Friday, October 30, 2009

मुंबई में 8वां महिला नाट्यलेखक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 1 नवम्बर से



मुंबई में 8वां महिला नाट्यलेखक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन यानी Women Playwright International (WPI) 1 से 7 नवम्बर, 2009 तक मुंबई विश्वविद्यालय के अकेडमी ऑफ थिएटर आर्ट तथा स्त्री मुक्ति संघटना, मुंबई के सौजन्य से आयोजित किया जा रहा है. WPI के गठन का उद्देश्य थिएटर के क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढाना है. इस बार के सम्मेलन की थीम है, उदारता व सहिष्णुता (Liberty and Tolerance). इसके सब थीम में हैं, अपनी पहचान, संस्कृति और उसकी विभिन्नता, अहिंसा के रास्ते जीवन जीना, पितृसत्तात्मकता की चुनौतियां, सामाजिक-राजनीतिक विश्व में थिएटर की भूमिका, थिएटर में हास्य आदि हैं. इस सम्मेलन का उद्देश्य यह भी है कि एक प्लेटफॉर्म पर महिला थिएटरकर्मियों के परस्पर मिलने, सोशल नेटवर्किंग और कलात्मक आदान प्रदान का मंच दिलाना, महिला नाट्य लेखकों के काम को स्टेज करने के और भी अवसर प्रदान करना, महिला नाट्यलेखकों के लेखन व उनके क्राफ्ट को प्रेरित करना, सृजित करना, उन्हें शिक्षित और विकसित करना, महिला नाट्यलेखकों को लिंगगत आलोचनाओं से अलग रखना, महिला नाट्यलेखन की समीक्षा और उसके अध्ययन को बढावा देना, अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए उन्हें सेंसरशिप व राजनीतिक दवाब से बचाना है।



1988 से अबतक ये सम्मेलन न्यूयॉर्क, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, ग्रीस, फिलीपिंस, व इंडोनेशिया में हो चुके हैं. इस साल यह मुंबई में आयोजित है. स्त्री मुक्ति संघटना एक गैर राजनीतिक, स्वयंसेवी संस्था है, जिसकी स्थापना 1975 में ज्योति म्हापसेकर ने महिलाओं के सामाजिक, मानसिक, आत्मिक उत्थान, जागरुकता बढाने और महिलाओं से सम्बंधित मामलों के साथ साथ बराबरी, शांति और विकास के उद्देश्य से की. इसका अपना एक थिएटर ग्रुप भी है. इनका वेबसाइट है http://www.streemuktisanghatana.org/ अकेडमी ऑफ थिएटर आर्ट की स्थापना मुंबई विश्वविद्यालय के तहत 2003 में थिएटर प्रशिक्षण के उद्देश्य से शुरु हुई. अकादमी का थिएटर आर्ट्स में दो साल का फुल टाइम मास्टर डिग्री कोर्स है. इनका वेबसाइट है http://www.mu.ac.in/ यह सम्मेलन मुंबई विश्वविद्यालय के कलीना स्थित कैम्पस में आयोजित है. यदि आप इसमें भाग लेना चहते हैं तो आप wpi09mum@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं। कार्यक्रम का विवरण www.wpi09.in में लॉगिन करके देखा जा सकता है।

मुम्बई से विभा रानी

Thursday, October 29, 2009

बेकल 'उत्साही' द्वारा क़ैसर अज़ीज़ के पहले दीवान 'तक़्मील-ए-आरज़ू' का लोकार्पण

रिपोर्ट - प्रेमचंद सहजवाला

क़ैसर अज़ीज़ दिल्ली का मुशायरों कवि गोष्ठियों में एक सुपरिचित नाम है तथा उर्दू में कई अच्छी ग़ज़लें उन्होंने मुशायरों में प्रस्तुत की हैं, हालांकि यह बात भी उतनी ही सत्य है कि अभी कैसर अज़ीज़ नाम के शायर को काफी दूर तक जाना है और उनमें काफी दूर तक जाने की पूरी क्षमता है. दि. 18 अक्टूबर 2009 को दिल्ली के 'ग़ालिब अकैडमी' सभागार में कैसर अज़ीज़ की ग़ज़लों के पहले मजमुए 'तक़्मील-ए-आरज़ू' (अभिलाषा-पूर्ति) का लोकार्पण सुविख्यात शायर बेकल 'उत्साही' ने किया. पर बेकल 'उत्साही' ने लोकार्पण के बाद अपने भाषण में बहुत रोचक तरीक़े से हास्य की एक लहर बिखेर दी और पुस्तक के शीर्षक को ले कर कैसर 'अज़ीज़' को संबोधित करते हुए चुटकी काटी कि अभी से आप की 'तक़्मील-ए-आरज़ू' (अभिलाषा पूर्ति) कैसे हो गई! पहले 'तामीर-ए-आरज़ू' (अभिलाषा निर्माण ) लिखते, फिर 'तफ़सील-ए-आरज़ू' (अभिलाषा का विस्तार) लिखते और फिर 'तक़्मील-ए-आरज़ू' (अभिलाषा पूर्ति) लिखते! दरअसल आज ज़माना वो है जब हर कोई तालियाँ बजवाना चाहता है या दाद सुनना. इसलिए प्रायः लोकार्पण करने वाली हस्ती यदि लोकार्पित पुस्तक की सीमाओं की ओर संकेत कर दे तो मुमकिन है कि सम्बंधित रचनाकार को ऐसा संकेत कटु लगे, पर बेकल साहब के बात कहने का अंदाज़ इतना खूबसूरत कि सब तरफ वाह वाह की धूम मच गई।


(बेकल 'उत्साही' का वक्तव्य)

इस अवसर पर वयोवृद्ध शायर मुनव्वर सरहदी की सदारत में एक मुशायरा भी हुआ जिस में ज़ुबैर अहमद 'क़मर', दर्द 'देहलवी', लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, मयकश अमरोहवी, सज्जाद 'झंझट', आबिद 'वफ़ा' सहारनपुरी, जितेन्द्र परवेज़, शफ़क़ 'बिजनौरी', ममता 'किरण', नमिता राकेश, निक्हत अमरोहवी, साजिद खैराबादी, क़री हुसैन, क़लीम जावेद, वीरेन्द्र 'क़मर', जगदीश रावतानी 'आनंदम', उस्मान मांडवी, शहादत अली निज़ामी, मास्टर निसार, क़ैसर 'अज़ीज़' आदि शायरों ने हिस्सा लिया। वैसे बेकल 'उत्साही' साहब ने अपने भाषण में यह भी कहा कि मुशायरे अब वो मुशायरे नहीं रहे, जो किसी ज़माने होते थे. वो तहज़ीब वो एहतराम (आदर) वो ऐतमाम (बंदोबस्त) धीरे धीरे मौसम की तरह बदलते जा रहे हैं. आज मुशायरा एक ताजिराना (व्यापारिक) फन हो गया है. पर आज के होने वाले मुशायरे के बारे में उन्होंने भरोसा किया कि मुशायरा प्रभावित करेगा और हम कुछ अदब (साहित्य) सुनेंगे. मुशायरे की कमान संभाली युवा शायर फ़ाक़िर अदीब ने और मुशायरे में आए शायरों का स्वागत करते हुए जब उन्होंने एक नज़र मंच पर विराजमान उर्दू -हिंदी के संगम पर डाली तो कहा:

जो कुछ भी हिंदी में लिखा, उर्दू में महसूस किया,
हम ने हिंदुस्तान ग़ज़ल की खुशबू में महसूस किया.


दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह व मिर्ज़ा ग़ालिब और अमीर खुसरो के मकबरों की शरण में बने इस सभागार में जहाँ शराब और शबाब से जुड़ी शायरी भी थी, वहीं खुदा-परस्ती या वतन परस्ती भी अपनी जगह कायम थी. कभी कभी बहुत कठिन या फारसी मिश्रित उर्दू मंच व श्रोताओं के बीच एक दीवार भी खड़ी कर देती है, लेकिन यहाँ सभागार में उपस्थित अधिकांश श्रोतागण उर्दू के खासे जानकार लगे. हिंदी व उर्दू की सशक्त गज़लों नज़्मों ने समा बाँध लिया. मुशायरे की शम्मा जलाने वालों में से वरिष्ठ शायर जुबैर अहमद 'क़मर' की ग़ज़ल का एक शेर:

उन की मर्ज़ी खुदा की रज़ा बन गई,
रुख हवा का इधर से उधर हो गया.


शफ़क़ साहब ने संवेदना से ओत प्रोत एक ग़ज़ल पढ़ी:

कफस में हंसते थे गुलशन में आ के रोने लगे,
परिंदे अपनी कहानी सुना के रोने लगे.
बिछुड़ने वाले अचानक जो बरसों बाद मिले,
वो मुस्कराने लगे मुस्करा के रोने लगे.
(कफस = पिंजर).


किसी किसी की शायरी से हास्य भी फूटा, जैसे सज्जाद 'झंझट':

मैं 'झंझट' हूँ विरासत में मिली है शायरी मुझको,
मेरे अब्बा के दादा जान के दादा भी शायर थे.


लेकिन हास्य के नाम कहीं कहीं फ़िल्मी फूहड़ता भी परोसी गई:

हज़ारों दिल तेरे वादे पे ऐसे टूट जाते हैं,
कि जैसे हाथ से गिरते ही अंडे फूट जाते हैं ('झंझट').


लक्ष्मीशंकर वाजपेयी की बहु-आयामी शायरी ने सभागार को खूब प्रभावित किया. जैसे समाज की एक कटु सच्चाई को अभिव्यक्त करता यह शेर :

उन्हीं के हिस्से में पतझड़ के सिलसिले आए,
जो सब से आगे थे आए बहार लाने में


और लक्ष्मीशंकर वाजपेयी का महानगरीय व्यस्तता से मोक्ष पाने का अंदाज़:

खुदा से बोलूँगा, अब मुझको अपने पास ही रख,
फिज़ूल जाता है सब वक़्त आने जाने में.


नमिता राकेश की चुस्त-दुरुस्त शायरी:

चलने से पहले रास्ते लगते हैं पुर-ख़तर,
जब चल पड़े तो पैरों को कांटे क़बूल थे.

(पुर-ख़तर = खतरे से भरे )

नमिता अक्सर पुरुष को नारी के चुनौती भरे दो टूक स्वर ज़रूर सुनाती हैं. जैसे:

माना कि तुम बादल हो, बरसना चाहते हो,
मगर यह मत भूलो, मैं भी नदी हूँ, बहाना जानती हूँ.


पर जहाँ नमिता राकेश नारी पुरुष का समीकरण ठीक करने में लगी थी, वहीं भारतीय समाज के शाश्वत अवयव यानी 'घर-परिवार' से जुड़ी संवेदनाओं को क़लम-बद्ध करने में में ममता 'किरण' अपनी जगह लाजवाब रही:

बाग़ जैसे गूंजता है पंछियों से,
घर मेरा वैसे चहकता बेटियों से


और

आया खिलौना घर में नया जब से ऐ 'किरण'
दादी को दिन गुजारना मुश्किल नहीं रहा.


कैसर 'अज़ीज़' ने अपने दीवान के शीर्षक 'तक़्मील-ए-आरज़ू' का उपयोग किताब की तीन चार ग़ज़लों में किया है. यहाँ जो ग़ज़ल उन्होंने पढी, उस का एक शेर:

'तक़्मील-ए-आरज़ू' का नया एक बाब लिख,
तू लिख सके तो जागती आँखों का ख्वाब लिख
.
( बाब = अध्याय).

जगदीश रावतानी अपने 'सेकुलर' अंदाज़ में सदा-बहार लगे. होली और ईद के दिन गले मिलने की खुशियों की बराबरी अभिव्यक्त करता उनके यह शेर बहु-प्रशंसित है ही:

दिन ईद का है आ के गले से लगा मुझे,
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है...


और यहाँ भी उन्होंने ईद की ख़ुशी के बहाने भारत के सर्व-धर्म-समभाव रुपी अनमोल मूल्य को व्यक्त किया:

गले लगा के मिला ईद सब से जब भी मैं
कोई भी फ़र्क़ किसी में कहाँ नज़र आया.


