Wednesday, March 31, 2010

श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति ने आयोजित की एक अनूठी प्रतियोगिता

समिति द्वारा आयोजित अंतर विद्यालयीन लेखन प्रतियोगिता के परिणाम घोषित
विख्यात टी.वी.कलाकार नेहा शरद करेंगी विजेताओं को पुरस्कृत



इंदौर । 30 मार्च
स्कूली विद्यार्थियों की लेखन क्षमता और कल्पानाशीलता को नया आयाम देने के उद्देश्य से श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति द्वारा आयोजित अंतरविद्यालयीन लेखन प्रतियोगिता के निर्णय घोषित कर दिए गए हैं। समिति के प्रधानमंत्री श्री बसंतसिंह जौहरी,प्रबंधमंत्री प्रो सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी तथा प्रतियोगिता के समन्वयक युवा टी.वी. पत्रकार श्री सुबोध खन्डेलवाल ने बताया कि 3 अप्रैल, शनिवार को समिति में आयोजित एक समारोह में विख्यात टी.वी.कलाकार नेहा शरद विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कृत करेंगी।

आपने बताया कि चौथी से नवीं तक के स्कूली बच्चों के लिये आयोजित ये लेखन प्रतियोगिता एक नई सोच के साथ आयोजित की गई थी। इस प्रतियोगिता के लिये बच्चों को कोई विषय नही दिया गया था बल्कि उन्हें एक अन्तर्राष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी मे बुलाया गया। इस प्रदर्शनी में दिल्ली की एक संस्था शन्कर्स इन्टरनेशनल द्वारा आयोजित अन्तरराष्ट्रीय चित्रकला प्रतियोगिता मे चयनित दुनिया के सत्रह देशों के बच्चों (14 साल तक के) द्वारा बनाये गये लगभग 130 चित्र नुमाया किये गये थे। लेखन प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले बच्चों को इनमें से किसी एक चित्र का चयन कर उसके आधार पर अपना आलेख लिखना था। इस लेखन प्रतियोगिता में इन्दौर की प्रज्ञा गर्ल्स स्कूल की तान्या जैन प्रथम स्थान पर रहीं, एमरल्ड स्कूल के खुशाल रघुवंशी को द्वितीय स्थान मिला तथा अग्रसेन विद्यालय के सौरभ कुंवर तृतीय स्थान पर रहे। इनके अलावा एमरल्ड स्कूल की विन्नी मालिक, सन्मति स्कूल की ट्विंकल अग्रवाल, श्रुति उमठ और स्वाति चौधरी तथा अग्रसेन के सतपाल सिंह अजमानी सहित कुल पाँच विद्यार्थियों को प्रोत्साहन पुरकार हेतु चुना गया है।
इस अनूठी प्रतियोगिता में शहर के दस स्कूलों के एक सौ बीस विद्यार्थियों ने भाग लिया। इनके द्वारा भेजे गए आलेखों का मूल्यांकन भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली के सहायक निदेशक श्री अर्पण कुमार तथा समिति के श्री गिरेन्द्र सिंग भदोरिया ने किया।

श्री जौहरी ने कहा कि सुश्री नेहा शरद ने कई टी.वी. धारावाहिकों में अहम किरदार निभाये है, वे उन चुनींदा टी.वी. कलाकारों में से है जिन्हें उनके संजीदा अभिनय के कारण पहचाना जाता है और सबसे ख़ास बात ये है कि वो मालवा की माटी से जुड़े देश के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार स्व. श्री शरद जोशी की सुपुत्री हैं। उन्होंने कहा कि उनके हाथों पुरस्कृत होकर इन बच्चो की रचनात्मकता को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा।

प्रस्तुति-बसंतसिंह जौहरी, प्रधान मंत्री , हरेराम वाजपेयी, प्रचार मंत्री

Monday, March 29, 2010

प्रोड्यूसर व कलाकार- दो नावों पर सवार अमिता पाठक

फिल्म ‘अथिति तुम कब जाओगे’ की सफलता के बाद प्रोड्यूसर व एक्ट्रेस अमिता पाठक की अगली फिल्म की तैयारी हो गई है। इस फिल्म के निर्देशक है प्रियदर्शन जहां अमिता, अजय देवगन, बिपाशा बसु व अक्षय खन्ना के साथ दिखाई देंगी। अमिता का कहना है,‘‘अब मेरा अच्छा समय शुरू हो गया है व इसका फायदा वह जल्द से जल्द उठा लेना चाहती है। फिल्म का नाम हालांकि नहीं रखा गया है पर यह जल्द ही शुरू हो जाएगी।’’

कुमार मंगत जी की सुपुत्री अमिता ने एक्टिंग के साथ-साथ निर्माण के क्षेत्र में भी ‘अथिति तुम कब जाओगे’ से शुरू किया जो आज भी जारी है और जल्द ही अगली फिल्म भी फ्लोर पर जा रही है। पहली बार निर्माता के रूप में काम करने का उनका क्या अनुभव रहा? इस बारे में वह बताती है, ‘‘मेरे सामने बहुत सी कठिनाइयां थी। नया समझ कर हर कोई दबाव बनाये रखना चाहता था। पर मेरे पिता कुमार मंगत व अजय ने मुझे हमेशा सहायता की व हौसला बढाए रखा।

एक निर्माता व एक एक्ट्रेस के रूप में उनका पहला प्यार क्या होगा? के उत्तर में वह स्पष्ट करती है, ‘‘फिल्म‘ हाले दिल ’ के बाद जब मैं निर्माण के क्षेत्र में उतरी तो लोगों को यह लगा कि शायद मैं अब एक्टिंग के क्षेत्र में रूचि नहीं लूँगी पर मैं आपको बता दूं कि मेरा पहला प्यार एक्टिंग ही है। ’’

यदि अमिता का पहला प्यार एक्टिंग है तो क्या उसने इस प्यार को सफल बनाने के लिए बचपन से ही तैयारी की थी? इस बारे में वह बताती है, ‘‘बचपन से ही में एक्ट्रेस बनना चाहती थी और मैं माधुरी दीक्षित की बहुत बडी फैन थी। वही मेरी प्रेरणा रही व मैं उनकी तरह ही एक महान एक्ट्रेस बनना चाहती हूं। इसके लिए मैंने बाकायदा किशोर नमित कपूर से एक्टिंग सीखी व बाद में शमल डॉवर जी के यहां से नृत्य की शिक्षा ली।’’

यही नहीं अमिता ने निर्देशक के रूप में भी हाथ आजमाया है तो क्या वह निर्देशक भी बनना चाहती है? इस बारे में वह इस प्रकार खुलासा करती है, ’’पिताजी का कहना था कि निर्माता के रूप में आने से पहले मुझे निर्माण की बारीकिया समझ लेना चाहीए, सो मैंने फिल्म ‘औंकारा’ में निर्देशक विशाल भारद्वाज जी के साथ सहायक के रूप में काम कर लिया था।’’

प्रस्तुतिः अशोक भाटिया मुंबई से

Thursday, March 25, 2010

संगीत कंपनी सारेगामा ने डॉ अशोक चोपडा का ''हाल मुरिदां दा कहना'' एलबम रिलीज़ किया



पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में सन फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक समारोह में संगीत कंपनी सारेगामा इंडिया लिमिटेड ने गुरु ग्रंथ साहिब के ''शबद'' का एक एलबम ''हाल मुरिदां दा कहना'' रिलीज़ किया. सुरजीत सिंह परमार द्वारा तैयार किये गये संगीत पर डा. अशोक चोपड़ा द्वारा गाये गये ८ शबद हैं, इस सीडी में, जो कि भारतीय शास्त्रीय संगीत (रागों) पर आधारित हैं, इस सी डी में 'मित्तर प्यारे नू'' ,''हाल मुरिदां दा कहना'' [ख्याल ] हैं, ये वो शबद है जो गुरू गोविन्द सिंह साहिब ने गाये थे जब उनके पूरे परिवार की मचीवादा जंगल (लुधियाना के पास) में शहादत हो गयी थी.
''हमें बहुत समय लगा इस 'उदास' ख्याल को अपनी अंतर आत्मा के साथ गाने में, जब यह ''शबद'' रिकॉर्ड हुआ उस वक्त सुबह के ४ बजे थे'' भाव विभोर होकर डॉ. चोपड़ा कहते हैं. एक पंजाबी हिंदू हैं डॉ. चोपड़ा, जो कि सच्चे धर्मनिरपेक्ष इंसान है. वो पहले भी ''नातिया कलाम'' (मुस्लिम धार्मिक कविता) और भजन (हिंदू भक्ति गायन), देश भर के संगीत समारोहों में गाकर एक गायक के रूप में लोकप्रिय हो चुके हैं. अशोक चोपड़ा का कहना है कि, "मुझे खुशी है कि सभी के आशीर्वाद के साथ, मेरा यह एलबम लांच हो रहा है."
६० वर्ष के डॉ. अशोक चोपड़ा एमबीबीएस, एमएस हैं वह एक मेधावी छात्र रहें हैं अपनी पढाई के दौरान , साथ ही साथ वह एक प्रतिभाशाली गायक हैं, वो गायक मोहम्मद रफ़ी और मदन मोहन के बहुत बड़े प्रशंसक हैं .लगातार ११ वर्षों तक उन्होंने स्कूल की प्रार्थना सभा में स्कूल के दल का नेतृत्व किया और हमेशा ही अपने स्कूल की गायन प्रतियोगिताओं के विजेता रहें. अपनी चिकित्सा के अध्ययन को पूरा करने के बाद वो 1974 में सेना में शामिल हो गए, १९९७ में सेवानिवृत्त हुए और बरेली में उन्होंने सन् २००१ काम किया. अब वह ''लेजर सर्जरी लिपोलिसी'' मुंबई में काम कर रहें हैं.
सुरजीत सिंह परमार ने मुंबई के एक गुरुद्वारें में डॉ अशोक की गुरुवाणी को सुना और उनके गायन से प्रभावित होकर ही उन्होंने डॉक्टर के साथ एक एलबम बनाने का फैसला किया. एलबम में शामिल आठों शबदो को बहुत ही ध्यान चुना है, शास्त्रीय संगीत पर आधारित इन शबदो में वाद्य उपकरणों का उपयोग कम से कम किया गया है,जिससे धार्मिक विचारों की समृद्धि बरकरार रहे. परमार एक प्रशिक्षित संगीतकार, गीतकार, लेखक और गायक है, जिन्होंने चंडीगढ़ में चार साल तक औपचारिक रूप से संगीत का अध्ययन किया है और अब २० साल से संगीत उद्योग में काम कर रहें हैं . सुरजीत को प्रेरणा मिलती है संगीतकार ए. आर. रहमान और मोहम्मद रफी जैसी संगीत के महान हस्तियों से. डॉ. चोपड़ा के बारें में उनका कहना है कि, ''डॉ के साथ काम करना बहुत ही अच्छा रहा है अब हम दूसरी एलबम साथ करने की योजना बना रहे हैं.''
इसी समारोह में 'बालिका बचाओ'' अभियान को भी लॉन्च किया गया, इसे लॉन्च किया अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा, डा. अशोक चोपड़ा और विक्रमजीत एस सहानी (सूर्य फाउंडेशन के प्रमुख) ने, जो कि एक प्रसिद्ध उद्यमी, शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वो विशेष रूप से बालिका के संबंध में भारतीय समाज की मानसिकता में एक सकारात्मक बदलाव के बारे में प्रतिबद्ध है. फाउंडेशन ने दो मिनट का एक वृत्तचित्र बनाया है जिसमें अभिनेत्री प्रियंका चोपडा द्वारा एक संदेश है जो अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओ में है.
इस अवसर पर प्रियंका ने कहा कि, ''जब मैंने इस वृत्तचित्र देखा, तब मुझे लगा कि - 'क्या होता अगर मेरे माता पिता मुझे जन्म नहीं देते ? मैं यहाँ बिल्कुल नहीं पंहुच नहीं पाती, जहाँ आज मैं हूँ. मुझे लगता है कि आज लोगों को इस पर विश्वास करना चाहिए कि एक लड़की एक लड़के से ज्यादा सफल हो सकती है ...और एक बेटी बहुत ही अनमोल है किसी भी बेटे के मुकाबले.''

