Thursday, January 28, 2010

ब्लॉग जगत की 3 किताबों के लाकार्पण अवसर पर आप आमंत्रित हैं

पुस्तक प्रेमियो,


हिन्द-युग्म 30 जनवरी 2010 से 7 फरवरी 2010 के बीच नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित होने वाले 19वें विश्व पुस्तक मेला में अपना स्टॉल सजा रहा है। जहाँ हमारी कोशिश होगी कि हम इंटरनेट की दुनिया पर हिन्दी की सजीव उपस्थिति का प्रचार-प्रसार कर पायें। गौरतलब है कि हिन्द-युग्म 18वाँ विश्व पुस्तक मेला में भी इंटरनेट-जगत का प्रतिनिधित्व कर चुका है।

सन् 2008 में इंटरनेट पर हिन्दी का जितना बड़ा संसार था, आज उससे कई गुना विस्तार उसे मिल चुका है। इसलिए हिन्द-युग्म ने भी अपनी सक्रियता, अपनी प्रचार रणनीति में विस्तार किये हैं। यह इंटरनेट जगत के लिए अपने आप में बड़ी बात है कि इंटरनेट पर काम करने वाला एक समूह विश्व पुस्तक मेला में 3X3 मीटर2 का क्षेत्रफल घेर रहा है, जहाँ की हर बात इंटरनेट से जुड़ी है।

हिन्द-युग्म प्रिंट की दुनिया से भी तालमेल करना चाहता है, इसलिए हिन्द-युग्म ने इस बार प्रकाशन भी प्रवेश किया है और पाँच पुस्तकों का प्रकाशन कर रहा है।

31 जनवरी 2010 को हिन्द-युग्म विश्व पुस्तक मेला के सभागार में तीन पुस्तकों का विमोचन कार्यक्रम आयोजित कर रहा है, जिनमें से एक पुस्तक का प्रकाशक खुद हिन्द-युग्म है।

कृपया इस कार्यक्रम में ज़रूर पधारें और हमारा मनोबल बढ़ाये। कार्यक्रम का पूरा विवरण निम्नवत् है-

1) सुमीता प्रवीण केशवा की नाट्य पुस्तक ‘सम-बंध’ का लोकार्पण (द्वारा- एच॰ एस॰ एस॰ शिवप्रकाश, कन्नड़ के प्रसिद्ध नाटककार और कवि)।

2) रश्मि प्रभा के कविता-संग्रह
‘शब्दों का रिश्ता’ का विमोचन (द्वारा- इमरोज़, प्रसिद्ध चित्रकार)।

3) रश्मि प्रभा द्वारा संपादित 31 नये कवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह
‘अनमोल संचयन’ का विमोचन (द्वारा- पद्मश्री बालस्वरूप राही, प्रसिद्ध कवि)।

काव्यपाठ- शोभना चौरे, संगीता स्वरूप

संचालन- प्रमोद कुमार तिवारी

स्थान- कॉन्फ्रेंस रूम-2, हॉल नं॰ 7D के पास, प्रगति मैदान, नई दिल्ली

दिन व समयः 31 जनवरी 2010, दोपहर 2-4

जलपान- दोपहर- 3:30-4 बजे तक

निवेदक-
हिन्द-युग्म टीम

संपर्क-
9873734046, 9968755908, 8010678194, 9871123997, 9868097199, 9015634902


(ऊपर्युक्त बैनर को बड़ा करके देखने के लिए बैनर पर क्लिक करें)

प्रगति मैदान, नई दिल्ली में 30 जनवरी 2010 से 7 फरवरी 2010 तक, 19वाँ विश्व पुस्तक मेला के दौरान हिन्द-युग्म के स्टॉल (हॉल नं॰ 12A, स्टॉल नं॰- 285) पर जरूर पधारें।

Sunday, January 24, 2010

हिन्दी भाषा पर तीन दिवसीय सेमिनार का आमंत्रण

भारत की भाषा हिन्दी आज दुनिया में एक बड़ी भाषा बन गई है। हिंदी दुनिया में यह सोचा जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा हिंदी भी होनी चाहिए। यह चाहत हिंदी को जहाँ आज तरह-तरह के प्रश्नों से दोचार करा रही है वहीं यह प्रश्न भी लगातार सामने आ रहे हैं कि पूरी दुनिया में आए बदलावों और भाषाई विकास के क्रम में हिंदी की स्थिति क्या है और उसमें कहाँ-कहाँ अवरोध है? इन अवरोधों का परिहार किस प्रकार किया जाए? और हम किस प्रकार हिंदी को उसके मुकाम तक पहुँचाने में सहयोगी हो सकते हैं, इस पर लगातार चिंतन हो रहा है और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी तथा हिंदी वालों की भूमिका पर भी लगातार विचार हो रहा है। भाषा एवं साहित्य के विभागों, शिक्षकों, विद्यार्थियों,शोधार्थियों का भी यह दायित्व है कि वह हिन्दी के विकास में अपने विचारों से परस्पर अवगत कराएं ताकि भविष्य में विश्व के सन्दर्भ में हिन्दी की वैश्विक नीति पर विचार किया जा सके। लगातार यह मांग रही है कि भारतीय भाषाओं के साहित्य तथा ऐसे राज्यों में जिनके नागरिकों की मातृभाषा हिन्दी नहीं हैं, ऐसे राज्यों, क्षेत्रों में लिखे जा रहे हिन्दी साहित्य को हिन्दी के अनिवार्य पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। जिससे हिन्दी मातृ भाषा वाले प्रदेशों के लोग भी इससे परिचित हो सकेंगे। इधर भारत के प्रवासियों द्वारा हिन्दी में लेखन तथा हिन्दी में विदेशों में हो रहे लेखन से भी हिन्दी के अध्येता, शोधार्थी अवगत हों, इसकी लगातार मांग हो रही है। साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ हिन्दी के विकास के जो दरवाजे खुले हैं उनमें हम कहाँ पहुँचे हैं? इसपर भी चर्चा जरूरी है। हिन्दी में विधाओं के विकास तथा अन्य भाषाओं तथा अनुशासनों में लिखे गए साहित्य के हिन्दी में हो रहे अनुवाद तथा उसकी आवश्यकता पर भी चर्चा होनी चाहिए। उपर्युक्त मुद्दों पर विचार करने के लिए हिन्दी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ दिनांक 12 फरवरी 2010 से (तीन दिवसीय) ‘‘भूमण्डलीकरण के दौर में हिन्दी’’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित कर रहा है।

संगोष्ठी में संभावित सत्र इस प्रकार हैं:-


कार्यक्रम:
प्रथम दिन: उद्घाटन - 10:00 बजे प्रातः
प्रथम सत्र - ‘अहिन्दी भाषी क्षेत्र और हिन्दी’ - 12:00 बजे से 02:00 बजे
द्वितीय सत्र - ‘भारतीय मूल के देशों में हिन्दी की स्थिति’ - 03:00 बजेसे 05:00 बजे
सांस्कृतिक कार्यक्रम - 06-00 बजे

द्वितीय दिन-
तृतीय सत्र - ‘दुनियाँ में हिन्दी’ - 09:30 बजे से 11:30 बजे
चतुर्थ - ‘सूचना प्रौद्योगिकी और हिन्दी’ - 11:45 से 01:30 बजे
पंचम सत्र - ‘अनुवाद और हिन्दी साहित्य’ - 02:15 से 04:15 बजे
सांय 4:30 बजे से मेरठ में स्थानीय भ्रमण

तृतीय दिन:
षष्ठ सत्र - ‘हिन्दी साहित्य में विधाओं का विकास’ - 09:30 बजे से 11:30 बजे
समापन - 12:00 बजे से 02:00 बजे



इस संगोष्ठी में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के हिन्दी साहित्यकार, लेखक, विषय विशेषज्ञ एवं मीडिया से जुड़े लोग वक्ता के रूप में सम्मिलित होंगे। संगोष्ठी के माध्यम से अनेक प्राध्यापक, साहित्य प्रेमी पाठक, विद्यार्थी एवं शोधार्थी साहित्य एवं भाषा सम्बन्धी कई ज्वलन्त मुद्दों से परिचित होंगे। संगोष्ठी में आप सादर आमन्त्रित हैं। इस हेतु आपकी प्रतिभागिता पूर्व में स्वीकृति के उपरांत ही होगी। अतः आप अपनी प्रतिभागिता हेतु सूचना प्रेषित करने के अंतिम तिथि दिनांक 31 जनवरी 2010 तक सुनिश्चित करने का कष्ट करें।

आपके सहयोग के लिए आभार सहित।

भवदीय
(प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी)

कवि नंदलाल पाठक को परिवार पुरस्कार


(बाएं से दाएं)- सुरेशचंद्र शर्मा, शचीन्द्र त्रिपाठी, विश्वनाथ सचदेव, पं राम नारायण, प्रो.नंदलाल पाठक और रामस्वरूप गाड़िया