जहाँ एक तरफ उर्दू-हिंदी का संगम बेहद खुश-मिज़ाजी का माहौल पैदा कर रहा था, वहीं सभागार में उपस्थित अलग अलग मज़हबों के लोगों का संगम भी एक खुश-मिज़ाजी भरा माहौल ही पैदा कर रहा था. यह बात दीगर है कि कोई कोई शायर बहुत संकीर्ण तरीक़े से शायरी को एक सांप्रदायिक शक्ल भी दे रहा था, जो नहीं होना चाहिए. जहाँ एक तरफ हिंदी में आज भी कृष्ण-प्रेम या राम-भक्ति पर उत्कृष्ट कविताओं को समुचित स्थान मिला हुआ है, वहीं पैगम्बर के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करने वाली शायरी भी हर जगह पसंद की जाती है, जैसे ज़ुबैर अहमद 'कमर' साहब द्वारा पढ़ा हुआ यह शेर:

नूर से जगमगाने लगे बामो-दर,
मुस्तफा का जिधर से गुज़र हो गया
(बामो-दर = छत और दरवाज़े, मुस्तफा = पैग़म्बर),

पर भक्ति काव्य अलग है, साम्प्रदायिकता या सियासतबाज़ी अलग. मुशायरे के शुरू में संचालक फ़ाक़िर 'अदीब' ने 'मुहब्बत' पर जो लाजवाब पंक्तियाँ कही, वही 'मुहब्बत' अगर मज़हब की दीवारें तोड़ कर एक मुशायरा बन कर जगमगाए तो बेहतर:

'मुहब्बत' जो खुदा का पैगाम है,
'मुहब्बत' जो आसमान से ज़मीन पर एक लाख चौबीस हज़ार* बार उतारी गई,
'मुहब्बत' जो राधा की पलकों पर मोहन का इंतज़ार बन जगमगाई,
'मुहब्बत' जो सुलगते हुए सहराओं में लैला-मजनू का ग़म बन कर भटकी...

(एक लाख चौबीस हज़ार* बार से तात्पर्य कि ईश्वर ने इतनी बार पृथ्वी पर अवतार-पैग़म्बर भेजे, जो इंसानी प्रेम का पैगाम ज़मीन पर लाए).

शायरी दिल की सादगी से जन्म लेती है, और सादगी और निश्छलता ही उस का त-आरुफ़ है, इस लिए अंत में बेकल 'उत्साही' द्वारा पढ़े गए शेरों में से एक को उद्धृत न करुँ तो यह रिपोर्ट अधूरी रह जाएगी:

सादगी सिंगार हो गई
आइनों की हार हो गई.


(मुशायरे के आखिर में बतौर तोहफे के कैसर 'अज़ीज़' के दीवान 'तक़्मील-ए-आरज़ू' की एक एक प्रति सब को मिली और चाय तथा मिष्ठान का पैकेट भी)।

Saturday, October 24, 2009

आनंदम् की गोष्ठी का 15वाँ सोपान



22 अक्टूबर 2009। नई दिल्ली

आनंदम् की 15वीं मासिक गोष्ठी कनॉट प्लेस के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मैक्स न्यू यॉर्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के सभागार में 20 अक्तूबर, 2009 को शाम 5.30 बजे वरिष्ठ शायर जनाब जगदीश जैन की अध्यक्षता में आयोजित की गई। गोष्ठी में मासूम ग़ाज़ियाबादी, मुनव्वर सरहदी, उमर बचरायूनी, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी व बाग़ी चाचा जैसे लब्ध प्रतिष्ठित शायर भी मौजूद थे। गोष्ठी का सरस संचालन ममता किरण ने अपने ख़ूबसूरत अंदाज़ में किया।
गोष्ठी में इनके अलावा इन रचनाकारों ने भी अपनी कविताओं व ग़ज़लों से ख़ूब वाहवाही बटोरी-

वीरेन्द्र कमर, क़ैसर अज़ीज़, शिव कुमार मिश्र मोहन, डॉ. विजय कुमार, जगदीश रावतानी, भूपेन्द्र कुमार, प्रेम चंद सहजवाला, वीरेन्द्र कुमार मन्सोत्रा, मनमोहन तालिब, शैलेश सक्सैना, विशन लाल, दिनेश आहूजा एवं प्रभा मल्होत्रा। पढ़ी गई रचनाओं की कुछ बानगी देखें-

जगदीश जैन-
एक छन्दमुक्त रचना के माध्यम से आपने आधुनिक रावण का चरित्र चित्रित करते हुए कुछ यूँ कहा-

सीता तो फिर सीता है
आज का रावण तो लक्षमण को भी हर लेता है
आपकी ग़ज़ल का एक शेर भी काबिले ग़ौर है-
था बकौले मीर दिल्ली, एक शहरे इंन्तख़ाब
क्या ख़बर थी वो भी, ख्वाबों का नगर हो जाएगा


मुनव्वर सरहदी-

ज़िन्दगी गुज़री है यूँ तो अपनी फ़रज़ानों के साथ
रूह को राहत मगर मिलती है दीवानों के साथ


लक्ष्मीशंकर वाजपेयी-

रास्ते जब नज़र न आएँगे
लोग पगडंडियाँ बनाएँगे
ख़ौफ़ सारे ग्रहों पे है कि वहाँ
आदमी बस्तियाँ बसाएँगे



मासूम ग़ाज़ियाबादी-

कोई महफिल तबीयत से अगर रंगीन होती है
वहाँ सादा लिबासों की बड़ी तौहीन होती है
ग़रीबी देख कर घर की वो फ़रमाइश नहीं करते
नहीं तो उम्र बच्चों की बड़ी शौकीन होती है


उमर बचरायूनी-

इश्क़ जो दार पर नहीं पहुँचा
अपने मीयार तक नहीं पहुँचा
ग़ैर तो ग़ैर हैं अयादत को
यार भी यार तक नहीं पहुँचा


बाग़ी चाचा-

तोड़ दे ब जाति और धर् की मचान को
भूल जा चाहे भी तू गीता और क़ुरान को
बँट चुकी है ये धरती आज टुकड़ों में बहुत
धर्म तू बना ले अपना पूरे आसमान को


वीरेन्द्र क़मर-

मुसीबत पसीने में जो तरबतर है
यक़ीनन ये माँ की दुआ का असर है
उसे ये ज़माना कहाँ रास आया
मियाँ शेर कहने का जिस पे हुनर है


जगदीश रावतानी आनंदम्-
आपने आस्तिकता और नास्तिकता के प्रश्न को दो कैंसर ग्रस्त व्यक्तियों के माध्यम से उठाते हुए अपने भावपूर्ण अंदाज़ में एक आज़ाद नज़्म पेश की जिसकी अन्तिम पंक्तियाँ हैं-

हैरान हूँ विपरीत भाव देख कर
नास्तिक दीपक सुबह-शाम भगवान को याद करता है
और आस्तिक सूरज ने अपने घर में बने मंदिर तक को तोड़ दिया है


ममता किरण-

देखा चिड़िया को नया नीड़ बनाते जिस पल
मन में जीने की ललक जाग उठी फिर से


क़ैसर अज़ीज़-

पामाल कर रहे हैं जो इंसाँ की ज़िन्दगी
या रब सरों से टाल दे उन हादसात को
उसकी नज़र में वक्त का अक्से जमील था
अल्लाह ने बनाया था जब कायनात को


भूपेन्द्र कुमार-

अक्स सच्चा दिखा न पाता तो
आइना, आइना नहीं होता
सनसनीख़ेज़ हो ख़बर तो भी
जाने क्यूँ चौंकना नहीं होता


डॉ॰ विजय कुमार-

उसने जब मुझ पे तेग उठा ही ली
मैं ही सर को बचा के क्या करता



शिव कुमार मिश्र मोहन-

बुझते हुए दिये को तुम यूँ जलाए रखना
कुछ यादें ज़िन्दगी की दिल में छुपाए रखना


शैलेश सक्सैना-

रिश्तों को कैसे अब निभाया जाए
सबक ये नया अब सिखाया जाए


प्रेमचंद सहजवाला-

देवता सच के न मोहताज थे फूलों के कभी
यूँ बहुत लोग यहाँ रस्म निभाने आए


मनमोहन तालिब-

आप तो रोज़ घर बुलाते हैं
हम नई बस्तियाँ बसाते हैं


वीरेन्द्र कुमार मन्सोत्रा-

दिल के ज़ख़्म दिल में छुपा लीजिए
मत बैठो इस तरह यारो
दूसरों के सामने तो मुस्कुरा दीजिए


प्रभा मल्होत्रा-

वाल्मीकि नहीं मिले मुझे, देवी नहीं बनी मैं
मैंने गर्भस्थ शिशु का रक्षण किया है
क्योंकि मैं भी सीता हूँ


दिनेश आहूजा-
अपनी अतुकांत कविता के माध्यम से आपने नारी की विवशताओं का एक सजीव चित्र प्रस्तुत किया।



गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर जनाब जगदीश जैन ने सभी रचनाकारों को अच्छी रचनाएँ प्रस्तुत करने के लिए बधाई दी और आनंदम् के अध्यक्ष जगदीश रावतानी का इस बात के लिए विशेष रूप से धन्यवाद किया कि उन्होंने आनंदम् को उत्कृष्टता के इस मुकाम तक पहुँचाया।

कार्यक्रम के अंत में आनंदम् के अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने सभी रचनाकारों एवं श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया और मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के प्रबन्धन का गोष्ठी के लिए स्थान उपलब्ध कराने के लिए विशेष रूप से धन्यवाद किया।

Friday, October 23, 2009

सजीवन मयंक की पुस्तक जिंदगी के स्वर का लोकार्पण



दिनांक 21 अक्टूबर 2009 को नगर होशंगाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार सजीवन मयंक के 67वें जन्मदिन के अवसर पर उनके सातवे संकलन ‘‘जिंदगी के स्वर’’ का लोकार्पण नगर के नेहरू पार्क में वरिष्ठ साहित्यकार जगमोहन शुक्ल के कर कमलों द्वारा किया गया। श्री शुक्ला जी ने मयंक जी की रचनाओं को आज के दौर की वास्तविकताओं का काव्य रूप निरूपित किया तथा मयंक जी के इस शेर को संदर्भित किया ‘ कहते हैं हम जिसे जिंदगी, लगती एक मशीन है यारों’। इस अवसर पर नगर के होशंगाबाद के अनेक गणमान्य नागरिक एवं साहित्यकारों में मोहन वर्मा, गिरीमोहन गुरू, कृष्ण स्वरूप शर्मा, एम.पी.मिश्रा, एवं सुश्री जया नर्गिस विशेष रूप से उपस्थित थे। श्री मयंक के इस संकलन में 100 ग़ज़लें, 200 मुक्तक, एवं 40 क्षणिकाएं समाहित हैं।

Tuesday, October 20, 2009

दरभंगा में राष्ट्रीय युवा संगम द्वारा पारंपरिक समाज से जनसंवाद की अनूठी पहल

रिपोर्ट- उमाशंकर मिश्र



राष्ट्रीय स्तर के आयोजन महज शहरों तक ही सीमित क्यों हैं? ग्रामीणों, वंचितों एवं दूरदराज के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की बातें आखिर कब तक एयरकंडिशंड कमरों में होती रहेगी? क्या जमीनी स्तर पर सीधे जनसंवाद के माध्यम से विकास की राह तैयार नहीं की जानी चाहिए? दरभंगा के दूरदराज के गंवई परिवेश में आयोजित राष्ट्रीय युवा समागम इन्हीं सवालों का सशक्त जवाब है।

पिछले दस सालों से मैं दिल्ली में रह रहा हूं और जब कभी भी अपने गांव आता हूं तो धरौरा में बस से उतरते ही वही रिक्शे वाले, वही तांगे वाले दिखाई देते हैं। उनमें किसी तरह का बदलाव यदि देखने को मिलता है तो उन रिक्शे वालों के रिक्शे की जर्जरता, उसके बदन पर और अधिक चीथड़ में तब्दील कपड़े एवं उसकी आंखों में तैरता लाचारी का पानी। इस बीच भौतिक तरक्की के प्रतीक कुछेक रंग-बिरंगे मकान एवं अन्य प्रतिबिम्ब धुंधले से हो जाते हैं और मन इस सोच में डूब जाता है कि आखिर कैसे विकास एवं संवाद की खाई को पाटने की पहल की जाये। यह कहना था मीमांसा एक पहल के संयोजक विजय कुमार मिश्र का। उसी सोच और निरंतर मंथन के परिणामस्वरूप बिहार के दरभंगा जिले के दूरदराज के बहेड़ा गांव में दो दिवसीय राष्ट्रीय युवा समागम का आयोजन किया गया, जिससे ग्रामीण एवं वंचितों की आवाज को मुख्यधारा की राजनीति, कला और विचार से जोड़ा जा सके। इस कार्यक्रम में देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े युवा प्रतिनिधियों समेत, मीडियाकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने विकसित भारत का स्वप्न और युवा, शिक्षा रोजगार और युवा, राजनीति एवं युवा सरीखे महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए।

रात हुई तो गंवई परिवेश में पसरे अंधकार के महासागर के बीच बहेड़ा के हाईस्कूल में प्रांगण गड़गड़ाते जेनरेटर्स की आवाज एवं सजा-धजा विशाल पंडाल ग्रामीणों के लिए किसी कौतूहल से कम नहीं था। देश के प्रख्यात कवियों लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, राजगोपाल सिंह, ममता किरण, अलका सिन्हा, चिराग जैन और शंभू शेखर को सुनने के लिए बच्चे, बूढ़े जवान एवं महिलाओं का हुजूम देर रात तक पंडाल में जमा रहा। इससे पहले लवलीन थडानी द्वारा निर्देशित सामाजिक रूढ़ियों पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म ‘जीत’ का प्रदर्शन किया गया।

