Sunday, October 31, 2010

रिवाइव हुआ 'डॉयलॉग'- तजेन्द्र, विपिन, रोहित प्रकाश, कुमार मुकुल और रंजीत वर्मा का काव्यपाठ


काव्यपाठ करते तजेन्द्र लूथरा

30 अक्टूबर । नई दिल्ली
आज शाम नई दिल्ली के अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर में एक कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम के समन्वयक मिथिलेश श्रीवास्तव जो खुद एक प्रसिद्ध कवि और कला-रंगमंच आलोचक हैं, ने बताया कि 'डॉयलॉग' नाम की यह साहित्यिक संगोष्ठी पिछले 36 सालों से आयोजित हो्ती रही है, जिसे 'महीना का आखिरी शनिवार' नाम से भी जाना जाता था। पहले इस गोष्ठी में खासी भीड़ होती थी। बीच में यह कार्यक्रम किन्हीं कारणों से स्थगित हो गया था, लेकिन पिछले महीने से इसे रिवाइव किया गया है।

अध्यक्षता अभिनव-साँचा के संपादक द्वारिका प्रसाद चारुमित्र ने की। इस गोष्ठी में पाँच युवा कवियों तजेन्द्र लूथरा, विपिन चौधरी, रोहित प्रकाश, कुमार मुकुल और रंजीत वर्मा ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। उपस्थित श्रोताओं ने सभी कवियों को पूरे धैर्य से सुना और उनका रसास्वादन किया।

गोष्ठी की कुछ तस्वीरें-


काव्यपाठ करतीं विपिन चौधरी


काव्यपाठ करते रोहित प्रकाश


काव्यपाठ करते कुमार मुकुल


काव्यपाठ करते रंजीत वर्मा


भावविभोर श्रोतागण

Saturday, October 30, 2010

आउटलुक (हिन्दी) के लिए चुनिए अपनी पसंद की 3 महिला कथाकार और 3 कवयित्री

नई दिल्ली ।

पिछले साल की तरह इस साल भी आउटलुक(हिन्दी) लोकप्रिय 3 महिला कथाकार और 3 महिला कवयित्री का पाठक सर्वे आयोजित कर रहा है। अच्छी बात यह है कि इस बार इंटरनेटीय पाठक भी इसमें सम्मिलित हो सकते हैं। और ईमेल से अपनी 3 पसंद भेज सकते हैं। हम आउटलुक की सहायक संपादक गीताश्री द्वारा प्रेषित विज्ञप्ति को पाठकों की सुविधा नीचे चस्पा कर रहे हैं-

लोकप्रिय तीन महिला कथाकार और तीन महिला कवि चुनने के लिए पाठक सर्वे

प्रिय पाठको,
कथाकारों की सूची

. कृष्णा सोबती
. मन्नू भंडारी
. उषा प्रियंवदा
. ममता कालिया
. चित्रा मुद्गल
. मृदुला गर्ग
. मैत्रेयी पुष्पा
. क्षमा शर्मा
. मधु कांकरिया
. जया जादवानी

कवियों की सूची

. सुनीता जैन
. रमणिका गुप्ता
. गगल गिल
. तेजी ग्रोवर
. कात्यायनी
. अनामिका
. सविता सिंह
. निर्मला गर्ग
. रंजना जायसवाल
. नीलेश रघुवंशी
आपने हमें फूल दिए हों या पत्थर, लेकिन हमारे पिछले साहित्य अंक की चर्चा आपने खूब की। हमने आपकी पसंद के ही सर्वाधिक लोकप्रिय तीन-तीन कथाकारों और कवियों के नाम तथा रचनाएं प्रकाशित की थीं। इस बार भी आप ही हमारे ज्यूरी हैं। लेकिन स्त्री-विमर्श और महिला लेखन को ले कर पुरुषवादी आक्षेपों के इस दौर में हम आपकी पसंद की तीन महिला कथाकारों और तीन महिला कवियों के नाम पर आमंत्रित कर रहे हैं। पिछली बार की तरह ही आपकी याददाश्त की सुविधा के लिए हम महिला कथाकारों और कवियों की सूची दे रहे हैं। लेकिन इन दोनों सूचियों को अंतिम न मानें, जैसी भूल पिछली बार कुछ लोगों ने कर सूचियों पर ही पत्थर बरसाने शुरू कर दिए थे कि फलां को छोड़ दिया तो फलां को छोड़ दिया। इन सूचियां के जरिए हम अपनी तरफ से कोई सुझाव नहीं दे रहे, कोई क्रम नहीं बता रहे, सिर्फ कह रहे हैं कि इस तरह के अन्य नाम आप अपनी तरफ से बता सकते हैं। इन सूचियों में से या इनके बाहर से आप अपनी तीन-तीन पसंद बताएं। आपकी पसंद आपके वोट ही अंतिम हैं, हमारे नहीं।

पाठक अपनी तीन-तीन पसंद गीताश्री (geetashree@outlookindia.com) या आकांक्षा पारे (akpare@gmail.com) को ईमेल कर सकते हैं।

Tuesday, October 26, 2010

अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन

अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन



नई दिल्ली। यहॉं नई दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका हम सब साथ साथ द्वारा देश भर से चयनित दो दर्जन से अधिक युवा एवं 80 वर्ष से भी अधिक आयु तक के लघुकथाकारों को एक ही मंच पर इकट्ठा कर उनकी श्रेष्ठ लघुकथाओं के पाठ व उनको सम्मानित किए जाने का एक अनूठा कार्यक्रम आयोजित किया गया और यह सब हुआ प्रख्यात साहित्यकार श्रीमती चित्रा मुद्गल के
मुख्य आतिथ्य, कैपिटल रिपोर्टर के संपादक श्री सुरजीत सिंह जोबन की अध्यक्षता एवं लब्ध प्रतिष्ठित कथाकार श्री बलराम व व्यवसायी श्री ए. पी. सक्सेना के विशिष्ट आतिथ्य में।



इस अवसर पर श्रीमती चित्रा मुद्गल ने हम सब साथ साथ पत्रिका के इस कदम की सराहना करते हुए लघुकथा के विकास पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि इसकी दशा व दिशा दोनों ही ठीक है। अब भावी पीढ़ी का दायित्व है कि वे इसे कहाँ तक ले जाते हैं। श्री जोबन ने कहा कि लघुकथा अपने आप में संपूर्ण कहानी समाहित किए हुए रहती है।



इसके पूर्व सम्मेलन की शुरूआत रेडियो सिंगर श्रीमती सुधा उपाध्याय की सरस्वती वंदना से हुई तत्पश्चात् कथाकार श्री बलराम ने लघुकथा के विकास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लघुकथा आज विकासोन्मुख है।

सम्मेलन हेतु उ.प्र., म.प्र., राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, प. बंगाल एवं दिल्ली आदि से दो दर्जन से भी अधिक लघुकथाकारों को चयनित किया गया था। जिसमें से सम्मेलन में उपस्थित लघुकथाकारों ने अपनी श्रेष्ठ लघुकथाओं का पाठ किया और उसके पश्चात् उन्हें स्मृति चिन्ह, प्रमाणपत्र, पुस्तकें प्रदान कर एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। लघुकथा पाठ एवं सम्मान हेतु चयनित वरिष्ठ लघुकथाकारों में सर्वश्री मो. मुइनुद्दीन अतहर, सनातन वाजपेयी, के. एल. दिवान, मनोहर शर्मा, देवेन्द्र नाथ शाह, सत्यपाल
निश्चिंत, गणेश प्रसाद महतो, राम बहादुर व्यथित, प्रदीप शशांक, तेजिन्द्र, माला वर्मा, अकेला भाइ, शरदनारायण खरे, दिनेश कुमार छाजेड़, आरती वर्मा, गीता गीत, देवांशु पाल, ज्योति जैन, नंदलाल भारती, एम. अशफाक कादरी एवं युवा लघुकथाकारों में सर्वश्री महावीर रवांल्टा, संतोष सुपेकर, शोभा रस्तोगी, समद राही, नरेन्द्र कुमार गौड़, कैलाशचंद्र जोशी, पंकज शर्मा एवं लाल बिहारी लाल के नाम उल्लेखनीय रहे।

समारोह का सफल संचालन सर्वश्री विनोद बब्बर एवं विवेक मिश्र ने किया एवं आभार पत्रिका के कार्यकारी संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव ने व्यक्त किया।

-प्रस्तुतिः इरफान राही, (मीडिया प्रभारी) मो. 9971070545

इस्‍लाम को इल्‍म का विरोधी मानने वाले कुरान की ग़लत व्‍याख्‍या कर रहे हैं - मो. सलीम

"मुस्‍लिम समाज और शिक्षा" पर एक दिवसीय राष्‍ट्रीय संवाद

दुनिया का कोई भी धर्मग्रन्‍थ मनुष्‍य को मनुष्‍य के खिलाफ खड़ा नहीं करता- वेद व्‍यास



महावीर समता संदेश, समान बचपन अभियान, अदबी संगम और बोहरा यूथ के संयुक्‍त तत्‍वावधान में विगत 24 अक्‍टूबर को उदयपुर के बोहरा यूथ वेलफेयर सेन्‍टर के सभागार में राष्‍ट्रीय संवाद आयोजित किया गया। ‘मुस्‍लिम समाज और शिक्षा' विषयक इस संवाद की अध्‍यक्षता करते हुए प्रख्‍यात शिक्षाविद्‌ और जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति अगवानी जी ने कहा कि मुस्‍लिम समाज के पिछड़ेपन की उम्र भी हालांकि उतनी ही है जितनी कि इस देश की आजादी की, परन्‍तु 1982 में दुबारा सत्ता में लौटने के बाद जब इन्‍दिरा गांधी ने मुसलमानों के पिछड़ेपन की पड़ताल शुरू की तब पहली बार पता चल सका कि वास्‍तव में इस समुदाय की हालत कितनी दयनीय है। 2005 में सच्‍चर समिति की रिपोर्ट आने के बाद तो अब इस बात पर शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है कि देश में सबसे पिछड़ी हुई अगर कोई कौम है तो वह मुस्‍लिम कौम ही है। शिक्षा से लेकर अन्‍य सभी संसाधनों तक उनकी पहुंच आज तक नहीं बन पाई है। ऐसे में नागरिक समाज का यह प्राथमिक दायित्‍व है कि वह इस दिशा में ध्‍यान दे और मुस्‍लिम समाज को आगे लाने की मुहिम छेड़े।

