Saturday, June 27, 2009

कें. हिं. प्र. सं. की 333वीं गहन हिंदी कार्यशाला सम्पन्न


प्रतिभागियों के अभिवादन संदेश संप्रेषित करते सहायक निदेशक शमशेर अहमद खान और अन्य अधिकारीगण

नई दिल्ली, 2-ए, पृथ्वी राज रोड स्थिति कें.हिं.प्र.सं. के अल्पकालिक गहन प्रशिक्षण एकक द्वारा आयोजित 333वीं गहन हिंदी कार्यशाला का समापन 26 जून 2009 को सफलतापूर्वक कें.हिं.प्र.सं. के प्रशासनिक अधिकारी श्री शिवपाल नेगी के सानिध्य में प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण वितरित कर एवं आशीर्वचन देकर सम्पन्न हो गया। यह कार्यशाला 22 जून 2009 से 26 जून 2009 तक आयोजित की गई थी, जिसमें देशभर के केंद्रीय कार्यालयों के 42 प्रतिभागी सम्मिलित हुए थे। इस कार्यशाला में जहां राजभाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति, मानक वर्तनी, पारिभाषिक शब्दावली, पत्राचार के विविध रूप, टिप्पण आलेखन आदि विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ वहीं 'यूनिकोड और उपलब्ध हिन्दी सॉफ्टवेयर' पर भी एक व्याख्यान रखा गया। इस व्याख्यान को शैलेश भारतवासी ने सफलतापूर्वक लिया जिसे प्रतिभागियों ने काफी सराहा।
इस कार्यशाला के समन्वयक वरिष्ठ सहायक निदेशक श्री शमशेर अहमद खान थे। कार्यशाला के अन्य प्रमुख वक्ताओं ने अपने मूल्यांकन रिपोर्ट में वक्ताओं के व्याख्यान शैली की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
मुख्य अतिथि श्री शिवपाल नेगी ने अपने उद्बोधन भाषण में इस कार्यशाला के सफलतापूर्वक संचालन में जहां श्री शमशेर अहमद खान की तारीफ की वहीं दो अन्य वक्ताओं वरिष्ठ सहायक निदेशक श्री एम. एल. शर्मा एवं श्रीमती (डॉ.) शोभा रानी के सकारात्मक सहयोग की ओर भी इंगित किया। उन्होंने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोगों के श्रम की सार्थकता तभी फलीभूत हो सकती है जब आप लोग अपने-अपने कार्यालयों में जाकर जो कुछ यहां सीखा है, हिंदी में कार्य करें।
ध्यातव्य हो कि इस कार्यशाला का उद्‍घाटन संस्थान के संयुक्त निदेशक श्री एम.एस. दोहरे ने किया था। इस अवसर पर कार्यक्रम के समन्वयक वरिष्ठ सहायक निदेशक श्री शमशेर अहमद खान के साथ ही वरिष्ठ सहायक निदेशक श्री एम. एल. शर्मा एवं श्रीमती (डॉ.) शोभा रानी थीं।


मंचासीन प्रशिक्षक शोभा रानी, शैलेश भारतवासी, शमशेर अहमद खान, एम. एल. शर्मा और प्रतिभागी-1



मंचासीन प्रशिक्षक और प्रतिभागी-2

Friday, June 26, 2009

आलोक श्रीवास्तव को दुष्यंत कुमार पुरस्कार

मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी ने इस बार अपना प्रतिष्ठित 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार' युवा ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव को देने की घोषणा की है। आलोक को यह पुरस्कार उनके बहुचर्चित ग़ज़ल संग्रह 'आमीन' के लिए दिया जाएगा। साल 2007 में राजकमल प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इस संग्रह के लिए आलोक श्रीवास्तव को मिलने वाला यह तीसरा प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार है। इससे पहले उन्हें राजस्थान के 'डॉ. भगवतीशरण चतुर्वेदी पुरस्कार' और प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह के हाथों मुंबई में प्रतिष्ठित 'हेमंत स्मृति कविता सम्मान' से नवाज़ा जा चुका है। हाल ही में ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह ने अपने नए एलबम 'इंतेहा' में आलोक की ग़ज़ल को अपनी आवाज़ दी है। प्रख्यात शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्‍गल भी अपने चर्चित एलबन 'कोशिश' में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्मों के साथ आलोक के गीतों को स्वर दे चुकी हैं। पेशे से टीवी पत्रकार आलोक, मूलत: विदिशा (म.प्र.) के हैं और इन दिनों दिल्ली में न्यूज़ चैनल 'आजतक' से जुड़े हैं।

Thursday, June 25, 2009

गोपाल दास नीरज ने किया अमर ज्योति के पहले ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण


पुस्तक लोकार्पित करते अतिथिगण

अलीगढ़, 21 जून 2009
डा. अमर ज्योति 'नदीम' के प्रथम ग़ज़ल संग्रह 'आँखों में कल का सपना है' का लोकार्पण पद्मभूषण गोपाल दास नीरज ने होटल 'मेलरोज़ इन' में किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जयपुर से पधारे प्रख्यात शायर लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
ने की। कार्यक्रम का शुभारम्भ गीतकार बनज कुमार 'बनज' की सरस्वती वन्दना से हुआ। अर्चना'मीता', प्रो.आलोक शर्मा और पुश्किन द्वारा अतिथियों का माल्यार्पण द्वारा अभिनन्दन किया गया। विमोचन करते हुए पद्मभूषण गोपाल दास नीरज ने कहा कि नदीम की ग़ज़लों में ग़ज़ल के सभी तत्त्व विद्यमान हैं और वे एक समर्थ शायर व गज़लकार हैं। इस अवसर पर नीरज ने ग़ज़ल की विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए ग़ज़ल को आधुनिक काव्य की एक लोकप्रिय विधा बताया और अपने गीत व ग़ज़ल भी सुनाये।

नदीम ने अपने लोकार्पित संग्रह से कुछ गज़लें पढीं और मनमोहन ने संग्रह की एक ग़ज़ल की संगीतमय प्रस्तुति की। नदीम की ग़ज़ल 'हम जिये सारे खुदाओं, देवताओं के बगैर' को ख़ूब सराहना मिली। जयपुर से पधारे ख्यातिप्राप्त गज़लकार व समीक्षक अखिलेश तिवारी, अरुणाचल प्रदेश से पधारे डा.मधुसूदन शर्मा व हिन्दी साहित्य के प्रोफेसर प्रेमकुमार ने संग्रह के बारे में अपने-अपने समीक्षात्मक आलेख भी पढ़े। प्रेम पहाड़पुरी व सुरेन्द्र सुकुमार ने नदीम के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।

समारोह के उत्तरार्द्ध में एiक कवि-गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें अशोक अंजुम (अलीगढ़), बनज कुमार बनज(जयपुर), अखिलेश तिवारी(जयपुर), महेश चन्द्र गुप्त 'खलिश'(दिल्ली), राजकुमार 'राज' (दिल्ली) और लोकेश कुमार सिंह 'साहिल' (जयपुर) ने कविता पाठ किया। समारोह के अंत में संग्रह के प्रकाशक 'अयन प्रकाशन' के स्वामी भूपाल सूद ने धन्यवाद ज्ञापन किया। प्रख्यात साहित्यकार, साहित्यिक पत्रिका 'अभिनव प्रसंगवश' के संपादक एवं स्थानीय धर्मसमाज महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वेदप्रकाश अमिताभ ने कार्यक्रम का संचालन किया।

कुछ अन्य झलकियाँ-


कार्यक्रम के शुरूआत की प्रतीक्षा करते अतिथि


पद्यभूषण गोपालदास नीरज का माल्यार्पण


नीरज के श्रीकंठ से निकलती उन्हीं के गीत-ग़ज़लें


दर्शकदीर्घा

Wednesday, June 24, 2009

हास्य कवि अल्हड़ बीकानेरी की स्मृति में हिन्दी भवन में शोकसभा का आयोजन


नई दिल्ली।
23 जून 2009 की शाम 5 बजे हिंदी भवन दिल्ली में हास्य व्यंग्य के प्रख्यात कवि अल्हड़ बीकानेरी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी जगत के प्रख्यात कलमकारों, पत्रकारों, अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर-राष्ट्रीय संस्थाओं के पदाधिकारियों एवं प्रशासनिक प्रतिनिधियों ने हिंदी मंच के वरिष्ठ कवि अल्हड़ बीकानेरी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस शोक सभा में अधिकतर कवियों ने सपत्‍नीक भाग लिया।

हिन्दी साहित्य के जाने-माने हास्य कवि श्यामलाल शर्मा उर्फ अल्हड़ बीकानेरी का बुधवार को निधन हो गया था। वह 72 वर्ष के थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटे और दो पुत्रियां हैं। उनके परिवार से पता चला कि अल्हड़ बीकानेरी को सांस लेने में तकलीफ के चलते पिछले गुरुवार को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

सभा का संचालन एवं प्रारंभ करते हुए हास्य के प्रसिद्ध कवि प्रवीण शुक्ल ने कहा कि अल्हड़ जी के यहाँ मेरा आना-जाना लगा रहता था, मैं उनसे भावनात्मक रूप से इस कदर जुड़ा हुआ हूँ ये आघात सहन कर पाना मेरे लिये मुश्किल हो गया है। प्रवीण शुक्ल ने कहा कि उनके पास अल्हड़ जी की एक पुस्तक की अप्रकाशित पाण्डुलिपि रखी हुई है, जिसे अब वो प्रकाशित करवाने का कार्य करेंगे। डॉ॰ शेरजंग गर्ग व कवि हलचल हरयाणवी ने अपने श्रद्धा शब्द-सुमन अर्पित करते हुए संवेदनाएं व्यक्त की।

सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि मैं समझ नही पा रहा हूँ यह सब क्या हो रहा है? एक के बाद एक हमें यह आघात क्यों मिल रहे हैं, उन्होंने कहा अल्हड़ जी का जाना हास्य कविताओं की क्षति है, अब इस बारे में नई पीढ़ी को सोचना चाहिये, मैं तो उन्हीं के साथ का हूँ, अब वे लोग सोचें जिन्हें हास्य को आगे बढ़ाना है, यही हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी। मैं आगे कुछ नहीं कह पाऊँगा, मेरा मौन ही उनको श्रद्धांजली है।

प्रसिद्ध कवि बालस्वरूप राही ने बीकानेरी को छंद-ग़ज़ल का माहिर बताया और उन्हें एक शास्त्रीय कवि की संज्ञा दी। बहुतों ने अल्हड़ को हास्य कविता का सूफी कवि भी बताया।