बिहार का नाम आते ही आमतौर पर पिछड़ापन, गरीबी, बेकारी, अशिक्षा और बदहाली की तस्वीर आंखों में तैर जाती है। एक धारणा यह भी है कि किसी तरह का राष्ट्रीय आयोजन महज बड़े शहरों में होते हैं। दरभंगा के दूरदराज के बेनीपुर, बहेड़ा के गंवई परिवेश में माटी और कीचड़ सने रास्ते और उन रास्तों के किनारे खड़े बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों एवं युवाओं की टकटकी लगाई निगाहें, सुबह सवेरे से लेकर तपती दुपहरी और फिर देर रात तक कार्यक्रम स्थल पर डटे स्थानीय जनसमूह को देखकर आभास हो गया कि बहेड़ा के हाईस्कूल प्रांगण में आयोजित राष्ट्रीय युवा समागम की स्थानीय लोगों के लिए क्या महत्व है। कार्यक्रम आरंभ हुआ तो लाउडस्पीकर्स की आवाज बहेड़ा में गूंजने लगी, जिसे सुनकर ठिठके एवं सकुचाते सैकड़ों ग्रामीण पंडाल के द्वार पर आकर खड़े होने लगे, उनसे पंडाल में बैठने का आग्रह किया गया तो उन्हें आभास हुआ कि यह आयोजन किसी राजनेता का नहीं बल्कि समाज का है। धीरे-धीरे बहेड़ा और आसपास के गांवों के हजारों ग्रामीण इकट्ठा होने लगे।



कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक के.एन. गोविंदाचार्य ने वृक्षारोपण से किया। स्वागत गान के बाद पारंपरिक मैथिल पाग, शॉल और मिथिला पेंटिंग भेंट करके अतिथियों का स्वागत किया गया। गोविंदाचार्य ने ग्रामीण युवाशक्ति को संबोधित करते हुए कहा कि.‘हम जिन देशों की नकल करते हैं वहां की स्थानीय परिस्थितियां हमारे देश से भिन्न है, इसलिए अंधपिष्मोन्मुखीकरण से बचने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा संदर्भ में भारत-विकास-युवा के समेकित रूप पर मंथन कार्ययोजना तैयार करना समय की मांग है। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि जीडीपी कभी भी विकास का पैमाना नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए मर्यादा और संस्कृति की रक्षा के मार्ग पर चलते हुए विकास का लक्ष्य हासिल करने का मार्ग सुझाया। रोटी, रिहायश और रिश्ते के मामले में जाति, संप्रदाय एवं क्षेत्रवाद से परे सामाजिक समरसता की बात कहते हुए हुए गोविंदाचार्य ने युवाओं से बौद्धिक रचनात्मक और आंदोलनात्मक तरीकों से आगे बढ़ने का आह्वान किया। ‘विकसित भारत का स्वप्न और युवा’ विषय पर एनडीटीवी के विशेष संवाददाता क्रांति संभव, युवा चित्रकार-कवि अमित कल्ला, चित्रकार विजेन्द्र एस. विज, कथाकार एवं कवयित्री अलका सिन्हा ने भी युवाओं को संबोधित किया। जबकि शिक्षा, रोजगार और युवा विषय पर नवोदय विद्यालय समिति के पूर्व उपनिदेशक एच.एन.एस. राव, आर.सी. सिंह, ओबीसी कर्मचारी एसोसिएशन, दिल्ली के सचिव धनंजय कुमार आदि ने अपने मूल्यवान वक्तव्य से युवाओं का उत्साहवर्द्धन किया।

दूसरे दिन समागम का उद्‍घाटन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद बाबूलाल मरांडी ने किया। ‘राजनीति में युवाओं की भूमिका’ पर विचार रखने के लिए भारतीय पक्ष पत्रिका के संपादक विमल कुमार सिंह, सूचना अधिकार कार्यकर्ता मनीष सिसोदिया, अंडमान निकोबार के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राय शर्मा समेत देश के विभिन्न हिस्सों से अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। अपने संबोधन में बाबू लाल मरांडी ने कहा कि ग्रामीण इलाके में इस तरह का आयोजन अदभुत है। गांधी जी को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि गांव को देखकर भारत की सही तस्वीर दिखती है और गांव में इस तरह का कार्यक्रम का आयोजन कर उनके सपनों को साकार करने की कोशिश की गई है। दिल्ली, रांची और पटना जैसे शहरों में तो ऐसे सैकड़ों सेमीनार होते हैं। लेकिन देश भर से लोगों को बुलाकर, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को बुलाकर दूरदराज के गांव में ऐसा कार्यक्रम आयोजित करना महत्वपूर्ण कदम है और ऐसे आयोजन निरंतर होते रहने चाहिए। बाबू लाल मरांडी ने युवाओं को सचेत करते हुए कहा कि ‘राजनीति में नकल उपयुक्त नहीं है और हमें समकालीन परिस्थितियों के मुताबिक निर्णय लेने पड़ेंगे। इसके लिए उन्होंने युवा पीढ़ी से राजनीति के परंपरागत ढर्रे से ऊपर उठने की बात कही। इससे पहले भारतीय पक्ष के संपादक विमल कुमार सिंह ने राजनीति को एक एक चक्रव्यूह की संज्ञा देते हुए कहा कि ‘समाज के लिए प्रतिबद्ध युवाओं के लिए राजनीति में प्रवेश करना आसान नहीं है।’ छात्र राजनीति पर कटाक्ष करते हुए विमल जी ने कहा कि यह भी राजनीतिक दलों की कार्बन कॉपी भर बन कर रह गए हैं। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन एवं राजीनीति में प्रभावकारी हस्तक्षेप में युवाओं की भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तर पर कॉलेज विद्यार्थियों को संगठित करने की बात कही। इसके लिए विमल सिंह ने युवाओं के प्रशिक्षण को एक महती आवश्यकता बताया।



आरटीआई विशेषज्ञ मनीष सिसोदिया ने राजनीति एवं प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार में सुधार के लिए सूचना के अधिकार के उपयोग को रामबाण बताया। स्थानीय जनता को संबोधित करते हुए मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज युवा तकनीक एवं प्रबंधन की पढ़ाई भले ही पढ़ रहें, लेकिन संबंधों को जीने की कला से वे महरूम रह जाते हैं। इस तरह से समाज में एक ओर जहां अनपढ़ शोषित युवा वर्ग तो दूसरी ओर पढ़े लिखे अहंकार से ग्रस्त युवाओं की जमात खड़ी हो रही है, जो समाज में विषमता का प्रतीक है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना के लिए जनता के हाथ में राजनीति की ताकत होनी चाहिए और इसके लिए युवाओं को राजनीति में लाने के लिए पहले जगह बनाने की जरूरत है। अंडमान निकोबार के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राय शर्मा ने सामाजिक पुननिर्माण के लिए युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित करते हुए सामाजिक कार्य से जुड़ने के लिए कहा। ग्रामीण युवाओं में प्रतिभा की कमी नहीं है, जरूरत बस उन्हें सही दिशा देने की है, जिससे भविष्य के प्रति उनमें एक दृष्टिकोण का विकास हो सके। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘मीमांसा एक पहल’ के तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय युवा समागम दूसरे दिन द्वितीय सत्र में कैरियर कांउसलिंग का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय छात्रों ने कैरियर से संबंधित अपने सवाल विशेषज्ञों के समक्ष रखे।

मीमांसा एक पहल के कृतित्व एवं यात्रा पर आधारित डाक्युमेन्ट्री फिल्म भी इस अवसर पर प्रदर्शित की गई। इसी दौरान पूर्व सांसद एवं शिक्षाविद् डॉ. अरुण कुमार के कर कमलों से सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप कौशिक, पश्चिम बंगाल के कुल्टी नगर निगम पार्षद अजय प्रताप सिंह, मिथलेश झा (एमबीबीएस) और चित्रकार विजेन्द्र एस. विज को युवा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। जबकि जवान होते हुए लड़के का कबूलनामा काव्य संग्रह के लिए जेएनयू के शोधार्थी निशांत को नागार्जुन कृति सम्मान दिया गया। सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप कौशिक ने झारखंड के पाकुड़ के संथाल आदिवासियों के जीवनसंघर्ष एवं गरीबी की दुर्दशा को बयां करते हुए उनके बीच कार्य करने के अपने अनुभवों को साझा किया। अन्य सम्मानित प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार इस अवसर पर रखे।

कार्यक्रम के अंत में पारंपरिक गीत गजल संध्या का बहेड़ा के सैकड़ों ग्रामीणों समेत देश भर से आये युवा प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, कलाकारए सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं मीडियाकर्मियों ने भरपूर आनंद उठाया। कार्यक्रम का संचालन मिरांडा हाउस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ. संगीता राय ने किया। इस दो दिवसीय अभूतपूर्व आयोजन से अभिभूत स्थानीय जनमानस ने करतल ध्वनि से आयोजकों के प्रति अपना स्नेह एवं आभार जताया। संयोजक विजय कुमार मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि बहेड़ा की भूमि से आरंभ राष्ट्रीय युवा समागम का यह सिलसिला देश के विभिन्न जिलों में आयोजित किया जायेगा। बहरहाल ठेठ गंवई परिवेश में राष्ट्रीय स्तर के इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन से यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रामीण युवाओं में भी प्रतिभा एवं उत्साह की कमी नहीं है, बस जरूरत है एक उन्हें पर्याप्त दिशा देने की।





Monday, October 19, 2009

भोजपुरी को मान्यता न मिलने पर भड़के भोजपुरिया

■ दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन में विश्वव्यापी आंदोलन छेडऩे का आह्वान
■ भोजपुरी एसोसियेशन ऑफ इंडिया व द संडे इंडियन के संयुक्त आयोजन में जुटे कई भोजपुरी संगठन
■ राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के कोने-कोने से आये भोजपुरियों ने की भाषा पर गहन चर्चा
■ लोकगायिकाओं के मधुर गीतों पर झूम उठे-भोजपुरिया


(बायें से)- इंडिया बूल्स के संस्थापक सदस्य रहे कवि कुमार, प्लानमैन मीडिया समूह के मुख्य संपादक अरिंदम चौधरी, भोजपुरी समाज के अजीत दूबे और दैनिक आज के पूर्व संपादक और भोजपुरी के वरिष्ट साहित्यकार गिरीजाशंकर राय गिरीजेश

भोजपुरी भाषा को मान्यता दिलाने का आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है. देश के दर्जनों महत्वपूर्ण भोजपुरी संगठनों ने मिलकर इस आंदोलन को विश्व भर में फैलाने का आह्वान किया और इसके लिए जल्दी ही बाकायदा एक एक्शन प्लान सामने लाने की घोषणा की. यह घोषणा दिल्ली में हुए एक विशेष भोजपुरी सम्मेलन में की गयी. यह कोई आम सम्मेलन या कार्यक्रम नहीं वरन एक ऐसा अनूठा प्रयोग था, जिसमें भोजपुरिया लोगों के प्रति लोगों की धारणा ही बदल देने का माद्दा था. राजधानी दिल्ली में हुए पहले राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन में आये लोगों में ज्यादातर बुद्धिजीवी, लेखक, साहित्यकार, पत्रकार और अन्य पेशों से जुड़े लोग मौजूद थे. भोजपुरी एसोसियेशन ऑफ इंडिया ने इस सम्मेलन का आयोजन भोजपुरी में दुनिया की एकमात्र नियमित समाचार पत्रिका द संडे इंडियन के साथ मिल कर किया था. वैसे यह पत्रिका 14 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होती है.

सम्मेलन का उद्घघाटन करते हुए सात राज्यों में राज्यपाल रह कर इतिहास बनाने वाले श्री भीष्म नारायण सिंह ने कहा कि भोजपुरी की माटी में विद्वता है, शक्ति है, प्रेरणा है, जो हमें हमेशा एक-दूसरे से न केवल जोड़े रखती है बल्कि भाईचारे का संदेश भी देती है. यहां तक कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी भोजपुरी भाषा को चुना था. श्री सिंह दिल्ली में राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. 11 अक्तूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 108वीं जयंती पर राजघाट स्थित गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के सत्याग्रह मंडप में भोजपुरी भाषियों के इस सम्मेलन में कई प्रस्ताव पारित किये गये तथा इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए विश्वव्यापी आंदोलन छेडऩे की प्रतिज्ञा की गयी. श्री सिंह ने मॉरीशस का उदाहरण देते हुए कहा कि दुख की बात यह है कि दूसरे देश में भोजपुरी को आधिकारिक भाषा की मान्यता मिल चुकी है, लेकिन अपने देश में ही यह भाषा आज भी अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रही है.