श्री अगवानी ने आगे कहा कि मुसलमानों के बच्‍चे आज भी स्‍कूल नहीं जाते। जो लोग आर्थिक तौर पर सम्‍पन्‍न भी हैं, उनमें भी शिक्षा के प्रति एक उदासीनता व्‍याप्‍त है। इसलिए शिक्षा में उनकी नगण्‍य भागीदारी का दोष हम केवल उनके आर्थिक पिछड़ेपन को ही नहीं दे सकते। इसके पीछे कोई और ही बात काम कर रही है।
इससे पहले संवाद की शुरूआत में विषय पर चर्चा प्रारम्‍भ करने के क्रम में महावीर समता संदेश के प्रधान सम्‍पादक हिम्‍मत सेठ ने कहा कि समाज में गैरबराबरी और शोषण को समाप्‍त करने में शिक्षा की सबसे अहम भूमिका हुआ करती है और यह बात अब लगभग स्‍थापित हो चुकी है। उन्‍होंने कहा कि यूं तो समाज के पिछड़े, दलित और आदिवासी तबकों को शिक्षा के जरिये, समाज की मुख्‍यधारा में शामिल करने के मकसद से सरकारें विगत कई दशकों से प्रयासरत हैं, किन्‍तु शिक्षा के निजीकरण, बाजारीकरण और प्रभुत्‍वशाली वर्गों के उस पर बढ़ते वर्चस्‍व के कारण सरकार के सभी प्रयास निष्‍फल साबित हुए हैं। सबसे अधिक भेदभाव का शिकार तो देश का वह मुस्‍लिम समाज है जो आबादी में लगभग 14 करोड़ की भागीदारी रखता है। इतनी बड़ी आबादी का अधिकांश आज भी शिक्षा की रोशनी से महरूम है और इसका सबसे दहशतनाक खमियाजा भी भुगत रहा है। न्‍यायमूर्ति सच्‍चर की अध्‍यक्षता वाली समिति ने जो रिपोर्ट प्रस्‍तुत की है उससे यह भयावह तथ्‍य देश के सामने उजागर हुआ है। देश की नौकरशाही और प्रशासन में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार तथा सरकार की इच्‍छाशक्‍ति में कमी की वजह से आज तक मुसलमानों को उन नीतियों अथवा योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है जो अल्‍पसंख्‍यकों की बेहतरी के नाम पर घोषित की गई हैं और इस स्‍थिति में कोई भी बदलाव तभी आ सकता है जब नागरिकों की तरफ से एक जोरदार हस्‍तक्षेप की शुरूआत की जाये।

जमायते इस्‍लामी के प्रान्‍तीय अध्‍यक्ष एवं प्रख्‍यात इस्‍लामिक विद्वान मो. सलीम ने संवाद में मुख्‍य वक्‍ता की हैसियत से बोलते हुए कहा कि मैं उन भ्रांतियों के बारे में बात करना चाहता हूं जो मुस्‍लिम समाज के अंदर तो व्‍याप्‍त हैं ही, कुछ दूसरी कौम के लोगों के मन में भी घर कर गई हैं। खासकर इस्‍लाम और इसके मानने वालों के बारे में। जैसे एक भ्रांति यह कि मुसलमान इसलिए पिछड़ा है क्‍योंकि इस्‍लाम उसे पिछड़ा बनाए रखता है। मैं बताना चाहता हूँ कि कुरान शरीफ में इल्‍म या ज्ञान को अहम बताने से संबंधित पांच आयतें हैं। वहां साफ कहा गया है कि वह मुसलमान जो इल्‍म हासिल न करे, वह अल्‍लाह की नजर में गुनाहगार है। हज़रत मुहम्‍मद साहब के बारे में एक प्रसंग आता है कि एक बार उन्‍होंने देखा कि एक गु्रप इबादत कर रहा है और उसी दौरान एक दूसरा ग्रुप तालीम हासिल कर रहा है। उन्‍होंने तालीम हासिल करने वाले गु्रप को ही ज्‍यादा अहमियत दी और उसी के साथ शामिल हुए। क्‍या इससे बढ़कर और भी किसी सबूत की जरूरत हो सकती है? इस्‍लाम में इल्‍म और तालीम को काफी अहमियत दी गई है। जो लोग इस बात को नहीं मानते, वे इस्‍लाम की गलत व्‍याख्‍या पेश कर रहे हैं। कुरान में तो यहां तक कहा गया है कि आंख बंद कर तुम किसी भी बात को न मानो। तर्क करो और सच्‍चाई की तह तक पहुंचने की कोशिश करो। इस्‍लाम कभी भी वैज्ञानिक विकास, प्रौद्योगिकी का विरोधी नहीं रहा है, बल्‍कि आठ सौ वर्षों तक इस्‍लाम के मानने वालों ने ही विज्ञान को नई-नई खोजों से समृद्ध किया है। तो फिर आज आखिर मुसलमानों के साथ ऐसा क्‍या हो गया है? क्‍यों उनके जीवन स्‍तर में लगातार गिरावट आती जा रही है? दरअसल देश के मुसलमानों में इस हीन भावना ने घर कर लिया है कि इस देश की तकसीम के लिये वे ही जिम्‍मेदार हैं। आज भी वे इसी असमंजस का शिकार हैं और आजादी के बाद आज तक तीस हजार से अधिक दंगे जो इस देश में हुए हैं, उनके पीछे इस हीनता बोध का भी बहुत बड़ा हाथ है। पूरी कौम एक भय के साये में जी रही है। इस भय से उन्‍हें मुक्‍त होना होगा। यह इस वक्‍त की एक बड़ी जरूरत है कि उनके अन्‍दर कानून के प्रति एक विश्‍वास पैदा किया जाये। तभी ये हालात बदलेंगे। मुसलमानों के पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह उनका आर्थिक तौर पर पिछड़ा होना है। जहाँ भी मुसलमानों ने श्‍ौक्षणिक या आर्थिक तौर पर विकास करने की कोशिश की है, वहीं वहीं आज तक सबसे ज्‍यादा दंगे हुए हैं। भागलपुर, अलीगढ़ या सूरत के दंगे इस बात की तस्‍दीक करते हैं। आज भी हमारा देश, हमारी सरकारें सच्‍चे मायनों में सेकुलर नहीं हैं, लोकतांत्रिक नहीं हुई हैं। धार्मिक आधार पर देश में आज भी भेदभाव किये जा रहे हैं। मैं पूछता हूं एक दिन पहले तक जो व्‍यक्‍ति एस.सी./एस.टी. होता है, वह इस्‍लाम कबूल करते ही दूसरे दिन से एस.सी./एस.टी. क्‍यों नहीं रहता? यह भेदभाव नहीं तो और क्‍या है? रंगनाथ आयोग ने भी इस बात को माना है।