हिंदी के वरिष्ठतम कवियों में से एक बाल कवि बैरागी ने नम आखों से उन्हें याद किया। उन्होंने कहा कि वह पिछले चालीस वर्षों से साथ थे। उन्हें इस तरह अचानक छोड़ कर नहीं जाना चाहिये था, वो हमारे बीच आज नहीं हैं, इस बात पर विश्वास कर पाना कठीन हो रहा है, उनका साहित्य जगत से जाना एक अपूर्णीय क्षति है।

कवि उदयप्रताप ने भी अल्हड़ के बारे में अपने संस्मरण बताते हुए श्रद्धा-सुमन भेंट किये व हास्य जगत के प्रति गहरी चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमारे लिये यह अत्यंत दुख की बात है कि एक हास्य का महान पुरोधा आज हमारे बीच नहीं है।

अल्हड़ के पुत्र अशोक शर्मा जो सूचना एवं जनसंपर्क विभाग हरियाणा के दिल्ली स्थित कार्यालय में उप निदेशक के पद पर कार्यरत हैं, ने अपने पिता को याद करते हुए कविता की कुछ पंक्तियाँ समर्पित की, जिसे सुनकर गमगीन माहौल में भी हँसी का फ़व्वारा फूट पड़ा था। जो अल्हड़ ने उनके विवाह के अवसर पर उनके लिये लिखी थी जब उन्हें बेटे के ससुराल में पिता की अपेक्षा पुत्र समझ कर उनकी समधन ने उनसे सवाल किया था कि वह किस कॉलेज में पढ़ते हैं। बड़े दुख की बात है कि आज वही हँसी का फ़व्वारा हमारे बीच से लुप्त हो गया है।

हास्य कवि डॉ अशोक चक्रधर ने भी अपनी संवेदनाएँ प्रकट करते हुए हिन्दी-भवन के संचालक से अनुरोध किया कि अगले छः महीने तक यहाँ कोई शोक सभा न रखी जाय। एवं डॉ कुमार विश्वास ने भी अपनी संवेदनायें प्रकट की। कुमार ने कहा कि वो इस तरह हमें अकेला छोड़ गये हैं कि विश्वास नहीं होता, अभी नई पीढ़ी को उनसे बहुत कुछ सीखना था।

हिन्दी-भवन से डॉ गोविन्द व्यास ने अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त की व हिन्दी-भवन की ओर से एक शोक प्रस्ताव पढ़ा गया जिसमें अल्हड़ जी के जीवन की विविध घटनाओं व उपलब्धियों का जिक्र किया गया, उन्होंने बताया कि कवि अल्हड़ बीकानेरी का जन्म 17 मई 1937 को रेवाड़ी जिले के बीकानेर गांव में हुआ था। उनकी शब्द-यात्रा 1962 से गीत-गजल में पदार्पण से शुरू हुई। 1967 से उन्होंने देश-विदेश में आयोजित हास्य कवि सम्मेलनों में भाग लेना शुरू किया।

बीकानेरी की रचनाएं प्रमुख पत्र पत्रिकाओं और आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर प्रसारित हुईं। 1986 में उन्होंने हरियाणवी फीचर फिल्म छोटी साली के गीत कहानी का लेखन और निर्माण कार्य किया। अल्हड़ बीकानेरी ने लगभग 15 पुस्तकें लिखीं जिनमें भज प्यारे तू सीताराम, घाट घाट घूमें, अभी हंसता हूं, अब तो आंसू पोंछ, भैंसा पीवे सोम रस ठाठ गजल के रेत पर जहाज, अनछुए हाथ खोल न देना द्वार और जय मैडम की बोर रे प्रसिद्ध रहीं।

1981 में उन्हें ठिठोली पुरस्कार, दिल्ली, 1986 में काका हाथरसी पुरस्कार और वर्ष 2000 में उज्जैन का टेपा तथा कानपुर का मानस पुरस्कार मिला। वर्ष 2004 में उन्हें बदायूं का व्यंग्य श्री और नरेंद्र मोहन सम्मान, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती जैसे सम्मानों से नवाजा गया। हरियाणा सरकार ने 2004 में उन्हें हरियाणा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की तरफ़ से महेश चंद्र शर्मा ने भी श्रद्धांजली अर्पित करते हुए गहरा दुख जताया।
कवयित्री डॉ सरिता शर्मा ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि अल्हड़ जी ही उनकी प्रेरणा रहे हैं, यह बात अन्तिम समय में उन्हें पता चली यह उनका दुर्भाग्य है कि उन्हे गुरु मानने के कुछ समय बाद ही वो हमे छोड़ चले, किन्तु इसे सौभाग्य भी कहा जा सकता है कि इतने महान कवि मेरे गुरू थे। उनका आशीर्वाद सदा हमारे साथ बना रहेगा।

कवयित्री डॉ कीर्ति काले भी वहाँ उपस्थित थीं व उन्होंने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए बेहद दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अल्हड़ जी को सच्ची श्रद्धांजलि तभी अर्पित हो सकती है जब मंच पर सिर्फ़ काव्य पाठ ही हो, न कि अन्य कुछ सुनाया जाये।

कवि राजेश चेतन तथा कवि दिनेश रघुवंशी जी ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए खेद प्रकट किया, राजेश चेतन ने कहा कि वे अपने कवि मित्रों तथा जो कवि नही हैं उन्हें भी समय-समय पर एस एम एस के द्वारा तमाम जानकारियां देते रहे हैं।



इसके अतिरिक्त सभा में उपस्थित काव्य जगत के सभी वरिष्ठ एवं युवा कवियों यथा कवि महेंद्र शर्मा, कवि महेंद्र अजनबी, कवि गजेंद्र सौलंकी, कवयित्री सुनीता शानू, अविनाश वाचस्पति, कवि पवन चन्दन, संपत सरल, कवि बागी चाचा, शम्भू शिखर, सतिश सागर, कवि दीपक गुप्ता, कवयित्री ऋतु गोयल, कवि हरमिंदर पाल, साधना चैनल के कार्यक्रम-निर्माता प्रवीण आर्य, आकाशवाणी के निदेशक लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, अरूण जैमिनी, कवि वेदप्रकाश तथा दिवंगत कवि के घनिष्ठम शिष्य पुरूषोत्तम बज्र इत्यादि ने भी दिवगत कवि अल्हड़ बीकानेरी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नमन किया।

अल्हड़ जी की निम्न पंक्तियों के साथ हम सभी हिन्द-युग्मी उन्हें सादर श्रद्धांजली अर्पित करते हैं, जो आज भी हिन्दी-भवन सभागार में गूँज रही हैं...

ख़ुद पे हँसने की कोई राह निकालूँ तो हँसूँ
अभी हँसता हूँ ज़रा मूड में आ लूँ तो हँसूँ
जिनकी साँसों में कभी गंध न फूलों की बसी
शोख़ कलियों पे जिन्होंने सदा फब्ती ही कसी
जिनकी पलकों के चमन में कोई तितली न फँसी
जिनके होंठों पे कभी भूले से आई न हँसी
ऐसे मनहूसों को जी भर के हँसा लूँ तो हँसूँ


प्रस्तुति- सुनीता शानू

Tuesday, June 23, 2009

भारतीय विद्या भवन के सभागार में हिंदी भाषा की धाराओं का संगम



न्यूयॉर्क।

डॉ. कृष्ण कुमार एवं श्री अनूप भार्गव के सम्मिलित प्रयास से २९ मई, २००९ रविवार की सांध्यवेला में न्यूयॉर्क के भारतीय विद्या भवन में अमेरिका की हिंदी विकास मंच और इंग्लैंड की गीतांजलि नामक संस्थाओं के सौजन्य से एक अद्वितीय काव्य-संध्या का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह कार्यक्रम इस दृष्टिकोण से अद्वितीय था कि यह विश्व के एक भूभाग (इंग्लैंड) के हिन्दी प्रेमियों द्वारा दूसरे भूभाग (उत्तरी अमरीका) की सद्‍भावना यात्रा का एक महत्वपूर्ण अंग था।

भारतीय विद्या भवन के श्री दीपक दवे ने सभागार में उपस्थित व्यक्तियों का स्वागत करते हुए डॉ० जयरामन की ओर से कार्यक्रम के लिये शुभकामनाएं दीं और भविष्य में भी होने वाले ऐसे आयोजनों में भवन की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।

इंग्लैंड से आये इस सद्‌भावना-मण्डल में डॉ० कृष्ण कुमार के नेतृत्व में आये अन्य कवि-कवियित्रियों के नाम इस प्रकार हैं: श्री परवेज़ मुज़फ्फर, डॉ. कृष्ण कन्हैया, श्रीमती नीना पॉल, श्रीमती अरुण सब्बरवाल, श्री नरेन्द्र ग्रोवर, श्रीमती जय वर्मा, श्रीमती स्वर्ण तलवाड़। डॉ० कृष्ण कुमार ने अपने दल के सदस्यों का संक्षिप्त परिचय दिया और गीतांजलि संस्था के विषय में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गीतांजलि एक बहुभाषी साहित्यिक समुदाय है जो मुख्य रूप से बरमिंघम, यू.के., में स्थित है पर अब इसकी शाखायें अन्य शहरों में भी शुरू हो रही हैं। यह संस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य के विकास की दिशा में निष्ठा के साथ सेवा करती आई है। हिंदी की सेवा करने का महत्वपूर्ण कार्य साहित्य लेखन के माध्यम से हो रहा है। प्रवासी भारतीय अनेक हिंदी कार्यक्रमों की रूप-रेखा रचते चले आ रहे हैं। उनका अपने देश की मिट्‍टी से प्रेम और हिंदी भाषा व संस्कृति से लगाव प्रशंसनीय है।

डॉ० कृष्ण कुमार ने अपना विश्वास प्रकट करते हुए कहा कि "भारत से दूर रहकर अपनी भाषा को कैसे जीवित रखा जाये, इस प्रयास में आने वाली कठिनाइयों से कैसे जूझा जाय, और संभावनाओं को कैसे साकार किया जाय इस दिशा में प्रवासी भारतीय साहित्यकारों का योगदान सराहनीय है। यही वे भारतीय है जो भारतीयों में बची भारतीयता को बचाने की कोशिश कर रहे हैं"। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि "हम भारतीय अपनी छोटी समझ के कारण खुद को छोटे-छोटे भागों में बाँट रहे हैं और केवल एकता का नारा पीट रहे हैं"। उनका कहना है कि विचार व्यक्ति से बढ़ता है। गाँधी एक विचार लेकर चले और आज़ादी हासिल की। एक व्यक्ति दीवाली में एक दीपक घर में जलाये, तो घर प्रज्वलित होता है।