सम्मेलन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राज्य में विकास की नयी गंगा बहाने तथा बिहार को जंगल राज की बदनाम छवि से उबारने के लिए लोकनायक स्मृति सम्मान दिया गया. साथ ही पूर्व राज्यपाल एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता भीष्म नारायण सिंह को डा. राजेन्द्र प्रसाद स्मृति सम्मान वयोवृद्ध भोजपुरी साहित्यकार तथा दैनिक आज के संपादक रहे गिरिजा शंकर राय 'गिरिजेश' ने प्रदान किया.

इस मौके पर सहारा इंडिया परिवार के चेयरमैन 'सहाराश्री श्री सुब्रत राय 'सहारा' को उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी इलाकों के लोगों को सहारा परिवार में सर्वाधिक रोजगार देने हेतु महात्मा गांधी स्मृति सम्मान दिया गया तो भोजपुरी में दुनिया की पहली नियमित समाचार पत्रिका का प्रकाशन कर इतिहास रच देने वाले प्रसिद्ध मैनेजमेंट गुरु व प्लानमैन मीडिया समूह के प्रधान संपादक प्रो. अरिंदम चौधरी को संत कबीर स्मृति सम्मान से नवाजा गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से यह सम्मान दिल्ली में बिहार सरकार के डिप्टी रेजिडेंट कमिश्नर कारू राम ने तथा सहाराश्री की ओर से यह सम्मान 'सहारा टाइम' के संपादक उदय सिन्हा ने ग्रहण किया. इस अवसर पर द संडे इंडियन, भोजपुरी की सफलता से उत्साहित प्रो.अरिंदम चौधरी ने कहा कि भोजपुरी पत्रिका शुरु करना मेरे लिए एक चुनौती थी लेकिन अब मैं इसकी सफलता से बहुत खुश हूं.

सम्मेलन में उदय सिन्हा ने सहाराश्री के संदेश को पढक़र सुनाया. अपने संदेश में सहाराश्री ने कहा कि आधुनिक हिन्दी के उत्थान में अन्य भाषा एवं बोलियों के साथ-साथ मैथिली, मगही, अवधी और ब्रजभाषा का ही नहीं बल्कि भोजपुरी का भी महती योगदान है. विस्तार और व्यापकता की दृष्टि से भोजपुरी अग्रगण्य और सबसे अधिक उदार भाषा है. इसके उच्चारण में जो मिठास और माधुर्य है, वह हिन्दी की अन्य किसी भी भाषा-बोली में नहीं है. पहली बार राजधानी में आयोजित इस तरह के भोजपुरी सम्मेलन में इस भाषा की दशा-दिशा पर गहन चर्चा हुई.

इंडिया बुल्स के संस्थापक सदस्य रहे और भोजपुरी में उम्दा फिल्म बनाने वाले श्री कवि कुमार को भोजपुरी भूषण सम्मान दिया गया तो उन्होंने वादा किया कि भोजपुरी फिल्मों पर लगे अश्लीलता के आरोपों को धोने के लिए वे आगे भी प्रयास करते रहेंगे. भोजपुरी की एकमात्र ट्रेड मैगजीन भोजपुरी सिटी के मुख्य संरक्षक तथा फिल्म निर्माता श्री किशन खदरिया, पखावज वादक श्री दुर्गा प्रसाद मजूमदार व ऊर्जा वैज्ञानिक डॉ. अनिल सिंह को भोजपुरी भूषण सम्मान दिया गया.इनके अलावा वरिष्ठ भाजपा नेता कलराज मिश्र तथा मुंबई से कांग्रेस सांसद तथा भोजपुरी नेता संजय निरूपम को कुंवर सिंह स्मृति सम्मान दिया गया. सम्मेलन के मुख्य राष्ट्रीय संयोजक उदय सिन्हा ने भोजपुरी राष्ट्रीयता को बढ़ावा देने पर जोर दिया. इस सम्मेलन के सूत्रधार भोजपुरी एसोसिएशन आफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक (एशिया) व द संडे इंडियन के कार्यकारी संपादक (हिंदी व भोजपुरी) ओंकारेश्वर पांडेय ने कहा कि इस सम्मेलन में देश भर के भोजपुरिया लोगों की मौजूदगी ने स्पष्ट कर दिया है कि भोजपुरी की अब उपेक्षा नहीं की जा सकती.


चित्र प्रदर्शनी का उद्‍घाटन करते प्लानमैन मीडिया समूह के मुख्य संपादक अरिंदम चौधरी साथ में भोजपुरी अभिनेत्री रानी चटर्जी

सम्मेलन के पहले सत्र में 'भोजपुरी: राष्ट्रीयता का सवाल' विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया था. संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए एसोसियेशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेष मिश्र ने देश और दुनिया में भोजपुरी की दशा-दिशा पर प्रकाश डालते हुए इसकी स्थिति में सुधार के लिए व्यापक आंदेलन छेडऩे पर बल दिया. मुख्य वक्ता डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव तथा अन्य वक्ताओं ने भोजपुरी को मान्यता नहीं मिलने पर क्षोभ व्यक्त करते हुए भोजपुरी क्षेत्र के सांसदों की कमजोरी को रेखांकित किया.

भोजपुरी एसोसियेशन ऑफ इंडिया तथा द संडे इंडियन के इस संयुक्त आयोजन में वक्ताओं ने भोजपुरी की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक ताकत और अब फिल्म व मीडिया के क्षेत्र में हो रही प्रगति का उल्लेख करते हुए भाषा को मान्यता नहीं देने के लिए केन्द्र सरकार के रवैये की आलोचना की और कहा कि भोजपुरी संगठन भोजपुरी को उसका हक दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करते रहें. इस मौके पर भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दूबे ने कहा कि भोजपुरी भाषा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं. आज भोजपुरी फिल्में जिस तेजी से व्यवसायिक रूप में उभरी हैं, वह अपने आप में शुभ संकेत है. लेकिन मल्टीपल एक्स कैपिटल लिमिटेड के प्रमुख तथा भोजपुरी में बेहद साफ सुथरी और उम्दा फिल्म बनाने वाले कवि कुमार ने भोजपुरी फिल्मों के स्तर पर चिंता जताते हुए कहा कि कहने को तो भोजपुरी में 450 फिल्में बन चुकी हैं, पर उनमें कितनी स्तरीय हैं और कौन सी फिल्म समारोह में जाने लायक. संगोष्ठी में बीएचयू के प्रो. सदानंद शाही, वीर कुंअर सिंह विवि के प्रो. रणविजय कुमार, आईसीसीआर के श्री अजय गुप्ता, आरा के वरिष्ठ साहित्यकार चौधरी कन्हैया प्रसाद, वीर कुंअर सिंह फाउंडेशन के अध्यक्ष निर्मल सिंह, पूर्वांचल गण परिषद के अध्य़क्ष निर्मल पाठक, इंद्रप्रस्थ भोजपुरी परिषद के संतोष पटेल आदि वक्ताओं ने विचार रखे.

इस मौके पर पद्मश्री शारदा सिन्हा ने भोजपुरी भाषा को अपनी कर्म भाषा करार देते हुए अपनी गायिकी से उपस्थित लोगों का मनोरंजन किया. लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने सुर छेड़ा तो दर्शक भाव विभोर हो उठे, मगर प्यासे रह गये, उन्हें जल्दी जाना था. मालिनी ने कहा कि उन्हें इस भाषा से इतना प्यार है कि वे अगली बार भोजपुरी माटी में जरूर जनम लेंगी. कार्यक्रम में 18 भाषाओं में गाने वाली जानी मानी लोकगायिका और महुआ टीवी पर चल रहे सुपरहिट मॉर्निंग शो बिहाने-बिहाने की भौजी विजया भारती ने धमाकेदार प्रस्तुति देकर दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया. विजया ने भोजपुरी लोकगीतों को अश्लीलता से दूर रखने पर जोर दिया. सम्मेलन में गोरखपुर से भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बीपी त्रिपाठी आये थे.

इस मौके पर प्रो. शत्रुघ्न प्रसाद को इग्नू में भोजपुरी पाठ्यक्रम को शुरूकरने हेतु सम्मानित किया गया.भोजपुरी का विकास व इसके प्रचार-प्रसार के लिए बाबू जगजीवन राम स्मृति सम्मान से भारत में मॉरीशस सरकार के उच्चायुक्त मुखेश्वर चून्नी को, पुरबिया टीवी चैनल हमार के चेयरमैन व पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को वीर कुंवर सिंह सम्मान, भोजपुरी टीवी चैनल महुआ के चेयरमैन पीके तिवारी, आजाद टीवी चैनल के हेड अंबिका नंद सहाय तथा भोजपुरी साहित्यिक पत्रिका पाती के संपादक अशोक द्विवेदी को भिखारी ठाकुर स्मृति सम्मान प्रदान किया गया. भोजपुरी भूषण सम्मान से पद्मश्री शारदा सिन्हा व भोजपुरी फिल्मों के सुपरिचित अभिनेता कुणाल सिंह व लोकगायिका मालिनी अवस्थी को जबकि भोजपुरीश्री सम्मान गायिका अनामिका सिंह, जुड़वां गायक बंधु नंदन-चंदन, और महुआ टीवी के प्रसिद्ध नवोदित एंकर प्रियेश सिन्हा को दिया गया. भोजपुरी सिने अभिनेत्री रानी चटर्जी, भोजपुरी में सीरियल बनाने वाले अमित कुमार, बंधुआ बाल मजदूरों के लिए काम करने वाले बचपन बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय सचिव राकेश सेंगर और दिल्ली में भोजपुरी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कुलजीत सिंह चहल को भोजपुरीश्री सम्मान दिया गया तो भोजपुरी कीर्ति सम्मान से अजीत दूबे, अशोक श्रीवास्तव, श्रीकांत सिंह यादव, शिवाजी सिंह, निर्मल पाठक, अश्वनी कुमार सिंह (बिहारी खबर के प्रकाशक), संतोष पटेल, निर्मल सिंह को दिल्ली में भोजपुरी को बढ़ावा देने के लिए दिया गया. यह शायद पहला मौका था जब किसी भोजपुरी मंच पर एक साथ देश और दुनिया में भोजपुरी भाषा और संगीत को बढ़ाने में खास भूमिका निभाने वाली सामाजिक संस्थाओं के अलावा सरकारी संस्थाओं को भी विशेष रूप से सम्मानित किया गया. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक श्री वीरेन्द्र गुप्ता, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो. डॉ. डीपी सिंह, मैथिली-भोजपुरी एकेडमी के सचिव रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव परिचय दास, वीर कुवंर सिंह विवि आरा के प्रो. डॉ. रामपाल सिंह, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, इलाहाबाद के निदेशक आनंद वर्धन शुक्ला को भोजपुरी कीर्ति सम्मान प्रदान किया गया तो सभागार तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंजता रहा. श्री दिव्य ज्योति जागृति संस्थान दिल्ली के स्वामी विशालानंद को भोजपुरी मित्र सम्मान और गोरखपुर से आये दैनिक आज के वयोवृद्ध पूर्व संपादक गिरिजा शंकर राय 'गिरिजेशÓ एवं रवीन्द्र श्रीवास्तव जुगानी भाई समेत अरविन्द विद्रोही (जमशेदपुर), डॉ. आर के दूबे (बक्सर), विश्वनाथ शर्मा (छपरा), बृज मोहन प्रसाद अनाड़ी (बलिया), डॉ. जनार्दन सिंह (बलिया), विशुद्धानंद (पटना), डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी(पटना), सतीश कुमार सिन्हा (पटना), को भोजपुरी रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया. यह सम्मान प्लानमैन मीडिया समूह के प्रधान संपादक प्रो. अरिन्दम चौधरी, मल्टीपल एक्स के प्रमुख कवि कुमार, अमेरिका के डलास से आये भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेश मिश्रा और पद्मश्री शारदा सिन्हा, मालिनी अवस्थी, विजया भारती, अभिनेत्री रानी चटर्जी आदि ने प्रदान किए.

