नई दिल्ली: भोजपुरी गायक व सिने सुपर स्टार मनोज तिवारी को पूर्वांचल एक्सप्रेस और भोजपुरी संसार पत्रिका समूह ने भोजपुरी रतन सम्मान से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें भोजपुरी सिनेमा, संगीत और फिल्म के माध्यम से विश्व स्तर पर भोजपुरी भाषा के प्रचार-प्रसार करने हेतु दिया गया। कुछ माह पूर्व पूर्वांचल एक्सप्रेस ने भोजपुरी रतन के चुनाव के लिए एक सर्वे कराया था, जिसमें २५ भोजपुरी रतन व भोजपुरिया विभूति का चुनाव किया गया। उसमें मनोज तिवारी के लिए सबसे ज्यादा लोगो ने अपनी सहमति जताई थी। मनोज तिवारी को यह सम्मान पूर्वांचल एक्सप्रेस व भोजपुरी संसार के कुलदीप श्रीवास्तव, मीडिया क्लब ऑफ़ इंडिया के आनंद प्रकाश और जाने माने भोजपुरी साहित्यकार मनोज भावुक ने संयुक्त रूप से प्रदान किया।
मनोज तिवारी के बिग बॉस से निकलने के बाद भी पूर्वांचल ने भोजपुरिया प्रदेश में एक सर्वे कराया था जिसमें लोगों से यह पूछा गया था कि आप किसको सबसे ज्यादा पसंद करते हैं - सलमान खान या मनोज तिवारी। तो इस में भी मनोज तिवारी ने बाजी मार ली और वह सलमान खान पर बीस साबित हुए।
इसी सर्वे में यह भी पूछा गया था कि क्या मनोज तिवारी बिग बॉस के घर के अंदर भोजपुरी का प्रचार-प्रसार किये तो कुछ लोग मायूस भी थे कि उन्होंने वहाँ पर बहुत कम भोजपुरी बोली या भोजपुरी गाना कम गाया। पर अधिकतर लोगों का यही कहना था कि मनोज तिवारी ने बिग बॉस के अंदर जो छठ पूजा की वह एक तरह से भोजपुरी का हीं प्रचार-प्रसार है। और बिग बॉस के घर में छठ पूजा करना भोजपुरी भाषियों के लिए एक ऐतिहासिक घटना ही थी। सर्वे में अधिकतर लोगों का यह भी कहना था कि मनोज तिवारी को वोट कम नहीं मिले थे। उनको एक साजिश के तहत निकाला गया था। इस बात को लेकर भोजपुरिया समाज में बहुत रोष है।
‘रूस के बारे में अभी तक जो संस्मरण या यात्रा वृत्तान्त हिंदी में प्रकाशित हुए थे, वे सभी उन लेखकों ने लिखे थे जो आज से बीस-पच्चीस साल पहले यानी सोवियत काल में रूस गए थे. सोवियत संघ के बिखराव के बाद रूस काफी बदल गया है. रूस का जीवन भी अब पहले जैसा नहीं रहा. महेश दर्पण ने हाल ही में रूस की यात्रा करने के बाद इसी बदले हुए ज़माने का बेहद आत्मीय, सच्चा और सहज चित्र प्रस्तुत किया है’ यह परिचय है ‘सामयिक प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित महेश दर्पण की सद्यप्रकाशित यात्रा वृत्तान्त पुस्तक ‘पुश्किन के देस में’ का जो रूसी साहित्यकार ल्युद्मीला ख्खलोवा द्वारा इसी पुस्तक के फ्लैप पर दिया हुआ है.
महेश दर्पण हिंदी साहित्य जगत व पत्रकारिता के एक जाने माने हस्ताक्षर हैं जिन्होंने ‘अपने हाथ’ ‘चेहरे’ ‘मिट्टी की औलाद’ ‘वर्त्तमान में भविष्य’ ‘जाल’ ‘इक्कीस कहानियां’ ‘एक चिड़िया की उड़ान’ आदि जैसे सशक्त कहानी संग्रह हिंदी साहित्य को दिये हैं तथा अनेक सम्मानों यथा ‘पुश्किन सम्मान’, ‘साहित्यकार सम्मान’, हिंदी अकादमी का ‘कृति सम्मान’ व ‘पीपुल्स विक्ट्री अवार्ड’ आदि से सम्मानित हुए हैं.
दि. 15 दिसंबर 2010 को उर्मिल सत्यभूषण द्वारा संचालित ‘परिचय साहित्य परिषद’ के तत्वावधान में नई दिल्ली के फेरोज़शाह रोड स्थित ‘राशियन कल्चरल सेंटर’ में महेश दर्पण की पुस्तक ‘पुश्किन के देस में’ पर एक बेहद सारगर्भित व विचारोत्तेजक गोष्ठी हुई जिस की अध्यक्षता राजेंद्र यादव ने की तथा प्रसिद्ध कवि विष्णु चन्द्र शर्मा, चित्रा मुद्गल व रमेश उपाध्याय इस संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता रहे.
प्रारंभ में ‘राशियन कल्चलर सेंटर’ की येलेना शटापकिना ने पुष्प भेंट किये तथा ‘परिचय साहित्य परिषद’ की ओर से प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने मंच पर उपस्थित विशिष्ट गण को पुस्तकों के रूप में शब्द-पुष्प भेंट किये.
गोष्ठी में विषय प्रवर्तन स्वयं ‘परिचय साहित्य परिषद’ की अध्यक्षा उर्मिल सत्यभूषण ने किया और कहा कि इस पुस्तक में रूसी समाज का ऐसा जीवंत चित्रण है कि एक एक दृश्य आँखों के सामने घूमता सा नज़र आता है. ‘परिचय साहित्य परिषद’ की हर संगोष्ठी में ‘राशियन सेंटर’ की ओर से किसी न किसी प्रसिद्ध रूसी साहित्यकार का जीवन वृत्त स्क्रीन पर प्रस्तुत किया जाता है. उर्मिल सत्यभूषण ने कहा कि आज ‘पुश्किन के देस में’ पुस्तक की चर्चा उसी शृंखला की एक कड़ी जैसी है.
येलेना ने अंग्रेज़ी में भाषण करते हुए एक भारतीय द्वारा रूसी समाज पर लिखी गई एक और पुस्तक पर प्रसन्नता प्रकट की तथा यह भी कहा कि पुस्तक पठनीय है व उसमें रूसी पाठकों के लिये भी कई नई जानकारियाँ हैं.
महेश दर्पण ने संक्षिप्त भाषण अपनी पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि पुश्किन का देस केवल रूस ही नहीं है, वरन पुश्किन का देस भारत भी हो सकता है. उन्होंने रूसी साहित्यकारों की उन कई प्रदर्शनियों का ज़िक्र किया जो रूस में उन्हें देखने को मिली.
वरिष्ठ कवि कथाकार विष्णु चंद्र शर्मा ने महेश दर्पण की कहानियों में पारिवारिक संवेदना के संरक्षण की बात की. उन्होंने कहा कि परिस्थितियों के साथ रूस की तस्वीर बदली और महेश ने अपनी पुस्तक में बदलाव से पहले और बाद के रूस की अच्छी तुलना की है. उन्होंने भी महेश द्वारा वर्णित प्रदर्शनियों व रूसी समाज की झलकियों में चल्चित्रात्मकता का गुण होने की बात कही.
चित्रा मुद्गल ने कहा कि महेश दर्पण की यह पुस्तक एक उपन्यास सी लगती है और उन्होंने टूटते हुए रूसी समाज के जीवन में बहुत गहरे पैठ कर यह पुस्तक लिखी है. रूस के शहरों व गांवों का उन्हें बेहद प्रामाणिक विवरण इस पुस्तक में मिला तथा उन्होंने पुस्तक की पठनीयता की भी प्रशंसा की.
सभागार में एक सशक्त पुस्तक पर इतनी गंभीर चर्चा सुनते हुए हिंदी के कई जाने माने हस्ताक्षर यथा केवल गोस्वामी, हरिपाल त्यागी, सुरेश उनियाल, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, वीरेंद्र सक्सेना प्रेम जनमेजय आदि भी उपस्थित थे. रमेश उपाध्याय ने भी अपने भाषण में इस पुस्तक के औपन्यासिक प्रारूप होने की बात कही और कहा कि इस प्रकार मानो एक नई विधा का जन्म हुआ है. उन्होंने कहा कि ‘पुश्किन के देस में’ पुस्तक केवल उन्हें नहीं वरन उनके समस्त परिवार को बहुत अच्छी लगी.
अपने अध्यक्षीय भाषण में राजेंद्र यादव एक ‘नॉस्टाल्’ज्या सा महसूस करते हुए साठ वर्ष पहले के काल में पहुँच गए जब उन्होंने आगरा में चेखव को पढ़ना शुरू किया था. उन्होंने कलकत्ता की ‘नैशनल लाइब्रेरी’ में भी चेखव को खूब खंगाला. वैसे अपने समय में ही राजेंद्र यादव ने अपने किसी आत्याकथ्य में यह कहा था कि वे स्वयं को चेखव के अधिक निकट पाते हैं. उन्होंने काफी वर्ष पहले रूस पर लिखी हुई प्रभाकर द्विवेदी की पुस्तक ‘पार उतर कहं जइहोँ’ का सन्दर्भ दे कर कहा कि उस पुस्तक की तरह ‘पुश्किन के देस में’ भी एक लंबे अरसे तक उनकी स्मृति में रहेगी.
वैसे देखा जाए तो हिंदी साहित्य के कई कालजयी हस्ताक्षर रूसी साहित्य से प्रभावित रहे, यह बात स्वयं अपने आप में सर्वविदित है. जब भारत ब्रिटिश जैसी उपनिवेशवादी शक्ति के अधीन था तब भारत के स्वाधीनता संघर्ष से जुड़े कई नेताओं यथा नेहरु, सुभाषचंद्र बोस व भगत सिंह पर रूस के समाजवाद की बहुत गहरी छाप रही. भगत सिंह की जीवनी देखी जाए तो यह भी कहा जा सकता है कि यदि उन्हें मृत्युदंड न मिलता तो भारतीय समाज को एक और लेनिन मिल जाता. साहित्य में भी प्रेमचंद और मैक्सिम गोर्की के व्यक्र्तित्वो कृतित्वों की परस्पर समानता सर्वविदित है. प्रेमचंद ने स्वयं अपनी सोच व साहित्य पर गोर्की के प्रभाव की बात कही थी. नई कहानी के दौर में भी मोहन राकेश राजेन्द्र यादव जैसे सशक्त हस्ताक्षर चेखव से पूर्णतः प्रभावित थे. रूस अब भले ही पहले जैसा रूस नहीं रह गया है और न ही भारत ही पहले सा समाजवादी रहा है, बाज़ार के दबाव में भारत के रूप में भी आमूलचूल परिवर्वन लगातार आ रहे हैं. पर इस के बावजूद भारतीय और रूसी समाज में अब भी कुछ ऐसा बचा है जो उन्हें अपने प्रारंभिक समय से जोड़ता है. ‘पुश्किन के देस में’ जैसी पुस्तकें उसी समाज के एक एक्स-रे सी लगती हैं जो बदला तो तेज़ी से है पर अपनी कोख को शायद भूल नहीं पाया है व जिसमें अभी भी उस समय के कई अच्छी बुरे अवशेष बचे हैं. ‘पुश्किन के देस में’ जैसी अन्य कई रचनाओं की आवश्यकता है जो इस विषय को गंभीर शोध की तरह लें और भारत के अमरीका से नैकट्य व रूस से धीमी धीमी बढ़ती दूरी पर अपने चिंतन की प्रचुर रौशनी डालें.