रविवार को मुम्बई के बिरला मातुश्री सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो.नंदलाल पाठक को परिवार पुरस्कार से सम्मानित किया गया । विश्वविख्यात सारंगीवादक पद्मश्री पं. रामनारायण ने 51 हज़ार रूपए का यह पुरस्कार उन्हें प्रदान करते हुए कहा- पाठक जी ने हिंदी काव्य साहित्य को भाषा, भाव और विचार के स्तर पर समृद्ध किया है । नवनीत के सम्पादक विश्वनाथ सचदेव ने पाठक जी को ज़मीन से जुड़ा हुआ रचनाकार बताया । नवभारत टाइम्स मुम्बई के स्थानीय सम्पादक शचीन्द्र त्रिपाठी ने कहा- पाठक जी ने हिंदी ग़ज़ल को एक नई ऊँचाई दी है । नूतन सवेरा के सम्पादक नंदकिशोर नौटियाल ने कहा- पाठक जी ने अपने व्यक्तित्व की सादगी को अपनी रचनाओं में साकार किया है । संस्था अध्यक्ष रामस्वरूप गाड़िया ने आभार व्यक्त करते हुए कहा- अगले साल परिवार के 20वें समारोह को विशाल आयोजन का रूप दिया जाएगा । महामंत्री सुरेशचंद्र शर्मा ने बताया- अब तक परिवार पुरस्कार से बाबा नागार्जुन, कवि प्रदीप, शरद जोशी, गोपालदास नीरज, भारत भूषण, हरीश भदानी, नईम, सोम ठाकुर, माहेश्वर तिवारी, कन्हैयालाल नंदन, सूर्यभानु गुप्त, कैलाश गौतम, कुँअर बेचैन और बुद्धिनाथ मिश्र जैसे रचनाकारों को सम्मानित किया जा चुका है । पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह, शायर मजरूह सुलतानपुरी, गुलज़ार और जावेद अख़्तर जैसी हस्तियाँ अपने काव्यपाठ से परिवार के मंच को गरिमा प्रदान कर चुकी हैं ।

परिवार के आयोजन में श्रोता भी बहुत अच्छे-अच्छे आते हैं । इस बार भी मुम्बई के दो प्रमुख घरानों का नेतृत्व करने करने वाली दो प्रमुख हस्तियाँ श्रीमती राजश्री बिरला और श्रीमती किरण बजाज श्रोताओं में मौजूद थीं । कवि देवमणि पाण्डेय के संचालन में सम्पन्न काव्य उत्सव में महक भारती (पटियाला) और रमेश शर्मा (चित्तौड़गढ़) ने गीतों की छटा बिखेरी । शायर निदा फ़ाज़ली और हस्तीमल हस्ती ने ग़ज़लों, दोहों और नज़्मों से अदभुत समां बांधा । हास्य कवि आसकरण अटल की हास्य कविताओं ने श्रोताओं को लोटपोट कर दिया । दूसरे दौर में रमेश शर्मा ने शहर के विरोध और गाँव के पक्ष में एक ऐसा गीत सुनाया जिसे सुनकर हाल में सन्नाटा छा गया । सन्नाटे को तोड़ते हुए संचालक देवमणि पाण्डेय ने कहा – राजस्थान के गाँव इतने सुँदर हो सकते हैं मगर हमारे उ.प्र. के गाँव बहुत बदल गए हैं । इसी मंच पर कवि कैलाश गौतम ने कहा था- अब उ.प्र. के गाँवों में किराना स्टोर्स में पाउच (पन्नी) में शराब बिकती है । उन्होंने एक दोहा सुनाया था-

पन्नी में दारू बँटी पंच हुए सब टंच।
सबसे ज़्यादा टंच जो वही हुआ सरपंच।


भगवान कृष्ण के वंशज भी कितने बदल गए हैं, इस पर भी कैलाश जी ने एक दोहा सुनाया था-

दूध दुहे , बल्टा भरे गए शहर की ओर।
शाम हुई, दारू पिए लौटे नंदकिशोर।।


जब संचालक पाण्डेय जी ने यह दोहा उद्धरित किया तब श्रोताओं ने ज़ोरदार ठहाका लगाया शायद इस लिए कि पहली पंक्ति में नंदकिशोर जी यानी वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल मौजूद थे । कुल मिलाकर हर साल की तरह परिवार का काव्य उत्सव इस बार भी श्रोताओं के दिलो-दिमाग़ पर अपनी छाप छोड़ गया ।


(बाएं से दाएं)- हस्तीमल हस्ती, आसकरण अटल, निदा फ़ाज़ली, शचीन्द्र त्रिपाठी, विश्वनाथ सचदेव, नंदकिशोर नौटियाल, पं राम नारायण, प्रो.नंदलाल पाठ, रामस्वरूप गाड़िया और महक भारती

रमा पाण्डेय, मुम्बई

Friday, January 22, 2010

हिंदी यू.एस.ए की ओर से कविता पाठ प्रतियोगिता



दिनांक शनिवार, १६ जनवरी २०१० Hindi USA जिसके संस्थापक हैं श्री देवेन्द्र सिंह एवं रचिता सिंह, उसकी अनेक शाखाओं से अपने आप में सर्वोतम काम करती शाखा जिसके संचालक श्री राज मित्तल हैं "एडिसन हिन्दी पाठशाला" के छात्रों की कविता पाठ प्रतियोगिता सफलतापूर्ण संपन हुई जिसमें एडिसन हिदी पाठशाला के १६० छात्र / छात्राओं ने जो अमेरिका में ही जन्मे तथा पले हैं उन्होंने भाग लिया। अधिकांश छात्र ६ वर्ष से १२ वर्ष की आयु के बीच के हैं। कविता पाठ प्रतियोगिता २ समूहों में विभाजित की गयी है. प्रत्येक समूह में तीन निर्णायकों की एक मंडली रही. इस विभाग के सेनानी संचालक है राज मित्तल, मानक काबरा, अजय कुमार, और गोपाल चतुर्वेदी।

कविता पाठ प्रतियोगिता २ समूहों में विभाजित की गयी। प्रत्येक समूह में तीन निर्णायकों की एक मंडली रही। १२:०० से २:०० बजे निर्णय करने वाले थे-



पहले समूह में रहे श्री रामबाबू गौतम, सुश्री देवी नागरानी जी, डा. श्री उमेश शुक्ला और दूसरे समूह में २.०० से ४.०० तक रहे डा. श्री हिमांशु ओम पाठक , डा. श्री नरेश शर्मा, डा. श्री सुशील श्रीवास्तव.बच्चों के मापदंड की श्रेणियां थीं उच्चारण , आत्मविश्वास, शैली, अभिव्यक्ति, स्मरण।

पहले समूह के तीन सत्र रहे जिन में अलग अलग उम्र के हिसाब से बच्चों को मौका दिया गया था। और उन तीनों सत्रों के संचालन का भार संभाला शशि शर्मा, प्रतिभा जी, और अंजलि मलिक ने। बच्चों ने अनेकों कविताएं पढ़ीं जिनमें कुछ महादेवी वर्मा की और श्याम सुंदर अग्रवाल जी की भी शामिल थी, जिनके उन्वान रहे कोयल, चंदामामा, कछुआ, हाथी राजा, घड़ी, सारी दुनिया गोल है, तोता, मेरा घर, दिवाली, सारे जहाँ से अच्छा। कई कविताएँ सुनी हुई फिर से बच्चों के मुख से सुनने में भली लगी।

कविता पाठ से झलक रही थी हिंदी सिखाने वाले निस्वार्थ भावी हिंदी सेवक-सेविकाएँ की निष्ठा जो शुक्रवार के दिन इन कक्षाओं की बागडोर संभल लेते हैं।

अंत की ओर आते मन को छूने वाली कविता का पाठ किया कुमारी सुमेघा दुबे ने अपने दादा जी श्री सूर्यदत्त दुबे जी ( उनका दुखद निधन १५, जनवरी २०१० को हुआ) की एक रचना उन्हें ही श्रधांजलि स्वरूप अर्पित करते हुए पढ़ी

दीनानाथ दया निधि
दीजे कोई ऐसी संधि

यह प्रतियोगता सिर्फ बच्चों की ही नहीं थी, इस सफ़लता के भागीदार रहे उनके माता-पिता, उनके शिक्षक जिन्होंने इन बच्चों को वतन की मिट्टी और उसके परिवेश के साथ जोड़ने में सहयोगी और सहभागी बने हैं. हिंदी भाषा के माध्यम से ये बच्चे अपने मनोबल को बढ़ाते हुए अपनी संस्कृति के साथ परिचित हो पाए हैं जिसका श्रेय इन हिंदी सेवकों को जाता है जिन्होंने अपने कन्धों पर मातृभाषा को यहाँ इस परिवेश में स्थापित करने की ठान ली है। इस समारोह के सफल कार्यकर्ता रहे : राज मित्तल, मानक काबरा, अजय कुमार, गोपाल चतुर्वेदी, अर्चना कुमार, अरुण कुमार , सीमा गुप्ता, शिव एवं सुधा अग्रवाल, सुशील एवं वन्दना अग्रवाल, दीपक एवं नूतन लाल, तथा अन्य तरुण कार्यकर्ता, अमर्पित अध्यापक एवं अभिभावक। ऐसे देश के सिपाहियों को मेरी शुभकामनयें और हार्दिक बधाई . जय हिंद




प्रस्तुतकर्ताः
देवी नागरानी, न्यू जर्सी, dnangrani@gmail.com

Thursday, January 21, 2010

पुस्तक लोकार्पण एवं राष्ट्रीय एकता सम्मान समारोह का आयोजन


बाएं से सर्वश्री सुभीर कुमार गुप्ता, डा. सुरेश चंद्र शुक्ल ‘शरद आलोक’, किशोर श्रीवास्तव, डा. महीप सिंह, एच. एस. सिंह, निर्मल वालिया एवं विनोद बब्बर

नई दिल्ली।
यहाँ वरिष्ठ-साहित्यकार डा. महीप सिंह की अध्यक्षता में भारतीय-साहित्य कला परिषद् की ओर से स. अवतार सिंह वालिया स्मृति राष्ट्रीय एकता सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। आयोजन के मुख्य अतिथि थे श्री सुभीर कुमार गुप्ता (आईएएस) एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में नार्वे से पधारे डा. सुरेश चंद्र शुक्ल ‘शरद आलोक’। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कवि- आलोचक डा. राहुल कृत डॉ. निर्मल वालियाः काव्य के विविध आयाम (आलोचना) का लोकार्पण हुआ। मुख्य अतिथि ने डा. राहुल की पुस्तक को कवयित्री निर्मल वालिया की काव्य-साधना का आईना बताते हुए साहित्य की एक अमूल्य धरोहर कहा।

