Friday, April 30, 2010

विश्व पुस्तक दिवस पर आयोजित 'कविता में जुगलबंदी'



23 अप्रैल 2010
गांधीनगर, अहमदाबाद में फिल्म-प्रशिक्षण-संस्थान सिटी प्लस द्वारा एक प्रयोगात्मक रोचक कार्यक्रम 'कविता में जुगलबंदी' का आयोजन किया गया| साहित्यिक क्षेत्र में यह इस प्रकार का एक नवीन प्रयोग था जो काफी रोचक रहा और श्रोताओं को अंतत: बांधे रहा| यह जुगलबंदी थी नगर की दो सुप्रसिद्ध कवयित्रियों- डॉक्टर प्रणव भारती और मंजु महिमा के बीच में| कार्यक्रम के संचालक सेवानिवृत वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री विजय रंचन जी ने दोनों कवयित्रियों का पूर्ण परिचय देते हुए अपने साहित्यिक ज्ञान का भी परिचय दिया| पाश्चात्य और भारतीय साहित्य की तुलना करते हुए काफी जानकारी श्रोताओं को दी| उन्होंने कहा, 'मैं आतुर हूँ यह जानने को कि यह कैसे जुगलबंदी होगी क्योंकि दोनों ही कवयित्रियाँ कविता अलग-अलग विधा में काव्य-रचना करती हैं- एक गीतकारा है और छंदबद्ध गीत लिखती हैं तो दूसरी छंदमुक्त विधा को स्वीकारती हैं?’ इसी जिज्ञासा के साथ उन्होंने इस कार्यक्रम का आगाज़ कर डॉक्टर प्रणव भारती और मंजु महिमा को मंच पर आमंत्रित किया| सेवानिवृत वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्रीमती सुधा ने पुष्प-गुच्छों से स्वागत किया| कार्यक्रम के आयोजक तथा संस्था के निदेशक श्री आई.एस.माथुर ने कार्यक्रम आरम्भ करने की सहमति दी|

अपने मधुर स्वर में डॉ.प्रणव भारती ने सरस्वती-वंदना कर वातावरण को पुनीत कर दिया और अपनी सुन्दर रचना ''तुम मुझे एक कविता दे दो..दुल्हन के पैरो में महावर सी सजी नाजुक सी कविता' ज़वाब में मंजु महिमा ने सुनाया कि आजकल के माहौल में जहां हर घड़ी बमों के फटने की खबरे आती रहती हैं, मै कैसे अपने कविता कामिनी को सजाऊँ अलंकारों से, कैसे उसे बादल के घिर आने का सन्देश सुनाऊँ कैसे पहना दूं मै कविता कामिनी को सतरंगी चूनर, जबकि नज़र आ रहे है मुझे हर ओर कफ़न ही कफ़न| इसी प्रकार भारती ने सुन्दर-मधुर गीत 'पहले तो कूका करती थी कोयल मन के गाँव में' सुनाकर श्रोताओं को मन्त्र-मुग्ध कर दिया तभी मंजु ने कोयल से ही पूछ लिया, 'कोयल तुम कैसे कूक पाती हो? ज़हरीली गैस छोड़ती चिमनियाँ, धुंआ ही धुंआ उठा अम्बर में, कैसे तुम श्वासों को सहला, हरियाले गीत सुना पाती हो? बैठ नीम की डाल, कैसे मधुर गीत छेड़ पाती हो?

'रिश्तों के आकार नहीं होते' भारती की रचना के उत्तर में मंजु ने चाहत और प्रारब्ध का बिम्ब भाई-बहन के संबंधों के माध्यम से चित्रित किया तो श्रोता दाद दिए बिना नहीं रह सके| नारी-विमर्श की रचना, ’तृप्त सागर के किनारे एक नदिया अनमनी सी है, झूमते बादल समेटे,सूर्य की एक हथकड़ी है|’ प्रणव ने सुनाई और 'क्यों गरल के घूँट पीती रहीं तुम आज तक?’ के ज़वाब में महिमा ने कहा अब ऐसा नहीं होगा 'बहुत होगई मनमानी महानता की आड़ में, मै सीता नहीं, अहिल्या नहीं और न ही हूँ गांधारी| मै तो हूँ बस आज की नारी, जिसे रचना है वर्त्तमान न कि इतिहास और पुराण' रचना सुना कर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया| इसी प्रकार दोनों कवयित्रियों की यह जुगलबंदी करीब डेढ़ घंटे तक निर्विघ्न रूप से चलती रही और श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन करती रही|

उपस्थित समुदाय में संस्थान के स्वप्नदृष्टा श्री अशोक पुरोहित, श्रीमती वीणा पुरोहित तथा नगर के करीब ५० कलाप्रेमियो ने भाग लेकर देश की पहले स्नातक फिल्म-शिक्षण संस्था की शुक्रवारीय संध्या को एक यादगार संध्या बना दिया|

Thursday, April 29, 2010

'टेम्स की सरगम' के सुरों का कृष्णार्पण



मुम्बई; 25 अप्रैल
श्री राजस्थानी सेवा संघ द्वारा संचालित एस जे जे टी वि.वि. झुंझनू राजस्थान ने सुप्रसिद्ध कथा लेखिका संतोष श्रीवास्तव के सधप्रकाशित उपन्यास ' टेम्स की सरगम' का लोकार्पण श्रीमती परमेश्वरी देवी दुर्गादत्त टीबड़ेवाला कालेज के प्रांगण में किया। प्रख्यात कवि आलोक भट्टाचार्य के ओजपूर्ण संचालन से प्रारंभ हुए इस उपन्यास का लोकार्पण करते हुए डा. पुष्पा भारती ने कहा कि यह टेम्स की सरगम के सुरों का कृष्णार्पण है। उन्होंने भारती जी के साथ बिताए अपने अमूल्य क्षणों को याद करते हुए कहा कि संतोष का यह उपन्यास पढ़ते हुए मुझे आज यह कहने में संकोच नहीं होता कि इस अद्भुत कोमल पारदर्शी प्रेम का अपनी लेखनी से संतोष ने जो वर्णन किया है, मैं वैसे ही उसी प्रेम से गुजरी हूं। और यह प्रेम का एहसास ही इसमें वर्णित है। संतोष के इस उपन्यास में इतिहास धड़क रहा है। इसमें भक्ति मार्ग, ग्यान मार्ग का संगम है।

कथाकार ओमा शर्मा ने उपन्यास पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि लेखिका के पास उपन्यास कला है । कथानक कहीं ठहरता नहीं है, भाषा कभी गूढ़ या अमूर्त नहीं होती है। पात्रों के बातचीत के बीच वे अपनी भाषा के माध्यम से उस अनकही को रचती हैं जो कथा की भरपाई करती है।

कथाकार प्रमिला वर्मा ने अपने कथन में लेखिका के साथ जिए रचना क्षणों को याद कर सभी को अभिभूत कर दिया। उपन्यास के विविध प्रसंगों की नौरस में टी.वी. कलाकार रवि राजेश ने भावपूर्ण प्रस्तुति की। यह लोकार्पण के इतिहास में एक अद्भुत प्रयोग था। वरिष्ठ लेखक धीरेन्द्र अस्थाना ने उपन्यास की चर्चा को आगे बढा़ते हुए कहा कि इतिहास के प्रांगण में प्रवेश कर कुछ बटोर लाने के लिए लेखिका का साहस सलाम का हकदार है।

उपन्यास की लेखिका सुप्रसिद्ध कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने अपने मनोगत वक्तव्य में उपन्यास की रचना के क्षणों को बताते हुए अपने कोलकाता व लंदन के प्रवास के शोधकार्य को प्रस्तुत किया। सतना से आए वरिष्ठ साहित्यकार प्रह्लाद अग्रवाल ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा कि जब किसी रचना में प्रेम का अद्भुत तत्व मन को भिगो देता है तो बाकी सारी घटनाएं निरर्थक हो जाती हैं। मैंने लेखिका का साहित्य शुरु से पढ़ा है और मैं लेखिका का प्रशंसक रहा हूं।

हिन्दी साहित्यकारों के बीच उर्दू के साहित्यकारों का आना समारोह में चार चांद लगा गया। साप्ताहिक उर्दू कौमी पैगाम के पत्रकार निसार अहमद, मलिक अकबर, मुंब्रा से आए शायर समीर फ़ैजी एवं समाज सेवक अनवर मोहम्मद खान ने लेखिका को पुष्प गुच्छ भेंट कर अपनी शुभकामनाएं दीं। तथा उनके सम्मान में अनवर मोहम्मद खान ने शेर पढ़े।

विशेष अतिथि चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा ने इस उपन्यास की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें इतिहास झांकता है। लेखिका इतिहास की छात्रा रह चुकी हैं तो इतिहास को बखूबी पेश करना उन्हें आता है। इसमें आज की नारी का चरित्र उभरकर सामने आता है। अध्यक्ष विनोद टीबड़ेवाला [ कुलपति -एस जे जे टी वि.वि.] ने कहा कि उन्होंने जब यह उपन्यास हाथ में लिया तो बिना पूरा पढ़े वे सो भी नहीं पाए। वे एक पाठक के दृष्टिकोण से कहते हैं कि इस उपन्यास की पकड़ ही इतनी मजबूत है।

हेमंत फ़ाउंडेशन की सदस्य तथा लेखिका सुमीता केशवा ने सबके प्रति अपना आभार प्रकट किया। देवी नागरानी ने अपने सुमधुर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम में भारी संख्या में मुंबई के पत्रकार संपादक तथा प्रतिष्ठित एवं नवोदित साहित्यकारों का अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज़ कराना यह सिद्व करता है कि साहित्य इस सदी के सर्वोच्च शिखर पर है।

प्रस्तुति- सुमीता केशवा

Wednesday, April 28, 2010

जेंडर और विकास पर उदयपुर में कार्यशाला आयोजित



उदयपुर । स्त्री एवं पुरूष के मध्य यौनिक भेद (सेक्स) का आधार जैविकीय होता है किंतु लिंगाभाव (जेंडर) के अंतर्गत वे भेद आते है जो सांस्कृतिक परिवेश के आधार पर थोप दिये जाते है। बालक-बालिका का क्रमशः पुरूष और स्त्री में रूपान्तरण उनके समाजीकरण की एक जटिल प्रक्रिया है जिसे समझकर ही स्त्री सशक्तीकरण एवं समतायुक्त समाज के निर्माण की दिशा में ठोस पहल की जा सकती है। ‘जेंडर एवं विकासः अवधारणा एवं नीति अध्ययन’ विषय पर केंद्रित कार्यशाला में बोलते हुए महिला अध्ययन केन्द्र विभाग, जनशिक्षण एवं विस्तार कार्यक्रम निदेशालय, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड) विश्वविद्यालय के निदेशक श्री सुशील कुमार ने उपयुक्त विचार व्यक्त किए। इस कार्यशाला में महिला अध्ययन केन्द्र विभाग, की प्रभारी सुश्री प्रज्ञा जोशी ने हमारे दैनंदित जीवन में कार्यसहभागिता के अनेक उदाहरणों के जरिए समझाया कि ‘घर-बाहर’ ‘भावुक-तार्किक’ ‘कोमल-साहसी’ की अनेक व्युत्क्रमानुपाती छवियॉं दरअसल समाज द्वारा निर्मित छवियां है जो इस तरह से अंतर्निहित करा दी जाती हैं कि मानव को प्राकृतिक और सहज लगने लगती है।

दूसरे सत्र में सुश्री प्रज्ञा जोशी ने स्त्री सशक्तीकरण के भारतीय परिप्रेक्ष्य का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह अद्भूत संयोग है कि कल ही उस महान महिला सावित्री बाई फुले की जयंती है जिन्होने स्त्री शिक्षा को भारत में नींव डालकर स्त्री के सोए आत्मसम्मान की प्राप्ति हेतु उसे शिक्षा रूपी शस्त्र प्रदान करने की पहल की ।

भोजनोपरांत सत्र में वक्ता डॉ लालाराम जाट ने ‘‘जेंडर और विकास’’ के संदर्भ में बताया कि ‘सकल राष्ट्रीय उत्पाद’ के आधार पर राष्ट्र की प्रगति को मापने का मानदंड पुराना पड़ चुका और अब अस्वीकृत है। ‘समग्र विकास ‘सामाजिक विकास’ और सबसे नई ‘स्वपोषी विकास’ की अवधारणाओं को विस्तार से समझाते हुए उन्होने बताया कि अब विकास एक केंद्रिकृत अवधारणा नहीं रह गई है बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर यह माना गया है कि हाशिए पर स्थित लोगों को विकास की धारा में जोड़ माना ही वास्तविक विकास है। उन्होने इस परिप्रेक्ष्य में ‘जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स’ व जेंडर एम्पावरमेंट इंडेक्स की भी चर्चा की ।

उपयुक्त कार्यशाला राजस्थान विद्यापीठ द्वारा मेंवाड़ आंचल के सामुदायिक केंद्रों मे कार्यरत कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षणार्थी हेतु आयोजित की गई । महिला अध्ययन केन्द्र विभाग के श्री उमर फारूक ने बताया कि प्रत्येक माह इस प्रकार की दो कार्यशालाएं आयोजित होगी जिसका लक्ष्य कार्यकर्ताओं में जेंडर संवदेनशीलता का विकास कर सामुदायिक विकास कार्यो में जेंडर समानता को बढ़ाना है।

'कवितायन' द्वारा प्रसिद्ध कवियों का सम्मान



कविता के क्षेत्र में दिल्ली की असंख्य काव्य संस्थाएं अपनी गतिविधियों से कविता-संसार को निरंतर सक्रिय रखे हैं, यह अपने आप में एक सुखद बात है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओं द्वारा स्थापित सांस्कृतिक व बौद्धिक मंच 'कवितायन' ने दिनांक 23 अप्रैल 2010 को अपने तीसरे वार्षिक समारोह में हिंदी के कई कवियों - अमरनाथ अमर, नमिता राकेश, अभिषेक अत्रे, ममता किरण, चंद्रशेखर आसरी, जितेन्द्र सिंह, विवेक मिश्र तथा एम. एन. कृष्णमणि को 'साहित्य सृजन सम्मान' से सम्मानित किया. कार्यक्रम सुप्रीम कोर्ट के सामने ही स्थित Indian Society of International Law के सभागार में हुआ. इस कार्यक्रम में हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार गोविन्द व्यास मुख्य अतिथि थे तथा न्यायमूर्ति वी. एस. सिरपुरकर विशिष्ट अतिथि थे जिन्हें कवितायन ने विशिष्ट रूप से 'कवितायन साहित्य-सेवी सम्मान' दिया.

