Tuesday, August 31, 2010

जनकवि गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ की पुस्‍तक का लोकार्पण

“जीवन की गूँज” जीवन से आप्‍लावित क़ृति-डॉ0 कंचना सक्‍सैना


बायें से दायें- डॉ0 अशोक मेहता, डॉ0 कंचना सक्‍सैना, श्री रघुराज सिंह हाड़ा, डॉ0 औंकारनाथ चतुर्वेदी, आचार्य ब्रजमोहन मधुर, कृतिकार गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ और श्री रघुनाथ मिश्र पुस्‍तक ‘जीवन की गूँज’ का लोकार्पण करते हुए।

कोटा। 22 अगस्‍त। जनकवि गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ का काव्‍य संग्रह ‘जीवन की गूँज’ का लोकार्पण जनवादी लेखक संघ, कोटा द्वारा आयोजित किया गया।

श्री मिश्र ने कृतिकार परिचय देने से पूर्व ‘आकुल’ के बारे में कहा-‘नहीं जाना था तो कुछ भी नहीं जाना था। जाना तो कुछ जाना। अब जाना तो यह जाना कि अभी तक तो कुछ भी नहीं जाना।‘ उन्‍होंने कहा कि आज आप जो कुछ जानेंगे उसके बाद भी बहुत कुछ जानने को रह जाता है। आज कई पर्दे खुलेंगे। ऐसे और भी मनीषी साहित्‍यकार हैं जिन्‍हें यह शहर बहुत समय तक नहीं जान पाया, उनमें से आकुल भी एक हैं। 1996 में उनकी पहली नाट्य कृति ‘प्रतिज्ञा’ कोटा के भारतेंदु समिति में विमोचित हुई थी उसके बाद से कोटा के साहित्‍य समाज से कोटा में रहते हुए भी श्री भट्ट गुमनामी की तरह अपनी साहित्‍य जीवन यात्रा करते रहे। श्री मिश्र ने भट्ट की दूसरी पुस्‍तक ‘पत्‍थरों का शहर’ की उनका प्रख्‍यात संवाद ‘दोस्‍त फ़रिश्‍ते होते हैं, बाक़ी सब रिश्‍ते होते हैं’ से आरंभ की और कहा कि यह एक ऐसा जुमला किया है, जिससे सारा देश जो ‘आकुल’ को जानता है या नहीं जानता चर्चाएँ करता है। इस पर 6-8 घंटे की संगोष्‍ठी की जा सकती है। हमारे मुख्‍य अतिथि महोदय ने स्‍वयं ने इसे सूक्ति कहा है। ‘आकुल’ का जीवन संगीत और साहित्‍य से ओतप्रोत रहा है। यह उनकी विशेषता रही है कि अपने साहित्‍य प्रकाशनों में उन्‍होंने कभी संगीत यात्रा का परिचय नहीं दिया। अनेकों वाद्य बजाने में सिद्धहस्‍त आकुल ने प्रमुख की बोर्ड प्‍लेयर (सिन्‍थेसाइज़र) के रूप में देश के प्रमुख आर्केस्‍ट्राओं में अपनी विशेष पहचान बनाई। 1980 से 1988 के मध्‍य लगभग 10 विदेशों में उनके स्‍टेज प्रोग्राम्‍स को वे अपने जीवन का स्‍वर्णिम समय मानते हैं। उन्‍होंने मथुरा वृन्‍दावन की कई रासलीला व रामलीला मंडली के साथ पार्श्‍व संगीत दिया।

पुस्‍तक के लोकार्पण के पश्‍चात् सर्वप्रथम डॉ0 फ़रीद अहमद ‘फ़रीदी,’ जो “आकुल” की पुस्‍तक ‘पत्‍थरों का शहर’ के सम्‍पादक भी रहे हैं, ने उनके सम्‍मान में पाँच छंदों वाली एक कविता “साहित्‍य का फ़रिश्‍ता” गा कर सुनाई और श्रीभट्ट को आशीर्वाद और बधाई स्‍वरूप लेखनी भेंट दी।

कृति परिचय के लिए अपने उद्बोधन के लिए संचालक ने डॉ0 कंचना सक्‍सैना को आमंत्रित किया। डॉ0 कंचना सक्‍सैना ने अपने आलेख को नाम दिया ‘जीवन की गूँज’ जीवन से आप्‍लावित कृति। वे कृति के लिए हाशिया बाँधते हुए लिखती हैं कि लगता है आज सारे विशेषण नुच गये हैं, छिन गये हैं और रह गये हैं मात्र सर्वनाम, जो संज्ञा के क़रीबी दोस्‍त हैं। जब सर्वनाम ही रह गये हैं, तो मन की दौड़ तेज हो जाती है। उस ज़िन्‍दगी की तरह, जो नामहीन हो गयी है। ऐसी ही ऊबड़-खाबड़, मधुर एवं तिक्‍त सम्‍बंधों की पहचान की है श्री भट्ट ने। इनको समझने के लिए एक ओर भीषण तपती आग की आवश्‍यकता है, तो दूसरी ओर शीतल मन्‍द फुहार की। युगबोध की अभिव्‍यंजना के साथ विरोधी भावों को उद्वेलित करना कवि के लिए इ‍सलिये भी सम्‍भव रहा है कि ज़िन्‍दगी की हर धड़कन अथवा नब्‍ज़ को उन्‍होंने पूरी तरह टटोला है। श्री भट्ट ने अपनी सूक्ष्‍मदर्शी दृष्टि से सभी विषयों को भावोर्मियों की लड़ियों में शब्‍दों के माध्‍यम से ऐसे पिरोया है कि पाठक मात्र आंदोलित हुए बिना नहीं रहता। ‘वसुधैव कुटुम्‍बकम्’ की भावना से आड़ोलित एवं आप्‍लावित आपकी चिन्‍तना निश्‍चय ही काल और समय की माँग के अनुकूल है। बाजारवाद एवं वैश्‍वीकरण के प्रभावस्‍वरूप उत्‍पन्‍न स्थिति में आम आदमी का संघर्ष, पीड़ा, घुटन, संत्रास के साथ रिसते हुए रिश्‍तों के प्रति कवि का सम्‍वेदनशील मन करुणाश्रु प्रवाहित करता है। 9 कालखंडों में रचित कविताओं को 240 पृष्‍ठीय पुस्‍तक में प्रश्रय मिला है। भावोद्गारों को ब्रज एवं राजस्‍थानी के रंग कलशों में न केवल उँडेला है, अपितु दर्शन और अध्‍यात्‍म को भी संस्‍पर्श किया है। जहाँ भाषा की दृष्टि से ‘आकुल’ प्रोढ़, परिष्‍कृत एवं परिमार्जित एवं परिनिष्ठित भाषा के धनी हैं वहीं भाव की दृष्टि से भी कविता प्राणवान् और ऊर्जावान् बन पड़ी हैं। ब्रजभाषा पर तो आपका अपूर्व अधिकार है। उपमान जीवन से ग्रहीत हैं। कविता के साथ गद्य में कवि के विचार उसे समझने में सहायक तो हैं ही साथ ही कवि का ये नवीन प्रयोग प्रशंसनीय है। लेखक की विद्वत्‍ता का भी कहीं अंत नहीं है। जापानी विधा हाइकू में निबद्ध त्रिपदीय रचनाओं की परत दर परत सींवन उधेड़ी है। स्‍वध्‍येय में वे अनवरत सृजन की ओर संकेत भी करते हैं।

प्रमुख वक्‍ता आचार्य ब्रजमोहन मधुर ने ‘सहितस्‍य भाव: साहित्‍य’ की अवधारणा को पूरा करने वाले साहित्‍यकार के रूप में आकुल को साधुवाद दिया। लोक साहितय, लोक संस्‍कृति को बचाये जाने के उनके आग्रही को भी उन्‍होंने साधुवाद दिया और कृति को अध्‍यात्‍म और दर्शन की एक उत्‍कृष्‍ट कृति के य्‍प में बताया।

डॉ0 अशोक मेहता ने पुस्‍तक को आस्‍था के कवि की अनुगूँज के रूप में सार्थक प्रयत्‍न बताया। उनकी दृष्टि में पुस्‍तक की शृंगार और होली विषयक रचनाओं को वे सुंदरतम बताते हैं।

मुख्‍य अतथि श्री रघुराज सिंह हाड़ा ने अपने वक्‍तव्‍य में ‘आकुल’ को आशीर्वाद देते हुए कहा जिस पुस्‍तक का आरंभ श्रीकृष्‍णार्पणम् से हुआ हो और समाप्ति श्रीकृष्‍णार्पणमस्‍तु करके बात पूरी हुई हो, तो भई कृष्‍णार्पण के बाद तो लोकार्पण प्रसाद वितरण का ही होता है और वो भी हो गया। मेरे यह सुखद बात मानता हूँ, जिस समय प्रिय आकुल का जन्‍म हुआ 18 जून 1955, उसके कुछ दिन बाद ही मैं शिक्षक बन गया था। दो तीन महीने पहले जन्‍मा बालक आज इतनी प्रोढ़ता के साथ एक कृति प्रस्‍तुत करे और वह भी ऐसी जो सारे जीवन को गूँजता हुए क्रमश: क्रमश: चरेवेति चरेवेति भाषा में कह जाता है। अपनी प्रज्ञा से मुझे सबसे अच्‍छी बात इस कृति की यह लगी वो यह कि सामान्‍यतया होता यह है कि मन किया और लिख दिया, पर प्रिय आकुल का संजीदगी भरा, धैर्य और उनकी प्रज्ञा का आग्रह रहा होगा कि उन्‍होंने कृति लिखने से पूर्व ‘क्‍या लिखूँ, क्‍यों लिखूँ’ के उत्‍तर तलाश किये, इसलिए हर रचना के पूर्व उन्‍होंने अपने उद्रगार प्रकट किये हैं।

अपने अध्‍यक्षीय भाषण में डॉ0 औंकार नाथ चतुर्वेदी ने कहा कि 19 वीं शताब्‍दी में झालावाड़ ने शीर्ष स्‍थान प्राप्‍त किया था हिन्‍दी सेवा में। हरिवंश राय बच्‍चन जहाँ गिरधर शर्मा कविरत्‍न से मधुशाला के छंद सीखने आये थे। जिस कविरत्‍न गिरधर शर्मा, शकुंतला रेणु, भट्ट गिरधारी शर्मा तैलंग कवि किंकर की कर्मभूमि झालवाड़ रही हो, पं0 गदाधर भट्ट का परिवार हो, ऐसे परिवार से संस्‍कारित हैं रत्‍नशिरोमणि “आकुल”। जीवन की जो गूँज है, एक सार्थक कवि की सार्थक प्रतिध्‍वनि है, जो दशकों तक लोगों द्वारा याद की जायेगी। आज जन्‍माष्‍टमी है, चौंकिये मत, भले जन्‍माष्‍टमी आठ दिन बाद है। पर आज जन्‍माष्‍टमी है। रचनाकार की कृति का लोकार्पण जन्‍माष्‍टमी का त्‍योहार ही तो होता है। जो रचना हैं, साहित्‍यकार हैं, जिसने अपने जीवन में पुस्‍तक लिखी हो, तन मन की सुध बिसरा जाता है। एक संगीतकार का जीवन जीते जीते कवि बन जाना, अपने जीवन का इतना बड़ा मोड़ ले आना फिर अपनी अंतर्भावानाओं से गुँथ जाना, फि‍र अपने आराध्‍य को ढूँढ़ना , फि‍र आराध्‍य के साथ अनुरंजित हो जाना, बहुत बड़ी साधना है।
भारी संख्‍या में वरिष्‍ठ वरिष्‍ठ साहित्‍यकारों सहित अनेक रचनाकारों ने समारोह में भाग लिया। वल्‍लभ महाजन, सुरेश चंद्र सर्वहारा, डॉ0 योगेन्‍द्र मणि कौशिक, महेंद्र नेह, डॉ0 इंद्र बिहारी सक्‍सैना, सावित्री व्‍यास, हरिश्‍चंद्र व्‍यास, डॉ0 नलिन, डॉ0 फ़रीदी, डॉ0 राधेश्‍याम मेहर, शरद तैलंग, समाचार सफ़र के सम्‍पादक जीनगर दुर्गाशंकर गहलोत, अखिलेश अंजुम, आलोचक प्रोफेसर हितेश व्‍यास, भगवती प्रसाद गौतम, बृजेंद्र सिंह झाला पुखराज, रामदयाल मेहरा, हलीम आईना, आदि अनेकों साहित्‍यप्रेमियों ने समारोह में उपस्थिति दी।