रॉबर्ट्सगंज । सोनभद्र
२३ दिसम्बर,२०१० को स्थानीय विवेकानन्द प्रेक्षागृह में हिन्दी दैनिक ‘बहुजन परिवार’ के स्थापना-दिवस एवं अंग्रेज़ी दैनिक ‘सोनभद्र कॉलिंग’ के विमोचन समारोह के संयुक्त अवसर पर ‘प्रेरणा’ (त्रैमा) के संपादकीय सलाहकार एवं सुपरिचित कवि श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ को साहित्यिक योगदान के लिए वर्ष-२०१० के द्वितीय ‘सृजन-सम्मान’ से अलंकृत किया गया। श्री ‘जौहर’ को यह सम्मान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सोनभद्र के उप ज़िलाधिकारी श्री त्रिलोकी सिंह एवं विशिष्ट अतिथि बेसिक शिक्षाधिकारी श्री राजेश कुमार सिंह के साथ वरिष्ठ साहित्यकार पं. अजय शेखर तथा देश के ख्यातिलब्ध बुज़ुर्ग शाइर व ‘यथार्थ गीता’ के उर्दू मुतर्जिम मुनीर बख़्श आलम साहब के कर-कमलों द्वारा प्रदान किया गया।
ग़ौरतलब है कि कन्नौज (उप्र) में जन्मे श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ ने देश-विदेश की अनेकानेक पत्रिकाओं, वीडियो-एलबम, वेब-मैगज़ीन्स, ब्लॉग्ज़, न्यूज़-पोर्टल्ज़ पर अपने उत्कृष्ट चिंतनप्रधान मौलिक लेखन तथा समीक्षाओं के साथ ही टेलीविज़न, आकाशवाणी एवं काव्य-मंचों पर ओजस्वी व मर्यादित हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं की प्रस्तुतियों व मंच-संचालन के माध्यम से जनपद सोनभद्र की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करायी है।
अभी हाल ही में देश की लोकप्रिय साहित्यिक-सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ (देहरादून) ने उन्हें अपने आगामी ‘मुक्तक/रुबाई विशेषांक’ का अतिथि संपादक मनोनीत किया है। वे देश की प्रतिष्ठित त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव प्रयास’ (अलीगढ़) के सहयोगी भी हैं। पेशे से अंग्रेज़ी विषय के प्रतिभा-सम्पन्न अध्यापक श्री जितेन्द्र जौहर के हिन्दी-प्रेम की सर्वत्र सराहना होती रही है।
समारोह के इस अवसर पर ‘भ्रष्टाचार और पत्रकारिता’ विषय पर आयोजित एक विचार-गोष्ठी में जनपद के वरिष्ठ साहित्यकारों सर्व श्री मुनीर बख़्श आलम, पं. अजय शेखर, पत्रकार विजय विनीत, विमल जालान, डॉ. अर्जुन दास केसरी, कथाकार रामनाथ शिवेन्द्र एवं महाकाल समाचार के संपादक श्रीवास्तव जी, सहित अनेक वरिष्ठ पत्रकारों तथा साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कविवर श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ को बधाई दी। संपादक श्री आशुतोष चौबे ने अपने जोशीले उद्बोधन में भ्रष्टाचार के कतिपय पहलुओं पर प्रमाण-सम्मत प्रकाश डाला। उन्होंने समस्त पाठकों व नागरिकों के अपनत्व के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए निष्पक्ष तथा निर्भीक पत्रकारिता के साथ ही उच्च गुणवत्तायुक्त वैचारिक सामग्री के प्रकाशन का वादा किया।
इस अवसर पर भोजपुरी के वरिष्ठ गीतकार श्री जगदीश पंथी को सम्मानित करने के अतिरिक्त समाचार-पत्र द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को मुख्य अतिथि ने ट्रॉफी व प्रमाण-पत्र देकर पुरस्कृत किया ।
हिन्दी दैनिक ‘बहुजन परिवार’ तथा अंग्रेज़ी दैनिक ‘सोनभद्र कॉलिंग’ के संपादक श्री अभिषेक चौबे के निर्देशन में आयोजित इस कार्यक्रम का सफल संयोजन बूरो चीफ़ श्री ब्रजेश कुमार पाठक एवं टीम ने तथा संचालन आशुतोष पाण्डेय ‘मुन्ना’ ने किया।
उक्त मौक़े पर एबीआई कॉलेज की हिन्दी प्रवक्ता श्रीमती सुशीला चौबे और जेसीज बालभवन की हेड मिस्ट्रेस डॉ. विभा दुबे सहित भारी संख्या में जनपद के पत्रकार, वरिष्ठ साहित्यकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। प्रस्तुति: विजय ‘तन्हा'
साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति एवं कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक २५ दिसंबर २०१० को नरेंद्र भवन में चतुर्थ गरिमा पुरस्कार समारोह-२००९ एवं पुष्पक -१६ का लोकार्पण कार्यक्रम संपन्न हुआ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आई. पी. ई. उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद के निदेशक प्रो. राम कुमार मिश्र, स्वतंत्र वार्ता के संपादक डा. राधेश्याम शुक्ल ( अध्यक्ष ) समाज सेवी राम गोपाल गोयनका, आर्य प्रतिनिधि सभा आंध्र प्रदेश के प्रधान विथ्थल राव, भाग्य नगर कावड़ सेवा संघ के अध्यक्ष माँगी राम तायल, प्रो. शुभदा वांजपे ने बतौर विशेष अतिथि भाग लिया। इस पुरस्कार के प्रायोजक वीरेन्द्र मुथा एवं संस्थापक अध्यक्ष डा. अहिल्या मिश्र मंचासीन थे। सुधा गंगोली की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम आरंभ हुआ। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन के बाद डा. अहिल्या मिश्र ने कहा कि महिला लेखिकाओं को साहित्य लेखन में दृढ़ता पूर्वक आगे बढ़ने में संबल प्रदान करना ही उनका उद्देश्य रहा है। डा. मदन देवी पोकरना ने अतिथियों का परिचय दिया। प्रथम साहित्य गरिमा पुरस्कार ग्रहीता पवित्रा अग्रवाल ने संस्था का परिचय व विवरण प्रस्तुत किया। कार्यकारी कार्यदर्शी डा. सीता मिश्र ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया तत्पश्चात नगर की विख्यात कवयित्री डा. रमा द्विवेदी का अथितियो द्वारा ग्यारह हजार रूपए की राशि, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र, शाल एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर चतुर्थ गरिमा पुरस्कार से सम्मानित किया। इस आयोजन में पुष्पक-१६ का लोकार्पण अतिथियों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। महिला कालेज की विभागाध्यक्ष प्रो. शुभदा वांजपे ने पुष्पक का परिचय देते हुए कहा कि यह स्तरीय एवं संग्रहनीय पत्रिका है।
पुरस्कार ग्रहीता डा. रमा द्विवेदी ने अपने भावपूर्ण वक्तव्य में कहा कि उन्हें सम्मान मिला है तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ गई है। किसी महिला द्वारा महिलाओं के लिए पुरस्कार की स्थापना दुर्लभ कार्य है। महत्व नींव का होता है, बीज का होता है, बाद में तो लोग जुड़ जाते है। इस पुरस्कार में पांडुलिपि पर भी विचार होता है, यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। उन्होंने महिला रचनाकारो को संबोधित करते हुए कहा कि महिलाए अपने लेखन के प्रति उदासीन न हो, निरंतर लिखें, संवेदनपूर्ण लिखें लेकिन पुरस्कार की ही कामना से न लिखें। डा. राम कुमार मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि अर्थ का अपना महत्व है और साहित्य रचयिता को भी अर्थ का आधार मिलना चाहिए उन्होंने ने आगे कहा कि उन्नत समाज के निर्माणार्थ आर्थिक क्षेत्र और साहित्यिक क्षेत्र का समागम नितांत आवश्यक है। डा. राधेश्याम शुक्ल ने अपनी अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि स्त्री चाहे किसी भी क्षेत्र हो वह भारतीय परम्परा में पूजनीय रही है। महिलाएं लेखन के क्षेत्र में और अधिक सक्रियता से आगे आ रही है। उन्होंने कहा स्रुजनशीलता महिलाओं का प्राकृतिक गुण है। उन्होंने कहा कि लेखकों का मनोबल बढाने के लिए समाज के समर्थ वर्ग को तन-मन-धन से सहयोग देना चाहिए ताकि लेखन की दशा एवं दिशा अधिक बेहतर हो सके। सभी सम्मानीय अतिथियों ने अपने-अपने विचार रखे। इस पुरस्कार के प्रायोजक वीरेन्द्र मुथा ने आगे भी सहयोग देने का आश्वासन दिया। लक्ष्मी नारायण अग्रवाल व सरिता सुराना ने संचालन किया जबकि मीना मुथा ने धन्यवाद दिया। इस अवसर पर नरेंद्र राय, वेणुगोपाल भटटड, वीर प्रकाश लाहोटी सावन, बिंदु जी महाराज, तेजराज जैन, सुषमा बैद, शान्ति अग्रवाल, आ.सी.शर्मा, प्रो. एम रामलू, एन जगननाथम्, अलका चौधरी, विजय लक्ष्मी काबरा, अंजू बैद, डा. गोरखनाथ तिवारी, मुनीन्द्र मिश्र, भगवान दास जोपट, नीरज त्रिपाठी, भंवर लाल उपाध्याय, सुनीता मुथा, उमा सोनी, सावरी कर, डा. हेमराज मीना, डा. कारन उटवाल, वी. वरलक्ष्मी, सुरेश जैन, डॉ. एस.एल. द्विवेदी, एस.एन. राव, संपत मुरारका, राजकुमार गुप्ता आदि उपस्थित थे।
(बाएं से दाएं) मरुधरा के उपाध्यक्ष रामस्वरूप अग्रवाल, सकाल टाइम्स के विशेष संवाददाता मृत्युंजय बोस. जनसंपर्ककर्मी संजीव निगम , जी न्यूज के प्रोड्यूसर सुभाष दवे, वरिष्ठ पत्रकार-कवि और नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव, आकाशवाणी के सेंट्रल सेल्स डायरेक्टर तथा वरिष्ठ ब्रॉडकास्ट मीडियाकार मुकेश शर्मा, मरुधरा के अध्यक्ष सुरेन्द्र गाडिया, नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी, कवि-गीतकार देवमणि पांडेय
मुम्बई की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था मरुधरा और सौम्य प्रकाशन द्वारा मुम्बई के प्रेसक्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में पत्रकारिता पर आधारित पाँच किताबों का लोकार्पण आकाशवाणी के सेंट्रल सेल्स डायरेक्टर तथा वरिष्ठ ब्रॉडकास्ट मीडियाकार मुकेश शर्मा ने किया। इन किताबों के नाम हैं- बिजनेस जर्नलिज्म, जनसंपर्क, फील्ड रिपोर्टिंग गाइड, स्पेशल रिपोर्ट और फिल्मी स्कूप। इन किताबों पर अपनी राय का इज़हार करते हुए उन्होंने कहा, 'पत्रकारिता किताबें पढ़कर नहीं सीखी जा सकती। लेकिन मीडिया पर इस तरह की सारगर्भित और व्यावहारिक किताबें नये तथा युवा पत्रकारों का मार्गदर्शन कर सकती हैं। ये उन्हें ऐसे मानकों के अक्स दिखा सकती हैं, जिनसे पत्रकारिता जनता की नज़रों में पवित्र और विश्वसनीय बनती है।
प्रेसक्लब का सभागार युवा पत्रकारों से इस क़दर खचाखच भरा था कि कई वरिष्ठ पत्रकारों को बैठने के लिए सीटें कम पड़ गईं। मुकेश शर्मा ने युवा पीढ़ी की तारीफ़ करते हुए कहा, 'आज के युवा पत्रकार स्मार्ट हैं। उनके पास सूचनाओं के तमाम साधन मौजूद हैं। सूचनाएं प्राप्त करने में उन्हें कोई बाधा नहीं है। बस, जरूरत इस बात की है कि उन्हें इन सूचनाओं का अच्छी तरह से, जनोपयोगी रूप से इस्तेमाल करना आना चाहिए। मीडिया के सामने चाहे जो भी संकट आये, युवा पत्रकारों की अगर तैयारी अच्छी है, तो वे उससे पार पा सकते हैं।
श्रोता समुदाय में अगली पंक्ति में (बाएं से दाएं)-अमर उजाला के ब्यूरो प्रमुख हरि मृदुल, सौम्य प्रकाशन की निदेशक रीना त्यागी, अमर उजाला के एसोसिएट एडीटर सुमंत मिश्र और नवभारत टाइम्स मुम्बई की उपसम्पादक कंचन श्रीवास्तव
कार्यक्रम का संचालन कवि-गीतकार देवमणि पांडेय ने किया। उन्होंने शुरुआत में इन किताबों के लेखकों का परिचय कराया और एक शेर के ज़रिए इनके लेखन कौशल की तारीफ़ की-
कुछ भी लिखना सरल नहीं है पूछो हम फ़नकारों से
हम सब लोहा काट रहे हैं का़गज़ की तलवरों से!
कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार-कवि और नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने आज की पत्रकारिता पर विचार व्यक्त करते हुए कहा- ‘आज फिर मिशनरी पत्रकारिता की जरूरत है। कोई भी अखबारी तंत्र या बाजार पत्रकारों से कुछ खास खबरें लाने या न लाने को कह सकता है, पर जन सरोकारों से जुड़ी सीधी-सच्ची खबरें लाने से कोई मना नहीं करता’। उन्होंने इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए कहा, 'आज 24 घंटे के ख़बरिया चैनलों पर खबरें कितने घंटे आती हैं? जब भी टीवी खोलो, इन चैनलों पर राजू के चुटकुले, शीला की जवानी और बिग बॉस की कहानी ही दिखती है। क्या ये खबरें हैं? न्यूज चैनल ये सब परोसकर इंटरटेनमेंट चैनलों में बदल गये हैं। ख़बरों के लिए दूरदर्शन लगाना पड़ता है। बेशक उसकी खबरों में सरकारी पुट होता है, पर वे ख़बरें तो होती हैं। मरहूम शायर क़ैसर-उल-जाफ़री के एक शेर के ज़रिए विश्वनाथ जी ने युवा पीढ़ी को पत्रकारिता के धर्म की याद दिलाई-
हम आईने हैं दिखाएंगे दाग़ चेहरों के
जिसे ख़राब लगे सामने से हट जाए!