-एच. एस. कम्यूनिकेशन

उम्मीद-ए-रोशनी कायम है लेकिन भाई गाँधी से

गांधी जी की प्रसिद्ध कृति हिन्द स्वराज पर संगोष्ठी का आयोजन


कवि देवमणि पाण्डेय, कथाकार आर.के.पालीवाल, न्यायमूर्ति श्री चन्द्रशेखर धर्माधिकारी, डॉ. सुशीला गुप्ता, सचिव सुनील कोठारे

महात्मा गांधी से पूछा गया- क्या आप तमाम यंत्रों के ख़िलाफ़ हैं ? उन्होंने उत्तर दिया- मैं यंत्रों के ख़िलाफ़ नहीं हूँ मगर यंत्रों के उपयोग के पीछे जो प्रेरक कारण है वह श्रम की बचत नहीं है, बल्कि धन का लोभ है। इस लिए यंत्रों को मुझे परखना होगा। सिंगर की सीने की मशीन का मैं स्वागत करूँगा। उसकी खोज के पीछे एक अदभुत इतिहास है। सिंगर ने अपनी पत्नी को सीने और बखिया लगाने का उकताने वाला काम करते देखा। पत्नी के प्रति उसके प्रेम ने, ग़ैर ज़रूरी मेहनत से उसे बचाने के लिए, सिंगर को ऐसी मशीन बनाने की प्रेरणा दी। ऐसी खोज करके सिंगर ने न सिर्फ़ अपनी पत्नी का ही श्रम बचाया, बल्कि जो भी ऐसी सीने की मशीन ख़रीद सकते हैं, उन सबको हाथ से सीने के उबाने वाले श्रम से छुड़ाया। सिंगर मशीन के पीछे प्रेम था, इस लिए मानव सुख का विचार मुख्य था। यंत्र का उद्देश्य है- मानव श्रम की बचत। उसका इस्तेमाल करने के पीछे मकसद धन के लोभ का नहीं होना चाहिए।
यह रोचक प्रसंग महात्मा गांधी की चर्चित पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ का है जिसे प्रकाशित हुए सौ वर्ष हो गए हैं और अब पूरी दुनिया में इसके पुनर्मूल्यांकन का दौर चल रहा है। सुभाष पंत के सम्पादन में निकलने वाली दिल्ली की साहित्यिक पत्रिका शब्दयोग और मुम्बई की संस्था हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के संयुक्त तत्वावधान मे हिन्द स्वराज की समकालीन प्रासंगिकता पर एक संगोष्ठी हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सभागार मे आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति श्री चन्द्रशेखर धर्माधिकारी ने की। एक समर्पित गाँधीवादी होने के साथ-साथ धर्माधिकारीजी ने दस सालों तक महात्मा गांधी के साथ आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी भी की थी। उनके उदगार सुनने के लिए इतने अधिक लोग आ गए कि सभागार में सीटें कम पड़ गईं।

महात्मा गांधी के ‘हिन्द स्वराज’ पर केंद्रित समाज सेवी संस्था योगदान की त्रैमासिक पत्रिका शब्दयोग के इस विषेशांक का परिचय कराते हुए संगोष्ठी के संचालक देवमणि पाण्डेय ने महात्मा गांधी के योगदान को अकबर इलाहाबादी के शब्दों में इस तरह रेखांकित किया-

बुझी जाती थी शम्मा मशरिकी, मगरिब की आँधी से
उम्मीद-ए-रोशनी कायम है लेकिन भाई गाँधी से

शब्दयोग के अतिथि सम्पादक प्रतिष्ठित कथाकार आर.के.पालीवाल ने इस अंक की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महात्मा गांधी के गुरु श्री गोपालकृष्ण गोखले ने ‘हिंद स्वराज’ को ‘पागलपन के किन्हीं क्षणों में लिखी किताब’ कहकर खारिज़ कर दिया था मगर विश्व प्रसिद्ध लेखक टॉलस्टाय को इसमें ‘क्रांतिकारों विचारों का पुंज’ दिखाई पड़ा और उन्होंने इसकी तारीफ़ करते हुए कहा कि यह एक ऐसी किताब है जिसे हर आदमी को पढ़ना चाहिए । पालीवालजी ने बताया कि ‘हिंद स्वराज’ के ज़रिए गाँधीजी ने पुस्तक लेखन में एक नया प्रयोग किया है। प्रश्नोत्तर शैली में लिखी गई इस पुस्तक में उन्होंने अपने विचारों से असहमति जताने वाले सभी लोगों को ‘पाठक’ के प्रश्नों में प्रतिनिधित्व दिया है। इस तरह उन्होंने उन सब संशयों, विरोधों और असहमति के स्वरों को एक साथ अपने उत्तरों से संतुष्ट करने की पुरज़ोर कोशिश की है जो गाँधीजी के समर्थकों, विरोधियों या स्वयं गाँधीजी के मन में उपजे थे । कवि शैलेश सिंह ने हिंद स्वराज के प्रमुख अंशों का पाठ किया । हिंदुस्तानी प्रचार सभा की मानद निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता ने अपने आलेख में हिंद स्वराज के प्रमुख बिंदुओं पर रोशनी डाली ।

न्यायमूर्ति चन्द्रशेखर धर्माधिकारी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि दुनिया के कई देशों में हिंद स्वराज की सौवीं जयंती मनाई जा रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर कर्इ देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिंद स्वराज में अपनी आस्था व्यक्त कर चुके हैं । मेरे विचार से हर हिंदुस्तानी को महात्मा गांधी की इस किताब को अवश्य पढ़ना चाहिए और इस पर चिंतन करना चाहिए । गांधी जी ने अगर मशीनों, वकीलों और डॉक्टरों के खिलाफ़ लिखा तो उनके पास इसके लिए तर्कसंगत आधार भी था ।


प्रथम पंक्ति में डॉ. सूर्यबाला, कवयित्री रेखा मैत्र , डॉ.रत्ना झा, कमलेश बख्शी, हंसाबेन

कार्यक्रम की शुरुआत में सुश्री चंद्रिका पटेल ने गांधी जी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ प्रस्तुत किया । हिंदुस्तानी प्रचार सभा के संयुक्त मानद सचिव सुनील कोठारे ने आभार व्यक्त किया । इस आयोजन में मुंबर्इ के साहित्य जगत से कथाकार डॉ. सूर्यबाला, कथाकार कमलेश बख्शी, कवि अनिल मिश्र, कथाकार ओमा शर्मा, कवि तुषार धवल सिंह, कवि ह्रदयेश मयंक, कवि हरि मदुल, कवि रमेश यादव, डॉ. रत्ना झा और महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष श्री नंदकिशोर नौटियाल मौजूद थे । अमेरिका से पधारी कवयित्री रेखा मैत्र और मुख्य आयकर आयुक्त द्वय श्री बी.पी. गौड़ और श्री एन.सी. जोशी ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ार्इ । कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ। अंत में संगोष्ठी के संचालक कवि देवमणि पाण्डेय ने महात्मा गाँधी पर लिखी मुम्बई के वरिष्ठ कवि प्रो.नंदलाल पाठक की कविता की कुछ लाइनें उद्धरित कीं-

पसीने से जिसे तुम सींचते आए , उसे अंतिम दिनों में रक्त से सींचा
हमारी ज़िंदगी पर है हमें लानत, तुम्हारी मौत पर तुमको बधाई है
महामानव ! तुम्हें जो देवता का रूप देने पर उतारू हैं
कदाचित वे यहाँ कुछ भूल करते हैं
तरसते देवता जिसकी मनुजता को , उसे हम देवता बनने नहीं देंगे
न जब तक सीख लेता विश्व जीने की कला तुमसे
तुम्हें जीना पड़ेगा आदमी बनकर महामानव 1

एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि गांधीजी की दुर्लभ पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ को शब्दयोग ने अपने इस विशेषांक में पूरा प्रकाशित कर दिया है। शब्दयोग का संकल्प है कि ‘हिंद स्वराज’ को कम से कम दो हज़ार विद्यार्थियों तक ज़रूर पहुँचाया जाए।

IIC में दलित साहित्यकार की पुस्तक का लोकार्पण



दलित साहित्यकार रूप नारायण सोनकर की कृति डंक का लोकार्पण पिछले दिनों इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक विंदेश्वर पाठक ने किया। उन्होंने कृति के बारे में अपनी राय ज़ाहिर करते हुए कहा कि समाज जो व्यवहार दलितों के साथ कर रहा है, उसका वर्णन इसमें है। इस अवसर इर गगनांचल के संपादक अजय गुप्ता, एचटी मीडिया समूह के प्रकाशक राकेश शर्मा और शुक्रवार के संपादक प्रदीप पंडित और मंच के कवि सुरेश नीरव भी मंचासीन थे। गौरतलब है कि एक दलित लेखक की कृति पर आयोजित कार्यक्रम में गैर दलित बुद्धिजीवियों की उपस्थिति ही अधिक थी।

