चेंबूर के पास स्थित गोवंडी झुग्गी बस्ती मुम्बई महानगरीय इलाकों में संभवत: सबसे अधिक त्रासद स्तिथि मे है। महानगर के एक दूर दराज किनारे पर स्थित होने के कारण इस बस्ती की तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है। इस बस्ती मे लगभग बीस पच्चीस हजार निवासी भयंकर गरीबी के साथ साथ अकल्पनीय नारकीय जीवन जीने के लिये अभिशप्त हैं।
महानगर पालिका ने आसपास की संभ्रांत बस्तियों का कूडा कचरा इसी बस्ती मे जमा कर रखा है। यहां मुम्बई के ज़हरीले कचरे के कई पहाड से बन गये हैं जो दूर से ही आगन्तुकों का ध्यान खींचते हैं।बरसात के दिनों मे इन कचरे के पहाडों का कचरा बारिश के साथ बहकर बस्ती की गलियों मे दमघोंटू दुर्गंध पैदा करता है।बस्ती से होकर बहने वाला गन्दा नाला यहां के निवासियों की मुसीबत और अधिक बढा देता है। एक तरफ गंदा नाला और दूसरी तरफ कचरे के पहाड़ मिलकर ऐसी सामूहिक दुर्गंध पैदा करते हैं कि नाक पर कपडा रखने के बाद भी तीखी बदबू से निजात नही मिलती। यहां चारों तरफ मक्खी और मच्छरों का साम्राज्य है। साफ हवा,साफ पानी और पौष्टिक भोजन के अभाव मे बस्ती के लोगों मे कई बीमारियां चिंताजनक स्तिथि मे पहुंच गई हैं।
बस्ती के अधिकांश घरों मे टी.वी.और फेफडों से सम्बन्धित कई बीमारियां फैल चुकी हैं। स्कूली बच्चे भी इन गंभीर बीमारियों की चपेट मे हैं। बच्चों मे इन घातक बीमारियों का संक्रमण एक खतरनाक संकेत है। समय रहते हुए मुख्यत: गंदगी के कारण फैलने वाली इन बीमारियों की रोकथाम बहुत जरूरी है।
इस बस्ती के गरीब मेहनतकश मजदूर परिवारों के पास न अपने संसाधन हैं और न इनके पास संबन्धित सरकारी विभागों को अपनी स्थिति से अवगत कराने का समय एवम उचित जानकारी है। ज्यादातर लोग अनपढ हैं। बहुत से बच्चे भी 4 वर्ष तक के बच्चों की अनिवार्य शिक्षा कानून के बावजूद स्कूल नही जा पाते।एक तरह से गोवंडी बस्ती मुम्बई महानगर के माथे पर एक ऐसा कलंक है जिसके लिये हम सब जिम्मेदार हैं।यहां के गरीब लोग साक्षात नरक/ दोजख मे रह रहे हैं। यह नरक भी महानगर के संभ्रांत लोगो की जीवन शैली से ही उपजा नरक है।लेकिन इस नरक की सजा गोवंडी के निवासी भुगत रहे हैं।
कुछ समय पहले धर्म भारती मिशन नामक सामाजिक उत्थान के कार्यों मे जुटी संस्था ने इस बस्ती के तीन स्कूलों के बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने एवम शिक्षा का स्तर सुधारने तथा कम्पयूटर की शिक्षा देने की एक योजना शुरू की थी।धीरे धीरे कई सहृदय लोगों के सहयोग से इस संस्था ने यहां शौचालय आदि बनवाकर इलाके की सफाई आदि पर भी काफी काम किया है ।यह संस्था अपने सीमित साधनो के साथ आर.टी आई के माध्यम से भी यहां के निवासियों मे जागरूकता लाने के लिये प्रयास रत है।
धर्म भारती मिशन हालाकि पूरे प्रयत्न से अपने काम मे जुटा है लेकिन यहां की समस्याओं को देखते हुए इसे भी आटे मे नमक ही कहा जायेगा। इस काम को काफी बडे स्तर पर सरकारी एवम गैर सरकारी संस्थाओं की मदद से तेजी से आगे बढाने की आवश्यकता है। कई संस्थाओं एवम प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों ने धर्म भारती मिशन के साथ जुडकर गोवंडी के समग्र विकास की एक महत्वाकांक्षी योजना ‘गोवंडी कायाकल्प परियोजना’ शुरु की है । इस परियोजना मे जनता के सहयोग से गोवंडी को प्रदूषण एवम बीमारी से मुक्त कर बस्ती के बच्चों को स्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराकर यहां का समग्र विकास सुनिश्चित किया जाएगा।गोवंडी का कायाकल्प कर इसे एक आदर्श बस्ती बनाकर देश और दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना है।इस योजना को सफलता पूर्वक शीघ्रातिशीघ्र पूरा करने के लिये सभी मुम्बई वासियों के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है।
आप सभी से अनुरोध है कि इस पवित्र काम मे श्रमदान एवम आर्थिक सहभागिता कर ‘गोवंडी कायाकल्प परियोजना’ को सफल बनाने मे समुचित सहयोग करें। धर्म भारती मिशन के इस काम मे सहयोग के लिये 'नवसृष्टि इंटरनेशनल ट्रस्ट' को देय चेक या ड्राफ्ट निम्न पते पर भेज सकते हैं।
संयोजक - परमजीत सिंह ( 98920-59168) ई-मेल- sing_param@rediffmail.com
नोट: हाल ही मे लेखक आर.के.पालीवाल और आबिद सुरती ने धर्म भारती मिशन के लिये गोवंडी झुग्गी बस्ती पर एक डोक्यूमेंटरी फिल्म बनाई है। इसे सभी मुम्बई और देश वासियों को देखना चाहिये।
साहित्य से जुड़ी असंख्य संस्थाओं में से अधिकतर की एक प्रमुख सीमा यही रहती है कि वे सब किसी न किसी एक शहर के साहित्यकारों तक सीमित रहती हैं. उनके मासिक या वार्षिक कार्यक्रम अपने शहर से जुड़े रहते हैं और यहाँ तक कि उनके पुरस्कारों सम्मानों की सीमा भी उसी शहृ या उसके आसपास के भूगोल तक महदूद रहती है. ऐसे में यदि कोई संस्था अखिल भारतीय स्तर पर एक से बढ़ कर एक साहित्यकारों की खोज करती है तो यह अपने आप में एक बेमिसाल बात है. उर्दू अदब से जुडी संस्था ‘जवाब-ए-शिकवा’ एक ऐसी ही संस्था होने का गर्व रखने का अधिकार रखती है, यह इस पत्रकार के सामने तब प्रमाणित हुआ जब दि. 24 अक्टूबर 2010 को मध्यप्रदेश के धार शहर में ‘जवाब-ए-शिकवा’ द्वारा आयोजित एक शानदार मुशायरे में शरीक होने का सुअवसर मिला. उस मुशायरे में न केवल धार या आसपास के कुछ सुपरिचित हस्ताक्षर शायरी प्रस्तुत करने गए थे वरन् दिल्ली, जम्मू व गुवाहाटी जैसे दूरस्थ शहरों के मशहूर शायर भी शिरकत करने आए थे. मुशायरा धार शहर के होटल नटराज पैलेस के सभागार में रखा गया और इस में धार की प्रसिद्ध हस्तियों में से श्री मनोज गौतम मुख्य अतिथि थे. उर्दू के जाने माने हस्ताक्षर श्री माहताब आलम इसमें विशिष्ट अतिथि थे.