ख्याति प्राप्त आलोचक डा. गुरचरण सिंह ने अपने विस्तृत आलेख में दोनों पुस्तकों की रचनात्मकता का विवेचन करते हुए जहाँ आलोचना के गूढ़-गंभीर तत्वों की प्रस्तुति की बात की वहीं दीप राग में छायावादी प्रभाव और महादेवी की छाया को रेखांकित किया।

समारोह के दौरान साहित्य एवं कला के विभिन्न क्षेत्रों में संलग्न रहते हुए राष्ट्रीय एकता के लिए काम रही देश की अनेक विभूतियों को स. अवतार सिंह स्मृति राष्ट्रीय एकता सम्मान भी प्रदान किया गया। इसमें अपनी कार्टून प्रदर्शनी खरी-खरी के माध्यम से राष्ट्रीय एकता के प्रचार-प्रसार में संलग्न दिल्ली के श्री किशोर श्रीवास्तव सहित होशंगाबाद के डा. कृष्ण गोपाल मिश्र, देवबंद के डा. महेन्द्रपाल काम्बोज, जयपुर की श्रीमती सुनीता ‘दामिनी’ गुप्ता, मंडला के डा. शरदनारायण खरे, सूरत की डा. रेशमा जुल्का, समाजसेवी श्री मंजीत सिंह एवं शांति ज्ञान निकेतन इंटरनेशनल स्कूल, दिल्ली को सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर श्रीमती निर्मल वालिया एवं सुनीता गुप्ता द्वारा अपनी कविताओं का सरस पाठ भी किया गया जिसे सुनकर श्रोता मन्त्र मुग्ध हो उठे।


बाएं से श्रीमती निर्मल वालिया पर लिखी पुस्तक का विमोचन करते हुए डा. राहुल एवं अन्य अतिथिगण

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डा. महीप सिंह ने डा. राहुल की कृति को शोधात्मक प्रयास बताते हुए निर्मल वालिया के आध्यात्म और रहस्यवाद के साथ दर्शन पक्ष को उद्घाटित किया। उन्होंने कहा कि वालिया की कविता में रहस्य के वे तत्व निहित हैं जो उन्हें विशिष्ट कवयित्री बनाते हैं। उन्होंने अपनी कविता का अलग मुहावरा गढ़ा है। यह विशेष बात है।
कार्यक्रम का संचालन राष्ट्र किंकर समाचार पत्र के संपादक एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डा. विनोद बब्बर ने अत्यंत प्रभावी व रोचक ढ़ंग से किया। डा. सुभीर गुप्ता ने साहित्य को समाज का मार्गदर्शक बताते हुए साहित्य साधिका निर्मल वालिया द्वारा राष्ट्रीय एकता के लिए पुरस्कार आरंभ करने की सराहना की । श्री एच.एस.सिंह ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए पर्यावरण संरक्षण द्वारा प्रदूषण नियंत्रण करने की तरह सांस्कृतिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए साहित्य को महत्व दिए जाने पर बल दिया। समारोह में बड़ी संख्या में लेखक, पत्रकार, साहित्य प्रेमी एवं महानगर के गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।

प्रस्तुतिः इरफान अहमद राही, नई दिल्ली मो. 9971070545

Wednesday, January 20, 2010

आलोक श्रीवास्तव को साहित्य-पत्रकारिता सम्मान

मेरठ।

उत्‍तर प्रदेशीय महिला मंच ने अपने संस्‍थापक स्‍व0 वेद अग्रवाल की 75 वीं जयंती पर 'पत्रकारिता सम्‍मान 2010' साहित्‍यकार एवं पत्रकार आलोक श्रीवास्‍तव को देने की घोषणा की है। उन्हें यह पुरस्कार उनकी चर्चित कृति आमीन के लिए दिया जा रहा है। यह सम्‍मान मंच के 25वें स्‍थापना दिवस समारोह में दिया जाएगा। मूर्धन्‍य पत्रकार और लेखक रहे स्‍व0 वेद अग्रवाल की स्‍मृति में दिया जाने वाला ये सम्‍मान इससे पूर्व नवाज देवबंदी, महावीर रवांल्‍टा और डा0 नवीन चंद लोहनी आदि को दिया जा चुका है।

30 दिसंबर 1971 शाजापुर (म.प्र) में जन्मे आलोक सुपरिचित ग़ज़लकार, कथा-लेखक, समीक्षक और टीवी पत्रकार हैं। आलोक के जीवन का बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक नगर विदिशा में गुज़रा है और वहीं से उन्होंने हिंदी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ग्रहण की है। 'रिश्तों का कवि' कहे जाने वाले आलोक की रचनाएं लगभग दो दशक से देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। वर्ष 2007 में 'राजकमल प्रकाशन दिल्ली' से प्रकाशित आलोक का पहला ग़ज़ल-संग्रह 'आमीन' सर्वाधिक चर्चित पुस्तकों में रहा और कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया। आलोक ने उर्दू के प्रतिष्ठित शायरों की काव्य-पुस्तकों का हिंदी में महत्वपूर्ण संपादन-कार्य किया है साथ ही वे अक्षर पर्व मासिक की साहित्य वार्षिकी (2000 और 2002) के अतिथि संपादक भी रहे हैं। दैनिक भास्कर 'रसरंग' की संपादकीय टीम से जुड़ कर आलोक ने भास्कर के संपादकीय पृष्ठ पर हिंदी और उर्दू-साहित्य के प्रख्यात रचनाकारों पर कॉलम प्रकाश-स्तंभ और भास्कर की ही पारिवारिक-पत्रिका मधुरिमा में कविता और कैलीग्राफ़ी के कॉलम्स दिए जो ख़ासे लोकप्रिय हुए। देश-विदेश के प्रतिष्ठित कवि-सम्मेलनों और मुशायरों में अपने संजीदा और प्रभावपूर्ण ग़ज़ल-पाठ से एक अलग पहचान स्थापित करने वाले आलोक ने टीवी सीरियल्स और फ़िल्मों के लिए भी लेखन किया है। ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह, अहमद हुसैन-मो.हुसैन और प्रख्यात शास्त्रीय गायिका शुभा मुदगल सहित पार्श्व गायक सुरेश वाडकर, कविता कृष्णमूर्ति, उदित नारायण, अलका याज्ञिक, सुखविंदर और शान जैसे कई ख्यातनाम फ़नकारों ने आलोक के गीत और ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी। पेशे से टीवी पत्रकार आलोक इन दिनों दिल्ली में न्यूज़ चैनल 'आजतक' में प्रोड्यूसर हैं।

Tuesday, January 19, 2010

डॉ.अभिज्ञात को अम्बडेकर उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान

कोलकाता

रविवार की देर रात तक आयोजित एक भव्य समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए अम्बेडकर सम्मान प्रदान किये गये। डॉ.अभिज्ञात को उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर के चेयरमैन डॉ.धर्मेन्द्र कुमार ने प्रदान किया। दो दशकों से पत्रकारिता कर रहे डॉ.अभिज्ञात सम्प्रति सन्मार्ग में वरिष्ठ उप-सम्पादक हैं। वे साहित्य में भी सक्रिय हैं और छह कविता संग्रह तथा दो उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पांच पुरस्कार-सम्मान मिले हैं। यह समारोह उपनगर टीटागढ़ में आयोजित था।

महिलाओं के विकास में योगदान के लिए डॉ.सुरंजना चौधरी, ग्लोबल पर्सनालिटी आफ द ईयर रमेश प्रसाद हेला, औद्योगिक उपलब्धि सम्मान लोकनाथ गुप्ता, अम्बेडकर गुरुद्रोण सम्मान नृत्यानंद जी महाराज, सामाजिक जागरुकता सम्मान डॉ.संतोष गिरि, मैन आफ द ईयर सम्मान आत्माराम अग्रवाल, उभरता मीडिया उद्योग सम्मान विजन खबरा खबर (चैनल विजन) और यूथ आइको आफ द ईयर अवार्ड शिव प्रसाद गोसार्इं को प्रदान किया गया।

कार्यक्रम डॉ.भीमराव अम्बेडकर शिक्षा निकेतन और आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर की ओर से आयोजित था। इस अवसर पर टीटागढ़ डॉ.भीमराव अम्बेडकर शिक्षा निकेतन संस्था का उद्घाटन, डॉ.अम्बेडकर और संस्था के संस्थापक स्व.मक्खनलाल की मूर्ति का अनावरण उद्योगपति आत्माराम अग्रवाल ने किया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उपस्थित श्रोताओं ने उठाया। आराधना सिंह ने भोजपुरी गीत पेश किये।

Monday, January 18, 2010

विजय वर्मा कथा सम्मान और हेमंत स्मॄति सम्मान समारोह 2010 के लिए आमंत्रण

विजय वर्मा कथा सम्मान
हेमंत स्मॄति सम्मान
समारोह वर्ष २०१०

आप सादर आमंत्रित हैं॥

निवेदक:-
हेमंत फ़ाउंडेशन
साहित्यिक एवम सांस्कॄतिक विभाग
श्री जगदीश प्रसाद झाबरमल टिबडेवाला विश्वविध्यालय, झुंझुंनू [राजस्थान]
संचालक-श्री राजस्थानी सेवा संघ,मुंबई