मो. सलीम ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि असल में हमारी हुकूमत आज जवाबदेह नहीं रह गई है। वह बजट का इस्‍तेमाल नहीं करती। जो पैसा अल्‍पसंख्‍यकों के कल्‍याण का है, सरकारें उसे खर्च नहीं करतीं। नीतियों को जब तक पूरी जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ लागू नहीं किया जाता, तब तक ये हालात नहीं बदलेंगे। यह काम केवल ब्‍यूरेाक्रेसी या सरकार के भरोसे नहीं होगा, नागरिक समाज को भी इसके लिए लड़ाई लड़नी होगी। जब तक इस देश में बसने वाले सभी लोगों का समान विकास नहीं होगा, देश के विकास में सबकी समान भागीदारी नहीं होगी, तब तक देश का विकास भी नहीं होगा। आज तक हम लकीर ही पीटते आए हैं, हमने इलाज की ईमानदार कोशिश ही नहीं की है। मैं मुसलमान भाइयों से भी अपील करता हूँ कि हमें सरकार के सामने भीख मांगने की मुद्रा में खड़ा नहीं होना है। हमें हिम्‍मत और हौसले के साथ आगे बढ़कर अपना हक लेना होगा। हमें जागरूक होकर सवाल उठाने होंगे। हालात मुश्‍किल हैं पर हम अपनी कोशिशों से इसमें तब्‍दीली ला सकते हैं। इस्‍लाम औरतों के तालीम हासिल करने की राह में कभी बाधा नहीं खड़ी करता। वह इसमें मददगार ही है। वह शालीन लिबास की वकालत जरूर करता है, पर ध्‍यान से देखें तो इसके पीछे भी औरतों की सुरक्षा की चिन्‍ता ही दिखाई देगी। मुस्‍लिम लड़कियां आज जिन्‍दगी के हर मोर्चे पर आगे बढ़ रही हैं, वे डॉक्‍टर, इंजीनियर और वकील बन रही हैं। इस कोशिश को और तेज करने की जरूरत है।
संवाद के दूसरे प्रमुख वक्‍ता, वरिष्‍ठ पत्रकार और प्रगतिशील लेखक संघ राजस्‍थान के अध्‍यक्ष श्री वेद व्‍यास ने विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि मुसलमानों की आज देश में जो हालत है, उसके लिए केवल इतिहास, मजहब या सियासत ही जिम्‍मेदार नहीं है। इसके लिए सबसे अधिक जिम्‍मेदार हम स्‍वयं हैं। हमारी हताशा हमारी सबसे बड़ी दुश्‍मन है।
उन्‍होंने कहा कि कोई भी धर्मग्रन्‍थ मनुष्‍य को मनुष्‍य के खिलाफ खड़ा नहीं करता, फिर वे लोग कौन हैं जो धर्म के नाम पर देश को बांटने का खेल खेल रहे हैंं? धर्म के नाम पर स्‍वार्थी सियासत की रोटियां सेक रहे हैं? आज हमें उन्‍हें पहचानने की जरूरत है। वे ही हमारे सबसे बड़े दुश्‍मन हैं। देश की पन्‍द्रह करोड़ मुस्‍लिम आबादी आज नेतृत्‍वविहीन है। संसद में उनका एक ऐसा नुमाइंदा नहीं है, जो उनके वाजिब सवाल उठा सके। तो हम कैसे खुद के प्रति न्‍याय कर रहे हैं? कैसे हम साम्‍प्रदायिक दंगे रोक पाएंगे? अगर सियासत ईमानदार होती, सियासतदां ईमानदार होते तो देश में इतने कत्‍लेआम नहीं होते, इतनी गरीबी मुफलिसी नहीं होती, इतना पिछड़ापन नहीं होता। यह सब एक सोची समझी साजिश के तहत हुआ है कि देश के मुसलमानों को पिछड़ा रखा जा रहा है। एक पूरी कौम को अपराधी बताने की साजिश चल रही है। जो लोग हिन्‍दुत्‍व का परचम लहरा रहे हैं, वे हिन्‍दुओं के भी सबसे बड़े दुश्‍मन हैं। वे लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं। धर्म के नाम पर आज पूरी दुनिया में लड़ाइयां चल रही हैं। यह सब कुछ इसलिए हो रहा है ताकि जो शोषित पीड़ित वर्ग है, सर्वहारा वर्ग है, उसके संघर्ष को कमजोर किया जाये या उसे विभाजित कर दिया जाये।
अंग्रेजों ने इस देश में पहले पहल फूट का बीज बोया। इसी के कारण इस देश का विभाजन हुआ और महात्‍मा गांधी की हत्‍या हुई। इन दोनों घटनाओं ने देश के भविष्‍य पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला है। आजाद भारत के इतिहास में मुसलमानों को डराने-धमकाने, उन्‍हें पिछड़ा बनाए रखने की सुनियोजित कोशिशें हुई हैं। उन्‍हें विकास से जान बूझ कर दूर रखा गया है और हाशिये पर धकेल दिया गया है। आज किसी भी मुश्‍किल का सामना करने के लिए वे एकजुट नहीं है। सियासत इसका पूरा फायदा उठा रही है। मुसलमानों का विकास करने की आज कोई राजनीतिक बाध्‍यता नहीं रही है। सरकार पर इनका विकास करने के लिए कोई दबाव नहीं है। गैरसरकारी संगठन भी मुस्‍लिम-बहुल क्षेत्रों में काम नहीं करते। वे केवल आदिवासियों, पिछड़ोें के बीच काम कर रहे हैं। अगर आज हम चुप हैं तो यह हमारा सबसे बड़ा अपराध है। हमें सवाल उठाना होगा कि मुसलमान पिछड़े क्‍यों हैं? मदरसों में जो शिक्षा दी जा रही है, उसमें आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का समावेश क्‍यों नहीं है?
श्री वेदव्‍यास ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आदिवासी समुदाय आज इतनी भयावह परिस्‍थितियों का सामना करते हुए भी अपने हकों की लड़ाई लड़ रहा है। हम क्‍यों नहीं लड़ते? देश की आजादी के लिए लड़ने वालों में जब मुसलमान किसी से भी पीछे नहीं रहे तो आज वे अपने पिछड़ेपन के खिलाफ लड़ने में पीछे क्‍यों हैं? हमें इन सवालों की तह में जाना होगा और जवाब ढूंढने ही होंगे- अगर इस चक्रव्‍यूह से बाहर निकलना है तो। हमें समझना होगा कि आज अफगानिस्‍तान, ईरान, इराक और फिलिस्‍तीन में क्‍या हो रहा है या कि कौन-सी शक्‍तियां है जो पाकिस्‍तान को कठपुतली की तरह नचा रही हैं। वे कौन लोग हैं जो पूरी दुनिया में मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं? इसे समझे बिना हम कोई भी लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे?
संवाद में शिरकत कर रहे एक और प्रखर वक्‍ता तथा पत्रकार डॉ. हेमेन्‍द्र चण्‍डालिया ने भी इस बात की तरफ ध्‍यान आकृष्‍ट किया कि मुस्‍लिम समुदाय वंचितों में भी वंचित की श्रेणी में आता है। उनके सामने रोजी रोटी के, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य या रोजगार के अवसर नहीं के बराबर हैं और सरकार की विकास योजनाओं का भी कोई फायदा उन तक पहुंच नहीं पाया है। डॉ. चण्‍डालिया ने कहा कि सरकार की शिक्षा का जो स्‍वरूप है, पाठ्‌यक्रम से लेकर शिक्षण प्रणाली और संसाधनों की उपलब्‍धता तक, वंचित समुदायों के प्रति गम्‍भीर भेदभाव पर आधारित है। नीतियों के स्‍तर पर आज भी हाशिये के लोगों के प्रति एक नकारात्‍मक सोच काम कर रही है। मीडिया की भूमिका भी आज के समय में अत्‍यंत निन्‍दनीय हो गई है और वहां से जनता के सरोकार ही गायब हो चुके हैं। बदलते वक्‍त में मीडिया को शिक्षित करना भी हमारा एक प्राथमिक दायित्‍व बन गया है। लोहिया ने आज से बहुत पहले कह दिया था कि देश के पिछड़े तबकों में मुसलमानों की हालत सबसे नाजुक है और उन पर अलग से ध्‍यान दिये जाने की जरूरत है। हमें आज गम्‍भीरता से इन सवालों पर सोचना ओर आगे बढ़ना चाहिये।
इससे पहले संवाद की शुरूआत में दिल्‍ली के प्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखक एवं पत्रकार राजेश चन्‍द्र ने शिव कुमार गुप्‍त का लिखा हुआ गीत - ‘‘गर हो सके तो अब कोई शम्‍मा जलाइये, इस अहले सियासत का अंधेरा मिटाइये'' तथा अंत में भुवनेश्‍वर का गीत ''आ गए यहां जवा कदम'' की प्रस्‍तुति की। जयपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ, से आए हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्‍थानीय महिलाओं, विद्यार्थियों, पत्रकारों, लेखकों एवं बुद्धिजीवियों से खचाखच भरे हॉल में जिन अन्‍य शिक्षकों/प्रमुख वक्‍ताओं ने इस संवाद के दरम्‍यान अपने विचार रखे उनमें विशेष एस.आई.आर.टी. के पूर्व निदेशक डा. एस.सी. पुरोहित, अल्‍पसंख्‍यक मंत्रालय के द्वारा मनोनीत पर्यवेक्षक डॉ. बी.एल. पालीवाल, डॉ. एस.बी.लाल, जिला परिषद की सदस्‍या एवं लेखिका विमला भण्‍डारी, दाउदी बोहरा जमात के अध्‍यक्ष आबिद अदीब, खेरवाड़ा मुस्‍लिम समाज के सदर एवं अरावली वोलन्‍टीयर्स के संस्‍थापक सिकन्‍दर यूसूफ ज़ई, सराड़ा से पधारे पूर्व प्रधानाध्‍यापक अहमद शेख, पूर्व पार्षद अब्‍दुल अजीज खान, एडवोकेट जाकिर हुसैन, परतापुर बांसवाड़ा के पवन पीयूष, पूर्व प्रधानाध्‍यापक एवं शायर मुस्‍ताक चंचल, मीरा कन्‍या महाविद्यालय की व्‍याख्‍याता एवं अदबी संगम की अध्‍यक्ष डॉ. सरवत खान आदि के नाम विश्‍ोष रूप से उल्‍लेखनीय हैं। इस संवाद कार्यक्रम का संचालन प्रो. जैनब बानु ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन समान बचपन अभियान के कपिल जोशी ने किया।

प्रस्‍तुति- राजेश चन्‍द्र

राजभाषा हिन्दी संगोष्ठी एवं पुरस्कार वितरण समारोह



नई दिल्ली। यहॉं विस्तार निदेशालय में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के उद्वेश्य से एक राजभाषा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें बोलते हुए संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं भारत सरकार के पूर्व संयुक्त सचिव श्री बुध प्रकाश ने सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने पर ज़ोर देते हुए सभी कर्मियों से अपना सरकारी काम मौलिक रूप से हिन्दी में करने का आवाह्न किया। उन्होंने इसके लिए अनुवाद पर निर्भरता कम करने की सलाह भी दी। संगोष्ठी की
अध्यक्षता करते हुए विभाग के अपर आयुक्त श्री वाई आर मीना ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि निदेशालय में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर राजभाषा हिन्दी के इस तरह के कार्यक्रम चलते रहते हैं। और इनसे यहाँ के अधिकारी एवं कर्मचारीगण लाभान्वित होते रहते हैं।

इस अवसर पर निदेशक (विस्तार प्रबंध) डा. आर. के. त्रिपाठी ने भी सरकारी कार्यालय में हिन्दी के प्रयोग को लेकर अपने उद्गार प्रस्तुत किए।इससे पूर्व संगोष्ठी के प्रारम्भ में कार्यालय के सहायक लेखा अधिकारी श्री नन्द कुमार ने सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। इस अवसर पर राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं विभिन्न सामाजिक व राष्ट्रीय विषयों पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन भी किया गया। इसमें दिल्ली निवासी देश के अनेक नामीगिरामी कवि व शायरों ने अपनी सारगर्भित रचनाएं प्रस्तुत की। इनमें शामिल रहे सर्वश्री बागी चाचा, वीरेन्द्र कमर, डा. रवि शर्मा, अनुराग, रसीद सैदपुरी एवं अंजू जैन। गोष्ठी का सफल संचालन श्रीमती ममता किरन ने किया।

इस अवसर पर विगत दिनो संपन्न हिन्दी पखवाड़े के दौरान राजभाषा हिन्दी की विभिन्न प्रतियोगिताओं में सफल रहे अधिकारियों व कर्मचारियों को अतिथियों द्वारा पुरस्कार भी प्रदान किया गया। इन समस्त कार्यक्रमों का संचालन कार्यालय के सहायक निदेशक (राजभाषा) श्री किशोर श्रीवास्तव ने किया। अंत में संयुक्त निदेशक श्री पी. एस. आरमोरीकर ने सभी अतिथियों के प्रति निदेशालय की ओर से आभार व्यक्त किया।

प्रस्तुतिः इरफान सैफी राही (पत्रकार), नई दिल्ली मो. 9971070545

Monday, October 25, 2010

हिंदी के वरिष्ठ कथाकार सोहन शर्मा का निधन

हिंदी के वरिष्ठ कथाकार, उपन्यासकार और गंभीर मार्क्सवादी विचारक-चिन्तक डॉ. सोहन शर्मा का 21 अक्टूबर को रात के लगभग 11 बजे निधन हो गया। वे पिछले एक वर्ष से फेफड़ों के कैंसर से जूझ रहे थे। डॉ. सोहन शर्मा की बीसेक किताबें हैं। उनके कहानी संग्रह- बर्फ का चाकू, जूनी लकड़ियों का गट्ठर, आमने-सामने, आधे उखड़े नख की पीड़ा, अपनी जगह पर, स्याह होती धूप आदि तथा कविता संग्रह- थमना मत गोदावरी के साथ उनके बहुचर्चित उपन्यास थे-- ''मीणा घाटी'' और ''समरवंशी''। उनकी वैचारिक पुस्तकों में- ''विकल्प के पक्ष में'' चर्चित रही। उन्होंने ''सही समझ'' नाम से एक पत्रिका भी कई वर्षों तक सम्पादित की जिसमें उन्होंने युवा स्वर को प्रमुखता दी। वे बैंक ऑफ बडौदा में हिंदी अधिकारी में उप महाप्रबंधक के पद पर रिटायर हुए। भारत सरकार की बैंकों के कार्यान्वयन की राजभाषा नीति को लागू करवाने में उनकी महती भूमिका रही।
डॉ. सोहन शर्मा रामानंद सागर के ''रामायण'', ''पृथ्वीराज चौहान'' तथा ''मीरा'' धारावाहिक में शोध तथा पटकथा लेखन में सहायक रहे।

डॉ. सोहन शर्मा क्रांतिकारी वाम के समर्थक थे. वर्ल्ड सोशल फोरम के समानांतर उन्होंने एक क्रांतिकारी वाम पंथी फोरम का स्वरुप रखा। इधर वे अपने एक उपन्यास ''अहो , मुंबई'' के लेखन में व्यस्त थे तथा नक्सलवाद के सम्पूर्ण इतिहास का पुनर्लेखन कर रहे थे।

रविवार 24 अक्टूबर को संन्यास आश्रम , विले पार्ले पश्चिम में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में जगदम्बा प्रसाद दीक्षित, शोभनाथ यादव , आर.के पालीवाल, सुधा अरोड़ा, नंदकिशोर नौटियाल, विश्वनाथ सचदेव, अक्षय जैन,देवमणि पाण्डेय,पूर्ण मनराल, दयाकृष्ण जोशी, उमाकांत वाजपेयी आदि रचनाकारों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

सोहनजी की पत्नी शशि शर्मा का संपर्क नं. -- 022 2682 0216 / 98191 40555

डाला-उत्सव में 'अनाम' का लोकार्पण

श्री अचलेश्‍वर महादेव मंदिर फाउन्‍डेशन,डाला,सोनभद्र ने श्री अचलेश्‍वर महादेव मंदिर के 43वें स्‍थापना दिवस के अवसर पर भारतीय शास्‍त्रीय संगीत के भव्‍य कार्यक्रम का आयोजन किया। इस आयोजन में मुकुल शिवपुत्र जी, सारस्‍वत मंडल, कुशलदास सरीख्‍ो साधक कलाकारों ने शिरकत की।