जी न्यूज के प्रोड्यूसर सुभाष दवे ने अपनी किताब ‘बिजनेस जर्नलिज्म’ का परिचय देते हुए कहा, 'यह एक नीरस और शुष्क विषय माना जाता है। लेकिन मैंने इसे पंचतंत्र की कहानियों की तरह एक कहानी के रूप में पेश करके सरस बनाने की कोशिश की हैं’।
वरिष्ठ जनसंपर्ककर्मी संजीव निगम ने अपनी किताब ‘जनसंपर्क’ का परिचय देते हुए कहा, 'आज जीवन के हर क्षेत्र में जनसंपर्क की जरूरत है। वह जनसंपर्क कैसा हो, किस तरह किया जाये, उसके टूल्स क्या हों, इन सभी का विवरण मैंने दिया। और अनेक केस स्टडी के साथ व्यावहारिक तरीके से दिया है।
अपनी पुस्तकों का परिचय देते हुए नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी
सकाल टाइम्स के विशेष संवाददाता मृत्युंजय बोस ने अपनी किताब ‘फील्ड रिपोर्टिंग गाइड’ के बारे में बताया, 'यह युवा पत्रकारों के लिए एक मैन्युअल के रूप में है। रिपोर्टिंग करते समय ध्यान में रखी जाने वाली बातों को तो मैंने बताया ही है, तरह-तरह की खबरों के लिखने की शैली के उदाहरण भी दिये हैं।
नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी ने अपनी दो किताबें ‘स्पेशल रिपोर्ट’ और ‘फिल्मी स्कूप’ का परिचय दिया।
‘स्पेशल रिपोर्ट’ में जावेद इकबाल (फ्रीलांसर), जितेंद्र दीक्षित (स्टार न्यूज) मनोज जोशी (ए 2 जेड चैनल), नीता कोल्हाटकर (डीएनए), प्रबल प्रताप सिंह (आईबीएन 7), प्रभात शुंगलू (आईबीएन 7), प्रकाश दुबे (दैनिक भास्कर), स्वर्गीय प्रमोद भागवत (महाराष्ट्र टाइम्स), रामबहादुर राय (प्रथम प्रवक्ता के पूर्व संपादक), रवीश कुमार (एनडीटीवी), रवि शंकर रवि (नई दुनिया), शेखर देशमुख (फ्रीलांसर) और उमाशंकर सिंह (एनडीटीवी) के करियर की बेहतरीन रिपोर्ट हैं।
‘फिल्मी स्कूप’ में चंद्रकांत शिंदे (नई दुनिया), इम्तियाज अजीम (राष्ट्रीय सहारा), रूपेश कुमार गुप्ता (जी न्यूज), संदीप सिंह (महुआ), शिवानी त्रिवेदी (स्टार न्यूज), सुमंत मिश्र (अमर उजाला), विद्योत्तमा शर्मा, (बॉम्बे टाइम्स की पूर्व असिस्टेंट एडिटर) और विनोद तिवारी (फिल्मफेयर के पूर्व संपादक) के कैरियर की अनोखी एक्सक्लूसिव स्टोरीज हैं।
मरुधरा के अध्यक्ष सुरेन्द्र गाडिया ने मुख्य अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट किया। संस्था के उपाध्यक्ष रामस्वरूप अग्रवाल व महामंत्री राकेश मोरारका ने लेखकों का स्वागत किया। सौम्य प्रकाशन की निदेशक रीना त्यागी ने पुष्पगुच्छ देकर इन पाँच पुस्तकों के कवर डिज़ाइनर संजय खडपे और शिव पाण्डेय का सम्मान किया तथा सबके प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में मुम्बई के कई गणमान्य पत्रकार व लेखक मौजूद थे।
मुम्बई में यह आयोजन शुक्रवार 24 दिसम्बर 2010 की शाम को सम्पन्न हुआ।
विगत दिनों भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के आजाद भवन स्थित कला दीर्घा में आस्ट्रीया की सुविख्यात कलाकर्मी उत्त ऐश्बेचर की कला्कृतियों की प्रदर्शनी का आयोजन भारत और अन्य देश के बौ्द्धिक आदान-प्रदान के अंतर्गत किया गया। उन्होंने अपने चित्रों का विषय दिया था पवित्र गंगा। उनके चित्रों की विशेषता शोख रंगों की उफनती गंगा का आभास दे रही थीं। परस्पर विरोधी रंग इस प्रकार अपनी उपस्थित का आभास करा रहे थे मानों रंग स्वयं मस्तिष्क में चित्रों का रूपायन कर अपनी अमूर्तता को पारिभाषित कर रहे हों।
उत्त ऐशबेचर आस्ट्रीया की ख्याति प्राप्त चित्रकार हैं। अबतक उन्होंने देश-विदेश में अपने चित्रों की नौ अकल चित्र प्रदर्शनी, नौ समूह चित्र प्रदर्शनियों और तीन निजी संग्रह प्रदर्शनी का आयोजन कर चुकी हैं।
आस्ट्रीया के अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स से 1987-88 में दीक्षित होने के उपरांत उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और इस क्षेत्र में सफलता उनके कदम चूम रही है, 1958 में आस्ट्रीया के विल्लाच नामक स्थान पर जन्मी यह महान चित्रकार आजकल पेरिस में रह रही हैं। उनका ईमेल संपर्क है— uteaschbacher@yahoo.fr
प्रस्तुति- शमशेर अहमद खान, 2-सी,प्रैस ब्लॉक, पुराना सचिवालय, सिविल लाइंस, दिल्ली-110054
Ahmedkhan.shamsher@gmail.com
चेंबूर के पास स्थित गोवंडी झुग्गी बस्ती मुम्बई महानगरीय इलाकों में संभवत: सबसे अधिक त्रासद स्तिथि मे है। महानगर के एक दूर दराज किनारे पर स्थित होने के कारण इस बस्ती की तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है। इस बस्ती मे लगभग बीस पच्चीस हजार निवासी भयंकर गरीबी के साथ साथ अकल्पनीय नारकीय जीवन जीने के लिये अभिशप्त हैं।
महानगर पालिका ने आसपास की संभ्रांत बस्तियों का कूडा कचरा इसी बस्ती मे जमा कर रखा है। यहां मुम्बई के ज़हरीले कचरे के कई पहाड से बन गये हैं जो दूर से ही आगन्तुकों का ध्यान खींचते हैं।बरसात के दिनों मे इन कचरे के पहाडों का कचरा बारिश के साथ बहकर बस्ती की गलियों मे दमघोंटू दुर्गंध पैदा करता है।बस्ती से होकर बहने वाला गन्दा नाला यहां के निवासियों की मुसीबत और अधिक बढा देता है। एक तरफ गंदा नाला और दूसरी तरफ कचरे के पहाड़ मिलकर ऐसी सामूहिक दुर्गंध पैदा करते हैं कि नाक पर कपडा रखने के बाद भी तीखी बदबू से निजात नही मिलती। यहां चारों तरफ मक्खी और मच्छरों का साम्राज्य है। साफ हवा,साफ पानी और पौष्टिक भोजन के अभाव मे बस्ती के लोगों मे कई बीमारियां चिंताजनक स्तिथि मे पहुंच गई हैं।
बस्ती के अधिकांश घरों मे टी.वी.और फेफडों से सम्बन्धित कई बीमारियां फैल चुकी हैं। स्कूली बच्चे भी इन गंभीर बीमारियों की चपेट मे हैं। बच्चों मे इन घातक बीमारियों का संक्रमण एक खतरनाक संकेत है। समय रहते हुए मुख्यत: गंदगी के कारण फैलने वाली इन बीमारियों की रोकथाम बहुत जरूरी है।
इस बस्ती के गरीब मेहनतकश मजदूर परिवारों के पास न अपने संसाधन हैं और न इनके पास संबन्धित सरकारी विभागों को अपनी स्थिति से अवगत कराने का समय एवम उचित जानकारी है। ज्यादातर लोग अनपढ हैं। बहुत से बच्चे भी 4 वर्ष तक के बच्चों की अनिवार्य शिक्षा कानून के बावजूद स्कूल नही जा पाते।एक तरह से गोवंडी बस्ती मुम्बई महानगर के माथे पर एक ऐसा कलंक है जिसके लिये हम सब जिम्मेदार हैं।यहां के गरीब लोग साक्षात नरक/ दोजख मे रह रहे हैं। यह नरक भी महानगर के संभ्रांत लोगो की जीवन शैली से ही उपजा नरक है।लेकिन इस नरक की सजा गोवंडी के निवासी भुगत रहे हैं।
कुछ समय पहले धर्म भारती मिशन नामक सामाजिक उत्थान के कार्यों मे जुटी संस्था ने इस बस्ती के तीन स्कूलों के बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने एवम शिक्षा का स्तर सुधारने तथा कम्पयूटर की शिक्षा देने की एक योजना शुरू की थी।धीरे धीरे कई सहृदय लोगों के सहयोग से इस संस्था ने यहां शौचालय आदि बनवाकर इलाके की सफाई आदि पर भी काफी काम किया है ।यह संस्था अपने सीमित साधनो के साथ आर.टी आई के माध्यम से भी यहां के निवासियों मे जागरूकता लाने के लिये प्रयास रत है।
धर्म भारती मिशन हालाकि पूरे प्रयत्न से अपने काम मे जुटा है लेकिन यहां की समस्याओं को देखते हुए इसे भी आटे मे नमक ही कहा जायेगा। इस काम को काफी बडे स्तर पर सरकारी एवम गैर सरकारी संस्थाओं की मदद से तेजी से आगे बढाने की आवश्यकता है। कई संस्थाओं एवम प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों ने धर्म भारती मिशन के साथ जुडकर गोवंडी के समग्र विकास की एक महत्वाकांक्षी योजना ‘गोवंडी कायाकल्प परियोजना’ शुरु की है । इस परियोजना मे जनता के सहयोग से गोवंडी को प्रदूषण एवम बीमारी से मुक्त कर बस्ती के बच्चों को स्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराकर यहां का समग्र विकास सुनिश्चित किया जाएगा।गोवंडी का कायाकल्प कर इसे एक आदर्श बस्ती बनाकर देश और दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना है।इस योजना को सफलता पूर्वक शीघ्रातिशीघ्र पूरा करने के लिये सभी मुम्बई वासियों के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है।
आप सभी से अनुरोध है कि इस पवित्र काम मे श्रमदान एवम आर्थिक सहभागिता कर ‘गोवंडी कायाकल्प परियोजना’ को सफल बनाने मे समुचित सहयोग करें। धर्म भारती मिशन के इस काम मे सहयोग के लिये 'नवसृष्टि इंटरनेशनल ट्रस्ट' को देय चेक या ड्राफ्ट निम्न पते पर भेज सकते हैं।
संयोजक - परमजीत सिंह ( 98920-59168) ई-मेल- sing_param@rediffmail.com
नोट: हाल ही मे लेखक आर.के.पालीवाल और आबिद सुरती ने धर्म भारती मिशन के लिये गोवंडी झुग्गी बस्ती पर एक डोक्यूमेंटरी फिल्म बनाई है। इसे सभी मुम्बई और देश वासियों को देखना चाहिये।
साहित्य से जुड़ी असंख्य संस्थाओं में से अधिकतर की एक प्रमुख सीमा यही रहती है कि वे सब किसी न किसी एक शहर के साहित्यकारों तक सीमित रहती हैं. उनके मासिक या वार्षिक कार्यक्रम अपने शहर से जुड़े रहते हैं और यहाँ तक कि उनके पुरस्कारों सम्मानों की सीमा भी उसी शहृ या उसके आसपास के भूगोल तक महदूद रहती है. ऐसे में यदि कोई संस्था अखिल भारतीय स्तर पर एक से बढ़ कर एक साहित्यकारों की खोज करती है तो यह अपने आप में एक बेमिसाल बात है. उर्दू अदब से जुडी संस्था ‘जवाब-ए-शिकवा’ एक ऐसी ही संस्था होने का गर्व रखने का अधिकार रखती है, यह इस पत्रकार के सामने तब प्रमाणित हुआ जब दि. 24 अक्टूबर 2010 को मध्यप्रदेश के धार शहर में ‘जवाब-ए-शिकवा’ द्वारा आयोजित एक शानदार मुशायरे में शरीक होने का सुअवसर मिला. उस मुशायरे में न केवल धार या आसपास के कुछ सुपरिचित हस्ताक्षर शायरी प्रस्तुत करने गए थे वरन् दिल्ली, जम्मू व गुवाहाटी जैसे दूरस्थ शहरों के मशहूर शायर भी शिरकत करने आए थे. मुशायरा धार शहर के होटल नटराज पैलेस के सभागार में रखा गया और इस में धार की प्रसिद्ध हस्तियों में से श्री मनोज गौतम मुख्य अतिथि थे. उर्दू के जाने माने हस्ताक्षर श्री माहताब आलम इसमें विशिष्ट अतिथि थे.
मुशायरा शुरू होने के इन्तज़ार में होटल नटराज पैलेस का सभागार उर्दू अदब के चाहने वालों से खचाखच भर गया था और मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि के स्वागत के बाद मुशायरे की शुरुआत नॉएडा सेपधारी युवा शायरा पूर्णिमा चतुर्वेदी ‘माह’ की शानदार गज़लों से हुआ जिस के कुछ शेर यहाँ प्रस्तुत हैं:
पूर्णिमा चतुर्वेदी ‘माह’
मैं टूटे आईने को देख कर अक्सर यही सोचूँ
कि मेरे हाथ से कैसे वो पत्थर चल गया होगा
और
कब तक वो मेरी फ़िक्र में दरिया को दुआ दे
मैं डूब चुका हूँ कोई साहिल को बता दे.
दूसरे नंबर पर ही जो शायर आए, उन्होंने अपनी जानदार शायरी से श्रोताओं के दिलों की धडकनें तेज़ कर दी. जैसे:
जिसे किसी ने बनाया न हमसफ़र अपना
वो शख्स काफिलासालर होने वाला है.
(काफिलासालार = काफिले का नेता)
और
वो एक पल के लिये छोड़ कर गया था मुझे
तमाम उम्र मेरी इन्तेज़ार में गुज़री.
उद्घाटन
लियाकात जाफरी जम्मू से पधारे उर्दू व फारसी के विद्वान हैं जिन का शायरी का दीवान ‘बयाज़’ शीर्षक से उर्दू शायरों के बीच बहु-चर्चित है. इसके अलावा उनकी तीन पुस्तकें शोध व आलोचना पर हैं व एक पुस्तक फारसी से उर्दू में अनुवाद की है. वे अंजुमन-ए-तककी-ए-उर्दू की जम्मू कश्मीर शाखा की एक पुरस्कार समिति के अध्यक्ष भी हैं. जम्मू निवासी होने के कारण जम्मू कश्मीर की शुरू से चली आ रही दर्दनाक उथल पुथल के प्रति एक संवेदनशील कश्मीरी नज़रिया भी रखते हैं.
वैसे दिल की धडकनें तेज़ करने वालों की वहाँ कमी नहीं थी. उर्दू के एक से बढ़ कर एक मंजे हुए शायर वहाँ मौजूद थे और सभागार में भी एक से बढ़ कर एक कद्रदान दाद देने को ‘वाह वाह’ समेत तैयार. उस सभागार में एक नज़र डालने पर यही लगा कि अधिक से अधिक श्रोता उर्दू भाषा व शायरी की बारीकियों को समझने वालों में से हैं बल्कि उनमें से कई स्वयं शायर भी हैं.