कार्यक्रम के अंतिम सत्र में भोजपुरी की लोकगायिका पद्मश्री शारदा सिन्हा, विजया भारती, मालिनी अवस्थी, अनामिका व टीवी कलाकार नंदन-चंदन के साथ एंकर प्रियेश सिन्हा ने शानदार कार्यक्रम पेश किये. भोजपुरी फिल्मों की जानी मानी अभिनेत्री रानी चटर्जी ने अपनी अदाकारी से मन मोह लिया. कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से भारी संख्या में आये भोजपुरिया लोग शामिल हुए. राजधानी में आयोजित भोजपुरी का यह अनूठा कार्यक्रम था, जिसमें सब कुछ बेहद कल्पनाशील, शालीन और उच्च स्तरीय था. सम्मेलन में आये लोग भोजपुरी के 'इतिहास से वर्तमान तक' की झलक दिखाती शानदार प्रदर्शनी देखकर दंग रह गये. प्रदर्शनी का उद्घघाटन प्लानमैन मीडिया के प्रधान संपादक प्रो. अरिंदम चौधरी ने किया. इसमें भोजपुरी के पुरोधा व्यक्तियों की तस्वीरें लगायी गयी थी, जिनका रेखांकन सुरेश पांडुरंग ने किया. भोजपुरी के इतिहास पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म का प्रदर्शन किया गया जिसका निर्देशन एडिटवर्क के डायरेक्टर सचिन सिंह ने किया था और आलेख व आवाज दसंइं (भोजपुरी) के मज्कूर आलम की थी. कार्यक्रम को सफल बनाने में द संडे इंडियन के सदाशिव त्रिपाठी,श्रीराजेश, निमेष शुक्ला, मज्कूर आलम, आशुतोष कुमार सिंह, विकास कुमार और अभिषेक कुमार के अलावा सीए प्रणव कुमार और अधिवक्ता प्रताप शंकर की दिन रात की मेहनत थी, और इन सबमें सबसे खास भूमिका दसंइं के अनिल पांडेय ने निभायी. भोजपुरिया लोगों को अपनी माटी के स्वाद वाला लिट्टी-चोखा भी खूब भाया. जी टीवी उत्तर प्रदेश तथा हमार टीवी इस सम्मेलन के टीवी पार्टनर तथा दैनिक राष्ट्रीय सहारा प्रिंट पार्टनर था. सम्मेलन में भोजपुरी एसोसियेशन को दुनिया के भोजपुरी संगठनों का प्रतिनिधि संगठन बनाने पर सहमति हुई और भोजपुरी भाषा को मान्यता दिलाने से लेकर भोजपुरी संस्कृति को बढ़ावा देने, भोजपुरी को रोजगार की भाषा बनाने तथा भोजपुरी भाषी इलाकों में आर्थिक पिछड़ापन दूर करने हेतु महात्मा गांधी की तर्ज पर अहिंसक सत्याग्रह तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति की तर्ज पर व्यापक आंदोलन छेडऩे का आह्वान किया गया.

Saturday, October 17, 2009

चाँद है शबाब पर...... शरद पूर्णिमा पर एक काव्य संध्या

4 सितम्बर 2009 । अहमदाबाद



साहित्यिक एवं सामाजिक सस्था ‘संजीवनी’ द्वारा शरद पूर्णिमा के अवसर पर शुकन रेज़ीडेंसी, न्यू सी.जी.रोड, अहमदाबाद के परिसर में एक काव्य-संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें अहमदाबाद की 7 सुपरिचित कवयित्रियों और 2 कवियों ने अपनी रचनाओं से सबको रस विभोर कर दिया। इनसे प्रोत्साहित होकर इस सोसाइटी के करीब 13 बालकों और 4 कवि हृदयों ने भी अपनी रचनाएं सुनाई। कार्यक्रम का शुभारम्भ पारम्परिक तरीके से दीप-प्रज्ज्वलन और माँ सरस्वती की स्तुति से हुआ। बेबी श्रुतकीर्ति के मधुर कंठ से निस्रत स्वर सबको आल्हादित कर गया। काव्य संध्या की अध्यक्षता का दायित्व वरिष्ठ कवयित्री डॉ. सुधा श्रीवास्तव को सौंपा गया तथा संचालन का कार्य श्री चन्द्रमोहन तिवारी जी ने बखूबी निभाया। डॉ.हरिवंश राय बच्चन के अंदाज में तिवारी जी ने कविगोष्टी का आगाज़ किया-‘श्रोतागण है पीनेवाले, कवि सम्मेलन है मधुशाला।‘
सोसाइटी के 2 वर्ष की नन्ही उम्र से 16 वर्ष तक के करीब 13 बालकों ने अपनी छोटी पर प्रभावी रचनाओं से सबको चकित कर दिया, जिनमें प्रियांशी, प्रांजल, साक्षी, श्रेयस के नाम उल्लेखनीय हैं। श्रीमती प्रतिमा पुरोहित ने पूनम के चाँद से कामना की ‘ चाँद हमें रोशनी दो’ श्रीमती मधु प्रसाद जी ने गीतों में मधु घोलते हुए गाया‘ तेरा-मेरा करते-करते संध्या आई जीवन की’ साथ ही सुनाया ‘ बेटियाँ होतीं हैं ऋतुएं – कभी सावन बन मन भिगो जाती हैं।‘ तो दिनेश कुमार वशिष्ठ ने गीत ‘बाँसुरी नहीं तो क्या डांडिया का सहारा है’ गाया फिर अपनी हास्य रचनाओं से सबको हँसाया भी। मंजु महिमा भटनागर ने आने वाली पीढ़ी को संदेश देते हुए कहा-‘मिट सकते हैं ज़रूर ये नफरतों के दायरे / प्यार में हमारे ताकत होनी चाहिए / बदल सकते हैं हवा के रूख हम भी, दीवार इरादों की मज़बूत होनी चाहिए‘ सन्ध्या बडी रोमांचक और सुरमई रंग में रंग गई जब मंजु महिमा जी ने आह्वान किया शुकन रेज़ीडेंसी के लोगों का इन शब्दों में—‘चाँद है शबाब पर, उजालों में उतर आइए,/ भूल कर सभी शिकवे गिले, ज़रा तो मुस्कुराइए।‘ सुश्री रंजना सक्सेना जी भी अपने को रोक नहीं पाईं और गुनगुना उठीं-‘शरद सलौनी, चाँद नशीला, झलमल-झलमल तारा है।/मौसम प्यारा-प्यारा है।‘ और एक दीप अंतस की देहरी पर रख दो तुम...’ डॉ. प्रणव भारती ने भी ऐसे माहोल में अपने भावुक और दिल में उतर जाने वाली आवाज़ और शायराना अंदाज़ में सुनाया ‘चाँद आसपास है, चाँदनी उजास है, तू क्यों गुम है, मुस्कुरा, ज़िन्दगी तो खास है।‘ तथा ‘जब यह दिल किसी का हौंसला पाने लगा, शाम की तन्हाइयों में मज़ा आने लगा।‘ प्रसिद्ध शायरा डॉ. अंजना संधीर ने अपनी बुलन्द पर प्रभावी आवाज़ में गाकर संदेशा अपने विदेश में बैठे पति तक पहुँचाया----

‘बारिश के नज़ारों का अंदाज़ ज़रा लिखना, वो प्यार भरी आँखें रहती हैं मेरे दिल में, उन आँखों के रिश्तों का पता ज़रा लिखना।‘ श्री चंद्रमोहन जी तिवारी ने जो इस कार्यक्रम के कुशल संचालक भी थे, जहाँ निराले अंदाज़ में बच्चन जी की तर्ज पर अपनी रचना सुनाई, ‘दीपक जलाना कब मना है?’ वहाँ इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं, वरिष्ठ एवं डॉ. सुधा श्रीवास्तव ने अपने गीतों को लोकधुनों के रंग में रंग कर आने का आश्वासन प्यारी सी शर्त पर दिया—‘मैं आऊँगी ज़रूर, तुम पुकारते चलो/ पुकारते चलो, मनुहारते चलो।‘ और अपने अन्य गीतों के टुहकों से सबको गुजरात से भोजपुरी पृष्टभूमि में पहुँचा दिया।
इन सुप्रसिद्ध कवियों की रचनाओं से प्रेरणा पाकर सोसाइटी के अन्य छुपे रुस्तम भी सामने आए जिनमें श्री वी.के. सिन्हा, श्री सलिल सिन्हा, श्री लोहखंडे और श्रीमती चैताली के नाम प्रमुख हैं।
कुल मिलाकर इस वर्ष की यह शरद पूर्णिमा एक रोमांचक यादगार काव्य-संध्या बन गई जिसे सफल बनाने का श्रेय संजीवनी संस्था को विशेष रूप से जाता है, जो समाज और साहित्य की बिखरी हुई कड‌़ियों को जोड़ने में प्रयासरत है। संस्था की अध्यक्षा सुश्री रंजना सक्सेना ने अपनी संजीवनी संस्था के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए बताया कि जैसे बहुत सी वनस्पतियाँ और प्रजातियाँ धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रहीं हैं, वैसे ही अच्छा साहित्य एवं अच्छे साहित्यकारों का भी विलोप हो रहा है, अत: उनको प्रकाश में लाना और संजीवनी संस्था के द्वारा उन्हें संजीवनी प्रदान करना ही उनका लक्ष्य है। अपनी इन पंक्तियों से उन्होंने इस आयोजन को विराम दिया- ’ दर्द अंतस का उमड़ता हुआ नीर है / अश्रु मन के भाव की तस्वीर है। / ज़िन्दगी की तह पर जाने पर लगा / प्रीत की बिखरी हुई ज़ंज़ीर है।‘

प्रस्तुति–
मंजु महिमा, अहमदाबाद

Wednesday, October 14, 2009

दिनेश कुमार शुक्ल को ललमुनिया की दुनिया के लिए वर्ष 2008 का केदार सम्मान


((विवरण-पत्र को पूरा देखने के लिए उपर्युक्त चित्र पर क्लिक करें))

प्रगतिशील हिन्दी कविता के शीर्षस्थ कवि केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में दिया जानेवाला " केदार सम्मान" ( 2008 ) 22-23 अगस्त 2009 को इलाहाबाद में संपन्न भव्य कार्यक्रम में समकालीन हिन्दी कविता के चर्चित कवि दिनेश कुमार शुक्ल को उनके कविता संकलन "ललमुनिया की दुनिया" के लिए, प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह के हाथों प्रदान किया गया।

"केदार व्याख्यानमाला" में सम्बोधित करते हुए प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने केदार जी के व्यक्तित्व पर बोलते हुए कहा कि केदार नैसर्गिक सौन्दर्य के विश्वजनीय कवि हैं। "जवान होकर गुलाब / गा रहा है फाग" जैसी संश्लिष्ट बिम्ब की कविता हिन्दी, अंग्रेज़ी में कहीं नहीं। एन्द्रिकता केदार की कविता का बड़ा गुण है। कविता की दुनिया में केदार ने एक नई नैतिकता की नींव रखी। केदार, मनुष्य और प्रकृति जहाँ संयुक्त रूप से मिलते हैं, वहाँ के कवि हैं। नदी ,पहाड़ आदि के बहाने, अपनी धरती के बहाने, केदार दबी हुई जनता की बात बोलते हैं। अपने व्याख्यान में डॉ.नामवर सिंह ने केदार की अनेक कविताओं का उल्लेख किया। इस व्याख्यानमाला के सत्र का संचालन महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय विस्तार केन्द्र (इलाहाबाद) के निदेशक सन्तोष भदौरिया ने क्षेत्रीय परिसर के सत्यप्रकाश मिश्र सभागार में किया। इस अवसर पर वि. वि. के कुलपति विभूति नारायण राय विशेष रूप से उपस्थित रहे। उपस्थितों में मार्कण्डेय सिंह, दिनेश कुमार शुक्ल, प्रो. फ़ातमी, अजीत पुष्कल, अनुपम आनन्द, रामजी राय, प्रणय कृष्ण, नरेन्द्र पुण्डरीक, श्रीप्रकाश मिश्र, जयप्रकाश धूमकेतु, प्रकाश त्रिपाठी, नीलम राय, सूर्यनारायण सिंह, मुश्ताक अली, विनोद कुमार शुक्ल, महेन्द्रपाल जैन, हरिश्चन्द्र पाण्डेय, विभूति मिश्र, चन्द्रपाल कश्यप, लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी आदि के नाम उल्लेनीय हैं।

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में समकालीन हिन्दी कविता का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण सम्मान "केदार सम्मान-2008" समकालीन हिन्दी कविता के चर्चित कवि दिनेश कुमार शुक्ल को उनके कविता संग्रह "ललमुनिया की दुनिया" के लिए प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह एवम् कुलपति बी.एन.राय के हाथों प्रदान किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत सुधीर कुमार सिंह द्वारा किया गया। दिनेशकुमार शुक्ल की कविताओं पर बोलते हुए प्रणय कृष्ण ने कहा कि दिनेश कुमार शुक्ल की कविताएँ इस भूमंडलीय समय पर एक बहुत बड़ा हस्तक्षेप करती हैं। इनका यह हस्तक्षेप भाव और सम्वेदना के स्तर पर सीमित न रह कर विचार के स्तर पर पहुँच कर पाठक को झकझोरता है। इस अवसर पर सम्मानित कवि दिनेश कुमार ने अपने वक्तव्य में बाँदा में कवि केदारनाथ अग्रवाल के अपने सान्निध्य के दिनों का स्मरण किया, बाँदा की धरती को याद किया, नदी, पहाड़, खेती और किसानों को याद किया।