मुशायरा शुरू होने के इन्तज़ार में होटल नटराज पैलेस का सभागार उर्दू अदब के चाहने वालों से खचाखच भर गया था और मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि के स्वागत के बाद मुशायरे की शुरुआत नॉएडा सेपधारी युवा शायरा पूर्णिमा चतुर्वेदी ‘माह’ की शानदार गज़लों से हुआ जिस के कुछ शेर यहाँ प्रस्तुत हैं:
पूर्णिमा चतुर्वेदी ‘माह’
मैं टूटे आईने को देख कर अक्सर यही सोचूँ
कि मेरे हाथ से कैसे वो पत्थर चल गया होगा
और
कब तक वो मेरी फ़िक्र में दरिया को दुआ दे
मैं डूब चुका हूँ कोई साहिल को बता दे.
दूसरे नंबर पर ही जो शायर आए, उन्होंने अपनी जानदार शायरी से श्रोताओं के दिलों की धडकनें तेज़ कर दी. जैसे:
जिसे किसी ने बनाया न हमसफ़र अपना
वो शख्स काफिलासालर होने वाला है.
(काफिलासालार = काफिले का नेता)
और
वो एक पल के लिये छोड़ कर गया था मुझे
तमाम उम्र मेरी इन्तेज़ार में गुज़री.
उद्घाटन
लियाकात जाफरी जम्मू से पधारे उर्दू व फारसी के विद्वान हैं जिन का शायरी का दीवान ‘बयाज़’ शीर्षक से उर्दू शायरों के बीच बहु-चर्चित है. इसके अलावा उनकी तीन पुस्तकें शोध व आलोचना पर हैं व एक पुस्तक फारसी से उर्दू में अनुवाद की है. वे अंजुमन-ए-तककी-ए-उर्दू की जम्मू कश्मीर शाखा की एक पुरस्कार समिति के अध्यक्ष भी हैं. जम्मू निवासी होने के कारण जम्मू कश्मीर की शुरू से चली आ रही दर्दनाक उथल पुथल के प्रति एक संवेदनशील कश्मीरी नज़रिया भी रखते हैं.
वैसे दिल की धडकनें तेज़ करने वालों की वहाँ कमी नहीं थी. उर्दू के एक से बढ़ कर एक मंजे हुए शायर वहाँ मौजूद थे और सभागार में भी एक से बढ़ कर एक कद्रदान दाद देने को ‘वाह वाह’ समेत तैयार. उस सभागार में एक नज़र डालने पर यही लगा कि अधिक से अधिक श्रोता उर्दू भाषा व शायरी की बारीकियों को समझने वालों में से हैं बल्कि उनमें से कई स्वयं शायर भी हैं.
वर्त्तमान परिस्थितियों पर तंज़ का एक नमूना देखिये, सतलज राहत का एक शेर:
ये ज़िन्दगी भी बीमारी की तरह होती है
ये मुंबई में बिहारी की तरह होती है
आज उर्दू शायरी सिर्फ शराब और शबाब तक ही महदूद नहीं है, यह साबित करने वालों की भी वहाँ कमी नहीं थी. सामयिकता को उजागर करती इस शायरी को चाहने वालों से भी सभागार भरा था:
ज़हीर राज़
किस कदर कल बह गया मेरा लहू
सुर्ख़ियों में आ गए अखबार सब
दो कदम घर से कभी निकले नहीं
रास्तों पे तब्सिरा तैयार सब
हर ज़बां पर अम्न का नारा मगर
जंग लड़ने के लिये तैयार सब
आज शायरी एक समुन्दर सी है, विषयों ज़मीनों की कोई सीमा नहीं. जिंदगी से जुडी शायरी हो या रिश्तों के खोखलेपन का ज़िक्र, शायर अपने वक्त की नब्ज़ को बड़ी नजाकत से पकड़े रहता है और दमदार से दमदार अलफ़ाज़ में उसे अभिव्यक्त करता है. जैसे:
माहताब आलम
हमसफ़र भी कभी मंज़िल से बिछड जाते हैं
उम्र भर तू भी मेरा साथ निभाने से रहा
रास्ता अपने लिये खुद ही तराशूं कोई
ये ज़माना तो कोई राह दिखाने से रहा
या
कमर धारवी
ऐ मेरे भाई तेरा दिल तो साफ़ है लेकिन
तेरी बातों में अहंकार बहुत बोलता है
गुवाहाटी से आई कवयित्री रागिनी गोयल ने पहले ही शेर में वाह वाह की धूम मचा दी:
सफर की ज़िन्दगी अब बेवजह की सैर लगती है
मुझे अपनी ही सूरत आईने में गैर लगती है
इसके अतिरिक्त उनकी यह गज़ल भी बहुत पसंद की गई (कुछ शेर):
हर दरीचा ताके हर एक अटारी देखे
शहर सारा ही शहंशाह की सवारी देखे
दर दरीचा तो कोई चारदीवारी देखे
जाते जाते किले को राजकुमारी देखे
अनुराधा शर्मा
अनुराधा शर्मा (फरीदाबाद से) एक उभरती हुई शायरा हैं जिनकी शायरी से उनमें काफी उमीदें बंधती हैं. कुछ शेर:
खामशी चल पड़ी हलचलों की तरफ
बाद-ए-मंज़िल बढ़ी रास्तों की तरफ
ये परिंदा ही शायद समझ पाएगा
क्या तकूं हूँ मैं यूं बादलों की तरफ
दिल्ली के शायर अनिल पराशर ‘मासूम शायर’ ने एक संवेदनशील रचना प्रस्तुत की. यह उनकी एक बहुचर्चित रचना है जो उन्होंने अपने स्वर्गीय पिता के विषय में रची थी तथा विश्व पुस्तक मेले में ‘हिन्दयुग्म प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित संकलित कविता संग्रह ‘अनमोल संचयन’ के विमोचन कार्यक्रम में पढ़ कर भी उन्होंने बेहद प्रभावित किया था. वे पिता के बारे में लिखते हैं: (दो शेर)
हाथ काँधे पे बस एक रखता था वो
इन आँखों में सब देख सकता था वो
उसकी खफ्गी को कोई भी समझेगा क्या
मैं संवारता था जब भी बिगड़ता था वो
बुज़ुर्ग शायर नसीर अंसारी का एक शेर:
ये सिर्फ बनने सँवरने की शय नहीं है नादां
अगर शऊर-ए-नज़र है तो आईना पढ़ना
मुशायरे के सभी शायरों की पंक्तियाँ देना संभव नहीं, पर यहाँ प्रस्तुत हैं मुशायरे के अंतिम शायर पराग अग्रवाल की कुछ पंक्तियाँ:
इश्क में हाल क्या है क्या कहिये
जूनून है, करार है. क्या है?