Wednesday, March 24, 2010

मुझे केवल गालियाँ ही ज्यादा दी गयीं- राजेन्द्र यादव



मैंने डेढ़ सौ से अधिक कहानियाँ लिखी लेकिन पिछले पचीस सालों से उनपर कोई बात नहीं की जाती। मेरे ऊपर चार हज़ार से ज्यादा पन्ने लिखे गए लेकिन उनमे मुझे केवल गालियाँ ही ज्यादा दी गयीं। मेरी कहानियों पर कोई बात नहीं हुई। अधिक से अधिक मुझे स्त्री पुरूष संबंधों वाला एकांगी कहानीकार साबित किया गया। आज महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने मुझे फिर से कहानी की दुनिया में लौटने का मौका दिया है, जिसके लिए मैं उसका आभारी हूँ। आज मैं अपनी जानी-पहचानी दुनिया में लौट रहा हूँ।
यह बात राजेंद्र यादव ने विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अनहद कार्यक्रम में कही। उन्होंने इस कार्यक्रम में अपनी चार छोटी कहानियों का पाठ किया। अभिनेत्री पायल नागपाल ने यादव जी की प्रसिद्ध कहानी टूटना के चुने हुए अंशों का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जानी-मानी गांधीवादी राधा भट्ट ने किया। कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने भी राजेंद्र यादव कि रचनाशीलता से जुड़े अनेक सवाल पूछे। कार्यक्रम की शुरूआत में दिवंगत कथाकार मार्कंडेय को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी तथा शोक प्रस्ताव पढ़ा गया। संचालन आनन्द प्रकाश ने किया।

शहीद दिवस पर टोहाना में आयोजित हुई एक गोष्ठी

23 मार्च 2010 । टोहाना (फतेहाबाद)

शहीद भगत सिह, राजगुरू व सुखदेव के शहीदी दिवस पर आज शहीद चौक पर साहित्य व कला सदन व भारत विकास परिषद के सयुक्त तत्वाधान में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया कायक्रर्म के अन्त में शहीदों की प्रतिमाओं पर उपस्थित नागरिकों ने श्रदांजलि अर्पीत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता विधि स्पोर्टस कल्ब के अघ्यक्ष प्रसिद समाजसेवी चिकित्सक डा0 शिव सचदेवा ने की। कुशल मंच संचालन विरेन्द्र विशिष्ठ ने किया। इस मौके पर कला व साहित्य सदन के सदस्यों ने शहीदों पर कविताओं को सुना कर महौल को जोश से भर दिया।
डा0 विकास आनन्द ने सुनाया कि:-
‘‘आजादी के दीवानों का फुलो से सत्कार करे ’’
वतन के अमर शहीदों की मिलकर जय-जयकार करें।

जगदीश कुमार ने आजादी में ढोगी बाबो के प्रति सचेत करते हुए अपनी कविता को पढा:-
‘‘ आज फिर एक ढोगी बाबा ने मर्यादा को कर दिया पार
बना कर एक कन्या को अपनी हवस का शिकार ’’

वही मास्टर मैहन्द्र कुमार ने कविता में देश को सभी देशों से महान बताया:-
‘‘ इस दुनिया वाले बाग में इक फुल है हिन्दुस्तान ।
ये खुश्बु बाटे प्यार की तो महके कुल जहान ।’’

बनवन्त सिह ने सुनाया कि
‘‘ मुझे नही इच्छादारी को मुक्ति दे दो।

सदन सचिव नवल सिह ने शहीदों की जरीए कुर्सी का रास्ता बनाने वालों को चेताते हुए कहा कि
इतिहास को तोड़ना मरोड़ना बन्द करों
देश भक्ती के मसाले से ,
तुम कुर्सी तक का सफर बनाना चाहते हो
इतिहास को अपने ढ़ग से
प्रतिद्वन्दीयों के खिलाफ इश्तेमाल करना चाहते हो ।
‘‘दोस्त‘‘-इतिहास तुम्हारें बाप की जागीर नहीं ।।

विरेन्द्र वरिष्ठ ने आज की पीढी के द्वारा शहीदों की प्रतिमाओं के प्रति अनादर पर सुनातें हुए कहा कि
‘‘उनके प्रति सम्मान जताने की
औपचारिकता निभाते है
और फिर से दो और दो पॉच
बनाने में जुट जाते हैं
क्योकि हमारी नजरों में
वो सिर्फ बुत है।
और बुत शिकायत नहीं करते
सभी कवियों की रचनाओं पर उपस्थ्ति लोग देशभक्ति के रस में सराबोर हो गए।

इस मौके पर भाविप के कुश भार्गव ने इस तरह के समारोहों परीवारीक तौर पर मनाने का आहव्न करते हुए कहा कि शहीदों के विचार आज भी जिन्दा है उन्ही को अपनाने की जरूरत है। इस मौके पर भाविप से अनुप कुमार ,प्रधान राजेश खुराना,सुशील भाटिया कर्मवीर सिह शाखा कन्हडी , पंतजलि योग समिति से रविन्द्र कुमार, यंग इण्डिया फाउंडेशन से जिम्मी पाहवा, संरक्षक अंगद भाटिया, विनय वर्मा, मानव सेवा संगम अशोक मैहता, सुभाष बंसल, ईसर सिह समाजसेवी मजदुर नेता कामरेड प्रताप आदि लोगों के अलावा दर्जनों संस्थाओं के नुमाईदों ने कार्यक्रम में शामिल होकर शहीदों के प्रति अपने श्रदासुमन अर्पित किए।


प्रस्तुति-
नवल सिह
सचिव
कला व साहित्य सदन टोहाना

Monday, March 22, 2010

सिन्धी नव वर्ष "चेटी चाँद" के अवसर पर फिल्म "जय झूलेलाल" का उद्घाटन उत्सव एवं देवी नागरानी के सिन्धी काव्य संग्रह "मैं सिंध की पैदाइश हूँ " का लोकार्पण


अजीत मनयाल, रमेश करनानी, कुमार खिनानी, देवीदास सजनानी, देवी नागरानी और मोहन बेल्लानी

दिनांक 13 मार्च, 2010 रविवार शाम 5‍ः30 बजे आर.डी. नेशनल कॉलेज के ऑडिटोरियम में लायन क्लब ऑफ़ यूनिवर्सिटी कैम्पस एवं लायन क्लब ऑफ़ बांद्रा के लायंस श्री अमर मंजाल एवं देवीदास सजनानी के सौजन्य से सिन्धी फिल्म "जय झूलेलाल" दर्शायी गई, वहाँ फिल्म के मुख्य कलाकार श्री मोहनलाल बेल्लानी(झूलेलाल), कुमार खिलनानी(मिर्ख बादशाह), एवं रमेश करनानी (झूलेलाल के पिता) प्रमुख महमान रहे।
कार्यक्रम की शुरूआत फिल्म से हुई और इंटरवल के पश्चात सभी मेहमानों का शाल सुमन से सम्मान हुआ और श्रीमती देवी नागरानी के कराची से प्रकाशित काव्य-संग्रह "सिंध की मैं पैदाइश हूँ" का लोकार्पण मुख्य मेहमानों के हाथों सम्पन्न हुआ। टी.वी सिन्धुदर्शन चैनेल के अधिकारी श्री मुकेश आडवानी उस कार्यं को कवर करने के लिए मौजूद रहे। सिन्धी सेवी श्री निर्मल मीरचंदानी एवं उनकी पत्नी भी वहां सक्रिय रूप से मौजूद रहे।
आगाज़ी कार्यों की सफलता के लिए अंत में श्री अजित मंजाल ने सभी का धन्यवाद अता किया। देखरेख का कार्य निपुणता से संभाला श्री सुनील खोसला जी ने। मौजूद श्रोताओं में लता सजनानी, वर्षा सजनानी, कल्पना, सावित्री और अनेक सिन्धी अदब के लोगों का नाम प्रमुख है।

प्रस्तुति- देवी नागरानी

Saturday, March 20, 2010

नमिता राकेश को 'वूमेन अचीवर' अवार्ड



Healthy Universe Foundation और राजधानी पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में दिल्ली स्थित प्रसिद्ध हिंदी भवन में अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक भव्य कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धि प्राप्त प्रसिद्ध महिलाओं को सम्मानित किया। इस अवसर पर बहुआयामी प्रतिभा की धनी और जानी मानी कवयित्री श्रीमती नमिता राकेश को Women Achievar Award से सम्मानित किया गया। विभिन्न साहित्यकारों ने नमिता राकेश को हार्दिक बधाई दी जिनमे डॉ हरीश अरोड़ा, किशोर श्रीवास्तव, सुषमा भंडारी, देवमणि पाण्डेय, सुरेश चाँद शौक, धीरज भटनागर और आदरणीय सरोज बाला जी प्रमुख हैं।

Friday, March 19, 2010

लंदन में 'फैसले' की धूम



लंदन के नेहरू केंद्र के सभागार में 18 मार्च को भारी हुजूम उमड़ा। मौका था मशहूर लेखिका और फिल्म निर्माता-निर्देशक रमा पांडे की किताब फैसले के लोकार्पण का। भारतीय मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी पर बने टीवी सीरियल पर आधारित रमा पांडे की इस किताब में उन महिलाओं की जिंदगी पूरी शिद्दत से झांकती है। इस किताब का लोकार्पण लेबर पार्टी की कौंसिलर जाकिया जुबैरी ने किया। इस मौके पर फैसले की कुछ कहानियों की सीडी और डीवीडी भी लांच की गई। इस मौके पर जाकिया जुबैरी ने कहा कि इस किताब का हर पन्ना मैंने चाट लिया है। इसका हर एपिसोड मुझे भारतीय मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी का आईना जैसा लगता है। जुबैरी ये कहने से भी नहीं चूकीं कि सियासत एपिसोड में वे खुद को भी कही ना कहीं पाती हैं।
टेलीविजन और रेडियो की चर्चित शख्सियत रमा पांडे ने अपने आसपास बिखरे किरदारों पर 26 एपिसोड का सीरियल बनाया है। फैसले में उन्हीं कहानियों को संकलित किया गया है। इस समारोह में आकर्षण का केंद्र रहीं अफगानी लेखिका सोफिया। अफगानिस्तान से आईं सोफिया ने कहा कि इस किताब के हर हर्फ का अनुवाद किया जाना जरूरी है। ताकि यह बात उन महिलाओं तक भी पहुंचे, जिनके लिए ये सीरियल बनाया गया है।
बीबीसी हिंदी सेवा से जुड़ी मशहूर लेखिका अचला शर्मा ने इस लोकार्पण समारोह का संचालन किया। इस मौके पर नेहरू सेंटर के हॉल को जयपुरी दुपट्टे से खासतौर पर सजाया गया था। दरअसल जयपुरी दुपट्टे बनाने वाले रंगरेजों की कहानी इस सीरियल के सुलताना एपिसोड में दिखाया गया है। इस कार्यक्रम में जाने - माने अंग्रेजी उपन्यासकार लारेंस नारफोक और बीबीसी हिंदी सेवा के पूर्व प्रमुख कैलाश बुधवार समेत कई हस्तियां शामिल हुईं।