हर-हर महादेव की ध्‍वनि के साथ आरम्‍भ और समाप्‍त होने वाले इस समारोह की अलौकिकता अनुपम रही। कार्यक्रम की शुरूआत सारस्‍वत मंडल नें राग मारवा में "झाँझर मोरा झनकायी" (विलम्‍बित एक ताल) तथा "माई री साँझ भये" (द्रुत एक ताल) बंदिश्‍ों सुनाकर की। इन बंदिशों नें वातावरण में अलख जगाने जैसा माहौल स्‍थापित कर दिया। इसके बाद सारस्‍वत मंडल जी नें एक टप्‍पा सुनाया। इस टप्‍पे में गायन की ऐसी कुशलता थी कि श्रोतागण झूमने पर मजबूर हो गये।

पंडित मुकुल शिवपुत्र जी ने राग बसंत मध्‍य तीन ताल में "सपनें में मिलते तोरे पिया" तथा द्रुत में तराना सुनाया। सारे श्रोता पंडित मुकुल शिवपुत्र जी को श्रद्धा तथा आश्‍चर्य के मिश्रित भाव से अभिभूत होकर स्‍तब्‍धता के साथ सुन रहे थ्‍ो। इसके उपरान्‍त पंडित मुकुल शिवपुत्र जी ने अपने पिता (पंडित कुमार गन्‍धर्व)जी द्वारा रचित ठुमरी "बाली उमर लरिकइयाँ" सुनाई। कुशलदास जी ने राग बागेश्री, मिश्र खमाज तथा भ्‍ौरवी में मनोहारी सितार वादन किया। क्ष्‍ोत्र के आमंत्रित तमाम बुद्धिजीवी तथा सुधी श्रोता गणों ने कार्यक्रम का आनन्‍दलाभ लिया।



इसी आयोजन के दौरान हिन्‍द युग्‍म द्वारा प्रकाशित राक़िम के ग़ज़ल संग्रह अनाम का लोकार्पण पंडित मुकुल शिवपुत्र जी के हाथों सम्‍पन्‍न हुआ।

प्रेषक-चन्‍द्र प्रकाश तिवारी

स्वर्णिम मातृभाषा महोत्सव 2010 के अंतर्गत गुजरात साहित्य अकादमी का कवि सम्मलेन



स्वर्णिम मातृभाषा महोत्सव : 2010 के अंतर्गत गुजरात साहित्य अकादमी के द्वारा सुरेंद्रनगर में कवि सम्मलेन का आयोजन 23 अक्टूबर 2010 किया गया था| स्वर्णिम मातृभाषा महोत्सव में गुजरात के सभी जिलो में स्थानीय कवि सम्मेलनों का आयोजन करके गुजराती भाषा की व्यापकता और सज्जता बढाने हेतु किया जाता है| इस कवि सम्मलेन में सुरेंद्रनगर जिले के 11- कविओं में सर्वश्री रमेश आचार्य, रमणीकलाल मारू, सोलिड मेहता, राज लखतरवी, गिरीश भट्ट, जशवंत मेहता, बी.के.राठोड, जातूष जोशी, दर्शक आचार्य, हसमुख गोवाणी और कवि सम्मलेन का संचालन कर रहे कविश्री एस. एस. राही उपस्थित थे|

कार्यक्रम के आरम्भ में गुजरात साहित्य अकादमी के महामात्र (डायरेक्टर) श्री हर्षद त्रिवेदी ने स्वागत प्रवचन किया और गुजराती भाषा का महिमा बढ़ाने का अनुरोध किया|

Sunday, October 24, 2010

समाचार पत्रों की बिक्री संख्या पर भी स्टिंग ऑपरेशन होना चाहिये– आलोक मेहता



“समाचार पत्रों की इन्फ़लेटिड बिक्री संख्या की जांच होनी चाहिये। सरकारी विज्ञापन पाने के लिये समाच्रार पत्र बिक्री संख्या कहीं बढ़ा चढ़ा कर दिखाते हैं। जबकि सच यह है कि दिल्ली जैसे शहर में टेम्पो प्रिटिंग प्रेस से अख़बार ले कर चलता है और शाहदरा के किसी गोदाम में डम्प कर देता है।” यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार एवं नई दुनियां के सम्पादक पद्मश्री आलोक मेहता का। आलोक मेहता इन दिनों लंदन यात्रा पर हैं और कल शाम वे लंदन के नेहरू केन्द्र में पत्रकारों और साहित्यकारों को सम्बोधित कर रहे थे। इस गोष्ठी का आयोजन कथा यूके एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने मिल कर किया था।

कथा यूके के महासचिव एवं कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने आलोक मेहता का परिचय करवाते हुए उनकी महत्वपूर्ण कृति पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा के हवाले से भारत में हाल ही में हुई घटनाओं पर भारतीय मीडिया की भूमिका पर आलोक मेहता से टिप्पणी करने को कहा – जिनमें रामजन्म बाबरी मस्जिद विवाद पर उच्च न्यायालय का फ़ैसला; कॉमनवेल्थ खेल; आतंकवाद आदि शामिल हैं।

आलोक मेहता का मानना है कि यदि हम बाबरी मस्जिद के गिराए जाने के समय की पत्रकारिता की आज की पत्रकारिता से तुलना करें तो हम पाएंगे कि मीडिया ने ख़ासे सयंम का परिचय दिया है। अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों को भी हमने अपने साथ जोड़ा है और तय किया गया है कि सेसेनलिज़म से बचा जाए। सरकार को खासा डर था कि इस निर्णय के बाद दंगों की आग से फैल सकती है। मीडिया ने पुराने मस्जिद टूटने के चित्रों का इस्तेमाल नहीं किया। और कुल मिला कर समाचार कवरेज परिपक्व रहा।


लंदन के नेहरू केन्द्र में गोष्ठी के बाद बैठे हुए बाएं से दाएं – डा. अचला शर्मा (उपाध्यक्ष कथा यू.के.), कैलाश बुधवार, डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, पद्मश्री आलोक मेहता, मोनका मोहता, तेजेन्द्र शर्मा (महासचिव कथा यू.के.)। खड़े हुए बाएं से दाएं – डा. हिलाल फ़रीद, दिव्या माथुर, परवेज़ आलम, डा. मधुप मोहता, शिखा वार्षणेय़। - चित्रः विजय राणा।

आलोक मेहता ने स्वीकार किया कि कॉमनवेल्थ खेलों के कवरेज में कुछ अति अवश्य हुई, मगर यह ज़रूरी भी थी। यह ठीक है कि खेलों और भारत की छवि विश्व में कुछ हद तक धूमिल हुई, मगर इसी वजह से सरकारी मशीनरी हरक़त में आई और अंततः खेल सही ढंग से संपन्न हो पाए। उन्होंने बताया कि जब वे नई दुनियां में खेलों की तैयारी के बारे में समाचार प्रकाशित करते थे तो राजनीतिज्ञ सवाल भी करते थे कि उनके विरुद्ध क्यों समाचार प्रकाशित किए जा रहे हैं। दरअसल सरकार की हालत ऐसी है जैसे इन्सान एंटिबॉयटिक से इम्यून हो जाता है ठीक वैसे ही सरकार भी आलोचना से इम्यून हो चुकी है।

वरिष्ठ पत्रकार विजय राणा का मत था कि डी.ए.वी.पी. के माध्यम से सरकार सरकार समाचार पत्रों को विज्ञापन दे कर अपने विरुद्ध लिखने से रोकने में सफल हो जाती है। हिन्दुस्तान टाइम्स एवं टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसे दैत्यों को तो करोड़ों के विज्ञापन मिलते हैं। क्या ये विज्ञापन भी भ्रष्टाचार नहीं फैलाते।

मधुप मोहता का सवाल था कि सत्तर हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च कर कॉमनवेल्थ खेल करवाए जा सकते हैं तो केवल सौ करोड़ का ख़र्चा कर के हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा क्यों नहीं बनवाया जा रहा। इस पर आलोक मेहता का कहना था कि इसमे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। यदि सरकार 10 बड़े व्यापारी घरानों से पैसा इकट्ठा करने को कहे तो सौ करोड़ रुपये महीने भर में इकट्ठे हो सकते हैं। शिवकांत को समस्या इस बात में दिखाई देती है कि प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को कैसे मनाया जाए कि वे व्यापारी घरानों को इस विषय में संपर्क करें।

कथा यूके की उपाध्यक्ष डा. अचला शर्मा की चिन्ता थी कि मह्तवाकांक्षा की भाषा अंग्रेज़ी बन गई है। जब तक हिन्दी तरक्की और बेहतरी से नहीं जुड़ेगी उसे उसका सही दर्जा नहीं मिल पाएगा।

डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव का कहना था कि भाषा में दिनमान के ज़माने से आजतक ख़ासा परिवर्तन आ गया है। अब प्रिन्ट मीडिया की भाषा आम इन्सान की भाषा हो गई है। आलोक मेहता ने कहा कि हमें सतर्कता बरतनी होगी। हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्द आने से हिन्दी अधिक समृद्ध होगी मगर यह हमें सावधानी से करना होगा। जो नये शब्द हैं उन्हें हिन्दी में ज़रूर शामिल किया जाए, जैसे कि मेट्रो के लिये नया शब्द गढ़ने की ज़रूरत नहीं। मगर हिन्दी के प्रचलित शब्दों को हटा कर उनके स्थान पर अंग्रेज़ी के शब्द न थोपे जाएं।

नेहरू सेन्टर की निदेशक मोनिका मोहता ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। एक सार्थक शाम पूरी होने का अहसास सबके मन में था।

Saturday, October 23, 2010

डॉ. पुल्लेल श्रीरामचंद्रुडु को वर्ष 2010 का वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक पुरस्कार



हैदराबाद । 17 अक्टूबर, 2010
प्रतिष्ठित हिंदी सेवी स्व. वेमूरि आंजनेय शर्मा के 94वें जयंती समारोह के अवसर पर श्री वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2010 के स्मारक पुरस्कार प्रदान किए गए। जयंती एवं पुरस्कार समारोह यहाँ रवींद्र भारती में प्रबंधक न्यासी प्रो. वेमूरि हरिनारायण शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर वरिष्ठ तेलुगु पत्रकार पोत्तूरि वेंकटेश्वर राव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

स्मरणीय है कि ट्रस्ट द्वारा प्रति वर्ष तेलुगु साहित्य, हिंदी साहित्य और अभिनय जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए दस-दस हजार रुपये के तीन नकद पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाते हैं। इस वर्ष तेलुगु साहित्य के लिए यह पुरस्कार 83 वर्षीय वरिष्ठ साहित्यकार महामहोपाध्याय डॉ. पुल्लेल श्रीरामचंद्रुडु को प्रदान किया गया, जिन्होंने तेलुगु तथा संस्कृत साहित्य को अपनी मौलिक तथा अनूदित रचनाओं से सुसंपन्न किया है । हिंदी साहित्य के लिए इस वर्ष ‘राष्ट्र नायक’ पत्रिका के संपादक 75 वर्षीय डॉ. हरिश्चंद्र विद्यार्थी को हैदराबाद में हिंदी भाषा, साहित्य और पत्रकारिता के उन्नयन के लिए दिया गया। इसी प्रकार प्रसिद्ध तेलुगु रंगकर्मी 75 वर्षीय डॉ. मोदलि नागभूषण शर्मा को अभिनय जगत में योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया। इसके अतिरिक्त न्यास की ओर से विभिन्न छात्र-छात्राओं को 'प्रतिभा पुरस्कार' और ‘सरस्वती पुरस्कार’ भी वितरित किए गए।