इस अवसर पर रामजी राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि दिनेश कुमार शुक्ल बड़े कवि हैं, इनकी कविताएँ बाज़ारवाद से उत्पन्न त्रासदियों के विरुद्ध हर कहीं खड़ी दिखाई देती हैं। विषय के वैविध्य के साथ शिल्प के स्तर पर भी इनकी कविताएँ चमत्कृत करती हैं।

अवसर पर अपने वक्तव्य में डॉ. नामवर सिंह ने कहा कि दिनेश कुमार शुक्ल वास्तव में समकालीन हिन्दी कविता के बड़े कवि हैं। बाज़ारवाद के महासमुद्र में फँसी डूबती दुनिया के लिए गहन अंधेरे में प्रकाश स्तम्भ की तरह हैं। दिनेश कुमार शुक्ल की कविताएँ केदार जी की परम्परा की कविताएँ हैं। वाकई वह इस सम्मान के सही अधिकारी ठहरते हैं।

कार्यक्रम के अन्त में दिनेश कुमार शुक्ल ने अपनी कविताओं का बहुत प्रभावी पाठ किया, जिसे सुनकर श्रोताओं को निराला और शिवमंगल सिंह सुमन के प्रभावी अद्भुत काव्यपाठों की स्मृति हो आई।

"केदार सम्मान" - सत्र का संचालन ‘बहुवचन’ के सह सम्पादक प्रकाश त्रिपाठी ने और धन्यवाद ज्ञापन विशेष कर्तव्य अधिकारी राकेश ने किया।

--नरेन्द्र पुण्डरीक,
सचिव,
केदार शोधपीठ न्यास

Tuesday, October 13, 2009

कौमी एकता का संदेश देता सर्वोत्कृष्ट कवि सम्मेलन



02 अक्तूबर 2009 की पूर्व संध्या पर भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के महान पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्म दिवस और विगत माह आयोजित किए गए हिंदी पखवाड़े के संपन्न किए जाने वाले समारोह को कुछ इस प्रकार से आयोजित किया कि आमंत्रित श्रोतागणों ने उदात्ता की परम अवस्था में न केवल कविता के विभिन्न रसों का आस्वादन लिया बल्कि बड़ी बेबाकी के साथ वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर की गई प्रतीकात्मक बिम्बों के माध्यम से उन अनुभूति के क्षणों को जिया भी.

भारतीय सांकृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक श्री वीरेंद्र गुप्ता के प्रशासन का यह पहला कार्यक्रम था. उन्होंने दीप प्रज्ज्वलित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया.

इस कवि सम्मेलन में आमंत्रित किए गए कविगण मंचीय कविता जगत के सितारे थे. इन जगमगाते सितारों में बेकल उत्साही,डॉ.कन्हैयालाल नंदन,उदय प्रताप सिंह,अशोक चक्रधर, बुद्धिनाथ मिश्र,दीक्षित धनकौरी,गजेंद्र सोलंकी,आलोक श्रीवास्तव और कवयित्री रश्मि सानन थीं.

कवि सम्मेलन के संचालक कवि अशोक चक्रधर ने उपस्थित कवियों और अतिथियों का परिचय कराया. रश्मि सानन ने मां सरस्वती की वंदना मधुर कंठ से प्रस्तुत कर इंद्रलोक का सा समां बांध दिया.गजेंद्र सोलंकी ने मातृभूमि कीवंदना प्रस्तुत करते हुए आजादी के शहीदों व क्रांतिकारियों की भूमिका को याद कराया.उन्होंने छोटे-छोटे दोहों से जो समां बांधा उसे श्रोता सुनकर झूम उठे. चूंकि इस कवि सम्मेलन का आयोज 02 अक्तूबर की पूर्व संध्या पर किया गया था और हिन्दी पख्वाड़े का समापन समारोह भी था इसलिए गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री को याद किया जाना लाजिमी बात थी और सोलंकी की ये पंक्तियां स्मरणीय बन गईं---

जिसके आगे स्वर्गपुरी भी लगती जैसे बांदी है,
कि जिसका जर्रा-जर्रा हीरा-मोती, सोना-चांदी है.
अपनी इस भारत माता पर कैसे न मुझको गर्व न हो,
कि जिसका बेटा लाल बहादुर,जिसका बेटा गांधी हो.


इसके बाद उन्होंने जो कविताएं सुनाईं,वे एक से बढ़कर एक थीं. इनमें कुछ ऐसी थीं जिसे श्रोता कवि के साथ एकात्म होकर उन पंक्तियों को दोहराने के लिए सम्मोहित था, यथा—

धड़कता प्यारा हिंदुस्तान,नयन का तारा हिंदुस्तान,जहां से न्यारा हिंदुस्तान,
कि गंगा की कलकल सीने में,चंदन सी महक पसीने में,
मन में मुरली की मधुर तान ........


इसके पूर्व रश्मि सानन की ये पंक्तियां भी श्रोताओं की ओर से खूब सराही गईं....

नाम लेकर चलते रहे तन्हा-तन्हा.
ठोकर खाकर संभलते रहे तन्हा-तन्हा.
अजनबी बनकर सीख लिया,
हम अपनी पहचान बदलते रहे तन्हा-तन्हा.


कवि आलोक श्रीवास्तव की कविताएं काफी ऊंचाइयों का स्पर्श कराती रहीं.गीत से कहे गए उनके दोहे अंदर तक झकझोर गए.यथा---

भौंचक्की है आत्मा, सांसें भी हैरान,
हुक्म दिया है जिस्म ने खाली करो मकान.
आंखों में लग जाएं तो नाहक निकले खून,
बेहतर है छोटे रखें रिश्तों के नाखून,
तुझ में मेरा मन हुआ कुछ ऐसा तल्लीन,
जैसे गाएं सूर को आबिदा परवीन.
गुलमोहर सी जिंदगी,धड़कन जैसे फांस.
दो तोले का जिस्म है,सौ- सौ टन की सांस.
चंदा कल आया लेकर जब बारात,
हीरा खाकर सो गई एक दुखियारी रात.
गनीमत है नगरवालो लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गांव में अक्सर दारोगा लूट जाता है.
चांद अगर पूरा चमके तो उसका दाग खटकता है,
एक बुराई तय है सभी इज्जतदारों में.
कल रात सुना है अंबर ने, सिर फोड़ लिया दीवारों से,
आखिर तुमने क्या कह डाला, सूरज चांद-सितारों से.
दो-एक दिन नाराज रहेंगे बाबूजी की फितरत है,
चांद कहीं टेढा रहता है सालों-साल सितारों से.
….. …. ….. …… …… ……
यह सोचना गलत है कि तुम पर नजर नहीं,
मशरूफ हम बहुत हैं , मगर बेखबर नहीं.
अबतो खुद अपने खून ने साफ कह दिया,
मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं.
आ ही गए हैं ख्वाब तो फिर जाएंगे कहां?
आंखों से आगे फिर इनकी कोई रहगुजर नहीं.




बुद्धिनाथ मिश्र श्रृंगार रस के कवि माने जाते हैं.जब वे मंच पर काव्यपाठ के लिए उपस्थित होते हैं तो श्रोताओं की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं.प्रेम रस से भिगी उनकी दो कविताएं मंच पर काफी लोकप्रिय रही हैं, यथा—

तुम मेरे समीप आओगे मैने कभी नहीं सोचा था.

और

एक बार जाल और फेंक रे मछेरे जाने किस मछली में बंधन की चाह हो.

काफी सराही गईं.

नंदन जी की कविताएं जीवन के अनुभवों से गुजरकर यथार्थ में ऐसी पगी होती हैं कि श्रोता उसमें स्वयं को देखने लगता है. आपकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं—

जब से लगने लगे हैं अस्पताल के चक्कर,
सारी दुनिया मुझे बीमार नजर आती है.
और जहां मैं अपना दर ढूढ्ने निकला था,
वहां मुझे दीवार ही दीवार नजर आती है.
मेरे जेहन में कोई ख्वाब था,
उसे देखना भी अजाब था.

वह बिखर गया मेरे सामने,यह इल्जाम मेरे ही सिर गया.

डॉ. उदय प्रताप सिंह राष्ट्रीय परिदृश्य में जब अपनी अनुभूतियों को श्रोताओं तक ले जाते हैं तब श्रोतागण भी देश के हालात और बेबसी पर केवल समझने के अलावा कुछ नहीं कर पाता है. यथा—

पछुआ की ऐसी बीमारी,नई फसल पर संकट भारी,
उजड़ गई जब बगिया सारी,
तब चेती पुरवाई क्या?
बात समझ में आई क्या?
मेहनतकश को मुश्किल राशन,
उनका सोने का सिंहासन,
हर सिंहासन पर एक रावण, देते राम दुहाई क्या? बात समझ में आई क्या?
अपमानित हो रहा पसीना,
मुश्किल है इज्जत से जीना.
बेईमानी ताने सीना,
करती ये नेताई क्या? बात समझ में आई क्या?


बेकल उत्साही वरिष्ठ कवि हैं, मंच पर उनकी उपस्थित कवियों में जीवन का संचार भर देती है. अमीर खुसरो, रहीम और रसखान की परंपरा में आधुनिक भारत में वे अनेकता में एकता के प्रतीक हैं. जिस अवसर पर भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने इस कौमी एकता पर आधारित कवि सम्मेलन का आयोजन करवाया था . अपनी पहली पंक्तियों में उन्होंने यों बयां कर दिया----

बापू जी की हर सिक्के पर छ्पी हुई तस्वीर,
रिश्वत में हम खर्च करें यही मेरी तकदीर.
मेरे पुरखे जायसी, रहिमन और रसखान,
मैं सुगंध हूं देश की, देश है मेरी जान.
देश है मेरी जान,कि सब हैं मेरे शैदाई,
गीत,छंद, अतुकांत, गजल, दोहे, चौपाई.
मैं हिंदी हूं ,यार मेरी औकात न पूछो,
मैं भारत की ज्योति, मेरी जात न पूछो.


इस यादगार कवि सम्मेलन का कुशल संचालन हास्य सम्राट कविवर अशोक चक्रधर ने किया. कविता पाठ के उपरांत संचालन कर रहे हास्य कवि ने जो तीर फेंके उसे श्रोताओं ने सिर-आंखोम ले लिया. बानगी देखें—

जल नहीं जंगलों में मिलता है,
खून मिल जाए तो नहाते हैं.
वीरप्पन की गजल गाते हैं,
एक जंगल है तेरी मूंछों मे,
हम राह जहां भूल जाते हैं.


कविता पाठ का यह कार्यक्रम अपने निर्धारित समय से काफी आगे तक चला लेकिन श्रोताओं की ्कविता सुनने की प्यास नहीं बुझी. नौ रत्नों की कविताएं ऐसी थीं जिसे श्रोतागण बार-बार सुनने का आग्रह करते जा रहे थे.
इस कवि सम्मेलन में विशेष अतिथिगणों में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री रामकृपाल सिंहा,सांसद श्री टी. मेनीया, पूर्व सांसद श्री हरिकेश बहादुर, डॉ. कृष्णवीर चौधरी,श्रीमती कुसुमवीर,डॉ. परमानंद पांचाल, हरचरण सिंह जोश, श्री वीरेंद्र प्रभाकर, श्री फोतेदार, प्रो. सत्यकाम, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, नारायण कुमार, डॉ. कमल किशोर गोयंका, डॉ. हरिपाल सिंह, उमाशंकर मिश्र सहित अनेक कला एवं संस्कृति से जुड़े लोग उपस्थित थे.

उत्कृष्ठ कोटि के कार्यक्रम का धन्यवाद ज्गापन गगनांचल के संपादक अजय कुमार गुप्ता द्वारा किया गया. महानिदेशक श्री वीरेंद्र गुप्ता ने आमंत्रित कवियों पुष्पगुच्छ भेंट कर आभार प्रदर्शन किया.