विजय वर्मा कथा सम्मान २०१०
श्री राजू शर्मा [दिल्ली] कथा संग्रह'विसर्जन' के लिए

हेमंत स्मॄति सम्मान २०१० श्री राकेश रंजन [हाजीपुर,बिहार]
कविता संग्रह 'चांद में अट्की पतंग' के लिए

समारोह


२३ जनवरी २०१० शनिवार सायं ५.३० बजे

स्थल
श्री राजस्थानी सेवा संघ प्रांगण
श्री निवास बगड्का कालेज
कोहिनूर इंटर कांटिनेंटल होटल के सामने
जे.बी.नगर,अंधेरी [पूर्व] ,मुंबई-४०००९


समारोह अध्यक्ष: श्री विश्वनाथ सचदेव [संपादक नवनीत]
स्वागताध्यक्ष: श्री विनोद टीब्डेवाला [अध्यक्ष : राजस्थानी सेवा संघ]
प्रमुख अतिथि: डा. विजय बहादुर सिंह-वरिष्ठ समालोचक
निदेशक- भारतीय भाषा परिष्द,कोलकाता
सम्मानित अतिथि: सुश्री सुधा अरोडा [वरिष्ठ कथाकार]
श्री शचीन्द्र त्रिपाठी [संपादक नवभारत टाइम्स]
सरस्वती वंदना: हरिशचन्द्र
प्रस्तावना: हरीश पाठ्क [संपादक-राष्ट्रीय सहारा पट्ना]
बीज वक्त्व्य: संतोष श्रीवास्तव [लेखिका,पत्रकार]
विशेष वक्तव्य: विसर्जन- डा. राजम नटराजम पिल्लै [संपादक-कुतुब्नुमा]
चांद मे अट्की पतंग-डा.प्रमिला वर्मा[ लेखिका,पत्रकार]
आभार: सोनू पाहूजा [टी.वी. कलाकार]
संचालकः आलोक भट्टाचार्य [कवि, पत्रकार]

संपर्क
विनोद टिबडेवाला
९८२०२१८९९४

संतोष श्रीवास्तव
९९३४३३३०८६

हरीश पाठक
९८६९०४१७०७

डा. प्रमिला वर्मा
९६१९२८२३५८

आलोक भट्टाचार्य
९८२१४०००३१

सुमीता पीकेशवा
९२२२१९९६१०

Sunday, January 17, 2010

आधुनिक व दार्शनिक दृष्टि से हिन्द स्वराज अधिक प्रासंगिक- आचार्य नंदकिशोर

हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता पर व्याख्यान सम्पन्न



रायपुर, 16 जनवरी।

ख्यातिनाम गांधीवादी, चिंतक और लेखक जयपुर के नंदकिशोर आचार्य ने कहा है गांधी जी की किताब हिन्द स्वराज्य आधुनिक एवं दार्शनिक दृष्टि से आज अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने हिन्द स्वराज्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि स्वदेशी, स्थानीय जरूरतों के, लिए स्थानीय संस्थानों से स्थानीय लोगों के लिए विकसित टेक्नालाजी है। यह विचार आचार्य ने महात्मा गांधी द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध कृति हिन्द स्वराज की 100 वीं वर्षगांठ के अवसर पर रायपुर प्रेस क्लब के सभागार में हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा किया गया। उक्त अवसर पर प्रख्यात आलोचक श्री भगवान सिंह की नाट्यकृति बिन पानी बिन सुन का विमोचन भी श्री नंदकिशोर आचार्य के हाथों संपन्न हुआ।

नंदकिशोर आचार्य ने हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता पर कहा कि इस पर देश में गंभीर, चिन्तन नहीं हुआ। यह अपने आप में एक सनातन प्रासंगिकता है। प्राणियों में मनुष्य में चेतना का विकास हुआ और बाद में उसमें हस्तक्षेप करने की क्षमता विकसित हुई। वर्तमान मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उसका उपयोग विकास के लिए करें या विनाश के लिए। उन्होंने तीन महान विचारकों की पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि एडम स्मिथ ने उत्पादन पर जोर दिया उससे बाजार की समस्या उत्पन्न हो गई परिणाम स्वरूप यह सिद्धांत समस्या सुलझाने में असमर्थ हो गया। इसी तरह कार्ल माक्र्स ने उत्पादन पर समाज के अधिकार का सिद्धांत दिया जिससे कार्पोरेट सेक्टर के पास स्वामित्व चला गया और नतीजा यह हुआ कि रूस में एकाएक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। जबकि गांधी जी के हिन्द स्वराज में ऐसी टेक्नालाजी पर बल दिया गया है जो समतामूलक एवं अहिंसात्मक हो। उन्होंने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध ही आपसी रिश्तों को बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि हिन्द स्वराज्य सनातन सिद्धांतों पर आधारित है और आज के इस वैज्ञानिक युग में यह हम सब पर निर्भर करता है कि विकास अथवा विनाश में से कौन सी स्वतंत्रता चाहते हैं।

इसके पूर्व व्याख्यान कार्यक्रम के आरंभ में भागलपुर से आए चर्चित आलोचक श्रीभगवान ने कहा कि गांधी जी उपनिवेशवाद के विरोधी थे और सर्व समाज एवं सभी देशों के आगे बढऩे की बात करते थे। उन्होंने कहा कि विज्ञान का मतलब ज्ञान का सोच समझकर उपयोग करना है। गांधी जी भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल आचरण, नीतियों और श्रुतियों के अनुसार विकास की बात करते थे। गांधी जी स्वावलंबन और स्वायतता की बात करते थे क्योंकि उससे ही देश में सबको रोजगार मिलने के साथ ही आत्मनिर्भर बढ़ सकती थी। कालान्तर से देश में ही उनके हिन्द स्वराज की कल्पना की उपेक्षा कर दी गई मगर आज उसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है। श्री भगवान ने कहा कि गांधी जी के सिद्धांतों में ग्रामीण स्वावलंबन की भावना छुपी हुई है। पश्चिमी दौड़ के कारण अपव्यय तथा धन का दुरूपयोग बढ़ा है जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि गांधी जी के सिद्धांतों को याद नहीं किया गया तो हम सब पर भारी संकट आने वाला है।

व्याख्यान के अध्यक्षीय उद्बोधन में कवि विश्वरंजन ने कहा कि एडम स्मिथ कार्ल मार्क्स एवं समतावादी समाज की संरचना से ज्यादा वैज्ञानिक व्यवहारिक, सोच गांधी जी की थी। गांधी जी नए युग के मनुष्य के लिए सबसे बड़े प्रकाशपुंज की तरह हैं। आज हम उनकी बुनियाद को अपने अंदर कितना गहरे में उतार पाते हैं यह आज की सबसे बड़ी प्रासंगिकता है। उन्होंने कहा कि बस्तर में पहले सामंतवादी माहौल था उसके बाद वन संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण अधिनियम के कारण आदिवासियों को काफी दिक्कतें आई। इन्हीं सबके चलते नक्सलवादी जैसी ताकतों को पैर पसारने के लिए अवसर मिल गया। उन्होंने कहा कि नक्सली सिद्धांत हिंसा पर केन्द्रित है और आखिर में वह टूटेगी पर बहुत नुकसान के बाद। उन्होंने कहा कि बस्तर की परिस्थिति अलग है कितने भी तथाकथित गांधीवादी हों वे नक्सली सुरंग के बीच जाकर बताएं। विश्वरंजन ने कहा कि सोच वाला व्यक्ति निडर होता है। गांधी जी बड़े सत्यान्वेषी थे। उनकी सोच समतावादी थी। जो लोक के लिए सुविधाजनक है वह प्रासंगिक है।
कार्यक्रम के अंत में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन ने नंदकिशोर आचार्य और श्रीभगवान को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। आरंभ में अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया गया। इस अवसर पर श्रीमती इंदिरा मिश्र, विनोद कुमार शुक्ल, नंदकिशोर तिवारी, राजेन्द्र मिश्र, बसंत तिवारी, संस्कृति आयुक्त राजीव श्रीवास्तव, प्रभाकर चौबे, रवि भोई, अशोक सिंघई, केयूर भूषण, गुलाब सिंह, प्रभाकर चौबे, विनोद शंकर शुक्ल, सुभाष मिश्र, जयप्रकाश मानस, डी.एस.अहलुवालिया, डॉ. प्रेम दुबे, डॉ. वंदना केंगरानी, एच.एस.ठाकुर, एस. अहमद, संजीव ठाकुर, डॉ,सुधीर शर्मा, राम पटवा, हसन खान, अलीम रजा, नईम रजा, विनोद मिश्र, रवि श्रीवास्तव, विनोद साव, कमलेश्वर, बी. एल. पॉल, चित्रकार सुश्री सुधा वर्मा, एवं बड़ी संख्या में दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर और रायपुर के लेखक, पत्रकार, एवं प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।

राम पटवा

Saturday, January 16, 2010

कुसुमवीर के संग्रह 'मैं आवाज़ हूँ' का लोकार्पण



मैं आवाज़ हूँ श्रीमती कुसुमवीर की कविताओं का संग्रह है. इसमें जीवन से जुड़े अनेक संघर्ष और अनुभवों की अभिव्यक्ति अक्षरों से युक्त होकर सतरंगी इंद्रधनुष का सा आभास कराते हैं. ये कविताएं केवल भावभूमि के स्तर पर ही उदात्त अवस्था में ही नहीं पहुचांती बल्कि यथार्थ के धरातल पर सामाजिक विद्रूपताओं और स्वंय की भोगी गई मानसिक यंत्रणा को भी बेहद सूक्ष्मता के साथ अभिव्यक्ति प्रदान कर देती हैं.वे अपनी मैं आवाज़ हूं कविता में कहती हैं-

मैं, एक आवाज़ हूँ, जीती जागती,झंझावतों को चीरती, जुल्मों को बींधती, म्यान से निकल, अत्याचारों को रौंदती,
तुम सोचते हो, दबा सकोगे तुम, मेरी आवाज़ को, मेरी ताक़्त को,
मेरी शख्सियत को, मेरे वजूद को,
आज तक कौन बांध सका है, मुझे अपने पाश में, न मानव, न दानव,
न सूरज, न तारे,
गवाह हैं, ये सभी मेरे सत्ता के, मेरे आस्तित्व के, मेरी आवाज़ के,
मेरी आवाज़ युगों से पुकार रही है, मुझे जीने दो, खुली हवा में,
सांस लेने दो.