आरंभ में मुख्य अतिथि पोत्तूरि वेंकटेश्वर राव ने मट्टपर्ति वीरांजनेयुलु द्वारा चित्रित वेमूरि आंजनेय शर्मा के विशाल तैलचित्र को लोकार्पित किया। इस अवसर पर संबोधित करते हुए पोत्तूरि वेंकटेश्वर राव ने कहा कि वेमूरि आंजनेय शर्मा ने अपना पूरा जीवन हिंदी की सेवा और भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय के कार्य के लिए समर्पित कर दिया, अतः वे सही अर्थों में दक्षिण और उत्तर के सामाजिक-सांस्कृतिक सेतु के निर्माता थे। डॉ. पोत्तूरि ने आंजनेय शर्मा जी द्वारा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के माध्यम से राष्ट्रीय अखंडता और सामासिक संस्कृति के संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों का स्मरण करते हुए उन्हें नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय और आदर्श बताया।

पुरस्कृत विद्वानों को समर्पित किए गए प्रशस्ति पत्रों का वाचन विद्यानाथ शास्त्री, कृष्णमूर्ति और ज्योत्स्ना कुमारी ने किया। समारोह का संचालन डॉ. पेरिशेट्टी श्रीनिवास राव ने किया।

प्रस्तुति- ऋषभ देव शर्मा

उस्मानाबाद में 'हिन्दी साहित्य में महाराष्ट्र के साहित्यकारों का योगदान' विषयक दोदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



कला, विज्ञान एवं वाणिज्‍य महाविद्यालय नलदुर्ग में द्विदिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी सम्‍पन्‍न हुई। जिसमें 210 अध्‍यापक और 65 छात्र सहभागी हुए तथा चार ग्रंथों का विमोचन किया गया। संगोष्‍ठी का उद्‌घाटन डॉ. चंद्रदेवजी कवडे अध्‍यक्ष, हिंदी प्रचार सभा हैदराबाद ने किया जिसमें उन्‍होंने अनुवाद विधा पर बल देते हुए कहा कि भविष्‍य में अनुवाद विधा को बहुत महत्‍व प्राप्‍त होने वाला है। इसलिए आज मराठी से हिंदी तथा हिंदी से मराठी के साहित्‍यानुवादक की आवश्‍यकता है। बीज वक्‍तव्‍य प्रसिद्ध आलोचक डॉ. सूर्यनारायणजी रणसूभे ने दिया। जिसमें उन्‍होंने आदिकाल से आधुनिक काल तक के महाराष्‍ट्र के हिंदी साहित्‍यकारों के योगदान को स्‍पष्‍ट करते हुए मराठी पर हिंदी का और हिंदी पर मराठी के पडे प्रभाव को उदाहरणों द्वारा स्‍पष्‍ट किया। दक्‍खिनी हिंदी की जन्‍म भूमि महाराष्‍ट्र रही है तथा दक्‍खिनी का हिंदी के विकास में बहुत बडा योगदान रहा है।
संगोष्‍ठी में 106 आलेख आये थे इस कारण संगोष्‍ठी को चार भागों में विभाजित किया गया था। 1) भक्‍तिकालीन महाराष्‍ट्र का संत साहित्‍य जिसकी अध्‍यक्षता डॉ. इरेश स्‍वामी ( पूर्व प्रथम उपकुलपति सोलापूर विश्‍वविद्यालय सोलापूर ) तथा विषय प्रवर्तन डॉ. आलिया पठाणने किया। इस सत्र में लगभग 14 आलेख पढ़े गये।
द्वितीय गोष्‍ठी का विषय था 2) रीतिकालीन हिंदी साहित्‍य और महाराष्‍ट्र जिसकी अध्‍यक्षता डॉ इरेश स्‍वामी तथा विषय प्रवर्तन डॉ. श्‍याम आगळे ने किया इस सत्र में लगभग 12 आलेख पढ़े गये।
तीसरी गोष्‍ठी का विषय था 3) प्रयोजन मूलक हिंदी और महाराष्‍ट्र जिसकी अध्‍यक्षता डॉ. प्रो. डॉ. अंबादास देशमुख, बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष ने किया तथा विषय प्रवर्तक डॉ. सुरेश माहेश्‍वरी (अमलनेर) थे। जिसमें 14 आलेख पढ़े गये।



चौथी गोष्‍ठी का विषय था 4) आधुनिक हिंदी साहित्‍य और महाराष्‍ट्र जिसकी अध्‍यक्षता डॉ. देविदास इंगळे ने की। इस गोष्‍ठी में 16 आलेख पढे गये। साथ ही विशेष टिप्‍पणी प्रसिद्ध व्‍यंग्‍य कवि डॉ. काझी जर्रा ने दी। राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी में सभी आलेख वाचकों को आकर्षक स्‍मृति चिन्‍ह एवं प्रशस्‍ती पत्र दिया गया ।
संगोष्‍ठी के समापन में विशेष अतिथि के रूप में प्रसिद्ध अनुवादक प्राचार्य डॉ. वेदकुमार वेदालंकार (तुकाराम अभंगगाथा) जी थे जिन्‍होंने अपने वक्‍तव्‍य में महाराष्‍ट्र के संतों की महत्‍ता को व्‍यक्‍त किया। साथ ही संत वाणी की प्रासंगिकता तथा उनके द्वारा लिखे गये अभंगों (पदों) को हिंदी में अनुवादित करने की आवश्‍यकता पर बल दिया। उद्‌घाटन समारोह के अध्‍यक्ष मा. शिवाजीराव पाटील बाभळगावकरजी थे जिन्‍होंने अपने अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में कहा मनुष्‍य को मनुष्‍य बनाने कार्य तत्‍कालीन समय में संतों ने किया और आज के युग मेंयह दायित्‍व अध्‍यापकों का है। आज यहाँ पर बड़ी संख्‍या में अध्‍यापक इकट्ठा हुए हैं उन्‍होंने इस बात को आवश्‍य समझ लेना चाहिए। समापन समारोह के अध्‍यक्ष मा. नरेद्रजी बोरगावकर थे जिन्‍होंने नागरी लिपि में विनोबा भावे, लोकमान्‍य तिलक, महात्‍मा गांधी, राज गोपाल चारी आदि के योगदान को भक्‍त करते हुए अपने स्‍वानुभव को (दक्षिण भारत) व्‍यक्‍त किया। समापन में विशेष वक्‍तव्‍य मा. आलूरे गुरूजी ने दिया। जो एक अध्‍यापक थे बाद में महाराष्‍ट्र के विधायक बने फिर उसी स्‍कूल में अध्‍यापक पद पर विराजमान हुए, आज एक शिक्षा संस्‍था के अध्‍यक्ष है। जिसमें उन्‍होंने अध्‍यापक के जीवन पर पड़ने वाले उत्‍तर दायित्‍व को व्‍यक्‍त किया।



स्‍वागताध्‍यक्ष डॉ. सूहासजी पेशवे थे जिन्‍होंने मान्‍यवरों का स्‍वागत करते हुए महाविद्यालय के 35 वर्ष के इतिहास को बताया साथ ही महाविद्यालय के हिंदी विभाग की गतिविधियाँ भी बतायी। पिछली बार हुई नागरी लिपि संगोष्‍ठी को वर्णन करना भी नहीं भूले।
संगोष्‍ठी संयोजक डॉ. हाशमबेग मिर्झा ने संगोष्‍ठी का प्रास्‍ताविक एवं आनेवाले प्रतिभागियों का आभार व्‍यक्‍त किया साथ ही श्रेष्‍ठ शोधालेखों को पुस्‍तक के रूप में प्रकाशीत करने का वचन भी दिया। इन्‍हें हिंदी विभागाध्‍यक्ष ने पूरा-पूरा सहयोग दिया मान्‍यवरों का स्‍वागत से लेकर मंच संचलन की जिम्‍मेदारी डॉ. सुभाष राठोड ने पूरी की। इस संगोष्‍ठी को सफल बनाने में उपप्रधानाचार्य नरसिंह माकने ,सहसंयोजक डॉ. पंडित गायकवाड, डॉ. अशोक मर्डे, डॉ. मल्‍लीनाथ बिराजदार, डॉ. विनय चौधरी प्रा.कु. सुमन सरडे आदि ने सहयोग दिया। महाविद्यालय के सभी वरिष्‍ठ कनिष्‍ठ अध्‍यापक एवं शिक्षकेत्तर कर्म चारियों ने अलग-अलग समितियों कें माध्‍यम से संगोष्‍ठी को सफल करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रस्‍तुति- डॉ. हाशमबेग मिर्झा

Wednesday, October 20, 2010

अमेरिका के सबसे बड़े रावण के दहन और रामलीला की धूम



अक्तूबर १७, २०१० को हिंदी विकास मंडल एवं हिन्दू सोसाईटी (नार्थ कैरोलाईना) ने मौरिसविल (नार्थ कैरोलाईना) के हिन्दू भवन के खुले ग्राउंड में दशहरा उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया| ३८ फुट का रावण (जिसका शरीर ३० फुट का, सिर ६ फुट का, मुकुट १.८ फुट का और कलगी ०.२ फुट की थी) सबके आकर्षण का केंद्र था| अमेरिका में यह सबसे बड़ा रावण था| इसका डिजाइन और ढांचा स्वयं-सेवकों की टीम (अशोक एवं मधुर माथुर, रमणीक कामो, अजय कौल, डॉ. ध्रुव कुमार, सतपाल राठी, डॉ. ओम ढींगरा, मदन एवं मीरा गोयल, ममता एवं प्रदीप बिसारिया, तुषार घोष, उत्तम डिडवानिया, लुईस और रमेश माथुर) ने तीन महीने की मेहनत और लगन से तैयार किया|
रावण दहन से पहले राम और रावण के द्वन्द्व युद्ध का मंचन किया गया| ध्वनी और प्रकाश के प्रयोग ने इसे बहुत प्रभावित बना दिया| राम जी की भूमिका (अतीश कटारिया), सीता जी (स्मिता कटारिया), लक्ष्मण (रमेश कलाज्ञानम), हनुमान (डॉ. ध्रुवकुमार), ब्राह्मण (रमेश माथुर ) और रावण (डॉ. अफ़रोज़ ताज) ने किया| रामलीला के इस अंश को लिखा और प्रस्तुत किया डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने और निर्देशन दिया रंगमंच के प्रसिद्ध कलाकार और निर्देशक हरीश आम्बले ने| बिंदु सिंह और डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने पात्रों का मेकअप कर उन्हें सजीव कर दिया| प्रकाश का सञ्चालन किया शिवा रघुनानन ने और ध्वनी का संयोजन किया जॉन कालवेल ने| राम और रावण को आवाज़ें दीं रवि देवराजन और डॉ. अफ़रोज़ ताज ने| राम जी की शांत और ठहराव वाली आवाज़, रावण की विद्रूप हँसी के मिश्रण पर बच्चों और बड़ों ने बहुत तालियाँ बजाईं|