वर्त्तमान परिस्थितियों पर तंज़ का एक नमूना देखिये, सतलज राहत का एक शेर:
ये ज़िन्दगी भी बीमारी की तरह होती है
ये मुंबई में बिहारी की तरह होती है
आज उर्दू शायरी सिर्फ शराब और शबाब तक ही महदूद नहीं है, यह साबित करने वालों की भी वहाँ कमी नहीं थी. सामयिकता को उजागर करती इस शायरी को चाहने वालों से भी सभागार भरा था:
ज़हीर राज़
किस कदर कल बह गया मेरा लहू
सुर्ख़ियों में आ गए अखबार सब
दो कदम घर से कभी निकले नहीं
रास्तों पे तब्सिरा तैयार सब
हर ज़बां पर अम्न का नारा मगर
जंग लड़ने के लिये तैयार सब
आज शायरी एक समुन्दर सी है, विषयों ज़मीनों की कोई सीमा नहीं. जिंदगी से जुडी शायरी हो या रिश्तों के खोखलेपन का ज़िक्र, शायर अपने वक्त की नब्ज़ को बड़ी नजाकत से पकड़े रहता है और दमदार से दमदार अलफ़ाज़ में उसे अभिव्यक्त करता है. जैसे:
माहताब आलम
हमसफ़र भी कभी मंज़िल से बिछड जाते हैं
उम्र भर तू भी मेरा साथ निभाने से रहा
रास्ता अपने लिये खुद ही तराशूं कोई
ये ज़माना तो कोई राह दिखाने से रहा
या
कमर धारवी
ऐ मेरे भाई तेरा दिल तो साफ़ है लेकिन
तेरी बातों में अहंकार बहुत बोलता है
गुवाहाटी से आई कवयित्री रागिनी गोयल ने पहले ही शेर में वाह वाह की धूम मचा दी:
सफर की ज़िन्दगी अब बेवजह की सैर लगती है
मुझे अपनी ही सूरत आईने में गैर लगती है
इसके अतिरिक्त उनकी यह गज़ल भी बहुत पसंद की गई (कुछ शेर):
हर दरीचा ताके हर एक अटारी देखे
शहर सारा ही शहंशाह की सवारी देखे
दर दरीचा तो कोई चारदीवारी देखे
जाते जाते किले को राजकुमारी देखे
अनुराधा शर्मा
अनुराधा शर्मा (फरीदाबाद से) एक उभरती हुई शायरा हैं जिनकी शायरी से उनमें काफी उमीदें बंधती हैं. कुछ शेर:
खामशी चल पड़ी हलचलों की तरफ
बाद-ए-मंज़िल बढ़ी रास्तों की तरफ
ये परिंदा ही शायद समझ पाएगा
क्या तकूं हूँ मैं यूं बादलों की तरफ
दिल्ली के शायर अनिल पराशर ‘मासूम शायर’ ने एक संवेदनशील रचना प्रस्तुत की. यह उनकी एक बहुचर्चित रचना है जो उन्होंने अपने स्वर्गीय पिता के विषय में रची थी तथा विश्व पुस्तक मेले में ‘हिन्दयुग्म प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित संकलित कविता संग्रह ‘अनमोल संचयन’ के विमोचन कार्यक्रम में पढ़ कर भी उन्होंने बेहद प्रभावित किया था. वे पिता के बारे में लिखते हैं: (दो शेर)
हाथ काँधे पे बस एक रखता था वो
इन आँखों में सब देख सकता था वो
उसकी खफ्गी को कोई भी समझेगा क्या
मैं संवारता था जब भी बिगड़ता था वो
बुज़ुर्ग शायर नसीर अंसारी का एक शेर:
ये सिर्फ बनने सँवरने की शय नहीं है नादां
अगर शऊर-ए-नज़र है तो आईना पढ़ना
मुशायरे के सभी शायरों की पंक्तियाँ देना संभव नहीं, पर यहाँ प्रस्तुत हैं मुशायरे के अंतिम शायर पराग अग्रवाल की कुछ पंक्तियाँ:
इश्क में हाल क्या है क्या कहिये
जूनून है, करार है. क्या है?
वो जो दरिया में है मुसाफिर है
वो जो दरिया के पार है क्या है
श्रोता
इस पूरे मुशायरे के आयोजन में दो शख्सियतों का विशेष योगदान रहा: एक तो जर्मनी से आए जतीन दत्तव दूसरे धार निवासी पराग अग्रवाल. जतीन दत्त ने मुझ से हुई संक्षिप्त बातचीत के दौरान कहा कि जवाब-ए-शिकवा चाहता है कि अधिक से अधिक लोग इस से जुड़ें. जवाब-ए-शिकवा शायरों के आपसी मेल मिलाप व विचार विमर्श के लिये इस से पूर्व तीन बड़ी बड़ी सभाएं कर चुका है जिन्हें उसने राब्ता 1, 2 व 3 कहा और जो क्रमशः जयपुर नई दिल्ली व इंदौर में 2007, 2009 व 2010 में हुई. ‘जवाब-ए-शिकवा’ की प्रमुख गतिविधियों में मासिक गोष्ठियां, उर्दू अदब का मूल्यांकन, उर्दू कक्षाए व एक पुस्तकालय भी हैं. उनकी भावी योजनाओं में एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पत्र, एक प्रकाशन संस्थान व शायरी में छुपे रुस्तमों की खोज भी है. संस्था इस बात का भी एक सुखद स्वाभिमान रखती है कि उसके पास प्रगति के लिये समुचित फंड भी उपलब्ध हैं तथा इस मामले में वह किसी पर निर्भर नहीं है.
मुशायरा शाम सात बजे शुरू हुआ लेकिन मुशायरे में आए शायरों की एक अनौपचारिक सभा दोपहर को हुई जिसमें कुछ शायरों ने पराग अग्रवाल के परिश्रमी स्वाभाव की बेहद प्रशंसा की व कुछ ने यहाँ तक कहा कि पराग इस कार्यक्रम की तैयारियां करते हुए एक किसान से कम नहीं लग रहे. जतीन ने इच्छा ज़ाहिर की कि हर शह्र में ‘जवाब-ए-शिकवा की एक मज़बूत टीम ज़रूर होनी चाहिए और हर शह्र में एक पराग अग्रवाल होना चाहिये. मुशायरे की अंतिम रचना तो पराग ने पढ़ी पर उस के बाद भी धार के सुपरिचित हिंदी कवि संदीप शर्मा ने सब को बधाई देते हुए कहा कि हिंदी और उर्दू के बीच कोई दूरी है ही नहीं. दोनों भाषाओँ के साहित्यकार आपस में प्रेम और सद्भावना से जुड़े हैं. इस के साथ ही उन्होंने अपनी एक सशक्त व्यंग्य कविता भी प्रस्तुत की जिसमें आदिम मानव समाज की और आज के अति तकनीकी आधुनिक समाज की बहुत सशक्त व काफी कुछ व्यंग्यात्मक तुलना भी की. आदिम मानव के पास न तो ए.टी.एम था न ही क्रेडिट कार्ड, पर वह कम से कम मनुष्य तो थ! शायद आज के युग में आधुनिकता अधिक है, उस युग में मानव की निश्छलता अधिक थी.
मुशायरे के अंत में सभी शायरों व श्रोताओं के लिये होटल नटराज पैलेस में तैयार किया गया स्वादिष्ट भोजन था पर भोजन तक पहुँचते पहुँचते तारीख बदल चुकी थी, हालांकि एक दूसरे से बिछुड़ने का दिल किसी का नहीं हो रहा था.
हरगोविंद जी का मुक्त दिवस हो
या स्वामी महावीर को निर्वाण मिला हो
राम जी अयोध्या आ पहुंचे हों
या पांडव ने पूरा बनवास किया हो
हो कारण कोई भी
प्रेम का तोरण हर द्वार सजाएँ
आओ एक दीप जलाएं
दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जो अलग अलग नामो से विभिन्न कारणों से बहुत सी धर्मो में मनाया जाता है। अंधकार पर प्रकाश की, अज्ञान पर ज्ञान की और बुराई पर अच्छाई जी विजय का प्रतीक है दीपावली। प्रकाश के इस त्यौहार को डी अफ डब्लू इंडियन कल्चरल सोसईटी ने एक बड़े मेले के रूप में २००६ में मानना प्रारंभ किया था। तब से ये पारम्पर निरंतर चली आ रही है। इसी परंपरा के तहत इस बार पांचवां दीवाली मेला बहुत ही धूमधाम और शान से मनाया गया ,इस मेले में करीब ८० से ९० हजार लोग शामिल हुए। लोगों का आना जाना शाम से ही प्रारंभ होगया था। खाने पीने के ९० स्टौल थे जहाँ भारत के हर प्रदेश का खाना था। खाने की महक पूरे वातावरण को और भी मेले जैसा बना रही थी।किड्स कौर्नर में बच्चों ने बहुत आनन्द उठाया। मेले में कहीं बन्जी जम्पिंक हो रही थी तो कहीं बच्चे हाथी और ऊंट की सवारी कर रहे थे। बाहरी स्टेज पर देश के विभिन प्रान्त का नृत्य हो रहा था जिसको लोगो ने बहुत सराहा तथा गरबा और भांगड़ा का खूब लुत्फ़ उठाया। इस के लिए श्री कृष्ण परमार बधाई के पात्र हैं।
दी ऍफ़ वाब्लू इंडियन कल्चरल सोसाईंटी के अध्यक्ष श्री सतीश गुप्ता जी जो की स्वयं स्टेडियम के अन्दर और बाहर के स्टेज के कार्यक्रम की देख भाल कर रहे थे से जब मेले की सफलता के बारे में बात की तो उन्होंने कहा की "ये हमारा पांचवां मेला है और हर बार ये पहले से बेहतर हुआ है। लोगों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है। इस बार ये मेला कॉटन बौल स्टेडियम में हुआ और बहुत हो सफल रहा। इस बार हमको डैलस के मेयर और आसपास के शहरों के मेयर का बहुत ज्यादा सहयोग मिला है। पहले जब हमने ये प्रारंभ किया था तो मन में शंका थी कि पता नहीं लोगों को पसंद आएगा या नहीं यहाँ के लोग क्या कहेंगे पर जैसे जैसे देसी लोग बढ़ते जा रहे हैं। लोगों को हमारी सभ्यता और संस्कृति के बारे में पता चलता जा रहा है।और अब हम को सभी का सहयोग मिलने लगा है। इस मेले की सफलता का श्रेय मेरे साथियों और स्वयं सेवियों को जाता है जिन्होंने दिनरात मेहनत की है।"
डैलस रंगमंच द्वारा इस मौके पर रामलीला का आयोजन किया गया था। जैसे ही रामलीला प्रारंभ हुई सभी लोग अन्दर हौल में आ के बैठ गए। एक घंटे चली इस रामलीला ने सभी को मन्त्र मुग्ध कर दिया। रामायण के पात्रों की वेश-भूषा, मंच सज्जा और पत्रों का अभिनय ऐसा था कि अमरीका में बसे भारतीयों को अपने बचपन के दिनों की रामलीला याद आ गई। लेखक, निर्देशक जयंत चौधरी, और सोनल की कल्पनाशीलता ने रामलीला को दर्शकों के दिलो-दिमाग में ऐसा बसा दिया कि बच्चों से लेकर बूढ़े तक इसके एक एक दृश्य, संवाद और सुंदर प्रस्तुति को लेकर अपनी प्रशंसा के भाव छुपा नहीं पा रहे थे। सूत्रधार सोनल पौद्दार और सौम्या सरन ने बहुत खूबी से इस भूमिका का निर्वाह किया। जिस की वजह से रामलीला और भी उत्तम हुई कल्पना फ्रूटवाला। डॉ श्री प्रकाश कागाल, श्री अरुण रावत, सुश्री वन्दिता पारिख, श्री राज त्रिपाठी, श्री तरुण सरन, डॉ श्री थीरू विजय, सुश्री नूतन अरोरा, सुश्री ज्योति कुमार, श्री तरुण धाम, सुश्री पारुल भाटिया आदि ने रामलीला के मुख्य पात्रों की भूमिका का निर्वाह किया। बाल कलाकारों में मुख्य थे अर्पित, सोनाक्षी, लक्ष्य, आदित्य, मेहर, मलिका, पंकज, रोहन शिवम् संजना मेघना मुकुंद, विवेक, विनायक, राघव। रामलीला की स्वयंसेवी टीम में थे श्री राम साहनी, श्री विनय सक्सेना, नूतन अरोरा, सुश्री राधिका गोयल, सुश्री शारदा रावत, श्री राजेश रैना, सुश्री नीरजा शेठ, सुश्री रश्मि भाटिया, सुश्री मंजू श्रीवास्तव, सुश्री किनी परिवार, श्री किशोर फ्रूटवाला इन सभी के सहयोग के बिना रामलीला का संम्पन हो पाना अकल्पनीय था। रावन दहन के साथ ही पूरा स्टेडियम जय श्रीराम के नारों से गुंजायेमान हो उठा।
दीवाली मेले को सफल बनाने में श्री रमेश गुप्ता जी का बहुत बड़ा योगदान है।रमेश जी ने प्रायोजकों से ले के बौलीवुड शो तक सभी कुछ का बखूबी इंतजाम किया। इनकी कार्य कुशलता की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। श्री रमेश गुप्ताजी जो हर साल भारत से अमेरिका दिवाली मेले का आयोजन करने ही आते हैं। उन्होंने बताया अमेरिका से भारतीय सर्दियों की और गर्मी की छुट्टियों में मुख्यतः भारत जाते हैं, तो उनको कभी भी रामलीला देखने को नहीं मिल पाती है तो सोचा की हमारे बच्चे अपनी इस संस्कृति को भी देखें और इस का आनन्द लें। यही सोच के हम हर साल ये मेला सजाते हैं। रमेश गुप्ता जी ने आगे कहा की बिना प्रायोजकों के सहयोग से कार्यक्रम सफलता पूर्वक करना कठिन था। हम सिटी बैंक वालमार्ट जी टीवी, स्टार टी वी, सबवे, पेप्सिको, टी एक्स यु एनर्जी, देसी प्लाज़ा टेक्सस इंस्ट्रुमेंट्स, एस बी इंटरनेशनल, एकल विद्यालय, फेन एसिया, देसी प्लाजा। गुप्ता एंड एसोसियेट इंक, पटेल ब्रदर्स, गुप्ता अग्रवाल फाउन्डेशन, गिडो मैथ्स एंड लर्निंग। राज विडिओ फोटोग्राफी डॉ राज एंड प्रतिभा तन्ना के बहुत बहुत आभारी हैं। मै हृदय से सभी का धन्यवाद करता हूँ। राजन और उनकी टीम ने हमारी बहुत सहायता की है मै उनका भी बहुत आभारी हूँ।
मेले का अंतिम चरण था सुनिधि चौहान का कंसर्ट। लोग बेताबी से अपनी चाहिती गायिका का इंतजार कर रहे थे। उनके स्टेज पर आते ही पूरा स्टेडियम तालियों की गडगडाहट से गूंजा उठा। सुनिधि ने लोगों का भरपूर मनोरंजन किया। इसके बाद इंडियन आइडल और बदमाश कम्पनी के मियांग चेंग और अयूब पटेल ने भी लोगों का बहुत मनोरंजन किया। उनके गाये गानों पर लोग झूमते नजर आये। यहाँ का साउंड सिस्टम बहुत अच्छा था श्री चाट गणेश जी ने। जिसका पूरा इंतजाम किया था। वो बधाई के पात्र हैं।
स्टेडियम की सारी व्यवस्था अति उत्तम थी। श्री यू के गुप्ता जी जो की बहुत अच्छे समझौता वार्ताकार (निगोशियेटर ) माने जाते हैं। उनके कुशल मेनेजमेंट और निगोशियेशन कि वजह से स्टेडियम की अच्छी व्यवस्था संभव हो सकी। पूरा मेला बहुत ही अच्छी तरह से प्लान किया गया था। सब कुछ सुनियोजित ढंग से हुआ। ये विभाग श्री वी के गुप्ता जीके पास था जिन्होंने बहुत अच्छी तरह इतने विभिन्न कार्यक्रमों को एक सूत्र में पिरो के माला सा बना दिया। .डॉ नरेश गुप्ता जी जो की कैंसर क्लिनिक चलाते हैं उन लोगों की सहायता के लिए जिनके पास इन्शोरेंश नहीं है।इस तरह से सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बहुत उत्साह से भाग लेते हैं और तन मन धन से सहायता करते हैं।