प्रस्तुति- अनीता शर्मा

संगीता सेठी 'मेरी सहेली' की सर्वश्रेष्ठ कहानीकारा

पॉयनियर बुक कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड की प्रमुख पत्रिका “मेरी सहेली” द्वारा आयोजित वार्षिक कहानी प्रतियोगिता में संगीता सेठी की कहानी “मैं भई रे कुंती’’ को प्रथम पुरस्कार से नवाज़ा गया है। प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमामालिनी द्वारा सम्पादित पत्रिका “मेरी सहेली” में जनवरी से दिसम्बर तक प्रकाशित कहानियों के आधार पर एक विजेता कहानी का मूल्यांकन किया जाता है। सितम्बर अंक में प्रकाशित कहानीकार संगीता सेठी की कहानी “मैं भई रे कुंती’’ को विजेता कहानी घोषित किया गया है। यह कहानी पौराणिक युग से कुंती के चरित्र के इर्द गिर्द घूमते हुए आधुनिक युग के सैरोगेट मदर के चरित्र पर आकर समाप्त होती है। पुरस्कार के अंतर्गत 12000 नकद एवं प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया जाएगा।

Thursday, March 18, 2010

हिंदी नव वर्ष पर आनंदम् की काव्य गोष्ठी



दिनांक 16 मार्च की शाम MAX INSURNACE के सभागार में एक यादगार शाम बन गयी . शायरी के शिखर पर पहुँची यह शाम सभी के दिलों में मुहब्बत का पैगाम देती हँसते, रुलाते और कई सन्देश देते गुज़री . जहाँ एक ओर ग़ज़लों ने अपने रंग बिखेरे वहीं कविताएँ वाह-वाह बटोरती चली गयीं. इश्क दर्द गरीबी राजनीति तथा जज्बातों से भरी हर रचना कभी हंसा देती थी तो कभी गंभीर कर देती और कभी कुछ सोचने पर मजबूर कर देती

इस काव्य गोष्ठी की सदारत जाने माने वरिष्ठ कवि राज गोपाल सिंह जी ने की. आनंदम् के अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने उनका स्वागत एक भेट दे कर किया. संचालन किया कवयित्री ममता किरण ने . जिन कावियो ने शिरकत की उनके नाम है : मुनव्वर सरहदी, अनीस अहमद अनीस , मजाज़ अमरोही, जगदीश रावतानी , सुषमा भंडारी, वीरेंद्र कमर , नश्तर अमरोहवी, मनमोहन तालिब , रज़ी अमरोहवी , ममता अगरवाल , शशिकांत सदैव, प्रेम सहजवाला, शिव कुमार मिश्र , शोभना मित्तल , सतीश सागर, पुरषोत्तम वज्र , अहमद अली बर्की सत्यवान, लाल बिहारी लाल , तूलिका , जितेंदर परवाज़, सुमित्रा वरुण, श्याम सुंदर नूर, नाशाद देहलवी, इरफ़ान अहमद, स्वर्ण कुमार रेंगा. जो रचनाए पढ़ी गईं उनमे से कुछ यंहा प्रस्तुत हैं :

मनमोहन तालिब:
रख के सूरज जो सर पे चलते हैं
पांव धरती पर उनके जलते हैं
मंजिले मिलती हैं अमल ही से
बेअमल लोग हाथ मलते हैं

वीरेंद्र कमर :
कह रहे हो भूल जाना चाहिए
भूलने को इक ज़माना चाहिए
साकिया अब तो जनाबे शरीक को
ढल चुकी है शाम आना चाहिए

नश्तर अमरोहवी
बोली बेगम क्या करोगे तुम मेरे मरने के बाद
पागल हो जाऊँगा मैंने कह दिया कुछ सोच के
बोली यह वादा करो शादी नहीं कर लोगे तुम
मैं बोला क्या भरोसा कोई पागल क्या करे

MAMTA AGARWAL :
I AM HAPPY TODAY
I DON'T KNOW WHY
MIND WANTS TO KNOW THE REASON
HEART SAYS DO NOT TRY
JUST BE.....


मुनव्वर सरहदी
चरागों को झूठी तसल्ली न दीजिए
नसीब में इनके सवेरा नहीं


ममता किरण
बशर के बीच पहले भेद करते है सियासतदाँ
ज़रूरत फिर जताते हैं किसी कौमी तराने की

अनीस अहमद अनीस
अंदर अंदर भी होली रहती है
दिल की पिचकारी चलती रहती है

सतीश सागर
दुख के दिन देखने पड़े हैं हमको
व्यंग्य तक झेलने पड़े हैं हमको
अंधे लोगों के बीच जाकर
आईने बेचने पड़े हैं हमको

शोभना मित्तल
बड़ा को-ऑपरेटिव भगवान है, फिर कैसा व्यवधान
कर लो पाप जी भर भैया, प्रायश्चित का है प्रावधान




मासूम गाजयाबदी
हाँ माना पहुचना तुझ तक बहुत मुश्किल है कातिल का
मगर जब रास्ता देंगे तेरी ही पासबां होंगे

सुषमा भंडारी
दह जाऊ तो आग हूँ बह जाऊं तो नीर
ढह जाऊं तो रेत हूँ सह जाऊं तो पीर

मजाज़ अमरोही
उनके जलवे वादिये कश्मीर से कुछ कम नहीं
में हूँ राँझा कि तरह वो हीर से कम नहीं

अहमद अली बर्की
आदी हूँ जिंदगी के नशेबो फराजा का
तामीर कर रहा हू वही घर जो जल गया



डॉ रज़ी अमरोही
एसी कहाँ दुनिया में तकदीर हमारी
बीवी वही प्यारी है जो अल्हा को प्यारी

शशिकांत सदैव
आटे में नौन कम था सो ऑसू मिला लिया
आंच का बहाना बनाकर आंसू छुपा लिया

राज गोपाल सिंह जी ने आनंदम की लगातार हो रही कामयाब और ख़ूबसूरत गोष्ठियों की प्रशंसा करते हुए इन्हें इसी खलूस और कौमी एकता के जज्बे के साथ कायम रखने की सलाह दी. अंत में जगदीश रावतानी जी ने सब का आभार प्रकट करते हुए कहा कि आप लोग यह मुहब्बत बरकरार रखते हुए आनंदम की गोष्ठियों में यू ही आते रहें और अपनी रचनाओं से माहौल में सच्चाई, इश्क़ और सद्भावना के रंग बिखेरते रहें.

Wednesday, March 17, 2010

माता सुंदरी कॉलेज में हुए अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम


गिद्धा डॉंस प्रस्तुत करती छात्राएं

नई दिल्ली। यहॉं नॉन कॉलिजिएट वूमन बोर्ड के माता सुंदरी कॉलेज के वार्षिकोत्सव पर सुश्री कमलेश कौर (नान कॉलेज इंचार्ज) के संयोजन में अनेक साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सुंदर आयोजन किया गया। इन विभिन्न कार्यक्रमों का कॉलेज स्टॉफ व छात्राओं ने जमकर लुत्फ उठाया। इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. विनोद लयाल (निदेशक-नान वूमन कॉलिजिएट) ने गत वर्ष की परीक्षा में अच्छे अंक पाने वाली व विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाशाली छात्राओं की विशेष रूप से प्रशंसा की और उनके निरन्तर आगे बढ़ने की कामना की। समारोह के प्रारम्भ में परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करने वाली विभिन्न प्रतिभाशाली छात्राओं को पुरस्कार भी प्रदान किए गए। सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान डा. रवीन्द्र कौर के निर्देशन में प्रस्तुत गिद्धा डॉंस व श्री गोविन्द के निर्देशन में प्रस्तुत पश्चिमी नृत्य में छात्राओं ने अपने मनोहारी प्रस्तुतकिरण से दर्शकों का मन मोह लिया। इस अवसर पर छात्राओं द्वारा भ्रूण हत्या पर प्रस्तुत नाटक भी प्रभावशाली रहा। समारोह के दौरान दिल्ली के श्री किशोर श्रीवास्तव का लाफ्टर शो व 25वें वर्ष में चल रही उनकी जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी ‘खरी-खरी’ भी आकर्षण का केंद्र रही।
समस्त आयोजन को सफल बनाने में सर्वश्री डॉ. इंदु सिंह, डॉ. हरीश अरोड़ा एवं डॉ. लोकेश का विशेष सहयोग रहा।


किशोर श्रीवास्तव की जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी ‘खरी-खरी’ का अवलोकन करते दर्शकगण

- प्रस्तुतिः लाल बिहारी लाल

भास्कर समूह के तीन पत्रकारों सहित प्रदेश के आठ पत्रकारों को विकास संवाद फैलोशिप

भोपाल। सामाजिक सरोकार एवं विकास से जुड़े मुद्दों पर अध्ययन एवं रिपोर्टिंग के लिए मप्र के पत्रकारों को दी जाने वाली विकास संवाद फैलोशिप के लिए आठ पत्रकारों का चयन किया गया है।
मनीषा पांडेय (दैनिक भास्कर, भोपाल), आशीष महर्षि (भास्कर डॉट कॉम), रफी मोहम्मद शेख (डीबी स्टार, इंदौर), अनिल चौधरी (पत्रिका, भोपाल), शिवकरण सिंह (द स्टेट्समैन, मप्र), सीजी अखिला (पत्रिका इंदौर), नूपुर दीक्षित (पत्रिका, इंदौर), सुश्री श्रदृधा मंडलोई (पिपरिया \) को यह फैलोशिप दी गई है।
विकास संवाद मीडिया फैलोशिप के तहत मध्यप्रदेश में पत्रकारिता से जुड़े पत्रकारों को विकास के मुद्दे पर लेखन व शोध के लिए प्रति वर्ष चयन किया जाता है।
वर्ष 2010 के लिए मनीषा पांडेय को सुरक्षित प्रसव एंव मातृत्व, आशीष महर्षि को विस्थापन एवं बच्चों के अधिकारों का हनन, रफी मोहम्मद शेख को स्कूली शिक्षा से बाहर बच्चे, अनिल चैधरी को शहरी गरीबी का उपेक्षित चेहरा, शिवकरण सिंह को शिक्षा का अधिकारः चुनौती भरी राह, सीजी अखिला को देखरेख एवं संरक्षण की जरूरतमंद बच्चे, नुपूर दीक्षित को शिक्षा व्यवस्था में दंड और उसके व्यापक प्रभाव, और श्रदृधा मंडलोई को स्वास्थ्य का अधिकार और सामुदायिक निगरानी विषय पर फैलोशिप दी गई है। वरिष्ठ पत्रकारों की एक स्वतंत्र चयन समिति ने इन पत्रकारों का चयन किया है।