राम-लक्ष्मण तथा हनुमान जी के तिलक से उत्सव का आरंभ हुआ| स्टेशन वैगन को सजा कर "इन्द्र वाहन" बनाया गया और उसकी छत पर बैठ कर पूरा काफिला रामलीला ग्राउंड में पहुंचा| पीछे छोटे बच्चों की बानर सेना, हनुमान जी की तरह सजे- धजे "जय सिया राम" का उच्चारण करते चले| अमेरिका की धरती पर समय बंध गया| हज़ारों लोग राम जी की सवारी, रामलीला और रावण दहन में शामिल हुए| इस सारे कार्यक्रम को हिंदी विकास मंडल की अध्यक्ष श्री मति सरोज शर्मा के मार्ग दर्शन में तैयार किया गया|

रामलीला का एक छोटा सा वीडियो भी देखें-


प्रस्तुति- कुबेरनी हनुमंथप्पा

Tuesday, October 19, 2010

कंचना स्मृति व्याख्यानमाला एवं पुरस्कार समारोह 2010



नई दिल्ली । 09 अक्टूबर
वरिष्ठ पत्रकार एवं अखबारों में खबरों की खरीद-फरोख्त की जांच के लिये गठित भारतीय प्रेस परिषद की समिति के सदस्य श्री परंजॉय गुहा ठकुरता ने पत्रकारित की सुचिता पर जोर देते हुए पत्रकारों का आहवान किया कि वे इस भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेडें. सातवीं कंचना स्मृति व्याख्यानमाला में खबरों की खरीद फरोख्त, पत्रकारिता एवं लोकतंत्र विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्री परंजॉय गुहा ठकुरता ने यह बात कही. समारोह में इस वर्ष का कंचना स्मृति पुरस्कार सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता स्वर्गीय श्री मार्कंडेय सिंह को मरणोंपरांत दिया गया. यह पुरस्कार उनके करीबी सहयोगी व बनारस हिंदू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर आनंद कुमार ने प्राप्त किया.

परिषद की जांच से संबंधित कई पहलुओं का विवरण देते हुए बताया कि किस तरीके से कुछ बड़े अखबार समूह के मालिक खबरों के गोरखधंधे में शामिल हैं और इससे लोकतंत्र के साथ साथ पत्रकारिता की गरिमा और प्रतिष्ठा को आघात पहुंच रहा है. उन्होंने कहा कि इस मामले पर लोक सभा और राज्य सभा में काफी बहस हुई है. लेकिन राजनीतिक दल बहुत खुल कर प्रतिकार नहीं कर रहे हैं. चुनाव में खबरों की खरीद फरोख्त का काम सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं और अखबार भी कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम समेत कई तरह के उल्लंधनों में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि इस काम में सबसे बडे अखबार सबसे ज्यादा शामिल हैं और वे छोटे अखबारों के लिये भ्रष्टाचार का एक रास्ता दिखा रहे हैं. फिर भी उन्होंने इस बात का संतोष जताया कि कई अखबार खबरों की खरीद फरोख्त के खिलाफ खडे हुए हैं और बिहार के चुनाव में चुनाव आयोग ने भी एक अलग कमेटी बनायी है. लेकिन यह बीमारी महामारी न बन जाये इस नाते इसे रोकने के लिये सभी को आगे आना होगा अन्यथा इससे मीडिया की विश्वसनीयता समाप्त हो जायेगी.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विख्यात पत्रकार एवं नई दुनिया के राष्ट्रीय संपादक श्री मधुसूदन आनंद ने अपने विद्वतापूर्ण वक्तव्य में हिंदी पत्रकारिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, मूल्यों और मिशनरी भाव का उल्लेख करते हुए बताया कि आजादी के बाद भी पत्रकारिता में मूल्य दिखाई देते थे, लेकिन धीरे-धीरे पत्रकारिता सकारात्मकता से नकारात्मकता की ओर उन्मुख हो गयी है, हमारे लिये सबसे बडी चिंता का विषय यह है कि खबर तथा विज्ञापन के बीच की रेखा धुंधली हो गयी है. और भ्रष्टाचार को संस्थागत स्वरूप मिल गया है. उन्होंने इस बात पर भी गहरी चिंता जताई की उपभोक्ता समाज में टेलिविजन, शिक्षित करने की बजाय महज मनोरंजन प्रधान भूमिका में हो गया है. उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ सभी को एकजुट होकर लडने की जरूरत है.



जाने-माने समाज शास्त्री प्रोफेसर आनंद कुमार ने विषय प्रस्तावना में मीडिया के साथ शिक्षा चिकित्सा एवं अन्य पेशों में आये व्यापक बदलाव और अतिशय व्यवसायिक दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए कहा कि इन सबसे लोकतंत्र को ऐसा खतरा नहीं है, जो परिकल्पित किया जा रहा है.

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने प्रस्तावना में कंचना स्मृति व्याख्यानमाला तथा समारोहों के बारे में जानकारी दी तथा बताया कि भविष्य में दिल्ली से बाहर कार्यक्रम की योजना है. सामाजिक कार्यकर्ता श्री राम कुमार ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए धन्यवाद ज्ञापन दिया. कार्यक्रम का संचालन श्री बाबूलाल शर्मा ने किया. प्रोफेसर ओम प्रकाश ने स्वर्गीय श्री मार्कंडेय सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला. अतिथियों ने कंचना स्मृति व्याख्यानमाला 2009 की पुस्तिका का भी लोकार्पण किया.



इस कार्यक्रम में गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री अच्युतानंद मिश्र, पूर्व मंत्री श्री बालेश्वर त्यागी, डा. रामकृपाल सिन्हा, रामाशीष राय, मृदुला सिन्हा, विख्यात हिंदी सेवी श्री मदन विरक्त, प्रवाल मैत्र, बनारसी सिंह, जवाहर लाल कौल, प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ, भारत कृषक समाज के अध्यक्ष डा. कृष्णवीर चौधरी, कंचना स्मृति न्यास के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, प्रबंध न्यासी अवधेश कुमार, श्री जवाहर सिंह, निर्दोष त्यागी समेत कई क्षेत्रों के विख्यात समाजसेवी, पत्रकार एवं लेखक आदि उपस्थित थे।

Monday, October 18, 2010

सलूम्बर, राजस्थान में विशाल बाल साहित्यकार सम्मलेन

उदयपुर/ राजस्थान साहित्य अकादमी एवं सलूम्बर की साहित्यिक संस्था सलिला के संयुक्त तत्वावधान में सलूम्बर में दिनांक 25 व 26 सितम्बर,10 को बाल साहित्य पर केन्द्रित संभागीय साहित्यकार सम्मेलन आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की रूपरेखा संयोजिका एवं जिला परिषद सदस्या, उदयपुर श्रीमती विमला भंडारी ने अपनी सलिला टीम के साथ बनायी। संभवतया देश में होने वाला यह पहला ऐसा सद्प्रयास था जिसमें यह परिकल्पना की गई थी कि साहित्य की सुगंध गांव-कस्बों-ढ़ाणी तक होती हुई उस अंतिम छोर के बालक तक पहुंचे जिन्होंने ऐसे कार्यक्रम कभी देखे सुने नहीं। साहित्य के बलबूते लोगों की मानसिकता बदली जा सकती है और बच्चों को संस्कार दिये जा सकते है।

कार्यक्रम की ऐसी अनूठी एवं विशद संरचना गढ़ी गई। जिसमें राजस्थान सहित 10 प्रदेश के बाल साहित्यकारों ने शिरकत की। दो दिवसीय इस सम्मेलन में 25 विद्यालयों के लगभग 150 विद्यार्थियों एवं शिक्षकों ने, शिक्षा उच्च अधिकारियों ने, प्रशासनिक उच्च अधिकारियों ने, जनप्रतिनिधियों ने सक्रिय भागीदारी की। तीन चरण में पूरा होने वाला इस सम्मेलन ने कस्बाई एवं ग्रामीण क्षेत्र को प्रभावित किया। पहले दिन सलूम्बर क्षेत्र एवं दूसरे दिन ईडाणा पंचायत की जनता इससे लाभाविंत हुई। करीबन 3000 से 4500 तक लागों ने इस सम्मेलन को देखा व सुना। यह जन भागीदारी इस सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

यह सम्मेलन 21वीं सदी का बालक, साहित्य एवं साहित्यकार पर केन्द्रित था। साहित्य का समाजिक सरोकारों से सम्बन्ध है, इसलिए बालकों की इस पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास सराहनीय है। बालकों को मशीनी मानव बनाने वाली शिक्षा के बजाय साहित्य की ओर उन्मुख करने, टी.वी. एवं इलेक्ट्रोनिक माध्यमों से बच्चों पर हो रहे दुष्प्रभावों और 21वीं सदी के बालकों के लिए कैसा साहित्य अपेक्षित है, पर सम्मेलन में गंभीर चर्चा और विचार विमर्श हुआ।

उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि उदयपुर सांसद माननीय श्री रघुवीर सिंह मीणा ने कहा कि ऐसा साहित्य का सृजन हो जो बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव डाले। अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार डॉ. राष्ट्रबन्धु (उ.प्र.) ने कहा कि समाज और व्यक्ति को बाल कल्याण का कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बालकों में सत्यप्रियता, अच्छाई,संवेदनशीलता होती है। विशिष्ट अतिथि महाराष्ट्र की साहित्यकार श्रीमती सरताज बानू , उदयपुर जिला परिषद् के सी.ई.ओ. श्री राजेन्द्र सिंह शेखावत , सिंचाई विभाग के अधिशाषी अभियंता श्री कैलाशदान सांदू थे। संचालन कवि प्रह्लाद पारीक (भीलवाड़ा) एवं नारायण टेलर ने किया। प्रारंभ में श्री सुरेश लाड़ोती ने सरस्वती वन्दना एवं सम्मेलन संयोजिका श्रीमती विमला भंडारी ने स्वागत उद्बोधन दिया। धन्यवाद श्री नारायण सकरावत ने दिया। इस अवसर पर साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने पर डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू को सलिला विशेष साहित्यकार सम्मान 2010 दिया गया। पुस्तक ‘‘बाल साहित्य पद्य कथाएं’’ लेखक राजकिशोर सक्सेना एवं सलिला स्मारिका का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया।