रमेश गुप्ता जी ने एक बहुत सुंदर बात की उन्होंने कहा की वो अब मेले की सांस्कृतिक बागडोर नवजवान बच्चों को सौपना चाहते हैं। इस बार मेले में यंग बच्चों ने बहुत मेहनत से काम किया जिनमे हैं अरिश गुप्ता अर्नव गुप्ता, सुनैना, विवेक गुप्ता और देव गुप्ता।
कौन्सर्ट की समाप्ति पर जी आतिशबाजी हुई बहुत देर तक चली। ऐसा लगता था कि पूरा आकाश दुधिया प्रकाश से भर गया हो और लाल, सफ़ेद, हरे, सुनहरे रंगों के फूल आकाश में खिल उठे हो। ये पूरा समां दर्शनीय था। मेले के बारे में जब लोगों से पूछा तो किसीने कहा की मुझको तो अपना बचपन याद आ गया, किसी ने कहा मेरे बच्चों को हाथी और ऊंट की सवारी कर के बहुत आनद आया, तो किसीने कहा मेले का पूरा आन्नद उठाया फिर रामलीला और सुनिधि का गाना गाना अन्त में आतिशबाजी मनोरंजन के लिए इससे ज्यादा कोई और क्या मांगेगा।हम तो अगले दिवाली मेला का इंतजार करेंगे।
मेला देखने के लिए लिटिल रौक अरकेंसा, अर्डमोर, फेड्विल, हीयूस्टन, औसटिन, शिकागो न्यू योर्क, कैलिफोर्निया से लोग आये थे। इस मेले की खास बात ये थी कि इसमें भारतियों के अलावा पाकिस्तानी, नेपाली और अमेरिकन भी शामिल हुए।
लोक सभा अध्यक्षा ने किया दूसरी हरित क्रान्ति का आवाहन
शियाट्स द्वारा नया कृषि विज्ञान केन्द्र खोलने की योजना: डा. आर.बी. लाल
कुलाधिपति डॉ. मनी जैकब लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को डोक्टरेट की उपाधि से सम्मानित करते हुए
शताब्दी समारोह के अन्तर्गत सैम हिग्गिनबॉटम इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एण्ड साइंसेस (पूर्व नामः एलाहाबाद एग्रीकल्चर डीम्ड यूनिवर्सिटी) का छठा दीक्षान्त समारोह दिनांक ३ नवंबर, २०१० को सम्पन्न हुआ। समारोह की मुख्य अतिथि श्रीमती मीरा कुमार जी, माननीया अध्यक्षा, लोक सभा, भारत सरकार थीं। समारोह में विशिष्ट अतिथि के तौर पर वुँवर रेवती रमण सिंह, सांसद, इलाहाबाद, डा. सैयद इरॉडॉस्ट, अध्यक्ष एशियान इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बैंकाक, डा. अरविन्द कुमार, उपमहानिदेशक, आईसीएआर, डा. जनक पाण्डेय, कुलपति, बिहार सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, डा. पी.वी.जगमोहन, मण्डलायुक्त इलाहाबाद, प्रो. विलास एम. सलोखे, कुलपति काजीरंगा कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट आसाम तथा अशोक वाजपेयी थे।
कार्यक्रम की शुरुआत बिशप इसीडोर फर्नानडीज ने प्रार्थना से की जिसके बाद कुलाधिपति डा. मनी जैकब ने विश्वविद्यालय के छठे दीक्षान्त समारोह की घोषणा की। कुलसचिव प्रो.(डा.) ए.के.ए. लॉरेन्स ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया तथा विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को बताया। कुलपति प्रो.(डा.) राजेन्द्र बी. लाल ने विश्वविद्यालय के सौ वर्षों की सफलतम यात्रा का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कृषकों की उन्नति हेतु प्रसार निदेशालय के अनतर्गत एक कृषि विज्ञान केन्द्र तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से तकनीकी प्रशिक्षण तथा निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र द्वारा उत्तम किस्म के बीज, किसानों को मुहैया कराये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने ५३.६ एकड़ भूमि इलाहाबाद जनपद में जमीन क्रय कर ली है जिस पर नया कृषि विज्ञान केन्द्र शीघ्र ही खोलने की योजना है ताकि इलाहाबाद के अधिक से अधिक किसानों मदद मिल सके। इलाहाबाद के मण्डलायुक्त डा. पी.वी. जगनमोहन ने समारोह में ग्रीन स्कूल मिशन नामक योजना का आवरण मुख्य अतिथि श्रीमती मीरा कुमार जी से कराया तथा कहा कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग से निपटना है। इसके अन्तर्गत समस्त स्कूलों में, प्राइमरी, जूनियर आदि के क्लास २ से ५, तथा क्लास ६ से८ के बच्चों को विद्यालय प्रांगण में एक पेड़ लगाकर उसकी देख-रेख करें ताकि बच्चों के रोने-धोने की आवाज के अलावा कोयल के गाने की आवाज भी सुनायी पड़े तथा सम्पूर्ण वातावरण हरा-भरा रह सके।
आईसीएआर के उपमहानिदेशक डा. अरविन्द कुमार ने कहा कि देश की अधिकतर आबादी ग्रामीण है जोकि आज भी पिछड़ी है। उनके विकास के लिए वैज्ञानिकों से आवाहन है कि राष्ट्रीय कृषि शिक्षा योजना द्वारा उनके विकास के लिए कार्य करें तथा मौसम परिवर्तन के खेती पर पड़ने वाले असर को नियंत्रित करने के लिए नई तकनीक विकसित करें ताकि गरीबों को भर-पेट भोजन मिल सके। उन्होंने कहा कि शियाट्स सदैव आईसीएआर के मानक पर खरा उतरा है और मेरी अपील है कि संस्थान को और अधिक वित्तीय सरकारी सहायता प्रदान की जाये ताकि कृषि विकास उच्च गति हो सके।
मुख्य अतिथि मीरा कुमार एक विद्यार्थी को स्वर्ण पदक देती हुईं
मुख्य अतिथि मीरा कुमार जी ने अपने दीक्षान्त भाषण में कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और इलाहाबाद का जीविकोपार्जन भी मुख्यत: कृषि और उससे जुड़े क्रियाकलापों पर निर्भर है। कृषि क्षेत्र के विकास में सैम हिग्गिनबॉटम इन्स्टीट्यूट ने पिछले १०० वर्षों से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संस्थान ने वैज्ञानिकों, प्रसार अधिकारियों, गांव-साथी योजना से कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय नवीनताएं लाकर, गरीबों और वंचितों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान की दिशा में अमूल्य योगदान किया है, जिसकी मैं सराहना करती हूँ। उन्होंने नेहरू जी के शब्दों को बताते हुए कहा कि ‘‘कार्य में देर की जा सकती है किन्तु कृषि में नहीं।’’ उन्होंने चिन्ता जताई कि कृषि योग्य भूमि, सिंचित भूमि और कृषि विषयक ज्ञान के रहते भी ६० प्रतिशत जनसंख्या का विकास-प्रक्रिया में मात्र १९ प्रतिशत का ही योगदान है, फलत: सकल घरेलू उत्पाद में उसका जितना अंशदान होना चाहिए था, उतना सम्भव नहीं हुआ। उन्होंने कम वर्षा, बाढ़, ग्लोबल वार्मिंग, अकाल, उच्च तापमान आदि के द्वारा फसल के नष्ट होने एवं किसानों के बढ़ते ऋण पर चिन्ता जताई। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने पिता स्व. बाबू जगजीवन राम से प्रेरणा मिलती है जिन्होंने कृषि को गम्भीरता से लेते हुए अनाज का उत्पादन बढ़ाने, नई टेक्नोलॉजी तैयार करने एवं किसानों तक पहुंचाने, देश के हर जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना का कार्य किया जिससे देश में हरित क्रान्ति का अभ्युदय हुआ। उन्होंने नीति-निर्माताओं, वैज्ञानिकों और किसानों से आग्रह किया कि वे पूरी शक्ति से इस लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाएं। अन्त में उन्होंने दूसरी हरित क्रान्ति का आवाहन करते हुए अपने दीक्षान्त सम्बोधन को विराम दिया।
श्रीमती मीरा कुमार ने छोटे और सीमान्त तथा भूमिहीन किसानों, खेतिहर मजदूरों के लिए रोजगार के अतिरिक्त अवसर मुहैया कराने पर जोर दिया ताकि उनकी क्रय-शक्ति बढ़े और भोजन के लाले न पड़ें। उन्होंने तेजी से बढ़ती आबादी के लिए अनाजों की उपज द्विगुणित करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने बताया कि भारत सरकार का सपना है कि कृषि उपज को दुगुना किया जाये जिसके लिए किसानों एवं खेतिहर मजदूरों की बेहतरी पर ध्यान देना होगा ‘‘जो खेत को जोते बोए वो खेत का मालिक होए’’ नारा देते हुए उन्होंने कहा कि इसे क्रान्ति की तरह लागू करना होगा।
इलाहाबाद के कमिश्नर मीरा कुमार को एक नया प्रोजेक्ट सौंपते हुए
मुख्य अतिथि ने कुलपति प्रो.(डा.) राजेन्द्र बी. लाल के कृषि क्षेत्र में किये गये अति विशिष्ट कार्यों को देखते हुए उपहार देकर सम्मानित किया। मुख्य अतिथि ने समारोह में प्रति कुलपति प्रो.(डा.) एस.बी. लाल द्वारा तैयार किये गये विश्वविद्यालय की शोध स्मारिका का अनावरण किया एवं उनका उत्साहवर्धन किया। कुलपति ने भी श्रीमती मीरा कुमार, डा. पी.वी. जगनमोहन, मण्डलायुक्त इलाहाबाद तथा पी.जे. सुधाकर, महानिदेशक, दूरदर्शन को मानद उपाधि देकर सम्मानित किया।
समारोह के दौरान सर्वश्रेष्ठ ६० छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक तथा २० को रजत पदक द्वारा सम्मानित किया गया। बेस्ट टीचर अवार्ड डा. जगदीश प्रसाद, डीन, एनीमल अस्बेन्डरी एण्ड वेटनरी साइंस को दिया गया। साथ ही २८ छात्र-छात्राओं को मानद उपाधि, ५४३ को परास्नातक तथा १३९१ को स्नातक की डिग्री प्रदान की गयी।
30 अक्टूबर । नई दिल्ली
विगत दिनों समन्वय श्री संस्था ने सम्मान समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. श्याम सिंह शशि और विशिष्ट अतिथि डॉ. एस. एस.शर्मा थे। डॉ. शर्मा ने देश की वर्तमान दशा और दिशा पर अपनी टिप्पणी व्यक्त करते हुए संस्था की स्थापना और उद्देश्य पर विचार व्यक्त किया और कहा कि सामाजिक कल्याण में जुटी इस संस्था में जो लोग उपस्थित हुए हैं, वास्तव में वे समाज के हितार्थ सोचने और कुछ कर सकने वाले लोग हैं। लोगों का रुझान अब सस्ते मनोरंजन वाले स्थलों पर अधिक हो गया है। आज भ्रष्टाचार का चहुं ओर बोलबाला है। मीडिया भी वहीं जाता है जहां उसे पैकेज मिलने की पूरी उम्मीद होती है। ऐसे में हमें समाज के कर्तव्य परायाण लोगों को तलाशना होगा और इसी की पूर्ति यह संस्था कर रही है। मैं इस संस्था के अध्यक्ष रामगोपाल शर्मा और समाज सेवी का आभारी हूं जो बड़ी मेहनत और लगन से इस दिशा में सेवा रत हैं।
डॉ. श्याम सिंह शशि ने सम्मानित जनों को बधाई देते हुए। इस संस्था को इस बात की बधाई दी कि संस्था ने जिन लोगों को सम्मानित किया है, वास्तव में इसके हकदार हैं। उन्होंने वर्तमान देश की सामाजिक व्यवस्था पर न केवल अप्नी बेबाक टिप्पणी दी बल्किब मीडिया की दुर्दशा की ओर भी संकेत किया।
संस्था द्वारा सम्मानित जन थे- सर्वश्री/श्रीमती डॉ. कविता शर्मा, डॉ. ओ. पी. मौर्य, डॉ. दिविक रमेश, शमशेर अहमद खान, डॉ. धीरज बहल, डॉ. इंद्रराज, रामफल त्यागी, के.पी.सरीन, सुनील दत्त वत्स, तपन कुमार बरुआ, मंगल सिंह आजाद, गौतम कार और डॉ. अनुभा मित्तल। डॉ. विश्वनाथ सिंह ने इस संस्था के उद्देश्यों और श्री ए.के.बरुआ ने धन्यवाद व्यक्त दिया।
(बाएं से दाएं) समाजसेवी विनोद टिबड़ेवाला, कवि-उदघोषक देवमणि पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल, ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र-नीना मेहता, संस्थाध्यक्ष कवयित्री माया गोविंद प्रतिष्ठित कथाकार-आयकर आयुक्त आर.के.पालीवाल और गुरु अरविंदजी।
शनिवार को भवंस कल्चर सेंटर अंधेरी में जाने माने ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र-नीना मेहता को जीवंती फाउंडेशन, मुंबई की ओर से जीवंती कला सम्मान से विभूषित किया गया। वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल,प्रतिष्ठित कथाकार-आयकर आयुक्त आर.के.पालीवाल, समाजसेवी विनोद टिबड़ेवाला और संस्थाध्यक्ष माया गोविंद ने उन्हें यह सम्मान भेंट किया। कवि देवमणि पाण्डेय ने राजेंद्र मेहता से उनके फ़न और शख़्सियत के बारे में चर्चा की। अरविंद गुरु ने आशीर्वाद दिया। शायर राम गोविंद ‘अतहर’ने स्वागत किया। अरविंद राही ने संचालन और अनंत श्रीमाली ने आभार व्यक्त किया। राजेंद्र मेहता ने अपनी ग़ज़लों की अदायगी से श्रोताओं को अभिभूत कर दिया। श्रोताओं की माँग पर उन्होंने अपना लोकप्रिय नग़मा भी पेश किया-
जब आंचल रात का लहराए और सारा आलम सो जाए
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
श्रोताओं से उनका परिचय कराते हुए कवि देवमणि पाण्डेय ने बताया कि 1967 में ‘सुरसिंगार संसद’ के प्रोग्राम में राजेंद्र और नीना ने एक साथ मिलकर ग़ज़ल गाई। और ग़ज़ल के मंच की पहली जोड़ी के रूप में सामने आए। मेल और फीमेल को एक साथ ग़ज़ल गाते देखकर संगीत प्रेमी हैरत में पड़ गए थे। मगर इस तरह ग़ज़ल गायिकी में एक नया ट्रेंड कायम हो चुका था। दो साल बाद जब चित्रा और जगजीत सिंह साथ-साथ मंच पर आए तो इस ट्रेंड को पसंद करने वालों की तादाद बुलंदी पर पहुँच चुकी थी।