सौजन्य- सचिन जैन
समन्वयक, मीडिया फैलोशिप

Monday, March 15, 2010

सीपीजे निकालेगा ‘यूथ मैगजीन’



सीपीजे कॉलेज ऑफ हॉयर स्टडीज एंड स्कूल ऑफ लॉ अगले कुछ महीनों में युवाओं पर केंद्रित एक समाचार पत्रिका का प्रकाशन शुरू करेगा।
13 मार्च 2010 को नई दिल्ली के नरेला स्थित सीपीजे कॉलेज ऑफ हॉयर स्ट्डीज एंड स्कूल ऑफ लॉ में कॉलेज के वर्षिकोत्सव ‘मुद्रा 2010’ में युवाओं पर केंद्रित एक समाचार पत्रिका लाने की घोषणा की गई। यह मीडिया घरानों में रौनक लौटने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। मंदी की मार के बाद नई शुरूआत की बयार स्वागत योग्य है। इस अवसर बोलते हुए सीपीजे के श्री आशीष जैन ने कहा कि उनका मकसद युवाओं की ऊर्जा को उचित मार्गदर्शन देना है ताकि जेननेक्स्ट तरक्की करे और देश की उन्नति में भागीदार बने।
इससे पहले मस्ती और जोश से भरपूर कार्यक्रम में नाच गाने के साथ-साथ हँसी का भी जोरदार तडक़ा लगा। बीबीए, बीसीए और लॉ के हर सेमेस्टर के प्रतिभाशाली छात्रों ने ‘मुद्रा 2010’ में अपने अपने तरीके से समा बाँधा।

‘शाश्वती’ ने किया अज्ञेय स्मारक व्याख्यान का आयोजन



जम्मू के अज्ञेय प्रेमी हिन्दी साहित्यकारों की संस्था ‘शाश्वती’’ ने पहला अज्ञेय स्मारक व्याख्यान 7 मार्च 1998 को आयाजित किया था। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाजे हुए शाश्वती ने 7 मार्च 2010 को के.एल. सहगल हॉल जम्मू में अज्ञेय स्मारक व्याख्यान 2010 का आयोजन किया जिसमें हिन्दी के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार और व्यंग्य-यात्रा के सम्पादक प्रेम जन्मेजय ने ‘बदलते सामाजिक परिवेश में व्यंग्य की भूमिका’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया।

व्यंग्य समाज की बुराइयों पर चोट करता है। साहित्यकार विद्रूपताओं और विसंगतियों से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए उसका इस्तेमाल ठीक वैसे ही करता है, जैसे डॉक्टर नश्तर लगा कर फोड़े के मवाद की सफाई करता है। बदलते सामाजिक मूल्यों की पड़ताल करते हुए प्रेम जन्मेजय ने कहा कि मैं उस पीढ़ी का हूं जिसने स्वतंत्रता शिशु की गोद में अपनी आंखें खोली हैं और जिसने लालटेन से कंप्यूटर तक की यात्रा की है। मेरी पीढ़ी ने युद्ध और शांति के अध्याय पढ़े हैं, राशन की पंक्तियों में डालडा पीढ़ी को देखा है तो चमचमाते मॉल में विदशी ब्रांड के मोहपाश में फंसी पागल नौजवान भीड़ को भी देख रहा हूं। मैंने विश्व में छायी मंदी के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था की मजबूती देखी है, पर साथ ही ईमानदारी, नैतिकता, करुणा आदि जीवन मूल्यों की मंदी के कारण गरीब की जी. डी. पी. को निरंतर गिरते देखा है। हमारा आज बहुत ही भयावह है। हमारे शहरों का ही नहीं आदमी के अंदर का चेहरा भी बदल रहा है। पूंजीवाद हमारा मसीहा बन गया है। उसने हमारा मोहल्ला, हमारा परिवार सब कुछ जैसे हमसे छीनकर हमें संवादहीनता की स्थिति में ला दिया है। एक अवसाद हमें चारों ओर से घेर रहा है। हमारी अस्मिता, संस्कृति और भाषा पर निरंतर अप्रत्यक्ष आक्रमण हो रहे हैं। हर वस्तु एक उत्पाद बनकर रह गई है। सामयिक परिवश विसंगतिपूर्ण है तथा विसंगतियों के विरुद्ध लड़ने का एक मात्र हथियार व्यंग्य है। सार्थक व्यंग्य ही सत्य की पहचान करा सकता है, असत्य पर प्रहार कर सकता है और उपजे अवसाद से हमें बाहर ला सकता है। व्यंग्य एक विवशताजन्य हथियार है। व्यंग्य का इतिहास बताता है कि विसंगतियों के विरुद्ध जब और विधाएं अशक्त हो जाती हैं तो कबीर, भारतेंदू, परसाई जैसे रचनाकार व्यंग्यकार की भूमिका निभाते हैं। निरंकुश व्यंग्य लेखन समाज के लिए खतरा होता है, अतः आवष्यक है कि दिशायुक्त सार्थक व्यंग्य का सृजन हो जो वंचितों को अपना लक्ष्य न बनाए। व्यंग्य के नाम पर जो हास्य का प्रदूषण फैलाया जा रहा है उससे बचा जाए और बेहतर मानव समाज के लिए व्यंग्य की रचनात्मक भूमिका उपस्थिति की जाए।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ओम प्रकाश गुप्त ने अपने अध्यक्षीय भाषण में हिन्दी साहित्य को अज्ञेय के अवदान पर चर्चा करते हुए उनको एक महान व्यंग्यकार बताया । डॉ. गुप्त ने प्रेम जन्मेजय को धन्यवाद दिया कि उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को उठाकर आने वाले खतरों के प्रति सावधान किया है।



कार्यक्रम के आरम्भ में अज्ञेय की आवाज़ में उनकी दो कविताओं का पाठ भी सुनाया गया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए रमेश मेहता ने कहा कि अज्ञेय के सौवें जन्म दिन को लेकर जम्मू में खासा उत्साह देखा जा रहा है और वर्ष 2011 में इस संदर्भ में बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा।
डॉ. चंचल डोगरा ने अज्ञेय का और डॉ. आदर्श ने प्रेम जन्मेजय का परिचय प्रस्तुम किया । धन्यवाद ज्ञापन डॉ. निर्मल विनोद ने किया ।

प्रस्तुति: बृजमोहिनी
रिहाड़ी, जम्मू - 180005

Sunday, March 14, 2010

फ़िल्म “हाइड एंड सीक” के सितारे फ्रीज में


खय्याम अपनी अपनी पत्नी जगजीत के साथ

पिछले दिनों फ़िल्म ''हाइड एंड सीक'' के सितारें पूरब कोहली और अमृता पटकी दिल्ली के बेहतरीन आईस लाउंज ''फ्रीज'' में अपनी फ़िल्म के प्रचार के सिलसिले में नजर आये. पश्चिमी दिल्ली के पश्चिमी मॉल में स्थित ''फ्रीज'' एक ऐसा बर्फ का लाउंज व रेस्तरां है जिसमें १० डिग्री का तापमान है. दिल्ली की इस गर्मी में १० डिग्री के इस ठंडे तापमान में लोगो को बहुत ही राहत मिलेगी.
रीढ़ तक को हिला देने वाले इस ठंडे तापमान के रेस्ट्रोरेन्ट ''फ्रीज'' में जाने के लिए पूरब और अमृता दोनों को पहनने के लिए गर्म कोट, जूते और दस्ताने दिये गये, इसके बावजूद वो दोनों हर १० मिनट के लिए बाहर जा रहे थे बर्फीले तापमान से बचने के लिए. पूरब कोहली ने कहा, "हे भगवान, यह लाउंज बहुत ही अदभुत है, मैं पहले ऐसे लाउंज में कभी नहीं गया था, इस लाउंज में आने पर बहुत ही यादगार अनुभव हुए हैं मुझे, और मुझे लगता है कि यह एक ऐसी अच्छी जगह है जहाँ फिल्मों की शूटिंग अवश्य ही होनी चाहिए."
अभिनेत्री अमृता पटकी ने भी कहा, "मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी कि इस लाउंज में मुझे इस तरह के बेहतरीन अनुभव होंगे. हालांकि ''फ्रीज'' रेस्ट्रोरेन्ट ने सर्दी से बचने के लिए सभी कपड़े प्रदान किये हैं लेकिन फिर भी बहुत ही ठंड है. इन सभी अनुभवो से मैं रोमांचित हूँ. यह एक बहुत ही आश्चर्य की बात है कि दिल्ली जैसी गर्म जगह में इतने कम तापमान को जिस तरह बनाए रखा है."
जब इन दोनों सितारों से उनकी फ़िल्म ''हाइड एंड सीक "के बारे में पूछा, " तो उन्होंने कहा, "हम सभी ने बहुत ही मेहनत से इस फ़िल्म को बनाया है, यह फ़िल्म अन्य दूसरी सस्पेंस फिल्मों से बिल्कुल ही अलग है' 12 मार्च को रिलीज हो रही इस फ़िल्म का हर फैसला तो अब दर्शको के हाथ में है.''
लोकप्रिय पॉप सिंगर दिलबाग सिंह ने भी फ़िल्म ''हाइड एंड सीक'' की इस पार्टी की शोभा बढ़ाई. लवप्रीत सिंह "फ्रीज" के डिजाइनर ने बताया की , वह और उनकी पत्नी ''फ्रीज'' के तापमान को जांचने के लिए २- २ घंटे तक ४ से ५ डिग्री के तापमान में बैठे रहते थे.
सौरव कटारिया और मोहित जैन "फ्रीज" के मालिक होने पर बहुत ही गर्व महसूस करते हैं. मोहित जैन ने स्वीकार किया है कि, "इस लाउंज को बनाने में हमें एक साल लग गया इसे बनाना तो आसान है लेकिन दिल्ली जैसी गर्म जगह में बरक़रार रखना कठिन है. लेकिन हमें लोगों की बहुत ही उत्कृष्ट प्रतिक्रिया मिल रही है और हम जल्द ही दिल्ली के एक दूसरे भाग में एक और लाउंज खोलने की योजना बना रहे हैं.