शमशेर अहमद खान,
2-सी,प्रैस ब्लॉक,
पुराना सचिवालय,
सिविल लाइंस,
दिल्ली---110054

Saturday, October 10, 2009

'हिंद स्वराज' के 100 वर्ष और विचार-गोष्ठियों पुस्तक-विमोचनों का गर्मागर्म-सिलसिला (वीडियो)

रिपोर्ट- प्रेमचंद सहजवाला


कोलॉज (दक्षिणावर्त)- 1॰ कार्यक्रम-सूचक-पट, 2॰ प्रभास जोशी के साथ प्रेमचंद सहजवाला, 3॰ गाँधी जी का पोस्टर, 4॰ वर्षा दास, 5॰ कन्हैयालाल नंदन और अन्य प्रबुद्ध दर्शक, 6॰ विमल प्रसाद, प्रभास जोशी, 7॰ वर्षा दास, विमल प्रसाद

महात्मा गाँधी पूरी मानव-सभ्यता के लिए अहिंसा-दूत बन कर अवतरित हुए थे। विश्व के महापुरुष महात्मा गाँधी की तुलना ईसा मसीह और गौतम बुद्ध से करते हैं। इस सन्दर्भ में विश्व-प्रसिद्व नोबेल-पुरस्कार विजेता लेखक रोमेन रोलैंड व गाँधी की प्रसिद्व शिष्य मीरा बहन, जिसे वे अपनी बेटी मानते थे, के बीच हुए वार्तालाप का सन्दर्भ देना अप्रासंगिक न होगा। मीरा बहन का मूल नाम मैडलीन स्लेड था तथा उस के पिता भारतीय सेना में तैनात, ब्रिटिश के सेनाधिकारी थे। मैडलीन स्लेड अपनी युवावस्था में किसी आध्यात्मिक गुरु की तलाश में बेचैन सी थी। इसी सिलसिले में वह फ्रांस गई, जहाँ उस की भेंट रोमेन रोलैंड से हुई और उस ने उन्हें अपनी समस्या बताई। रोमेन रोलैंड ने मैडलीन स्लेड से पूछा- 'क्या तुम ने महात्मा गाँधी का नाम सुना है?' मैडलीन ने कहा- 'नहीं तो!' रोमेन रोलैंड ने फ़ौरन कहा- 'वह इस पृथ्वी पर एक और यीशु हैं।' मीरा बहन एक वर्ष की तैयारी के बाद भारत आई तो गाँधी जी की बेटी बन कर उन के साथ आश्रम में रहने लगी। वह सन् 55 तक भारत में रही थी।

गाँधी जब बैरिस्टर बनने के उद्देश्य से पहली बार घर से बाहर निकले और लंदन गए तो वहां की शाकाहारी संस्था के सदस्य भी बने, पर उनकी प्रारंभिक शख्सियत पर ईसाई धर्म का प्रभाव स्पष्ट था और समय के साथ ईसा की तरह वे भी अहिंसा के पुजारी बन गए। ईसा ने ही कहा था कि यदि कोई आप को एक गाल पर तमाचा मारे तो फ़ौरन अपना दूसरा गाल भी आगे कर दो। गाँधी जी ने ईसा की इस शिक्षा को अक्षरशः आत्मसात् कर लिया और अपने अनुयायियों को भी यही शिक्षा दी। समाज में इस शिक्षा की खिल्ली उड़ाने वाले भी कम नहीं, तो सावरकर की तरह उल्टी शिक्षा देने वाले भी कमी नहीं कि अहिंसा किसी भी देश की अवनति का कारण होती है। इस के प्रमाण स्वरुप सावरकर मौर्य वंश के महानतम सम्राट अशोक का उदहारण देते हैं कि जब तक वे बुद्ध धर्म की शरण में नहीं गए थे, तब तक उन्होंने दिग्विजय हासिल कर ली। कलिंग युद्ध भी जीत लिया, पर बुद्ध की शरण में जा कर अहिंसा का पुजारी बनते ही अशोक महान के साम्राज्य का पतन हो गया और सन् 184 ई. पू में उन के ही एक वंशज राजा वृहदरथ को उस के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मार कर मौर्य वंश को समाप्त कर के अपना शुंग वंश स्थापित किया! बहरहाल, आज के इस विध्वंसकारी आतंकी युग में भी गाँधी की अहिंसा किस सीमा तक ज़रूरी है, इस का प्रमाण यही है कि सन् 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने गाँधी जन्म-दिवस (2 अक्टूबर) को 'अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस' घोषित कर दिया। पर सन् 2009 की एक विशिष्टता यह भी है कि इस वर्ष से पूरे 100 वर्ष पहले, यानी 1909 में गाँधी ने एक बेहद विवादस्पद पुस्तक 'हिंद स्वराज' भी लिखी थी, जिस के विषय में मैं अपनी पिछली रिपोर्ट 'गाँधी की पुस्तकों पर हिंदी अकादमी द्वारा यादगार कार्यक्रम' ('हिन्दयुग्म' 24 अगस्त 2009 ) में भी लिख चुका हूँ। इस पुस्तक के लेखन की शताब्दी पर देश भर में गोष्ठियों और पुस्तक-विमोचनों का एक सिलसिला सा चल पड़ा है, जो जाने माने पत्रकार प्रभास जोशी के अनुसार 22 नवम्बर तक चलता रहेगा। गाँधी जी ने यह पुस्तक 1909 में लन्दन से दक्षिण अफ्रीका (जहाँ उन्होंने 1893 से 1914 तक भारतवासियों के साथ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष किया), लौटते समय 'किल्दोनन' नामक जहाज़ में केवल दस दिन में (13 नवम्बर से 22 नवम्बर) लिख डाली थी। पुस्तक की तुलना विश्व के कई महापुरुष 'श्रीमद भगवद गीता' और 'बाइबल' तक से करते हैं, हालांकि कई विद्वान इस प्रकार की भावना से इत्तेफाक नहीं रखते। उन का मानना है कि पुस्तक बेहद अव्यवहारिक है, और आज के युग की इस तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी में इस पुस्तक की कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई। परन्तु पत्रकार प्रभास जोशी व देश के अनेक बुद्धिजीवी ऐसा नहीं मानते। गाँधी जन्म दिवस 2 अक्टूबर 2009 की पूर्व संध्या यानी 1 अक्टूबर 2009 को 'राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय' में गाँधी सम्बंधित फोटो-प्रदर्शनी का उद्‍घाटन करने के बाद प्रभास जोशी ने अपने भाषण में 'हिंद स्वराज' को आज भी पूर्णतः प्रासंगिक माना। इस अवसर पर 'राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय' द्वारा संकलित व प्रकाशित, अंग्रेज़ी पुस्तक 'Gandhiji on Hind Swaraj and Select Views of Others' का विमोचन भी प्रभास जोशी के कर कमलों से हुआ। मंच पर प्रभास जोशी के साथ उपस्थित थे 'राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय' के चेयरमैन प्रो. बिमल प्रसाद व कार्यक्रम का संचालन कर रही थी संग्रहालय की निदेशिका डॉ. वर्षा दास। सभागार में कन्हैयालाल नंदन व अन्य कई विद्वान भी उपस्थित थे। गाँधी के सत्य व अहिंसा से तो आज भी विश्व के विचारकों का एक बहुत बड़ा वर्ग सहमत है, लेकिन गाँधी ने 'हिंद स्वराज' में विज्ञान तक का विरोध किया है, इस लिए कतिपय लोग उन के विचारों को या तो पुरातनपंथी मानते हैं, या फिर दकियानूसी। परन्तु प्रभास जोशी ने स्पष्ट किया कि गाँधी यह मानते थे की मशीन और विज्ञान इंसान को गुलामी के अतिरिक्त और कुछ नहीं दे सकते। वैसे मशीन के विरुद्ध रह कर भी एक सत्य यह है कि गाँधी स्वयं मानते थे कि मशीन का हम कितना भी विरोध करें, मशीन रहेगी. यह बात एक विरोधाभास जैसी भी लग सकती है। इस अवसर पर लोकार्पित पुस्तक के एक लेख में भी गाँधी के सचिव महादेवन देसाई, दो विदेशी विचारकों, मिडलटाऊन मुर्रे व प्रो. डेलिसले बर्न्स के उदहारण दे कर उनके और गाँधी के बीच मशीन पर हुए वार्तालाप को संदर्भित करते हैं। मिडलटाऊन कहते हैं कि गाँधी यह भूल जाते हैं कि जिस चरखे को वे बहुत प्यार करते हैं, वह चरखा भी तो आखिर एक मशीन है, जबकि डेलिसले कहते हैं कि नाक पर सवार चश्मा भी तो आखिर नज़र के लिए एक मशीनीकृत उपकरण ही है न! किसान का हल भी एक मशीन है और कुँए से पानी खींचने की चरखी भी हज़ारों साल से इंसान की ज़िन्दगी की बेहतरी के लिए किये गए मशीननुमा प्रयासों में से एक रही है। गाँधी मशीन द्वारा दुरुपयोग की बात करते हैं, पर यदि दुरुपयोग बुराई है तो दुरुपयोग को ही बुराई कहा जाए, मशीन को क्यों! गाँधी कहते हैं कि यूं तो इंसान का शरीर भी एक मशीन ही है न! मैं जिस बात पर आपत्ति करता हूँ, वह मशीन नहीं है, वरन मशीन के प्रति एक जूनून सा है। इन्हें मेहनत बचाने का जूनून है, और मेहनत बचाने का उपकरण ये मशीन को मानते हैं। लोग मेहनत बचाते जाते हैं, जब तक कि हज़ारों लोग बेरोज़गार नहीं हो जाते और भुखमरी में जीने के लिए गलियों में झोंक नहीं दिए जाते। मैं चाहता हूँ कि मेहनत की बचत हो, परन्तु सारी मानव जाति के लिए, न कि मुट्ठी भर लोगों (पूंजीपतियों) के लिए। गाँधी आगे स्पष्ट करते हैं कि अपनी बात में मैं चंद प्रबुद्ध अपवाद (Intelliegent exceptions) ज़रूर लूँगा, जैसे कि 'सिंगर सिलाई मशीन' ही लीजिये। यह कुछ चुनिन्दा उपयोगी वतुओं में से है और इस मशीन में कितना तो रोमांस है!

इस पर प्रश्नकर्ता चुटकी ले कर पूछते हैं कि फिर तो इस 'सिंगर सिलाई मशीन' को बनाने के लिए भी एक बड़ा कारखाना होगा। गाँधी का उत्तर था- 'हाँ, पर में प्रचुर मात्रा में समाजवादी हूँ और कहूँगा कि ऐसे कारखाने राष्ट्रीयकृत हों और राज्य द्वारा नियंत्रिंत हों'...(लोकार्पित पुस्तक पृष्ठ 235 -36 )।

प्रभास जोशी ने मशीन के प्रति मानव की गुलामी का ज़िक्र करते हुए कहा कि गाँधी जी के अर्थों में 'स्वराज' का अर्थ न तो 'आर्थिक स्वराज' था, न 'सामाजिक' और न 'राजनैतिक'. 'स्वराज' से उन का तात्पर्य शुद्ध 'आध्यात्मिक स्वराज' से था। पर गाँधी यह स्पष्ट करते थे कि 'आध्यात्मिक स्वराज' का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति हिमालय की गुफाओं में जा कर रहना शुरू कर दे, वरन यदि इसी समाज में रह कर वह हर ऐसा कार्य करे, जो उसे उक्त सब स्वराजों से स्वतंत्र कर के 'आध्यात्मिक स्वराज' की तरफ ले जाए तो वह सही अर्थों में 'स्वराज' है।

अपने विस्तृत भाषण में प्रभास जोशी ने यह भी कहा कि गाँधी का सब से अधिक ज़ोर व्यक्ति के आचरण पर रहता था। वे 'स्वराज' की तलाश में निकले हुए आदमी थे और यह मानते थे कि जो कुछ उन्होंने कहा है, लिखा है, बोला है, वही उन का सन्देश भी है (वैसे गाँधी का यह वाक्य भी विश्व-प्रसिद्ध है - My Life is My Message)। जहाँ एक तरफ 'राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय' चेयरमैन प्रो. बिमल प्रसाद ने 'हिंद स्वराज' को भारत के लिए एक manifesto कहा, जिस का सन्देश गाँधी के अनुसार यही कि 'हिंसा और पश्चिमी सभ्यता साथ-साथ चलते हैं तथा सत्याग्रह व भारतीय सभ्यता साथ-साथ चलते हैं', वहीं प्रभास जोशी ने कहा कि 'हिंद स्वराज' विश्व की तीन शीर्षस्थ पुस्तकों में से एक है जिन में कार्ल मार्क्स का विश्व प्रसिद्ध manifesto (Das Capital) भी है।

जिस सादगी से गाँधी ने जीवन जिया, व अपने आदर्शों को प्रतिपादित किया, वह सर्वविदित है। अतः गाँधी पर इस सभा में व्यक्त विचार भी सादगी से उतने ही परिपूर्ण, परन्तु सारगर्भित रहे। सभा समापन के बाद भी, जलपान के दौरान प्रभास जोशी कई आंदोलित-हृदय जिज्ञासुओं से घिरे रहे व गाँधी तथा 'हिंद स्वराज' को ले कर सब के मन के संशयों का निवारण करते रहे। यह स्वाभाविक भी था। जिस पुस्तक ने लियो तोल्स्तोय, हर्मन कालेनबैच (जिन्होंने ने दक्षिण अफ्रीका में जान्स्बर्ग के निकट 'तोल्स्तोय फार्म' के लिए गाँधी को ज़मीन दी थी) जैसे, विश्व के असंख्य दार्शनिकों विचारकों की नींद हराम कर के रख दी, और ब्रिटिश जिस पश्चिमी सभ्यता का भोंपू यहाँ बजाने आई थी, उसी को कटघरे में खड़ा कर दिया, उस पुस्तक की शाश्वतता का ही प्रमाण है कि आज भी वह मस्तिष्क को उद्वेलित कर के रख देती है और विचारों में एक आंदोलनकारी टकराहट पैदा करती है। वैसे इस पुस्तक को ले कर एक रोचक बात यह भी कि जब इसे गाँधी के राजनैतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले ने पहली बार पढ़ा तो कहा था कि यह पुस्तक किसी मूर्ख की कृति थी (सन्दर्भ The Good Boatman - A Portrait of Gandhi by Rajmohan Gandhi p 162)। परन्तु जब 1938 में भी इस पुस्तक का नया संस्करण गाँधी ने छपवाया तब उन्होंने भूमिका में लिखा कि पहले संस्करण से मुझे आज भी कोई भी परिवर्तन करने की ज़रुरत महसूस नहीं हुई। इस पुस्तक में मैंने केवल एक शब्द बदला है, जो किसी महिला ने मुझे पत्र लिख कर कहा था कि कुछ असभ्य सा लगता है. उस एक शब्द के अतिरिक्त कहीं भी किसी भी प्रकार के परिवर्तन की ज़रुरत या द्वंद्व मैं अपने भीतर नहीं महसूस कर पाया हूँ! इस मात्र 30,000 शब्दों वाली अमर पुस्तक में आखिर ऐसा क्या है, कि वह हर दशक, हर सदी में चर्चा का एक संग्राम छेड़ देती है, यह जानने के लिए क्या बेहतर नहीं है किसी भी उचित स्रोत से इसे प्राप्त कर के तन्मयता से पढ़ा जाए!