वो जो दरिया में है मुसाफिर है
वो जो दरिया के पार है क्या है
श्रोता
इस पूरे मुशायरे के आयोजन में दो शख्सियतों का विशेष योगदान रहा: एक तो जर्मनी से आए जतीन दत्तव दूसरे धार निवासी पराग अग्रवाल. जतीन दत्त ने मुझ से हुई संक्षिप्त बातचीत के दौरान कहा कि जवाब-ए-शिकवा चाहता है कि अधिक से अधिक लोग इस से जुड़ें. जवाब-ए-शिकवा शायरों के आपसी मेल मिलाप व विचार विमर्श के लिये इस से पूर्व तीन बड़ी बड़ी सभाएं कर चुका है जिन्हें उसने राब्ता 1, 2 व 3 कहा और जो क्रमशः जयपुर नई दिल्ली व इंदौर में 2007, 2009 व 2010 में हुई. ‘जवाब-ए-शिकवा’ की प्रमुख गतिविधियों में मासिक गोष्ठियां, उर्दू अदब का मूल्यांकन, उर्दू कक्षाए व एक पुस्तकालय भी हैं. उनकी भावी योजनाओं में एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पत्र, एक प्रकाशन संस्थान व शायरी में छुपे रुस्तमों की खोज भी है. संस्था इस बात का भी एक सुखद स्वाभिमान रखती है कि उसके पास प्रगति के लिये समुचित फंड भी उपलब्ध हैं तथा इस मामले में वह किसी पर निर्भर नहीं है.
मुशायरा शाम सात बजे शुरू हुआ लेकिन मुशायरे में आए शायरों की एक अनौपचारिक सभा दोपहर को हुई जिसमें कुछ शायरों ने पराग अग्रवाल के परिश्रमी स्वाभाव की बेहद प्रशंसा की व कुछ ने यहाँ तक कहा कि पराग इस कार्यक्रम की तैयारियां करते हुए एक किसान से कम नहीं लग रहे. जतीन ने इच्छा ज़ाहिर की कि हर शह्र में ‘जवाब-ए-शिकवा की एक मज़बूत टीम ज़रूर होनी चाहिए और हर शह्र में एक पराग अग्रवाल होना चाहिये. मुशायरे की अंतिम रचना तो पराग ने पढ़ी पर उस के बाद भी धार के सुपरिचित हिंदी कवि संदीप शर्मा ने सब को बधाई देते हुए कहा कि हिंदी और उर्दू के बीच कोई दूरी है ही नहीं. दोनों भाषाओँ के साहित्यकार आपस में प्रेम और सद्भावना से जुड़े हैं. इस के साथ ही उन्होंने अपनी एक सशक्त व्यंग्य कविता भी प्रस्तुत की जिसमें आदिम मानव समाज की और आज के अति तकनीकी आधुनिक समाज की बहुत सशक्त व काफी कुछ व्यंग्यात्मक तुलना भी की. आदिम मानव के पास न तो ए.टी.एम था न ही क्रेडिट कार्ड, पर वह कम से कम मनुष्य तो थ! शायद आज के युग में आधुनिकता अधिक है, उस युग में मानव की निश्छलता अधिक थी.
मुशायरे के अंत में सभी शायरों व श्रोताओं के लिये होटल नटराज पैलेस में तैयार किया गया स्वादिष्ट भोजन था पर भोजन तक पहुँचते पहुँचते तारीख बदल चुकी थी, हालांकि एक दूसरे से बिछुड़ने का दिल किसी का नहीं हो रहा था.
हरगोविंद जी का मुक्त दिवस हो
या स्वामी महावीर को निर्वाण मिला हो
राम जी अयोध्या आ पहुंचे हों
या पांडव ने पूरा बनवास किया हो
हो कारण कोई भी
प्रेम का तोरण हर द्वार सजाएँ
आओ एक दीप जलाएं
दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जो अलग अलग नामो से विभिन्न कारणों से बहुत सी धर्मो में मनाया जाता है। अंधकार पर प्रकाश की, अज्ञान पर ज्ञान की और बुराई पर अच्छाई जी विजय का प्रतीक है दीपावली। प्रकाश के इस त्यौहार को डी अफ डब्लू इंडियन कल्चरल सोसईटी ने एक बड़े मेले के रूप में २००६ में मानना प्रारंभ किया था। तब से ये पारम्पर निरंतर चली आ रही है। इसी परंपरा के तहत इस बार पांचवां दीवाली मेला बहुत ही धूमधाम और शान से मनाया गया ,इस मेले में करीब ८० से ९० हजार लोग शामिल हुए। लोगों का आना जाना शाम से ही प्रारंभ होगया था। खाने पीने के ९० स्टौल थे जहाँ भारत के हर प्रदेश का खाना था। खाने की महक पूरे वातावरण को और भी मेले जैसा बना रही थी।किड्स कौर्नर में बच्चों ने बहुत आनन्द उठाया। मेले में कहीं बन्जी जम्पिंक हो रही थी तो कहीं बच्चे हाथी और ऊंट की सवारी कर रहे थे। बाहरी स्टेज पर देश के विभिन प्रान्त का नृत्य हो रहा था जिसको लोगो ने बहुत सराहा तथा गरबा और भांगड़ा का खूब लुत्फ़ उठाया। इस के लिए श्री कृष्ण परमार बधाई के पात्र हैं।
दी ऍफ़ वाब्लू इंडियन कल्चरल सोसाईंटी के अध्यक्ष श्री सतीश गुप्ता जी जो की स्वयं स्टेडियम के अन्दर और बाहर के स्टेज के कार्यक्रम की देख भाल कर रहे थे से जब मेले की सफलता के बारे में बात की तो उन्होंने कहा की "ये हमारा पांचवां मेला है और हर बार ये पहले से बेहतर हुआ है। लोगों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है। इस बार ये मेला कॉटन बौल स्टेडियम में हुआ और बहुत हो सफल रहा। इस बार हमको डैलस के मेयर और आसपास के शहरों के मेयर का बहुत ज्यादा सहयोग मिला है। पहले जब हमने ये प्रारंभ किया था तो मन में शंका थी कि पता नहीं लोगों को पसंद आएगा या नहीं यहाँ के लोग क्या कहेंगे पर जैसे जैसे देसी लोग बढ़ते जा रहे हैं। लोगों को हमारी सभ्यता और संस्कृति के बारे में पता चलता जा रहा है।और अब हम को सभी का सहयोग मिलने लगा है। इस मेले की सफलता का श्रेय मेरे साथियों और स्वयं सेवियों को जाता है जिन्होंने दिनरात मेहनत की है।"
