नई दिल्ली । विशेष संवाददातारेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा प्रकाशित एकमात्र लोकप्रिय मासिक हिंदी पत्रिका भारतीय रेल अगस्त 2009 को अपनी गौरवशाली यात्रा के स्वर्ण जयंती वर्ष में प्रवेश कर रही है। बीते पांच दशकों में इस पत्रिका ने रेल कर्मियों के साथ अन्य पाठक वर्ग में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की है। इस लंबी अवधि के दौरान जहां भारत सरकार की कई पत्रिकाएं बंद हो गयीं या बहुत सीमित दायरे तक पहुंच गयीं,वहीं भारतीय रेल पत्रिका लगातार न सिर्फ निकल रही है बल्कि इसकी साज-सज्जा, विषय सामग्री और मुद्रण में भी निखार आया है। इसके पाठकों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है। रेलों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है। रेलों से संबंधित तकनीकी विषयों की सरल-सहज भाषा में जानकारी सुलभ कराने में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है।
तब और अब |
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रेल प्रशासन, रेलकर्मियों और रेल उपयोगकर्ताओं के बीच भारतीय रेल पत्रिका एक मजबूत संपर्क-सूत्र का काम कर रही है। भारतीय रेल पत्रिका का पहला अंक 15 अगस्त 1960 को प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका की शुरूआत के पीछे तत्कालीन रेल मंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा बाबू जगजीवन राम का विशेष प्रयास था। उस समय वर्ष 1960-61 के वित्तीय वर्ष में भारतीय रेल पत्रिका के लिए प्रचार और विविध व्यय शीर्ष से 25,000 रुपए का आवंटन किया गया था।
इस पत्रिका के शुरूआती दौर में 1960 में इसके संपादक मंडल के सदस्य थे- श्री डी.सी. बैजल, सदस्य,(कर्मचारी वर्ग) रेलवे बोर्ड, श्री डी.पी.माथुर, निदेशक वित्त, श्री आर.ई.डी. सा, सचिव, रेलवे बोर्ड, श्री जी.सी.मीरचंदानी, सह-निदेशक,जन-संपर्क, श्री राममूर्ति सिंह, हिंदी अफसर, रेलवे बोर्ड, श्री कृष्ण गुलाटी,संपादक तथा श्री राम चंद्र तिवारी, सहायक संपादक (हिंदी)। मौजूदा समय में संपादक मंडल में श्री एस.एस.खुराना, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, श्रीमती सौम्या राघवन, वित्त आयुक्त,श्री के.बी.एल.मित्तल, सचिव, निदेशक (सूचना एवं प्रचार) रेलवे बोर्ड हैं। पत्रिका के मौजूदा संपादक का दायित्व श्री अरविंद कुमार सिंह (परामर्शदाता, भारतीय रेल) तथा उनकी टीम संभाल रही है। श्री सिंह को राष्ट्रपति तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई संस्थाओं द्वारा पत्रकारिता के कई शीर्ष पुरस्कारों से सममानित किया जा चुका है और वे एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाए जाते हैं। प्रवेशांक से लेकर लंबे दौर तक पत्रिका को गरिमापूर्ण स्थान तक पहुंचाने का दायित्व हिंदी के विख्यात विद्वान और लेखक रामचंद्र तिवारी ने संभाला था। भारतीय रेल के संपादकों में श्री तिवारी के अलावा श्री प्रमोद कुमार यादव ने काफी सराहनीय योगदान दिया। भारतीय रेल पत्रिका तथा उसके संपादकों को पत्रकारिता और साहित्य में विशेष योगदान के लिए उ.प्र. हिंदी संस्थान तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।
इस पत्रिका के प्रवेशांक से लंबे समय तक वार्षिक चंदे की दर सर्व साधारण के लिए छह रुपए रखी गयी थी जबकि रेलकर्मियों के लिए चार रुपए की रियायती दर रखी गयी थी। एक अंक का मूल्य था 60 नए पैसे। पत्रिका का संपादकीय कार्यालय शुरूआत में 165 पी.ब्लाक रायसीना रोड, नयी दिल्ली था। उस समय रेल भवन का निर्माण पूरा नहीं हुआ था। इस पत्रिका के प्रकाशन के अवसर पर तत्कालीन रेल मंत्री श्री जगजीवन राम, रेल उपमंत्री श्री शाहनवाज खां तथा सं. वै.रामस्वामी के बहुत सारगर्भित संदेश भी प्रकाशित किए गए थे।
पत्रिका के पहले संपादकीय में रेल कर्मचारियों की वेतन वृद्धि पर रोशनी डाली गयी थी साथ ही आत्म-निवेदन भी छपा था जिसमें पत्रिका के बारे में इन शब्दों में कुछ तथ्य रखे गए थे-