देखिए- गाँधी की 140वीं जयंती की पूर्व संध्या पर गाँधी की पुस्तक 'हिन्द-स्वराज्य' पर अपने विचार व्यक्त करते वरिष्ठ पत्रकार प्रभास जोशी






पुनश्च- मेरे सीमित ज्ञान के अर्न्तगत इस पुस्तक को एक तो 'राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय', (दिल्ली) ने छपवाया है और एक 'हिंदी अकादमी' (दिल्ली) ने।

Friday, October 9, 2009

राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन का हिस्सा बनें


(निमंत्रण-पत्र को पूरा देखने के लिए निमंत्रण-कार्ड पर क्लिक करें)

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 108वीं जयंती के अवसर पर 11 अक्टूबर 2009 को दोपहर 2.30 से भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया और समाचार पत्रिका द संडे इंडियन के भोजपुरी संस्करण की ओर से गांधी दर्शन, राजघाट, नई दिल्ली में राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन का आयोजन किया गया है। सम्मेलन में देश विदेश से करीब 500 भोजपुरी भाषी लोग हिस्सा लेंगे। सम्मेलन के दौरान भोजपुरी की विकास यात्रा पर अतीत से वर्तमान तक चित्र प्रदर्शनी व भोजपुरी भाषा-संस्कृति पर लघु फिल्म का प्रदर्शन किया जायेगा। साथ ही टीवी व फिल्म जगत के मशहूर कलाकारों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम पेश किये जायेंगे।

सम्मेलन में भोजपुरी भाषा संस्कृति के प्रचार प्रसार व विकास के लिए कार्य करने वाले विशिष्ठ व्यक्तियों व संस्थाओं को सम्मानित भी किया जायेगा। इस क्रम में भोजपुरी का पाट्यक्रम आरंभ करने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, पहली बार भोजपुरी में पाठ्यक्रम शुरू करने व पीएचडी कराने के लिए वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, गांधीवादी दर्शन पर विशेष अध्ययन तथा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन की उद्गम भूमि चंपारण में गांधी जी की प्राथमिक शिक्षा केंद्रों को फिर से गति दे कर शैक्षणिक माहौल पैदा करने के लिए गांधी स्मृति दर्शन समिति की निदेशक श्रीमती सविता सिंह, भोजपुरी के प्रचार-प्रसार के लिए भोजपुरी अकादमी के संस्थापक सचिव .., भोजपुरी भाषा की शिक्षा के प्रसार के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) को सम्मानित किया जायेगा। दूसरी ओर लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित को डॉ. राजेंद्र प्रसाद सम्मान, पूर्व राज्यपाल भीष्म नारायण सिंह, सांसद संजय निरुपम, सांसद प्रभू नाथ सिंह, सांसद महाबल मिश्रा, सांसद अनवर अली, सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा, सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय तथा मॉरिशस के भारत में उच्चायुक्त को भी सम्मानित किया जायेगा। भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार इस सम्मेलन का आयोजन भोजपुरी भाषा व्यापकता और देश निर्माण में उसकी भूमिका को विश्व फलक पर लाना है। इसके अलावा संविधान की आठवीं अनुसूची में इस भाषा को शामिल कराने के लिए प्रयास करना इस कार्यक्रम का उद्देश्य है। भोजपुरी भाषा, संस्कृति व कला के क्षेत्र में कार्य करने वालों को उनके अहम योगदान के लिए सम्मानित किया जायेगा. भोजपुरी की लोक गायिका पद्मश्री शारदा सिन्हा, भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए सहारा समूह के सहाराश्री, भोजपुरी में पहली बार नियमित समाचार पत्रिका द संडे इंडियन के प्रकाशन करने के लिए प्लानमैन मीडिया के अध्यक्ष व प्रधान संपादक अरिंदम चौधरी, भोजपुरी में पहिला टीवी चैनल शुरू करे खातिर महुआ चैनल के अध्यक्ष पीके तिवारी, हमार टीवी के जरिये पुरबिया भाषाओं का प्रचार प्रसार करने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को सम्मानित किया जायेगा।

विदेशों से आने वाले अतिथियों में भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अमेरिका के अध्यक्ष शैलेस मिश्रा, हिंदू सेंटर न्यूयार्क के संस्थापक डॉ विजय कुमार मेहता सहित देश के विभिन्न राज्यों के कई भोजपुरी भाषी कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।

Thursday, October 8, 2009

सूरीनाम स्थित भारतीय राजदूतावास में आईटेक दिवस



आईटेक (इंडियन टैकनिकल इकनॉमिक कॉपरेशन) भारत सरकार की एक ऐसी योजना है जिसके अंतर्गत 158 देशों के शिक्षार्थियों को भारत के 48 सरकारी, अर्धसरकारी संस्थानों में 200 से अधिक अल्पकालीन पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। प्रत्येक वर्ष इन चुने हुए देशों के लिए सीटें निर्धारित की जाती हैं और संबंधित देश का शिक्षा मंत्रालय अभ्यर्थियों का चयन करके भारतीय राजदूतावास के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षण के लिए भारत भेजता है।

सूरीनाम से भी हर वर्ष अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण के लिए भारत भेजा जाता है। और इन्हीं प्रशिक्षणार्थियों के लिए हर वर्ष 15 सितंबर को आईटेक दिवस का आयोजन किया जाता है जिसमें प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके सभी व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाता है और हाल ही में प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थियों के अनुभव सुने जाते हैं।

इस वर्ष आईटेक दिवस का आयोजन 25 सितंबर 2009 को भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के सभागार में किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि थे शिक्षा मंत्रालय के निदेशक श्री सोतोसोनोयो। भारत के राजदूत श्रीमान कँवलजीत सिंह सोढ़ी की उपस्थिति में अताशे श्रीमती भावना सक्सैना ने सभी अतिथियों का भावभीना स्वागत किया और श्रीगणेश का आह्वान करते हुए गणेश स्तुति के पश्चात एक पॉवर प्वाइंट प्रस्तुति के माध्यम से आईटेक गतिविधियों पर प्रकाश डाला। हाल ही में प्रशिक्षण प्राप्त पाँच अभ्यर्थियों ने अपने अनुभव सुनाए और भारत सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया। श्री सोतोसोनोयो ने कहा कि सूरीनामवासियों के लिए यह बहुत अच्छा अवसर है और उन्हें इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए। इस अवसर पर एक साँस्कृतिक कार्यक्रम भी आय़ोजित किया गया।

अंत में राजदूत महोदय ने सभी से आग्रह किया कि वे अपने ज्ञान का लाभ उठाकर अपने देश को लाभान्वित करें।







Wednesday, October 7, 2009

गोविंदाचार्य ने किया 'क्रांतिकारी' का विमोचन



किताबघर प्रकाशन से प्रकाशित पत्रकार रोशन प्रेमयोगी के उपन्यास 'क्रांतिकारी' का विमोचन पिछले दिनों लखनऊ में आयोजित नेशनल बुक फेयर में विचारक के.एन. गोविंदाचार्य ने किया। वरिष्ठ कहानीकार और 'हंस' पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजीव समारोह के मुख्य अतिथि थे। दलित साहित्यकार रूपनारायण सोनकर मुख्य वक्ता थे। गोविंदाचार्य ने कहा कि 'क्रांतिकारी' को पढ़ते हुए लगा कि आजाद भारत में जिस क्रांति की जरूरत है, उस ओर यह उपन्यास इंगित करता है।

इसके पात्र चंद्रशेखर, रमाकरण और केवलानंद मुझे अपने जैसे लगे। संजीव ने कहा कि क्रांति नए विचारों को उजागर करता है। आजादी के बाद क्रांति की जो अवधारणा ट्यूब में बंद थी, उसे यह उपन्यास सामने लाता है। रुपनाराण सोनकर ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन के बाद कोई ऐसा सवर्ण लेखक सामने आया है जो दलितों पर दलितों की कसौटी पर लिख रहा है। उल्लेखनीय है कि 'क्रांतिकारी' तीन दोस्तों की कहानी है जो इलाहाबाद में पढ़ने के बाद अपने गांव में काम करने की सोचते हैं।

Thursday, October 1, 2009

उल्लास के साथ मना के.हि.प्र.सं.के पखवाड़े का समापन समारोह



30 सितम्बर 2009 । नई दिल्ली

गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के अंतर्गत केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान में दिनांक-15-09-2009 से 30-09-2009 तक हिंदी पखवाड़े का आयोजन किया गया। इसमें कर्मचारियों/अधिकारियों को हिंदी में कार्य करने के प्रति प्रेरित करने के उद्देश्य से अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं जिसमें कर्मचारियों/अधिकारियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजयी प्रतिभागियों के नाम इस प्रकार हैं—हिंदी टंकण—श्री निलॉय सरकार प्रथम, श्रीमती बिमला द्वितीय, श्री राकेश कुमार गांधी तृतीय, हिंदी आशुलिपि- श्री राजेश कुमार सैनी प्रथम, श्रीमती बिमला द्वितीय, श्री शिवकुमार केदरे तृतीय, श्रुत लेखन{ ग्रुप डी}- श्री मनोज कुमार प्रथम, श्री महेश चंद द्वितीय, श्री प्रहलाद सिंह तृतीय, श्री योगेन्द्र पाल सिंह प्रोत्साहन सामान्य ज्ञान- श्री मनोज कुमार प्रथम, श्री सुरेन्द्र कुमार द्वितीय, श्री कमल जीत सिंह तृतीय, श्री महेश चंद प्रोत्साहन, निबंध लेखन—श्री पवन कुमार मिश्र प्रथम, श्रीमती बिमला द्वितीय, श्री निलॉय सरकार तृतीय, श्री मदन लाल पोपली तृतीय, टिप्पण व मसौदा लेखन –श्री पवन कुमार मिश्र प्रथम, श्री मदन लाल पोपली द्वितीय, श्री दिनेश कुमार तृतीय, श्री श्यामसुंदर तृतीय, आशु भाषण—श्री शमशेर अहमद खान प्रथम, श्री श्याम सुंदर द्वितीय, श्री मुकेश कुमार तृतीय स्वरचित कविता पाठ- श्री पूरन चंद सिंह प्रथम, श्री राकेश कुमार द्वितीय, श्री श्याम सुंदर तृतीय।

इस कार्यक्रम का समापन केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के 2-ए,पृथ्वी राज रोड स्थिति कार्यशाला एकक के व्याख्यान कक्ष में आयोजित किया गया। विजयी प्रतिभागियों को राज भाषा विभाग के संयुक्त सचिव श्री डी.के.पांडेय ने पुरस्कार राशि और प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इसी प्रकार भविष्य में भी लोग उत्साहपूर्वक काम करें और पुरस्कार से लाभांवित हों। इस संस्थान की निदेशक श्रीमती मोहिनी हिंगोरानी ने मुख्य अतिथि के सम्मान में दो शब्द कहे और पखवाड़े की रिपोर्ट प्रस्तुत की। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन उपनिदेशक (टंकण पत्राचार) श्री टीकाराम कश्यप ने किया तथा संचालन श्री एम.एल. शर्मा सहायक निदेशक ने सफलतापूर्वक किया।






रिपोर्ट- शमशेर अहमद खान,सहायक निदेशक, के.हि.प्र.सं.,2-ए, पृथ्वी राज रोड, नई दिल्ली-110011