संग्रह के आगाज़ में दिनेश मिश्र अपनी टिप्पणी में भी यही कहते हैं-कुसुमवीर की कविताओं में जहां एक ओर मानवीय संबंधों की उलझनें सामने आती हैं, वहीं दूसरी ओर रिश्तों की सच्चाई भी कुछ तल्खी बयां करती हुई नज़र आती है.
कुसुमवीर की कविताओं के संग्रह का लोकार्पण आज इंडिया इंटर्नेशनल सेंटर में श्रीमती कमला सिंघवी के कर कमलों द्वारा सम्मानीय विद्वतजनों के समक्ष लोकार्पित हो गया. इस अवसर पर कवयित्री कुसुमवीर ने अपने इस संग्रह से कुछ कविताओं का कविता पाठ भी किया






रिपोर्ट और फोटो- शमशेर अहमद खान

Friday, January 15, 2010

मॉरीशस में विश्व हिन्दी दिवस 2010 समारोह

मॉरीशस की हिन्दी कविता के द्वार पर नई पीढ़ी की दस्तक

अनेक प्रतिष्ठित स्थानीय रचनाकारों का अब तक यही रोना रहा है कि युवा पीढ़ी हिन्दी लेखन के प्रति उदासीनता ली हुई है. अब तक की पाई जाने वाली रचनाओं का सृजन जाने-माने साहित्यिकों के द्वारा ही सम्पन्न हुआ है. परंतु कुछ दिनों से मॉरीशस की हिन्दी कविता की अविरल धारा को प्रवाहित करने में जुड़ गया है यह ‘उदासीन’ कवि-समुदाय. इस समुदाय में कविता-लेखन के प्रति चेतना तो बहुत पहले से ही जाग चुकी थी, अनेक युवा कवि व्यक्तिगत रूप से इस अथाह समुद्र में अपनी बूँद को अर्पित करते गए (बहुत कम recognition पाए हुए या कभी कभी बिना recognition के) मगर इस बार एक बहुत बड़े मंच ने इनका स्वागत किया. एक ऐसे मंच जिसकी तलाश यह पीढ़ी न जाने कब से करती आ रही थी.
मंच प्रदान किया हिन्दी दिवस 2010 के अवसर ने.

इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में, रविवार 10 जनवरी 2010 को, विश्व हिन्दी सचिवालय, शिक्षा, संस्कृति एवं मानव संसाधन मन्त्रालय, भारतीय उच्चायोग, इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र तथा हिन्दी संगठन के मिले-जुले सहयोग से विश्व हिन्दी दिवस 2010 मनाया गया जिसमें मुख्य अतिथि हंगरी के भारोपीय शिक्षा विभाग से आई हुई डॉ. मारिया नेज्यैशी थी. इस उपल्क्ष्य पर विश्व हिन्दी सचिवालय की एक रचना (एक विश्व हिन्दी पत्रिका) का भी लोकार्पण गणराज्य के राष्ट्रपति माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ जी के कर-कमलों द्वारा हुआ. इस अवसर पर भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर कविता-प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया. सम्मान उन सभी नवोदित कवियों का वास्तव में रहा जिनको अपनी कलात्मकता प्रेषित करने का एक मंच प्राप्त हुआ.
इस कविता प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर आए श्री गुलशन सुखलाल जिनकी कविता का शीर्षक ‘प्रगति’ रहा. अपनी कविता को हॉल से भरे श्रोताओं को सुनाते हुए गुलशन जी ने सभी लोगों को मुग्ध कर दिया. उन्हें अपनी रचना के ज़रिये अपने अतीत में ले गए और साथ ही साथ वर्तमान विकसित समाज/देश पर पुन: ग़ौर करने को विवश किया. 15,000 रु/- की धन-राशि पाने वाली गुलशन सुखलाल जी की कविता इस प्रकार है –

“प्रगति”

गाँव में
अब नहीं वे पेड़
जिनकी छाँव में
चितलपाटी बिछाए
कोमल ठण्डे पत्थर का तकिया बनाकर
गरमियों की दोपहर में आदमी
समुद्र में
बढ़ते ज्वार-भाटे से उठने वाली हवा की
गन्ध में
बेहोश
और वक्त बेवक्त बाँकने
वाले मुर्गों
जाने-अंजाने पर भोंकने वाले कुत्तों
किसी रसोईघर
में
ए.एम. रेडियो पर बजते
‘आप की पसन्द’ के जिंगल
और
फेरीवालों क...ी पैंक-पैंकू
के अलसाए सुरों की लोरी सुनता
दो पल ओठोंग जाए।

अब तो पेड़ों का हर झुर्मुट
अड्डा बना ताश का
जिसके आस-पास
घास काटने से डरती चाचियाँ
कि कहीं दोस्तों में हुई लड़ाई में
टूटी बोतलों के टुकड़े
पैरों में न चुभ जाएँ ।

अब नहीं खेले जाते वे फुटबॉल-मैच
जहाँ पिताजी के साथ साईकल पर
आस-पड़ोस के चार-पाँच बच्चे सवार
हो पहुँचते
जहाँ हर
गेंद के साथ दिल उछलता
जहाँ उबले
चने और ‘पिकसीदू’
‘कालामिन्दास’
और ‘सिपेक’ के लिए
इकट्ठा
किए पैसे खर्च किए जाते
जब हर जीत
पर
गाँव भर
में
जुलूस
निकाले जाते

अब तो
नुक्कड़ पर ही खेले जाते हैं मैच
और इनाम
होते हैं
शराब की
बोतलें

अब...
मुहल्ले के आर-पार जाने वाली
सड़क के दोनों छोह जैसे
शराबख़ाने के दो द्वार बने हों
जिनसे प्रवेश करने के बाद
गाँव की ही महिलाओं की
नज़रें झुक जाती हैं
तेज़ चलने लगते
और वे अपने-आप को
सभी कोणों से झाँकती
‘अपने’ लोगों की बेशर्म आँखों के नुकीले भालों को
अपने शरीर के अंग-प्रत्यंग भेदती हुई पाकर
मैला मेहसूस करती हैं

अब नहीं जाता कोई
पड़ोस में
चीनी, दाल, नमक की
कभी न वापस होने वाली
उधारी माँगने
टिन की डिबिया लिए हुए
‘बूयों’ के लिए माढ़ माँगने
मुरूंग के पत्ते सुरुकने
लटपट सब्ज़ी के लिए
करीपत्ता माँगने

अब घर-घर के फ्रिज में
फ़्रोज़न रखा होता है सब कुछ
भाजी, करीपत्ता, टमाटर की ‘प्यूरी’,
ठण्डे,
सम्बन्धों की तरह...
अब गाँव में...

- गुलशन सुखलाल

द्वितीय स्थान पर राधा माथुर की कविता ‘बेकार की बहस’ रही जिनको भारतीय उच्चायोग द्वारा 10, 000 रुपये की धन-राशि प्राप्त हुई.
तृतीय स्थान पर कल्पना लालजी की कविता ‘बाबुल का आंगन’ जिन्हें 8,000 रु/- की धन-राशि प्राप्त हुई.
तीन सांत्वना पुरस्कार रखे गए जिनको प्रत्येक 5,000 रु/- की धन-राशि प्राप्त हुई जिनमें धनराज शम्भू, विनय गुदारी, और एक भारतीय भाई साहब की कविताएँ रहीं.
ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस कविता-लेखन प्रतियोगिता में करीब बीस कविताओं का चयन किया गया था. उन कवियों ने 19 दिसम्बर 2009 को अपनी कविताओं को जूरी सदस्यों - भानुमति नागदान, सूर्यदेव सिबोरत तथा रामदेव धुरन्धर जी – के समक्ष पढ़ा था.
एक और विशेष बात, अनेक नए कवि भी सामने आए, उसी तथाकथित ‘उदासीन युवा-पीढ़ी’ से जिनमें कुछ नाम ऐसे हैं जो निकट भविष्य में ही मॉरीशस के हिन्दी-साहित्य के आधार-स्तम्भ को अधिक पुष्ट करने में अपनी महत्वपूर्ण योगदान निभाएँगे. ये नाम हैं – अंजलि हजगैबी, अर्विन्दसिंह नेकितसिंग, वशिष्ठ झम्मन, सहलील तोपासी, जीष्णु होरीशरण, रीतेश मोहाबीर आदि.
इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द के छात्रों के द्वारा संगीत के कुछ मनोरम प्रस्तुतीकरण भी हुए.
हंगरी की डॉ. मारिया नेज्यैशी ने अपने भाषण में हिन्दी के प्रति अपने विचार व्यक्त किये. हंगरी में हिन्दी की स्थिति पर चर्चा करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि विदेश में बसे हिन्दी के शिक्षकों को विश्व हिन्दी सचिवालय की तरफ से प्रशिक्षण सम्बन्धी सहयोग की प्राप्ति होनी चाहिए.
गणराज्य के राष्ट्रपति ने अपना भाषण हिन्दी में दिया. इसके अलावा, भारतीय उच्चायुक्त, महामहिम श्री मधुसुदन गणपति ने मॉरीशस में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए व्यक्तिगत तथा संस्थागत प्रयासों की प्रशंसा की.
पूरे कार्यक्रम का संचालन भारतीय उच्चायोग के द्वितीय सचिव एवं शिक्षा अधिकारी तथा वरिष्ठ दलित साहित्य के रचनाकार एवं आलोचक, डॉ. जयप्रकाश कर्दम जी ने किया.