प्रस्‍तुतकर्ता- गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’, कोटा।

यादें मुकेश की ....कार्यक्रम सम्पन्न


(फोटो विवरण) : कार्यक्रम में गयिका भव्या छाबडा, राजीव मलहोत्रा एव प्यानो एकॊर्डियन वादक अरुण चतुर्वेदी

जयपुर : प्रसिद्ध पार्श्व गायक स्व. मुकेश की पुण्य तिथि के अवसर पर जयपुर के प्रतिष्ठित 'जयपुर क्लब' द्वारा २८ अगस्त '१० को 'यादें मुकेश की...' कार्यक्रम का आयोजन क्लब परिसर में किया गया । कार्यक्रम में क्लब के सदस्यों के अतिरिक्त मुकेश के गीतों के जाने माने गायक कोटा के राजीव मलहोत्रा को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था ।

राजीव ने अपने गायन की शुरूआत मुकेश द्वारा गाई गईं रामचरित मानस की चौपाई ' मंगल भवन अमंगल हारी.. से की और उसके बाद मुकेश के विभिन्न गीत जैसे 'होठों पे सचाई रहती है' दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ .. , कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए.., जाऊँ कहाँ बता ए दिल.., चल अकेला चल अकेला.., ये मेरा दीवानापन है.., कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है.., के साथ साथ उभरती हुई गायिका भव्या छाबडा के साथ कुछ युगल गीत 'सावन का महीना.., दिल की नज़र से नज़रों के दिल से.., क्या खूब लगती हो बडी सुन्दर दिखती हो.. ए मेरे सनम ए मेरे सनम.. गीत गाकर मुकेश की याद ताज़ा कर दी ।

कार्यक्रम में गायक एवं ग़ज़लकार शरद तैलंग ने भी 'सजन रे झूठ मत बोलो.. तथा दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई . तथा अजमेर से आए हुए गायक सुरेन्द्र विजयवर्गीय ने ' सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी.. और इक दिन मिट जायेगा माटी के मोल..गीतों को सुना कर मुकेश को अपनी श्रद्धांजली दी । राजीव और भव्या के साथ जब शरद तैलंग ने फ़िल्म संगम का प्रसिद्ध गीत 'हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गाएगा.. सुनाया तो लोग झूमने लगे । कार्यक्रम में जयपुर क्लब के सद्स्य आर.के.परनामी, रवि शर्मा, केप्ट्न अरोरा, मधुकर पुरोहित नें भी मुकेश के विभिन्न गीतों को सुनाकर सबकी प्रशंसा बटोरी ।

इस अवसर पर नर्तक गोविन्दा ने 'जाने कहाँ गए वो दिन .. पर भावाभिनय भी किया । कार्यक्रम में सुपरिचित प्यानो एकॊर्डियन वाद्क अरुण चतुर्वेदी, की-बोर्ड वादक ब्रजेश दाधीच, गिटार वादक सुमित, ऒक्टोपेड़ वादक चेतन शर्मा तथा ढोलक कोंगों पर बबलू ने संगत की । कार्यक्रम का संचालन शरद तैलंग ने किया

नामवर सिंह को शब्द-साधक शिखर सम्मान

दिल्ली: जे.सी. जोशी स्मृति सम्मान के तहत दिया जाने वाला शब्द-साधक शिखर सम्मान हिन्दी साहित्य के शीर्ष आलोचक श्री नामवर सिंह को देने का निर्णय हुआ है। श्री सिंह को यह सम्मान उनके गृह क्षेत्र वाराणसी में आगामी 18 सितंबर को ‘पाखी’ के वार्षिक महोत्सव में दिया जाएगा। इस मौके पर ‘पाखी’ के श्री नामवर सिंह पर केन्द्रित अंक का लोकार्पण भी होना है। यह सूचना ‘पाखी’ के संपादक श्री अपूर्व जोशी ने दी।

श्री नामवर सिंह से पहले यह सम्मान स्व. विष्णु प्रभाकर, श्री श्रीलाल शुक्ल को दिया जा चुका है। इस वर्ष का शब्द-साधना जनप्रिय सम्मान कथाकर रणेन्द्र को पिछले वर्ष प्रकाशित उनके उपन्यास ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ के लिए देने का निर्णय हुआ है। इसी तरह शब्द-साधना युवा सम्मान कविता के लिए निशांत को उनकी कविता ‘मैं में हम-हम में मैं’ के लिए तथा शब्द-साधना युवा सम्मान कहानी के लिए दिलीप कुमार को उनकी कहानी ‘सड़क जाम’ के लिए देना तय हुआ है। ये तीनों सम्मान भी 18 सितंबर को वाराणसी में दिए जाएंगे। शब्द-साधना युवा सम्मान ‘कविता’ की जूरी में श्री भागवत रावत, श्री ज्ञानेन्द्रपति और श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी थे। शब्द-साधना युवा सम्मान ‘कहानी’ की जूरी में श्री संजीव, श्री शिवमूर्ति और श्री हिमांशु जोशी थे। जूरी द्वारा चयनित प्रथम तीन कविताएँ और कहानियाँ ‘पाखी’ के सितंबर अंक में प्रकाशित की जा रही है।

शब्द-साधक शिखर सम्मान की राशि 51 हजार, शब्द-साधना जनप्रिय सम्मान की राशि 21 हजार तथा शब्द-साधना युवा सम्मान की राशि ग्यारह हजार रुपये है।

समाचार स्रोत- संपादक
अपूर्व जोशी

Monday, August 30, 2010

अमेरिका के शहर डैलस का 15 अगस्त



जब १५ अगस्त आता है तो पूरा देश तीन रगों में रंग जाता है। इस बार अमेरिका भी इस बात से अछूता नहीं रहा न्यू योर्क का टाईम्स स्क्व्यर १५ अगस्त को तीन रंगों (केसरिया सफ़ेद और हरा) से रंग था।
डैलस में भी हर बार की तरह इस बार भी स्वतंत्रता दिवस बहुत ही धूम-धाम से मनाया गया। इण्डिया असोशियेशन ऑफ़ नोर्थ टेक्सस हर साल १५ अगस्त मनाने के लिए आनंद बाजार सजाती है। इस बार भी लोन स्टार पार्क में शाम से ही लोगों का आना प्रारंभ हो गया था। कार्यक्रम का प्रारंभ परेड से हुआ। जिसमें सबसे आगे स्वामी नारायण संस्था शानदार बैंड था। अभिनेता शर्मन जोशी और सा रे गा म पा लिटिल चैम्प की विजेता ऐश्वर्या मजुमदार इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। मंच का कुशल संचालन शबनम जी और वैभव ने किया। शर्मन जोशी ने यहाँ उपस्थित सभी लोगों से मिले और साथ में फोटो भी खिचाई।
इण्डिया असोशियेशन ऑफ़ नोर्थ टेक्सस के प्रेसिडेंट श्री निरंजन पटेल जी, पेप्सिको के श्री राजगोपालन जी स्काई पास ट्रेवल्स के श्री विक्टर इब्राहीम जी, ने लोगों को संबोधित किया। मंच पर फन एसिया के जॉन हामिद जी, न्यू योर्क लाइफ इंशोरेंस के सुधीर पारिख जी और कमल कौशल जी ने उपस्थित हो के कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। इस कार्यक्रम के एक मात्र मिडिया सहयोगी रहे फन एसिया।
पूरा मैदान भारतियों से भरा था। २० हजार से भी ज्यादा लोग अपने देश का स्वतंत्रता दिवस माने के लिए यहाँ उपस्थित थे। जब राष्ट्रीय गान प्रारंभ हुआ तो सभी अपनी जगह पर खड़े हो गए और सुर में सुर मिलाने लगे। एक अजीब सी ख़ुशी और उत्साह था पूरे मौहोल में .यहाँ २०० से भी ज्यादा बूथ लगे थे। जिनमें से करीब ४० खाने के स्टाल थे। भारत के हर प्रान्त का खाना यहाँ मौजूद था। नारियल पानी, पान, चाय आनन्द बाजार में हर छोटी छोटी चाहतों का ध्यान रखा गया था। यहाँ बच्चों के लिए किड्स कोर्नर था। जहाँ बच्चों ने बहुत मजा किया।
रात्रि में बहुत सुंदर आतिशबाजी हुई जिस को देख सभी का मन आनंदित हो गया। आनन्द बाजार की व्यवस्था की सभी ने भूरी भूरी प्रशंशा की। लोगों के अनुसार उनके जीवन में ये अनूठा अनुभव था देश से दूर यहाँ अमेरिका में कभी अपना स्वतंत्रता दिवस मना पाएंगे सोचा न था। यहाँ आ के लगा ही नहीं कि हम भारत से इतनी दूर हैं ।
इण्डिया असोशियेशन ऑफ़ नोर्थ टेक्सस के प्रेसिडेंट इलेक्ट और आनंद बाज़ार के चेयर श्री जगदीश गोधवानी जी ने बताया कि "ये ३४ वाँ आनन्द बाज़ार था। जोकि बहुत ही सफल रहा, मैं यहाँ आने वाले सभी लोगों का हृदय से धन्यवाद करता हूँ। ये लोगों का प्यार और विश्वास ही है जो वो यहाँ आये और इस आयोजन को सफल बनाया। इण्डिया असोशियेशन ऑफ़ नोर्थ टेक्सस की स्थापना १९६२ में हुई थी। मेरे ख्याल से ये अमेरिका में भारतियों के द्वारा स्थापित ये सबसे पुरानी संस्था है। इतना बड़ा आयोजन बिना सहयोग के सम्पन नहीं हो सकता, मैं अपने सभी प्रायोजकों का धन्यवाद करता हूँ। यहाँ आये सभी भारतियों से उम्मीद करता हूँ कि अगले साल पुनः हम सभी इसी तरह मिल कर अपना स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे"।
देश भक्ति गीत गाते सभी भारतीय पुनः अगले साल आने की तम्मना अपने मन में लिए घरो को रवाना हो गए।













प्रस्तुतिः- रचना श्रीवास्तव

Sunday, August 29, 2010

भारत अपार संभावानाओं का देश है- सलमान हैदर



उदयपुर, 27 अगस्त, । पडौसी मुल्कों के साथ अच्छे व मजबूत रिश्तों से ही विकास की ओर अग्रसर भारत सम्पूर्ण विश्व की एक मजबूत ईकाई बनेगा। यह विचार भारत के पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर ने डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से 'भारत में भविष्य' विषयक उद्बोधन में व्यक्त किये। सलमान हैदर ने कहा कि विश्व को भारत के प्रति अपनी सोच को बदलना होगा। भारत की वैश्विक छवि, साख एवं क्षमताये बढी है किन्तु भारत को निरन्तर सतर्क रहते हुए अपने पडौसी देशों एवं दुनिया के अन्य देशों के साथ लगातार संवादो को जारी रखना होगा। हैदर ने कहा कि भारत अपार संभावानाओ का देश है तथा अपने नव स्वरुप में उभर रहा है। भारत के सामने गंभीर चुनौतिया है जिससे दृढ‌ता एवं सूझ-बूझ से मुकबाला करना होगा।

भारत-चीन व भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रकाश डालते हुए हैदर ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इन मुल्कों में साझेदारी व समन्वय का एक माहौल है। भारत व चीन क्लाईमेंट चैंज के मुद्दे पर साझा काम कर रहे है। पाकिस्तान में बाढ़ से हुए नुकसान के समय भारत की मदद से रिश्ते सुधारने की दिशा में एक मजबूत आयाम जुड़ा है।

भारत के प्रति विश्व की राय हमारी स्वयं की अपने प्रति राय तथा सम्मुख चुनौतियों व अवसरों, इन तीनों बिन्दुओं का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करते हुए हैदर ने कहा कि 'कोन्फिलक्ट' के स्थान पर 'ओपरेशन' से ही सम्पूर्ण दक्षिण एशिया समृद्धशील व विकासशील बनेगा। भारत को विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों का देश बताते हुए सलमान हैदर ने कहा कि भारत एशिया की मातृ-सभ्यता माना जाता है। सामाजिक सद्भाव एवं स्थायित्व के आधार पर ही भारत व पडौसी मुल्क सम्पूर्ण विष्व में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेंगें।