हिंदी विकास मंच की ओर से श्री अनूप भार्गव ने समयाभाव के कारण संक्षेप में ही ई‌‌-कविता याहू ग्रुप के सफल प्रयोग के विषय में बताया। अन्तर्जाल पर जाना-माना यह मंच कई वर्षों से हिंदी साहित्य, विशेषकर कविता के क्षेत्र में, प्रगतिशील है और इसके सदस्यों की संख्या लगभग ६०० हो चुकी है। सदस्य विश्व के कोने-कोने से इस गुट से जुड़े हैं। हिन्दी विकास मंच की परिकल्पना हिन्दी के विकास में योगदान दे रही संस्थाओं को एक सूत्र में बाँधने के विचार से की गई है। इंग्लैंड से कवियों को उत्तरी अमेरिका की यात्रा करने का निमंत्रण इसी विचार की पहली कड़ी है। अनूप जी ने बताया कि न्यूयॉर्क के अतिरिक्त कनाडा के टोरंटो शहर में होने वाले कार्यक्रम में भी कवियों का यह दल भाग लेगा।

विचारों के आदान प्रदान के उपरान्त डॉ० कृष्ण कुमार की अध्यक्षता में काव्य पाठ का आरम्भ हुआ। श्रीमती स्वर्ण तलवाड़ ने अपने साथियों का परिचय करवाते हुए उन्हें मंच पर आमांत्रित करने का संचालन-भार बखूबी निभाया। उनके साथ आए हुए यू.के. के सभी साथियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। बीच-बीच में श्री अनूप भार्गव ने न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, और फिलाडेल्फिया में रहने वाले स्थानीय कवियों को भी संक्षिप्त परिचय के साथ काव्य पाठ के लिये आमंत्रित किया। इन कवियों में थे डा॰ सरिता मेहता, श्री घनश्याम चंद्र गुप्त, श्रीमती बिन्देश्वरी अग्रवाल, श्री राम गौतम, डा॰ अंजना संधीर, देवी नागरानी, और स्वयं श्री अनूप भार्गव। अंत में अध्यक्ष डॉ० कृष्ण कुमार ने अपनी रचनाओं और उत्कीर्ण विचारों से इस साहित्य सरिता को समेटा। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की न्यूयॉर्क शाखा के पूर्वाध्यक्ष मेजर शेर बहादुर सिंह भी श्रोताओं में उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का समापन भारतीय विद्या भवन के श्री दीपक दवे ने आगन्तुक कवियों और श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए किया। श्री दवे ने कहा कि पूरा कार्यक्रम उनके लिये एक सुखद अनुभव था। इस प्रकार एक सफल काव्य-संध्या सम्पन्न हुई। सभागार में श्रोताओं की उपस्थिति शोचनीय रूप से कम रहने के विषय में कई लोग असंतुष्ट दिखाई-सुनाई दिये। इस विषय में विचार और प्रयत्न करने की आवश्यकता है।

प्रस्तुति- देवी नागरानी

Monday, June 22, 2009

सहायक निदेशक (भाषा) का पुनश्चर्या कार्यक्रम सम्पन्न


व्याख्यान देते शैलेश भारतवासी

नई दिल्ली।

केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के 2-ए, पृथ्वी राज रोड स्थित केन्द्र पर पांच दिवसीय पुनश्चर्या कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 15 जून 2009 से 19 जून 2009 तक हुआ, जिसमें देशभर के 16 सहायक निदेशक(भाषा) ने प्रतिभागिता की। राष्ट्रीय प्रशिक्षण नीति के अंतर्गत चलाए गए इस पुनश्चर्या कार्यक्रम में जहां प्रशासनिक, वित्तीय, प्रबंधन, टीम भावना आदि सेवा से जुड़े अनेक विषय रखे गए वहीं हिन्दी भाषा शिक्षण में इंटरनेट की भूमिका पर भी व्याख्यान रखा गया जिसे प्रतिभागियों ने काफी सराहा। 'हिन्दी भाषा शिक्षण में इंटरनेट की भूमिका' विषय पर हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी ने व्यखयान दिया। भारतवासी ने विषय के अतिरिक्त पॉवर प्वाइंट प्रस्तुतिकरण के माध्यम से हिन्दी भाषा-साहित्य की इंटरनेट पर स्थिति, सरल यूनिकोड टाइपिंग इत्यादि पर अपने विचार देये और अनुभव बाँटा।

जहां इस कार्यक्रम का उद्‍घाटन कें.हिं. प्र. सं. की निदेशक श्रीमती मोहिनी हिंगोरानी ने किया वहीं समापन अवसर पर असम कैडर के पूर्व आई.ए. एस. श्री जे.पी. सिंह जी मुख्य अतिथि के रूप में पधारे और अपने कर कमलों से प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए। उन्होंने अपने आशीर्वचन में भारतीय संस्कृति के उन तत्वों पर प्रकाश डाला जिसमें आधुनिक विज्ञान के बीज पाए जाते हैं।

इस कार्यक्रम का संचालन संस्थान के संयुक्त निदेशक श्री एम. एस. दोहरे ने किया व धन्यवाद ज्ञापन सहायक निदेशक श्री शमशेर अहमद खान ने किया।

इस कार्यक्रम की सफलता में संस्थान की निदेशक श्रीमती मोहिनी हिंगोरानी का कुशल नेतृत्व था।


मुख्य अतिथि श्री जे.पी. सिंह और संस्थान निदेशक मोहिनी हिंगोरानी


अतिथि का सम्मान


वक्तव्य देतीं संस्थान प्रमुख मोहिनी हिंगोरानी


प्रतिभागी प्रशिक्षु


प्रतिभागी प्रशिक्षु

प्रस्तुति- शमशेर अहमद खान

Thursday, June 18, 2009

रंग चकल्लस का हास्योत्सव 2009


माइक पर देवमणि पाण्डेय

मुम्बई।
आज जब बाजार हमारे घर में घुस गया है और हर एक चीज सिर्फ मुनाफे के नजरिये से देखी जाती है वैसे में पिछले दिनों मुम्बई में हास्योत्सव 2009 का आयोजन एक सुखद बयार का झोंका लेकर आया। हालाँकि विभिन्न चैनलों ने आज हास्य को लाफ्टर में तबदील कर दिया है और इसे एक रस के बजाय व्यवसाय बना कर रख दिया है। फिर भी रंग चकल्लस द्वारा पिछले 40 सालों से अनवरत आयोजित होते आ रहे हास्योत्सव जैसे शुद्ध और शिष्ट हास्य से लबरेज कार्यक्रमों का इंतजार न सिर्फ मुम्बई के रसिक श्रोताओं को होता है बल्कि देश भर के कवियों को भी रहता है। इस मंच से कभी काका हाथरसी, शरद जोशी, शैल चतुर्वेदी जैसे ख्याति लब्ध कवियों ने श्रोताओं को गुदगुदाया तो कभी अशोक चक्रधर ने ये कहकर आयोजक को भाव विह्वल कर दिया कि जिन्दगी में कभी उनकी तमन्ना हुआ करती थी कि वे रंगचकल्लस के इस आयोजन मे कविता पढें।

यही वजह है कि आज भी देश भर से आयोजक को कवियों के फोन आते है कि वे एक बार इस मंच पर उन्हें भी मौका दें। गौरतलब है कि शरद जोशी ने अपने जीवन का अंतिम रचना पाठ भी इसी मंच से किया था। बल्कि वे हर साल इस कार्यक्रम के लिए एक नयी रचना जरूर लिख कर लाते थे।

मुम्बई में प्रति वर्ष आयोजित होने वाले रंग चकल्लस के हास्य उत्सव की ख़ास बात यह है कि इसमें मंच पर कोई अध्यक्ष या अतिथि नहीं होता। इस बार भी पाटकर हाल में 6 जून को आयोजित इस हास्य उत्सव में संस्था अध्यक्ष असीम चेतन ने एक लाइन का स्वागत भाषण किया और कार्यक्रम शुरू हो गया । डॉ.रजनीकांत मिश्र ने अम्बानी बंधुओं की तनी हुई मुट्ठियों पर हास्य कविता सुनाकर अच्छी ओपनिंग की।

व्यग्यकारों ने बाबा रामदेव को भी नहीं बख्शा और कपिल जैन (यवतमाल) ने उन्हे योग को उद्योग में परिवर्तित करने के लिए कुछ इस तरह लपेटा-

योग से ठीक ना हो ऐसा कोई रोग नहीं है
मगर योग नियम है, योग उद्योग नही है।


कपिल जैन ने व्यवस्था पर व्यंग्य किया-

हमारी शिक्षा प्रणाली भी कितनी वज़नदार है
केजी वन के बच्चे पर 10 केजी का भार है।

गोविंद राठी (रतलाम)ने औरत की सनातन व्यथा और पीडा को धारदार शैली मे कुछ इस तरह बयान किया -

हर युग में सियासत के अपनी अपनी
व्यवस्थायें होती हैं
पहले द्रोपदियों की इज्जत सभाओं मे लुटती थी
आजकल इज्जत लुटने के बाद
सभायें होती है।


डाँ मुकेश गौतम ने चुटकी भरे संचालन से पूरे कार्यक्रम के दौरान माहौल को जिन्दा बनाये रखा और श्रोताओं की काफी सराहना प्राप्त की। उन्होंने राजनीति में बढ़ रहे अपराधीकरण की विडम्बना को इस तरह उजागर किया-

चम्बल में डाकू कहीं नजर नहीं आये
तो हमने एक आदमी से पूछा
वो बोला
अब डाकुओं की पदोन्नत्ति हो गई है
उनकी जगह अब चम्बल में नहीं
संसद में हो गई है


बसंत आर्य ने बिग बी अमिताभ बच्चन पर छींटाकसी करते हुए कहा-

नई बहू जब घर में आई गए पिता को भूल
ऐश्वर्या के नाम से खोला बिग बी ने स्कूल


आगे उन्होंने कहा–

हरिवंश राय की याद न आई नाही तेजीजी की
कजरारे के आगे अब मधुशाला हो गई फीकी


देवमणि पांडेय ने बसंत आर्य की बात को आगे बढाते हुए कहा-

सिक्कों की खनक जिन्दगी को ऐसे भा गई
बूढे भी नाच गाकर पसे कमा रहे हैं।
बिग बी का इस उम्र मे जलवा तो देखिए
बेटे बहू के साथ मे ठुमके लगा रहे है।


देवमणि पाण्डेय के रोमांटिक शेर सुनकर श्रोता उछल पड़े-

बहक न जाए किसी की निगाह महफ़िल में
पहनके इतना भी दिलकश लिबास मत बैठो
तुम्हारा चाहने वाला हूं मैं ख़ुदा के लिए
मेरे ही सामने ग़ैरों के पास मत बैठो