Tuesday, January 12, 2010

कुलदीप श्रीवास्तव को भोजपुरी पत्रकारिता गौरव सम्मान



दिल्ली में आयोजित विश्व भोजपुरी सम्मेलन में पूर्वांचल एक्सप्रेस डॉट कॉम के प्रधान संपादक एवं भोजपुरी संसार पत्रिका के दिल्ली प्रभारी कुलदीप श्रीवास्तव को भोजपुरी पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुमुल्य एवं अप्रतिम योगदान के लिए पूर्वांचल एकता मंच ने भोजपुरी पत्रकारिता गौरव सम्मान से सम्मानित किया है। उन्हें सम्मान प्रदान किया प्रख्यात लोक गायिका श्रीमती मालिनी अवस्थी ने।

कुलदीप श्रीवास्तव के बारे में टिप्पणी करते हुए मालिनी अवस्थी ने कहा कि आज भोजपुरी पत्रकारिता को कुलदीप जैसे कर्मठ एवं जुझारू पत्रकारों की जरूरत है। पहली बार भोजपुरी फिल्म सर्वेक्षण करवाकर कुलदीप ने न सिर्फ भोजपुरी फिल्मों को लोकप्रिय बनाया है वरन् आम जनता को भी टॉप हीरो-हिरोइन, गायक-गायिका एवं गीतकार आदि चुनने का अवसर दिया है। इन्हें कोटिश बधाई।

पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष श्री शिवजी सिंह ने कहा कि कुलदीप पत्रकारिता के माध्मय से न सिर्फ सामाजिक सरोकारों का निर्वाह कर रहें है वरन् भोजपुरी की लड़ाई भी लड़ रहे है। कुलदीप भोजपुरी की आवाज को दिल्ली से अमेरिका और इंग्लैण्ड तक ले जाते है, खबरों को विश्व पटल पर फैलाते हैं। इन्हीं की वजह से बजता यहॉ है तो गूँजता सात समुंदर पार है। कुलदीप श्रीवास्तव को सम्मानित कर पूर्वांचल एकता मंच गर्वांवित है।

फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिंहा, भोजपुरी गायक मनोज तिवारी, महुआ चैनल के चेयरमैन पीके तिवारी, भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दुबे एवं उतर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री जगदिम्बका पाल के साथ लाखों दर्शको की उपस्थिति में कुलदीप श्रीवास्तव को यह सम्मान दिया गया।

चलनी में पानी का लोकार्पण

पूर्वांचल एकता मंच द्वारा दिल्ली में आयोजित विश्व भोजपुरी सम्मेलन में उतर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस सांसद श्री जगदिम्बका पाल के हाथों भोजपुरी के प्रख्यात साहित्यकार मनोज भावुक के गीत संग्रह चलनी में पानी का लोकार्पण हुआ।

इस अवसर पर फिल्म अभिनेता श्री शत्रुधन सिंहा, महुआ चैनल के चेयरमैन श्री पीके तिवारी, भोजपुरी सुरसम्राट मनोज तिवारी एवं लोकगायिका मालिनी अवस्थी जैसी हस्तियां मौजूद थीं।

लोकार्पित पुस्तक की प्रशंसा करते हुए पूर्वांचल एकता मंच के अघ्यक्ष शिवजी सिंह ने कहा कि मनोज भावुक भोजपुरी के लोकप्रिय गजलकार एवं फिल्म समीक्षक है और इन्होने अफ्रीका एवं ग्रेट ब्रिटेन आदि देशों में भोजपुरी का परचम लहराया है। इसलिए भोजपुरी साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट, बहुआयामी और बहुमुल्य योगदान के लिए इन्हें पूर्वाचल एकता मंच की ओर से भोजपुरी के अन्य शीर्ष कवियों के साथ डॉ प्रभुनाथ सिंह सम्मान से नवाजा गया।

विदित हो कि मनोज भावुक को उनके भोजपुरी गजल संग्रह ‘तस्वीर जिन्दगी के’ के लिए भी सन् 2006 में भारतीय भाषा परिषद् सम्मान से सम्मानित किया गया था। उन्हें सम्मान प्रदान किया था ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी एवं आस्कर अवार्ड से सम्मानित सिंने जगत के नामी गीतकार गुलजार ने। एक मात्र भोजपुरी साहित्यकार कों यह सम्मान प्राप्त है।



चलनी में पानी भावुक का दोहा एवं गीत संग्रह है। पुस्तक की भूमिका में डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव ने लिखा हैं कि यह जिन्दगी एक चलनी समान है। आदमी जिन्दगी भर इससे पानी उलीचता रह जाता है फिर भी आखिर में हासिल कुछ भी नहीं होता। नश्वरता दर्शन का ऐसा विम्ब साहित्य में दुर्लभ नहीं तो कम अवश्य है। चलनी में पानी सहज प्रयोग में भी गूढ़ दर्शन को व्यक्त करता है। भावुक ने एक दोहा में कहा है -
चलनी में पानी भरत बीतल उम्र तमाम
तबहू बा मन में भरम कइनी बहुते काम !

विश्व भोजपुरी सम्मेलन में उपस्थित लाखों दर्शको ने तालियॉ बजाकर मनोज भावुक के इस लोकार्पित पुस्तक का स्वागत किया।

Saturday, January 9, 2010

पिछड़ा वर्ग के पास कोई फिलास्फर नहीं है : राजेन्द्र यादव



आज दिनांक ०९/०१/२०१० को साहित्य अकादेमी सभागार में रमणिका फाउंडेशन एवं शिल्पायन प्रकाशन द्वारा आयोजित लोकार्पण समारोह में संजीव खुदशाह द्वारा लिखित पुस्तक 'आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग` का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार एवं 'हंस` पत्रिका के संपादक श्री राजेन्द्र यादव ने किया। मुख्य अतिथि श्री राजेन्द्र यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि चार पांच ऐसी जातियां हैं जो कि न दलित हैं न पिछड़ी हैं। जिन्हें त्रिशंकु जातियां भी कह सकते हैं। इन जातियों के पास कोई फिलोस्फर नहीं है, जबकि दलितों के पास डॉ. अम्बेडकर तथा फूले हैं। उन्होंने आगे कहा कि जातिवाद की जड़ता परिवार में निहित है। भारतीय समाज का पारिवारिक ढांचा इतना मजबूत है कि टूटता ही नहीं है। व्यक्तिगत स्तर पर हम लोग जो भी क्रांतिकारी चर्चा कर लें, लेकिन परिवार को हम बदल नहीं सकते। इसलिए हम परिवार से कटे लोग हैं। समाज के परिवर्तन के लिए परिवार की सोच में परिवर्तन लाना होगा। उन्होंने विश्लेषणात्मक शोधात्मक एवं वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री एवं युद्धरत आम आदमी की सम्पादक सुश्री रमणिका गुप्ता ने अपने विचार रखते हुए कहा कि ये सुखद बात है कि आधुनिक भारत में पिछड़े वर्ग की जांच पड़ताल लेखक संजीव खुदशाह ने अंबेडकरवादी दृष्टिकोण से की है। विडंबना ये है कि हमारा पढ़ा-लिखा समाज भी आज तक अपनी जाति नहीं छोड़ पाया है, तो हम अनपढ़ समाज से इसकी उम्मीद कैसे कर सकते हैं, जो सदियों से जाति की गुलामी को ढोता आ रहा है। समाजशास्त्रा के इस विषय पर ये पुस्तक लिखकर श्री संजीव खुदशाह ने गंभीर बहस का एक अच्छा मौका दिया है।

कार्यक्रम के आरंभ में पुस्तक पर समीक्षात्मक आलेख का पाठ श्री रमेश प्रजापति ने किया। तदोपरांत वरिष्ठ आलोचक एवं समाज सेवी श्री मस्तराम कपूर ने अपने वक्तव्य में कहा पिछड़े वर्ग की समस्या पर चर्चा करने से पूर्व पिछड़ा वर्ग को परिभाषित करना आवश्यक है। जातीय आधार पर जनगणना कराने से इनकी वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो सकता है, लेकिन नेहरू ने इसे होने नहीं दिया। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आलोचक श्री मैनेजर पाण्डेय ने अपने वक्तव्य में कहा जातिवाद देश के अतीत से भी जुड़ा है और देश के भविष्य से भी। उन्होंने लेखक से तथा उपस्थित सभी साहित्यकारों से आह्न किया कि जाति-व्यवस्था का केवल विश्लेषण न कर वे जाति व्यवस्था के विरोध में हुए आंदोलनों का जिक्र करते हुए, जाति-व्यवस्था के विरोध में लिखें। पुस्तक के लेखक संजीव खुदशाह ने अपने लेखकीय वक्तव्य में कहा कि ऐसा नहीं कि पिछड़े वर्ग के पास फिलोस्फर नहीं थे। फुले एवं पेरियार पिछड़ी जाति के लेखक थे लेकिन पिछड़ों ने उन्हें न मानकर दलितों ने माना। कार्यक्रम का संचालन रमणिका फाउंडेशन के मीडिया प्रभारी श्री सुधीर सागर द्वारा किया गया।


प्रस्तुति : सुधीर सागर
मीडिया प्रभारी, रमणिका फाउंडेशन
ए-२२१, ग्राउंड फ्लोर, डिफेंस कॉलोनी, नई दिल्ली-२४
011-46577704,011-24333356

‘आनंदम’ गतिविधियों में एक नया पृष्ठ – ‘विचार-गोष्ठी’



जगदीश रावतानी की साहित्यिक व संगीत संस्था ‘आनंदम’ की दिसंबर 2009 की गोष्ठी में एक निर्णय यह भी लिया गया था कि वर्ष 2010 से ‘आनंदम’ संस्था प्रतिमाह की काव्य-गोष्ठियों के अतिरिक्त किसी भी ज्वलंत विषय से जुडी एक ‘विचार-गोष्ठी’भी आयोजित करेगी. दि. 3 जनवरी 2010 की गोष्ठी में ‘आनंदम’ के उक्त निर्णय के कार्यान्वयन का शुभारंभ जगदीश रावतानी के पश्चिम विहार स्थित निवास पर किया गया.