कश्मीर समस्या पर प्रकाश डालते हुए हैदर ने कहा कि भारत व पाकिस्तान दोनों मुल्कों में लोग यह मानने लगे हैं कि बातचीत जारी रखने से ही राह निकलेगी। इस संबंध में उन्होने पाकिस्तान के एक पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का भी उल्लेख किया। एशियाई देशों को लोगों कि मूलभूत आवश्कयताओं, शिक्षा, स्वास्थ्य आजीविका, पर्यावरण आदि पर ध्यान देने से ही कई समस्याओं का हल निकल आएगा।



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व विदेश सचिव जगत मेहता ने कहा कि वर्तमान की अधिकांश समस्यायें एवं चुनौतिया आजादी के पश्चात की हमारी असफलताओ का परिणाम है। वैश्वीकरण एवं उदारीकरण का लाभ देश के सभी वर्गो तक पहुँचाना होगा। तभी सम्पूर्ण विकास सम्भव होगा। प्रां. मेहता ने कहा कि बीसवीं शताब्दी की एकमात्र उपलब्धि भारत का प्रजातांत्रिक विकास है। मेहता ने भारत की विदेश निति, पड़ौसियों से सम्बन्ध तथा कूटनीतिक सफलताओं-विफलताओ पर चर्चा की।

ट्रस्ट सचिव नंद किशोर शर्मा ने उदयपुर के नागरिकों की ओर से हैदर का स्वागत किया। धन्यवाद ट्रस्ट अध्यक्ष विजय एस. मेहता ने ज्ञापित किया। शिक्षाविद् प्रो. एम.एस. अगवानी, प्रो. ए.बी. फाटक, प्रो. एम.पी. शर्मा, डा. वेददान सुधीर, प्रो. अरुण जकारिया, प्रो. एस.बी. लाल, रवि भंडारी ने विभिन्न जिज्ञासो व प्रश्नों को हैदर के सम्मुख रखा। संवाद का संचालन नंद किशोर शर्मा ने किया।


नितेश सिंह कच्छावा
कार्यालय प्रशासक

Saturday, August 28, 2010

लखनऊ में ब्लॉग वर्कशॉप और जीवंत ब्लॉगिंग

मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के गुर सिखाने-समझाने के लिए बहुत सी सेमिनारों और कार्यशालाओं में सम्मिलित हो चुका हूँ। लेकिन यह वर्कशॉप कई मामलों में खास है। पहली बात तो यह मेरे गृहप्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित हो रही है और दूसरी यह कि एक तरफ रवि रतलामी जी अपना प्रीजेंटेशन दे रहे हैं और मैं मंच से ही बैठे-बैठे इसकी रिपोर्टिंग कर रहा हूँ। यह बहुत ही खुशी की बात है कि इस माध्यम से मैं खुद भी जीवंत ब्लॉगिंग का माध्यम बन रहा हूँ और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर पा रहा हूँ। यह सब इस कार्यक्रम के संयोजक अरविन्द मिश्र और ज़ाकिर अली 'रजनीश' के प्रयासों से हो पाया है, जिन्होंने यहाँ बीएसएनएल का वाई-फाई कनैक्शन उपलब्ध कराया है।

मेरा व्याख्यान और प्रजेंटेशन तो दोपहर के भोजन के बाद है। फिलहान रवि रतलामी जी उपस्थिति प्रशिक्षुओं को बता रहे हैं कि 'वर्डप्रेस पर ब्लॉग कैसे बनाया जा सकता है?"। आप भी देखिए कुछ चित्रों के माध्यम से आँखों देखा हाल-








शैलेश भारतवासी

Friday, August 27, 2010

शिक्षाविद् वेद मोहला (एम.बी.ई.) की दो पुस्तकों का लंदन में लोकार्पण


(बाएं से बैठे हुएः श्री कैलाश बुधवार, श्री वेद मोहला (एम.बी.ई.), डा. अरुणा अजितसरिया (एम.बी.ई.)। खड़े हुए – उषा राजे सक्सेना, तेजेन्द्र शर्मा, माइकल वार्ड एवं आनंद कुमार)

कथा यू.के. एवं एशियन कम्‍यूनिटी आर्ट्स ने 23 अगस्त 2010 की शाम 6:30 बजे वरिष्ठ शिक्षाविद् वेद मित्र मोहला, (एम.बी.ई.) की दो पुस्तकों आई जी सी एस ई हिन्दी एवं इक्कीसवीं सदी का बाल साहित्य का लोकार्पण समारोह लंदन के नेहरू केन्द्र में आयोजित किया। पुस्तकों का लोकार्पण श्री कैलाश बुधवार (भूतपूर्व अध्यक्ष बीबीसी हिन्दी विभाग) एवं ब्रिटेन में हिन्दी परीक्षक डा. अरुणा अजितसरिया के हाथों सम्पन्न हुआ।
यूके हिन्दी समिति की उपाध्यक्षा श्रीमती उषा राजे सक्सेना ने वेद जी के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं से श्रोताओं का परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार तीस वर्षों से भी अधिक समय से वेद जी अपना समय और पैसा ख़र्च करके ब्रिटेन के बच्चों को हिन्दी पढ़ा रहे हैं। उन्होंने मोहला जी की प्रकाशित कृतियों एवं उनको मिले अलग अलग सम्मानों की भी चर्चा की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए कथाकार तेजेन्द्र शर्मा (महासचिव, कथा यूके) ने कहा कि एक सिविल इंजीनियर की तरह कैलाश जी ने ब्रिटेन में हिन्दी भाषा सिखाने की नींव रखी है। पैंतीस साल से बिना किसी लाभ की आशा के हिन्दी के भवन को सुदृढ़ बना रहे हैं और साथ ही साथ भारत और ब्रिटेन के बीच एक भाषाई पुल का निर्माण भी कर रहे हैं।



श्री कैलाश बुधवार ने वेद मोहला जी को एक ऐसा मातृभाषा प्रेमी बताया जिसने विदेशी कंक्रीट के जंगल में एकलव्य की तरह हिन्दी की अराधना की है और एक सिविल इन्जीनियर होने के कारण हिन्दी पढ़ाने वाले पंडितनुमा अंगोछे वाली छवि को बदला।
श्रीमती अरुणा अजितसरिया के अनुसार इस पुस्तक में आई जी सी एस ई के पाठ्यक्रम के साथ- साथ मारिशस एवं सिंगापुर के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में निर्धारित 'अनुवाद' तथा 'शब्दों के समुचित प्रयोग' के पाठ भी सम्मिलित किए गए हैं। पुस्तक के अंतिम भाग में हिंदी का लघु शब्‍दकोष, जिसमें लगभग 2400 शब्दों के अर्थ दिए गए हैं, विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी होगा। इसके अतिरिक्त प्रश्नपत्रों का नियोजन परीक्षा के लिए अपेक्षित जानकारी की तैयारी करने में सहायक होगा। इस प्रकार से इस एक पुस्तक में उन्हें परीक्षा की तैयारी करने की समस्त सामग्री उपलब्ध हो सकेगी। अपने प्रस्तुत रूप में यह पुस्तक अहिंदी- भाषी विद्यार्थियों को हिंदी सीखने में सहायक होगी।
दि फ़ार पैवेलियन (वेस्टेण्ड नाटक) के लेखक, निर्माता एवं निर्देशक माइकल वार्ड ने अपने हिन्दी प्रेम के बारे में साफ़ हिन्दी में बोलते हुए कहा, "मैं एक लेखक और प्रोड्यूसर हूं और मुझे इतनी ख़ुशी है कि मुझे भारतीय फ़िल्मकारों की अगली पीढ़ी के साथ काम करने को मिल रहा है। ये नये फ़िल्म निर्माता युवा पीढ़ी के हैं, उनमें टेलेण्ट है और ये ज़्यादा से ज़्यादा अपना समय फ़िल्म निर्माण एवं कहानी दिखाने एवं स्क्रीनप्ले की कला को समझने में मेहनत लगा रहे हैं।"


(बाएं से श्री कैलाश बुधवार, श्री वेद मोहला एमबीई, श्रीमती मोहला, डा. अरुणा अजितसरिया, एमबीई)।

श्री कैलाश बुधवार द्वारा लिये गये साक्षात्कार के दौरान वेद मोहला जी ने कहा, "मैं 1979 में एक सामाजिक कार्यक्रम में सपरिवार गया। मेरे पांच वर्षीय पुत्र ने एक महिला रेणुका बहादुर के पूछने पर बताया कि वह हिन्दी बोल तो सकता है, परन्तु लिख-पढ़ नहीं सकता। उन्होंने आगे पूछा कि क्या लिखना-पढ़ना भी चाहोगे, तो बच्चे ने उत्साहपूर्वक कहा: 'हां, अवश्य, यदि मेरे पिताजी आज्ञा दें।' आज्ञा लेने जब रेणुका बहादुर मेरे पास आईं, तो न जाने क्यों मेरे मुंह से निकल गया, "हिन्दी सिखाने के लिए इसे साथ लाना तो क्या, मैं स्वयं भी पढ़ाने के लिए आ सकता हूं।" उस वाक्य ने मेरे जीवन की दिशा ही बदल डाली। न केवल तब हिन्दी विद्यालय की नींव पड़ी, बल्कि तब से जीवन का प्रत्येक रविवार हिन्दी अध्यापन के लिए समर्पित हो गया और मैं एक अध्यापक बन गया। "
वेद मोहला जी के दो विद्यार्थियों ने चिल्ड्रन्स लिटरेचर इन दि टवैण्टी फ़र्स्ट सेंचुरी पुस्तक के अंशपाठ किये।

कार्यक्रम में वेद मोहला जी के छात्र एवं चाहने वालों के साथ साथ भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री आनंद कुमार, डा. श्याम मनोहर पांडेय, डा. गौतम सचदेव, सोहन राही, दिव्या माथुर, डा. पद्मेश गुप्त, इंदर स्याल, के.बी.एल. सक्सेना, मंजी पटेल वेखारिया, गुरप्रीत कौर, यादव चन्द्र शर्मा आदि उपस्थित थे।

आनंदम् द्वारा साईं भजन संध्या

22 अगस्त 2010 को रमेश नगर लाल साईं मंदिर में साईं भजन संध्या का आयोजन किया गया। आनंदम के कलाकारों ने साईं भजन गाकर जनता को आनंदित कर दिया और दर्शकगण झूमने लगे। कुछ चित्र-





Thursday, August 26, 2010

लन्दन में 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस समारोह कैसे संपन्न हुआ