कार्यक्रम का प्रारंभ ज्योति प्रज्वलन व 'वर दे वीणा वादिनी..' प्रार्थना से हुआ. दि. 22 अगस्त 1946 को जन्मे न्यायमूर्ति वी.एस.सिरपुरकर, जिन का पूरा परिवार अधिवक्ता रहा तथा जो उत्तराँचल व पश्चिम बंगाल के मुख्य न्यायाधीश के पदों पर कार्यरत रह चुके हैं और वर्त्तमान में सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश हैं, की गरिमामय उपस्थिति ने इस कार्यक्रम की गरिमा को और भी बढ़ाया तथा सभागार में वकील समुदाय व न्यायपालिका से जुड़े कई लोग और अन्य काव्य-प्रेमी बेहद तन्मयता से कार्यक्रम देख रहे थे. पर जब उन्होंने भाषण प्रारंभ किया तो उनके ह्यूमर (Humour) के आगे चित्त हो कर दर्शक-गण लगातार खिलखिलाते रहे. एक जज का कार्य अति-गंभीर व ज़िम्मेदारी भरा रहता है, पर उस धीर-गंभीर वातावरण से मुक्त हो कर जब वह ऐसे किसी कार्यक्रम में हंसी बिखेरता है तो बहुत सुखद अनुभूति होती है. उन्होंने अपने भाषण में कहा :

मैं तानसेन भले ही न हूँ/पर कानसेन ज़रूर हूँ ! (ज़ोरदार कहकहा).

उन्होंने अपनी एक कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि जीवन भर में उन्होंने केवल एक ही कविता लिखी. (कुछ पंक्तियाँ):

कविता क्या हो तुम/ कितने हैं रूप तुम्हारे/ शिशु हृदय के लिए ऊषणामय हो तुम/ लोरियों में नींद/ पलकें झपकाती/ ममतामय हो तुम...

सरिता शर्मा का काव्यपाठममता किरण का काव्यपाठ
मुख्य अतिथि गोविन्द व्यास ने भी अपने भाषण में न्यायमूर्ति सिरपुरकर के सन्दर्भ में यह कह कर सभागार में कहकहे बिखेर दिए कि कभी-कभी उन्हें लगता है कि जिस व्यक्ति को कवि होना चाहिए, वह न्यायालय में आ गया है और शायद जिस व्यक्ति को न्यायालय में होना चाहिए, वह कविता कर रहा है. एक अन्य सन्दर्भ में भी सभागार हंसी से झूम गया जब उन्होंने कहा कि एक अच्छा कवि भी अच्छा आदमी हो सकता है. व्यंग्यकार के रूप में जग-प्रसिद्ध गोविन्द व्यास ने यह भी स्पष्ट कहा कि आज़ादी से पहले की तुलना में अब समय काफी बदल चुका है. पहले कई नामी-गिरामी वकील राजनीति में आए और देश के लिए काफी सकारात्मक काम किया जब कि अब राजनीति में वही लोग हैं जो राजनीति ही कर रहे हैं. अपने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहकहे बिखेरने में भी वे जग-प्रसिद्ध हैं ही. उन के द्वारा प्रस्तुत कुछ छोटी छोटी कविताओं के अंश यहाँ प्रस्तुत हैं:

कोई जागे कि न जागे ये मुकद्दर उस का
आपका काम है आवाज़ लगाते रहना

और

नदी अपने किनारे पर सर रख कर रो रही है
हाय, लहरों को इस देश में कितनी तकलीफ हो रही है

सम्मानित कवियों को सम्मान-स्वरुप एक एक शाल व प्रशस्ति-चिह्न प्रदान किया गया. इस के पश्चात सम्मानित कवियों व अन्य आमंत्रित कवियों द्वारा काव्य-पाठ हुआ. इन में से ममता किरण अपनी कुछ ताज़ा कविताओं के साथ प्रस्तुत थी. हिंदी गज़ल में एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में प्रसिद्ध ममता किरण के कुछ शेर:

मेरी मंज़िल क्या है मुझ को क्या खबर
कह रहा था फूल इक दिन पत्तियों से

बंद घर उसने जो देखा खोल कर
एक टुकड़ा धूप आई खिड़कियों से

जो राहों में तेरी यादें बहुत टकराती हैं मुझ से
तो रुक कर खाक तेरे कूचे की हम छान लेते हैं.


नमिता राकेश हिंदी की एक अति-व्यस्त कवियत्री हैं जिन के लगभग पांच कविता संग्रह हैं व कई सम्मिलित संकलनों में उनकी कविताएँ संकलित हैं. उनकी कविताओं और शख्सियत - दोनों में ही एक आकर्षक इगो सा अक्सर झलकता है. यहाँ उनके द्वारा प्रस्तुत कविताओं की एक झलक:

मैं एक समुद्र हूँ/ शांत गंभीर गहरा/ न जाने अपने में क्या क्या छुपाए/ सीप/ मोती/ चट्टानें/ पत्थर...

... पत्थर फेंकने से/ शांत समुद्र में/ हलचल होती ही है/ लहरें विरोध करती ही हैं...

...यह तो प्रकृति का शाश्वत नियम है/ जो दोगे वही पाओगे/ अब यह तुम पर निर्भर है/कि तुम क्या पाने के योग्य हो/ मोती कि छींटें.

पेशे से वकील चंद्रशेखर आसरी ने दो कविताएँ पेश की जिन में से कुछ पंक्तियाँ उन के पेशे से ही संबंधित कुछ दिलचस्प सी पंक्तियाँ हैं:

'क्लाइंट' की भावनाओं में बह जाता हूँ मैं/ उस कर हर 'इमोशनल' अत्याचार भी सह जाता हूँ मैं/ इस व्यवस्था के ताबूत में एक छोटी सी कील हूँ मैं/ एक लो प्रोफाईल वकील हूँ मैं.

अन्य आमंत्रित कवियों को भी स्वागत में एक एक प्रतीक चिह्न दिया गया. उनमें जिस कवियत्री ने पूरे सभागार को अपनी मार्मिक आवाज़ व तरन्नुम भरे काव्य की गिरफ्त में ले लिया, वे थी डॉ. सरिता शर्मा. उनके द्वारा प्रस्तुत गीतों की कुछ पंक्तियाँ बेहद मार्मिक भी रही. जैसे:

हृदय की वेदना कहने न देंगे/ इन्हें हम आँख से बहने न देंगे/ बनेंगे जग हंसाई चार आंसू.

और

निडर बन कर उमड़ना चाहते हैं/ कभी मन में घुमड़ना चाहते हैं/स्वयं बन कर रुबाई चार आंसू.

इस से पहले उन्होंने समुद्र और नदियों पर कई पंक्तियाँ सुनाई. समुद्र और नदियों के बीच का समीकरण शायद हर कवि का प्रिय विषय रहा है. सरिता शर्मा की ये पंक्तियाँ:

लहर जैसी चपलता तो मुझ में भी है/ अनकही इक विकलता तो मुझ में भी है/ मैं नदी हूँ किनारों में सिमटी हुई/ इक समुन्दर मचलता तो मुझ में भी है...

लक्ष्मीशंकर वाजपेयी हिंदी के सुप्रसिद्ध गीतकार व गज़लगो हैं. उनके कुछ सशक्त शेर:

फूल कागज के हो गए जब से
खुशबुएँ दरबदर हुई तब से

बेटियाँ फिक्रमंद रहती हैं
बेटे रखते हैं काम मतलब से

जब से पानी नदी में आया है
हम भि प्यासे खड़े हैं बस तब से.

ज़र्फ देहलवी उर्दू शायरी में महारत रखते हैं. उन के द्वरा गाई हुई दर्द भरी गज़ल ने समां बाँध दिया.

अहसास के सब पैकर, आज़ार के सामाँ हैं
अब प्यार वफ़ा शफकत, मिलते हैं दुकानों में
(पैकर = शरीर, शफकत = पवित्रता).

उर्दू गज़ल में एक अन्य सशक्त व स्व-नाम-धन्य शायर अनीस अहमद खान:

अंदर अंदर खुद को बेच
बाहर से खुद्दारी रख

मुफ्त में गुस्सा मत हो माँ
रोटी दे तरकारी रख

दलबदलीधर जल्दी आ
जाने की तैयारी रख

न्यायमूर्ति सिरपुरकर व गोविन्द व्यासके प्रस्थान के बाद भी कार्यक्रम चलता रहा व कई अन्य कवियों ने कविताएँ पढ़ी. इस सत्र की अध्यक्षता लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने की।

रिपोर्ट - प्रेमचंद सहजवाला

आनंदम की जीवंत 21वी काव्य गोष्ठी



जीवन की आपाधापी से दूर जब कविगण एक स्थान पर एकत्र होते हैं तो वहीँ वो जीवन के हर रंग का एहसास दिलाकर एक पूरी दुनिया बसा देते हैं। आनंदम की 21वीं गोष्ठी जो 20 अप्रेल 2010 को मैक्स इन्श्योरेंस के सभागार में संपन्न हुई, में भी इस दुनिया के हर जज्बे का जीवंत अनुभव हुआ। गोष्ठी की सदारत जनाब खालिद अलवी साहिब ने की। आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने एक भेंट देकर खालिद साहिब का स्वागत किया। संचालन किया श्रीमती ममता किरण ने। इस गोष्ठी में शिरकत करने वालों के नाम हैं-

रविंद्र शर्मा "रवि", मासूम गाजियाबादी, मनमोहन तालिब, नंदा नूर, लाल बिहारी लाल, शारदा कपूर, डॉ बर्की आज़मी, ज़र्फ देहलवी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, जगदीश रावतानी, डॉ रजी अमरोहवी, नश्तर अमरोहवी, सिकंदर अमरोहवी, मजाज़ अमरोहवी, शैलेश सक्सेना, वीरेन्द्र भंडारी, वीरेन्द्र कमर, नागेश चंद्र, प्रेमचंद सहजवाला, दर्द देहलवी, सतीश सागर, अनुराधा शर्मा, पुरुषोत्तम वज्र, नाशाद देहलवी, सत्यवान और गगन दीप सिंह।

प्रस्तुत की गयी कुछ रचनाओ की झलक:

रविंदर शर्मा रविः
दरखतो की शामत सी आई हुई है
हवा किसलिए तिलमिलाई हुई है

अहमद अली बर्कीः
प्रीत न आई रास रे जोगी
ले लू क्या बनवास रे जोगी

वीरेंदर कमरः
माँ की बीमारी का मंज़र सामने जब भी आता है
सात समंदर पार का सपना सपना ही रह जाता है

दर्द दहलवीः
बस इक बार ज़मी पर लिखा था नाम उसका
वंहा से घास भी निकले तो खुशबू देती है

लक्ष्मी शंकर वाजपेयीः
तजुर्बे मेरे तो अक्सर यही बताते है
पुराने दोस्त ही मुश्किल में काम आते है

प्रेमचंद सहजवालाः
जब कभी माजी ने पूछे दिल से कुछ मुश्किल सवाल
तब ज़माने हाल ने भी दे दिए आसां जवाब

सिकंदर अमरोहवीः
सहन कंहा है जंहा धुप आती जाती थी
कि कपडे डलते थे तारो पर जब सुखाने को



मासूम गजियाबादीः
ज़माने में वो पसमंज़र भी इन आँखों ने देखे थे
कि जब इंसानियत रोई तो हैवानो को नीद आयी
खबर जब से सुनी है मैंने इक पगली के लूटने की
न ढंग से आँखे सो पायी न इन कानो को नींद आयी

लाल बिहारी लालः
( हाइकू)
१ कर्म का फल आज नहीं तो कल

२) हिंदी हो गयी देश के संग विदेशी भाषा

डॉ रजी अमरोहवी
देखने में तो है भरपूर चिलम पर जोबन
गुड़गुडाते है तो फर्शी में कंहा पानी

अनुराधा शर्मा
जिस्म से रूह को लेकर निकला
याद का जब भी कबूतर निकला
इन निगाहों में नशा कितना है
हर दफा पहले से बढ़ कर निकला

अंत में आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने सभी का धन्यवाद देते हुए प्यार और मुहब्बत यूँ ही बनाये रखने की गुजारिश की।

