
कार्यक्रम का विधिवत् आरम्भ होता इसके पहले दर्शकों का मन बहलाने मंच पर आए मशहूर भोजपुरी गायक गजाधर ठाकुर ने जब ''गोरिया चाँद के अंजोरिया नियर गोर बाडू हो, तोहार जोड़ा केहू नईखे तू बेजोड़ बाडू हो' छेड़ी तो उपस्थित पुरुषों का मन बरबस मचल उठा। माहौल की रूमानियत बढ़ ही रही थी की 'बेसी बोलबा ता धयिके हो रजवु चीर देयिब' ने माहौल को देशभक्ति के जज्बे से भर दिया।

सबसे पहले बारी आई डाक्टर चंद्र देव यादव की जिन्होंने 'गाँवपुर के बस इहे निशानी, छाता के बस बचल कमानी' से गांवों की व्यथा व्यक्त की।
इसके बाद मिथिला की झलक पेश करने आए रमन सिंह ने 'ओल्ड होम में वृद्ध' कविता से वृद्धों के दर्द को मुखरित किया।
माहौल बिल्कुल तनावपूर्ण हो चला था कि संचालक डाक्टर रमाशंकर श्रीवास्तव ने मनोज "भावुक" को आवाज दी, भावुक के आते ही मंच की रंगत ही बदल गई। अपनी रंग-बिरंगी रचनाओं से उन्होंने एकबार फिर मंच को गति प्रदान करते हुए 'आम

तुरन्ता की परम्परा का निर्वाह करते हुए रविन्द्र लाल दास ने 'हमर गाँव', 'रोटी' और 'बाद्हिक असली फायदा' जैसी क्षणिकाओं से आधुनिक समाज पर करारा व्यंग्य किया। मैथिल कवि रविन्द्र नाथ ठाकुर ने 'छंद मधुर, भाव मधुर, मॉस मधुर गीतक'

अंत में सम्मलेन की अध्यक्षता कर रहे डाक्टर नित्यानंद तिवारी ने सभी कविताओं की समीक्षा करते हुए कहा कि 'कविता के मतलब सिर्फ़ आस्वाद रूचि के पोषण कईल न ह, कविता ता उ हा, जवन दिक् करे.'
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दिल्ली से आलोक सिंह 'साहिल'