कवि देवमणि पाण्डेय ने बताया कि सन 1947 में अगस्त माह के आख़िरी दिनों में आज़ादी की खुशियां बंटवारे की कोख़ से जन्मे दंगों की ट्रेजडी में तब्दील हो गईं। जलते मकानों, उजड़ी दुकानों और सड़क पर पानी की तरह बहते इंसानी ख़ून के ख़ौफ़नाक मंज़र के बीच सिर्फ़ एक संदूक लेकर बालक राजेंद्र मेहता का परिवार मुहाजिर के रूप में मुसीबतों का दरिया पार करते हिंदुस्तान की सरहद में दाख़िल हुआ था। उस संदूक में एक हारमोनियम था। कई शहरों की ख़ाक छानने के बाद आख़िरकार वो बच्चा उस हारमोनियम के साथ आर्ट और फ़न की नगरी मुंबई पहुंचा। मुंबई ने उसे और उसने मुंबई को अपना लिया। आज उस बच्चे को लोग ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र मेहता के नाम से जानते हैं।
अपने सम्मान के उत्तर में राजेंद्र मेहता ने कहा कि संगीत के मंच पर उनकी जोड़ी को 44 साल हो चुके हैं। अपने अब तक के सफ़र से हम बेहद ख़ुश है। ऊपरवाले ने हमें इतना कुछ दिया जिसके हम बिलकुल हक़दार नहीं थे।
कवि देवमणि पाण्डेय ने बताया कि राजेंद्र मेहता के बाबा लाहौर के बाइज़्ज़त ज़मींदार थे। पिता की अच्छी-ख़ासी चाय की कंपनी थी। सरकार की तरफ़ से नाना ने पहली जंगे-अज़ीम में और मामा ने दूसरी जंगे-अज़ीम में हिस्सा लिया था। मगर राजेंद्र मेहता को लखनऊ में ख़ुद को गुरबत से बचाने के लिए एक होटल में पर्ची काटने की नौकरी करनी पड़ी। उस समय वे नवीं जमात के तालिबे-इल्म थे। पढ़ाई के साथ नौकरी का यह सिलसिला बारहवीं जमात तक चला। इंटरमीडिएट पास करने पर उन्हें ‘बांबे म्युचुअल इश्योरेंस कंपनी’ में नौकरी मिल गई। 1957 में उन्होंने बीए पास कर लिया। राजेंद्र मेहता की मां को गाने का शौक़ था। बचपन में ही उन्होंने मां से गाना सीखना शुरु कर दिया था। लखनऊ में पुरुषोत्तमदास जलोटा के गुरुभाई भूषण मेहता उनके पड़ोसी थे। उनको सुनकर फिर से गाने के शौक़ ने सिर उठाया। बाक्स में रखा हुआ हारमोनियम बाहर निकल आया। राजेंद्र मेहता ने उर्दू की भी पढ़ाई की। शायर मजाज़ लखनवी और गायिका बेग़म अख़्तर की भी सोहबतें मिलीं। 1960 में उनका तबादला मुंबई हो गया।
(बाएं से दाएं) ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र-नीना मेहता ग़ज़ल पेश करते हुए साथ में हैं श्रीधर चारी (तबला), कवि-उदघोषक देवमणि पाण्डेय और सुनीलकांत गुप्ता (बाँसुरी)
मुंबई आने से पहले ही राजेंद्र मेहता आकाशवाणी कलाकार बन चुके थे। लखनऊ यूनीवर्सिटी के संगीत मुक़ाबले का ख़िताब जीत चुके थे। कुंदनलाल सहगल की याद में मुम्बई में हुए संगीत मुक़ाबले में राजेंद्र मेहता ने अव्वल मुक़ाम हासिल किया। मरहूम पी.एम.मोरारजी देसाई के हाथों वे ‘मिस्टर गोल्डन वायस ऑफ इंडिया’ अवार्ड से नवाज़े गए। मार्च 1962 में ‘सुर सिंगार संसद’ ने सुगम संगीत को पहली बार अपने प्रोग्राम में शामिल किया। उसमें गाने से पहचान और पुख़्ता हुई। मशहूर संगीत कंपनी एचएमवी ने ‘स्टार्स आफ टुमारो’ के तहत 1963 में राजेंद्र मेहता का पहला रिकार्ड जारी किया। 1965 में जगजीत सिंह से दोस्ती हुई। 1968 में दोनों ने मिलकर करीब बीस शायरों की ग़ज़लें चुनकर ‘ग़ालिब से गुलज़ार तक’ लाजवाब प्रोग्राम पेश किया। इस मौक़े पर उस्ताद अमीर खां, जयदेव, ख़य्याम और सज्जाद हुसैन जैसे कई नामी कलाकर बतौर मेहमान तशरीफ़ लाए थे। इस नए तजुर्बे ने संगीत जगत में धूम मचा दी।
राजेंद्र मेहता को शोहरत और दौलत की भूक कभी नहीं रही। वे हमेशा मध्यम रफ़्तार से चले। उनके चुनिंदा अलबम आए और मंच पर भी उनके चुनिंदा प्रोग्राम हुए। ग़ज़लों को पेश करने के अपने बेमिसाल अंदाज़ से उन्होंने अपना एक ख़ास तबक़ा तैयार किया। उनकी ग़ज़लों में प्रेम की सतरंगी धनक के साथ ही समाज और सियासत के काले धब्बे भी नज़र आते हैं। मरहूम शायर प्रेमबार बर्टनी के मुहब्बत भरे एक नग़मे को दिल को छू लेने वाले अंदाज़ में पेश करके राजेंद्र और नीना मेहता ने हमेशा के लिए ग़ज़लप्रेमियों के दिलों पर अपना नाम लिख दिया -जब आंचल रात का लहराए और सारा आलम सो जाए तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना।
सुप्रसिद्ध बाल चिकित्सक डॉ. हेमंत जोशी द्वारा बाल चिकित्सा, देखभाल तथा उनके विकास पर आधारित 5 अलग-अलग भाषाओं में लिखित 12 पुस्तकों का विमोचन एक साथ पिछले दिनों विरार (पश्चिम) स्थित विवा कॉलेज में 12 पत्रकारों के हाथों से संपन्न हुआ। चित्र में पुस्तक के विमोचन अवसर पर ई-टीवी (मराठी) के समाचार समन्वयक राजेंद्र साठे, दैनिक सामना के पत्रकार उमाकांत वाघ, पत्रकारिता कोश/मीडिया डायरेक्टरी के संपादक आफताब आलम, शशि कर्पे, दीपक मोहिते, सुधीर भोईर, अभिजीत मुले, प्रभाकर कुडालकर, डॉ. राजेंद्र आगरकर, प्रवीण नलावडे, लेखक व चिकित्सक डॉ. हेमंत जोशी, डॉ. अर्चना जोशी, डॉ. प्रमोद जोग व बारामती के डॉ. अनिल मोकाशी, युवा नेता हार्दिक राऊत, आदि मौजूद हैं।
चिकित्सा अभ्यास के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सुप्रसिद्ध बाल चिकित्सक डॉ. हेमंत जोशी ने एक साथ 12 पुस्तकों का प्रकाशन किया है। कुल पाँच भाषाओं - मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू एवं गुजराती में लिखी गई इन पुस्तकों का विमोचन रविवार, 31 अक्तूबर को विरार (पश्चिम) स्थित विवा कॉलेज में 12 पत्रकारों के हाथों से संपन्न हुआ। ये सभी पुस्तकें बाल चिकित्सा, देखभाल तथा उनके विकास पर आधारित है। संभवतः यह पहला अवसर है जब किसी बाल चिकित्सक की लिखी गई 12 पुस्तकों का एक साथ प्रकाशन हुआ है।
"छह महीना स्तनपान छुट्टी" की कल्पना के जनक माने जाने वाले डॉ. हेमंत जोशी ने 1985 में दिवाली के अवसर पर अपना चिकित्सा अभ्यास प्रारंभ किया था। इन 25 वर्षों के दौरान डॉ. हेमंत जोशी तथा उनकी पत्नी डॉ. अर्चना जोशी ने बाल चिकित्सा के दौरान प्राप्त विभिन्न प्रकार के अनुभवों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर चिकित्सा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन पुस्तकों में बच्चों के जन्म से लेकर उनके बड़े होने तक की विभिन्न समस्याओं, बीमारियों, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास, आदि का समाधान काफी सरल तरीके से सुझाया गया है।
साहित्य प्रेमी डॉ. हेमंत जोशी ने अपनी इन बहुपयोगी स्वास्थ्य पुस्तकों का विमोचन ई-टीवी (मराठी) के समाचार समन्वयक राजेंद्र साठे, दैनिक सामना के पत्रकार उमाकांत वाघ, पत्रकारिता कोश के संपादक आफताब आलम, शशि कर्पे, दीपक मोहिते, सुधीर भोईर, अभिजीत मुले, प्रभाकर कुडालकर, डॉ. राजेंद्र आगरकर, प्रवीण नलावडे ने किया। इस अवसर पर पुणे के सुप्रसिद्ध बाल चिकित्सक डॉ. प्रमोद जोग व बारामती के डॉ. अनिल मोकाशी को आरोग्य ज्ञानेश्वरी पुरस्कार प्रदान किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता युवा नेता हार्दिक राऊत ने की। बाल चिकित्सा से संबंधित विभिन्न प्रकार की समस्याओं और उनके निदान के लिए डॉ. हेमंत जोशी के बहुभाषी वेबसाइट http://doctorhemantjoshi.com पर संपर्क किया जा सकता है।
नई दिल्लीः दिल्ली रत्न साहित्य लेखक श्री लाल बिहारी लाल को रवीन्द्र ज्योति साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान हरियाणा, जीन्द से प्रकाशित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका रवीन्द्र ज्योति एवं हरियाणा साहित्य आकादमी, पंचकुला के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अमृत महोत्सव, जीन्द में हिन्दी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा.ए.के. चावला एवं प्रख्यात साहित्यकार डा. रामनिवास मानव द्वारा संयुक्तरुप से प्रदान किया गया। अमृत महोत्सव समारोह का आयोजन होटल सागर रिर्सोट,जीन्द में समपन्न हुआ। श्री लाल बिहारी लाल को सम्मान स्वरुप प्रतीक चिन्ह, अंग वस्त्र एवं सम्मान पत्र प्रदान किया गया। श्री लाल को पूर्व में देश के दर्जनों संस्थाए सम्मानित कर चुकी है। इन्हें हाल ही में लघु कथा सम्मान-2010 हम सब साथ-साथ पत्रिका, नई दिल्ली द्वारा प्रदान किया गया हैं।
30 अक्टूबर । नई दिल्ली
आज शाम नई दिल्ली के अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर में एक कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम के समन्वयक मिथिलेश श्रीवास्तव जो खुद एक प्रसिद्ध कवि और कला-रंगमंच आलोचक हैं, ने बताया कि 'डॉयलॉग' नाम की यह साहित्यिक संगोष्ठी पिछले 36 सालों से आयोजित हो्ती रही है, जिसे 'महीना का आखिरी शनिवार' नाम से भी जाना जाता था। पहले इस गोष्ठी में खासी भीड़ होती थी। बीच में यह कार्यक्रम किन्हीं कारणों से स्थगित हो गया था, लेकिन पिछले महीने से इसे रिवाइव किया गया है।
अध्यक्षता अभिनव-साँचा के संपादक द्वारिका प्रसाद चारुमित्र ने की। इस गोष्ठी में पाँच युवा कवियों तजेन्द्र लूथरा, विपिन चौधरी, रोहित प्रकाश, कुमार मुकुल और रंजीत वर्मा ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। उपस्थित श्रोताओं ने सभी कवियों को पूरे धैर्य से सुना और उनका रसास्वादन किया।
पिछले साल की तरह इस साल भी आउटलुक(हिन्दी) लोकप्रिय 3 महिला कथाकार और 3 महिला कवयित्री का पाठक सर्वे आयोजित कर रहा है। अच्छी बात यह है कि इस बार इंटरनेटीय पाठक भी इसमें सम्मिलित हो सकते हैं। और ईमेल से अपनी 3 पसंद भेज सकते हैं। हम आउटलुक की सहायक संपादक गीताश्री द्वारा प्रेषित विज्ञप्ति को पाठकों की सुविधा नीचे चस्पा कर रहे हैं-
लोकप्रिय तीन महिला कथाकार और तीन महिला कवि चुनने के लिए पाठक सर्वे
आपने हमें फूल दिए हों या पत्थर, लेकिन हमारे पिछले साहित्य अंक की चर्चा आपने खूब की। हमने आपकी पसंद के ही सर्वाधिक लोकप्रिय तीन-तीन कथाकारों और कवियों के नाम तथा रचनाएं प्रकाशित की थीं। इस बार भी आप ही हमारे ज्यूरी हैं। लेकिन स्त्री-विमर्श और महिला लेखन को ले कर पुरुषवादी आक्षेपों के इस दौर में हम आपकी पसंद की तीन महिला कथाकारों और तीन महिला कवियों के नाम पर आमंत्रित कर रहे हैं। पिछली बार की तरह ही आपकी याददाश्त की सुविधा के लिए हम महिला कथाकारों और कवियों की सूची दे रहे हैं। लेकिन इन दोनों सूचियों को अंतिम न मानें, जैसी भूल पिछली बार कुछ लोगों ने कर सूचियों पर ही पत्थर बरसाने शुरू कर दिए थे कि फलां को छोड़ दिया तो फलां को छोड़ दिया। इन सूचियां के जरिए हम अपनी तरफ से कोई सुझाव नहीं दे रहे, कोई क्रम नहीं बता रहे, सिर्फ कह रहे हैं कि इस तरह के अन्य नाम आप अपनी तरफ से बता सकते हैं। इन सूचियों में से या इनके बाहर से आप अपनी तीन-तीन पसंद बताएं। आपकी पसंद आपके वोट ही अंतिम हैं, हमारे नहीं।
पाठक अपनी तीन-तीन पसंद गीताश्री (geetashree@outlookindia.com) या आकांक्षा पारे (akpare@gmail.com) को ईमेल कर सकते हैं।
अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन
नई दिल्ली। यहॉं नई दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका हम सब साथ साथ द्वारा देश भर से चयनित दो दर्जन से अधिक युवा एवं 80 वर्ष से भी अधिक आयु तक के लघुकथाकारों को एक ही मंच पर इकट्ठा कर उनकी श्रेष्ठ लघुकथाओं के पाठ व उनको सम्मानित किए जाने का एक अनूठा कार्यक्रम आयोजित किया गया और यह सब हुआ प्रख्यात साहित्यकार श्रीमती चित्रा मुद्गल के
मुख्य आतिथ्य, कैपिटल रिपोर्टर के संपादक श्री सुरजीत सिंह जोबन की अध्यक्षता एवं लब्ध प्रतिष्ठित कथाकार श्री बलराम व व्यवसायी श्री ए. पी. सक्सेना के विशिष्ट आतिथ्य में।
इस अवसर पर श्रीमती चित्रा मुद्गल ने हम सब साथ साथ पत्रिका के इस कदम की सराहना करते हुए लघुकथा के विकास पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि इसकी दशा व दिशा दोनों ही ठीक है। अब भावी पीढ़ी का दायित्व है कि वे इसे कहाँ तक ले जाते हैं। श्री जोबन ने कहा कि लघुकथा अपने आप में संपूर्ण कहानी समाहित किए हुए रहती है।
इसके पूर्व सम्मेलन की शुरूआत रेडियो सिंगर श्रीमती सुधा उपाध्याय की सरस्वती वंदना से हुई तत्पश्चात् कथाकार श्री बलराम ने लघुकथा के विकास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लघुकथा आज विकासोन्मुख है।