Tuesday, April 27, 2010

प्रवासी साहित्यकारों के प्रतिनिधि डा॰ दाऊजी गुप्त मुंबई में



17 अप्रैल 2010 की बात है जब देवी नागरानी जी के मोबाइल फोन की घंटी बजी- "मैं दाऊजी गुप्त बोल रहा हूँ लखनऊ से, कल मुंबई पहुँच रहा हूँ।" देवी जी ने क्षण भर को सोचा और ख़ुशी से बोलीं- "आपका स्वागत है हमारी महानगरी में।" और बातों के सिलसिले में यह तय हुआ कि सुनने-सुनाने के सिलसिले को एक काव्य गोष्टी का स्वरूप दिया जाय ताकि कुछ मिलने-मिलाने का भी लाभ मिले।" देवी जी जानतीं हैं कि दाऊजी जो खुद बेहतरीन कवि हैं को कवितायें-ग़ज़लें सुनने का कितना शौक है। लेकिन इतने कम समय में कौन आ पायेगा उनके यहाँ ये सोचनीय प्रश्न था। उन्होंने कहा, "दाऊजी आपका स्वागत है लेकिन मुझे ये सब प्रबंध करने में समय लगेगा आप अगर अनुमति दें तो 20 अप्रैल 2010, मंगलवार को रख लें।" इस तरह मंगलवार की शाम पांच बजे देवी नागरानी जी के घर पर एक काव्य गोष्ठी रखने का कार्यक्रम पक्का हो गया।

जो लोग देवी जी को जानते हैं उन्हें उनकी कर्मठता और कार्य क्षमताओं का पूरा अंदाज़ा है, बहुत मुश्किल लगने वाले काम को वो आसानी से कर दिखाती हैं। एक बार वो जिस काम को करने का बीड़ा उठा लेती हैं उसके बाद उसे पूरा कर के ही सांस लेती हैं। अकेली होने के बावजूद वो कभी अपने आपको अकेला या असहाय नहीं पातीं। उनका ये गुण अनुकरणीय हैं। दाऊजी से बात करने के पश्चात उन्होंने बिना समय गंवाये मुंबई के काव्य रसिकों-शायरों की एक लिस्ट तैयार की और फिर उसके अनुसार एक एक को फोन करने में जुट गयीं। तीन घंटे की लगातार हो रही फोन कालों के बाद कई जाने-माने शायर मंगलवार की शाम उनके घर पर पधारे।

मंगलवार बीस अप्रैल को देवी जी घर सब से पहले पहुँचने वाले दाउजी गुप्त ही थे। पाँच बजे की तपती शाम में देवी जी के घर पहुँच कर दाउजी ने अपने काव्य प्रेम को दर्शा दिया। एक-एक कर काव्य प्रेमी आने लगे। पिंगलाचार्य श्री महर्षि जी, जानी मानी कवयित्री माया गोविन्द और उनके अद्भुत शायर पति राम गोविन्द, हरदिल अज़ीज़ शायर जनाब खन्ना मुज्ज़फ़री, मधुर कविताओं के रचयिता कुमार शैलेन्द्र, 'कुतुबनुमा' पत्रिका के माध्यम से हिंदी की पताका फहराने वाली संपादक डा. राजम नटराजन पिल्ले, अपनी ग़ज़लों से सबके दिलों पर छाने वाले शायर जनाब सागर त्रिपाठी, सौम्य प्रकृति के अनूठे शायर जनाब हस्ती मल हस्ती, 'क़ुतुबनुमा' के संपादक मंडल और अनेकों संस्थाओं से जुड़े श्री अलोक भट्टाचार्य, नारी शक्ति की प्रतीक कवयित्री नीलिमा दुबे, प्रो॰रत्ना झा, खोपोली के शायर नीरज गोस्वामी, रास बिहारी पाण्डेय, आशु कवि श्यामकुमार श्याम, अपनी विशिष्ट शैली से चमत्कृत करने वाले कवि, शायर श्री लक्षमण डुबे, आर. डी. नैशनल कालेज की हिंदी विभाग की अध्यक्षा डा॰ संगीता सहजवानी और जाने माने कवि, शायर, ओर मंच संचालक देव मणि पांडेय मौजूद थे, जिन्होंने सहर्ष कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेवारी भी संभाली। शायर जनाब खन्ना मुज्ज़फ़री अध्यक्ष के पद पर आसीन हुए, श्री महरिष जी एवं दाऊजी गुप्त, माया गोविंद मुख्य महमान रहे।

गोष्ठी के पूर्व देवमणि पांडेय ने दाऊजी गुप्त परिचय दिया और फिर गोष्टी में आए सभी कावियों का उनसे परिचय करवाया। दाऊजी गुप्त अंतरराष्ट्रीय अखिल विश्व समिति के अध्यक्ष हैं और न्यूयार्क से निकलती सौरभ पत्रिका का प्रधान संपादक भी।





शाम छः बजे से शुरू हुई ये यादगार काव्य रस धारा सुनने-सुनाने वालों को दो घंटों तक लगातार भिगोती रही। दो घंटे कब निकल गए पता ही नहीं चला। बोझिल पलों को देवमणि जी ने अपने कुशल संचालन से रोचक बना दिया। सभी कवियों, कवयित्रियों ने अपनी अपनी रच्नात्मक अभिव्यक्तियों से समा बांधे रखा। धन्यवाद ज्ञापन से पूर्व पिंगलाचार्य श्री महर्षि जी ने श्री दाउजी गुप्त का सम्मान पुष्प गुच्छ और शाल ओढ़ा कर किया, इसके बाद देवी नागरानी जी ने सुश्री माया गोविन्द जी का सम्मान पुष्प गुच्छ और शाल ओढा कर किया। ये भी एक सुखद संयोग था की काव्य रसिक प्रो॰ लखबीर जी, जो राजम जी की शिष्य रह चुकी हैं ने उसी दिन अपना शोध कार्य पूरा कर डाक्टरेट की डिग्री हासिल की थी। श्री दाऊजी गुप्त ने सबकी ओर से उन्हें शुभकामनाओं के साथ पुष्प गुच्छ भेंट किये।
सफल काव्यगोष्ठी के लिये कविगण के सफल प्रयासों को सराहते हुए देवी जी ने सबका आभार प्रकट किया। कार्यक्रम के अंत में मेहमानों ने स्वादिष्ट व्यंजनों से सजे रात्रि भोज का आनंद लिया। ये काव्य गोष्ठी बरसों तक इसमें शामिल मेहमानों के दिलों में याद बनके महका करेगी।

प्रस्तुतकर्ताः नीरज गोस्वामी

‘उत्तरआधुनिक विमर्श और समकालीन साहित्य’ पर हैदराबाद में संगोष्ठी



हैदराबाद । 25 अप्रैल 2010
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विश्वविद्यालय विभाग में नवगठित साहित्य संस्कृति मंच और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद के तत्वावधान में ‘उत्तरआधुनिक विमर्श और समकालीन साहित्य’ विषयक एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई।

संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए ‘स्वतंत्र वार्ता’ के संपादक डॉ. राधे श्याम शुक्ल ने कहा कि उत्तरआधुनिकता आधुनिकता की प्रतिक्रिया में आरंभ हुई और उससे बहुत आगे बढ़ गई तथा इसकी अवधारणा विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और भाषा सभी के साथ गुंथी हुई है। उन्होंने कहा कि दर्शन की मूल चिंता सदा यही रही है कि सत्य क्या है। इस सत्य का साक्षात्कार करने का प्रयास ही मनुष्यता वैदिक युग से लेकर उत्तर आधुनिक युग तक करती रही है। डॉ. राधे श्याम शुक्ल ने इस संबंध में चिंता जताई कि साहित्य और सृजन के मूल्यांकन को रेखांकित करने के लिए हम भारतीय परंपरा की ओर नहीं देख रहे हैं। उन्होंने विस्तार से पश्चिमी और भारतीय दर्शन और काव्यशास्त्र की परंपरा की तुलना की।

बीज व्याख्यान शिवाजी विश्वविद्यालय कोल्हापुर के प्रो. अर्जुन चव्हाण ने दिया। उन्होंने कहा कि उत्तरआधुनिकता अनेक प्रवृत्तियों का पुंज है जिसमें एक ओर अतियथार्थवाद है तो दूसरी ओर यह चिंतन कि जो समूह कल तक हाशिए पर थे वे आज केंद्र में आ रहे हैं। प्रो. चव्हाण ने अनेक उदाहरण देकर यह प्रतिपादित किया कि उत्तरआधुनिक विचारचिंतन का वैध और अवैध से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने इसे बना हुआ चिंतन नहीं बल्कि बनता हुआ चिंतन बताया और कहा कि यह पश्चिम की दादागिरी का चिंतन है जिसमें ध्वंसात्मकता का प्रमुख स्थान है।

संस्थान के कुलसचिव प्रमुख हिंदी भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह ने उत्तरआधुनिकता की व्याख्या संरचनावाद और विरचनावाद के संदर्भ में करते हुए विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को इस प्रवृत्ति का प्रतिनिधि उपन्यास बताया। उन्होंने ब्लूमफील्ड, सस्यूर और चॉम्स्की की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्यिक पाठ के भीतर एक ऐसी संरचना होती है जो उस पाठ के अंदर ले जाती है तथा उत्तरआधुनिक विमर्श की सार्थकता इन पाठों की पाठक के नजरिये से व्याख्या करने में निहित है।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के रूसी विभाग के आचार्य डॉ. जगदीश प्रसाद डिमरी ने उत्तरआधुनिकता के इतिहास पर प्रकाश डाला और जोर देकर कहा कि आज आवश्यकता यह है कि तमाम उत्तरआधुनिक विमर्श को संस्कृत की दार्शनिक और काव्यशास्त्रीय चिंतनधारा के बरक्स परखा जाए। उन्होंने माँग की कि हिंदी के साहित्यचिंतक अपनी देशीय जमीन अर्थात् संस्कृत काव्यशास्त्र के आधार पर आधुनिक युग के नए साहित्यिक मापदंड तैयार करें।

आरंभ में डॉ. बी. बालाजी ने सरस्वती वंदना की। संगोष्ठी संयोजक डॉ. मृत्युंजय सिंह ने संगोष्ठी के विषय की पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए यह सवाल उठाया कि आलोचना और विमर्श किस तरह अलग हैं तथा उत्तरआधुनिकता का आधुनिकता से क्या रिश्ता है। उन्होंने यह भी जिज्ञासा प्रकट की कि उत्तरआधुनिक दृष्टि से शोध का मॉडल क्या होना चाहिए। आंध्र सभा के विशेष अधिकारी एस.के. हळेमनी ने अतिथियों का स्वागत किया।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने की। अपने संबोधन में उन्होंने याद दिलाया कि उत्तर आधुनिकता की शुरुआत वास्तुकला से हुई जिसका बाद में चित्रकला, संगीत, साहित्य और अन्य ज्ञानक्षेत्रों में प्रचलन हुआ। उन्होंने आदिवासी विमर्श का उल्लेख करते हुए कहा कि विकास के नाम पर जन-जातियों को उनकी जड़ों से काटना ध्वंसात्मक है जो आदिवासी विमर्श का प्रस्थानबिंदु है। इस सत्र में डॉ. बलविंदर कौर ने ‘उत्तर आधुनिक विमर्श और पहचान का संकट’, डॉ. घनश्याम ने ‘उत्तरआधुनिक साहित्य में आदिवासी जीवन’, डॉ. करण सिंह ऊटवाल ने ‘नाटक, रंगमंच और उत्तरआधुनिकता’ और ‘डॉ. विष्णु भगवान शर्मा ने ‘उत्तरआधुनिक भाषा संकट और राजभाषा हिंदी’ विषय पर शोधपरक आलेख प्रस्तुत किए। संचालन डॉ. जी. नीरजा ने किया।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. टी. मोहन सिंह ने उत्तरआधुनिक विमर्श की विसंगतियों पर ध्यान दिलाया और कहा कि यदि बुद्धिजीवियों को वास्तव में दलितों और आदिवासियों से थोड़ा भी प्रेम है तो उन्हें वातानुकूलित कमरों से निकलकर इस देश के गाँवों में जाकर कुछ काम करना चाहिए - सिर्फ विमर्श करते रहने से कोई परिवर्तन नहीं आएगा। इस सत्र में डॉ. भीमसिंह ने ‘उत्तरआधुनिक साहित्य में दलित संदर्भ’ विषय पर शोध पत्र पढ़ा जबकि डॉ. पी. श्रीनिवास राव ने अपने आलेख में ‘स्त्री लेखन में उत्तरआधुनिकता’ का विवेचन किया। डॉ. साहिराबानू बी. बोरगल के आलेख ‘साहित्यभाषा का उत्तरआधुनिक संदर्भ’ की प्रस्तुति के अलावा चर्चा सत्र में डॉ. बी. बालाजी, चंदन कुमारी, सुशीला , प्रतिभा कुमारी, मोनिका देवी, अनुराधा जैन, राजकमला और मोहम्मद कुतुबुद्दीन आदि शोधार्थियों ने विचारोत्तेजक टिप्पणियों से कार्यक्रम को गति प्रदान की। इस सत्र का संचालन डॉ. बलविंदर कौर ने किया।

समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. दिलीप सिंह ने कहा कि उत्तरआधुनिकता कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे आतंकित हुआ जाए क्योंकि यह एक शाश्वत सत्य है कि सारे विमर्श , कोई भी वर्ग या कोई गतिशील समाज स्थिर नहीं रह सकता, लेकिन उसके टुकड़े भी उतने ही किए जा सकते हैं जितने की कि वह अनुमति देगा। इसलिए यह सोचना कि उत्तर आधुनिक विमर्श हमारी संस्कृति को तोड़ देगा, भ्रांति के अलावा कुछ और नहीं। आवश्यकता इस बात की है कि यदि साहित्य, समाज, मीडिया, कला या फिल्मों में कुछ ऐसा प्रस्तुत किया जा रहा है जो गलत है तो उस पर भी विमर्श होना चाहिए। इस सत्र में डॉ. राधे श्याम शुक्ल और चवाकुल नरसिंह मूर्ति ने टिप्पणी करते हुए संगोष्ठी को विचारोत्तेजक और सार्थक बताया।

समाकलन करते हुए भी प्रो. अर्जुन चव्हाण ने कहा कि किसी भी विमर्श की तरह उत्तरआधुनिकता में भी न तो सब कुछ अच्छा है न सब कुछ खराब इसलिए हमें भारतीय संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उसकी स्वीकार्य बातों को ग्रहण करना चाहिए। समापन सत्र का संचालन डॉ. पेरिसेट्टि श्रीनिवास राव ने किया गया।

धन्यवाद ज्ञापित करते हुए डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने निकट भविष्य में ‘उत्तर संरचनावाद’ पर केंद्रित संगोष्ठी का प्रस्ताव रखा। आरंभ में डॉ. शर्मा ने संस्थान के समकुलपति से और देशविदेश के विद्वानों तथा साहित्यकारों से ई-मेल के माध्यम से प्राप्त संदेशों का भी वाचन किया.