देवमणि पाण्डेय ने कुछ फ़िल्मी चरित्रों पर प्रेम कविताएं सुनाईं जिसका श्रोताओं ने जमकर लुत्फ उठाया-

मंज़िल मोहब्बतों को कब तक नहीं मिली
गुज़रे न इम्तहान से तब तक नहीं मिली
क़ानून के भँवर में है प्रेमियों की नाव
संजय को पूरी मान्यता अब तक नहीं मिली



माइक पर आशकरण अटल, बाय़ें से असीम चेतन, मुकेश गौतम, बसंत आर्य, देवमणि पांडेय, गोविन्द राठी, कपिल जैन और रजनीकांत

विवाह फिल्म के सम्वाद लिखने से विशेष चर्चित हुए वरिष्ठ हास्य कवि आसकरण अटल ने अपनी लोकप्रिय कविता 'हाइवे के हमदम' सुनाकर श्रोताओं को काफी हँसाया । आख़िरी पंक्तियाँ देखिए-

गाँव में संस्कार था / शहर में रोज़गार था / रोज़गार के लिए गाँव छूटा, तो आखों की
शर्म जाती रही / वहाँ पगड़ी उतारने में आती थी शर्म / यहाँ कपड़े उतारने में नहीं आती।


देर रात तक चलने वाले इस हास्य उत्सव को विविधरंगी कविताओं ने यादगार बना दिया। अंत में संयोजक असीम चेतन ने हँसते खिलखिलाते चेहरों को अगले साल फिर मिलने का वादा करते हुए विदा किया।

प्रस्तुति- श्रद्धा उपाध्याय और उल्हास मून, मुम्बई

Wednesday, June 17, 2009

धीरेन्द्र अस्थाना के उपन्यास 'देश निकाला' का लोकार्पण


उपन्यास 'देश निकाला' का लोकार्पण करते विश्वनाथ सचदेव, जगदम्बा प्रसाद दीक्षित, रामनारायण सराफ, डॉ.रामजी तिवारी , देवी प्रसाद त्रिपाठी , सागर सरहदी, अशोक सिंह और धीरेन्द्र अस्थाना

मुम्बई
धीरेन्द्र अस्थाना का उपन्यास 'देश निकाला' मुम्बई के फ़िल्मी जीवन का आईना है । इसमें वर्तमान यथार्थ से आगे जाकर एक नए यथार्थ को स्थापित करने की सराहनीय कोशिश की गई है । ये विचार जाने माने कथाकार जगदम्बा प्रसाद दीक्षित ने शनिवार 13 जून को लोकमंगल द्वारा मुम्बई के दुर्गादेवी सराफ सभागृह में आयोजित लोकार्पण समारोह में व्यक्त किए । उन्होंने आगे कहा कि फ़िल्म जगत में माँ बनने के बाद अभिनेत्री का कैरियर ख़त्म हो जाता है । मगर इस उपन्यास की नायिका मल्लिका को माँ बनने के बाद भी प्रमुख भूमिकाओं के प्रस्ताव मिलते हैं, यह स्वागत योग्य बात है । पहली बार शायद ऐसा हुआ कि दीक्षित जी वामपंथी चिंतन और साम्राज्यवादी चिंता से मुक्त होकर मुक्तभाव से बोले । अभिनेत्री मीनाकुमारी पर मर्मस्पर्शी संस्मरण सुनाकर उन्होंने फ़िल्म जगत के अंधेरे पक्ष को रेखांकित किया । दीक्षित जी ने बताया कि स्टार अभिनेत्री होने के बावजूद मीनाकुमारी सामान्य स्त्री की तरह व्यवहार करती थीं । इलाहाबाद के कवि यश मालवीय के आलेख को आकाशवाणी के उदघोषक आनंद सिंह ने और दिल्ली के कवि सुशील सिद्धार्थ के आलेख को लेखक अनिल सहगल ने प्रस्तुत किया । कवि राजेश श्रीवास्तव और कवि हृदयेश मयंक ने 'देश निकाला' पर अपने आलेख ख़ुद पढ़े । दिल्ली से पधारे 'थिंक इंडिया ' के सम्पादक देवी प्रसाद त्रिपाठी ने बहुत आत्मीयता से अपनी बात रखते हुए कहा कि यह उपन्यास मुम्बई के जीवन का जीवंत दस्तावेज़ है । उन्होंने डॉ. राही मासूम रज़ा के हवाले से कहा कि कलकत्ता कजरारी आँखों से गिरे आँसुओं की राख है । पता नहीं क्यों मुम्बई आने वाले परदेसियों के लिए ऐसे विरह गीत नहीं लिखे गए । कवि देवमणि पांडेय ने अपना विमर्श प्रस्तुत करते हुए कहा कि 'देश निकाला' के चरित्र, घटनाएं और संवाद इसे एक श्रेष्ठ कृति साबित करते हैं । इसे दो विपरीत ध्रुवों कि कथा बताते हुए उन्होंने नायक गौतम के चरित्र को निदा फ़ाज़ली के एक शेर से साकार किया-

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सँभल सको तो चलो


नायिका मल्लिका के संघर्ष को रेखांकित करने के लिए उन्होंने ज़फ़र गोरखपुरी का शेर उद्धरित किया-

ये ऐसी मौत है जिसका कहीं चर्चा नहीं होता
बहुत हस्सास होना भी बहुत अच्छा नहीं होता


उपन्यास की पहली लाइन है-'सीढ़ियों पर सन्नाटा बैठा था' और आख़िरी लाइन है- 'यह दो स्त्रियों का ऐसा अरण्य था जहाँ कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता था'- इन लाइनों के हवाले से देवमणि पांडेय ने कहा कि धीरेन्द्र की ख़ूबी यह है कि सुख-दुःख, उमंग-उल्लास, स्वप्न और आकांक्षा, हर मूड के अनुसार वे भाषा क्रिएट करते हैं । इस जीवंत भाषा ने उपन्यास को बेहद पठनीय बना दिया है । अंत में पांडेय जी ने मज़ाक किया- ''धीरेन्द्र जी अच्छे कुक हैं । शायद इसी लिए किताब के हर दूसरे-तीसरे पेज़ पर कोई न कोइ डिश मौजूद है । कहीं चिकन, मटन, बिरयानी है तो कहीं पनीर और पुलाव है। इस लिए इसे पढ़ते हुए बहुत भूख लगती है ।'' संचालक आलोक भट्टाचार्य ने जोड़ा- इसे पढ़ते हुए प्यास भी बहुत लगती है। फ़िल्मकार सागर सरहदी ने भी इस प्रसंग में इज़ाफ़ा किया । फ़िल्म 'बाज़ार' के समय उन्होंने अभिनेत्री स्मिता पाटिल से कह दिया था - 'मैं अच्छा कुक हूँ । अगर यह फ़िल्म नहीं चली तो मैं सड़क किनारे ढाबा खोल लूँगा।' डॉ.राजम पिल्लै ने इस कृति की नायिका मल्लिका और मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' की मल्लिका की रोचक तुलना करते हुए कहा कि औरत जब अपने लिए स्पेस चाहती है तो निर्मम हो जाती है। बाद में धीरेन्द्र अस्थाना की पत्नी ललिता अस्थाना ने इससे सरेआम असहमति जताई ।

नवनीत के सम्पादक विश्वनाथ सचदेव ने मुंबई के चारकोप इलाक़े को ग्लोबल बनाते हुए कहा कि यह उपन्यास मानवीय अनुभूतियों का कोलाज है । प्रतिष्ठित फ़िल्म लेखक-निर्देशक सागर सरहदी ने रचनाकार से असहमति जताते हुए कहा कि फ़िल्म में जाने के बावजूद नायक-नायिका को थिएटर नहीं छोड़ना चाहिए था । कथाकार उदय प्रकाश की कहानी 'मोहनदास' पर बनने वाली फिल्म के निर्माता तथा 'आशय' पत्रिका के सम्पादक वी.के.सोनकिया ने लेखकीय संकट जैसे कुछ संजीदा मुद्दों पर श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की । आकर्षित होने के बजाय श्रोता आपस में बातचीत करने लगे तो वे वापस लौट गए । डॉ.रामजी तिवारी ने कहा कि उनके पास बोलने के लिए कुछ नहीं है मगर वे बीस मिनट तक बोलते रहे । आरजेडी के महासचिव अशोक सिंह ने भी पुस्तक पर विचार व्यक्त किए । भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित 'देश निकाला' का लोकार्पण डॉ.रामजी तिवारी ने किया और प्रथम प्रति साहित्य अनुरागी रामनारायण सराफ को भेंट की । सराफ जी को इससे पहले 60 पुस्तकों की प्रथम प्रतियां प्राप्त हो चुकीं हैं । मगर यह पहली पुस्तक है जिसे पढ़कर उन्होंने नया रिकार्ड बनाया । संचालक आलोक भट्टाचार्य ने हमेशा की तरह बोलने में कोई कोताही नहीं बरती । कभी कभी जब वे चुप हो जाते थे तो वक्ताओं को भी बोलने का अवसर मिल जाता था ।

कुल मिलाकर एक कथाकार के औपन्यासिक विमर्श में कवियों का बहुमत रहा । 6 कवियों ने परिचर्चा में भागीदारी की । 7वें कवि ने संचालन किया और 8वें कवि कन्हैयालाल सराफ ने बड़े रोचक अंदाज़ में आभार व्यक्त किया । इस कार्यक्रम में मुम्बई के रचनाकार जगत से श्री नंदकिशोर नौटियाल, डॉ. सुशीला गुप्ता, मो.अयूबी, यज्ञ शर्मा, विभा रानी,गोपाल शर्मा, हस्तीमल हस्ती, सिब्बन बैजी, संजय मासूम, हरि मृदुल आदि मौजूद थे । संगीत जगत से गायिका सीमा सहगल, डॉ. सोमा घोष, डॉ. परमानंद आदि मौजूद थे । कार्यक्रम की शुरुआत में रंगकर्मी हबीब तनवीर, कवि ओमप्रकाश आदित्य, नीरजपुरी, लाड़सिंह गुर्जर और ब्रजेश पाठक मौन के प्रति श्रद्धाँजलि व्यक्त की गई ।


धीरेन्द्र अस्थाना , विश्वनाथ सचदेव और ललिता अस्थाना

प्रस्तुति- श्रद्धा उपाध्याय, मुम्बई

Monday, June 15, 2009

संध्या भगत की उपस्थिति में आनंदम की काव्य-संध्या

नई दिल्ली। आनंदम् की 11वीं काव्य गोष्ठी हमेशा की तरह पश्चिम विहार में जगदीश रावतानी जी के निवास स्थान पर संपन्न हुई। पिछली गोष्ठी में जहाँ कवि राकेश खंडेलवाल वाशिंगटन, अमरीका से पधारे थे, वहीं इस बार भी अमरीका के अटलांटा नगर से श्रीमती संध्या भगत की उपस्थिति ने गोष्ठी को अंतर-राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया।

