई सुराग नहीं मिला। ऐसी चर्चा है कि पहले मास्टर की से कमरा नं. 471 को खोलने की कोशिश की गई मगर नहीं खुला क्योंकि यह भीतर से बंद था। आशंका यह जताई जा रही कि जब एनएसजी के कई बार खटखटाने के बावजूद राजीव सारस्वत ने दरवाज़ा नहीं खोला तो उन्हें लगा कि इसमें ज़रूर कोई आतंकवादी छुपा हुआ है हो सकता है कि हाथ से रक्तस्राव और दर्द के कारण राजीव सारस्वत बेहोशी की हालत में पहुंच गए हों या डर के कारण उन्होंने दरवाज़ा न खोला हो बहरहाल बताया जा रहा है कि एनएसजी ने विस्फोटक से दरवाज़े को उड़ा दिया और पल भर में सब कुछ जलकर राख हो गया। राजीव सारस्वत का भरा पूरा 100 किग्रा का शरीर सिमटकर 25 किग्रा का हो गया। पहले तो परिवारवालों ने इस शरीर को पहचानने से इंकार कर दिया क्योंकि पहचान का कोई चिन्ह ही नहीं बचा था मगर बाद में स्वीकार किया क्योंकि उस कमरे में राजीव सारस्वत के अलावा कोई दूसरा था भी नहीं।

मुम्बई में घटी इस त्रासदी को कवर करने वाले हिन्दी समाचार चैनलों ने हमेशा की तरह ग़ैरजिम्मेदारी
का परिचय दिया। उनके संवाददाता ऐसे चीख़-चीख़ कर बोल रहे थे जैसे ज़ुर्म या अपराध की रिपोर्टिंग करते हैं। एक चैनल ने जोश की सीमाएं लांघकर बताना शुरू कर दिया कि रूम नं. 471 को आतंकवादियों ने अपना कंट्रोलरूम बना लिया है। जब उन्हें फोन करके अधिकारियों ने सूचित किया कि यह तो एचपीसीएल का कंट्रोलरूम है और उसमें राजीव सारस्वत हैं तो उन्होंने अपना यह समाचार तो हटा लिया मगर दर्शकों को सच नहीं बताया।

फिलहाल राजीव सारस्वत के आकस्मिक निधन से बहुत लोंगों ने बहुत कुछ खोया है जिसकी क्षतिपूर्ति सम्भव नहीं है। ईश्वर उनके परिवार को शक्ति दे कि वे इस गहरे दुःख को सहन कर सकें एक जागरूक कवि होने के नाते राजीव प्राय: सामयिक विषयों पर लिखते रहते थे 10 अक्तूबर को श्रुतिसंवाद कला अकादमी के कवि सम्मेलन में उन्होंने एक कविता सुनाई थी, उसकी अनुगूंज अभी भी मुझे सुनाई पड़ रही है-

नए दौर को अब नया व्याकरण दें
विच्छेद को संधि का आचरण दें


देवमणि पाण्डेय, मुम्बई

Monday, December 1, 2008

वरिष्ठ कवयित्री शान्ति देवी वर्मा का निधन

जबलपुर, २४-११-२००८। वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा का ८६ वर्ष की आयु में आज जबलपुर में निधन हो गया। बापू के नेतृत्व में स्वंतंत्रता सत्याग्रही बनने के लिए ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले राय बहादुर माता प्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री शान्ति देवी का विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वाला प्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री राजबहादुर वर्मा सेवा निवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था। साहित्यिक संस्था 'अभियान' जबलपुर, रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर नगर की साहित्यिक चेतना को गति देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल', पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा समाज व् पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत समर्पित रहने की प्रेरणा उनहोंने दी। उनके निधन के साथ इतिहास का एक अध्याय समाप्त हो गया। उनके अन्तिम संस्कार में सनातन सलिला नर्मदा तट पर ग्वारीघाट में बड़ी संख्या में साहित्यकार, समाज सुधारक तथा सम्बन्धी सम्मिलित हुए।