-एच एस कम्यूनिकेशन

Friday, March 12, 2010

साहित्य कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकता : विजय बहादुर सिंह

विजय वर्मा कथा सम्मान तथा हेमंत स्मृति कविता सम्मान में जुटे दिग्गज रचनाकार

मुंबई : "यह सच है कि सभ्यता का ज्यों-ज्यों उत्कर्ष होता जाता है, मनुष्य उतना ही अकेला पड़ता जाता है इसलिये साहित्य का दायित्व भी उतना ही बढ़ता जाता है। ऐसे में कोई कुछ भी कहे कविता और साहित्य कभी अप्रसांगिक नहीं हो सकते बल्कि दिन-दिन उनका महत्व बढ्ता ही जाएगा। इस दृष्टि से हेमंत फ़ाउंडेशन के काम को मैं अत्यन्त महत्वपूर्ण मानता हूँ और उनके जज्बे का सम्मान करता हूँ।" ये उदगार भारतीय भाषा संस्थान के निदेशक डा. विजय बहादुर सिंह ने 23 जनवरी 2010 शनिवार को श्री राजस्थानी सेवासंघ प्रांगण में हेमंत फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित विजय वर्मा कथा सम्मान एवं हेमंत स्मृति कथा सम्मान समारोह में व्यक्त किए।
साहित्यकारों, टी.वी. अभिनेताओं, साहित्यप्रेमियों तथा मीडिया, प्रेस से संलग्न तथा लखनऊ से विशेष रुप से आए तद्‍भव के संपादक अखिलेश एवं भोपाल से आए राजेश जोशी भी उपस्थित थे। जनसमूह से भरे खुले प्रांगण में तालियों की गडगडाहट के बीच वर्ष २०१० का विजय वर्मा कथा सम्मान राजू शर्मा को उनके उपन्यास 'विसर्जन' तथा हेमंत स्मृति कविता सम्मान राकेश रंजन को उनके कविता संग्रह 'चांद में अटकी पतंग' के लिए कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि विजय बहादुर सिंह ने प्रदान किया। उन्होंने सम्मानित उपन्यासकार एवं कवि को ग्यारह हजार की धनराशि,शाल, श्री फ़ल, स्मृति चिन्ह ,पुष्प गुच्छ प्रदान करते हुए अपना हर्ष व्यक्त किया।
कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन के साथ पुष्पगुच्छ एवं शाल भेंट कर अतिथियों का स्वागत किया गया। एवं कवि तथा गीतकार हरिश्चन्द्र ने भावविभोर होकर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। अतिथियों का स्वागत करते हुए अध्यक्ष विनोद टीबडेवाला श्री राजस्थानी सेवा संघ ,एवं चांसलर श्री जगदीश प्रसाद झाबरमल टीबडेवाला विश्व विधालय झुंझनू ने कहा कि '' उन्होंने हेमंत फ़ाउंडेशन को अपने झुंझनु स्थित विश्वविधालय का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विभाग बनाया है। इसके अंतगर्त वे पुरस्कार समारोह, साहित्यिक गोष्ठियां एवं पुस्तकों का लोकार्पण का आयोजन भी किया करेंगे। संस्था की प्रबंधन्यासी,कथा लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने अपने बीज वक्तव्य में कहा- '' हेमंत स्मृति कथा सम्मान राकेश रंजन को देते हुए मैं अत्यन्त हर्षित हूं कि मुझे आज एक और हेमंत मिल गया। आज जब धर्म के नाम पर आतंक ने तमाम देशों के विश्वास और संस्कृति को कुचला है, राकेश रंजन ने अपनी कविताओं में संप्रदायवाद के विरुद्व बडी पैनी बानगी प्रस्तुत की है।"
समारोह में राजू शर्मा के उपन्यास''विसर्जन'' पर डा. राजम नटराजम पिल्लै ने अपना आलोचनात्मक वक्तव्य प्रस्तुत किया। राकेश रंजन के कविता संग्रह ''चांद में अट्की पतंग'' के लिए प्रमिला वर्मा ने समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि राकेश की कविताओं में चांद की भरमार है। चांद को केन्द्र में रखकर लिखी कविता 'चांद से' विलक्षण कविता है। उनकी अन्य कविताओं में पशु-पक्षियों की सघन उपस्थिति गहरी मानवीय संवेदना का परिचायक हैं।
विशेष रूप से इस समारोह में आए प्रभु जोशी ने कहा ''कितने ही महानगरीकरण के शीर्ष पर पहुंचते व्यवस्थाएं अन्तर्विरोध पैदा हो जाएं बावजूद इसके कविता मौजूद रहेगी। विसर्जन मैनें पढा नहीं है पर इतना कह सकता हूं कि रचना किस वजह से कितनी पसंद होती है यह पाठकों की रुचि पर निर्भर है।''
पुरस्कृत रचनाकारों ने अपने वक्तव्यों में अपनी रचना प्रक्रिया, प्रतिबद्वता और सरोकारों को स्पष्ट किया। पुरस्कार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए राजू शर्मा ने कहा-'' मौजूदा परिस्थितियों में इतना जोखिम उठाकर साहित्यिक काम में यह संस्था लगी है। सम्मानों का महत्व तो होता है कि वह इस बहाने पाठ्कों तक लेखकों को पहुंचाता है।''
राकेश रंजन ने संस्था के प्रति आभार व्यक्त किया। और संग्रह की कुछ कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्वनाथ सचदेव ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा-'' कि सम्मान के रूप में साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार १२ वर्षों से हेमंत फ़ांउडेशन तमाम दिक्कतों के बावजूद सक्रिय है, यह बहुत महत्वपूर्ण है।''
समारोह में कार्यक्रम का संचालन कवि आलोक भट्टाचार्य ने किया। सभी का आभार टी.वी. कलाकार सोनू पाहूजा ने व्यक्त किया।

संतोष श्रीवास्तव

सारेगामा के “परिचय” सीरिज में सभी महान संगीतकार शामिल हैं


खय्याम अपनी अपनी पत्नी जगजीत के साथ

पिछले दिनों संगीत कंपनी सारेगामा ने "परिचय" शीर्षक से ८ "एम पी ३" की एक सीरिज लॉन्च की, इस अवसर पर सारेगामा के अतुल चूड़ामणि, नज़मा मर्चेंट, महान संगीतकार खैयाम व उनकी पत्नी गायिका जगजीत कौर भी उपस्थित थी. इन महान संगीतकारों को सम्मानित करने के उद्देश्य से ही सारेगामा ने यह सीरिज रिलीज़ की है, जिन संगीतकारों को इस सीरिज में शामिल किया है उनमे खैयाम, रोशन, रवि, लक्ष्मीकान्त प्यारे लाल, शंकर जयकिशन, मदन मोहन, ओ पी नैय्यर और सलिल चौधरी हैं. एक "एम पी ३" की कीमत मात्र ७५ रूपए है.

महान संगीतकार खैयाम ने कहा कि, "सारेगामा के पास तो संगीत की सारी धरोहर है, इसने ये सीरीज रिलीज़ करके बहुत ही अच्छा काम किया है. इन "एम पी ३" में सभी गीत ऐसें हैं, जिन्हें श्रोता बार बार सुनना पसंद करते हैं."


अतुल चूड़ामणि, नजमा मर्चेंट, और खैयाम

-एच एस कम्यूनिकेशन

Thursday, March 11, 2010

प्रातः वार्ता दैनिक के रंगीन संस्करण का शुभारंभ



राजधानी दिल्ली से लगभग ढाई वर्षों से निकलने वाले प्रातः वार्ता के रंगीन संस्करण का आज शुभारंभ हो गया.आज कांस्टीट्यूशन क्लब में इसका विमोचन वरिष्ठ सांसद श्री बलराम नाइक,श्री केन सागर, श्री गोपाल शर्मा,शमशेर अहमद खान और श्री राम गोपाल शर्मा ने दिल्ली व देश के विभिन्न प्रांतों से आए वरिष्ठ पत्रकारों, वरिष्ठ साहित्यकारों कवियों,लेखकों,विद्वतजनों और संभ्रांत नागरिकों के सान्निध्य में किया गया. आज देश में गिरती हुई पत्रकारिता के स्तर में नैतिक और चारित्रिक रूप से उत्थान लाने के लिए यह संकल्प लिया गया कि आज राष्ट्र के सतत विकास में निष्पक्ष मीडिया की सख्त जरूरत है और उस भूमिका में प्रातः वार्ता भी अपनी वही भूमिका निभाएगा जो राष्ट्र के विकास में उपयोगी होगा.आज दिल्ली में वैसे तो अनेक बड़े घरानों के पत्र तो हैं किंतु वे भौतिकवाद की चमक में जनता, राष्ट्र और समाज से काफी दूर हो गए हैं.और कुछ इस प्रकार से मीडिया पर हावी हो गए हैं कि जनता और सरकार के बीच इंद्रजाल सा खडा कर दिए हैं इसलिए यह जरूरी था कि जनता की आवाज के लिए ,उनके हकों के लिए और समाज व राष्ट्र की सही तस्वीर पेश करने के लिए ऐसा मीडिया हो जिससे जनता के बीच में इसके प्रति विश्वास कायम किया जा सके.इस कमी को पूरा करने के लिए ही इसे रंगीन किया गया है ताकि सबके बीच रहते हुए भी अपनी पहचान बता सके और सही अर्थों में मीडिया का प्रतिनिधित्व कर सके.

माननीय सांसद श्री बलराम नाइक ने आशीर्वाद देते हुए मीडिया के धर्म को अपनाने का आह्वान किया.

सलाहकार संपादक श्री एस.एस.शर्मा और प्रधान संपादक श्री धर्मेंद्र शुक्ला के संयोजकत्व में यह समारोह एक यादगार समारोह बन गया जिसमें श्री चौबे जी और प्रातःवार्ता की टीम की सक्रिय भागीदारी विशेष रूप से सराहनीय रही.