कार्यक्रम के चर्चा सत्र में "कविता एवं ग़ज़ल का समाज के प्रति योगदान" विषय पर डॉ. विजय कुमार ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि काव्य के माध्यम से कही हुई बातों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रेम सहजवाला ने इस विषय पर अपने विचार रखते हुए इस बात को रेखांकित किया कि साहित्य को समाज की जितनी सेवा करनी चाहिए उतनी कई कारणों से हो नहीं पा रही। जगदीश रावतानी ने इस चर्चा को व्यावहारिक मोड़ देते हुए कहा कि हम सभी साहित्यकारों को अपने लेखन के द्वारा समाज में घट रही भ्रष्टाचार की घटनाओं को भी उजागर कर सरकार तक अपनी बात कारगर ढंग से पहुँचानी चाहिए। उदाहरण के लिए आजकल खान-पान की वस्तुओं जैसे दूध, अनाज व फल-सब्जियों तक में जहरीले ससायन मिलाए जा रहे हैं, ऐसे विषयों पर भी रचनाएँ लिखकर विभन्न माध्यमों में प्रकाशित करवाई जाएँ।

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी शुरू करने से पहले हाल ही में दिवंगत कवियों सर्वश्री ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड सिंह गुज्जर की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन धारण किया गया। जगदीश रावतानी ने श्रद्धांजलि स्वरूप ओम प्रकाश आदित्य की एक हास्य रचना भी सुनाई। तत्पश्चात उपस्थित कवियों ने अपनी रचनाओं से लोगों का मन मोह लिया। कुछ रचनाएँ देखें-

जगदीश रावतानी-आनंदम के साथ प्रेमचंद सहजवाला
नईम बदायूँनी-
हमसे ज़िक्रे बहार मत कीजे
हमने देखा नहीं बहारों को

मजाज़ अमरोही-
तूने अए चारागर नहीं देखा
देखना था मगर नहीं देखा

दर्द देहलवी
दर्द देहलवी-
पहले तो चरागों की कमी से थे परेशाँ
अब इतना उजाला है दिखाई नहीं देता

डॉ. विजय कुमार-
कुछ तो दीदार की ऐ हमनवा सूरत निकले
फिर तेरी याद ने तूफान उठा रक्खा है

जगदीश रावतानी-
था ये बेहतर कि क़त्ल कर देते
रोते-रोते मरा नहीं होता
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नहीं होता

भूपेन्द्र कुमार-
है मुश्किल यूँ ख़ुदा की बंदगी में ख़ुद को पा लेना
मगर कहते हैं अब तो ख़ुद को ही अवतार चुटकी में
है इक अरसा लगा मुझे ग़ज़ल का फ़न समझने में
नमन करता हूँ उनको जो कहें अशआर चुटकी में

मनमोहन शर्मा तालिब-
सच्चाई के होठों पे फरिश्तों की दुआ है
सच्चाई का नाम ही ज़माने में ख़ुदा है

प्रेमचंद सहजवाला-
शोरीदा शहर में मुझे आता है ये ख़याल
दिल में ज़रा सी देर को उज़्लत बनी रहे

पंडित प्रेम बरेलवी-
आदमी आदमी को कुचलने लगा
दिल करे भी तो क्या अब करे जुस्तजू

सत्यवान-
दम तोड़ती है कला मेरी रद्दी काग़ज़ के पन्नों पर
वो सजे मंच तालियों की गूँज,
बनते हैं कैसे कलाकार मैं क्या जानूँ

ओ.पी. बिश्नोई सुधाकर-
पेड़ उगाकर हरे भरे, हरियाली को लाएँगे
जीवों की करेंगे रक्षा, सुखद पर्यावरण बनाएँगे

मुनव्वर सरहदी
साक्षात भसीन-
आँखों में तैरते ख़ून को, हमने यूँ पढ़ के देखा है
नामुमकिन टलता हादसा, जिसे होने से रोका है

संध्या भगत-
मुझको भी कोख में पलने दे
माँ, मेरा भी ये वास है
सात सपूतों वाली ये माँ
इक आँगन की फिर भी आस है

मुनव्वर सरहदी-
जो तेरी तस्बीह के दाने मुनव्वर रोक है ले
वो तेरा दुश्मन है, ऐसे आश्ना को छोड़ दे

इसके अतिरिक्त फ़ख़रुद्दीन अशरफ तथा शैलेश सक्सैना ने भी अपनी उम्दा रचनाएँ प्रस्तुत की जिन्हें इस गोष्ठी की रिकॉर्डिंग में सुना जा सकता है।


फ़ख़रुद्दीन अशरफ


शैलेश सक्सैना

तेजेन्द्र शर्मा और ज़ाकिया ज़ुबैरी ने इंदु शर्मा की याद में की एक लम्बी पद-यात्रा



लंदन
जाने माने कथाकार एवं कथा यू.के. के संस्थापक तेजेन्द्र शर्मा, उनकी पुत्री दीप्ति एवं कॉलिण्डेल क्षेत्र की लेबर पार्टी काउंसलर एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की मुखिया श्रीमती ज़कीया ज़ुबैरी ने स्वर्गीय इन्दु शर्मा की स्मृति में एक 10 किलोमीटर की दूरी पैदल चल कर पूरी की। इस वॉक का आयोजन एक कैंसर चैरिटी कैंसर-किन ने किया था जो कि हैम्पस्टेड इलाक़े के रॉयल फ़्री हस्पताल से जुड़ी है।

पैदल चलते हुए ज़कीया जी, दीप्ति एवं तेजेन्द्र ने यह दूरी 2 घंटे और 10 मिनट में पूरी की और कैंसर चैरिटी के लिये 500.00 पाउण्ड इकट्ठे किये। कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स के पदाधिकारी कैंसर से जुड़े कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। ज़कीया जी हर साल ऐसे आयोजनों में अपनी मित्र अदीबा, अपनी बड़ी बहन और इंदु जी की याद में भाग लेती हैं।







Saturday, June 13, 2009

न्यूयॉर्क की एक शाम अंजना संधीर के नाम

न्यूयॉर्क । संयुक्त राज्य अमेरिका

दिनांक 7, जून 2009 को पूर्णमासी के दिन श्रीमती पूर्णिमा देसाई के शिक्षायतन के देवालय में डॉ अंजना संधीर के सम्मान में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन सफलता पूर्ण संपूर्ण हुआ। वातावरण की पवित्रता में माँ की स्तुति गायन वन्दनीय रहा।

आगाज़ी शब्दों में पूर्णिमा देसाई शिक्षायतन की संस्थापिका एवं निर्देशिका ने ये कहते हुए "मैं एक ऐसी विभूति को बुला रही हूँ जिन्होंने साहित्य के प्रचार में, संस्कृति के प्रचार में अपना योगदान दिया है और वह है डा. अंजना संधीर, जिन्होंने मंच की शान बढाते हुए दीप प्रज्वलित किया। शिक्षायतन संस्था के संगीत विभाग से जुड़े सुर-सागर के माहिर पंडित कमल मिश्रा जी ने माता के चरणों में गुलाब के फूलों को अर्पित करते हुए सरस्वती वंदना की।

अपने भावों को व्यक्त करते हुए अंजना जी ने कहा " मै यहीं हूँ, यहीं थी और यहाँ से कहीं नहीं गयी" और अपनी व्याख्यान में कुछ न कहते हुए उन्होने यू. के. से आए श्री कृष्ण कुमार जो को सादर आमंत्रित किया, जिन्होंने अपने विचार प्रस्तुत करने से पहले पूर्णिमा जी को बधाई की पात्र मानते हुए अंजना के लिये कहा कि " अंजना जी का काम बोलता है" यह हर नारी जाति के लिए गर्व की बात रही जो "प्रवासिनी के बोल" और "प्रवासी आवाज़" के मंच पर अपने आपको स्थापित कर पाई है। अंजना जी का कहना और मानना है कि अमेरिका के हर शहर में उसका एक घर है और सीमाओं से परे उनके रिश्ते हैं जिनकी कोई सरहद नहीं बाँध पाएगी।

भावों के आदान-प्रदान के पश्चात काव्य गोष्ठी का आरंभ हुआ, जिसका स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी से कम न था। रचना-पाठ का शुरूआत डा. दाऊजी गुप्त ने किया, जो लखनऊ से पधारे थे। यू. के. से आये डा. कृष्ण कुमार ने अपनी रचना पाठ के बाद अपने साथी साहित्यकारों और कविगणों को आवाज़ दी जिनमें वहां मौजूद थे श्री कृष्ण कन्हैया, श्री नरेन्द्र कोहली, जय वर्मा, श्रीमती स्वर्ण तलवाड़। उसके ही पश्चात अनूप और रजनी भार्गव ने अपनी नन्हीं नन्हीं कविताओं के कपोलों से ज़िन्दगी के अंकुरित नए रंग माहौल में भर दिए। टोरंटो से श्री गोपाल बगेल जी ने सुरमई धुन में अपनी रचना सुनाई। फिर मंच को थामा न्यू यार्क तथा न्यू जर्सी के कविओं में जिनमें शामिल रही श्री अशोक व्यास, श्री ललित अहलुवालिया, मंजू राई, बिन्देश्वरी अग्रवाल, अंजना संधीर, पूर्णिमा देसाई, गौतमजी, पुष्पा मल्होत्रा, नीना वाही, अनुराधा चंदर, डा. अनिल प्रभा, गिरीश वैद्य, देवी नागरानी, लखनऊ से आई श्रीमती शशि तिवारी और उनकी सुपुत्री शिवरंजनी। श्रोताओं में रहे श्री कथूरिया जी, परवीन शाहीन, रेनू नंदा और अनेक साहित्यप्रेमी। यहाँ डॉ. सरिता मेहता का ज़िक्र करना भी ज़रूरी होहगा, जो खुद विध्याधाम संस्था की निर्देशिका है और साथ में एक अच्छी कवयित्री भी और इस काव्य सुधा की शाम में उनका पूरी तरह से सहकार रहा।

अंत में पूर्णिमा जी ने अंजना जी का सम्मान "साहित्य मणि' की उपाधि से श्री दाऊजी गुप्त के हाथों से करवाया और सभी कविगणों का साधुवाद किया। अंत में रात्रि-भोजन का भी उत्तम प्रबंध था।