इस गोष्ठी में प्रेमचंद सहजवाला ने अपनी अप्रकाशित अंग्रेज़ी पुस्तक ‘Hinduism- Through Modern Perception’ के प्रथम दो अध्याय पढ़े. गोष्ठी में सर्वश्री जगदीश रावतानी (अध्यक्ष), डॉ. विजय, मनमोहन तालिब, भूपेंद्र, मुनव्वर सरहदी, धरमदासानी तथा सैलेश सक्सेना ने भाग लिया.

पुस्तक के प्रथम अध्याय के प्रारंभ में ही प्रेमचंद सहजवाला ने प्रसिद्ध इतिहासकार बी.आर.नंदा की इतिहास पुस्तक ‘The Making of a Nation’ से एक बहुत रोचक प्रसंग पढ़ा. इस प्रसंग के अनुसार एक ब्रिटिश ICS अधिकारी एच.एक.किश्क ने उन्नीसवीं शताब्दी के अपने यात्रा वृतांतों में उन तीर्थ यात्रियों का वर्णन किया है जो बहुत हास्यास्पद तरीके से लखनऊ से उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिरों तक जा रहे थे. वे सब न तो रेलगाड़ी से जा रहे थे न बस से, न हवाई जहाज़ से न पैदल. वे सब अपनी जगह पर खड़े होने के बाद ज़मीन पर लेट जाते तथा अपने हाथ आगे को खोल कर कुल 8 फुट ज़मीन नाप लेते. फिर खड़े हो कर अगले 8 फुट पर लेट जाते और इस प्रकार लखनऊ से जगन्नाथ पुरी तक का फासला केवल लेट लेट कर पूरा करते. 8 फुट प्रति बार के हिसाब से वे 660 बार लेट कर दिन भर में 4 मील तय करते और इस प्रकार लगभग डेढ-दो वर्ष में जगन्नाथ पहुँच जाते. लेखक सहजवाला ने बताया कि उन्होंने पिछले वर्ष ‘छठ पूजा’ के अवसर पर दिल्ली की यमुना नदी के किनारे कुछ नौजवानों को इसी प्रकार लेट लेट कर काफी फासले से नदी के किनारे तक आते देखा था.

इस अध्याय में उन्होंने पारंपरिक हिंदू समाज के पिछड़ेपन की और संकेत करते इतिहास के एक अन्य प्रसंग को भी पढ़ा. सन 1960 के ‘हिंदू अधिनियम’ के अनुसार कोई भी हिंदू बालिका यदि बचपन में ही विवाह कर लेती है तो उस का पति तब तक उस के साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकता जब तक वह 10 वर्ष की न हो गई हो. परन्तु कुछ 10 वर्षीय बालिकाएं इस प्रकार सेक्स की प्रक्रिया को न सह कर मर गई तो देश के अनेक सुधारकों ने इस न्यूनतम आयु को बढ़ाने का अभियान चलाया जो दो दशक से अधिक समय तक चला. आखिर सन् 1891 में ब्रिटिश ने भारत के सुधारकों की मांग पर एक नया विधेयक पारित किया – ‘The Age of Consent Bill – 1891’. सहजवाला ने बताया कि इस विधेयक के पारित होते ही देश के पुरातनपंथी रूढ़िवादी लोग बौखला गए और इस के सब से बड़े विरोधी थे लोकमान्य तिलक. कलकत्ता में ऐसे, शास्त्रों की लकीर की फकीरी करने वाले पोंगा पंडितों ने दो लाख लोगों की एक रैली निकाली जिसमें नारे लगाए गए – ‘महारानी, हमारा धर्म बचाओ, महारानी हमारे शास्त्र बचाओ’. यह निर्णय भी लिया गया कि एक प्रतिनिधि मंडल इंग्लैंड जा कर महारानी से आग्रह करेगा कि ऐसा शास्त्र-विरोधी विधेयक वापस लिया जाए.

पूना में ऐसे दकियानूसी लोगों के कोप का भाजन बने प्रसिद्ध सुधारक गोपाल गणेश अगरकर जिनका पुतला बनाया गया. पुतले के एक हाथ में उबला हुआ अंडा और दूसरे में व्हिस्की की बोतल पकड़ा दी गई और उन्हें अंग्रेज़ियत का पिट्ठू घोषित किया गया. फिर पूरे पूना शहर में घुमाने के बाद पुतले का दाह-संस्कार किया गया.

इन अध्यायों में सहजवाला ने हिंदू समाज के सब से बड़े अभिशाप यानी जाति-प्रथा पर खूब प्रहार किये. उन्होंने केरल के उन बदनसीब दलितों के प्रसंग लिया जिन्हें देख कर स्वामी विवेकानंद ने केरल राज्य को ही एक ‘मानसिक हस्पताल’ घोषित कर दिया. लेख में बताया गया कि पिछली शताब्दी में केरल की दलित जातियों को कमर से ऊपर कपड़ा पहनने तक का अधिकार नहीं था. उनकी महिलाऐं भी केवल कमर के नीचे का कपड़ा यानी पेट्टीकोट आदि पहन सकती थी पर कमर से ऊपर का बदन निर्वस्त्र होने के कारण घर से निकल तक नहीं पाती थी. आखिर कुछ ईसाई मिशनरियों की मदद से वहाँ के दलितों ने अपनी महिलाओं के लिए ‘Upper Cloth Agitation’ यानी ‘ऊपरी-वस्त्र आन्दोलन’ किये और सफल हुए. ईसाई मिशनरियों के अलावा वामपंथी दलों की सहायता से अंततः एक समय ऐसा भी आया कि साक्षरता में केरल प्रदेश पूरे देश का अग्रणी प्रदेश बना.

दूसरे अध्याय में ‘मनु-स्मृति’ का ज़िक्र भी है जिस में सहजवाला ने बताया कि मनु ने अकेले हिंदू समाज का वह संविधान नहीं लिखा था, वरन तात्कालीन क्षत्रिय राजाओं की मनमानी व प्रजा के संचालन के तरीकों के अनुसार उन्होंने ने हिंदू समाज का संविधान बनाया. उस पर तुर्रा यह कि मनु ने उस संविधान पर ईश्वर की मोहर लगा दी कि यह सारा संविधान उन्हें परम पूजानीय परमात्मा ने लिखवाया है. परमात्मा का ठप्पा लगते ही संविधान स्वयमेव पवित्र ग्रंथों की श्रेणी में आ गया. इस संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर में ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम व सन्यासाश्रम का पालन करेगा. परन्तु ब्रह्मचर्याश्रम में लड़कियों की शिक्षा का कोई ज़िक्र नहीं तथा वानप्रस्थाश्रम में कोई भी साठ वर्षीय व्यक्ति वनों में जा कर झोंपड़ी में रहेगा और शास्त्राध्ययन करता रहेगा, जब कि उस की पत्नी का कोई उल्लेख उस में नहीं है. क्या पत्नी अपनी संतान पर आश्रित रहेगी? साथ ही मनु-स्मृति के कई अमानवीय प्रावधानों के ज़िक्र करते हुए सहजवाला ने बताया कि यदि कोई ब्राह्मण किसी दलित महिला से शादी करता भी है तो वह उसे अपने घर, यानी ससुराल में नहीं लाएगा. वह मायके में ही रहेगी और जब कभी ब्राह्मण को उस के साथ रात बितानी होगी तो वह अपना खाना व पीने का पानी तक अपने घर से ले जाएगा. पत्नी के साथ सम्भोग से पहले वह पूरे शरीर को घी से मलेगा और इस पर भी तुर्रा यह कि उस दलित पत्नी से जो संतान होगी, उसे ब्राह्मण पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार न रहेगा!

यदि शूद्र ने ब्राह्मण को गाली दे दी तो दंड-स्वरुप उसे अपनी जिव्हा पर जलता हुआ लोहा रखना पड़ेगा तथा यदि शूद्र ने ब्राह्मण को लात मार दी तो उस का पांव काट दिया जाएगा और थप्पड़ मारा तो हाथ. यदि दलित किसी ब्रह्मिण महिला का बलात्कार करेगा तो सज़ाए-मौत और यदि इस से उलट ब्राह्मण किसी दलित महिला का बलात्कार करेगा तो केवल कुछ धन-राशि दंड-स्वरुप देने से ही न्याय हो गया समझो.