उद्घाटन सत्र के बाद ‘‘21वीं सदी का बाल साहित्य’’ (काव्य विधा पर ) पर केन्द्रित प्रथम चर्चा सत्र में श्री जगदीश चन्द्र शर्मा (गिलूण्ड) ने पत्रवाचन किया । मुख्य अतिथि डॉ. शकुन्तला कालरा (दिल्ली) थी। अध्यक्षता डॉ. भगवतीलाल व्यास (उदयपुर) ने की। विशिष्ट अतिथि श्री नरोत्तम व्यास ,डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, अतिरिक्त प्रा.ब्लॉक शिक्षा अधिकारी श्री चोखराज मेघवाल थे। संचालन अंजीव अंजुम (दौसा) एवं श्रीमती शकुन्तला सोनी ने किया। इस अवसर पर स्कूली बालकों ने कविता प्रस्तुती की। साहित्यकारों द्वारा उन्हें पुरस्कर दिया गया एवं बच्चों ने साहित्यकारों से चर्चा परिचर्चा भी की।

शाम नगरपालिका सलूम्बर में पालिकाध्यक्ष नंदलाल सुथार, पालिका उपाध्यक्ष शायदा परवीन व पार्षदों, अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा साहित्यकारों का माल्यार्पण, नारियल एवं पुष्पवर्षा द्वारा स्वागत सत्कार किया गया। ढ़ोल नगारे के साथ साहित्यकारों का समूह जुलूस रूप धारण कर नगर के मुख्य बाजार से होता हुआ राजमहलों में पहुंचा जहां गायत्री परिवार द्वारा पुष्पवर्षा कर जलपान कराया गया। नगर सेठ कमल कुमार गांधी द्वारा भी साहित्यकारों का मालाओं से सम्मान किया गया।

रावली पोल में विराट कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार श्री किशन दाधीच,उदयपुर ने की। मुख्य अतिथि सलूम्बर उपखण्ड अधिकारी गोविन्दसिंह राणावत, ए.डी.जे. शिव कुमार शर्मा सा. ए.सी.जी.एम. श्री प्रहलादराय शर्मा विशिष्ट अतिथि तहसीलदार पर्वतसिंह चूंडावत थे। इस कवि सम्मेलन में सर्वश्री डॉ. रामनिवास मानव (हिसार), डॉ. भैरूंलाल गर्ग (भीलवाड़ा), बनज कुमार बनज, कृपाशंकर अचूक,(जयपुर), दिनेश सिंदल(जोधपुर), कृष्ण शलभ(सहारनपुर), मनोहर श्रीमाली, भवानी शंकर भाव, पुरुषोत्तम पल्लव, रामदयाल मेहरा, नरोत्तम व्यास,(उदयपुर), नंदकिशोर निझर,(चितौडगढ़), भगवती प्रसाद गौतम ,कमलेश कमल (कोटा) गोविन्द भारद्वाज (अजमेर),अपर्णा भटनागर, (अहमदाबाद) रामेश्वर उदास, मुकेश राव (सलूम्बर) सहित स्थानीय कवियों ने कविता पाठ किया। संचालन श्रीमती शकुन्तला स्वरूपरिया ने किया। आभार विनय वैष्णव ने दिया।

कहानी में साहित्य का व संदेश का होना बेहद जरूरी है, अन्यथा वह बेकार हो जाती है। वर्तमान युग में बच्चों को कविता के बजाय कहानियां ज्यादा पसंद है। साहित्य के बलबूते लोगों की मानसिकता बदली जा सकती है और बच्चों को संस्कार दिये जा सकते है। यह बात द्वितीय दिन किसान भवन में श्री इडाणा माता ट्रस्ट, इडाणा में ‘‘21वीं सदी का बाल साहित्य’’ (कथा विधा) पर केन्द्रित चर्चा सत्र में उभर कर आयी। डॉ. शकुन्तला कालरा ने पत्र वाचन किया । मुख्य अतिथि डॉ. भैरूंलाल गर्ग (भीलवाड़ा) थे। अध्यक्षता डॉ. राजकिशोर सक्सेना (खटीमा, उत्तराखण्ड) ने की। विशिष्ट अतिथि श्री भगवती प्रसाद गौतम, डॉ रामनिवास मानव , श्री शंकरलाल सोनी, अध्यक्ष ईडाणा माता ट्रस्ट, अतिरिक्त प्रा.ब्लॉक शिक्षा अधिकारी श्री जयप्रकाश आगाल थे और सानिध्य कर रही थी सलूम्बर पंचायत समिति की प्रधान शान्ता देवी मीणा। स्थानीय नागरिकों में मोहनसिंह राणावत, पहाड़सिंह ने विचार व्यक्त किये। गांव ढ़ाणी से आये विद्यार्थियों ने रचना प्रस्तुत की एवं पुरस्कार पायें।

इस सत्र में डॉ. राष्ट्रबंधु एवं श्री अम्बालाल शर्मा को शॉल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया। सम्मेलन में साहित्यकारों ने कविता, कहानी व चुटकलों के माध्यम से हंसने व सोचने पर मजबूर कर दिया। तृतीय एवं समापन सत्र बाल साहित्य के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं पर केन्द्रित था। इसमें श्री गोविन्द शर्मा ने पत्रवाचन किया। अध्यक्षता डॉ. ज्योतिपुंज ने की एवं सानिध्य जिला परिषद सदस्या श्रीमती रमाकंवर थी। श्री रत्न कुमार सांभरिया श्री पुरुषोत्तम पल्लव,श्री मनोहर श्रीमाली, विकास अधिकारी सलूम्बर अरूण आमेटा विशिष्ट अतिथि थे। डॉ .हूंदराज बनवाणी,अहमदाबाद मुख्य अतिथि थे। संचालन श्री प्रहलाद पारीक ने किया । अन्त में अकादमी प्रतिनिधि श्री रामदयाल मेहर ने आभार ज्ञापित किया ।

राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा सलिला को यह कार्यक्रम संभाग स्तर पर करने का अनुरोध किया गया था किन्तु श्रीमती विमला भंडारी के अथक प्रयासों ने इसे राष्ट्रीय स्तर का बनाकर तमाम ऊंचाईयां देते हुए इस क्षेत्र की जनता, साहित्य एवं बालकों को लाभाविंत किया। यह पहली बार सम्पन्न होने वाला ऐतिहासिक कार्यक्रम अविस्मरणीय बन गया।

प्रस्तुति- रामेश्वर चौबीसा
सह संयोजक सलिला
सलूम्बर -राजस्थान मो. 9887205549

शिवराम ने लुप्त होती जननाट्य शैली पुनरार्वेष्टित किया


उदयपुर। प्रसिद्ध जननाट्यकार शिवराम के निधन पर एक स्मरणांजलि सभा में विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि शिवराम सचमुच क्रांतिधर्मी नाटककार थे। उनके नाटक लोकप्रियता की कसौटी पर भी खरे उतरे और श्रेष्ठता के सभी मापदण्ड भी पूरे करते हैं।

वरिष्ठ कवि, चिन्तक नन्द चतुर्वेदी ने शिवराम के साथ विभिन्न अवसरों पर अपनी मुलाकातों को याद करते हुए कहा कि शिवराम ने नाटकों के नये स्वरूप को विकसित किया। उनका सदैव यह प्रयास रहा कि नाटक दर्शकों के साथ-साथ आम प्रेक्षक वर्ग तक भी पहुँचे। इस दृष्टि से उनके नाटक पूर्ण सफल रहे हैं। शिवराम ने लुप्त होती जननाट्य शैली को पुनः विकसित किया था। उनका मुख्य उद्देश्य नाटकों को जनप्रिय बनाये रखने का था। इसीलिए उनके नाटक विभिन्न आस्वादों से युक्त रहते थे। नन्द चतुर्वेदी ने उनके नाटक ‘जनता पागल हो गई है‘, ‘पुनर्नव‘, ‘गटक चूरमा’ आदि नाटकों का जिक्र करते हुए कहा कि ये नाटक बहुत लोकप्रिय रहे। उन्होंने शिवराम के कवि कर्म को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी कवितायेँ एक विनम्र और शालीन कवि का आभास देने के साथ व्ययस्था में बदलाव की बेचौनी भी दर्शाती है.

प्रसिद्ध आलोचक प्रो. नवलकिशोर ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिवराम सच्चे मायने में एक सफल नाटककार होने के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी थे। रंगकर्म के साथ-साथ उनका नाट्य सृजन अनवरत चलता रहा। इनके नाटक उत्तरोत्तर नवप्रयोग को सार्थक करते रहे। प्रो. नवलकिशोर ने आगे कहा कि शिवराम ने इस प्रदर्शनकारी विधा का जनता के पक्ष में सदुपयोग किया। उन्होंने नाट्य साहित्य को जनसामान्य तक पहुँचाने का श्रेयस्कर कार्य किया। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मलय पानेरी ने शिवराम के विभिन्न नाटकों की चर्चा करते हुए कहा कि शिवराम के नाटक नाट्य रूढ़ियों को तोड़ने वाले थे। उनके नाटकों का मूल उद्देश्य जन-पहुँच था। इस दृष्टि से उन्होंने नाटकों के साथ कोई समझौता नहीं किया चाहे तात्विक दृष्टि से कोई कमजोरी ही क्यों न रह गई हो। शिवराम के नाटक आम प्रेक्षक के नाटक सिर्फ इसलिए बन सके कि उनमें सार्थक रंगकर्म हमेशा उपस्थित रहा है।हिन्दू कालेज,नई दिल्ली के हिंदी सहायक आचार्य डॉ. पल्लव ने शिवराम के कृतित्व को वर्तमान सन्दर्भों में जोखिम भरा बताया. उन्होंने कहा कि शिवराम ने लेखकीय ग्लेमर की परवाह किये बिना साहित्य और विचारधारा के संबंधों को फिर बहस के केंद्र में ला दिया.
जन संस्कृति मंच के राज्य संयोजक हिमांशु पंड्या ने शिवराम की संगठन क्षमता को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि ''विकल्प'' के मार्फत वे नयी सांस्कृतिक हलचल में सफल रहे. लोक कलाविद डॉ. महेंद्र भानावत ने कहा कि नाटकों को लोक से जोड़े रखना वाकई मुश्किल है और शिवराम ने अपने नाटकों के साथ हमेशा लोक-चिन्ता को सर्वोपरि रखा। उनकी यही खासियत उन्हें अन्य रचनाकारों से पृथक पहचान देती है। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक डॉ. ममता पानेरी ने कहा कि शिवराम नाटककार के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी भी थे। रंगकर्म की उनकी समझ आज के संदर्भ में ज्यादा संगत लगती है। कार्यक्रम के अन्त में राजेश शर्मा ने कहा कि शिवराम जननाटकों के भविष्य थे। सार्थक रंगकर्मी के साथ ही अच्छा नाटककार होना शिवराम ने ही प्रमाणित किया है।

प्रस्तुति- डॉ. मलय पानेरी, उदयपुर

Sunday, October 17, 2010

आमंत्रण : अ. भा. लघुकथा सम्मेलन व सम्मान समारोह, 2010

आप सभी सादर आमंत्रित हैं:

अ. भा. लघुकथा सम्मेलन व सम्मान समारोह,2010


दिनांक एवं समयः

२३ अक्तूबर २०१० को सायं .३० से .३०
चायः .०० बजे
स्थानः गाँधी शांति प्रतिष्ठान, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग,

(तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन के बगल में, आईटीओ चौक के पास), नईदिल्ली-