इस बार फिर सोचने लगी थी कि १५ अगस्त के दिन हर साल की तरह यहाँ लन्दन में फिर चुपचाप पब्लिक के जाने बिना अपना भारतीय तिरंगा इंडिया हाउस में फहरा दिया जायेगा..जहाँ भारतीय दूतावास है...लेकिन क्या पता था कि इस साल यह कार्यक्रम कुछ फरक तरह से मनाया जायेगा...बस यूँ कहिये कि हमने जरा सी जिज्ञासा दिखाकर पूछताछ की तो पता चला कि यहाँ लन्दन में इस बार इतने सालों के बाद पहली बार हमारे भारतीय स्वतंत्रता दिवस को हाई कमिश्नर की तरफ से धूमधाम से मनाने का आयोजन रखा गया है...बस फिर क्या था हमने भी सोचा की क्यों नहीं वहाँ पहुँच कर स्वतंत्रता के इस पावन दिवस को मनाने का आनंद लिया जाये..और ११ बजे से चालू होने वाले कार्यक्रम के लिए हम लोग घर से निकल पड़े सुबह ९ बजे ही...क्योंकि लन्दन में रहते हुये भी एरिया पर निर्भर करता है की कहाँ रह रहे हैं..उसी हिसाब से समय लगता है गंतव्य स्थान तक पहुँचने में...तो हम लोग ११ से पहले ही पहुँच गये '' इंडियन जिमखाना क्लब '' नाम की जगह...जहाँ ये उत्सव मनाया जाना था. वहाँ बाहर सड़क बुरी तरह ट्रैफिक से भरी थी और तमाम पुलिस तैनात थी सुरक्षा के लिये..तमाम लोग लन्दन से बाहर के शहरों से भी आ रहे थे...गेट के अन्दर पहुँच कर सबने नजरें दौड़ायीं और भीड़ में खड़े होने के लिये अपना स्थान चुना..और इंतजार करने लगे कमिश्नर साहेब का..इंतज़ार करते हुये ११ बज गये फिर सवा ११ हुये..इस तरह इंतज़ार करते समय गुजरता गया और उनका कहीं पता नहीं..आप ही सोचिये कि कमिश्नर साहेब भारतीय होने के नाते लेट तो होंगे ही...जैसे कि हमारे यहाँ हर चीज़ का रिवाज़ है...भारत में ट्रेन आती है तो लेट या पहुँचती है तो लेट, शादी-ब्याह में दूल्हा की बारात पहुँचती है तो लेट, कोई भाषण देने जाता है तो लेट...प्रोफेसर आते हैं क्लास रूम में तो वो लेट..खैर, किसी तरह वह निश्चित समय के आध घंटा बाद अपनी तशरीफ़ लाये और बिल्डिंग की छत पर पहुँचे और फिर लोग बाग फोटो की खींचा-खाँची में लग गये...हम साँस साधे उस पल का इंतजार करने लगे कि कब झंडा ऊँचा हो..उन्होंने फिर देर लगायी...कुछ गप-शप की कुछ VIP लोगों से हाथ मिलाते हुये और उसके बाद राम-राम करके झंडा ऊँचा करने का समारोह संपन्न किया..और फिर किसी महिला ने स्पीच दी..उन्हीं समस्याओं पर जिनके बारे में हम, आप सभी जानते हैं कि हमारे भारत को पराधीनता से मुक्त होने बाद भी क्यों उन भयानक परिस्थितियों और समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है जो हमें स्वतंत्र होने का आभास नहीं दिलाते और संभवतया हम भारतवासी इसके बारे में क्या कर सकते हैं कि देश की दशा सुधर सके...आदि-आदि....और स्पीच के तुरंत बाद पार्क में लगे हुये पंडाल में और उसके बाहर भी खाने के जो तमाम स्टाल थे उनके चारों तरफ भीड़ से जगह भरने लगी...जहाँ शुद्ध शाकाहारी खाने का इंतजाम किया गया था..भारत के उत्तर, दक्षिण, गुजरात और पंजाब के तरह- तरह के स्वाद के खाने व मिठाइयाँ थीं साथ में चाय का इंतजाम और मिनरल वाटर की हजारों बोतलें और साफ्ट ड्रिंक जैसे कि कोका कोला और फ्रूट जूस के पैकेट सब कुछ फ्री में..ये सारा कुछ इंतजाम लन्दन के तमाम भारतीय रेस्टोरेंट के मालिकों की तरफ से स्वतंत्रता दिवस के सम्मान में फ्री किया गया. खाने की इतने चीजें थीं कि दो-चार चीजों को खाकर ही पेट भर जाये..लेकिन कुछ लोग जानते हुये भी कि सब नहीं खा पायेंगे फिर भी प्लेटों में सब भर लेते हैं और बाद को खाना जमीन पर फेंकते हैं या इधर-उधर चुपचाप रख देते हैं...और देखने पर सोचना पड़ता है की दुनिया में तमाम लोग इस खाने के लिये तरस रहे होंगे..तो यहाँ भी वही नजारा देखने को मिला. अच्छा हुआ कि वहाँ कोई पान का स्टाल नहीं था वर्ना लोग इधर-उधर पुचुर-पुचुर थूकते..भारतीय जहाँ भी जाते हैं अपनी आदतें तो साथ में ही ले जाते हैं ना. हाँ तो, खाना भी चल रहा था..और उधर दूर पर स्टेज पर भंगड़ा नाच-गाना शुरू हो गया..बताना जरूरी है कि यू. के. में भंगड़ा डांस और गाना बहुत पापुलर है...हम भी फटाफट पहुँचे देखने स्टेज के पास. देखा की सब की सब कुर्सियाँ पहले से ही जब्त हो चुकी हैं..पंडाल में भी कुछ लोग एक कुर्सी पर बैठ कर अपने पैर पसारे चार कुर्सियों को घेर कर बैठे हुये थे पूछने पर पता लगा कि उनके साथ के कुछ लोग बाहर बैठे स्टेज का शो देख रहे हैं तो उनके लिये सुरक्षित रख छोड़ी हैं..कहने का मतलब कि बाहर भी वह कुर्सियों पर बैठे हैं और अन्दर वाली कुर्सियों को किसी की निगरानी में छोड़ गये हैं..आप लोग मतलब समझ गये होंगे की हमारे देश की ये एक और आदत है...एक सीट की वजाय चार घेर लेते हैं चाहें दूसरे व्यक्ति को खड़े रहना पड़े...चलिये छोडिये भी हम सभी वाकिफ हैं इन बातों से...फिर हम जमीन पर आराम से पसर गये और थोड़ी ही देर में मौका देखते ही किसी के उठने पर उस चेयर पर जाकर जम गये...तो बात हो रही थी मनोरंजन की...तो स्टेज पर के मनोरंजन में प्रमुखता भंगड़ा दिखाया गया साथ में भरत नाट्यम और दूसरी प्रकार के डांस भी...यहाँ नीसडन में स्वामी नारायण मंदिर के शिष्यों ने बहुत सुन्दर गाना गाकर तिरंगे को हाथ में लेकर डांस किया..तमाम सिंगर्स ने देशभक्ति के गाने गये..जो दिल की गहराइयों में उतर गये और वहाँ का पूरा माहौल झूम उठा...तमाम बच्चे व बड़े लोग उठकर नाचने और गाने लगे गाने सुनकर...कितने लोग अपनी राष्ट्रीय तिरंगे की डिजाइन के कपडे पहने घूम रहे थे..छोटे बच्चे तिरंगे पकडे हुये थे..और फोटो खिंचवा रहे थे..सारे बातावरण में उल्लास और उत्साह था..कुछ लोगों को पुरूस्कार बितरण किये गये जिनमें भारत से आई हुई एक क्रिकेट टीम भी थी उसमें वो लोग थे जिन्हें ढंग से दिखाई नहीं देता..उस टीम ने इंग्लैण्ड को तीन बार मैच में हराया तो उन्हें उस सम्मान में कमिश्नर नलिन सूरी जी ने टीम के हर व्यक्ति को अलग-अलग गिफ्ट के बैग दिये...उसके बाद भी गाने वगैरा चलते रहे और फिर करीब चार बजे कार्यक्रम का समापन हुआ.
एक बात बताना भूले ही जा रही थी...कि भारत पर मुफ्त में तमाम लिटरेचर भी बैग में भर कर ले जाने को दिया जा रहा था...मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, गोवा, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि जगहों की जानकारी के बारे में..उसके अलावा और भी बहुत कुछ..सभी लोगों को डिजाइनर पैक में पेड़े की मिठाई भी पकड़ाई जा रही +थी...इस तरह सारा दिन फ्री का मनोरंजन हुआ...उसके बाद घर की रास्ता पकड़ी...

ये मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुये हैं उनकी जरा याद करो क़ुरबानी.

नेहरु जी की आँखों में इस गाने को सुनकर आँसू आ गये थे..है ना..? जय हिंद !















-शन्नो अग्रवाल

Wednesday, August 25, 2010

आज़ादी को समर्पित 'परिचय' साहित्य परिषद’ गोष्ठी



हिंदी गज़ल सम्राट दुष्यंत कुमार का एक शेर है:

जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिये

अपने वतन की छांव तले जीने और उसी वतन की शानो-शौकत के लिये जान दे देने वाले जांबाज़ जवानों व त्याग की प्रतिमूर्ति कई महापुरुषों ने आखिर समुद्र को मथ कर आज़ादी का अमृत देश को समर्पित कर ही दिया. किन्तु दुष्यंत की उसी गज़ल का मतला आज़ादी रुपी उस वरदान के एक दूसरे रूप को सामने लाता है:

कहाँ तो तय था चरागाँ हरेक घर के लिये
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिये !

आज़ादी की विरासत के हक़दार होने की कसौटी पर शायद हम सब पूरी तरह खरे नहीं उतरे. लेकिन इन तमाम आत्माकलनों के बावजूद यह भी सत्य है कि आज़ादी-दिवस देश का हर व्यक्ति बहुत प्रसन्नता व उत्साह से मनाता है. केवल 15 अगस्त नहीं, वरन अगस्त का पूरा महीना देश में कई जगह आज़ादी से जुड़े समारोह होते रहते हैं जिन में लोग प्रफुल्लित से हिस्सा लेते हैं. उर्मिल सत्यभूषण की 'परिचय साहित्य परिषद' ने भी दि. 20 अगस्त 2010 को अपनी मासिक गोष्ठी देश की आज़ादी को समर्पित की और एकत्रित कवियों ने देश व समाज से जुडी कविताएं पढ़ कर आज़ादी के उन परवानों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनके लिये देश सर्वोपरि था और निजी जीवन कोई अहमियत नहीं रखता था. गोष्ठी हर माह की तरह नई दिल्ली के फिरोज़शाह रोड स्थित Russian Centre for Science and Culture के सभागार में हुई. इस गोष्ठी में Indian Council of UN Relations महासचिव श्री के. एल. मल्होत्रा मुख्य अतिथि थे. इस गोष्टी का एक मुख्य आकर्षण यह भी था कि उर्दू के जाने माने शायर ‘मासूम’ गाज़ियाबादी ने काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता की. 'मासूम' वतन की शायरी में अपना सानी नहीं रखते और अन्य विषयों पर भी वे शायरी में अग्रणी माने जाते हैं तथा दिल्ली के मुशायरों में अक्सर उनकी उपस्थिति गरिमामय मानी जाती है.

बरसात के मौसम के बावजूद गोष्ठी शुरू होते न होते कई शायर आ गए. इस गोष्ठी में लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने देश की तरफ आँख उठा कर देखने वालों को ललकारता एक मुक्तक प्रस्तुत किया:

वक्त आएगा तो काँटों से चुभन मांगेंगे
वक्त आएगा तो शोलों से तपन मांगेंगे

तुमको देखे तो कोई आँख उठा कर ऐ वतन
हम तो हँसते हुए मरघट से कफ़न मांगेंगे

वहीं लखीमचंद्र ‘सुमन ने भी चुनौती भरे स्वर में पढ़ा:

जिस्म भारत है मेरा दिल मेरा कश्मीर समझ
मेरे हर अंग को हर प्रान्त की तस्वीर समझ

किसी भी अंग को दुश्मन की नज़र छू ले अगर
वो ‘सुमन’ अंग है दुश्मन के लिये तीर समझ.

ममता किरण जो सटीक से सटीक शब्दावली व प्रभावशाली शैली के लिये जानी-मानी हैं, ने सियासतदानों पर अंगुली उठा कर उनका पर्दाफाश किया:

बशर के बीच पहले भेद करते हैं सियासतदां
ज़रूरत फिर जताते हैं किसी कौमी तराने की

शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने पढ़ा:

वतन की नींव पर मिट्टी जमा है जिन शहीदों की
कभी भी भूल मत करना उन्हें तुम भूल जाने की

दिल्ली की काव्य गोष्ठियों व मुशायरों की एक अन्य जानी मानी हस्ती हैं रविन्द्र शर्मा ‘रवि’ जिन का शब्द शब्द मर्म-स्पर्शी है. उनका ध्यान देश के सन्दर्भ में किसानों पर गया और उनकी गज़ल का एक शेर था:

किसी के वास्ते बरसात है बदला हुआ मौसम
किसी के वास्ते यह साल भर की आस होता है.

उन्होंने ज़िन्दगी की मीमांसा करते हुए एक बेहद दार्शनिक शेर भी कहा:

कभी खामोश लम्हों में मुझे एहसास होता है
कि जैसे ज़िन्दगी भी रूह का बनवास होता है.

सुमित्रा वरुण ‘काफिर’ ने अपनी कविता में सच्चे मन से एक प्रार्थना प्रस्तुत की:

कोई धर्म ऐसा मिले हमें, जिस में कोई बंधन न हो
कोई प्रार्थना ऐसी मिले, जिस में रुदन क्रंदन न हो

तो भूपेंद्र कुमार जो हिंदी भाषा में महारत रखते हैं, ने जीवन्तता का सन्देश दिया:

शिकस्ता हाल में कब तक रहेंगे हम बताओ तो
गिरेंगे हम अगर सौ बार फिर भी गिर के उठाना तय है.

शोभना मित्तल की कविता में भी वही चिंता व्याप्त थी जो देश की जनता के मन में व्याप्त है कि क्या हम आज़ादी को उस का असली रूप दे पाए:

स्वतंत्रता तो मिली / लेकिन मोल हम उस का आंक न पाए / हर साल मनाते हैं स्वाधीनता दिवस / आस्था के कैलेंडर पर छाप न पाए.