प्रस्तुति- शमशेर अहमद खान

Wednesday, March 10, 2010

व्यंग्यकार को विचारों से क्रांतिकारी भी होना चाहिए - प्रो. नंद चतुर्वेदी

होली व्यंग्य विशेषांक का विमोचन समारोह सम्पन्न



उदयुपर 9 फरवरी। व्यंग्य लेखक को विचारों से क्रांन्तिकारी होना चाहिए तभी वह समाज एवं देश की विद्रूपताओं एवं विसंगतियों को साहित्य में अभिव्यक्त कर सकता है। आज अधिकतर व्यंग्य लेखक केवल राजनीति एवं राजनेता पर ही व्यंग्य करता है जबकि व्यंग्य के माध्यम से तो समाज की गदंगी तथा पूरी शताब्दी को व्यक्त नहीं करता, नहीं स्वयं पर हंसता है, अतः मुझे लगता है कि जो व्यंग्यकार स्वयं पर नहीं हंस सकता है उसे समाज के लोगों पर हंसने का कोई अधिकार नहीं है। ये विचार समाजवादी विचारक कवि एवं साहित्यकार प्रो. नन्द चतुर्वेदी ने महावीर समता संदेश के होली
व्यंग्य विशेषांक के विमोचन के अवसर पर मुख्य अतिथि के पद से बोल रहे थे। महावीर समता संदेश के होली व्यंग्य विशेषांक के विमोचन का कार्यक्रम समता संदेश के कार्यलय भूपालपुरा उदयपुर में प्रोनन्द चतुर्वेदी, प्रो. नरेश भार्गव व डॉ. देवेन्द्र इन्द्रेश के हाथों सम्पन्न हुआ।
प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि समाज के व्यंग्य लेखक को अपनी लेखनी के बल पर समाज और देश में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा असमानता पर व्यंग्य करना चाहिए तथा एक बार उसे जेल भी जाना चाहिए तभी जाकर वह देश की व्यवस्था पर तीखे व्यंग्य कर सकेंगे। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि जेल जाने से मेरा आशय यह है कि व्यंग्य इतना तीखा हो कि सरकार व नेता तिलमिला जाये और व्यंग्यकार को जेल भेज दे। विशेषांक इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रेरित करेगा ऐसी मुझे आशा है।
होली व्यंग्य विशेषांक के अतिथि सम्पादक डॉ. देवेन्द्र इन्द्रेश ने व्यंग्य विशेषांक में सम्मिलित किये गये लेखों पर प्रकाश डाला और कहा कि हिन्दी के ही नहीं अन्य विषयों के पाठक भी इस अंक को पढ़कर लाभान्वित होंगे। जहां आज की पत्र-पत्रिकाओं से व्यंग्य खत्म होते जा रहे हैं यह विशेषांक पाठको की भूख को शान्त कर सकेगा।
डॉ. नरेश भार्गव जिन्होंने इस विशेषांक के मुख पृष्ठ पर क्लासिक तथा आज की विडम्बनाओं और समाज की असलियत को व्यक्त करने वाले सार्थक कार्टून भी बनाये हैं। भार्गव सा. ने कहा कि व्यंग्य बड़ा कड़वा हुआ करता है। समाज के लोगों की सच्चाई को व्यक्त करता है। इसलिए लोग इसे स्वीकारते नहीं है, पहले पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य का अलग स्तम्भ होता था अब वह समाप्त हो चुका है। ऐसे समय पाठक यह विशेषांक पढ़कर अवश्य लाभान्वित होगा। उन्होंने कहा कि इस विशेषांक
में प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य चित्र बनाने वाले कलाकारों की कृर्तियां भी ली गई है।
प्रधान सम्पादक हिम्मत सेठ ने कहा कि महावीर समता संदेश गम्भीर विषयों व समाज के वंचित लोगों के दुःख-दर्द को उठाने वाला सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ एक गम्भीर अखबार है। रंगों के त्यौहार होली के अवसर पर हमने सोचा पाठको को हास्य-व्यंग्य परोसकर कर उन्हें गुदगुदाया जाये। व्यंग्य विशेषांक आपके हाथों में है। सेठ ने अतिथि सम्पादक डॉ. देवेन्द्र इन्द्रेश व प्रो. नरेश भार्गव के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इन दोनों के परिश्रम और सहयोग के चलते ही यह व्यंग्य विशेषांक प्रकाशित हो पाया। इस विशेषांक में प्रतिष्ठित व्यंग्य लेखकों के व्यंग्य, कहानियां, संस्मरण तथा साथ ही इसमें कुछ नये व्यंग्य लेखकों को भी सम्माहित किया है जो समाज व देश को भ्रष्ट राजनीति और असमानता से मुक्त करने की दिशा में एक सार्थक प्रयास होगा। इस अवसर पर ज्योत्सना इन्द्रेश, कपिल जोशी, इन्स्टियूट ऑफ इंजीनियर्स उदयपुर चेप्टर के पूर्व इंजिनियर एस.एलगोदावत, समाजकर्मी शांतिलाल भण्डारी, डॉ. प्रीति जैन, पीयूष जोशी, सेवानिवृत व्याख्याता रोशन सेठ आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संयोजन हिम्मत सेठ ने तथा धन्यवाद एवं आभार सीताराम शर्मा ने व्यक्त किया।

हिम्मत सेठ
प्रधान सम्पादक
महावीर समता संदेश

फ़िल्म “द जैपनीज वाइफ” से निर्देशिका अपर्णा सेन की वापसी


मौसमी चटर्जी

संगीत कंपनी सारेगामा फ़िल्म ''Mr & Mrs Iyer'' की हिट टीम जिसमें निर्देशिका अपर्णा सेन व राहुल बोस शामिल हैं की नयी फ़िल्म ''द जैपनीज वाइफ'' अपने दर्शकों के लिए लेकर आयी हैं, ९ अप्रैल २०१० को रिलीज़ होने वाली इस फ़िल्म के सितारे हैं राहुल बोस, राइमा सेन, चिगुसा ताकाकू और मौसमी चटर्जी। इस बार भी अपर्णा सेन ने अलग से विषय पर एक अलग सी प्रेम कहानी पर बनायीं है।
सुंदरवन में एक स्कूल शिक्षक है स्नेहमोय नाम का और मियागे जापान की एक जवान लड़की है, ये दोनों ही पत्रों के माध्यम से एक-दूसरे से मिलते हैं और आपस में उनमें प्यार हो जाता है इसके अलावा पत्र के माध्यम से ही वो शादी भी कर लेते हैं उनकी शादी को १५ साल हो चुके हैं जबकि वो आज तक एक दूसरे से कभी नहीं मिले हैं।
इस कहानी को परदे पर जिस संवेदनशील तरीके से अपर्णा सेन ने प्रस्तुत किया है वो केवल उन्हीं के बस की बात है उन्होंने जिस दक्षता के साथ स्नेहमोय और मियागे के प्यार, उनकी खुशी व हँसी, उनके दुख को, प्यार की कविता की तरह पेश किया है यह बहुत ही अदभुत है।


मौसमी चटर्जी और राहुल बोस

सारेगामा के प्रबंध निदेशक अपूर्व नागपाल कहते हैं, ''हम अपर्णा के काम करने की क्षमता की प्रशंसा करते हैं। यह सिर्फ एक फिल्म ही नहीं है बल्कि एक गीतात्मक प्यार की कविता है, जो की आज के तात्कालिक युग में बिल्कुल ही अलग लगती है। दर्शकों को यह अलग सी प्रेम कहानी अवश्य ही पसंद आएगी."
भारतीय फिल्मों में पहली ही बार एक जापानी अभिनेत्री चिगुसा ताकाकू ने अभिनय किया है इसके अलावा स्नेहमोय के चरित्र में राहुल बोस की अभिनय प्रतिभा देखते ही बनती है, अभिनेत्री राइमा सेन ने भी सशक्त अभिनय किया है और अभिनेत्री मौसमी चटर्जी, परदे पर दो दशकों के बाद अभिनय कर रही हैं।

“अपर्णा सेन अंत तक मुझे राइमा की बजाय कोंकना ही कहती रही” – राइमा सेन


राइमा सेन

अभिनेत्री राइमा सेन फ़िल्म ''जैपनीज वाइफ'' के सेट पर हमेशा ही डरी रहती थी क्योंकि वह फिल्म की निर्देशिका अपर्णा सेन के निर्देशन में काम कर रही थी और वो जानती थी वो कितनी कड़क निर्देशिका हैं.
शूट पर किसी ने बताया कि, ''राइमा को यह बात किसी से पता चल गयी थी कि अपर्णा सेन एक कुशल निर्देशिका हैं, और वो शूट पर किसी भी तरह की गलती पसंद नहीं करती. जिस तरह से वो अपने काम को सफलता के साथ पूरा करती हैं वो चाहती हैं कि उनकी टीम का प्रत्येक सदस्य भी इसी पूर्णता के हर काम को पूरा करे. फिल्म निर्माण के प्रति उनका बेहद लगाव हैं और उन्हें वो ही लोग पसंद हैं जिन्हें अपने काम के प्रति लगाव है. वह बेतुकी बात में अपना समय बर्बाद नहीं करती है.''
राइमा ने इस बात की पुष्टि की और बताया कि, ''शुरू में मुझे अपर्णा सेन से बहुत डर लगता था, क्योंकि मैंने सुना था कि वह एक कडक निर्देशिका है. लेकिन मैं तो उनकी फ़िल्म में काम कर रही थी. जब कोई सीन सही नहीं होता तब वो मुझे डांटती, मुझे बार - बार एक दृश्य समझाती. पर थोड़ी ही देर बाद वो मुझे लाड़ - प्यार करती. उन्होंने मुझे हमेशा ही अपनी बेटी की तरह प्यार किया. कई बार वह शूटिंग के अंत में मुझे वो राइमा की जगह कोंकना ही बुलाती. शूट के बाद हम हर शाम लंबी सैर के लिए जाते. "
सेट पर उपस्थित एक जानकार का कहना है कि "जो लोग अपर्णा के उच्च स्तर तक नहीं पंहुच पाते हैं वो लोग ही उनके साथ काम नहीं कर पाते हैं और वो ही लोग ये कहते हैं कि अपर्णा एक कडक निर्देशक हैं, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.''