राष्ट्रीय संगोष्ठी में हैदराबाद के विभिन्न विश्वविद्यालयों के अध्यापक और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। साथ ही नगरद्वय के साहित्यप्रेमियों, कवियों, पत्रकारों और हिंदीसेवियों ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया जिनमें डॉ. टी.के.एन. पिल्लै, डॉ. सुरेश दत्त अवस्थी, डॉ. विजयराघव रेड्डी, डॉ. रेखा शर्मा, डॉ. कांचन जतकर, डॉ. पी. माणिक्यांबा, डॉ. प्रवीणा राज, डॉ. टी.जे. रेखारानी, डॉ. मंजूषा श्रीवास्तव, डॉ. अर्चना झा, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. जे.वी. कुलकर्णी, डॉ. तात्याराव सूर्यवंशी, डॉ. मिथिलेश सागर, डॉ. देवेंद्र शर्मा, डॉ. राजकुमारी सिंह, डॉ. सत्यनारायण, डॉ. किशोरी लाल व्यास, डॉ. पी.आर. घनाते, डॉ. श्यामराव राठौड़, डॉ. प्रभाकर त्रिपाठी, डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ. एम. आंजनेयुलु, डॉ. हेमराज मीणा, नरेंद्र राय, द्वारका प्रसाद मायछ, चित्रसेन राणा, एस. सुजाता, ज्योति नारायण, अशोक तिवारी, गुरुदयाल अग्रवाल, भगवान दास जोपट, विजय पाटिल, शशि नारायण स्वाधीन, डी.सी. प्रक्षाले, ए.जी. श्रीराम, भगवंत गौडर, ज्योत्स्ना कुमारी, के. नागेश्वर राव, रामकुमार, श्रीधर, श्रीनिवास सोमाणी, आशा देवी सोमाणी, सुनील सूद और विनीता शर्मा के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।

Sunday, April 25, 2010

सामाजिक संस्थाओं के लिये नैतिक मूल्य व नियम आवश्यक- प्रो॰ रोनाल्ड डिसूजा

डॉ. मोहनसिंह मेहता व्याख्यान माला



उदयपुर। वर्तमान लोक तांत्रिक व्यवस्था की अनेक खूबियों के बावजूद वैश्वीकरण एंव उपभोक्तावाद ने रहजन, लुठेरों एंव शोषक वर्ग को बढावा दिया हैं। लेकिन नैतिक नियमों एव उच्च आदर्शो को व्यवहार एंव आदत में लाकर वंचित वर्ग के लिये कार्य कर रही संस्थाओं ने रहबर, पथ-प्रदर्शक व समाज को दिशा देने वाले व्यक्तियों एंव समूहों का भी सृजन किया हैं। उक्त विचार शिमला स्थित इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ एडवान्स स्टडी के निदेशक एंव विश्व-विख्यात राजनीतिक सामाजिक चिन्तक प्रो. पीटर रोनाल्ड डिसूजा ने डा. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट, सेवा मंदिर एंव विद्या भवन द्वारा आयोजित डा. मोहनसिंह मेहता व्याख्यान माला में व्यक्त कियें।

प्रो. डिसूजा ने कहा कि केवल मात्र स्वयं सेवी संस्था बनकर कार्य करना ही पर्याप्त नहीं है। गैर सरकारी संस्था होने से समाज को दिशा नही दी जा सकती वरन उसके लिये नैतिक रूप से समर्थ मूल्य आधारित संस्थाएँ समाज को उन्नति के मार्ग पर ले जाने में समर्थ होगी। संस्थाओं में समाज व सम्पदा के प्रति मूल्य परक न्यासी भाव आवश्यक है। सामाजिक नवाचार न्यासी भाव के बिना सम्भव नहीं है। हमारे बुद्विजीवियों, राजनितिज्ञों एंव सामाजिक क्षेत्र में लोगों की कथनी व करणी का फर्क मिटाते हुये आम व गरीब लोगों के बीच प्रत्यक्ष रूप से रहकर कार्य करना होगा। लोगों में व्यक्तिगत नैतिक मूल्यों को बढ़ाने से सामूहिक नैतिकता को बल मिलेगा परिणाम रूवरूप लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में सुधार होगा। उन्होंने आगे कहा कि समाज को दिशा देने वाले कार्यकता एवं लोकसेवक स्वयं पर नियंत्रण रखते हुये नैतिक एंव मानवीय मूल्य बनाये रखे। प्रश्नोत्तर देते हुये प्रो. पीटर ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन के दौर में नैतिक मानवीय मूल्यों को लाना चुनौती पूर्ण है कि किन्तु इन्हे व्यवस्थाओं में लाना होगा। स्व. पद्य विभूषण डा. मोहनसिंह मेहता की तरह समाज सेवा का जूनून पैदा करना होगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवामंदिर के अध्यक्ष अजय मेहता ने करते हुये नैतिक एंव मूल्य आधारित मजबूत संस्थाओं ही लोक सेवा हेतु जरूरत बतलाई।



प्रारम्भ में ट्रस्ट अध्यक्ष विजय एस. मेहता ने अतिथियों का स्वागत करते हुयें डा. मेहता द्वारा स्थापित स्वैच्छिक मूल्यों एवं संस्थाओं पर प्रकाश डाला।

धन्यवाद ज्ञापित करते हुये विद्या भवन के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने कहा रहबर स्वयं को जला कर औरों को रास्ता दिखाता है। हजन औंरो को जलाकर अपना रास्ता बनाता है।

रहजन, रहबर और भारतीय प्रजातंत्र की कार्य प्रणाली विषयक व्याख्यान में सेल के पूर्व अध्यक्ष पी. एल. अग्रवाल, प्रन्यासी मोहनसिंह कोठारी. प्रो. अरूण चतुर्वेदी, प्रो. संजय लोढा, जयसिंह डूंगरपुर कुवर शिवरती,, नीलिमा खेतान, नन्दकिशोर शर्मा, एस. पी. गोड, हुकुमराज मेहता, प्रो. एम. एस. अगवानी, शेर सिंह मेहता, मो. याकुब सहित कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

व्याख्यान का संयोजन सेवामंदिर की सचिव प्रियंका सिंह ने किया।

नितेश सिंह कच्छावा

Saturday, April 24, 2010

"नयी चुनौतियां और वैकल्‍पिक मीडिया" विषयक परिसंवाद

उदयपुर । 23 अप्रैल

आवारा पूंजी की मीडिया पर पकड़ मजबूत हुई है और इस पकड़ ने खबर को मनोरंजन में बदल दिया है। राहुल महाजन, मल्‍लिका शेरावत या राखी सावंत जैसे चरित्रों का मीडिया सुर्खियों में होने के कारण भी यही है। मनोरंजन की प्रवृत्ति स्‍थिर नहीं है। अतः ये चरित्र भी तेजी से बदलते और आते जाते है।

जनार्दनराय नागर राजस्‍थान विद्यापीठ विश्‍वविद्यालय के जनपद विभाग और मीडिया अध्‍ययन केन्‍द्र के साझे में हुए ‘‘नयी चुनौतियाँ और वैकल्‍पिक मीडिया'' विषय पर सुप्रसिद्ध पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी ने अपने व्‍याख्‍यान में कहा कि मनुष्‍यता की पहचान और हिंसा रहित समाज के लिए वैकल्‍पिक मीडिया की जरूरत हमेशा बनी रहेगी। उन्‍होंने कहा कि सीमान्‍त लोगों के बारे में पत्रकारिता ही वैकल्‍पिक पत्रकारिता है जो समाज में सामान्‍य मनुष्‍य की भागीदारी बढ़ाने की जिम्‍मेदारी लेती है। उन्‍होंने वर्तमान दौर को आंदोलन विहीन समय बताते हुए कहा कि टीवी और इंटरनेट जैसे नये माध्‍यमों के दबाव से अखबार भी वैकल्‍पिक मीडिया का हिस्‍सा होते जा रहे है। चतुर्वेदी ने विश्‍व मीडिया के प्रमुख चैनलों, समाचार पत्रों एवं वेब साइट्‌स की चर्चा करते हुए कहा कि पूंजी और मीडिया का गठजोड़ स्‍वतः नहीं टूटेगा इसके लिए छोटे छोटे प्रयासों की निरन्‍तरता जरूरी है।

परिसंवाद में मीडिया विष्‍ोषज्ञ डॉ. माधव हाड़ा ने कहा कि परिवर्तन की गति से तकनीक ने बेहद तेज कर दिया है और इसके भाषाई साहित्‍यिक अंतर्क्रियाएं बढ़ रही है। उन्‍होंने कहा कि मीडिया बदलते समय के साथ रूप और वस्‍तु में खुद से तेजी से बदलने में सक्षम है लेकिन साहित्‍य ऐसा नहीं कर पाता। उन्‍होंने मीडिया को सम्‍मोहक और वर्चस्‍वकारी बताते हुए कहा कि मीडिया अपने बारे में स्‍वयं भी कई मिथक गढ़ता है। डॉ. हाड़ा ने कहा कि मीडिया में जब तक बूढ़े आदिवासी और गरीबों को समुचित स्‍थान नहीं मिलता, वैकल्‍पिक मीडिया की जरूरत बनी रहेगी। उन्‍होंने इसके लिए वैकल्‍पिक माध्‍यमों को भी तकनीक सम्‍पन्‍न होने की जरूरत बताई। आयोजन में मीडिया अध्‍ययन केन्‍द्र के समन्‍वयक डॉ. पल्‍लव ने लघु पत्रिकाओं का संदर्भ देते हुए कहा कि मीडिया में सच्‍चे जन पक्ष का निर्माण करने में इन पत्रिकाओं की बड़ी भूमिका है।

उन्‍होंने मीर्डिया की पष्‍चिमोन्‍मुखी को भारतीय समाज के लिए प्रतिकूल बताते हुए कहा कि अपने पड़ौसी और एशियाई देशों में दिलचस्‍पी बढ़ाना हमारे लिए अधिक प्रासंगिक है। उन्‍होंने देश के पूर्वोत्‍तर एवं दक्षिणी राज्‍यों की मीडिया में अनुपस्‍थिति को भी चिंताजनक बताया। परिसंवाद में डॉ. लक्ष्‍मीनारायण नन्‍दवाना, डॉ. निलेष भट्ट, और पत्रकार हिम्‍मत सेठ ने भी अपने विचार व्‍यक्‍त किए।



अध्‍यक्षता कर रहे लोक शिक्षण प्रतिष्‍ठान के निदेशक श्री सुशील कुमार ने कहा कि टीआरपी को नियंत्रित करने की शक्‍ति पाठकों और दर्शकों के हाथों में है। इस शक्‍ति का उपयोग करते हुए मीडिया की विकृतियों से लड़ना होगा। उन्‍होंने कहा कि छोटे अखबारों-चैनलों को हाशिए के लोगों के स्‍वरों को जगह देने के लिए अधिक प्रयास करने चाहिए ताकि उनकी भी सार्थकता सिद्ध हो सके। आयोजन में मीडिया अध्‍ययन केन्‍द्र के विधार्थी, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी उपस्‍थित थे। अंत में जनपद के कार्यक्रम निदेशक श्री पुरूषोतम शर्मा ने आभार व्‍यक्‍त किया।