साक्षात् भसीन

नफरत कहिये या कहिये इसे आग
नफरत से बड़ी कोई भी नहीं आग

अर्चना त्रिपाठी ने कुछ दोहे तथा एक कविता प्रस्तुत की. जैसे:

पिंजरे से लड़ कर हुआ जो लोहू लुहान
वही समझता आज़ादी, आज़ादी की शान

डॉ. सत्यवती शर्मा ने सरहदों की बात की जो देशों और व्यक्तियों के बीच विकराल रूप धारण किये रहती हैं:

जब नहीं सरहद गगन में/ जब नहीं सरहद पवन में/ जब नहीं सरहद अगन में/ जब नहीं सरहद सागर की उठती गिरती तरंग में/ जब नहीं सरहद नयन के अश्रुओं की धार में/ फिर खड़ी क्यों सरहदें इंसान के व्यवहार में.

प्रेमचंद सहजवाला

अब कहाँ से आएँगे वो लोग जो नायाब थे,
रात की तारीकियों में टिमटिमाते ख्वाब थे

शहीदों के प्रति:

सुबह आए इसलिए वो रात भर जलते रहे
रौशनी से लिख रहे वो इक सुनहला बाब थे

कुछ अन्य कवि:

नागेश चन्द्र

कामनवेल्थ के बाद गेम एक और मालिक करवा दो / भागें लोग तमाम किन्तु दिल्ली को स्वर्ग बना दो/ झोंपड़-पट्टी हटे दिखे चहुँ दिस हरियाली/ गगनचुम्बी रेस्तरां से दिखे सूप की प्याली.

एस नंदा ‘नूर’

जो दाता ने बख्शी हमें ज़िन्दगानी
सदा हम कोई उसका मकसद बनाएं

अंतिम बाज़ी ‘मासूम’ गाजियाबादी की थी जिन की शायरी सुनने का सब को बेताबी से इंतज़ार था. ‘मासूम’ जी ने एक से बढ़ कर एक गज़लें प्रस्तुत की तो उपस्थित श्रोतागण में भी ‘वाह वाह’ करने की स्फूर्ति सी आ गई. कुछ शेर:

चमन लुटने का ही इक गम नहीं इस का भी सदमा है
कि इन हालात में कैसे निगहबानों को नींद आई
ज़माने में तो पसमंज़र भी इन आँखों ने देखे हैं
कि जब इंसानियत रोई तो हैवानों को नींद आई.

गोष्ठी के अंत में ‘परिचय साहित्य परिषद’ अध्यक्ष उर्मिल सत्यभूषण ने मुख्य अतिथि व ‘मासूम’ गाजियाबादी तथा सभी कवियों का धन्यवाद किया व देश के सन्दर्भ में कुछ दोहे प्रस्तुत कर के गोष्ठी संपन्न की:

जागो प्रहरी देश के, किस की देखें बाट
देश द्वार के काठ को रही दीमकें चाट

मैंने अपनी ज़िन्दगी कर दी तेरे नाम
भारत माँ जननी मेरी ऐ माँ तुझे प्रणाम

संचालन अनिल वर्मा ‘मीत’ का था.

रिपोर्ट– ‘परिचय रिपोर्ट विभाग’

Monday, August 23, 2010

दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल द्वारा निदान क्लिनिक का उदघाटन



नई दिल्लीः अखिल भारतीय स्तर पर कार्यरत गैर सरकारी संस्था सरस्वती एजुकेशनल वेलफेयर एवारनेस(सेवा)के तत्वाधान में शिव मंदिर के पास साई नगर, बदरपुर, नई दिल्ली में दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल द्वारा निदान क्लिनिक का उदघाटन किया गया ।
इस अवसर पर डा. के.के. तिवारी, डा. आर कान्त, डा. एन के सिंह, संस्था के अध्यक्ष श्रीमती अनिता पाण्डेय, महासचिव श्री धुरेन्द्र राय, समाजसेवी श्री रामजीवन मॉझी, श्री दिनेश गुप्ता, श्री रवि शंकर, श्री कृपा शंकर आदि सहित अन्य गन्य मान्य व्यक्ति मौयूद थे। इस केन्द्र का संचालन डा. एन. के. सिंह तथा डा. अश्विनि कुमार सिंह करेंगे। श्री लाल ने सेवा द्वारा इस तरह के केन्द्र के स्थापना पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि गरीबों को इसका लाभ अब क्षेत्र में ही अवश्य मिलेगा।

प्रस्तुतिः सोनू गुप्ता
फोन 9953113075

Sunday, August 22, 2010

मुंबई में महिला रचनाकारों , प्राध्यापकों और छात्रों का विरोध प्रदर्शन

जो तटस्थ हैं , समय लिखेगा उनका भी अपराध -- सार्थक संवाद



मुंबई । 17 अगस्त 2010 - अपसंस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यहीनता के खिलाफ "सार्थक संवाद" संस्था का गठन 1994 में मुंबई की महिला रचनाकारों ने मिलकर किया था । 17 अगस्त 2010 को सार्थक संवाद ने हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सभागार में महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूतिनारायण राय द्वारा हिन्दी लेखिकाओं पर की गई अभद्र टिप्पणी तथा भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित ‘नया ज्ञानोदय‘ पत्रिका के संपादक रवीन्द्र कालिया के संपादकीय अविवेक के खिलाफ एक निषेध प्रस्ताव पारित किया। मुंबई महानगर की रचनाकारों, प्राध्यापिकाओं और वि.वि. की छात्राओं ने बड़ी संख्या में उपस्थित होकर तथा चर्चा में भाग लेकर सर्वसम्मति से स्वीकार किया कि कुलपति की जिम्मेदार कुर्सी को शर्मसार करने वाले और संपादक के गंभीर दायित्व की उपेक्षा करने वाले व्यक्तियों को इन पदों पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। गरिमापूर्ण पद को कलंकित करने के कारण इन्हें अविलंब इस्तीफा देने के लिए विवश किया जाना चाहिए।
हिन्दुस्तानी प्रचार सभा की मानद निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता ने आयोजन के संदर्भ की भूमिका प्रस्तुत की। कुतुबनुमा की संपादक डॉ. राजम नटराजन ने कहा कि महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय केंद्र सरकार की अधीनस्थ संस्था है जिसकी स्थापना भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए की गई है। आज जब देश के सर्वोच्च नागरिक पद पर महिला राष्ट्रपति हों, इस तरह के वक्तव्य असंवैधानिक हो जाते हैं। ‘नया ज्ञानोदय‘ की प्रबंधन समिति की भी जिम्मेदारी बनती है कि हल्के स्तर की सामग्री के प्रकाशन पर रोक लगाएं। ‘नया ज्ञानोदय‘ किसी गली कूचे में छपने वाला पीत पत्र नहीं है। क्या भारतीय भाषाओं को गरिमा देने के लिए बनाए गए संस्थान के प्रबंधकों को भी बाजारीकरण ( टी.आर.पी.) का खेल भाने लग गया है? वरिष्ठ कथाकार सुधा अरोड़ा ने कहा कि इस पूरे प्रकरण ने संपादकीय नैतिकता और दायित्व पर सवाल खड़े किए हैं। इससे भारतीय ज्ञानपीठ जैसे संस्थान की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य की सबसे बड़ी विडम्बना है कि जिन लेखकों ने अपने जीवन में स्त्रियों को कभी उनका अपेक्षित सम्मान नहीं दिया और जो हर स्त्री को ‘वस्तु’ की तरह देखते हैं, वे ही स्त्रियों के मुद्दों पर तफरीह से साक्षात्कार देते और विमर्श करते दिखाई देते हैं । शायद वे अपनी करनी के गुनाहों को कथनी की चादर से ढक लेना चाहते हैं। ऐसी मानसिकता वाले पुरुषों का शाब्दिक विचलन स्वाभाविक है पर इस वक्तव्य को शाब्दिक विचलन कहकर माफ नहीं किया जाना चाहिए । डॉ. शशि मिश्रा ने "बेवफाई के विराट उत्सव" पर गहरा क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि बेवफाई का उत्सव ही अपने आप में शर्मनाक है फिर उसका विराट होना तो संस्कृति को रौंदने जैसा है। पद के मद में चूर हमारे ये पुरोधा अपनी पारंपरिक संस्कृति, अपनी सहकर्मी के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकते तो उन्हें सार्वजनिक दायित्वों से बर्खास्त करने की मांग प्रबल होनी चाहिए। कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने कहा- इन कुलपति महोदय के मनचले स्वभाव के बारे में मैं कई सालों से सुनती आ रही हूँ। अब यह मानसिकता खुलकर सामने आ गई है। उन्होंने कुलपति के अभद्र बयान को ‘बेबाक बयान’ कहने वाले रवींद्र कालिया को समान रूप से जिम्मेदार माना। डॉ. सुनीता साखरे ने महिला वि.वि. का प्रतिनिधित्व करते हुए संपूर्ण समुदाय की अस्मिता की बात की।
सभा में उपस्थित सभी महिलाओं ने जोरदार शब्दों में, एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से कुलाधिपति नामवर सिंह से यह निवेदन किया कि वे अपनी मारक चुप्पी को तोड़ें। वे मात्र एक अकादमिक व्यक्तित्व नहीं है, हिन्दी साहित्य की समीक्षा के श्लाका पुरुष हैं। इस प्रकरण से हिन्दी साहित्य और हिन्दी भाषा को एक गर्त में धकेल दिया गया है।
इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार श्रीमती कमलेश बख्शी, गुजराती लेखिका डॉ. हंसा प्रदीप, युवा कवयित्री कविता गुप्ता, डॉ. नगमा जावेद, डॉ. उषा मिश्रा, डॉ. किरण सिंह, डॉ. विनीता सहाय, डॉ. मंजुला देसाई, डॉ. संगीता सहजवानी, सुश्री संज्योति सानप तथा समस्त स्नातकोत्तर छात्राओं ने विभूतिनारायण राय और रवीन्द्र कालिया के इस्तीफे की मांग पर एकजुट होकर हस्ताक्षर किए। सांस्कृतिक और साहित्यिक अवमूल्यन को अपदस्थ कर हिन्दी साहित्य और संस्कृति की गरिमा को लौटा लाने की विकलता को क्या ये सभी पदाधिकारी और संस्थानों के मालिक और उच्चाधिकारी महसूस करेंगे?
(स्रोतः जनसत्ता ब्यूरो)

हस्ताक्षरित प्रस्ताव पत्र की प्रति और हस्ताक्षर देखने के लिए नीचे के चित्रों पर क्लिक करें