राहुल बोस


राहुल बोस


राहुल बोस


राहुल बोस


राइमा सेन, अपर्णा सेन और मौसमी चटर्जी


राइमा सेन


राइमा सेन


राइमा सेन
प्रस्तुति- एच एस कम्यूनिकेशन

Tuesday, March 9, 2010

रेखा मैत्र के सम्मान में काव्य संध्या


श्रीमती बॉबी, सुमीता केशवा, रेखा मैत्र, माया गोविंद, कविता गुप्ता, उमा अरोड़ा

अमेरिका से पधारी कवयित्री रेखा मैत्र के सम्मान में जीवंती फाउंडेशन, मुम्बई की ओर से जुहू में एक काव्य संध्या का आयोजन किया गया। अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री माया गोविंद ने की। रेखा जी का परिचय कराते हुए कवि-संचालक देवमणि पाण्डेय ने कहा कि बनारस (उ.प्र.) में जन्मीं रेखा मैत्र की उच्च शिक्षा सागर (म.प्र.) में हुई। मुम्बई में कुछ साल अध्यापन करने के बाद मेरीलैण्ड (अमेरिका) में बस गईं। यहाँ भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी संस्था ‘उन्मेष’ के साथ सक्रिय हैं। रेखा जी के अब तक दस कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। रेखा मैत्र ने अपने जीवंत व्यहार और संवेदनशील कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी एक कविता चिड़िया देखिए-

इस मटियाली इमारत में
चिड़िया भी सहमी सहमी घूम रही है।
गोया इसे भी डर है कि
कहीं इसे भी क़ैद न कर लिया जाए।
अपने पंखों का अहसास भूल ही गई है शायद।

कवयित्री माया गोविंद ने तरन्नुम में ग़ज़ल सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया-

सूनी आँखों में जली देखीं बत्तियाँ हमने
जैसे घाटी में छुपी देखीं बस्तियाँ हमने
अब भटकते हैं य़ूँ सहरा में प्यास लब पे लिए
हाय क्यूँ बेच दी सावन की बदलियाँ हमने

समकालीन हिंदी कविता के जाने-माने हस्ताक्षर डॉ.बोधिसत्व ने ‘तमाशा’ कविता का पाठ किया। कुछ पंक्तियाँ देखिए-

तमाशा हो रहा है
और हम ताली बजा रहे हैं
मदारी साँप को दूध पिला रहा हैं
हम ताली बजा रहे हैं

अपने जमूरे का गला काट कर
मदारी कह रहा है-'ताली बजाओ जोर से'
और हम ताली बजा रहे हैं

प्रतिष्ठित फ़िल्म लेखक राम गोविंद का शायराना अंदाज़ देखिए-

वो समझते थे दिल की जाँ सा है
क्या पता था कि वो जहाँ सा है
आह की हमसे बड़ी भूल हुई
वो समझते थे बेज़ुबाँ सा है

अपने सूफ़ी अलबम ‘रूबरू’ से लोक प्रिय हुए युवा शायर हैदर नज़्मी ने एक बेहतर नज़्म पेश करने के साथ ही ग़ज़ल सुनाकर समाँ बाँधा-

तुम्हें इस दिल ने जब सोचा बहुत है
हँसा तो है मगर रोया बहुत है
मुझे अब ज़िंदगी भर जागना है
कि मुझपे ख़्वाब का क़र्ज़ा बहुत है

कवि-गीतकार देवमणि पाण्डेय ने भी ग़ज़ल सुनाकर इस ख़ूबसूरत सिलसिले को आगे बढ़ाया-

इस ग़म का क्या करें हम तनहाई किससे बाँटें
जो भी मिली है तुमसे रुसवाई किससे बाँटें
तेरी मेरी ज़मीं तो हिस्सों में बँट गई है
यह दर्द की विरासत मेरे भाई किससे बाँटें


राम गोविंद, अरविंद राही ,बोधिसत्व, अरुण अस्थाना, रेखा मैत्र, हैदर नज़्मी, देवमणि पाण्डेय

कथाकार अरुण अस्थाना ने सामयिक कविता का पाठ किया। श्रीमती सुमीता केशवा ने औरत के अस्तित्व पर और कविता गुप्ता ने तितलियों के तितलाने पर कविता सुनाई। अनंत श्रीमाली ने व्यंग्य कविता और अरविंद राही ने ब्रजभाषा के छंद सुनाए। जीवंती फाउंडेशन की ओर से श्रीमती बॉबी ने रेखा मैत्र का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया। श्रीमती माया गोविंद ने रेखा जी को अपना काव्य संकलन भेंट किया। इस अवसर पर श्रीमती उमा अरोड़ा और श्रीमती कुमकुम मिश्रा अतिथि के रूप में मौजूद थीं।

Monday, March 8, 2010

सीमा तिवारी की आवाज से मधुमई हुई शाम



नई दिल्ली । 8 मार्च 2010

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के पूर्व संध्या पर माननीय लोकसभा अध्यक्षा मीरा कुमार जी का निवास और सुर में पिरोई हुई देश की जानी मानी लोक गायिका सीमा तिवारी की आवाज से मधुमास के महीने की शाम मधुमई हो गई. इस कार्यक्रम की शुरूआत "दिल्ली के धरती ह लोग भोजपुरिया स्वागत में रउरा हमार झुकल बा मउरिया .............................. गीत के साथ हुई. चइती गीत "आधी आधी रतिया जगावे इ कान्हा तोरीरे बंसुरिया......... एवं "बनेबने फुलवा फुलइले हो रामा एही मधुमसवा................ पर लोग झूमने पर मजबूर हो गये। सीमा तिवारी ने इस मौके पर महिलाओं एवं भोजपुरी में आ रही अश्लीलता के लिए एक सन्देश गीत "हरियर टीकुलिया लहरेदार टिकुली गिरे न पावे..................... भी गाया।
इस समारोह का आयोजन पटना विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया था। इस समारोह में भूतपूर्व राज्यपाल डॉ भीस्म नारायण सिंह, आई.पी.एस आमोद कंठ, आई. ई. एस. श्री मंजूल जी, पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष श्री शिवजी सिंह, श्री हरेन्द्र प्रताप सिंह, सिम्पैथी के निदेशक डॉ आर. कान्त. एवं समाजसेवी लाल बिहारी लाल सहित कई गणमान्य लोगों ने इस कार्यक्रम का लुफ्त उठाया। अंत में पटना विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।



प्रस्तुति: सीमा तिवारी

Saturday, March 6, 2010

गाँव के आम आदमी की समस्याओं से जुड़ा है धारावाहिक “पीहर”



एक मध्यम वर्गीय परिवार की बेटी है नंदिनी (टीना पारेख), जो एक गाँव में रहती है पढने में बहुत ही होशियार है और इसी तरह अपनी मेहनत व लगन के बल पर वह एम बी बी एस कर डॉo बन जाती है. इसी दौरान उसकी मुलाकात समीर नामक एक युवक से होती है व दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं और शादी कर लेते है. शादी के बाद नंदिनी अपने पति के साथ मारीशस चली जाती है. लेकिन वहां उसका मन नहीं लगता है उसे हर दम अपने गाँव व घर की याद सताती है. मारीशस और उसके गाँव की संस्कृति व रहन - सहन में बहुत ही अंतर है, उसके गाँव व उसका पीहर आर्थिक रूप से संपन्न नहीं है जिसकी उसे बहुत ही चिंता है. इसी बात को लेकर नंदिनी व उसके पति में आपस में मन मुटाव रहता है, उसके पति का कहना है कि अब उसकी शादी हो चुकी है और ससुराल ही उसका घर है अपने पीहर की चिंता उसे नहीं करनी चाहिए. अब यह सब उसका फर्ज नहीं बल्कि उसके भाइयो का है. इसके जवाब में वो कहती है कि जब एक ही घर में एक ही माँ से जन्म लेकर हम भाई - बहन एक साथ रहते हैं तो उस घर के प्रति किसी एक का नहीं बल्कि सभी भाई व बहन का फर्ज बनता है. इसी के चलते वो वापस अपने पीहर आ जाती है और अपने गाँव में अस्पताल खोलने का जो सपना उसने पहले देखा था उसे पूरा करना चाहती है. उसके घर में उसकी माँ गायत्री (साधना सिंह) उसके तीन भाई मनीष (मधुर अरोरा), सागर (हितेश कृपलानी), विष्णु (अमित) हैं.

इसी दौरान उसे पता चलता है कि गाँव में आम आदमी की क्या - क्या समस्याएं हैं? खाद के लिए सब्सिडी मिलती है लेकिन उसका फायदा गरीब किसानो को नहीं मिल पाता. इसी तरह रोजगार योजना के तहत लोन मिलता है इसके लिए भी उन्हें कितने चक्कर लगाने पड़ते हैं, ग्रामीण विकास की कई सारी योजनायें हैं लेकिन उनकी जानकारी लोगो को नहीं है. ये ही नहीं और भी कई समस्याएं हैं जिनसे गाँव वालों को दो चार होना पड़ता है.

आम आदमी की इन सभी समस्याओ के पीछे ऊँचे ओहदे वाले भ्रष्टाचारी लोग हैं. नंदिनी इन सभी भ्रष्टाचारी लोगों का पर्दाफाश करने की कोशिश करती है डी एम (कुलदीप दुबे) व समाज सेविका कल्पना (कविता राठोड) की मदद से. हालाँकी इस सबकी वजह से वो कई लोगो को आँखों की किरकिरी भी बन जाती है.

क्या नंदिनी अपने मकसद में कामयाब हो पाती है? क्या उसकी वजह से गाँव वालो को उनके सभी अधिकार मिल पाते हैं?

इन सभी सवालों के जवाब जानने के देखिये डी डी नेशनल पर दोपहर १ बजे प्रसारित होने वाला धारावाहिक ''पीहर''. जिसकी टी आर पी नम्बर वन है. जिसके दर्शक दिल से इससे जुड़े हुए हैं. १५० से अधिक एपिसोड इस धारावाहिक के प्रसारित हो चुके हैं. विशान्त ऑडियो के बैनर में निर्मित इस धारावाहिक निर्माता हैं रमेश बोकाडे व निर्देशक हैं हिमांशु कोंसुल.

-एच एस कम्यूनिकेशन

Friday, March 5, 2010

रंगों और रेखाओं का अद्‍भुत मेल



बबिता बिश्वास चित्रकला जगत में विशेषकर वारली पेंटिंग में ख्यातिप्राप्ति नाम है। कला जगत में उनकी उप्लब्धियों की फेहरिस्त लंबी है। उन्हें अनेक सम्मान हासिल हो चुके हैं। कला से संबंधित अनेक वर्कशाप और कैम्प वे आयोजित कर चुकी हैं। उन्होंने न केवल एकल या सांझी चित्र प्रदर्शनियां देश के विभिन्न भागों में आयोजित की हैं बल्कि उनके दो प्रायोजित शो भी हो रहे हैं। उनमें से उनका पहला शो भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित हुआ, जिसकी कुछ झलकियाँ प्रस्तुत हैं-