चौदहवें आजादी दिवस के शुभ अवसर पर देश की राजभाषा हिंदी में प्रकाशित इस पत्रिका भारतीय रेल का यह प्रयास रहेगा कि वस्तुस्थिति का सही तथा सुस्पष्ट चित्र उपस्थित करके रेलों तथा जनता के बीच सहयोग बढ़ायें। अधिकांश रेल कर्मचारी तथा बहुसंख्यक जनता अंग्रेजी नहीं समझ सकती इसलिए उनके काम की बात उनकी अपनी ही भाषा में पहुंचाने की इच्छा ही इसके प्रकाशन की मुख्य प्रेरणा रही है। सहयोग के लिए दोनो पक्षों द्वारा एक- दूसरे की बात समझना परमावश्यक होता है। भारतीय रेल का सदैव यह प्रयत्न होगा कि वह रेलों सम्बंधी आधिकारिक सामग्री उपस्थित करके यह बता सकें कि रेलें किन-किन मुश्किलों का सामना करते हुए जनता की सेवा कर रही हैं और जनता किस प्रकार सहयोग देकर उनकी सहायता कर सकती है तथा यात्रियों की सुविधा एवं कर्मचारियों के कल्याण के लिए क्या कुछ किया जा रहा है।
पत्रिका के शुरूआत में स्थाई स्तंभ थे संपादकीय, सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें सौ साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से,क्रीडा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन,रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय, कविता, कहानी। इसी के साथ पत्रिका को रोचक बनाने के लिए भगत जी कार्टून के माध्यम से भी रेलकर्मियों और यात्रियों दोनों के जागरण का प्रयास किया गया। आगे कुछ और स्तंभ शुरू किए गए तथा पत्रिका दिनों दिन निखरने लगी।
जहां तक लेखकों का सवाल है तो पहले अंक में ही भारतीय रेल ने साफ घोषणा की थी कि बाहर के लेखकों की रचनाएं भी स्वीकार की जाएंगी। इस पत्रिका के प्रतिष्ठित लेखकों में स्व.श्री विष्णु प्रभाकर, श्री कमलेश्वर, श्री रस्कीन बांड, डा. प्रभाकर माचवे, श्री पी.डी. टंडन, श्री रतनलाल शर्मा, श्री श्रीनाथ सिंह, श्री रामदरश मिश्र, डा.शंकर दयाल सिंह, श्री विष्णु स्वरूप सक्सेना, डा. महीप सिंह, श्री यशपाल जैन, श्री राजेंद्र अवस्थी, सुश्री आशारानी व्होरा, श्री बेधड़क बनारसी, श्री शैलेन चटर्जी, श्री लल्लन प्रसाद व्यास, श्री शेर बहादुर विमलेश, डा.गौरीशंकर राजहंस, श्री अक्षय कुमार जैन, श्री प्रेमपाल शर्मा, श्री आर.के. पचौरी, डा. दिनेश कुमार शुक्ला, श्री उदय नारायण सिंह, श्री अरविंद घोष, श्री देवेंद्र उपाध्याय, श्री विमलेश चंद, श्री राधाकांत भारती, श्री दुर्गाशंकर त्रिवेदी, श्री कौटिल्य उदियानी, श्री देवकृष्ण व्यास, शार्दूल विक्रम गुप्त, के.जी.जोगलेकर, शशिधर खां, लक्ष्मीशंकर व्यास, मंजु नागौरी से लेकर यादवेंद्र शर्मा चंद्र समेत हिंदी के कई विद्वान लेखक और पत्रकार जुड़े रहे हैं। आचार्य जे.बी.कृपलानी, श्री के.के. बिड़ला और श्री सुनील दत्त समेत अन्य कई हस्तियों के लेख भी भारतीय रेल में छपे हैं। इतना ही नहीं पत्रिका की शुरूआत से ही लेखकों के लिए उचित पारिश्रमिक देने की भी व्यवस्था भी रही है। इस पत्रिका के विशेषांक में रेल मंत्री, राज्यमंत्री,अध्यक्ष रेलवे बोर्ड तथा अन्य सदस्यगण और क्षेत्रीय रेलों तथा उत्पादन इकाइयों के महाप्रबंधक नियमित लिखते रहते रहे हैं।
भारतीय रेल में 1960 के बाद के सारे रेल बजट तथा उन पर सारगर्भित समीक्षाएं विस्तार से प्रकाशित हुई हैं। इस दौर की सभी प्रमुख रेल परियोजनाओं, खास निर्णयों और महत्वपूर्ण घटनाओं को भारतीय रेल में प्रमुखता से कवरेज दिया गया। इसी नाते खास तौर पर अध्येताओं तथा अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह पत्रिका एक अनिवार्य संदर्भ भी बन गयी है।
30 दिसंबर 1960 को जब रेल भवन का उद्घाटन किया था उस समय तक भारतीय रेल पत्रिका के पांच अंक प्रकाशित हो चुके थे। रेल भवन बन जाने के बाद भारतीय रेल का संपादकीय पता बदल कर 369, रेल भवन हो गया। भारतीय रेल पत्रिका का पहला विशेषांक रेल सप्ताह अंक 1961 के नाम से अप्रैल 1961 में प्रकाशित किया गया।