Saturday, August 21, 2010

आर.सी. शर्मा ’आरसी’ के ग़ज़ल संग्रह ’पानी को तो पानी लिख’ का लोकार्पण



कोटा १४ अगस्त : सुपरिचित गीतकार एव ग़ज़लकार आर.सी.शर्मा ’आरसी’ के सद्य प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह ’पानी को तो पानी लिख’ का लोकार्पण ’विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच कोटा द्वारा १४ अगस्त १० को स्वतंन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कोटा में उमरावमल पुरोहित सभागार में सम्पन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता साहित्यकार, रंगकर्मी एवं नाट्य लेखक शिवराम ने की । मुख्य अतिथि बिजनौर से पधारे ग़ज़लकार अनमोल शुक्ल ’अनमोल’ तथा विशिष्ट अतिथि बाल साहित्य के ख्यातनाम लेखक डॉ. अजय जन्मेजय तथा अविचल प्रकाशन के संस्थापक डॉ. गजेन्द्र बटोही थे ।
कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं द्वीप प्रज्वलित करने के साथ हुआ । सर्व प्रथम ग़ज़लकार एवं गायक शरद तैलंग ने आर.सी.शर्मा’ आरसी’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंनें कहा आरसी की एक गज़ल के कुछ शे’रों द्वारा ही उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व की सम्पूर्ण जानकारी मिल जाती है। वो कुछ शे’र इस प्रकार थे ’बुज़ुर्गों का हमारे साथ यह एह्सान है प्यारे, शहर भर में हमारी अब अलग पहचान है प्यारे" - "मेरे गीतों में इक नन्हा-सा बालक मुस्कराता है, मगर ग़ज़लों मे शामिल दर्द-ए-हिन्दुस्तान है प्यारे"। शायर शकूर अनवर ने कहा कि आरसी की ग़ज़लें मौज़ूदा हालात की तल्खी और खुशबू दोनों को सादगी और शिद्दत से बयान करतीं हैं, भाईचारे का पैगाम देतीं हैं तथा मेलमिलाप और यकजहेती बढ़ातीं हैं। साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम ने आरसी के गज़ल संग्रह पर पत्रवाचन करते हुए कहा कि ये ग़ज़लें सच को सच कहने का आह्वान हैं और यही एक समर्थ रचनाकार का सबसे बडा गुण है।
इसके पश्चात ग़ज़ल संग्रह ’पानी को तो पानी लिख’ का अतिथियों द्वारा लोकार्पण हुआ। गायक शरद तैलंग ने जब इस संकलन की दो ग़ज़लों ’खुशी के पल तो जीवन में महज़ दो चार होते हैं, दुखी इन हादसों से हम हज़ारों बार होते हैं’ तथा "हम खुद ही उड़ सके न परों की थकान से, शिकवा नहीं है कोई हमें आसमान से" की संगीतमय प्रस्तुति दी तब पूरे हॉल में लोग गज़लों का आनन्द उठाते रहे। डॉ. अजय जन्मेजय ने अपने उदबोधन में आरसी की गज़लों के चुनिन्दा शे’रों का हवाला दे कर उन्हें ज़िन्दगी का शायर बताया और कहा कि गज़लों में सौन्दर्य के विविध रंग-रूपों की उपस्थिति और सच्चाई का पक्ष उनकी विशिष्टता है। उन्होंने आरसी के इस क्षैत्र में निरन्तर प्रगति करते रहने की कामना की। संग्रह के प्रकाशक डॉ. गजेन्द्र बटोही ने भी इस पुस्तक की रचना यात्रा की जानकारी श्रोताओं को देते हुए ’आरसी’ को मानवीय मूल्यों का साधक शायर बताया। समारोह में ग़ज़लकार आरसी ने अपनी कुछ गज़लों का सस्वर पाठ भी किया।
समारोह के मुख्य अतिथि ग़ज़लकार अनमोल शुक्ल ’अनमोल’ ने अपने वक्तव्य में आरसी जी के कथ्य और शिल्प की चर्चा की तथा उनके पहले संकलन ’अहल्याकरण’ की प्रशस्ति में प्राप्त अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया का हवाला देकर आरसी जी की क़लम की जादूगरी पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए कहा कि आरसी ने ग़ज़ल लेखन परम्परा में अपनी प्रभावी दस्तक दी है सधी छंदबद्धता, मनोहरी लय और सामाजिक विद्रूपताओं को दर्पण दिखातीं ये गज़लें सामाजिक सत्य और प्रेम के विविध रूपों की छटाएं हैं। इनकी ग़ज़लों के कथ्य का कैनवास बहुत व्यापक है तथा कुछ खास अनुभूतियों तक ही सीमित नहीं है।
अन्त में समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकर शिवराम ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में आरसी जी की ग़ज़लों के अनेक शेरों पर अपने बहुत ही सारगर्भित उदबोधन द्वारा इस संग्रह की विवेचनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि राहबोध, संकल्प सजगता और संवाद उत्सुकता आरसी की विशिष्टता है जो इस संकलन की ग़ज़लों में मुखर हुई है। सच को सच कह, ज़िन्दगी की कहानी बयान करना उनकी शायरी का आधार है।
समारोह में ’विकल्प’ संस्था की ओर से सभी अतिथियों का नगर के प्रतिनिधि साहित्यकरों - अखिलेश ’अंजुम’, एन.के.शर्मा, हितेश व्यास, अरुण सेदवाल, रामकरण स्नेही, डॉ. इन्द्र बिहारी सक्सेना, जी.के. भट्ट, नरेन्द्र चक्रवर्ती, नितेश शर्मा ने माल्यार्पण तथा ’विकल्प सृजन सम्मान’ के स्मृति चिन्ह प्रदान कर स्वागत एवं समानित किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध शायर के.के. सिंह ’मयंक’ की उपस्थिति भी विशिष्ठ रही। कार्यक्रम का सफल संचालन साहित्यकार महेन्द्र नेह ने किया तथा आभार ’आरसी’ ने व्यक्त किया। समारोह में बडी तादाद में नगर के साहित्यकार तथा गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे ।
प्रस्तुति: शरद तैलंग

Friday, August 20, 2010

महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को बाल साहित्य की प्रथम प्रति समर्पित



63वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को एट होम समारोह में वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री शमशेर अहमद खान द्वारा रचित और मीरा पब्लिकेशंस, 49-बी/37, न्याय मार्ग, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित संतोष का फल मीठा तथा चांद पर पलाट ले लो की प्रतियां भेंट की गईं. इस अवसर पर पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि के अलावा सांसद, वरिष्ठ अधिकारी, गणमान्य अतिथि उपस्थित थे.



प्रस्तुति- मुनिश परवेज़ राणा
बी-1/44, डी.एल.एफ.
दिलशाद एक्टेंशन-2, साहिबाबाद, गाजियाबाद (उ.प्र.)

"लौ दर्दे दिल की" ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण



15 अगस्त 2010 को कुतुबनुमा एवं श्रुति संवाद समिति द्वारा आयोजित समारोह के अंतर्गत श्रीमती देवी नागरानी के ग़ज़ल संग्रह "लौ दर्दे दिल की" का लोकार्पण मुंबई में 15 अगस्त 2010, शाम 5 बजे, आर. डी. नेशनल कालेज के कॉन्फ्रेन्स हाल श्री आर.पी.शर्मा महर्षि की अध्यक्षता में पूर्ण भव्यता के साथ संपन्न हुआ। कार्य दो सत्रों में हुआ- पहला विमोचन, दूसरा काव्य गोष्टी।

समारोह की शुरूआत में मुख़्य महमानों ने दीप प्रज्वलित किया और श्री हरिशचंद्र ने सरस्वती वंदना की सुरमई प्रस्तुती की। अध्यक्षता की जिम्मेदारी श्री आर. पी शर्मा (पिंगलाचार्य) ने संभाली। मुख़्य महमान श्री नंदकिशोर नौटियाल (कार्याध्यक्ष-महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी एवं संपादक नूतन सवेरा), श्री इब्रहीम अशक (प्रसिद्ध गीतकार) जो किसी कारण न आ सके, श्री जलीस शेरवानी (लोकप्रिय साहित्यकार), "कुतुबनुमा" की संपादिका डा॰ राजम नटराजन पिलै रहे। देवी नागरानी जी ने सभी मुख़्य महमानों को पुष्प देकर सन्मान किया, जिसमें शामिल थे डा॰ गिरिजाशंकर त्रिवेदी, संतोष श्रीवास्तव श्री और श्रीमती गोपीचाद चुघ।

आर पी शर्मा "महरिष" ने संग्रह का लोकार्पण किया और अपने वक्तव्य में यह ज़ाहिर किया कि साहित्यकार अपनी क़लम के माध्यम से लेखिनी द्वारा समाज को नई रोशनी देतने में सक्षम हैं। उसके पश्चात शास्त्रीय संगीतकार सुधीर मज़मूदार ने देवी जी की एक ग़ज़ल गाकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया...

"रहे जो ज़िंदगी भर साथ ऐसा हमसफ़र देना
मिले चाहत को चाहत वो दुआओं में असर देना"

कुतुबनुमा की संपादक डा॰ राजाम नटराजन पिल्लै ने अपने वक्तव्य में लेखन कला पर अपने विचार प्रकट करते हुए देवी जी के व्यक्तित्व व उनकी अनुभूतियों की शालीनता पर अपने विचार प्रस्तुत किये और उनके इस प्रयास को भी सराहते हुए रचनात्मक योगदान के लिये शुभकामनाएं पेश की। जलीस शेरवानी जनाब ने "लौ दर्दे दिल की" गज़लों के चंद पसंदीदा शेर सुनाकर ग़ज़ल की बारीकियों का विस्तार से उल्लेख भी किया और सिंधी समुदाय के योगदान का विवरण किया। नौटियाल जी ने आज़ादी के दिवस की शुभकामनायें देते हुए, देवी जी को इस संकलन के लिये बधाई व शुभकामनाएं दी।

देवी नागरानी ने अपनी बात रखते हुए सभी महमानों का धन्यवाद अता किया। आगे अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा "प्रवासी शब्द हमारी सोच में है. भारत के संस्कार, यहाँ की संस्कृति लेकर हम हिंदुस्तानी जहाँ भी जाते हैं वहीं एक मिनी भारत का निर्माण होता है, जहाँ खड़े होकर हम अपने वतन की भाषा बोलते है, आज़ादी के दिवस पर वहां भी हिंदोस्तान का झंडा फहराते हैं, जन गन मन गाते हैं। हम भले ही वतन से दूर रहते हैं पर वतन हमसे दूर नहीं। हम हिंदोस्ताँ की संतान है, देश के वासी हैं, प्रवासी नहीं।" और अपनी एक ग़ज़ल ला पाठ किया..

"पहचानता है यारो हमको जहान सारा
हिंदोस्ताँ के हम हैं, हिंदोस्ताँ हमारा."

पहले सत्र में संचालान का भार श्री अनंत श्रीमाली ने अपने ढंग से खूब निभाया। देवी जी ने पुष्प गुच्छ से उनका स्वागत करते हुए उनका धन्यवाद अता किया।

द्वितीय सत्र में संचालान की बागडौर अंजुमन संस्था के अध्यक्ष एवं प्रमुख शायर खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी जी ने बड़ी ही रोचकतपूर्ण अंदाज़ से संभाली। और इस कार्य के और समारोह में वरिष्ट साहित्यकार व महमान थे- श्री सागर त्रिपाठी, श्री अरविंद राही, (अध्यक्ष‍ श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी), श्री गिरिजा शंजकर त्रिवेदी (नवनीत के पूर्व संपादक), श्री उमाकांत बाजपेयी, हरिराम चौधरी, राजश्री प्रोडक्शन के मालिक श्री राजकुमार बड़जातिया, संजीव निगम, श्री मुस्तकीम मक्की (हुदा टाइम्स के संपादक)व जाने माने उर्दू के शायर श्री उबेद आज़म जिन्होंने इस शेर को बधाई स्वरूप पेश किया. ...

अँधेरे ज़माने में बेइंतिहा है
बहुत काम आएगी लौ दर्दे-दिल की "..उब्बेद आज़म

सभी कवियों, कवयित्रियों ने अपनी अपनी रचनात्मक अभिव्यक्तियों से समां बांधे रखा। कविता पाठ की सरिता में शामिल रहे श्री सागार त्रिपाठी जिन्होंने अपने छंदों की सरिता की रौ में श्रोताओं को ख़ूब आनंद प्रदान किया। कड़ी से कड़ी जोड़ते रहे श्री अरविंद राही, लक्ष्मण दुबे, श्री मुरलीधर पांडेय, शढ़ीक अब्बासी, देवी नागरानी, श्री शिवदत्त अक्स, गीतकार कुमार शैलेंद्र, नंदकुमार व्यास, राजम पिल्लै, मरियम गज़ाला, रेखा किंगर, नीलिमा डुबे, काविता गुप्ता, श्री राम प्यारे रघुवंशी, संजीव निगम, संगीता सहजवाणी, शिवदत "अक्स", कपिल कुमार, सुष्मा सेनगुप्ता, और शील निगम, ज्यिति गजभिये।

श्रोताओं ने काव्य सुधा का पूर्ण आनंद लेते रहे श्री गिरीश जोशी, प्रमिला शर्मा, प्रो॰ लखबीर वर्मा, मेघा श्रीमाली, पं॰ महादेव मिश्रा, संतोष श्रीवास्तव, प्रमिला वर्मा, पंडित महादेव मिश्रा, रवि रश्मि अनुभूति, शिप्र वर्मा, राजेश विक्रांत, मुमताज़ खान, वी. न. ढोली, लक्ष्मी यादव, प्रकाश माखिजा, शकुंतला शर्मा, इकबाल मोम राजस्तानी, श्याम कुमार श्याम, सतीश शुक्ल, सिकंदर हयात खान, अमर ककड़, विभा पांडेय, शिल्पा सोनटके, अमर मंजाल, कान्ता, लक्ष्मी सिंह, रत्ना झा, गोपीचंद चुघ, आशा चुघ, संगीता सहजवानी, प्रो॰ शोभा बंभवानी, देवीदास व लता सजनानी, गिरीश जोशी. करनानी जी, कवि कुलवंत. त्रिलोचन अरोड़ा, नंदलाल थापर, श्रीमती किरण जोशी, सोफिया सिद्दिकी, रजनिश दुबे और सुनील शुक्ला।