डैलस रंगमंच द्वारा इस मौके पर रामलीला का आयोजन किया गया था। जैसे ही रामलीला प्रारंभ हुई सभी लोग अन्दर हौल में आ के बैठ गए। एक घंटे चली इस रामलीला ने सभी को मन्त्र मुग्ध कर दिया। रामायण के पात्रों की वेश-भूषा, मंच सज्जा और पत्रों का अभिनय ऐसा था कि अमरीका में बसे भारतीयों को अपने बचपन के दिनों की रामलीला याद आ गई। लेखक, निर्देशक जयंत चौधरी, और सोनल की कल्पनाशीलता ने रामलीला को दर्शकों के दिलो-दिमाग में ऐसा बसा दिया कि बच्चों से लेकर बूढ़े तक इसके एक एक दृश्य, संवाद और सुंदर प्रस्तुति को लेकर अपनी प्रशंसा के भाव छुपा नहीं पा रहे थे। सूत्रधार सोनल पौद्दार और सौम्या सरन ने बहुत खूबी से इस भूमिका का निर्वाह किया। जिस की वजह से रामलीला और भी उत्तम हुई कल्पना फ्रूटवाला। डॉ श्री प्रकाश कागाल, श्री अरुण रावत, सुश्री वन्दिता पारिख, श्री राज त्रिपाठी, श्री तरुण सरन, डॉ श्री थीरू विजय, सुश्री नूतन अरोरा, सुश्री ज्योति कुमार, श्री तरुण धाम, सुश्री पारुल भाटिया आदि ने रामलीला के मुख्य पात्रों की भूमिका का निर्वाह किया। बाल कलाकारों में मुख्य थे अर्पित, सोनाक्षी, लक्ष्य, आदित्य, मेहर, मलिका, पंकज, रोहन शिवम् संजना मेघना मुकुंद, विवेक, विनायक, राघव। रामलीला की स्वयंसेवी टीम में थे श्री राम साहनी, श्री विनय सक्सेना, नूतन अरोरा, सुश्री राधिका गोयल, सुश्री शारदा रावत, श्री राजेश रैना, सुश्री नीरजा शेठ, सुश्री रश्मि भाटिया, सुश्री मंजू श्रीवास्तव, सुश्री किनी परिवार, श्री किशोर फ्रूटवाला इन सभी के सहयोग के बिना रामलीला का संम्पन हो पाना अकल्पनीय था। रावन दहन के साथ ही पूरा स्टेडियम जय श्रीराम के नारों से गुंजायेमान हो उठा।
दीवाली मेले को सफल बनाने में श्री रमेश गुप्ता जी का बहुत बड़ा योगदान है।रमेश जी ने प्रायोजकों से ले के बौलीवुड शो तक सभी कुछ का बखूबी इंतजाम किया। इनकी कार्य कुशलता की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। श्री रमेश गुप्ताजी जो हर साल भारत से अमेरिका दिवाली मेले का आयोजन करने ही आते हैं। उन्होंने बताया अमेरिका से भारतीय सर्दियों की और गर्मी की छुट्टियों में मुख्यतः भारत जाते हैं, तो उनको कभी भी रामलीला देखने को नहीं मिल पाती है तो सोचा की हमारे बच्चे अपनी इस संस्कृति को भी देखें और इस का आनन्द लें। यही सोच के हम हर साल ये मेला सजाते हैं। रमेश गुप्ता जी ने आगे कहा की बिना प्रायोजकों के सहयोग से कार्यक्रम सफलता पूर्वक करना कठिन था। हम सिटी बैंक वालमार्ट जी टीवी, स्टार टी वी, सबवे, पेप्सिको, टी एक्स यु एनर्जी, देसी प्लाज़ा टेक्सस इंस्ट्रुमेंट्स, एस बी इंटरनेशनल, एकल विद्यालय, फेन एसिया, देसी प्लाजा। गुप्ता एंड एसोसियेट इंक, पटेल ब्रदर्स, गुप्ता अग्रवाल फाउन्डेशन, गिडो मैथ्स एंड लर्निंग। राज विडिओ फोटोग्राफी डॉ राज एंड प्रतिभा तन्ना के बहुत बहुत आभारी हैं। मै हृदय से सभी का धन्यवाद करता हूँ। राजन और उनकी टीम ने हमारी बहुत सहायता की है मै उनका भी बहुत आभारी हूँ।
मेले का अंतिम चरण था सुनिधि चौहान का कंसर्ट। लोग बेताबी से अपनी चाहिती गायिका का इंतजार कर रहे थे। उनके स्टेज पर आते ही पूरा स्टेडियम तालियों की गडगडाहट से गूंजा उठा। सुनिधि ने लोगों का भरपूर मनोरंजन किया। इसके बाद इंडियन आइडल और बदमाश कम्पनी के मियांग चेंग और अयूब पटेल ने भी लोगों का बहुत मनोरंजन किया। उनके गाये गानों पर लोग झूमते नजर आये। यहाँ का साउंड सिस्टम बहुत अच्छा था श्री चाट गणेश जी ने। जिसका पूरा इंतजाम किया था। वो बधाई के पात्र हैं।
स्टेडियम की सारी व्यवस्था अति उत्तम थी। श्री यू के गुप्ता जी जो की बहुत अच्छे समझौता वार्ताकार (निगोशियेटर ) माने जाते हैं। उनके कुशल मेनेजमेंट और निगोशियेशन कि वजह से स्टेडियम की अच्छी व्यवस्था संभव हो सकी। पूरा मेला बहुत ही अच्छी तरह से प्लान किया गया था। सब कुछ सुनियोजित ढंग से हुआ। ये विभाग श्री वी के गुप्ता जीके पास था जिन्होंने बहुत अच्छी तरह इतने विभिन्न कार्यक्रमों को एक सूत्र में पिरो के माला सा बना दिया। .डॉ नरेश गुप्ता जी जो की कैंसर क्लिनिक चलाते हैं उन लोगों की सहायता के लिए जिनके पास इन्शोरेंश नहीं है।इस तरह से सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बहुत उत्साह से भाग लेते हैं और तन मन धन से सहायता करते हैं।
रमेश गुप्ता जी ने एक बहुत सुंदर बात की उन्होंने कहा की वो अब मेले की सांस्कृतिक बागडोर नवजवान बच्चों को सौपना चाहते हैं। इस बार मेले में यंग बच्चों ने बहुत मेहनत से काम किया जिनमे हैं अरिश गुप्ता अर्नव गुप्ता, सुनैना, विवेक गुप्ता और देव गुप्ता।
कौन्सर्ट की समाप्ति पर जी आतिशबाजी हुई बहुत देर तक चली। ऐसा लगता था कि पूरा आकाश दुधिया प्रकाश से भर गया हो और लाल, सफ़ेद, हरे, सुनहरे रंगों के फूल आकाश में खिल उठे हो। ये पूरा समां दर्शनीय था। मेले के बारे में जब लोगों से पूछा तो किसीने कहा की मुझको तो अपना बचपन याद आ गया, किसी ने कहा मेरे बच्चों को हाथी और ऊंट की सवारी कर के बहुत आनद आया, तो किसीने कहा मेले का पूरा आन्नद उठाया फिर रामलीला और सुनिधि का गाना गाना अन्त में आतिशबाजी मनोरंजन के लिए इससे ज्यादा कोई और क्या मांगेगा।हम तो अगले दिवाली मेला का इंतजार करेंगे।