प्रस्तुति- देवी नागरानी

Friday, June 12, 2009

विध्यांचल में हुआ 'खामोशी के बाद' का विमोचन



विन्ध्याचल। उत्तर प्रदेश

साहित्य जगत के लोकप्रिय एवं युवा गीतकार, राम निवास ‘इण्डिया’ द्वारा रचित उनका प्रथम काव्य संकलन ‘खामोशी के बाद’ का विमोचन ‘विन्ध्यवासिनी ध्वजारोहण समिति’ विन्ध्याचल, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के मंच पर माँ भगवती
विध्यवासिनी के खचा-खच भरे दरबार में महा-मण्डलेष्वर स्वामी श्री भवानी नंदन यति जी महाराज ने अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर किया और कहा कि माँ के दरबार में जो भी होता है वह अद्वितिय ही होता हैं ।

इस विमोचन समारोह में दिल्ली से महुआ चैनल के लोकप्रिय कलाकार अजीत सहगल, वाराणसी के मशहूर संगीतकार श्री विजय कपूर एवं भोजपुरी गायक विजय पाण्डे सहित लगभग 50 फनकारों ने भाग लिया। साथ ही इस समारोह में क्षेत्रिय सांसद, विधायक, जिला पार्षद, अनेक टी.वी. चैनलों के प्रतिनिधि, समाचार पत्रों के संवाददाता सुप्रसिद्ध नर्तक श्री माता प्रसाद और रूद्र शंकर के अतिरिक्त दूर -दूर से पधारे हुये अनेक गण-मान्य लोग भी उपस्थित थें।

उक्त अवसर पर समिति के अध्यक्ष डा॰ राधेश्याम तिवारी ने कहा कि ‘खामोशी के बाद’ रामनिवास जी की अच्छी कोशिश है, जो सभी वर्ग के पाठकों के लिए खुशी एवं प्यार का माहौल तैयार करने में सफल हो सकेगी। तथा
राम निवास‘इण्डिया’ ने इसे अपनी साहित्य सेवा की शुरूआत बतलाते हुए पाठकों से प्यार की याचना की, तो डा॰ एल. त्रिवेदी ने रचनाकार एवं कृति दोनों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कुशलपूर्वक मंच का संचालन किया।

संवाददाता
विध्यवासिनी ध्वजारोहण समिति
विन्ध्याचल, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

ओमप्रकाश आदित्य की स्मृति में दिल्ली में हुआ शोक सभा का आयोजन


हिन्दी भवन सभागार, नई दिल्ली

10 जून 2009 के सायं 5 बजे हिंदी भवन दिल्ली में हिंदी मंचों की वाचिक परंपरा में हास्य व्यंग्य के प्रख्यात कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी जगत के प्रख्यात कलमकारों, पत्रकारों, अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर राष्ट्रीय संस्थाओं के पदाधिकारियों एवं प्रशासनिक प्रतिनिधियों ने हिंदी मंचों के वरिष्ठ कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य, श्री नीरज पुरी एवं श्री लाड सिंह गुज्जर को श्रद्धांजलि अर्पित की। ग़ौरतलब है कि 8 जून 2009 को इन तीनों कवियों की विदिशा के एक कार्यक्रम से भोपाल लौटते वक़्त एक सड़क दुर्घटना में असामयिक मृत्यु हो गई थी। सभा का सञ्चालन एवं प्रारंभ करते हुए हास्य के प्रसिद्द कवि सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि आदित्य जी का जाना हिंदी काव्य जगत के लिए एक अपूर्णीय क्षति है, हिंदी हास्य कविता जिनके कन्धों पर चलती थी आज हम उनको कन्धा देकर आये हैं. जिस व्यक्ति के बारे में बोलने के लिए बहुत कुछ होता है वो आज हमें ऐसी स्थिति में छोड़ गया है कि कुछ कहा नहीं जा रहा. मेरा मौन ही उनको श्रद्धांजली है।

अपडेट-
वरिष्ठ कवि ओम व्यास को अपोलो हास्पिटल, दिल्ली के न्यूरो विभाग के ICU में एडमिट किया गया है। उनकी हालत पहले से कुछ बेहतर है।
--बकौल राजेश चेतन
वरिष्ठ गीतकार डॉ कुंवर बेचैन ने कहा कि आदित्य जी से उन्हें हर कदम पर हौसला मिला उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था, कि हर कोई उनसे अपनी हर समस्या का समाधान प्राप्त कर लेता था, वो हमेशा कहते थे 'मस्त रहो'। वरिष्ठ कवि श्री उदय प्रताप सिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश के कार्यक्रम में जाने से पहले मेरी उनसे फोन पर बात हुई, उनका वही अंदाज़ रहता था अल्हड़ता और मस्ती उनमे कूट-कूट कर भरी हुई थी। इस अवसर पर कवि गोपालदास नीरज ने कहा कि आदित्य को काव्य की शास्त्रियता और छंद का पूरा ज्ञान था। उन्होंने मंच पर जमने के लिए कभी चुटकुलों का सहारा नहीं लिया।

श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित डॉ. अशोक चक्रधर, (जो उस यात्रा में आदित्य जी के साथ भी थे) ने कहा कि आदित्य जी का कवि परिवार से अकस्मात चले जाना शायद उनके साथ हर कवि सम्मलेन में होने वाले मृत्यु के मजाक को स्मरण करवाता है। उन्होंने मंचीय कवियों से मृत्यु पर मजाक करने से परहेज करने की सलाह दी, श्री चक्रधर ने कहा कि कविसूर्य श्री ओमप्रकाश आदित्य जी की कविताओं का प्रकाश हम सब के साथ हैं, उन्होंने दुखद हृदय से कहा कि आज भी युवा पीढ़ी का कोई कवि उनकी परम्परा का निर्वाह करने के लिए मुझे आश्वास्त नहीं करता। आज हिंदी मंच पर हास्य व्यंग्य में उनकी परंपरा निभाने की जरूरत है, श्री अशोक चक्रधर ने ट्रेन में जाते हुए आदित्य जी द्बारा एक लिफाफे पर लिखी उनकी अंतिम कविता को थाती के रूप में अपने पास साधिकार रखने की घोषणा कि तो सबकी आँखें नम हो गयी। उन्होंने आगे कहा कि ओमप्रकाश आदित्य के असामयिक निधन के एक घंटे बाद रंगमंच के पितामह हबीब तनवीर का निधन हो गया। इससे एक तरफमंच खाली हुआ तो दूसरी तरफ रंग भी चला गया।

गीतकार मधुमोहिनी उपाध्याय ने कहा कि आदित्य जी का आलोक हम सब का मार्गदर्शन करता रहेगा, वो मात्र भौतिक रूप रहे हमारे बीच से चले गए हैं परन्तु उनकी कवितायें, चिंतन और दर्शन सदैव हमारे साथ है, युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर कवि प्रवीण शुक्ल एवं राजेश चेतन ने उन्हें भाव भीनी श्रद्धांजली अर्पित करते हुए कहा कि आदित्य जी युवा पीढ़ी के सच्चे मार्गदर्शक थे वो सबसे घुल मिल जाते थे और हमेशा खुश रहने की ही प्रेरणा देते थे, राजेश चेतन जी ने उन्हें राष्ट्रीय कवि संगम की ओर से भी दिवंगत कवियों को श्रद्धांजली अप्रित करते हुए कहा कि पिछले वर्ष उनके आग्रह पर अस्वस्थ होते हुए भी आदित्य जी अमेरिका की यात्रा पर गए। न तो वो किसी बाधा की परवाह करते थे और न ही किसी प्रिय के आग्रह को टालते थे।

प्रसिद्ध गीतकार डॉ कुमार विश्वास ने कहा कि "आदित्य जी हमारे सुरक्षा कवच थे" पिंगल कि गहराई के साथ हास्य कहने वाले वो अद्भुत कवि थे। हम मंच के कवि उन पर गर्व करते थे कि वाचिक परंपरा में हमारे साथ एक ऐसे कवि भी हैं जिनके होने से हम साहित्य के गंभीर कवियों के समक्ष गर्व से खड़े हो सकते हैं।

रसम पगड़ी- कविवर श्री ओमप्रकाश आदित्य
19 जून 2009, समय शाम 4 बजे।
स्थान- लक्ष्मी नारायण मंदिर, मेन बाज़ार, मालवीय नगर, नई दिल्ली
प्रसिद्ध कवि श्री बाल स्वरूप राही ने कहा कि आदित्य जी के बारे में अखबार में पढ़ा, टी वी में सुना, दोस्तों से सुना पर विश्वास नहीं हो रहा की वो हमारे बीच नहीं रहे, उन्होंने कहा कि आदित्य जी ने सन 1960 में एम॰ ए॰ में प्रवेश लिया था और उसी समय मेरी उनसे मित्रता हुई। वे हास्य कवितायें ही लिखते थे और उस समय उनकी जयशंकर प्रसाद की कामायनी पर लिखी हुई हास्य पैरोडियाँ बहुत प्रचलित हो रही थीं जिसे वो कक्षा में और अपने मित्रों को सुनाते थे वहीं से उन्होंने मंचों पर जाना भी प्रारंभ किया।

सांसद और गीतकार कवयित्री प्रभा ठाकुर ने कहा कि आदित्य जी बहुत ही विलक्षण व्यक्तित्व थे उनके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कराहट रहती थी। उन्हें कभी भी किसी ने भी तनावग्रस्त नहीं देखा। आदित्य जी के सबसे पुराने मित्रों में से एक श्री गोविन्द व्यास ने आदित्य जी को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए कहा कि उनका हिंदी जगत से जाना निश्चित ही एक अपूर्णीय क्षति है, उन्होंने कहा कि आदित्य जी से उनकी मित्रता बहुत पुरानी थी उनका इस प्रकार चले जाना निश्चित ही दुखदायी है।

हिंदी फिल्मों के प्रसिद्द गीतकार श्री संतोष-आनंद ने कहा कि मेरी स्थिति कुछ ऐसी है कि-
फलसफी को बहस के अन्दर खुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
ओमप्रकाश आदित्य उनके लगभग 50 वर्षों से मित्र थे, संतोष-आनंद जी ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए बताया कि वो अकेले ही थे जो आदित्य जी को प्यार से "अबे ओमी" कहकर बुलाया करते थे और वो उन्हें संतोष कहते थे। श्री संतोषानंद जी कहा कि उन्होंने आदित्य जी के साथ 5-5 रुपये के पारिश्रमिक के साथ कवि सम्मलनों के शुरूआत की थी। उन्होंने कहा कि आदित्य जी फिल्मों के भी शोकीन थे और हम दोनों साथ दारा सिंह की फिल्में देखते थे तथा दिल्ली में तांगे में साथ घूमते थे, आज उनका सफ़र पूरा हो गया और हिंदी जगत में काव्य मंचों पर एक ऐसा स्थान रिक्त हो गया जिसको भर पाना शायद ही संभव हो।