शब्‍बीर हुसैन
जनसम्‍पर्क अधिकारी

Friday, April 23, 2010

महिला आंदोलन के सौ साल- मंजु मल्‍लिक मनु



पुरुषों के वर्चस्‍व वाले समाज में बराबरी और सम्‍मान के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा। हालांकि सफर अभी लंबा है लेकिन उम्‍मीद खत्‍म नहीं हुई है। हमें भरोसा है अपनी ताकत और एकजुटता पर। एक दिन समाज में हम सम्‍मान के साथ सर उठा कर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चलेंगे। ऐसा मानना है उत्तराखंड के विभिन्‍न इलाकों से आईं उन महिलाओं का जो लगातार अपने वजूद की खातिर संघर्ष कर रही हैं। महिला आंदोलन के सौ साल पूरे होने पर देहरादून में महिला सामख्‍या ने ‘सृजन और संघर्ष’ के तहत दो दिवसीय सम्‍मेलन का आयोजन किया। सम्‍मेलन में महिलाओं से जुड़ी दिक्‍कतों पर चर्चा तो हुई ही, महिलाओं ने अपने जीवन से जुड़े तजुर्बे को भी साझा किया। ‘महिला सामख्‍या’ महिला सशक्तिकरण के लिए उत्तराखंड के छह जिलों में काम कर रहा है और यहां की अनपढ़ और गरीब महिलाओं को शिक्षित कर उन्‍हें रोजगार मुहैया कराने की दिशा में लगातार सक्रिय है। समय-समय पर सभा-संगोष्‍ठियों के जरिए भी इन महिलाओं को जीवन के सुख-दुख की जानकारी देकर उन्‍हें अपने वजूद के लिए संघर्ष करने को प्रेरित किया जाता है। मशहूर कवियत्री महादेवी वर्मा के जन्‍मदिन पर महिला सामख्‍या हर साल सम्‍मेलनों-समारोहों के जरिए महिलाओं की आवाज को मजबूती के साथ उठाता है। महिला सामख्‍या की निदेशक गीता गैरोला का कहना है कि लंबी जद्दोजहद के बाद महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर सचेत हो रही हैं। पहले थोड़ी दिक्‍कत जरूर हुई लेकिन धीरे-धीरे काम आगे बढ़ा तो महिलाओं को भी लगा कि यह संगठन उनका अपना है और आज छह जिलों चंपावत, उत्तर काशी, उद्यमसिंह नगर, नैनीताल, पौड़ी और टिहड़ी में करीब पच्‍चीस हजार सदस्‍य हैं। महिला सामख्‍या इन जिलों के 22 विकासखंडों के करीब ढाई हजार गांवों में काम कर रहा है। यह अपने आप में बड़ी बात है। संगठन अब बहुत गंभीरता से महिला बैंक खोलने पर विचार कर रहा है। हालांकि यह काम थोड़ा मुश्‍किल जरूर है लेकिन गीता गैरोला को उम्‍मीद है कि यह काम भी जल्‍द ही संगठन शुरू करने में सक्षम होगा। बड़ी बात यह है कि महिला सामख्‍या जनगीतों के माध्‍यम से महिलाओं में अलख जगा रहा है। संगठन की महिलाएं न सिर्फ गीत लिखती हैं बल्‍कि उनकी धुन बना कर उसे पूरी ऊर्जा से गाती हैं और अपनी पहचान को लोगों के सामने रखती हैं। इन गीतों की वजह से महिलाओं में जागरूकता भी बढ़ी है और अपने होने का एहसास भी।
उत्तराखंड की राज्‍यपाल मारग्रेट अल्‍वा ने सम्‍मेलन का उद्‌‌घाटन किया। उन्‍होंने इस मौके पर गीता गैरोला के संपादन में प्रकाशित पुस्‍तक ‘ना मैं बिरिवा, ना मैं चिरिया’ का विमोचन भी किया। उद्‌घाटन की औपचारिकता के बाद दो दिनों के इस सम्‍मेलन में चार सत्रों में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बातचीत हुई। ‘महिला आंदोलन के सौ साल’ ‘महिला आंदोलन और मुसलिम महिलाएं’ ‘महिला आंदोलन और दलित महिलाएं’ और ‘महिला आंदोलन और गांधी’ पर आयोजित विचार-विमर्श में महिलाओं से जुड़ी समस्‍याओं पर जोरदार बहसें हुईं। सवाल उठाए गए और इन सवालों के जवाब भी तलाशे गए।
सम्‍मेलन में इस बात का जिक्र बार-बार हुआ कि हिंसा का कोई रूप-रंग, जाति, धर्म और वर्ग नहीं होता। यह तो बस हिंसा होती है, चाहे महिला फिर किसी भी धर्म और जाति की हो। हालांकि कुछ महिलाओं की राय इससे अलग थी और जातीय आधार पर यह सवाल भी उठाए गए कि हिंसा की शिकार महिलाएं खास समुदाय की होती हैं। दलित और पहाड़ की महिलाएं इस हिंसा का शिकार ज्‍यादा होती हैं।
जया श्रीवास्‍तव का मानना था कि इस तरह की बातें तो मुसलिम महिलाओं को लेकर भी कही जा सकती है। खास कर गुजरात के दंगों में मुसलिम महिलाओं के साथ जिस तरह का जघन्‍य अपराध किया गया वह सोच कर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन हैरत की बात यह है कि कुछ खास सोच रखने वाली महिलाएं ही इसे सही बताती हुईं घूम रही हैं और इसकी वजह बस इतना है कि जिन महिलाओं के साथ गुजरात में जो घटा वे मुसलमान थीं। दलित महिलाओं के आंदोलन पर रजनी रावत ने अपनी बात रखी। मुसलिम महिलाओं की भूमिका पर शीबा असलम ने अपना वक्तव्‍य महिलाओं की बजाय मुल्‍लाओं पर ज्‍यादा केंद्रितरखा। जाहिर है ऐसे में उन मुसलिम महिलाओं का जिक्र नहीं हो पाया जिन्‍होंने साहित्‍य-कला के क्षेत्र में रिवायतों को तोड़ कर एक नए आंदोलन को खड़ा किया था। पत्रकार फ़ज़ल इमाम मल्‍लिक ने कहा कि मज़हब हमें अनुशासित रख कर इंसान बनाता है। इस्‍लाम के साथ दिक्‍क़त यह रही कि धर्म गुरुओं ने किताबों से उतनी ही बातें लोगों के सामने रखीं जो उनके फ़यादे के लिए थीं। लेकिन इस्‍लाम ने औरतों के लिए जो किया उसका जिक्र नहीं किया जाता लेकिन इस बात का ढोल जोरशोर से पीटा जाता है कि इस्‍लाम महिला विरोधी है जबकि हज़रत मोहम्‍मद ने कई ऐसी नज़ीर पेश की है जिससे औरतों को समाज में सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा दिलाई है। इन सत्रों में हम्‍माद फारूकी, मैत्रीय पुष्‍पा, बटरोही, ओमप्रकाश बाल्‍मिकी, कमला पंत, सिद्धेश्वर सिंह, सुचित्रा वैद्यनाथ, बेबी हालदर, सविता मोहन, मंजु मल्‍लिक मनु, इंदिरा पंचोली ने भी अपने विचार रखे। शुरुआती सत्र में बटरोही ने ‘महादेवी के साहित्‍य में स्‍त्री विमर्श’ विषय पर अपना आलेख पढ़ा। उन्‍होंने कहा कि महादेवी वर्मा की रचनाओं का फिर से मूल्‍यांकन करना ज़रूरी है। चर्चा में पत्रकार राजीव लोचन शाह, डा. शेखर पाठक और कृष्‍णा खुराना ने भी हिस्‍सा लिया। डा दिवा भट्ट ने ‘महिला आंदोलन और गांधी’ पर बीज भाषण दिया।
सम्‍मेलन में कई महिलाओं ने अपनी आपबीती सुनाई। अपने संघर्ष, पुरुषों की दुनिया में अकेले रहते हुए अपनी लड़ाई किस तरह लड़ी, इसका बखान उन्‍होंने किया। अपने जख्‍मों को कुरदते हुए उन महिलाओं की आंखें कई बार छलकीं। पर यकीनन उनके हौसलों की दाद देनी होगी क्‍योंकि उन्‍होंने सारे विरोध के बावजूद न सिर्फ अपने वजूद को बचाया बल्‍कि आज वह उसी जगह और समाज में सर उठा कर जी रही हैं। महिला सामख्‍या ने ऐसी करीब दर्जन भर महिलाओं को भी सम्‍मानित किया जिन्‍होंने अपने बूते, अकेले अपने वजूद की खातिर एक बड़ी लड़ाई लड़ी और आखिरकार उस लड़ाई को जीत कर कमजोर महिलाओं का संबल बनी हैं।
दो दिनों के इस सम्‍मेलन में दो नाटकों का मंचन भी हुआ। पहले दिन संभव नाट्य मंच ने ‘फट जा पंचधार’ का मंचन किया तो दूसरे दिन नैनीताल की रंग संस्‍था ‘युगमंच’ ने ‘जिन लाहौर नहीं देख्‍या’ का मंचन चर्चित रंगकर्मी जहूर आलम के निर्देशन में किया। प्रस्‍तुति के लिहाज़ से दोनों नाटकों ने दशर्कों से सरोकार बनाया।

Thursday, April 22, 2010

कवि शिरोमणि संत सुंदरदास समारोह 2010



सलूम्बर
श्री शिवनारायण रावत स्मृति शब्द संस्थान, दौसा एवं कौशिक विद्या मंदिर समिति के संयुक्त तत्वावधान में ‘कवि शिरोमणि संत सुंदरदास समारोह 2010’ का आयोजन किया गया। इस समारोह में ‘काव्य माधुरी’ तथा ‘साहित्यकार सम्मान’ कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। बालवाटिका (भीलवाड़ा) के संपादक डॉ. भैरूलाल गर्ग, संगरिया के बाल साहित्यकार तथा व्यंग्यकार श्री गोविन्द शर्मा, सलूम्बर की साहित्यकार और जिलापरिषद सदस्या श्रीमती विमला भण्डारी तथा मंडला के साहित्यकार डॉ. शरदनारायण खरे को शॉल ओढा सम्मान पट्टिका अर्पित कर सम्मानित किया गया। समारोह में आयोजित कवि सम्मेलन में रमेश बांसुरी(अलवर), जगदीश लवानिंया(हाथरस), सुरेन्द्र सार्थक(डीग), श्यामसुन्दर अकिंचन(छाता,मथुरा), रामवीर सिंह साहिल एवं अंजीव अंजुम(दौसा) आदि कवियों ने अपनी रोचक कविताएं सुनाईं। समारोह की अध्यक्षता शंभूदयाल सर्राफ ने की तथा रामावतार चौधरी (अध्यक्ष ब्लाक कांग्रेस) मुख्यअतिथि थे। समारोह में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में गोपीशंकर चौधरी, अजयवीर सिंह, संस्था के अध्यक्ष एवं सह संयोजक सम्मिलित थे। इसी समारोह में श्रीमती विमला भण्डारी के दो बालकथा संग्रह ‘करो मदद अपनी’ तथा ‘मजेदार बात’ का अतिथियों ने लोकार्पण किया। अंजीव रावत की बाल काव्य पुस्तक ‘कौन फलों का राजा’, रामवीर सिंह साहिल की ‘सूरज की हुंकार’ आदि पुस्तकों का भी इस समारोह में विमोचन किया गया।


विमला भंडारी

Tuesday, April 20, 2010

हृषिकेश सुलभ को मिलेगा साल 2010 का कथा (यूके) सम्मान

इस साल के इंदु शर्मा कथा सम्मान और पद्मानंद साहित्य सम्मान की घोषणा

कथा (यू के) के महा सचिव एवं प्रतिष्ठित कथाकार श्री तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन से सूचित किया है कि वर्ष 2010 के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान कहानीकार और रंगकर्मी हृषीकेश सुलभ को राजकमल प्रकाशन से 2009 में प्रकाशित उनके कहानी संग्रह वसंत के हत्यारे पर देने का निर्णय लिया गया है। इस सम्मान के अन्तर्गत दिल्ली-लंदन-दिल्ली का आने-जाने का हवाई यात्रा का टिकट (एअर इंडिया द्वारा प्रायोजित) एअरपोर्ट टैक्स़, इंगलैंड के लिए वीसा शुल्क़, एक शील्ड, शॉल, लंदन में एक सप्ताह तक रहने की सुविधा तथा लंदन के खास-खास दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होंगे। यह सम्मान श्री हृषीकेश सुलभ को लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में 08 जुलाई 2010 की शाम को एक भव्य आयोजन में प्रदान किया जायेगा। सम्‍मान समारोह में भारत और विदेशों में रचे जा रहे साहित्‍य पर गंभीर चिंतन भी किया जायेगा।

इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना संभावनाशील कथा लेखिका एवं कवयित्री इंदु शर्मा की स्मृति में की गयी थी। इंदु शर्मा का कैंसर से लड़ते हुए अल्प आयु में ही निधन हो गया था। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान चित्रा मुद्गल, संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूति नारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असग़र वजाहत, महुआ माजी, नासिरा शर्मा और भगवान दास मोरवाल को प्रदान किया जा चुका है।

15 फ़रवरी 1955 को बिहार के छपरा में जनमे कथाकार, नाटककार, रंग-समीक्षक हृषीकेश सुलभ की विगत तीन दशकों से कथा-लेखन, नाट्‌य-लेखन, रंगकर्म के साथ-साथ सांस्कृतिक आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी रही है। आपके तीन कहानी संग्रह बँधा है काल, वधस्थल से छलाँग और पत्थरकट - एक जिल्द में तूती की आवाज़ के नाम से प्रकाशित।

आपको अब तक कथा लेखन के लिए बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, नाट्‌यलेखन और नाट्‌यालोचना के लिए डा. सिद्धनाथ कुमार स्मृति सम्मान, और रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान मिल चुके हैं।

इस कार्यक्रम के दौरान भारत एवं विदेशों में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य के बीच के रिश्तों पर गंभीर चर्चा होगी।

वर्ष 2010 के लिए पद्मानन्द साहित्य सम्मान इस बार संयुक्‍त रूप से श्री महेन्‍द्र दवेसर दीपक को मेधा बुक्‍स, दिल्‍ली से 2009 में प्रकाशित उनके कहानी संग्रह अपनी अपनी आग के लिए और श्रीमती कादम्‍बरी मेहरा को सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित उनके कहानी संग्रह पथ के फूल के लिए दिया जा रहा है। दिल्‍ली में 1929 में जन्‍मे श्री महेन्‍द्र दवेसर ‘दीपक’ के इससे पहले दो कहानी संग्रह पहले कहा होता और बुझे दीये की आरती प्रकाशित हो चुके हैं। दिल्ली में ही जन्‍मी श्रीमती कादम्‍बरी मेहरा अंग्रेज़ी में एम.ए. हैं और उन्‍हें वेबज़ीन एक्सेलनेट द्वारा साहित्य सम्मान मिल चुका है। इससे पहले उनका एक कहानी संग्रह कुछ जग की प्रकाशित हो चुका है।

इससे पूर्व इंगलैण्ड के प्रतिष्ठित हिन्दी लेखकों क्रमश: डॉ सत्येन्द श्रीवास्तव, सुश्री दिव्या माथुर, श्री नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, डा.अचला शर्मा, उषा राजे सक्‍सेना,गोविंद शर्मा, डा. गौतम सचदेव, उषा वर्मा और मोहन राणा को पद्मानन्द साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।

कथा यू.के. परिवार उन सभी लेखकों, पत्रकारों, संपादकों मित्रों और शुभचिंतकों का हार्दिक आभार मानते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है जिन्होंने इस वर्ष के पुरस्कार चयन के लिए लेखकों के नाम सुझा कर हमारा मार्गदर्शन किया और हमें अपनी बहुमूल्य संस्तुतियां भेजीं।


सूरज प्रकाश

Thursday, April 15, 2010

आमंत्रणः 'परिचय साहित्य परिषद' लोकार्पण समारोह

(15 Apr 2010 - Russian Cultural Centre, 24 Ferozeshah Road, New Delhi Time 5.30 PM. )

1. 'परिचय' द्वारा हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'परिचय राग - 2' का लोकार्पण समारोह दि. 15 Apr. 2010 शाम 5.30 बजे Russian Cultural Centre, 24 Ferozeshah Road New Delhi में आयोजित किया जा रहा है. परिचय राग - 2 में 17 कवियों की कवितायेँ संकलित हैं. लोकार्पण के बाद सभी संकलित कवि अपनी रचनाएँ पढेंगे.