सम्मेलन हेतु उ.प्र., म.प्र., राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, प. बंगाल एवं दिल्ली आदि से दो दर्जन से भी अधिक लघुकथाकारों को चयनित किया गया था। जिसमें से सम्मेलन में उपस्थित लघुकथाकारों ने अपनी श्रेष्ठ लघुकथाओं का पाठ किया और उसके पश्चात् उन्हें स्मृति चिन्ह, प्रमाणपत्र, पुस्तकें प्रदान कर एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। लघुकथा पाठ एवं सम्मान हेतु चयनित वरिष्ठ लघुकथाकारों में सर्वश्री मो. मुइनुद्दीन अतहर, सनातन वाजपेयी, के. एल. दिवान, मनोहर शर्मा, देवेन्द्र नाथ शाह, सत्यपाल
निश्चिंत, गणेश प्रसाद महतो, राम बहादुर व्यथित, प्रदीप शशांक, तेजिन्द्र, माला वर्मा, अकेला भाइ, शरदनारायण खरे, दिनेश कुमार छाजेड़, आरती वर्मा, गीता गीत, देवांशु पाल, ज्योति जैन, नंदलाल भारती, एम. अशफाक कादरी एवं युवा लघुकथाकारों में सर्वश्री महावीर रवांल्टा, संतोष सुपेकर, शोभा रस्तोगी, समद राही, नरेन्द्र कुमार गौड़, कैलाशचंद्र जोशी, पंकज शर्मा एवं लाल बिहारी लाल के नाम उल्लेखनीय रहे।
समारोह का सफल संचालन सर्वश्री विनोद बब्बर एवं विवेक मिश्र ने किया एवं आभार पत्रिका के कार्यकारी संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव ने व्यक्त किया।
"मुस्लिम समाज और शिक्षा" पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संवाद
दुनिया का कोई भी धर्मग्रन्थ मनुष्य को मनुष्य के खिलाफ खड़ा नहीं करता- वेद व्यास
महावीर समता संदेश, समान बचपन अभियान, अदबी संगम और बोहरा यूथ के संयुक्त तत्वावधान में विगत 24 अक्टूबर को उदयपुर के बोहरा यूथ वेलफेयर सेन्टर के सभागार में राष्ट्रीय संवाद आयोजित किया गया। ‘मुस्लिम समाज और शिक्षा' विषयक इस संवाद की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात शिक्षाविद् और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अगवानी जी ने कहा कि मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन की उम्र भी हालांकि उतनी ही है जितनी कि इस देश की आजादी की, परन्तु 1982 में दुबारा सत्ता में लौटने के बाद जब इन्दिरा गांधी ने मुसलमानों के पिछड़ेपन की पड़ताल शुरू की तब पहली बार पता चल सका कि वास्तव में इस समुदाय की हालत कितनी दयनीय है। 2005 में सच्चर समिति की रिपोर्ट आने के बाद तो अब इस बात पर शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है कि देश में सबसे पिछड़ी हुई अगर कोई कौम है तो वह मुस्लिम कौम ही है। शिक्षा से लेकर अन्य सभी संसाधनों तक उनकी पहुंच आज तक नहीं बन पाई है। ऐसे में नागरिक समाज का यह प्राथमिक दायित्व है कि वह इस दिशा में ध्यान दे और मुस्लिम समाज को आगे लाने की मुहिम छेड़े।
श्री अगवानी ने आगे कहा कि मुसलमानों के बच्चे आज भी स्कूल नहीं जाते। जो लोग आर्थिक तौर पर सम्पन्न भी हैं, उनमें भी शिक्षा के प्रति एक उदासीनता व्याप्त है। इसलिए शिक्षा में उनकी नगण्य भागीदारी का दोष हम केवल उनके आर्थिक पिछड़ेपन को ही नहीं दे सकते। इसके पीछे कोई और ही बात काम कर रही है।
इससे पहले संवाद की शुरूआत में विषय पर चर्चा प्रारम्भ करने के क्रम में महावीर समता संदेश के प्रधान सम्पादक हिम्मत सेठ ने कहा कि समाज में गैरबराबरी और शोषण को समाप्त करने में शिक्षा की सबसे अहम भूमिका हुआ करती है और यह बात अब लगभग स्थापित हो चुकी है। उन्होंने कहा कि यूं तो समाज के पिछड़े, दलित और आदिवासी तबकों को शिक्षा के जरिये, समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के मकसद से सरकारें विगत कई दशकों से प्रयासरत हैं, किन्तु शिक्षा के निजीकरण, बाजारीकरण और प्रभुत्वशाली वर्गों के उस पर बढ़ते वर्चस्व के कारण सरकार के सभी प्रयास निष्फल साबित हुए हैं। सबसे अधिक भेदभाव का शिकार तो देश का वह मुस्लिम समाज है जो आबादी में लगभग 14 करोड़ की भागीदारी रखता है। इतनी बड़ी आबादी का अधिकांश आज भी शिक्षा की रोशनी से महरूम है और इसका सबसे दहशतनाक खमियाजा भी भुगत रहा है। न्यायमूर्ति सच्चर की अध्यक्षता वाली समिति ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उससे यह भयावह तथ्य देश के सामने उजागर हुआ है। देश की नौकरशाही और प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा सरकार की इच्छाशक्ति में कमी की वजह से आज तक मुसलमानों को उन नीतियों अथवा योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है जो अल्पसंख्यकों की बेहतरी के नाम पर घोषित की गई हैं और इस स्थिति में कोई भी बदलाव तभी आ सकता है जब नागरिकों की तरफ से एक जोरदार हस्तक्षेप की शुरूआत की जाये।
जमायते इस्लामी के प्रान्तीय अध्यक्ष एवं प्रख्यात इस्लामिक विद्वान मो. सलीम ने संवाद में मुख्य वक्ता की हैसियत से बोलते हुए कहा कि मैं उन भ्रांतियों के बारे में बात करना चाहता हूं जो मुस्लिम समाज के अंदर तो व्याप्त हैं ही, कुछ दूसरी कौम के लोगों के मन में भी घर कर गई हैं। खासकर इस्लाम और इसके मानने वालों के बारे में। जैसे एक भ्रांति यह कि मुसलमान इसलिए पिछड़ा है क्योंकि इस्लाम उसे पिछड़ा बनाए रखता है। मैं बताना चाहता हूँ कि कुरान शरीफ में इल्म या ज्ञान को अहम बताने से संबंधित पांच आयतें हैं। वहां साफ कहा गया है कि वह मुसलमान जो इल्म हासिल न करे, वह अल्लाह की नजर में गुनाहगार है। हज़रत मुहम्मद साहब के बारे में एक प्रसंग आता है कि एक बार उन्होंने देखा कि एक गु्रप इबादत कर रहा है और उसी दौरान एक दूसरा ग्रुप तालीम हासिल कर रहा है। उन्होंने तालीम हासिल करने वाले गु्रप को ही ज्यादा अहमियत दी और उसी के साथ शामिल हुए। क्या इससे बढ़कर और भी किसी सबूत की जरूरत हो सकती है? इस्लाम में इल्म और तालीम को काफी अहमियत दी गई है। जो लोग इस बात को नहीं मानते, वे इस्लाम की गलत व्याख्या पेश कर रहे हैं। कुरान में तो यहां तक कहा गया है कि आंख बंद कर तुम किसी भी बात को न मानो। तर्क करो और सच्चाई की तह तक पहुंचने की कोशिश करो। इस्लाम कभी भी वैज्ञानिक विकास, प्रौद्योगिकी का विरोधी नहीं रहा है, बल्कि आठ सौ वर्षों तक इस्लाम के मानने वालों ने ही विज्ञान को नई-नई खोजों से समृद्ध किया है। तो फिर आज आखिर मुसलमानों के साथ ऐसा क्या हो गया है? क्यों उनके जीवन स्तर में लगातार गिरावट आती जा रही है? दरअसल देश के मुसलमानों में इस हीन भावना ने घर कर लिया है कि इस देश की तकसीम के लिये वे ही जिम्मेदार हैं। आज भी वे इसी असमंजस का शिकार हैं और आजादी के बाद आज तक तीस हजार से अधिक दंगे जो इस देश में हुए हैं, उनके पीछे इस हीनता बोध का भी बहुत बड़ा हाथ है। पूरी कौम एक भय के साये में जी रही है। इस भय से उन्हें मुक्त होना होगा। यह इस वक्त की एक बड़ी जरूरत है कि उनके अन्दर कानून के प्रति एक विश्वास पैदा किया जाये। तभी ये हालात बदलेंगे। मुसलमानों के पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह उनका आर्थिक तौर पर पिछड़ा होना है। जहाँ भी मुसलमानों ने श्ौक्षणिक या आर्थिक तौर पर विकास करने की कोशिश की है, वहीं वहीं आज तक सबसे ज्यादा दंगे हुए हैं। भागलपुर, अलीगढ़ या सूरत के दंगे इस बात की तस्दीक करते हैं। आज भी हमारा देश, हमारी सरकारें सच्चे मायनों में सेकुलर नहीं हैं, लोकतांत्रिक नहीं हुई हैं। धार्मिक आधार पर देश में आज भी भेदभाव किये जा रहे हैं। मैं पूछता हूं एक दिन पहले तक जो व्यक्ति एस.सी./एस.टी. होता है, वह इस्लाम कबूल करते ही दूसरे दिन से एस.सी./एस.टी. क्यों नहीं रहता? यह भेदभाव नहीं तो और क्या है? रंगनाथ आयोग ने भी इस बात को माना है।
मो. सलीम ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि असल में हमारी हुकूमत आज जवाबदेह नहीं रह गई है। वह बजट का इस्तेमाल नहीं करती। जो पैसा अल्पसंख्यकों के कल्याण का है, सरकारें उसे खर्च नहीं करतीं। नीतियों को जब तक पूरी जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ लागू नहीं किया जाता, तब तक ये हालात नहीं बदलेंगे। यह काम केवल ब्यूरेाक्रेसी या सरकार के भरोसे नहीं होगा, नागरिक समाज को भी इसके लिए लड़ाई लड़नी होगी। जब तक इस देश में बसने वाले सभी लोगों का समान विकास नहीं होगा, देश के विकास में सबकी समान भागीदारी नहीं होगी, तब तक देश का विकास भी नहीं होगा। आज तक हम लकीर ही पीटते आए हैं, हमने इलाज की ईमानदार कोशिश ही नहीं की है। मैं मुसलमान भाइयों से भी अपील करता हूँ कि हमें सरकार के सामने भीख मांगने की मुद्रा में खड़ा नहीं होना है। हमें हिम्मत और हौसले के साथ आगे बढ़कर अपना हक लेना होगा। हमें जागरूक होकर सवाल उठाने होंगे। हालात मुश्किल हैं पर हम अपनी कोशिशों से इसमें तब्दीली ला सकते हैं। इस्लाम औरतों के तालीम हासिल करने की राह में कभी बाधा नहीं खड़ी करता। वह इसमें मददगार ही है। वह शालीन लिबास की वकालत जरूर करता है, पर ध्यान से देखें तो इसके पीछे भी औरतों की सुरक्षा की चिन्ता ही दिखाई देगी। मुस्लिम लड़कियां आज जिन्दगी के हर मोर्चे पर आगे बढ़ रही हैं, वे डॉक्टर, इंजीनियर और वकील बन रही हैं। इस कोशिश को और तेज करने की जरूरत है।
संवाद के दूसरे प्रमुख वक्ता, वरिष्ठ पत्रकार और प्रगतिशील लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष श्री वेद व्यास ने विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि मुसलमानों की आज देश में जो हालत है, उसके लिए केवल इतिहास, मजहब या सियासत ही जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हम स्वयं हैं। हमारी हताशा हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है।
उन्होंने कहा कि कोई भी धर्मग्रन्थ मनुष्य को मनुष्य के खिलाफ खड़ा नहीं करता, फिर वे लोग कौन हैं जो धर्म के नाम पर देश को बांटने का खेल खेल रहे हैंं? धर्म के नाम पर स्वार्थी सियासत की रोटियां सेक रहे हैं? आज हमें उन्हें पहचानने की जरूरत है। वे ही हमारे सबसे बड़े दुश्मन हैं। देश की पन्द्रह करोड़ मुस्लिम आबादी आज नेतृत्वविहीन है। संसद में उनका एक ऐसा नुमाइंदा नहीं है, जो उनके वाजिब सवाल उठा सके। तो हम कैसे खुद के प्रति न्याय कर रहे हैं? कैसे हम साम्प्रदायिक दंगे रोक पाएंगे? अगर सियासत ईमानदार होती, सियासतदां ईमानदार होते तो देश में इतने कत्लेआम नहीं होते, इतनी गरीबी मुफलिसी नहीं होती, इतना पिछड़ापन नहीं होता। यह सब एक सोची समझी साजिश के तहत हुआ है कि देश के मुसलमानों को पिछड़ा रखा जा रहा है। एक पूरी कौम को अपराधी बताने की साजिश चल रही है। जो लोग हिन्दुत्व का परचम लहरा रहे हैं, वे हिन्दुओं के भी सबसे बड़े दुश्मन हैं। वे लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं। धर्म के नाम पर आज पूरी दुनिया में लड़ाइयां चल रही हैं। यह सब कुछ इसलिए हो रहा है ताकि जो शोषित पीड़ित वर्ग है, सर्वहारा वर्ग है, उसके संघर्ष को कमजोर किया जाये या उसे विभाजित कर दिया जाये।
अंग्रेजों ने इस देश में पहले पहल फूट का बीज बोया। इसी के कारण इस देश का विभाजन हुआ और महात्मा गांधी की हत्या हुई। इन दोनों घटनाओं ने देश के भविष्य पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला है। आजाद भारत के इतिहास में मुसलमानों को डराने-धमकाने, उन्हें पिछड़ा बनाए रखने की सुनियोजित कोशिशें हुई हैं। उन्हें विकास से जान बूझ कर दूर रखा गया है और हाशिये पर धकेल दिया गया है। आज किसी भी मुश्किल का सामना करने के लिए वे एकजुट नहीं है। सियासत इसका पूरा फायदा उठा रही है। मुसलमानों का विकास करने की आज कोई राजनीतिक बाध्यता नहीं रही है। सरकार पर इनका विकास करने के लिए कोई दबाव नहीं है। गैरसरकारी संगठन भी मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में काम नहीं करते। वे केवल आदिवासियों, पिछड़ोें के बीच काम कर रहे हैं। अगर आज हम चुप हैं तो यह हमारा सबसे बड़ा अपराध है। हमें सवाल उठाना होगा कि मुसलमान पिछड़े क्यों हैं? मदरसों में जो शिक्षा दी जा रही है, उसमें आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का समावेश क्यों नहीं है?