नोटः उपर्युक्त समारोह में दिल्ली सहित , हरियाणा बिहार प्र छत्तीसगढ, प. बंगाल एवं राजस्थान आदि प्रदेशों के दो दर्जन से भी अधिक वरिष्ठ लघुकथाकारो के भाग लेने की संभावना है। इसमें उनकी लघुकथा के पाठ के साथ ही उन्हें लघुकथा सम्मान से सम्मानित किया जाएगा।


आयोजक: हम सब साथ साथ

नई दिल्ली

मो ९८६८७०९३४८, ९९६८३९६८३२

सहयोगी प्रकाशनः राष्ट्रकिंकर (साप्ताहिक) एवं कैपिटल रिपोर्टर (मासिक), नई दिल्ली

Saturday, October 16, 2010

डर्बी की पीयर-ट्री लायब्रेरी में मुशायरा




(बाएं से फ़रज़ाना ख़ान, श्री अख़्तर, बासित कानपुरी, तेजेन्द्र शर्मा, काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, अक़ील दानिश, मारग्रेट जे, श्रीमती इफ़्फ़त ख़ान, श्री अहसन ख़ान)

ब्रिटेन के शहर डर्बी की पीयर-ट्री लायब्रेरी ने हाल ही में एक मुशायरे का आयोजन किया जिसमें लंदन के उर्दू शायरों अक़ील दानिश एवं बासित कानपुरी; हिन्दी और उर्दू की शायरा काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, हिन्दी के शायर/कवि तेजेन्द्र शर्मा एवं नॉटिंघम की शायरा फ़रज़ाना ख़ान ने श्रोताओं को अपनी रचनाओं का रसास्वादन करवाया।
मुशायरे के संयोजक श्री अहसन ख़ान ने सभी शायरों का स्वागत किया। उनका मानना है कि बेशक मुशायरा मूलतः उर्दू शायरी को लेकर है मगर शायरों में मौजूद हिन्दी के कवि तेजन्द्र शर्मा और श्रोताओं में मौजूद मुसलमान, सिख, हिन्दू और ईसाई इस बात का सबूत है कि साहित्य का कोई मज़हब नहीं होता। भाषा किसी मज़हब से जुड़ी नहीं है।
पीयर-ट्री लायब्रेरी की लाइब्रेरियन मारग्रेट जे ने प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए कहा कि, हमारी लायब्रेरी के लिये यह गर्व का विषय है कि यहां एक बहुभाषीय मुशायरा आयोजित किया जा रहा है। मार ग्रेट ने आगे कहा कि उन्हें उर्दू या हिन्दी भाषा समझ नहीं आती मगर यह सच है कि साहित्य भाषाओं की दीवारें तोड़ कर अपनी बात श्रोता को समझा देता है।
फ़रज़ाना ख़ान ने संचालक का पद संभालते हुए प्रत्येक शायर का परिचय दिया और एक एक कर उन्हें अपनी रचना सुनाने का आमंत्रण दिया।
वरिष्ठ शायर अक़ील दानिश ने पहले मां के सम्मान में अपनी एक ग़ज़ल पढ़ी -
"बच्चे बद भी हों तो सीने से लगा लेती है
मां के अंदाज़ में अंदाज़-ए-ख़ुदा मिलता है।"
फिर वे नॉस्टेलजिक हो कर अपने वतन को याद करते हुए कह उठे –
बेवतन हम हैं मगर यादे वतन आती है
इस अंधेरे में भी सूरज की किरण आती है।

(अक़ील दानिश अपनी ग़ज़ल सुनाते हुए)

बासित कानपुरी ने अपने मधुर स्वर में तरन्नुम से अपने रचनाएं पेश कीं। वे पहले तो शमां की लौ लगने और रात भर जलने की बात कहते रहे -
मालूम नहीं शम्मां की लौ किससे लगी है
शब भर दिले सोज़ां की तरह वो भी जली है।
और फिर दिल में शमा जला बैठे -
उनके आने की आस में बासित
दिल में शम्में जलाए बैठे हैं।
तेजेन्द्र शर्मा ने बात को नया मोड़ देते हुए नॉस्टेलजिया से बाहर आने की बात की और श्रोताओं से कहा कि हम लोग ब्रिटेन में ख़ुद अपनी मर्ज़ी से आकर बसे हैं मगर इसे आजतक अपना मुल्क़ नहीं मान पाए। इसलिये ब्रिटेन हमें कहता है -
जो तुम न मानों मुझे अपना, हक़ तुम्हारा है
यहां जो आ गया इक बार वो हमारा है।
उनका अगला शेर रिश्तों और दोस्ती की गहरी पड़ताल करता दिखा -
जग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगार
मैं जानता हूं उसने ही बरबाद किया है।
काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने अपनी दो नज़्मों का पाठ किया। पहली नज़्म में उन्होंने कांटेदार झाड़िंयों का बिम्ब इस्तेमाल करते हुए उनके ज़िन्दगी पर छा जाने की बात कही। तो वहीं दूसरी नज़्म में पाकिस्तान में हाल ही में आए सैलाब की तस्वीर खींच कर श्रोताओं की आंखों को नम कर दिया –
वो ख़ूंख़ार कांटों भरी झाड़ियां सब
मुंडेरों पे फैली दरख़्तों से लिपटीं
कि फूलों को ताक़त से अपनी कुचलतीं
हवाओं की लहरों में चीख़ें समोती
खड़ी हैं कतारें बनाए हुए अब
न जाने क्यों चुपचाप ख़ामोश हैं सब।

नये प्रकाशकों के सामने अच्छी सामग्री की अनुपलब्धता का संकट है- शैलेश भारतवासी

29 सितम्बर । नई दिल्ली
आज शाम गांधी शांति प्रतिष्ठान में पीपुल्स विजन, दिल्ली औरहिंद-युग्म डॉट कॉम के सौजन्य से लेखक-प्रकाशक संबंध और प्रकाशन में आने वाली समस्याएं विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें प्रतिनिधि लेखक और प्रकाशक उपस्थित हुए। गौरतलब है कि इस दिन एक शाम एक कथाकार के अंतर्गत वरिष्ठ कथाकारअब्दुल बिस्मिल्लाह का कहानीपाठ और उस पर नीलाभ और जयप्रकाश कर्दम की परिचर्चा निश्चित थे। लेकिन अब्दुल बिस्मिल्लाह के अचानक अत्यधिक बीमार हो जाने के कारण कार्यक्रम की रूपरेखा को बदलना पड़ा।
हिंदयुग्म डॉट कॉम के नियंत्रक और निदेशक शैलेश भारतवासी ने इस संबंध में अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि इस वर्ष उन्होंने कोई 12 पुस्तकें प्रकाशित की हैं इन पुस्तकों के प्रकाशन में उन्हें कोई अतिरिक्त दबाव महसूस नहीं हुआ बल्कि इस कनीकी युग में कागज से लेकर हर चीज की आउट सोर्सिंग करते हुए ड़ी आसानी से उन्होंने पुस्तकें प्रकाशित कर दीं उन्होंने स्वीकार किया कि देश में अनेक नवोदित लेखक हैं जो अपनी पांडुलिपि को प्रकाशित कराने हेतु धन का जुगाड़ खुद करते हैं और उन्हीं के सहयोग से वे पुस्तकों का प्रकाशन करते हैं। शैलेश भारतवासी ने माना कि नये प्रकाशकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे गंभीर और जनोपयोगी सामग्रियाँ कहाँ से लायें।

लोकमित्र प्रकाशन के आलोक शर्मा का कहना था कि प्रकाशन कोई सरल कार्य नहीं है बल्कि इसमें प्रकाशक अपनी पूंजी लगाता है इसलिए वह येन-केन प्रकारेण वह वापस लेना चाहता है।

नीलाभ प्रकाशन से संबद्ध वरिष्ठ पत्रकार और कवि नीलाभ ने प्रकाशन क्षेत्र से जुड़े दुखद पक्षों की ओर संकेत करते हुए कहाकि इस पेशे में भ्रष्टाचार इतना ढ़ गया है कि हर कोई कमीशन देकर प्रकाशक बन गया है, जिसमें तो पुस्तक की क्वालिटी देखी जाती है और ही पुस्तक की उपादेयता ही सिद्ध हो पाती है पुस्तक थोक खरीद में कमीशन के आधार पर खरीद तो ली जाती है लेकिन वे पुस्तकें कहां जाती हैं, किसी को पता नहीं यहां प्रकाशक तो मुनाफा कमा लेता है लेकिन लेखक अपने हक से वंचित रह जाता हैउन्होंने वर्तमान इलेक्ट्रानिक्स युग विशेषकर ब्लागिंग की ओर संकेत करते हुए कहाकि जो प्रयोग यहां आजकल चल रहा है, वह यूरोप में बीते वर्षों में हो चुका है, किंतु आखिरकार वे मुद्रण पर ही गए हैं वहां पुस्तकें बड़ी मात्रा में बिकती हैं


भारतीय ब्लागिंग की दशा और दिशा पर अपने विचार ब्लागर कवि कुमार मुकुल ने रखे। वरिष्ठ लेखक एवं मिनहाज प्रकाशन से संबद्ध शमशेर अहमद खान ने अपने गुरु डॉ. दूधनाथ सिंह को प्रणाम करते हुए हुए बताया कि हिंदी लेखन यदि समय सापेक्ष है तो पाठक उसके लेखन को हाथों-हाथ लेता हैविजय आपरेशन के दौरान केवल एक महीने के भीतर लिखी गई कारगिल के शहीद पुस्तक प्रकाशक समय प्रकाशन के कई संस्करण प्रकाशित हुए और लेखक को रायल्टी भी प्राप्त हुई अभी तक ऐसे विषयों पर अंग्रेजी लेखकों का वर्चस्व हुआ करता था प्रकाशक जो राशि भ्रष्टाचार पर व्यय करते हैं, वे उस राशि को गांव, ब्लॉक, जिला स्तर पर जाकर संगोष्टियों का आयोजन करें जिससे नया पाठक वर्ग तैयार होगा और पुस्तकों की सार्थकता भी सिद्ध होगी आज दिल्ली में कितने स्कूल और कालेज हैं मोटी-मोटी फीसें ली जाती हैं लेकिन उनके पुस्तकालयों में हिंदी की पुस्तकें नाममात्र को मिलेंगी जबकि फीस की रकम हिंदी वालों की जेब से ली जाती है

अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. दूधनाथ सिंह ने प्रकाशकों और लेखकों के अनेक किस्से सुनाए जिसमें हमेशा लेखक ही खसारे में रहा है ब्लॉगिंग की तरफ इंगित करते हुए उन्होंने कहाकि यह केवल महानगरों में ही कुछ लोगों तक सीमित हैजिस देश में शटडाउन होता हो वहां ब्लागिंग केवल वाचालता ही कही जाएगीअभी गांव तक केवल धार्मिक पुस्तकें ही पहुंची हैं, शायद अगली पीढ़ी तक यह हो जाए तो प्रसन्नता की ही बात होगी
मंच का संचालन वरिष्ठ आलोचक आनंद प्रकाश ने कियाइस संगोष्ठी में पीपुल्स विजन के सचिव रामजी यादव समेत अनेक कवि, साहित्यकार एवं समीक्षक मौजूद थे

रिपोर्ट- मुनीश परवेज राणा