क्योंकि लेखक अनुच्छेद-दर-अनुच्छेद हिंदू समाज की सर्वाधिक कुत्सित प्रथाओं पर प्रहार कर रहे थे, इसलिए गोष्ठी के अंत में खूब गर्मा-गर्म चर्चा चली. धरमदासानी ने सीधा सवाल पूछा कि कभी आप तीर्थ-यात्रियों की बात करते हैं, कभी जाति-प्रथा की तो कभी बाबा साहेब आम्बेडकर की, आखिर आप कहना क्या चाहते हैं? सहजवाला ने बताया कि क्यों कि उन्होंने पुस्तक के आठ अध्यायों में से केवल दो ही पढ़े, अतः पूरी पुस्तक के पढ़े जाने पर यही पता चलेगा कि वे हिंदू समाज की असामान्यताओं का पर्दा-फाश कर रहे हैं तथा अमानवीय प्रथाओं यथा सती प्रथा आदि पर समाज के बुद्धिजीवियों को आड़े हाथों ले रहे हैं. डॉ. विजय ने पूछा कि आप Hinduism को कैसे परिभाषित करते हैं? सहजवाला ने बताया कि Hinduism को Way of Life कर के परिभाषित किया गया है, जिस में विवाह के अनेक प्रकारों में से ‘राक्षस विवाह’ भी था जिस के अनुसार कोई क्षत्रिय किसी भी लड़की का अपहरण कर सकता है और यदि किसी की हिम्मत हो तो युद्ध कर के अपहृत लड़की को बचा ले. क्षत्रिय युद्ध जीतने पर अपहृत लड़की से ज़बरदस्ती विवाह कर सकता है. उदहारण के तौर पर उन्होंने भीष्म पितामह का प्रसंग लिया जिन्होंने तीन राजकुमारियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का अपहरण उनके राज-महल में हो रहे स्वयम्वर से ही कर लिया था. राक्षस विवाह का सन्दर्भ दे कर भीष्म पितामह ने कहा था कि इस प्रकार अपहरण करना ‘मनु-स्मृति’ के अनुसार जायज़ था. परन्तु सहजवाला ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरु जैसे विचारकों ने Live and Let Live को Hinduism परिभाषा कर के माना है. मनमोहन तालिब ने सहजवाला से सीधा प्रश्न किया कि क्या आप Hinduism में सचमुच विश्वास करते हैं? सहजवाला ने कहा कि वे पहचान से हिंदू हैं, पर हृदय से वे वास्तव में Buddhist हैं और गौतम बुद्ध की सरल शिक्षाओं में अधिक विश्वास करते हैं. बहस के अंत में ‘आनंदम’ अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने कहा कि धर्म रूपी पहचान ने व्यक्ति और देश को बहुत नुकसान पहुँचाया है. हमें चाहिए के हम अपनी पहचान एक इंसान के रूप में दें, न कि राष्ट्र या धर्म के रूप में . उनकी इस बात से सभी सहमत थे अंत में उन्होंने इसी सन्दर्भ में अपना एक ताज़ा शेर सुनाया:

ज़रूरत नहीं मंदिरों मस्जिदों की,
मैं इंसान में ही खुदा चाहता हूँ.

इस पर खूब तालियाँ बजी और धन्यवाद प्रस्ताव के साथ गोष्ठी संपन्न हुई.

रिपोर्ट- ‘आनंदम’ रिपोर्ट विभाग

बीजिंग के भारतीय सांस्कृतिक केंद्र में चित्र कला प्रदर्शनी का आयोजन

(चित्रों को बड़ा करके देखने लिए निम्नलिखित चित्रों पर बारी-बारी क्लिक करें)

भारतीय राजदूतावास के सांस्कृतिक केंद्र पर श्रीमती अंजुला शर्मा के रंगचित्रों की एक भव्य कला प्रदर्शनी आयोजित की गयी.प्रदर्शनी का उद्घाटन चीन में भारत के राजदूत महामहिम डॉ एस.जयशंकर ने किया.प्रदर्शनी में भारतीय राजदूतावास के सदस्यों के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय जगत के जानेमाने विशिष्ट राजनयिक एवं बीजिंग में भारतीय समुदाय के सदस्य उपस्थित थे.सभी विशिष्ट अभ्यागत अतिथियों ने अंजुला शर्मा के कलाकृतियों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की.अपने उद्घाटन भाषण में महामहिम राजदूत महोदय ने कहा कि अंजुला शर्मा की पेंटिंग कलाकृति में भारतीय सांस्कृतिक विम्बों के मूर्तीकरण के साथ साथ भारतीय पारंपरिक अभिप्रायों को भी रेखांकित किया गया है.राजस्थानी परम्परा के निर्वाह के साथ साथ लोक तत्त्व का चित्रांकन अंजुला शर्मा के चित्रों की विशेषता है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि चीन में आयोजित यह प्रदर्शनी मात्र औपचारिक प्रदर्शनी नहीं है बल्कि यह सेतु के रूप में भारत-चीन के बीच सांस्कृतिक अभिप्रायों का आदान-प्रदान है.


अंजुला शर्मा ने भारतीय परम्परा को अपनी कला में जिया है.उन्होंने तैलरंगों का प्रयोग जिस रूप में किया है वह दर्शनीय है.उनके तूलिकाघात में अजीब सी गति दिखायी देती है.घात दर घात तूलिका स्वयं आगे बढ़ती गयी है और एक रास्ता बनाती गयी है.कहीं कहीं बोल्ड पैच तो कहीं कहीं खुरदुरेपन की झलक काफी आकर्षक दिखायी देती है.जब वे कैनवास पर होती हैं या रंग रोगन करती हैं तो स्पष्ट दीखता है कि मस्तिष्क और हाथ का तारतम्य कितना सधा हुआ है. रंग के कई शेड्स आते हैं जो स्थिति-दर स्थिति उनकी कलाकृतियों के भावार्थ तो बताते ही हैं,आधुनिक कला-कोष को भी समृद्ध भी करते हैं.राजदूतावास की कला-दीर्घा में प्रदर्शित अधिकांश कलाकृतियाँ राजस्थानी आदिवासी स्त्रियों के आदिम वेश-भूषा,आभूषण एवं उनके सांस्कृतिक अभिप्रायों के साथ प्रदर्शित हैं जोप्रभावशाली यथार्थ विम्बों का सृजन करती हैं.कलादीर्घा में कुल ४० कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गयी हैं.इनमें सिल्क पर पोस्टल कलर,वाटर कलर एवं तैल-चित्र उल्लेखनीय हैं.स्थानीय चीनी दर्शकों एवं कलाकारों ने राजस्थानी 'मंडाना' शैली को काफी पसंद किया.

इन रंगों की भाषा को पढ़ाते हुए अंजुला शर्मा ने अनेक ऐसे रंगों का प्रयोग किया है जो काल के परिप्रेक्ष्य में क्षण और पल को परिभाषित करते हैं.ज्यादातर कलाकृतियों में उद्दीप्त रंगों का प्रयोग हुआ है.रचना,सृजन और चिंतन इन कलाकृतियों के मूल में है और यही अंजुला शर्मा की विशेषता है.

प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर महामहिम राजदूत डा.एस.जयशंकर के अतिरिक्त दूतावास के उपमुख्य श्री जय दीप मजूमदार,श्री एन. आर.सिंह.श्री बी. के. सिंह,श्री वी.पी.चौहान,डॉ.देवेन्द्र शुक्ल एवं भारतीय पर्यटन केंद्र के निदेशक श्री शोएब अहमद तथा अन्य विशिष्ट राजनयिक उपस्थित थे.

कार्यक्रम का संयोजन और संचालन श्रीमती जसमिंदर कस्तूरिया ने किया.

प्रस्तुति- डॉ. देवेन्द्र शुक्ल
भारतीय दूतावास, बीजिंग, चीन

Friday, January 8, 2010

ग़ज़ल लेखन प्रतियोगिता में जतिन्दर परवाज़ को प्रथम पुरस्कार


पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद कैलाश जोशी जतिन्दर परवाज़ को पुरस्कृत और सम्मानित करते हुए

भोपाल।
दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय भोपाल द्वारा युवा सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय हिमाक्षरा साहित्य परिषद के सहयोग से अखिल भारतीय स्तर पर एक ग़ज़ल लेखन प्रतियोगिता का आयोजित किया गया। इस प्रतियोगिता में देश भर से युवा शायरों ने भाग लिया, जिसके संयोजक श्री इसरार कुरैशी ‘गुणेश थे’। प्रतियोगिता के पहले पुरस्कार के लिए पठानकोट के जतिन्दर परवाज़ को पुरस्कृत किया गया। दूसरा दमोह के ताबीश नैय्यर तथा जबलपुर की अमिता श्रीवास्तव ‘तमन्ना’ को तीसरे स्थान के लिए पुरस्कृत किया गया। साथ ही हरदा के मंसूर अली मंसूर को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। 29 एवं 30 दिसम्बर को भारत भवन में दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के स्थापना उत्सव के अवसर पर अयोयित एक भव्य 'पुरस्कार वितरण समारोह' में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद श्री कैलाश जोशी ने अपने कर कमलों से इन पुरस्कारों का वितरण किया । इस अवसर पर संग्रहालय के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने आज के दौर में बढ़ती व्यावसायिक प्रवृत्ति पर गहरी चिन्ता व्यक्त की और संग्रहालय के दस्तावेज़ीकरण के काम को अनुकरणीय माना। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित भारतीय स्टेट बैंक भोपाल वृत्त के मुख्य महाप्रबंधक श्री एम.भगवन्त राव ने अपने उद्‍बोधन में संग्रहालय के विविध प्रयत्नों को रेखांकित करते हुए समाज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। विशिष्ट अतिथि बतौर स्व. दुष्यन्त कुमार की जीवन संगिनी श्रीमती राजेश्वरी दुष्यन्त कुमार भी उपस्थित थीं।


एक अन्य चित्र

रिपोर्ट: वसन्त सकरगाये


प्रेषक:
संगीता राजुरकर (सहायक निदेशक)
दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय
एफ-50/17, दक्षिण तात्या टोपे नगर
शरद जोशी मार्ग, भोपाल-462003