दिल्ली सरकार की भाषा एंव स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया ने इस अवसर पर कहा कि कवि ओमप्रकाश का निधन समूचे साहित्य जगत के लिए अपूर्णिय क्षति है। उन्होंने कहा कि जिस जगह दिवंगत कवि का घर है, उस सड़क का नामकरण कवि के नामपर करने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष लेकर जाएगीं।

हिंदी कि वरिष्ठतम कवियों में से एक श्री बाल कवि बैरागी ने पत्र द्बारा अपनी संवेदना प्रकट करते हुए लिखा कि "अगर मैं ईश्वर से लड़ सकता तो आदित्य जी के प्राण उस से छीन कर ले आता" वो हमारे बीच आज नहीं हैं इस बात पर सहज ही विश्वास नहीं हो पाता" उनका साहित्य जगत से जाना एक अपूर्णीय क्षति है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, ने भी पत्र के माध्यम से आदित्य जी, नीरज पुरी एवं लाड सिंह गुज्जर को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए उनके हिंदी जगत में अविस्मरणीय योगदान को नमन किया, मध्य प्रदेश प्रशासन, राष्ट्रीय कवि संगम के संयोजक श्री जगदीश मित्तल, हिन्दयुग्म से शैलेश भारतवासी ने भी हिंदी के इन मूर्धन्य कवियों की आकस्मिक मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त किया।

सभा में अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं प्रमुखतः राष्ट्रीय कवि संगम, अक्षरम, विद्या भारती, हिन्दयुग्म ने भी श्री ओमप्रकाश आदित्य जी, श्री नीरज पुरी, और श्री लाड सिंह गुज्जर को श्रद्धांजली अर्पित की और जीवन से जूझ रहे, इस दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल कवि श्री ओम् व्यास 'ओम' के जल्द स्वस्थ होने की कामना की अक्षरम संस्था के माध्यम से बहुत से विदेशों में बसे हिंदी श्रोताओं के शोक सन्देश भी दिवंगत कवियों को नमन करते हए पढ़े गए।

इसके अतिरिक्त सभा में उपस्थित काव्य जगत के सभी वरिष्ठ एवं युवा कवियों, डॉ सरोजनी प्रीतम, डॉ सरिता शर्मा, महेंद्र शर्मा, महेंद्र अजनबी, संपत सरल, बागी चाचा, शम्भू शिखर, ऋतू गोयल, चिराग जैन, हलचल हरयाणवी, अरुण मित्तल "अद्भुत", हरमिंदर पाल, दिनेश रघुवंशी, गजेन्द्र सोलंकी, नरेश शांडिल्य ने भी दिवंगत हुए महान कवियों को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए नमन किया अंत में सुरेन्द्र शर्मा ने मध्य प्रदेश एवं दिल्ली सरकार एवं प्रशासन का दुर्घटना के बाद हर प्रकार के सहयोग पर आभार व्यक्त किया, कवि परिवार ने जहाँ इस घटना कि खबर को महत्त्व देने के लिए मध्य प्रदेश मीडिया का भी आभार व्यक्त किया वहीं दिल्ली के समाचार पत्रों एवं अन्य मीडिया पर उनकी उदासीनता के लिए आक्रोश भी व्यक्त किया। सुरेन्द्र शर्मा ने हिन्द-युग्म के बैठक मंच द्वारा अरुण मित्तल 'अद्भुत' द्वारा ओमप्रकाश आदित्य के स्मरण में लिखे गये आठ पृष्ठीय आलेख का विशेष उल्लेख किया।

प्रस्तुति- अरुण मित्तल 'अद्भुत'

Monday, June 8, 2009

सड़क दुर्घटना में तीन कवियों की मौत और 1 गंभीर रूप से घायल

8 जुलाई 2009 । भोपाल
आज सुबह हिन्दी के 3 कवियों ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड़ सिंह गूजर की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। कवि ओम व्यास की हालत गंभीर बनी हुई है। उन्हें भोपाल के हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। डॉक्टर अगले 30 घंटे तक उनकी हालत के विषय में कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं हैं। साथ ही साथ एक और कवि जानी बैरागी को गंभीर चोटें आई हैं, लेकिन वे खतरे से बाहर हैं। वाहन के ड्राइवर की हालत भी गंभीर बनी हुई है।

ये पाँचों कवि इनोवा कार में ड्राइवर और फोटोग्राफर सहित विदिशा से भोपाल जा रहे थे। ये कवि बहुत से अन्य कवियों के साथ संस्कृति विभाग, म॰ प्र॰ शासन द्वारा आयोजित दो दिवसीय सांस्कृतिक महोत्सव 'बेतवा उत्सव' के पहले दिन के कार्यक्रम में शिरकत करने गये थे। रात का कार्यक्रम करके ये कार से वापिस लौट रहे थे, कि सुबह 4 से साढ़े बजे के क़रीब इनकी गाड़ी को किसी गाड़ी ने टक्कर मारी। किस गाड़ी ने टक्कर मारी, अभी यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि कौन सी गाड़ी है। उसके ट्रक होने की सम्भावना है। तीन कवियों की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गई।

होश में आ चुके कवि जानी वैरागी से जब पूछा गया कि पूरी घटना क्या थी तो उन्होंने बताया कि ड्राइवर के अलावा सभी सो रहे थे। क्या हुआ किसी को कुछ पता नहीं। मुझे भी नहीं।

कवि देवमणि पाण्डेय ने फोन करके हमें बताया कि इस गाड़ी के पीछे एक गाड़ी में कवि अशोक चक्रधर और प्रदीप चौबे भी भोपाल आ रहे थे, जो उसी कार्यक्रम में भाग लेने गये थे।

घटना को और समझने के लिए हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी ने कवि प्रदीप चौबे को फोन लगाया और सारी जानकारी ली। कवि अशोक चक्रधर भी अभी वहीं हास्पिटल में मौज़ूद हैं।

राजेश चेतन ने बताया कि वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश आदित्य का अंतिम संस्कार आज दोपहर 3 बजे मालवीय नगर, दिल्ली के श्मशान भूमि में होगा।

कवि राजेश चेतन, देवमणि पाण्डेय और प्रदीप चौबे ने इसे हिन्दी कविता के लिए बड़ी क्षति बताया और दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की।

Sunday, June 7, 2009

हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में बाल साहित्य संगोष्ठी संपन्न

शमशेर अहमद खान

दिनांक 6 जून 2009 को उत्तरप्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ और भारतीय साहित्य सांस्कृतिक संबंध परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ,नई दिल्ली
स्थिति आजाद भवन के मल्टीपर्पज हॉल में संपन्न हुआ। एक पूर्ण दिवसीय संगोष्ठी का उद्‍घाटन वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार डॉ. कन्हैया लाल नंदन ने किया। इस अवसर के मुख्य अतिथि वीरेंद्र गुप्त थे, किंतु किंही कारणवश वे उपलब्ध नहीं हो सके। इसलिए उनका प्रतिनिधित्व डॉ.अजय गुप्ता (सम्पादक, गगनांचल) ने किया। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र अवस्थी जी ने की।

बाल साहित्य की वर्तमान दशा और दिशा पर चिंतनपरक आलेख पढ़ने वाले विद्वानों में डॉ. हरिकृष्ण देवसरे,डॉ. राजेंद्र अवस्थी, डॉ. अलका पाठक, डॉ. शेरजंग गर्ग, डॉ. द्रोणवीर कोहली, डॉ. सूर्यकुमार पाण्डेय आदि प्रमुख थे।

बालसाहित्य से संबंधित पढ़े गए आलेखों में डॉ. अलका पाठक का लेख काफी संतुलित रहा। उन्होंने हास्य-हास्य में वह सब कुछ कह दिया जिसे चिंतनपरक संगोष्ठी में विचार किया जाता है। वे अपने आलेख का अंत करते हुए कहती हैं----“ वही पीछे छूटा बचपन जब पच्चीसबरस, पचास बरस बाद अपने बच्चे या बच्चे के बच्चे के रूप में खडा हो जाता है तो यह जरूरी एवरेस्ट यह आवश्यक सागर सिकुड़ते हैं और छोटे होते जाते हैं,इतने –इतने छोटे कि नन्हीं- नन्हीं हथेलियों में राजा जी की गैया खो जाती है, मिलती है गुदगुदी में, खिलखिलाहट में—आटे बाटे चने चटाके,चैंऊ-मैऊ, झू झू के पाऊं कर के और वही सवाल कि चल चल चमेली बाग में क्या- क्या खिलाएंगे; सूरज एक पूरा चक्कर लगाकर सुबह- दोपहर शाम को रूप बदलने के बाद फिर वहीं से शुरू हो गई कहानी…. कुछ बदला तो था पर बदला हुआ गया कहां ! वही बच्चा, वही कहानी, वही नानी और एक था राजा , एक थी रानी. दोनों मर गए खत्म कहानी.”