मेला देखने के लिए लिटिल रौक अरकेंसा, अर्डमोर, फेड्विल, हीयूस्टन, औसटिन, शिकागो न्यू योर्क, कैलिफोर्निया से लोग आये थे। इस मेले की खास बात ये थी कि इसमें भारतियों के अलावा पाकिस्तानी, नेपाली और अमेरिकन भी शामिल हुए।
लोक सभा अध्यक्षा ने किया दूसरी हरित क्रान्ति का आवाहन
शियाट्स द्वारा नया कृषि विज्ञान केन्द्र खोलने की योजना: डा. आर.बी. लाल
कुलाधिपति डॉ. मनी जैकब लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को डोक्टरेट की उपाधि से सम्मानित करते हुए
शताब्दी समारोह के अन्तर्गत सैम हिग्गिनबॉटम इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एण्ड साइंसेस (पूर्व नामः एलाहाबाद एग्रीकल्चर डीम्ड यूनिवर्सिटी) का छठा दीक्षान्त समारोह दिनांक ३ नवंबर, २०१० को सम्पन्न हुआ। समारोह की मुख्य अतिथि श्रीमती मीरा कुमार जी, माननीया अध्यक्षा, लोक सभा, भारत सरकार थीं। समारोह में विशिष्ट अतिथि के तौर पर वुँवर रेवती रमण सिंह, सांसद, इलाहाबाद, डा. सैयद इरॉडॉस्ट, अध्यक्ष एशियान इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बैंकाक, डा. अरविन्द कुमार, उपमहानिदेशक, आईसीएआर, डा. जनक पाण्डेय, कुलपति, बिहार सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, डा. पी.वी.जगमोहन, मण्डलायुक्त इलाहाबाद, प्रो. विलास एम. सलोखे, कुलपति काजीरंगा कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट आसाम तथा अशोक वाजपेयी थे।
कार्यक्रम की शुरुआत बिशप इसीडोर फर्नानडीज ने प्रार्थना से की जिसके बाद कुलाधिपति डा. मनी जैकब ने विश्वविद्यालय के छठे दीक्षान्त समारोह की घोषणा की। कुलसचिव प्रो.(डा.) ए.के.ए. लॉरेन्स ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया तथा विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को बताया। कुलपति प्रो.(डा.) राजेन्द्र बी. लाल ने विश्वविद्यालय के सौ वर्षों की सफलतम यात्रा का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कृषकों की उन्नति हेतु प्रसार निदेशालय के अनतर्गत एक कृषि विज्ञान केन्द्र तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से तकनीकी प्रशिक्षण तथा निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र द्वारा उत्तम किस्म के बीज, किसानों को मुहैया कराये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने ५३.६ एकड़ भूमि इलाहाबाद जनपद में जमीन क्रय कर ली है जिस पर नया कृषि विज्ञान केन्द्र शीघ्र ही खोलने की योजना है ताकि इलाहाबाद के अधिक से अधिक किसानों मदद मिल सके। इलाहाबाद के मण्डलायुक्त डा. पी.वी. जगनमोहन ने समारोह में ग्रीन स्कूल मिशन नामक योजना का आवरण मुख्य अतिथि श्रीमती मीरा कुमार जी से कराया तथा कहा कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग से निपटना है। इसके अन्तर्गत समस्त स्कूलों में, प्राइमरी, जूनियर आदि के क्लास २ से ५, तथा क्लास ६ से८ के बच्चों को विद्यालय प्रांगण में एक पेड़ लगाकर उसकी देख-रेख करें ताकि बच्चों के रोने-धोने की आवाज के अलावा कोयल के गाने की आवाज भी सुनायी पड़े तथा सम्पूर्ण वातावरण हरा-भरा रह सके।
आईसीएआर के उपमहानिदेशक डा. अरविन्द कुमार ने कहा कि देश की अधिकतर आबादी ग्रामीण है जोकि आज भी पिछड़ी है। उनके विकास के लिए वैज्ञानिकों से आवाहन है कि राष्ट्रीय कृषि शिक्षा योजना द्वारा उनके विकास के लिए कार्य करें तथा मौसम परिवर्तन के खेती पर पड़ने वाले असर को नियंत्रित करने के लिए नई तकनीक विकसित करें ताकि गरीबों को भर-पेट भोजन मिल सके। उन्होंने कहा कि शियाट्स सदैव आईसीएआर के मानक पर खरा उतरा है और मेरी अपील है कि संस्थान को और अधिक वित्तीय सरकारी सहायता प्रदान की जाये ताकि कृषि विकास उच्च गति हो सके।
मुख्य अतिथि मीरा कुमार एक विद्यार्थी को स्वर्ण पदक देती हुईं
मुख्य अतिथि मीरा कुमार जी ने अपने दीक्षान्त भाषण में कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और इलाहाबाद का जीविकोपार्जन भी मुख्यत: कृषि और उससे जुड़े क्रियाकलापों पर निर्भर है। कृषि क्षेत्र के विकास में सैम हिग्गिनबॉटम इन्स्टीट्यूट ने पिछले १०० वर्षों से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संस्थान ने वैज्ञानिकों, प्रसार अधिकारियों, गांव-साथी योजना से कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय नवीनताएं लाकर, गरीबों और वंचितों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान की दिशा में अमूल्य योगदान किया है, जिसकी मैं सराहना करती हूँ। उन्होंने नेहरू जी के शब्दों को बताते हुए कहा कि ‘‘कार्य में देर की जा सकती है किन्तु कृषि में नहीं।’’ उन्होंने चिन्ता जताई कि कृषि योग्य भूमि, सिंचित भूमि और कृषि विषयक ज्ञान के रहते भी ६० प्रतिशत जनसंख्या का विकास-प्रक्रिया में मात्र १९ प्रतिशत का ही योगदान है, फलत: सकल घरेलू उत्पाद में उसका जितना अंशदान होना चाहिए था, उतना सम्भव नहीं हुआ। उन्होंने कम वर्षा, बाढ़, ग्लोबल वार्मिंग, अकाल, उच्च तापमान आदि के द्वारा फसल के नष्ट होने एवं किसानों के बढ़ते ऋण पर चिन्ता जताई। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने पिता स्व. बाबू जगजीवन राम से प्रेरणा मिलती है जिन्होंने कृषि को गम्भीरता से लेते हुए अनाज का उत्पादन बढ़ाने, नई टेक्नोलॉजी तैयार करने एवं किसानों तक पहुंचाने, देश के हर जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना का कार्य किया जिससे देश में हरित क्रान्ति का अभ्युदय हुआ। उन्होंने नीति-निर्माताओं, वैज्ञानिकों और किसानों से आग्रह किया कि वे पूरी शक्ति से इस लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाएं। अन्त में उन्होंने दूसरी हरित क्रान्ति का आवाहन करते हुए अपने दीक्षान्त सम्बोधन को विराम दिया।
श्रीमती मीरा कुमार ने छोटे और सीमान्त तथा भूमिहीन किसानों, खेतिहर मजदूरों के लिए रोजगार के अतिरिक्त अवसर मुहैया कराने पर जोर दिया ताकि उनकी क्रय-शक्ति बढ़े और भोजन के लाले न पड़ें। उन्होंने तेजी से बढ़ती आबादी के लिए अनाजों की उपज द्विगुणित करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने बताया कि भारत सरकार का सपना है कि कृषि उपज को दुगुना किया जाये जिसके लिए किसानों एवं खेतिहर मजदूरों की बेहतरी पर ध्यान देना होगा ‘‘जो खेत को जोते बोए वो खेत का मालिक होए’’ नारा देते हुए उन्होंने कहा कि इसे क्रान्ति की तरह लागू करना होगा।
इलाहाबाद के कमिश्नर मीरा कुमार को एक नया प्रोजेक्ट सौंपते हुए
मुख्य अतिथि ने कुलपति प्रो.(डा.) राजेन्द्र बी. लाल के कृषि क्षेत्र में किये गये अति विशिष्ट कार्यों को देखते हुए उपहार देकर सम्मानित किया। मुख्य अतिथि ने समारोह में प्रति कुलपति प्रो.(डा.) एस.बी. लाल द्वारा तैयार किये गये विश्वविद्यालय की शोध स्मारिका का अनावरण किया एवं उनका उत्साहवर्धन किया। कुलपति ने भी श्रीमती मीरा कुमार, डा. पी.वी. जगनमोहन, मण्डलायुक्त इलाहाबाद तथा पी.जे. सुधाकर, महानिदेशक, दूरदर्शन को मानद उपाधि देकर सम्मानित किया।
समारोह के दौरान सर्वश्रेष्ठ ६० छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक तथा २० को रजत पदक द्वारा सम्मानित किया गया। बेस्ट टीचर अवार्ड डा. जगदीश प्रसाद, डीन, एनीमल अस्बेन्डरी एण्ड वेटनरी साइंस को दिया गया। साथ ही २८ छात्र-छात्राओं को मानद उपाधि, ५४३ को परास्नातक तथा १३९१ को स्नातक की डिग्री प्रदान की गयी।
30 अक्टूबर । नई दिल्ली
विगत दिनों समन्वय श्री संस्था ने सम्मान समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. श्याम सिंह शशि और विशिष्ट अतिथि डॉ. एस. एस.शर्मा थे। डॉ. शर्मा ने देश की वर्तमान दशा और दिशा पर अपनी टिप्पणी व्यक्त करते हुए संस्था की स्थापना और उद्देश्य पर विचार व्यक्त किया और कहा कि सामाजिक कल्याण में जुटी इस संस्था में जो लोग उपस्थित हुए हैं, वास्तव में वे समाज के हितार्थ सोचने और कुछ कर सकने वाले लोग हैं। लोगों का रुझान अब सस्ते मनोरंजन वाले स्थलों पर अधिक हो गया है। आज भ्रष्टाचार का चहुं ओर बोलबाला है। मीडिया भी वहीं जाता है जहां उसे पैकेज मिलने की पूरी उम्मीद होती है। ऐसे में हमें समाज के कर्तव्य परायाण लोगों को तलाशना होगा और इसी की पूर्ति यह संस्था कर रही है। मैं इस संस्था के अध्यक्ष रामगोपाल शर्मा और समाज सेवी का आभारी हूं जो बड़ी मेहनत और लगन से इस दिशा में सेवा रत हैं।
डॉ. श्याम सिंह शशि ने सम्मानित जनों को बधाई देते हुए। इस संस्था को इस बात की बधाई दी कि संस्था ने जिन लोगों को सम्मानित किया है, वास्तव में इसके हकदार हैं। उन्होंने वर्तमान देश की सामाजिक व्यवस्था पर न केवल अप्नी बेबाक टिप्पणी दी बल्किब मीडिया की दुर्दशा की ओर भी संकेत किया।
संस्था द्वारा सम्मानित जन थे- सर्वश्री/श्रीमती डॉ. कविता शर्मा, डॉ. ओ. पी. मौर्य, डॉ. दिविक रमेश, शमशेर अहमद खान, डॉ. धीरज बहल, डॉ. इंद्रराज, रामफल त्यागी, के.पी.सरीन, सुनील दत्त वत्स, तपन कुमार बरुआ, मंगल सिंह आजाद, गौतम कार और डॉ. अनुभा मित्तल। डॉ. विश्वनाथ सिंह ने इस संस्था के उद्देश्यों और श्री ए.के.बरुआ ने धन्यवाद व्यक्त दिया।
(बाएं से दाएं) समाजसेवी विनोद टिबड़ेवाला, कवि-उदघोषक देवमणि पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल, ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र-नीना मेहता, संस्थाध्यक्ष कवयित्री माया गोविंद प्रतिष्ठित कथाकार-आयकर आयुक्त आर.के.पालीवाल और गुरु अरविंदजी।