श्री वेदव्यास ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आदिवासी समुदाय आज इतनी भयावह परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपने हकों की लड़ाई लड़ रहा है। हम क्यों नहीं लड़ते? देश की आजादी के लिए लड़ने वालों में जब मुसलमान किसी से भी पीछे नहीं रहे तो आज वे अपने पिछड़ेपन के खिलाफ लड़ने में पीछे क्यों हैं? हमें इन सवालों की तह में जाना होगा और जवाब ढूंढने ही होंगे- अगर इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना है तो। हमें समझना होगा कि आज अफगानिस्तान, ईरान, इराक और फिलिस्तीन में क्या हो रहा है या कि कौन-सी शक्तियां है जो पाकिस्तान को कठपुतली की तरह नचा रही हैं। वे कौन लोग हैं जो पूरी दुनिया में मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं? इसे समझे बिना हम कोई भी लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे?
संवाद में शिरकत कर रहे एक और प्रखर वक्ता तथा पत्रकार डॉ. हेमेन्द्र चण्डालिया ने भी इस बात की तरफ ध्यान आकृष्ट किया कि मुस्लिम समुदाय वंचितों में भी वंचित की श्रेणी में आता है। उनके सामने रोजी रोटी के, शिक्षा, स्वास्थ्य या रोजगार के अवसर नहीं के बराबर हैं और सरकार की विकास योजनाओं का भी कोई फायदा उन तक पहुंच नहीं पाया है। डॉ. चण्डालिया ने कहा कि सरकार की शिक्षा का जो स्वरूप है, पाठ्यक्रम से लेकर शिक्षण प्रणाली और संसाधनों की उपलब्धता तक, वंचित समुदायों के प्रति गम्भीर भेदभाव पर आधारित है। नीतियों के स्तर पर आज भी हाशिये के लोगों के प्रति एक नकारात्मक सोच काम कर रही है। मीडिया की भूमिका भी आज के समय में अत्यंत निन्दनीय हो गई है और वहां से जनता के सरोकार ही गायब हो चुके हैं। बदलते वक्त में मीडिया को शिक्षित करना भी हमारा एक प्राथमिक दायित्व बन गया है। लोहिया ने आज से बहुत पहले कह दिया था कि देश के पिछड़े तबकों में मुसलमानों की हालत सबसे नाजुक है और उन पर अलग से ध्यान दिये जाने की जरूरत है। हमें आज गम्भीरता से इन सवालों पर सोचना ओर आगे बढ़ना चाहिये।
इससे पहले संवाद की शुरूआत में दिल्ली के प्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखक एवं पत्रकार राजेश चन्द्र ने शिव कुमार गुप्त का लिखा हुआ गीत - ‘‘गर हो सके तो अब कोई शम्मा जलाइये, इस अहले सियासत का अंधेरा मिटाइये'' तथा अंत में भुवनेश्वर का गीत ''आ गए यहां जवा कदम'' की प्रस्तुति की। जयपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ, से आए हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्थानीय महिलाओं, विद्यार्थियों, पत्रकारों, लेखकों एवं बुद्धिजीवियों से खचाखच भरे हॉल में जिन अन्य शिक्षकों/प्रमुख वक्ताओं ने इस संवाद के दरम्यान अपने विचार रखे उनमें विशेष एस.आई.आर.टी. के पूर्व निदेशक डा. एस.सी. पुरोहित, अल्पसंख्यक मंत्रालय के द्वारा मनोनीत पर्यवेक्षक डॉ. बी.एल. पालीवाल, डॉ. एस.बी.लाल, जिला परिषद की सदस्या एवं लेखिका विमला भण्डारी, दाउदी बोहरा जमात के अध्यक्ष आबिद अदीब, खेरवाड़ा मुस्लिम समाज के सदर एवं अरावली वोलन्टीयर्स के संस्थापक सिकन्दर यूसूफ ज़ई, सराड़ा से पधारे पूर्व प्रधानाध्यापक अहमद शेख, पूर्व पार्षद अब्दुल अजीज खान, एडवोकेट जाकिर हुसैन, परतापुर बांसवाड़ा के पवन पीयूष, पूर्व प्रधानाध्यापक एवं शायर मुस्ताक चंचल, मीरा कन्या महाविद्यालय की व्याख्याता एवं अदबी संगम की अध्यक्ष डॉ. सरवत खान आदि के नाम विश्ोष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस संवाद कार्यक्रम का संचालन प्रो. जैनब बानु ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन समान बचपन अभियान के कपिल जोशी ने किया।
नई दिल्ली। यहॉं विस्तार निदेशालय में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के उद्वेश्य से एक राजभाषा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें बोलते हुए संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं भारत सरकार के पूर्व संयुक्त सचिव श्री बुध प्रकाश ने सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने पर ज़ोर देते हुए सभी कर्मियों से अपना सरकारी काम मौलिक रूप से हिन्दी में करने का आवाह्न किया। उन्होंने इसके लिए अनुवाद पर निर्भरता कम करने की सलाह भी दी। संगोष्ठी की
अध्यक्षता करते हुए विभाग के अपर आयुक्त श्री वाई आर मीना ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि निदेशालय में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर राजभाषा हिन्दी के इस तरह के कार्यक्रम चलते रहते हैं। और इनसे यहाँ के अधिकारी एवं कर्मचारीगण लाभान्वित होते रहते हैं।
इस अवसर पर निदेशक (विस्तार प्रबंध) डा. आर. के. त्रिपाठी ने भी सरकारी कार्यालय में हिन्दी के प्रयोग को लेकर अपने उद्गार प्रस्तुत किए।इससे पूर्व संगोष्ठी के प्रारम्भ में कार्यालय के सहायक लेखा अधिकारी श्री नन्द कुमार ने सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। इस अवसर पर राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं विभिन्न सामाजिक व राष्ट्रीय विषयों पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन भी किया गया। इसमें दिल्ली निवासी देश के अनेक नामीगिरामी कवि व शायरों ने अपनी सारगर्भित रचनाएं प्रस्तुत की। इनमें शामिल रहे सर्वश्री बागी चाचा, वीरेन्द्र कमर, डा. रवि शर्मा, अनुराग, रसीद सैदपुरी एवं अंजू जैन। गोष्ठी का सफल संचालन श्रीमती ममता किरन ने किया।
इस अवसर पर विगत दिनो संपन्न हिन्दी पखवाड़े के दौरान राजभाषा हिन्दी की विभिन्न प्रतियोगिताओं में सफल रहे अधिकारियों व कर्मचारियों को अतिथियों द्वारा पुरस्कार भी प्रदान किया गया। इन समस्त कार्यक्रमों का संचालन कार्यालय के सहायक निदेशक (राजभाषा) श्री किशोर श्रीवास्तव ने किया। अंत में संयुक्त निदेशक श्री पी. एस. आरमोरीकर ने सभी अतिथियों के प्रति निदेशालय की ओर से आभार व्यक्त किया।
प्रस्तुतिः इरफान सैफी राही (पत्रकार), नई दिल्ली मो. 9971070545
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार, उपन्यासकार और गंभीर मार्क्सवादी विचारक-चिन्तक डॉ. सोहन शर्मा का 21 अक्टूबर को रात के लगभग 11 बजे निधन हो गया। वे पिछले एक वर्ष से फेफड़ों के कैंसर से जूझ रहे थे। डॉ. सोहन शर्मा की बीसेक किताबें हैं। उनके कहानी संग्रह- बर्फ का चाकू, जूनी लकड़ियों का गट्ठर, आमने-सामने, आधे उखड़े नख की पीड़ा, अपनी जगह पर, स्याह होती धूप आदि तथा कविता संग्रह- थमना मत गोदावरी के साथ उनके बहुचर्चित उपन्यास थे-- ''मीणा घाटी'' और ''समरवंशी''। उनकी वैचारिक पुस्तकों में- ''विकल्प के पक्ष में'' चर्चित रही। उन्होंने ''सही समझ'' नाम से एक पत्रिका भी कई वर्षों तक सम्पादित की जिसमें उन्होंने युवा स्वर को प्रमुखता दी। वे बैंक ऑफ बडौदा में हिंदी अधिकारी में उप महाप्रबंधक के पद पर रिटायर हुए। भारत सरकार की बैंकों के कार्यान्वयन की राजभाषा नीति को लागू करवाने में उनकी महती भूमिका रही।
डॉ. सोहन शर्मा रामानंद सागर के ''रामायण'', ''पृथ्वीराज चौहान'' तथा ''मीरा'' धारावाहिक में शोध तथा पटकथा लेखन में सहायक रहे।
डॉ. सोहन शर्मा क्रांतिकारी वाम के समर्थक थे. वर्ल्ड सोशल फोरम के समानांतर उन्होंने एक क्रांतिकारी वाम पंथी फोरम का स्वरुप रखा। इधर वे अपने एक उपन्यास ''अहो , मुंबई'' के लेखन में व्यस्त थे तथा नक्सलवाद के सम्पूर्ण इतिहास का पुनर्लेखन कर रहे थे।
रविवार 24 अक्टूबर को संन्यास आश्रम , विले पार्ले पश्चिम में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में जगदम्बा प्रसाद दीक्षित, शोभनाथ यादव , आर.के पालीवाल, सुधा अरोड़ा, नंदकिशोर नौटियाल, विश्वनाथ सचदेव, अक्षय जैन,देवमणि पाण्डेय,पूर्ण मनराल, दयाकृष्ण जोशी, उमाकांत वाजपेयी आदि रचनाकारों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
सोहनजी की पत्नी शशि शर्मा का संपर्क नं. -- 022 2682 0216 / 98191 40555
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर फाउन्डेशन,डाला,सोनभद्र ने श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के 43वें स्थापना दिवस के अवसर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत के भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया। इस आयोजन में मुकुल शिवपुत्र जी, सारस्वत मंडल, कुशलदास सरीख्ो साधक कलाकारों ने शिरकत की।
हर-हर महादेव की ध्वनि के साथ आरम्भ और समाप्त होने वाले इस समारोह की अलौकिकता अनुपम रही। कार्यक्रम की शुरूआत सारस्वत मंडल नें राग मारवा में "झाँझर मोरा झनकायी" (विलम्बित एक ताल) तथा "माई री साँझ भये" (द्रुत एक ताल) बंदिश्ों सुनाकर की। इन बंदिशों नें वातावरण में अलख जगाने जैसा माहौल स्थापित कर दिया। इसके बाद सारस्वत मंडल जी नें एक टप्पा सुनाया। इस टप्पे में गायन की ऐसी कुशलता थी कि श्रोतागण झूमने पर मजबूर हो गये।
पंडित मुकुल शिवपुत्र जी ने राग बसंत मध्य तीन ताल में "सपनें में मिलते तोरे पिया" तथा द्रुत में तराना सुनाया। सारे श्रोता पंडित मुकुल शिवपुत्र जी को श्रद्धा तथा आश्चर्य के मिश्रित भाव से अभिभूत होकर स्तब्धता के साथ सुन रहे थ्ो। इसके उपरान्त पंडित मुकुल शिवपुत्र जी ने अपने पिता (पंडित कुमार गन्धर्व)जी द्वारा रचित ठुमरी "बाली उमर लरिकइयाँ" सुनाई। कुशलदास जी ने राग बागेश्री, मिश्र खमाज तथा भ्ौरवी में मनोहारी सितार वादन किया। क्ष्ोत्र के आमंत्रित तमाम बुद्धिजीवी तथा सुधी श्रोता गणों ने कार्यक्रम का आनन्दलाभ लिया।
इसी आयोजन के दौरान हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित राक़िम के ग़ज़ल संग्रह अनाम का लोकार्पण पंडित मुकुल शिवपुत्र जी के हाथों सम्पन्न हुआ।
हिन्दी कला, साहित्य, भाषाकर्म से जुड़ी हर गतिविधि की सूचना, आने वाले कार्यक्रम की सूचना, निमंत्रण, आमंत्रण, रिपोर्ट इत्यादि hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें। इस प्रकार आप हिन्दी प्रेमियों से सीधे जुड़ पायेंगे।