Tuesday, August 17, 2010

गुलामी की बेडियों से मुक्त आजाद भारत

गरीबी का बढना चिन्ताजनक
हिंसा का मार्ग घातक




उदयपुर ! सत्य और अहिंसा स्वतंत्रता आन्दोलन के मूल मंत्र थे। भारत की आजादी के राष्ट्रीय नायको के प्रति जनता में अटूट विश्वास था। गुलामी की बेडियों से मुक्त आजाद भारत के गॉवों का कायाकल्प तीव्रगति से हुआ है। भारत में अमीरी बढ रही है किन्तु गरीबी का बढना चिन्ताजनक है। उक्त विचार स्वतंत्रता सेनानी हुकम राज मेहता ने डॉ. मोहन सिंह मेहता एंव वेदान्ता हिंद जिंक के साझे मे आयोजित ‘‘ स्वतंत्र भारत और स्वतंत्रता सेनानी‘‘ विषयक संवाद मे व्यक्त किये। मेहता ने भारत मे बढते भृष्टाचार पर चिन्ता व्यक्त करत हुये नागरिकों से नागरिक जिम्मेदारी निर्वहन एंव हिंसा का मार्ग त्यागने की अपील की।
संवाद की अध्यक्षता करते हुये विजय एस. मेहता ने युवाओं मे बढते नशे एंव ड्रग्स की प्रवृति तथा हिंसा के मार्ग को घातक बतलाये युवाओं को राष्ट्र निर्माण हेतु आगे आने की अपील की।

चादपोल नागरिक समिति के तेजशंकर पालीवाल एंव झील हितेषी मंच के हॉजी सरदार मोहम्मद ने कहा कि सामाजिक समस्याओं का निदान सत्य अहिंसा एवं संवाद मे ही निहीत है। डॉ. आशा गुप्ता एंव मीरा कन्या महाविद्यालय के प्रो. एस. एन. गुप्ता ने उदयपुर शहर की सुन्दरता बनाये रखने मे नागरिक पहल की जरूरत बतलाई।

ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने आजादी के आन्दोलन के सेनानियों के जीवन मूल्यों को उद्रित करते हुये संवाद का संचालन किया। संवाद मे गोवर्धन सिंह झाला, विपिन हेनरी, सोहनलाल तम्बोली ने भी विचार व्यक्त किये। धन्यवाद नीतेश सिंह कच्छावा ने ज्ञापित किया।

नीतेश सिह कच्छावा
कार्यालय प्रशासक

देशभक्ति से ओतप्रोत आनंदम् की संगीतमय प्रस्तुति



भारत के 64वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 2010 को बी-4 पश्चिम विहार की रैज़ि़डैंट वैलफेयर एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आनंदम् की संगीत प्रस्तुति पर वहाँ के निवासी आनंद से झूम उठे।
मुख्य अतिथि अतिथि के रूप में क्षेत्र के विधायक माननीय गर्ग साहब के साथ पार्षद श्रीमती सविता गुप्ता उपस्थित थीं। अतिथियों द्वारा ध्वजारोहण के उपरांत आनंदम् के बाल कलाकारों द्वारा श्री जगदीश रावतानी आनंदम् के निर्देशन में राष्ट्र गान जनगणमन ......... गाया गया। इसके उपरांत श्री जगदीश आनंदम् के ही निर्देशन में छवि, नंदिनी, खुशी, मोहिता, वनीषा, देव, अनीता कपूर, शैली मेहता, पवित्त, व नीतीश, इत्यादि कलाकारों ने देशभक्ति के गीत प्रस्तुत कर लोगों को आनंद विभोर कर दिया। की बोर्ड पर जगदीश रावतानी आनंदम्, गिटार पर तरुण रावतानी व बाँसुरी पर भूपेन्द्र कुमार ने कलाकारों का साथ दिया। इस अवसर पर जगदीश जी ने कुछ स्वरचित ग़ज़लें व आज़ाद नज़्में भी पेश कीं जिसे सभी ने ख़ूब सराहा। कॉलोनी के एक वयोवृद्ध निवासी चतुर्वेदीजी ने भी स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित एक कविता प्रस्तुत कर लोगों में उत्साह का संचार किया। कॉलोनी के ही कुछ अन्य निवासियों व बाल कलाकारों ने भी अपनी कविताएँ इत्यादि प्रस्तुत कर कार्यक्रम को विविधता प्रदान की।
विधायक माननीय गर्ग साहब व पार्षद श्रीमती सविता गुप्ता ने देशभक्ति पूर्ण रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए कॉलोनी एवं आनंदम् के सभी कलाकारों की प्रशंसा की एवं सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ दीं।
इस अवसर पर प्रतिभागी बच्चों तथा कक्षाओं में उच्च अंक प्राप्त करने वाले बच्चों को पुरस्कृत करने के साथ-साथ आनंदम् के कलाकारों व कॉलोनी के वरिष्ठ नागरिकों का भी सम्मान किया गया।



अंत में आर डब्लू ए के अध्यक्ष डॉ. धर्मकीर्ति ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया एवं श्री जगदीश रावतानी आनंदम् का विशेष रूप से धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह हम सब के लिए सौभाग्य की बात है कि ऐसे उच्च कोटि के कलाकार इस कॉलोनी में रहते हैं। मिष्ठान्न वितरण के उपरांत कार्यक्रम संपन्न हुआ।

Monday, August 16, 2010

रमणिका फाउंडेशन ने किया दो प्रतिनिधी कविता संग्रहों का लोकार्पण



रमणिका फाउण्डेशन द्वारा साहित्य अकादमी सभागार में आयोजित डॉ. सुधीर सागर का कविता संग्रह 'बस! एक बार सोचो` तथा श्रीमती कुन्ती की 'अंधेरे में कंदील` का लोकार्पण रमणिका फाउंडेशन की अध्यक्ष सुश्री रमणिका गुप्ता, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के उपाध्यक्ष श्री एस. एस.नूर एवं वरिष्ट कवयित्री सुश्री अनामिका के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ।
मुख्य अतिथी श्री एस.एस.नूर ने अपने वक्तव्य में कहा काव्य भाषा दोनों कवियों के पास है। काव्यशास्त्र की गहरी पहचान है। इस कविता-संग्रह में यथार्थ से उपजी नई काव्य-भाषा देखने को मिलती है। 'बस! एक बार सोचो` की कविताओं के लिए अनामिका जी ने 'मेरे अंदर एक और आदमी` शीर्षक कविता का जिक्र खासतौर पर किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार एक शरीर में अनेक व्यक्ति निवास करते हैं। कुन्ती की कविता 'उजाले की किरण` में सकारात्मक उर्जा को बदलने की शक्ति है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं सुश्री रमणिका गुप्ता ने कहा 'ठाकुर का कुआं` कविता छोटी जरूर है लेकिन ये गहरी तथा लम्बी बात कहती है। अंधेरे में कंदील कविता के आरंभ में खरपतवार` शब्द का प्रयोग सहज और सही है जो खेतिहर मजदूरों से जुड़ा है। प्रेम वही करता है जो क्रांतिकारी होता है। कविताओं में कुछ न कुछ करने की भूख है। इस कार्यक्रम में दोनों कवियों ने अपनी चुनी हुई कविताओं का पाठ किया। तत्पश्चात श्री रमेश प्रजापति में कविता पर आलेख पाठ प्रस्तुत करते हुए कहा कि 'बस! एक बार सोचो` की कविता उत्पीड़ितों और शोषितों का प्रकाशपुन्ज है। अजय नावरिया ने कहा डॉ. सागर की कविताओं में चित्रात्मक अभिव्यक्ति है। जबकि कुन्ती की कविताओं में स्त्री है। विशिष्ट अतिथि श्री योगेन्द्र कुमार शर्मा 'निधि मेल` के संपादक ने कहा दोनों ही बुन्देली भाषा के अच्छे साहित्यकार हैं। दोनों की कविताओं में स्त्री एवं दलित विमर्श दिखाई देता है। कवि विवेक मिश्र ने कहा कि दोनों की पुस्तकों में शोषितों एवं उत्पीड़ितों की पीड़ा को मार्मिक ढंग से रखा। कार्यक्रम का संचालन छत्तीसगढ के दलित साहित्यकार संजीव खुदशाह ने किया। अंत में साहित्यकार श्री रूपनारायण सोनकर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम में मैत्रेयी पुष्पा, असगर वजाहत, सुधा अरोड़ा, अनिता भारती, मदन कश्यप सहित अनेक साहित्यकारों ने शिरकत की।

प्रस्तुति : रमणिका फाउंडेशन
डिफेंस कालोनी
नयी दिल्ली

Sunday, August 15, 2010

विख्यात साहित्यकार श्री अमृतलाल नागर की जयंती पर समिति मे एक विशेष कार्यक्रम मंगलवार को

श्री नागर की सुपुत्री एवं प्रसिद्ध फिल्म लेखिका डॉ.अचला नागर अपने बाबूजी की स्मृतियाँ बाँटेंगी

अपनी अनूठी भाषा शैली से भारत की बहुरंगी संस्कृति और विरासत से पाठकों का जीवंत साक्षात्कार कराने वाले अप्रतिम साहित्यकार श्री अमृतलालजी नागर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति द्वारा एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है.मालवा रंगमंच समिति के साथ संयुक्त रूप से संयोजित ये कार्यक्रम दि १७ अगस्त, मंगलवार की शाम ६ बजे रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग स्थित समिति के सभागृह मे होगा.इस कार्यक्रम मे श्रीनागरजी की सुपुत्री एवं निकाह, बाबुल, ईश्वर तथा बागवान जैसी मशहूर फिल्मो और कई चर्चित टी.वी धारावाहिको की लेखिका ड़ा. अचला नागर मुख्य वक्ता के रूप से उपस्थित रहेंगी.

समिति के प्रधानमंत्री श्री बसंतसिंह जौहरी, साहित्यमंत्री ड़ा. पद्मासिंग एवं मालवा रंगमंच समिति के अध्यक्ष श्री केशव राय ने बताया कि पद्मभूषण तथा सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार सहित देश विदेश मे कई अलंकरणों से सम्मानित श्री अमृतलालजी नागर की ९४ वी जयन्ती के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम मे उनकी सुपुत्री ड़ा.अचलाजी अपने बाबूजी से जुडी यादे, उनकी बाते और उनके व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलुओ को साझा करेंगी. वे इस अवसर पर श्री नागरजी की लिखी कुछ चर्चित पुस्तकों के अंशो का पाठ करेंगी और उनकी साहित्यिक प्रतिबध्दता की चर्चा भी करेंगी. इस तरह इस कार्यक्रम के बहाने शहर के साहित्य प्रेमी श्री नागर के व्यक्तित्व और कृतित्व के कई पहलुओ से रु-ब-रु हो सकेंगे. आपने बताया कि स्व.अमृतलाल नागरजी का हिन्दी साहित्य मे एक विशिष्ट स्थान है. शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, सात घूँघट वाला मुखड़ा, मानस का हंस, और नाच्यौ बहुत गोपाल जैसी अप्रतिम साहित्यिक कृतियों के लेखक श्री नागर ने अपनी लेखनी से साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं जैसे उपन्यास, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी तथा व्यंग्य को समृद्ध किया है.

शब्द परम्परा के उनके संस्कार ड़ा. अचला नागर को विरासत मे मिले है. टी.वी और फिल्मो के लिये कहानी और संवाद लिखने के अलावा वे साहित्यिक सृजन मे भी जुटी है.कुछ समय पहले उनके द्वारा लिखित पुस्तक “अमृतलाल नागर की बाबूजी बेटाजी एंड कंपनी” काफी चर्चित हुई थी.निकाह, बाबुल और बागवान जैसी फिल्मो की कहानी और आखिर क्यौ, अमीर गरीबी, नगीना और निगाहें जैसी मशहूर फिल्मो के संवाद उन्हीं की कलम से निकले है.