इस संगोष्टी में बालसाहित्य संबंधी उठाए गए मुद्दे बच्चों के भविष्य की ओर इंगत करते थे। एक तरफ जहां सूचना एवं प्रौद्योगिकि की क्रांति से उपजी सूचनापरकता माध्यमों के साहित्य में प्रयोग की बात थी वहीं भारत के उन नौनिहालों कि चिंता थी जिन्हें स्कूल का मुंह भी देखने को नसीब नहीं होता ऐसे में बालसाहित्य की दशा और दिशा निर्धारित करना बेमानी लगता है। चूँकि इस दिशा में समग्र रूप से कोई समेकित कार्य नहीं हुआ है इसलिए हर कोई अपनी ढ्पली अपना राग गाए चला जा रहा है। फिर भी अंधेरी रात में जुगनू की चमक ही भरपूर लगती है। लेकिन फिर भी अगर-मगर करते हुए चला जाय तो मंजिल मिलेगी ही मिलेगी।


प्रस्तुति- शमशेर अहमद खान, 2-सी, प्रैस ब्लाक, पुराना सचिवालय, सिविल लाइंस दिल्ली---110054। Shamsher_53@rediffmail.com, ahmedkhan.shamsher@gmail.com

Saturday, June 6, 2009

शिलांग हिन्दी सम्मेलन में सम्मानित हुए दिल्ली के साहित्यकार


नई दिल्ली। पिछले दिनों 22-24 मई, 2009 को पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, मेघालय द्वारा शिलांग में तीन दिवसीय हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसके अंतर्गत विचार, काव्य संगोष्ठी, महाराज कृष्ण जैन सम्मान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गरिमापूर्ण आयोजन किया गया। सम्मेलन में देश भर से आए विद्वान साहित्यकारों/हिन्दी सेवियों ने शिरकत की, जिसमें दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के अनेक साहित्यकार/कलाकार भी शामिल हुए।

सम्मेलन के पहले दिन अंबाला छावनी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका शुभ तारिका के महाराज श्री कृष्ण जैन पर केंद्रित अंक के साथ ही दिल्ली की पत्रिका हम सब साथ साथ के बचपन पर केंद्रित अंक का विमोचन संपन्न हुआ। इसके पश्चात विचार व काव्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया। काव्य संगोष्ठी का सफल संचालन जहाँ फरीदाबाद की सुप्रसिद्ध कवयित्री व कलाकार श्रीमती नमिता राकेश ने किया वहीं सम्मेलन के अंतिम दिन आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का मनोरंजक संचालन दिल्ली के किशोर श्रीवास्तव ने किया। विभिन्न कार्यक्रमों में दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के जिन अन्य प्रमुख लोगों ने सम्मेलन को विशेष गरिमा प्रदान की उनमें पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री पी. के. मिश्र (दिल्ली) सहित कवि/कलाकार सर्वश्री डा. हरीश अरोड़ा, सुषमा भंडारी, जसवन्त जनमेजय, शशि श्रीवास्तव व दिव्यांशु श्रीवास्तव (दिल्ली) एवं डा. धनंजय सिंह (गाजियाबाद) आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।



सम्मेलन के दौरान दिल्ली के श्री किशोर श्रीवास्तव की 24 वें वर्ष में चल रही कार्टून व लघु रचनाओं की पोस्टर प्रदर्शनी खरी-खरी का भी प्रदर्शन किया गया, जिसे दर्शकों ने काफी सराहा।

सम्मेलन के दौरान देश के सुदूर क्षेत्रों से पधारे अनेक साहित्यकारों के साथ ही दिल्ली और एनसीआर के ऊपर उल्लिखित साहित्यकारों/कलाकारों आदि को भी महाराज श्री कृष्ण जैन साहित्य सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया गया।

इग्नू में भोजपुरी भाषा पाठ्यक्रम के बढ़ते कदम


दिनांक 1.6.2009 को इग्नू प्रांगण के मानविकी विद्यापीठ में ’’भोजपुरी भाषा में सर्टिफिकेट कार्यक्रम’’ से संबंधित विशेषज्ञ समिति की बैठक संपन्न हुई। इस बैठक का शुभारंभ करते हुए इग्नू के कुलपति, प्रो. वी.एन. राजशेखरन पिल्लई ने कहा कि 20 करोड़ से भी अधिक आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषा पर पाठ्यक्रम बनाने की योजना बहुत ही महत्वपूर्ण है। 17 देशों में बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी के महत्व को इसी से आंका जा सकता है कि मॉरिशस में 70 प्रतिशत लोग भोजपुरी बोलते हैं और वहाँ इस भाषा को देश की द्धितीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। आदिकाल से समृद्व साहित्य से परिपूर्ण इस भाषा में पाठ्यक्रम प्रारंभ करने संबंधी योजना का प्रस्ताव एवं प्रारूप तैयार कर पाठ्यक्रम के संयोजक प्रो. शत्रुघ्न कुमार ने एक ऐतिहासिक कार्य किया है और इग्नू के राष्ट्रीय स्वरूप को ही उजागर किया है। उन्होंने यह भी कहा कि भोजपुरी भाषा के समृद्ध साहित्यिक परंपरा को ध्यान में रखकर ही इग्नू ने पिछले वर्ष ही आधार पाठ्यक्रम का निर्माण आरंभ किया। यह पाठ्यक्रम बन कर तैयार है और जुलाई 2009 के सत्र से छात्रों को उपलब्ध हो जायेगा। प्रो. शत्रुघ्न कुमार निश्चित ही बधाई के पात्र हैं। कुलपति ने यह भी आशा व्यक्त की कि भोजपुरी में यह सर्टिफिकेट कार्यक्रम शीघ्र बन कर छात्रों के लिए उपलब्ध होगा और आगे भोजपुरी में बी.ए., एम.ए. के पाठ्यक्रम पर भी कार्य आरंभ होगा उन्होंने इस बैठक में पधारे देश के विभिन्न भागों से आए भोजपुरी विद्धानों को पाठ्यक्रम निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद दिया।

भोजपुरी भाषा पाठ्यक्रम के इस महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक कार्य की संपूर्ण योजना बनाने वाले और पाठ्यक्रम के सूत्रधार एवं संयोजक प्रो. शत्रुघ्न कुमार ने अपने वक्तव्य में यह कहा कि भोजपुरी भाषा में पाठ्यक्रम निर्माण से संबंधित वर्षों से संजोये हुए सपने को साकार करने का अवसर मिला। उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि इस ऐतिहासिक कार्य में कुलपति का सबसे बड़ा सहयोग नहीं मिला होता तो शायद 20 करोड़ भोजपुरियों के सपनों को साकार किया जाने वाला यह कार्य संपन्न नहीं हो सकता था।

पाठ्यक्रम संयोजक प्रो. शत्रुघ्न कुमार ने आगे कहा कि जब रूसी, जापानी, चीनी, फ्रेंच, रोमेनियन भाषाओं में जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्नति संबंधी कार्य हो सकता है तो इतनी बड़ी संख्या में बोली जाने वाली भाषभोजपुरी में भी सभी कार्य क्यों नहीं हो सकता? भोजपुरी भाषा में भी सभी कार्य संपन्न हो सकते हैं और इससे समाज की प्रगति भी हो सकती है।
प्रो. कुमार ने यह भी बताया कि भोजपुरी के सारे पाठ्यक्रम को आधुनिक एवं उपयोगी बनाया जायेगा। प्रो. कुमार ने कुलपति महोदय को ह्नदय से आभार प्रकट किया जिनके सहयोग से देश-विदेश में फैले हुए 20 करोड़ भोजपुरी भाषियों के अंदर एक नई आशा की किरण जगी है। उन्होंने यह भी सूचना दी कि जब पिछले वर्ष आधार पाठ्यक्रम की शुरूआत हुई तो घोर विरोध के स्वर भी उभरे लेकिन उस समय प्रो. कुमार के तर्क एवं अन्य विद्धानों के तर्क के आगे विरोध के स्वर तो दब ही गए साथ ही मजबूती से एक यह भी माँग उठी कि ’’भोजपुरी भाषा में सर्टिफिकेट कार्यक्रम’’ शीघ्र शुरू किया जाए। उस समय प्रो.शत्रुघ्न कुमार ने बोर्ड के सदस्यों को वचन दिया था कि वे सर्टिफिकेट ही नहीं बल्कि बी.ए., एम.ए. तथा भोजपुरी भाषा में ’शोध’ तक के पाठ्यक्रम की पूरी योजना को वे शीघ्र साकार रूप प्रदान करेंगे। 1 जून, 2009 को विशेषज्ञ समिति की बैठक का संपन्न होना इस बात का प्रमाण है कि प्रो. शत्रुघ्न ने अपने वचन को कितनी लगन और निष्ठा के साथ निभाया है। पिछले वर्ष से ही प्रो. शत्रुघ्न कुमार द्वारा ’’भोजपुरी माई के खातिर’’ किए जाने वाले कार्य से देश-विदेश के सभी लोग अच्छी तरह वाकिफ हो चुके हैं।

मानविकी विद्यापीठ के निदेशिका, प्रो. रेणु भारद्वाज ने इस अवसर पर अपने वक्तव्य में मानविकी विद्यापीठ द्वारा अन्य भाषाओं से संबंधित पाठ्यक्रम निर्माण की सूचना दी तथा उन्होंने भी प्रो. शत्रुघ्न कुमार को बधाई देते हुए यह भी कहा कि अपनी मेहनत और लगन से प्रो. कुमार ने ’’असंभव कार्य को संभव कर दिया’’। इस कार्य में वे सदा उनका सहयोग देती रहेंगी।

इस बैठक में देश के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे भोजपुरी भाषा साहित्य के प्रसिद्ध चिंतक, विद्वान, लेखकों ने हिस्सा लिया जिनमें डॉ. नागेन्द्र प्रसाद सिंह (पटना), प्रो. रामदेव शुक्ल (गोरखपुर), डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह (सासाराम), प्रो. विरेन्द्र नारायण यादव (छपरा), डॉ. प्रेमशिला शुक्ला (देवरिया), प्रो. रामेश्वर मिश्र (शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल) शामिल हैं। इस बैठक में देश के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे विद्वान न केवल भोजपुरी भाषा के विशेषज्ञ है बल्कि प्रसिद्ध लेखक, चिंतक और भोजपुरी भाषा आंदोलन के सक्रिय योद्धा हैं। विशेषज्ञ समिति की यह बैठक सुबह से शाम तक चली और गहन विचार-विमर्श के बाद पाठ्यक्रम की रूपरेखा को अंतिम रूप प्रदान किया गया।

1 जून, 2009 को संसार के भोजपुरी भाषियों को यह सुखद समाचार सुनने एवं देखने को मिला कि एक ओर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय भोजपुरी भाषा से संबंधित पाठ्यक्रम निर्माण की दिशा में ऐतिहासिक कार्य हो रहा था तो दूसरी ओर देश के संसद में भी एक भोजपुरी भाषी महिला राजनीतिज्ञ को लोकसभा के स्पीकर के पद पर सुशोभित करने का कार्य हो रहा था। दुनियाँ के भोजपुरी भाषियों के लिए यह आशा की किरण दिखाई दे रही है कि सदियों पुरानी भोजपुरी भाषा को अपना गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त होगा। भोजपुरी भाषियों को यह भी आशा है कि ’संसद से सड़क’ तक भोजपुरी भाषा को प्रतिष्ठा मिलेगी।

इस बैठक में ’हमार टीवी’, के प्रोग्राम प्रोडयूसर मनोज भावुक जो कि स्वयं भोजपुरी भाषा के लेखक है और पूर्वांचल एक्सप्रेस से कुलदीप ने मीडिया प्रतिनिधि के रूप में भी इस बैठक में हिस्सा लिया। ’सम्यक् भारत’ के कार्यकारी संपादक के.पी. मोर्या ने इस ऐतिहासिक क्षण को कैमरे एवं वीडियों में सुरक्षित कर लिया।

प्रस्तुति- प्रो॰ शत्रुघ्न कुमार
(भोजपुरी भाषा में सर्टिफिकेट प्रोग्रेम के प्रस्तावक और संयोजक)