शनिवार को भवंस कल्चर सेंटर अंधेरी में जाने माने ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र-नीना मेहता को जीवंती फाउंडेशन, मुंबई की ओर से जीवंती कला सम्मान से विभूषित किया गया। वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल,प्रतिष्ठित कथाकार-आयकर आयुक्त आर.के.पालीवाल, समाजसेवी विनोद टिबड़ेवाला और संस्थाध्यक्ष माया गोविंद ने उन्हें यह सम्मान भेंट किया। कवि देवमणि पाण्डेय ने राजेंद्र मेहता से उनके फ़न और शख़्सियत के बारे में चर्चा की। अरविंद गुरु ने आशीर्वाद दिया। शायर राम गोविंद ‘अतहर’ने स्वागत किया। अरविंद राही ने संचालन और अनंत श्रीमाली ने आभार व्यक्त किया। राजेंद्र मेहता ने अपनी ग़ज़लों की अदायगी से श्रोताओं को अभिभूत कर दिया। श्रोताओं की माँग पर उन्होंने अपना लोकप्रिय नग़मा भी पेश किया-
जब आंचल रात का लहराए और सारा आलम सो जाए
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
श्रोताओं से उनका परिचय कराते हुए कवि देवमणि पाण्डेय ने बताया कि 1967 में ‘सुरसिंगार संसद’ के प्रोग्राम में राजेंद्र और नीना ने एक साथ मिलकर ग़ज़ल गाई। और ग़ज़ल के मंच की पहली जोड़ी के रूप में सामने आए। मेल और फीमेल को एक साथ ग़ज़ल गाते देखकर संगीत प्रेमी हैरत में पड़ गए थे। मगर इस तरह ग़ज़ल गायिकी में एक नया ट्रेंड कायम हो चुका था। दो साल बाद जब चित्रा और जगजीत सिंह साथ-साथ मंच पर आए तो इस ट्रेंड को पसंद करने वालों की तादाद बुलंदी पर पहुँच चुकी थी।
कवि देवमणि पाण्डेय ने बताया कि सन 1947 में अगस्त माह के आख़िरी दिनों में आज़ादी की खुशियां बंटवारे की कोख़ से जन्मे दंगों की ट्रेजडी में तब्दील हो गईं। जलते मकानों, उजड़ी दुकानों और सड़क पर पानी की तरह बहते इंसानी ख़ून के ख़ौफ़नाक मंज़र के बीच सिर्फ़ एक संदूक लेकर बालक राजेंद्र मेहता का परिवार मुहाजिर के रूप में मुसीबतों का दरिया पार करते हिंदुस्तान की सरहद में दाख़िल हुआ था। उस संदूक में एक हारमोनियम था। कई शहरों की ख़ाक छानने के बाद आख़िरकार वो बच्चा उस हारमोनियम के साथ आर्ट और फ़न की नगरी मुंबई पहुंचा। मुंबई ने उसे और उसने मुंबई को अपना लिया। आज उस बच्चे को लोग ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र मेहता के नाम से जानते हैं।
अपने सम्मान के उत्तर में राजेंद्र मेहता ने कहा कि संगीत के मंच पर उनकी जोड़ी को 44 साल हो चुके हैं। अपने अब तक के सफ़र से हम बेहद ख़ुश है। ऊपरवाले ने हमें इतना कुछ दिया जिसके हम बिलकुल हक़दार नहीं थे।
कवि देवमणि पाण्डेय ने बताया कि राजेंद्र मेहता के बाबा लाहौर के बाइज़्ज़त ज़मींदार थे। पिता की अच्छी-ख़ासी चाय की कंपनी थी। सरकार की तरफ़ से नाना ने पहली जंगे-अज़ीम में और मामा ने दूसरी जंगे-अज़ीम में हिस्सा लिया था। मगर राजेंद्र मेहता को लखनऊ में ख़ुद को गुरबत से बचाने के लिए एक होटल में पर्ची काटने की नौकरी करनी पड़ी। उस समय वे नवीं जमात के तालिबे-इल्म थे। पढ़ाई के साथ नौकरी का यह सिलसिला बारहवीं जमात तक चला। इंटरमीडिएट पास करने पर उन्हें ‘बांबे म्युचुअल इश्योरेंस कंपनी’ में नौकरी मिल गई। 1957 में उन्होंने बीए पास कर लिया। राजेंद्र मेहता की मां को गाने का शौक़ था। बचपन में ही उन्होंने मां से गाना सीखना शुरु कर दिया था। लखनऊ में पुरुषोत्तमदास जलोटा के गुरुभाई भूषण मेहता उनके पड़ोसी थे। उनको सुनकर फिर से गाने के शौक़ ने सिर उठाया। बाक्स में रखा हुआ हारमोनियम बाहर निकल आया। राजेंद्र मेहता ने उर्दू की भी पढ़ाई की। शायर मजाज़ लखनवी और गायिका बेग़म अख़्तर की भी सोहबतें मिलीं। 1960 में उनका तबादला मुंबई हो गया।
(बाएं से दाएं) ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र-नीना मेहता ग़ज़ल पेश करते हुए साथ में हैं श्रीधर चारी (तबला), कवि-उदघोषक देवमणि पाण्डेय और सुनीलकांत गुप्ता (बाँसुरी)
मुंबई आने से पहले ही राजेंद्र मेहता आकाशवाणी कलाकार बन चुके थे। लखनऊ यूनीवर्सिटी के संगीत मुक़ाबले का ख़िताब जीत चुके थे। कुंदनलाल सहगल की याद में मुम्बई में हुए संगीत मुक़ाबले में राजेंद्र मेहता ने अव्वल मुक़ाम हासिल किया। मरहूम पी.एम.मोरारजी देसाई के हाथों वे ‘मिस्टर गोल्डन वायस ऑफ इंडिया’ अवार्ड से नवाज़े गए। मार्च 1962 में ‘सुर सिंगार संसद’ ने सुगम संगीत को पहली बार अपने प्रोग्राम में शामिल किया। उसमें गाने से पहचान और पुख़्ता हुई। मशहूर संगीत कंपनी एचएमवी ने ‘स्टार्स आफ टुमारो’ के तहत 1963 में राजेंद्र मेहता का पहला रिकार्ड जारी किया। 1965 में जगजीत सिंह से दोस्ती हुई। 1968 में दोनों ने मिलकर करीब बीस शायरों की ग़ज़लें चुनकर ‘ग़ालिब से गुलज़ार तक’ लाजवाब प्रोग्राम पेश किया। इस मौक़े पर उस्ताद अमीर खां, जयदेव, ख़य्याम और सज्जाद हुसैन जैसे कई नामी कलाकर बतौर मेहमान तशरीफ़ लाए थे। इस नए तजुर्बे ने संगीत जगत में धूम मचा दी।