2. Russian Cultural Centre की उप-निदेशिका (Deputy Director) मारिया पावलोवा, जो अपना कार्यकाल संपन्न कर के वापस रूस जा रही हैं, का विदाई समारोह (Farewell) भी होगा.

इस समारोह में Russian Cultiural Centre के निदेशक डॉ. फ्योदोर रोज़ोवसकी मुख्य अतिथि होंगे तथा सुविख्यात साहित्यकार श्री बाल्स्वरूप राही, श्री उदयप्रताप सिंह, व श्री रविन्द्र श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि रूप में उपस्थित होंगे.

आप सभी इस समारोह में सादर आमंत्रित हैं.

निवेदक - प्रेमचंद सहजवाला,
कृते उर्मिल सत्यभूषण, अध्यक्ष 'परिचय' साहित्य परिषद'.

एकल विद्यालय अभियान को समर्पित कवि सम्मेलन

13 अप्रैल 2010 । नई दिल्ली


अन्य कवियों के साथ मंच पर हरिओम पंवार

"जंगलों और पर्वतीय क्षेत्रो में रहने वाले, अज्ञानता और नशे में डूबे वनवासियों के बीच चलाये जा रहे एकल विद्यालय न केवल शिक्षा के मंदिर है, अपितु देश की बेरोजगारी, अशिक्षा, आतंकवाद जैसी अनेक समस्याओं का समाधान भी है।" उपरोक्त ये शब्द एकल विद्यालय अभियान के मार्गदर्शक माननीय श्री श्याम जी गुप्त ने फिक्की सभागार में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन पर व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि यह अभियान गिरिवासियों एवं वनवासियों के बीच एक समरसता का सेतु है, हमारा लक्ष्य 2013 तक 1 लाख गॉंवों में एकल विद्यालय खोलना है।

भारत लोक शिक्षा परिषद् द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु आयोजित फिक्की सभागार में "राष्ट्रीय एकल कवि सम्मेलन" का कुशल संचालन करते हुये राजेश चेतन ने राम वनवास की भूमिका पर कहा कि माता-पिता की आज्ञा का तो केवल एक बहाना था, मातृभूमि की रक्षा करने प्रभु को वन में जाना था।


माननीय श्याम गुप्त का सम्मान करते अतिथिगण

संविधान के दर्द पर बोलते हुये ओज के हिमायल डॉं. हरिओम पंवार ने कहा कि मैं भारत का संविधान हूं लाल किले से बोल रहा हूं, मेरा अंतर्मन घायल है दिल की गांठे खोल रहा हूं। एकल विद्यालय के लिये एक चैक भी संस्था को समर्पित किया।

राजस्थान से आए ओज के नये हस्ताक्षर शहनाज हिन्दुस्थानी ने राम के वनवासी प्रेम पर पंक्तियां यूं पढ़ी - वनवासी बनकर ही वनवासी का दुख जाना, भोग रहे पीड़ा वर्षों से, उस पीड़ा को पहचाना। राम ही एकल विद्यालय के थे पहले सच्चे गुरूवर......।

ओज के वरिष्ठ कवि गजेन्द्र सोलंकी के गीत जुग-जुग से कल-कल कर कहता गंगा जमुना का पानी है, हो जाति धर्म सब भले अलग पर खून तो हिन्दुस्थानी है को श्रोताओं ने खूब सराहा।

अपना लिफाफा एकल विद्यालय को समर्पित करने वाली कवयित्री श्रीमती अंजु जैन ने कहा कि ‘‘जो सच के आइनों से बचकर निकल रहे है वो लिबास की तरह ही चेहरे बदल रहे है, गैरो की धूप में भी कुछ ठंडके थी ‘अंजु’ अपनो की छॉंव में भी, अब पॉंव जल रहे हैं।’’

ग्वालियर से पधारे हास्य सम्राट प्रदीप चैबे ने सभी को हँसा-हँसाकर लोटपोट करते हुये कहा कि कोई हम सा हुनर तो दिखलाये, हम भिखारी से भी भीख ले आए।

अपने अंदर का दर्द समेट कर भी लोगों को हँसाने वाले डॉं. सुनील जोगी ने कहा कि आपका दर्द मिटाने का हुनर रखते हैं जेब खाली है खजाने पे नजर रखते है, अपनी आँखों में भले आँसुओं का सागर हो मगर जहॉं को हॅंसाने का जिगर रखते हैं।

कवि सम्मेलन में विशेष रूप से समाज के विशिष्ट जनों श्री बासुदेव अग्रवाल, सूर्या ग्रुप, श्री ब्रह्मरत्न अग्रवाल, यू.एस.ए., श्री गजानंद सांवडिया, श्री जय प्रकाश अग्रवाल, सूर्या फाउण्डेशन, डॉं. नंद किशोर गर्ग, श्री विनीत कुमार गुप्ता, श्री जयकिशन गुप्ता, श्री प्रवीण गुप्ता, श्री जय भगवान अग्रवाल जी ने सहयोग किया। श्री नरेश अग्रवाल जी, जिन्दल गु्रप ने कॉरपोरेट जगत से भी एकल विद्यालय में सहयोग देने के लिये सभी से निवेदन किया।


एकल विद्यालय के आजीवन सहयोगी बने बच्चों के साथ श्री जय प्रकाश अग्रवाल

पहली बार कई बच्चे इस अभियान के आजीवन दानदाता सदस्य बने, जिससे उनके नाम का विद्यालय आजीवन चलता रहेगा, उनका भी मंच पर सम्मान किया गया तथा उपस्थित जनसमूह को एक नया संदेश मिला।

कवि सम्मेलन में सर्वश्री सुभाष अग्रवाल जी, सत्य नारायण बन्धु, नरेश जैन, जी.डी. गोयल, एस.एन.बंसल, जगदीश मित्तल, इन्द्रमोहन अग्रवाल, संजीव गोयल, सुरेश गुप्ता, विनोद अग्रवाल, मंजुश्री जी एवं परिषद् के अन्य सदस्यगण विशेष रूप से उपस्थित थे।

जगदीश मित्तल
उपाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक

Wednesday, April 14, 2010

डैलस, अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति ने आयोजित किया अपना 25वाँ कवि सम्मेलन

डैलस।


कविता सुनाते आश करण अटल

अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति (अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की शृंखला का आरम्भ 9 अप्रैल 2010 को डैलस से हुआ। उत्तरी अमेरिका में यह संस्था प्रत्येक वर्ष तक़रीबन पंद्रह से सत्रह कार्यक्रम करवाती है। डॉ नन्दलाल सिंह, डॉ सुधा ओम ढींगरा और श्री अलोक मिश्रा इस संस्था के आधार स्तम्भ हैं। इन्हीं के अथक प्रयास से इस बार भी कवि सम्मेलनों के सोलह कार्यक्रम विभिन्न शहरों में संपन्न होंगे। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के तत्वावधान में प्रस्तुत हास्य कवि सम्मलेन में भारत के बहुचर्चित हास्य कवि श्री महेंद्र अजनबी, श्री आश करण अटल और श्री अरुण जेमिनी जी ने भाग लिया। डैलस संभाग की अध्यक्षा श्रीमती निशि भाटिया को श्री जयन्त चौधरी ने मंच पर आमंत्रित किया। निशि जी ने सभी स्वयंसेवकों के नाम बताते हुए उनको धन्यवाद दिया और कार्यक्रम को विधिवत तरीके से आरम्भ कराया। कार्यक्रम का प्रारंभ परम्परागत तरीके से एकल विद्यालयों के शुभचिंतक श्रीमती कल्पना फ्रूटवाला और श्री किशोर फ्रूटवाला ने दीप प्रज्वलित कर तथा श्रीमती कुसुम गुप्ता के नेतृत्व में सरस्वती वंदना से हुआ। आगे मंच संचालन के लिए निशि जी ने अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति के संयोजक डॉ.नन्दलाल सिंह को आमंत्रित किया। नन्दलाल जी की वाक्पटुता और हास्य मिश्रित कथन ने लोगों का खूब मनोरंजन किया और मन मोह लिया। डैलस में आयोजित ये 25वां कवि सम्मलेन था। आज के इस फ़िल्मी युग में जब 700 से भी ज्यादा लोग कवि सम्मलेन का आनंद लेते हैं तो मन असीम आनंद से भर जाता है। इस का पूरा श्रेय नन्दलाल जी को जाता है। आज से 25 साल पहले इसका प्रारंभ हुआ था, तब कुछ लोग ही ऐसे कार्यक्रमों में आते थे, पर धीरे-धीरे लोग आते गए और कारवाँ बनता गया और आज ये कारवाँ काव्यप्रेमियों के जत्थे में परिवर्तित हो चुका है। नन्दलाल जी के शब्दों में "आज कवि सम्मलेन का रजत जयंती समारोह है। डैलस में दिसम्बर 85 में पहले कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया था। स्वयं सेवकों/सेविकाओं की कार्य निष्ठा से ही हम आज यहाँ तक पहुंचे हैं। आज के इस कार्यक्रम के प्रचार और प्रसार के लिए मैं फन एशिया और जैक गोदवानी का आभारी हूँ"। नन्दलाल जी ने कवियों को सारगर्भित परिचय के साथ मंच पर आमंत्रित किया। पुष्पगुच्छ भेंट कर महेंद्र अजनबी जी का स्वागत श्रीमती अनीता सिंघल ने, आश किरण अटल जी का श्रीमती नीतू अग्रवाल ने और अरुण जेमिनी जी का श्रीमती परम अग्रवाल ने किया। मंच पर कवियों के आते ही पूरा हॉल करतल ध्वनि से गुंजायमान हो उठा।
कवि सम्मलेन का संचालन श्री अरुण जेमिनी जी ने किया। अरुण जेमिनी जी ने श्री नन्दलाल जी, श्री अशोक जी और ज्योति जी, करिश्मा हिम्मत सिंघानी जी के साथ सभी का धन्यवाद किया। इन पंक्तियों के साथ किया उन्होंने महेन्द्र अजनबी जी को मंच पर आमंत्रित किया.....

मुस्कुराती जिंदगानी चाहिए
काव्य में ऐसी रवानी चाहिए
सारी दुनिया अपनी हो जाती है बस
एक उसकी मेहरबानी चाहिए


महेंद्र अजनबी जी ने बच्चों की बातों को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। जिनको सुनकर हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गए एक उदाहरण देखिये-

एक बच्ची से पूछा गया कि राम-लक्ष्मण तो ठीक पर सीता जी वन क्यों गईं?
बच्ची ने कहा,
सीता जी के वनवास जाने में बहुत बड़ी सीख है..
तीन-तीन सास जब घर में हो तो जंगल ही ठीक है..


ट्रक के पीछे लिखी पंक्तियों और समाचार पत्र के शीर्षकों से हास्य की उत्पति कैसे होती है बताया। जब कवि एक पंक्ति पढ़ता है और श्रोता उस को पूरी कर देता है, उससे किस तरह हास्य उत्पन्न होता है, एक उदाहण देखिये---

जेल में कवि सम्मलेन हो रहा था ...
कवि बोला आदमी यूँ हालातों में जकड़ा नहीं जाता
कैदी बोला कुत्ते की पूँछ पे पैर पड़ा न होता तो मैं पकड़ा नहीं जाता

ट्रेन की भीड़ पर सुनाई गईं उनकी हास्य व्यंग्य की कविता खूब सराही गई...