प्रचारमंत्री,प्रधानमंत्री
श्रीमध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर

क्षितिज शर्मा की कहानियाँ व्यवस्था में रहकर व्यवस्था के अस्वीकार की कहानियाँ हैं- राजेन्द्र यादव

एक शाम एक कथाकार-1




आप इस पूरे कार्यक्रम को सुन भी सकते हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें-

कुल प्रसारण समय- 1 घंटा 23 मिनट 45 सेकण्ड । अपनी सुविधानुसार सुनने के लिए यहाँ से डाउनलोड करें।


नई दिल्ली।

13 अगस्त 2010 को पीपुल्स विजन, दिल्ली, हिन्द-युग्म और गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में 'एक शाम एक कथाकार' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ कथाकार क्षितिज शर्मा ने कहानीपाठ किया। अध्यक्षता हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने की। क्षितिज शर्मा के कृतित्व पर समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट और कथाकार महेश दर्पण ने अपने विचार रखे। संयोजन हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी तथा युवा कवि व लेखक रामजी यादव ने किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ आलोचक आनंद प्रकाश ने किया।

पीपुल्स विजन निकट भविष्य में हर महीने एक ऐसी गोष्ठी के आयोजन को लेकर कटिबद्ध है जिसमें एक कथाकार अपनी कहानियों का पाठ करे और कहानी के जानकार और आम पाठक उपसर अपनी ईमानदार टिप्पणियाँ करें। कथाकार की प्रशस्ति करना ही मात्र इस गोष्ठी का उद्देश्य नहीं हो, बल्कि कहानीकार को तल्ख और वास्तविक प्रतिक्रियाएँ तत्काल मिलें। इस आयोजन में पीपुल्स विजन को हिन्द-युग्म डॉट कॉम और गांधी शांति प्रतिष्ठान का सहयोग प्राप्त है।

इसी शृंखला की पहली कड़ी के तौर पर वरिष्ठ कथाकार क्षितिज शर्मा ने अपनी कहानी 'अनुत्तरित' का पाठ किया। क्षितिज ने इस कहानी का बहुत ही धीमा और नीरस पाठ किया। यह बात वहाँ उपस्थित श्रोताओं और विशेषज्ञों ने भी रेखांकित की। लेकिन गोष्ठी की सफलता इस बात में भी थी कि कोई भी श्रोता कथापाठ के दौरान टस से मस नहीं हुआ। संचालक आनंद प्रकाश ने क्षितिज शर्मा के कथापाठ से पहले ही वहाँ मौज़ूद सभी रचनाकारों से यह सवाल पूछा कि आज के रचनाक्षेत्र में सभी अच्छी बातें, ग्राह्य बातें या पक्ष की बातें किसी सेट फॉर्मुले के तौर पर आती हैं, समकालीन रचनाओं में शत्रु पक्ष की विशेषताओं और क्रूरताओं की ओर स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। तो क्या शत्रु पक्ष के आवश्यक मूल्यांकन के बिना इन रचनाओं की सार्थकता एक निश्चित बिंदु के आगे सम्भव है? क्षितिज शर्मा ने इस सवाल का उत्तर देते हुए कहा कि वो अपनी रचनाओं में दोनों पक्षों का एक बराबर उल्लेख इसलिए भी नहीं करते कि कहीं पाठक दोनों में उलझ ने जाये, उसे दो रास्ते न मिल जायें और वह उनमें कहीं भटक न जाये। इसलिए वे शत्रु पक्ष का वर्णन इशारों में करते हैं।

महेश दर्पण ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं यह तो नहीं कहूँगा कि 'अनुत्तरित' क्षितिज शर्मा की प्रतिनिधि कहानी है, लेकिन इनकी लगभग सभी कहानियों में अपने समय के बड़े प्रश्न मौज़ूद हैं। इस समाज में, इस व्यवस्था में या इस समाज में जीने को विवश व्यक्ति के पास इन सवालों के जवाब मौज़ूद हैं या नहीं यह एक अलग बात है। महेश ने श्रोताओं को बताया कि आलोचकों और पाठकों का क्षितिज शर्मा की ओर ध्यान तब गया जब इनके उपन्यास 'उकाव' को एक ऐसे प्रकाशन ने पुरस्कृत किया, जिसने उसे छापा नहीं था। महेश ने कहा कि यदि किसी को क्षितिज के कहानियो के केन्द्र-बिन्दु की तलाश करनी हो तो पहले उसे पर्वतीय स्त्रियों के संघर्षों को बहुत करीब से देखना होगा।



महेश दर्पण ने क्षितिज शर्मा को शैलेश मटियानी और शेखर जोशी की परम्परा का कथाकार कहा और कहा कि इन कथाकारों को मालूम है कि पहाड़ी स्त्रियों के दुःख-दर्द क्या हैं, कैसे वो अपने पीठ पर वो पहाड़ लादे हैं, जिन्हें पहाडी जीवन कहते हैं। क्षितिज शर्मा अपनी कहानियों में बहुत कम बोलते हैं, वे अपने आपको बहुत पीछे रखते हैं। यदि आप शैलेश मटियानी की केवल 'अर्धांगिनी' को याद रखें, तो क्षितिज की कहानियों के स्त्री-पात्रों की तुलना आप कर सकते हैं। क्षितिज शर्मा बहुत धीमी गति से चलने वाले कथाकार हैं। अपनी कहानियों को पढ़ते वक्त वे उन्हें दुश्मन की कहानी जैसा भी स्नेह नहीं देते। बिलकुल भी इन्वाल्व नहीं होते। अपनी कहानियों का इतना नीरस पाठ क्षितिज शर्मा ही कर सकते हैं।

महेश ने आगे कहा- "क्षितिज शर्मा की कहानियों को अमरकांत की कहानियों की तरह एकबार पढ़कर नहीं समझा जा सकता। मैं समझता हूँ कि क्षितिज 'ताला बंद है' से आगे बढ़े हैं। इधर की कुछ कहानियों में क्षितिज ने नये कथ्यों की खोज की है, जिसमें आज के समाज और व्यक्ति की चिंताएँ हैं और उनके समाधान का संकेत है।"

पंकज बिष्ट ने कहा कि मुझे क्षितिज शर्मा की पहली कहानी 'रोटी' को प्रकाशित करने का सौभाग्य प्राप्त है। क्षितिज शर्मा पहाड़ी जीवन और उसकी संवेदना जिस इंटीमेसी, जिस समझ के साथ देखते हैं, मेरा ख्याल है कि आज के समय के और किसी दूसरे पहाड़ी कहानीकार में वह नही मिलती। इसमें कोई शक नहीं है कि जब क्षितिज पहाड़ पर लिखते हैं तो वे शैलेश मटियानी के करीब होते हैं। लेकिन शैलेश मटियानी और क्षितिज शर्मा में यह फर्क है कि शैलेश मानवीय-संवेदना की कहानियाँ लिखते हैं, लेकिन क्षितिज शर्मा पहाड़ी जीवन के टूटते-बिखरते जाने की व्यथा लिखते हैं, पहाड़ी जीवन में पैदा होने वाली विकृतियों और उसके दुष्परिणाम की कहानियाँ लिखते हैं। क्षितिज शर्मा की कहानी में शैलेश मटियानी की शैली का प्रभाव देखना हो तो क्षितिज शर्मा की 'जागर' कहानी पढ़ी जा सकती है।

पंकज बिष्ट ने क्षितिज शर्मा की कहानी 'ताला बंद है' को हिन्दी की उल्लेखनीय कहानी कहा। पंकज ने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि क्षितिज शर्मा ने केवल पहाड़ी जीवन की कहानियाँ लिखी हैं, इनकी यहाँ की भी कहानियाँ भी उल्लेखनीय हैं। क्षितिज शर्मा की कहानियाँ निम्न मध्यवर्ग का बहुत गहराई से वर्णन करती हैं।

वरिष्ठ कथाकार राजेन्द्र यादव ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि मुझे हमेशा इस जगह से शिकायत है क्योंकि यहाँ कभी बात सुनाई देती हैं और कभी सुनाई ही नहीं देतीं। मैं क्षितिज शर्मा की कहानी सुन नहीं पाया, इसलिए मैं भी उस कहानी पर कुछ कहने का अधिकारी नहीं हूँ। क्षितिज शर्मा एक लो-लाइन व्यक्ति हैं। न वे अधिकारी हैं, न कोई संपादक और न कोई हाई प्रोफाइल व्यक्ति। मतलब कि हम उनकी कहानियों को बिना किसी दबाव के पढ़ सकते हैं। मैंने क्षितिज की 4-5 कहानियों को पढ़ा हैं, लेकिन 'उकाव' उपन्यास को पढ़ने से पहले मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि क्षितिज पहाड़ी जीवन के संघर्षों को इतने निकट से जानते हैं। आजादी के बाद की हिन्दी कहानियाँ वैक्यिक्तिक थीं। उनके केन्द्र में व्यक्ति था। वह समाज को स्वीकारता था। वह स्त्री-पुरुष के संबंधों की कहानियाँ थीं। आज की कहानियों के केन्द्र में भी व्यक्ति है, लेकिन वह व्यक्ति के आस-पास, उसकी समस्त यात्रा की कहानियाँ हैं, जिनमें समाज में रहते हुए भी समाज का अस्वीकार है। मैं समझता हूँ कि क्षितिज की कहानियाँ भी इसी अस्वीकार की कहानियाँ हैं, जिनमें व्यवस्था की बात करते हुए व्यवस्था का अस्वीकार है।



राजेन्द्र यादव ने आगे कहा कि क्षितिज शर्मा एक ठंडे कहानीकार हैं, जिनके पात्रों को पढ़कर, जानकर हम किसी तरह की उत्तेजना, उद्विग्नता, उदग्रता का अनुभव नहीं करते। वे सामान्य तरह की कहानियाँ है। मुझे लगता है कि इस तरह की सामान्यता को भी समझने के लिए हमें व्यक्ति में जाना होता है, भीड़ को समझने के लिए भी कुछ व्यक्तियों की ही तस्वीरें बनानी पड़ती हैं। इस व्यक्ति को सामाजिक संदर्भों में समझे बिना कहानी अपने आप को नहीं पढ़वा सकती। कई बार ये कहानियाँ लगभग समाजशास्त्रीय अध्ययन लगती हैं। और मुझे इस तरह की कहानियों से थोड़ी सी शिकायत है। मैं समझता हूँ कि क्षितिज शर्मा की कहानियाँ इस बात के लिए आश्वस्त करती हैं कि कहानी एक समाजशास्त्रीय अध्ययन नहीं है, किसी व्यक्ति का निजी और एकांतिक अनुभव नहीं हैं।

अंत में रामजी यादव ने आभार व्यक्त किया।

प्रस्तुति- www.hindyugm.com

हमार टीवी पर भोजपुरी कवि सम्मेलन का साप्ताहिक शो "वाह जी वाह"



आजकल जबकि साहित्य टीवी चैनल्स से दूर होते जा रहे हैं, हमार टीवी द्वारा भोजपुरी-मैथिली कवि-सम्मेलन का साप्ताहिक कार्यक्रम वाह जी वाह का श्रीगणेश सचमुच ऐतिहासिक है।

वाह जी वाह की शुरूआत स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर भोजपुरी की देश-भक्ति कविताओं से हो रहा है। 15 अगस्त को 12 .00 Noon और 10.00 P.M पर प्रसारित होने वाले इस कवि-सम्मेलन का संचालन कर रहे हैं- भोजपुरी के जाने माने शायर मनोज भावुक और इस अनोखे एपिसोड के कवि हैं- डा. रमाशंकर श्रीवास्तव, महेन्द्र प्रसाद सिंह, परिचय दास एवं अलका सिन्हा।

हमार के चैनल हैड उदय चन्द्र सिंह ने बताया कि इस वीकली शो के एंकर - प्रोड्यूसर मनोज भावुक हैं और पैनल प्रोड्यूसर हैं दिलीप सिंह। इस कार्यक्रम से देश-दुनिया का भोजपुरी -मैथिली साहित्य से साक्षात्कार तो होगा ही, साथ ही साहित्यिक अभिरूचि भी बढ़ेगी। इस कार्यक्रम में स्थापित कवियों के साथ ही नवोदित कवियों को भी अवसर दिया जाएगा।
कवि सम्मेलन में भाग लेने हेतु सम्पर्क करें -- wahjiwah@hamartv.in , manojsinghbhawuk@yahoo.co.uk
कवि सम्मेलन www.netvindia.com पर जाकर हमार टी.वी के अन्तर्गत देखा जा सकता है।

झलकियाँ-