राजेंद्र मेहता को शोहरत और दौलत की भूक कभी नहीं रही। वे हमेशा मध्यम रफ़्तार से चले। उनके चुनिंदा अलबम आए और मंच पर भी उनके चुनिंदा प्रोग्राम हुए। ग़ज़लों को पेश करने के अपने बेमिसाल अंदाज़ से उन्होंने अपना एक ख़ास तबक़ा तैयार किया। उनकी ग़ज़लों में प्रेम की सतरंगी धनक के साथ ही समाज और सियासत के काले धब्बे भी नज़र आते हैं। मरहूम शायर प्रेमबार बर्टनी के मुहब्बत भरे एक नग़मे को दिल को छू लेने वाले अंदाज़ में पेश करके राजेंद्र और नीना मेहता ने हमेशा के लिए ग़ज़लप्रेमियों के दिलों पर अपना नाम लिख दिया -जब आंचल रात का लहराए और सारा आलम सो जाए तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना।
सुप्रसिद्ध बाल चिकित्सक डॉ. हेमंत जोशी द्वारा बाल चिकित्सा, देखभाल तथा उनके विकास पर आधारित 5 अलग-अलग भाषाओं में लिखित 12 पुस्तकों का विमोचन एक साथ पिछले दिनों विरार (पश्चिम) स्थित विवा कॉलेज में 12 पत्रकारों के हाथों से संपन्न हुआ। चित्र में पुस्तक के विमोचन अवसर पर ई-टीवी (मराठी) के समाचार समन्वयक राजेंद्र साठे, दैनिक सामना के पत्रकार उमाकांत वाघ, पत्रकारिता कोश/मीडिया डायरेक्टरी के संपादक आफताब आलम, शशि कर्पे, दीपक मोहिते, सुधीर भोईर, अभिजीत मुले, प्रभाकर कुडालकर, डॉ. राजेंद्र आगरकर, प्रवीण नलावडे, लेखक व चिकित्सक डॉ. हेमंत जोशी, डॉ. अर्चना जोशी, डॉ. प्रमोद जोग व बारामती के डॉ. अनिल मोकाशी, युवा नेता हार्दिक राऊत, आदि मौजूद हैं।
चिकित्सा अभ्यास के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सुप्रसिद्ध बाल चिकित्सक डॉ. हेमंत जोशी ने एक साथ 12 पुस्तकों का प्रकाशन किया है। कुल पाँच भाषाओं - मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू एवं गुजराती में लिखी गई इन पुस्तकों का विमोचन रविवार, 31 अक्तूबर को विरार (पश्चिम) स्थित विवा कॉलेज में 12 पत्रकारों के हाथों से संपन्न हुआ। ये सभी पुस्तकें बाल चिकित्सा, देखभाल तथा उनके विकास पर आधारित है। संभवतः यह पहला अवसर है जब किसी बाल चिकित्सक की लिखी गई 12 पुस्तकों का एक साथ प्रकाशन हुआ है।
"छह महीना स्तनपान छुट्टी" की कल्पना के जनक माने जाने वाले डॉ. हेमंत जोशी ने 1985 में दिवाली के अवसर पर अपना चिकित्सा अभ्यास प्रारंभ किया था। इन 25 वर्षों के दौरान डॉ. हेमंत जोशी तथा उनकी पत्नी डॉ. अर्चना जोशी ने बाल चिकित्सा के दौरान प्राप्त विभिन्न प्रकार के अनुभवों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर चिकित्सा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन पुस्तकों में बच्चों के जन्म से लेकर उनके बड़े होने तक की विभिन्न समस्याओं, बीमारियों, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास, आदि का समाधान काफी सरल तरीके से सुझाया गया है।
साहित्य प्रेमी डॉ. हेमंत जोशी ने अपनी इन बहुपयोगी स्वास्थ्य पुस्तकों का विमोचन ई-टीवी (मराठी) के समाचार समन्वयक राजेंद्र साठे, दैनिक सामना के पत्रकार उमाकांत वाघ, पत्रकारिता कोश के संपादक आफताब आलम, शशि कर्पे, दीपक मोहिते, सुधीर भोईर, अभिजीत मुले, प्रभाकर कुडालकर, डॉ. राजेंद्र आगरकर, प्रवीण नलावडे ने किया। इस अवसर पर पुणे के सुप्रसिद्ध बाल चिकित्सक डॉ. प्रमोद जोग व बारामती के डॉ. अनिल मोकाशी को आरोग्य ज्ञानेश्वरी पुरस्कार प्रदान किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता युवा नेता हार्दिक राऊत ने की। बाल चिकित्सा से संबंधित विभिन्न प्रकार की समस्याओं और उनके निदान के लिए डॉ. हेमंत जोशी के बहुभाषी वेबसाइट http://doctorhemantjoshi.com पर संपर्क किया जा सकता है।
नई दिल्लीः दिल्ली रत्न साहित्य लेखक श्री लाल बिहारी लाल को रवीन्द्र ज्योति साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान हरियाणा, जीन्द से प्रकाशित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका रवीन्द्र ज्योति एवं हरियाणा साहित्य आकादमी, पंचकुला के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अमृत महोत्सव, जीन्द में हिन्दी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा.ए.के. चावला एवं प्रख्यात साहित्यकार डा. रामनिवास मानव द्वारा संयुक्तरुप से प्रदान किया गया। अमृत महोत्सव समारोह का आयोजन होटल सागर रिर्सोट,जीन्द में समपन्न हुआ। श्री लाल बिहारी लाल को सम्मान स्वरुप प्रतीक चिन्ह, अंग वस्त्र एवं सम्मान पत्र प्रदान किया गया। श्री लाल को पूर्व में देश के दर्जनों संस्थाए सम्मानित कर चुकी है। इन्हें हाल ही में लघु कथा सम्मान-2010 हम सब साथ-साथ पत्रिका, नई दिल्ली द्वारा प्रदान किया गया हैं।
हिन्दी कला, साहित्य, भाषाकर्म से जुड़ी हर गतिविधि की सूचना, आने वाले कार्यक्रम की सूचना, निमंत्रण, आमंत्रण, रिपोर्ट इत्यादि hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें। इस प्रकार आप हिन्दी प्रेमियों से सीधे जुड़ पायेंगे।