ट्रेन में इतनी भीड़ थी भाई
कि हाथ को मुँह भी नहीं देता था दिखाई
एक आदमी ने बीड़ी सुलगाई
और मेरे मुहँ में लगाई


हास्य रस की डरावनी कविता सुनाने जा रहा हूँ, कह के महेंद्र जी ने भूतों पर लिखी अपनी कविता सुनाई जिसमें व्यंग्य के नुकीले बाण थे-

वे एक दूसरे से बतिया रहे थे
आदमियों के एक से बढ़ के एक भयानक किस्से सुना रहे थे
ये कल रात ही शहर हो के आया है
इस पर जरूर किसी आदमी का साया है
किसी झाड़ फूँक वाले को बुलाओ इस पर से आदमी उतरवाओ
-------
पेड़ से उल्टा लटका देगा और वोट माँगेगा
और याद रख अपने इलाके की वोटर लिस्ट में तो
तू वैसे भी अभी तक नहीं मरा होगा
---
एक वरिष्ठ भूत बोला उन इन्सानों की बस्तियों के बारे में सोच
जो साथ-साथ होते हुए भी वीरान है
उनसे ज्यादा आबाद तो कब्रिस्तान और श्मशान हैं....



लोगों को हँसाते महेन्द्र अजनबी

इस के बाद अरुण जेमिनी जी ने आश करण अटल जी को मंच पर ये कहते हुए बुलाया कि इनके नाम को लिखने में हमेशा गलती हुई है, इन के नाम में आशा भोंसले वाला आश है, कुम्भकर्ण वाला करण है, और अटल बिहारी बाजपेई वाला अटल है... तीन-तीन नामों का सम्मिश्रण हैं।
मिडिया पर सुनाई उनकी कविता ने सभी का मन मोह लिया....

क्या उनको पता था कि अंतिम साँस लेने के बाद वो मर जायेंगे...
जी पता था...
जब उनको पता था कि अंतिम साँस लेने के बाद वो मर जायेंगे तो उन्होंने अंतिम साँस क्यों ली?
जी राष्ट्रहित में ..


"हाइवे के हमदम" शीर्षक की कविता ने लोगों को इतना हँसाया की आँखें झलक उठीं ...

ये है दुनिया का सब से बड़ा ओपन एयर शौचालय
आप यहाँ क्या कर रहे है?
जी में यहाँ क्या कर रहा हूँ ये तो आप देख ही रहे हैं...
पर आप यहाँ क्या कर रहे हैं?


इसके बाद उन्होंने अपनी कविता "क्या हमारे पूर्वज बंदर थे" सुनाई। ये कविता राजिस्थान में कक्षा 11 की पाठ्यपुस्तक में पढ़ाई जाती है।
अरुण जेमिनी जी ने हँसीवर्षा के इस क्रम को जारी रखा। उनके हरयाणवी अन्दाज ने कविता को और भी मनोरंजक बना दिया।

एक आदमी कुत्ते को घुमा रहा था दूसरे ने पूछा----
ताऊ कुत्ते को घुमरिया है के
नहीं ये तो ऊंट है कद छोटा रह गया है



संयोजक नंदलाल और संचालक अरुण जैमिनी

अरुण जेमिनी जी की कविता "21वीं में सदी में ढूँढ़ते रह जाओगे" ने हास्य के साथ लोगों को सोचने पर भी विवश कर दिया।

चीजों में कुछ चीजें बातों में कुछ बातें वो होंगी
जिन्हें कभी देख नहीं पाओगे
21वीं में सदी में ढूँढ़ते रह जाओगे
अध्यापक जी सचमुच पढ़ाये
अफसर जो रिश्वत न खाये
बुद्धिजीवी जो राह दिखाये
कानून जो न्याय दिलाये
बाप जो समझाए
और ऐसा बेटा जो समझ जाये
ढूँढ‌़ते रह जाओगे
नेहरु जैसी इज़्ज़त
सुभाष जैसी हिम्मत
पटेल के इरादे
शास्त्री सीधे-साधे
पन्ना धाय का त्याग
राणा प्रताप की आग
अशोक का बैराग
तानसेन का राग
चाणक्य का नीति ज्ञान
इन्दिरा गाँधी जैसी बोल्ड
और महात्मा गाँधी जैसा गोल्ड
ढूँढ़ते रह जाओगे

कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री अखिल कुमार जी ने पिछले कवि सम्मेलनों का स्लाइड शो दिखाया, जिस को दर्शकों ने खूब सराहा। श्री संजीव अग्रवाल, श्री मोती अग्रवाल और श्री अभय गर्ग का ही प्रयास था की सुव्यवस्थित हॉल, सुसज्जित मंच और सुस्वादिष्ट भोजन की सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।


उपस्थित श्रोतागण

अंतरराष्ट्रीय हिंदी समीति ने हिंदी का नन्हा सा जो दिया जलाया था, वो आज सूरज बन चमक रहा था। इस का भान इसी बात से हो रहा था कि आज 700 से भी अधिक लोग इस हास्य कविसम्मेलन का आन्नद लेने के लिए यहाँ एकत्रित थे। लगातार तीन घंटा तीस मिनट चले इस कवि सम्मलेन में हँसते-हँसते लोगों के पेट में बल पड़ गए। जीवन की आपाधापी में हम हँसना लगभग भूल ही गए हैं, इस तरह के आयोजन हमें जीने की नई उर्जा देते हैं। कुछ लोगों के अनुसार तो वो आज जितना हँसे हैं, उतना जीवन में शायद ही कभी हँसे हों। उनका ये भी कहना था कि बड़े-बड़े कॉन्सर्ट में जाने से अच्छा है कि कवि सम्मेलनों में जाया जाए। मिडलैंड और ह्यूस्टन के कार्यक्रम भी बहुत सराहनीय रहे। 9 मई तक इनके कार्यक्रम चलेंगे। इन कवि सम्मेलनों में हिन्दी भाषी जब एक छत तले इकट्ठे होते हैं तो अमेरिका में भी भारत बसा महसूस होता है। चारों तरफ देश की महक फैली महसूस होती है।

रिपोर्ट- रचना श्रीवास्तव

Tuesday, April 13, 2010

आमंत्रणः अभिव्यक्ति (14-18 अप्रैल 2010)

भगत सिंह की शहादत (23 मार्च) और बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती (14 अप्रैल) के अवसर पर स्कूली बच्चों और समुदाय के लोगों के साथ मिलकर आयोजित किए जा रहे समारोह ‘अभिव्यक्ति’ में आपका हार्दिक स्वागत है। दुहराने की ज़रूरत नहीं है कि आज हिन्दुस्तान के आवाम पर चारों ओर से शोषण, दमन और भ्रष्टाचार की मार पड़ रही है। अपना ख़ून-पसीना एक कर अनाज उगाने वाले और उद्योग चलाने वाले मेहनतकश, ग़रीब, दलित और आदिवासी तबक़े के लोगों पर हो रहे ज़ोर-जुल्म की कहानी अब कौन नहीं जानता भला! जनविरोधी सरकारी नीतियों, कमरतोड़ महँगाई और हुकूमत में ऊपर से नीचे तक पैफले भ्रष्टाचार से अगर अब भी आपको परेशानी नहीं होती तो सचमूच आपका भगवान ही मालिक है! पिफर ये रोने-गाने का मतलब क्या कि तेल और दाल महँगा हुआ, कैसे जीएंगे।
तय है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर और भगत सिंह के ख़्वाबों का हिन्दुस्तान बनेगा। ऐसा दावा हम इसलिए कर रहे हैं कि हमलोग अब उस काले अंधेरे अंधविश्वास वाले ज़माने से निकल बाहर होने के लिए बेताब हैं। थोड़ा-बहुत सोचने-विचारने का माद्दा सब रखते हैं और कहते हैं न, कि वैज्ञानिक युग तरक्की लाता है। बस मित्रों, हम उसी तरक्की की ताक में हैं। जिस दिन जन्म, रंग, रूप, चेहरा, जाति, धर्म, जगह, बोली, कद-काठी, धन-बल और औरत-मरद के आधार पर इंसान के स्वाभिमान और सम्मान के साथ खिलवाड़ बंद हो जाएगा उस दिन से तरक्की की शुरूआत हो जाएगी। और तरक्की का यह सफर उस दिन पूरा हो जाएगा जिस दिन सबकी रोज़ी, रोटी, रिहाइश, सेहत और तालीम का मुकम्मल इंतजाम हो जाएगा।
कोई भी बदलाव न अपने आप हुआ है न होगा। इसके लिए कोशिशें करनी होंगी। ज़ाहिर है ये चंद सिरफिरों के बदौलत नहीं होने वाला है। इसके लिए भारी जनसैलाव की ज़रूरत पड़ेगी। ‘सोशल ऐक्शन फॉर एडवोकेसी ऐण्ड रिसर्च (सफर)' का जन्म इन्हीं सवालों के केन्द्र से हुआ है। अपने गठन के समय से ही सफर समाज के सबसे वंचित, शोषित और बहिष्कृत तबक़े के हक़ों की बहाली के संघर्षरत है। दलित, आदिवासी, स्त्री या फिर बच्चे हमारी सोच मुख्यधारा के समाज को इनके प्रति ज़्यादा से ज़्यादा संवेदनशील और मानवीय बनाने की रही है ताकि इंसाफ और इंसानियत सबके हिस्से बराबर-बराबर आए। ‘अभिव्यक्ति’ जैसे समारोहों का महत्त्व इसीलिए है कि यह मानवीय मूल्यों और गरिमा को बढ़ावा देने का एक अनूठा प्रयास है। वैसे भी नामी-गिरामी संस्कृति केंद्रों के अलावा गली-मोहल्लों में ऐसे कार्यक्रमों का चलन ही कहाँ रहा! सफर न केवल इसके बारे में सचेत है बल्कि राजधानी की मलीन बस्तियों, झुग्गियों, पुनर्वास कॉलोनियों में भी उसी जोश-ओ-खरोश से काम करता है जिससे मध्यवर्गीय कॉलोनियों में। तमाम तरक्कीपसंद लोगों, विशेषकर नौजवान युवक-युवतियों और बच्चों से हमारी यह है कि वे इस सप़फर में हमारे साथ जुड़ें और इस ‘अभिव्यक्ति’ को सपफल बनाएँ।
इस आयोजन में ‘पीस’, ‘इंसाफ’, ‘सरोकार मीडिया कलेक्टिव’, ‘अस्मिता थिएटर ग्रुप’, ‘एनएपफडीडब्ल्यू’, ‘कृति’ और आइएसडी समेत दर्जन भर से ज़्यादा संस्थाओं और समूहों ने साझेदारी की है। सफर अपने दौर में रंगमंच के बेहद संजीदा और सक्रिय निर्देशक श्री अरविंद गौड़ का ख़ास तौर से शुक्रगुज़ार है। नवभारत टाइम्स आरंभ से ही इस आयोजन के साथ है।




कार्यक्रम

बुधवार, 14 अप्रैल 2010
6 बजेः प्रभात फेरी
9 बजेः साझी विरासत पर कार्यशाला
2 बजेः कबाड़ से जुगाड़ कार्यशाला
5 बजेः नुक्कड़ नाटक कचरा और नौकरानी, अस्मिता की प्रस्तुति, निर्देशनः अरविंद गौड़
(सभी कार्यक्रम गाँवड़ी, भजनपुरा में)

वृहस्पतिवार, 15 अप्रैल 2010
3.30 बजेः फोटॉग्राफी कार्यशाला
(मनोरंजन कक्ष, डीए फ्लैट्स, तिमारपुर)
5.30 बजेः नुक्कड़ नाटक कचरा और नौकरानी (लांसर्स रोड, तिमारपुर)
6.30 बजेः नुक्कड़ नाटक कचरा और नौकरानी (पत्राचार बस्ती, तिमारपुर)

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
3.30 बजे मोबाइल फोन द्वारा फिल्म बनाने की कार्यशाला
4.30 न्यूज़ लेखन कार्यशाला
6.30 कार्टून मेकिंग कार्यशाला
(सभी कार्यक्रम डीए फ्लैट्स, तिमारपुर में)

शनिवार, 17 अप्रैल 2010
6.30 बजेः कबड्डी और दौड़ प्रतियोगिता
9 बजेः नुक्कड़ नाटक कचरा और नौकरानी की प्रस्तुति
10 बजेः लेख और एक्टेम्पोर
2 बजेः क्वीज़
3 बजेः ड्रॉइंग कार्यशाला
6 बजेः बच्चों का गायन और नृत्य
7 बजेः बुद्ध भीम सांस्कृतिक मंडली की प्रस्तुति
8 बजेः संगीता गौड़ का सुफीयाना गायन
(सभी कार्यक्रम डीए फ्लैट्स, तिमारपुर में)

रविवार, 18 अप्रैल 2010
6 बजेः प्रभात फेरी
9 बजेः साझी विरासत पर कार्यशाला
1 बजेः टी शर्ट पेंटिंग
2 बजेः कबाड़ से जुगाड़ कार्यशाला
4 बजेः मोबाइल फिल्म प़ेफस्टिवल
6 बजेः बाल नृत्य एवं गीत
7 बजेः कहानी पाठ
7.30 बजेः बाल-नाट्यों की प्रस्तुति
8 बजेः अनसुनी का मंचन
प्रस्तुति अस्मिता, निर्देशन अरविंद गौड़
(सभी कार्यक्रम डीए फ्ऱलैट्स, तिमारपुर में)


संपर्क
शिशुपाल सिंह (कार्यक्रम संयोजक) 9716222492,
E mail: safar.delhi@gmail.com
Web blog: http://safarr.blogspot.com

सीमा तिवारी की आवाज से अब गूंजेगा गुयाना

संगीत तपस्या और निरंतर सिखाते रहने की प्रक्रिया है ,जिसे आज भी मैं सिख रही हूँ .यह कहना है देश बिदेश में भोजपुरी की संस्कृति बचने की प्रयासरत सिंगर सीमा तिवारी का .हाल ही में आयोजीत एक कार्यक्रम में भाग लेने आयी सीमा तिवारी से हमारे संबाददाता ने भोजपुरी संगीत के पहलूओं पर बात चीत की:

प्रश्न :सबसे पहला सवाल भोजपुरी संगीत में आपकी शुरुआत कैसे हुई और आज इस स्तर पर कैसे पहुँची?
उत्तर:संगीत की शुरुआत हमारी बचपन से ही हुई,छोटे मोटे कार्यक्रम तो विद्यालय स्तर पर ही होते रहते थे .लेकिन इसमें निखार आया सन २००२ में .पठाई के साथ साथ दो तीन घंटे का रोज अभ्यास करना उस समय आसान नहीं होता था.इसका पुरा पूरा श्रेया मैं अपने पिताजी को देना चाहती हूँ .शादी के बाद मेरे पति डॉ साहब का भी सहयोग रहता है.
प्रश्न:संगीत के माध्यम से भोजपुरी संस्कृति बचाने का प्रयाश कर रही हैं आज अपने आप को कितना सफल मान रही है?
उत्तर:शत प्रतिशत भोजपुरी संस्कृति खतरे में है इसे हर व्यक्ति को जिसे भी भोजपुरी की खुश्बू याद है, उसे सहेजना चाहिए क्योंकी कहा जाता है की जिसका भी इतिहास बदलना हो उसकी संस्कृति बदल दो. हम वो नहीं होने देंगे संगीत समाज का अगुआ होता है. उससे संस्कृति और इतिहास दोनों को बचाया जा सकता है. मेरा इसी दिशा में प्रयाश जारी है.
प्रश्न :भोजपुरी संगीत के क्षेत्र में आगे आप क्या करना चाहती है?
उत्तर: भोजपुरी के क्षेत्र में नया कार्य करना चाहती हूँ अश्लील गीतों को हटाना चाहती हूँ जिससे भोजपुरी के प्रति जो भ्रांतियां पैदा हो गयी हैं वो दूर हो सके .
प्रश्न:संगीत के क्षेत्र में कोई यैसा पल जो आज भी आपको याद आता है?
उत्तर:संगीत का हर पल ही एक कलाकार के लिए सुनहरा होता है लेकिन कुछ ऐसे पल होते है जो भुलाने योग्य नहीं होते हैं. वाकया "बलिया मोहोतस्वा" का है उसी समय कारगील की लड़ाई खत्म हुई थी और बलिया जिले का भी एक जवान शहीद हुआ था उस शहीद का पार्थिव शरीर जब तिरंगे में लपेट कर उसके माँ को सौंपी गयी थी उसी घटना पर आधारित मेरे पिताजी ने एक गीत लिखा था "देखनी तिरंगा में बबुववा के छाती दूना हो गईल" इसी गीत को मैंने प्रस्तुत किया था और इस गीत को गाते गाते मेरे आँखों से अश्रुधारा निकल गई .और सामने बैठे लाखों श्रोताओं की आखें नम हो गई थी. यह मेरे लिए नहीं भूलने वाला पल है .
प्रश्न :आपको इस गीत पर उत्तर प्रदेश राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चूका है इसके बारे में भी कुछ बतावें.
उत्तर:जी हाँ यह वही गीत था जिस पर तत्कालीन राज्यपाल माननीय विष्णु कान्त शास्त्री ने २००४ में मुझे पुरस्कृत किया था.
प्रश्न :आज के दौर में भोजपुरी कलाकारों को खुद को स्थापित करने के लिए अश्लीलता का सहारा लेना पद रहा है कैसे चुनौतियो का सामना करती हैं?
उत्तर: बिलकुल ठीक कहा आपने लेकिन आप एक कलाकार बता दे जो ऐसे गीत गाकर पद्म श्री ले लिया हो. यदि पद्मश्री की बात आती है तो उसमे सिर्फ श्रीमती शारदा सिन्हा जी ही है और वो अश्लील गीत गाकर नहीं लिया गया है.अभी इसी साल २०१० के गणतंत्र दिवस पर इंडिया गेट पर हमारे कटनी और रोपनी गीत बजे क्या यह अश्लीलता से संभव था. मैं जानती हूँ आजकल संगीत महफीलों में नया चलन देखने को मिल रहा है एक तरफ सिंगर गाना गा रहे होते हैं तो दूसरे तरफ नृत्य का आयोजन चलता रहता है ऐसे में भोजपुरी आयोजकों को ध्यान रखना चाहिए की गीत और नृत्य का अलग-अलग स्थान होना चाहिए क्योंकि दोनों की अलग अलग मर्यादाएं है.कला का आयोजन सिर्फ शोहरत और पैसा कमाने के लिए न हो संस्कृति को सहेजने के लिए भी हो.यह तभी संभव है जब कलाकार अपने में नियंत्रित रहेंगे।
प्रश्न: इस महीने आप विदेश दौरा पर जा रही है इसके बारे में कुछ बताएं.
उत्तर: जी हाँ, भारत सरकार द्वारा हमें गुयाना भेजा जा रहा है,वहाँ कई जगह कार्यक्रम होंगे जो २५ अप्रैल से ५ मई तक चलेगा.
प्रश्न: गुयाना के प्रदर्शन में आप अपने संस्कृति को कैसे प्रदर्शित करेंगी
उत्तर: भोजपुरी संस्कृति बिधावों की भंडार है जैसे -सोहर, खेलवना, विवाह गीत, हल्दी गीत, जेवनार, जनेऊ गीत आदि कई ऐसी विधाएं है में कोशिश करुँगी की इन सारी मिटटी की खुशबुओं को गुयाना में छोड़ कर आऊँ।
प्रश्न: भोजपुरी संगीत सुनने वालों के लिए क्या सन्देश देना चाहती हैं?
उत्तर: सबसे पहले श्रोताओं को धन्यवाद देती हूँ. और उनके लिए एक छोटी सी गुजारिश यह है के वही गीत सुने जो आपकी संस्कृति से जुड़े हों और अश्लील न हो.
प्रश्न: अच्छा सीमा जी बहुत बहुत धन्यबाद अपने अपना समय दिया।
ऊतर :जी, धन्यवाद, नमस्कार

Monday, April 12, 2010

डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का उदयपुर में ‘सृजन साक्षात्कार’



मनुष्य ताड़ पत्र से छापाखाने तक आया है। सब कुछ वैसा ही नहीं है जैसा हजार या पांच हजार बरस पहले था फिर मुद्रित शब्द से आगे डिजिटाइजेशन में क्यों हो? ‘संचार के नये माध्यम और हिन्दी’ विषय पर व्याख्यान में सुपरिचित समालोचक/ब्लॉगर डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि सूचना क्रांति के विस्फोट के बावजूद हमें मानना होगा कि कोई भी तकनीक मनुष्य का विकल्प नहीं हो सकती। तकनीक को मनुष्य और अपनी भाषा व साहित्य के पक्ष में इस्तेमाल करना होगा। माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के मीडिया अध्ययन केन्द्र और जनपद विभाग के साझे में हुए ‘सृजन साक्षात्कार’ के इस आयोजन में डॉ. अग्रवाल ने इंटरनेट पर मौजूद हिन्दी पत्र पत्रिकाओं, पुस्तकों और ब्लॉग्स की विस्तार से चर्चा में कहा कि नये माध्यमों को किताब का विकल्प या शत्रु मानने के स्थान पर विस्तार मानना समीचीन होगा। इस सत्र में आकाशवाणी के सहायक केन्द्र निदेशक डॉ. इन्द्रप्रकाश श्रीमाली ने ब्लॉग्स को निजी मौलिक कृतियों की संज्ञा देते हुए कहा कि मीडिया के नये स्वरूप ने हिन्दी की संभावनाओं को बढ़ाया ही है। डॉ. श्रीमाली ने सूचना तकनीक के व्यापक होते जाने को लोकतंत्र के लिए उपयोगी बताते हुए कहा कि अनुवाद के माध्यम से हिन्दी लेखन को दुनियाभर के पाठकों के लिए उपलब्ध करवाया जा रहा है। सुपरिचित कवि डॉ. कैलाश जोशी ने ब्लॉग को अभिव्यक्ति का सबसे सरल और सहज माध्यम बताते हुए कहा कि ग्रंथ प्रविधियॉ अपने समय के अनुरूप योगदान कर रही है। सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समालोचक प्रो. नवल किशोर ने ज्ञान और सूचना आधारित समाजों के भेद बताते हुए कहा कि प्रतिरोध की जगह बचाए रखना नये दौर में सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि नये दौर में उन शक्तियों की पहचान बार बार करनी होगी जो मनुष्यता को बचाए रखने में जुटी हैं। सत्र में हुए खुले संवाद में रंगकर्मी महेश नायक, डॉ. मंजु चतुर्वेदी, लक्ष्मण व्यास ने भागीदारी की।
प्रथम सत्र में ‘लिखने का कारण विषय’ पर अपने वक्तव्य में डॉ. अग्रवाल ने अपने आलोचना कर्म के प्रारंभ के लिए बिन्दु, मधुमती, सम्बोधन जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादकों को श्रेय दिया। उन्होंने आलोचना कर्म के सक्षम उपस्थित संकट में लिहाजदारी और मित्रता की प्रवृत्तियों को कारण बताया। उन्होंने कहा कि स्वस्थ समाज में सही आलोचना को स्वीकार करने का साहस होता है और सही आलोचना ही साहित्य को दिशा देने का काम करती है। डॉ. अग्रवाल ने अमरीका यात्रा पर अपनी पुस्तक ‘आंखन देखी’ तथा वेब लेखन की चर्चा भी की। इस सत्र में कॉलेज शिक्षा के क्षेत्रीय सहायक निदेशक डॉ. माधव हाड़ा ने कहा कि डॉ. अग्रवाल का लेखन बताता है कि नये परिवर्तनों को आत्मसात कर कैसे राह बनायी जा सकती है। उन्होंने राजस्थान के साहित्य के सम्बंध में किए गए आलोचना कर्म में डॉ. अग्रवाल के योगदान को रेखांकित भी किया। सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि नंद चतुर्वेदी ने अपने को ही तलाश करते रहने की बैचेनी को सृजनात्मकता का दूसरा नाम दिया। उन्होंने कहा कि ईमानदार होना इस जटिल समय में अनुपम और अद्वितीय है। इस ईमानदारी को उन्होंने लेखन के लिए सबसे बड़ा दायित्व बताया। राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से हुए इस आयोजन के प्रारंभ में श्रमजीवी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. एन.के. पाण्ड्या ने स्वागत किया। लेखक परिचय डॉ. मलय पानेरी ने दिया और सत्रों का संयोजन डॉ. पल्लव ने किया। अंत में जनपद के कार्यक्रम निदेशक पुरूषोतम शर्मा ने आभार प्रदर्शित किया।

आयोजन में डॉ. लक्ष्मीनारायण नन्दवाना, डॉ. महेन्द्र भाणावत, डॉ. प्रमोद भट्ट, डॉ. ए.एल. दमामी, डॉ. सर्वतुन्निसा खान, डॉ. चन्द्रकांता बंसल, रामदयाल मेहर, डॉ. प्रभारानी गुप्ता सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित थे।

Sunday, April 11, 2010

अराधना के गीतों ने हिन्दी सिनेमा संगीत को नई राह दिखाई: तेजेन्द्र शर्मा



“अराधना में पहली बार राजेश खन्ना पर किशोर कुमार की आवाज़ का इस्तेमाल करके सचिन देव बर्मन ने हिन्दी सिनेमा के संगीत को एक नई राह दिखाई। इस फ़िल्म के बाद एक नहीं दो दो सुपर स्टारों ने जन्म लिया – राजेश खन्ना ने एक्टर के तौर पर और किशोर कुमार ने गायक के तौर पर।” यह कहना था कथा यू.के. के महासचिव एवं कथाकार तेजन्द्र शर्मा का। मौक़ा था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स, लंदन एवं कथा यू.के. द्वारा नेहरू सेन्टर, लदन में आयोजित कार्यक्रम सचिन देव बर्मन – यादों के साये में।
अपने पौने दो घन्टे के पॉवर पाइण्ट प्रेज़ेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने सचिन देव बर्मन द्वारा संगीत बद्ध गीतों के विडियो भी दिखाए जिनमें मेरा सुन्दर सपना बीत गया (भाई भाई), ठण्डी हवाएं लहरा के गाएं (नौजवान), जलते हैं जिसके लिये... (सुजाता), ओ रे मांझी... (बंदिनी), तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले (सज़ा), सर जो तेरा चकराए (प्यासा), इक लड़की भीगी भागी सी (चलती का नाम गाड़ी), इक घर बनाऊंगा (तेरे घर के सामने), कांटों से खींच कर ये आंचल (गाईड), होंठों में ऐसी बात (ज्वैल थीफ़), मेरे सपनों की रानी (अराधना)।
तेजेन्द्र शर्मा ने दिल की रानी (1947) का गीत ऐ दुनियां के रहने वालो बोलो कहां गया वो चोर दिखा कर दर्शकों को चकित कर दिया जब उन्होंने राज कपूर को अपनी ही आवाज़ में सचिन देव बर्मन के संगीत में झूम झूम कर गाते हुए देखा।
बर्मिंघम के जाने माने गायक डा. अजय त्रिपाठी ने मंच पर आकर जाने वो कैसे लोग थे जिनके (प्यासा) और बड़ी सूनी सूनी है.. (मिली) के गीत कैरिओकी संगीत पर गा कर दर्शकों का मन जीत लिया।
अपने शोधपूर्ण संचालन में तेजेन्द्र शर्मा ने दर्शकों को बहुत सी ऐसी जानकारी दी कि दर्शक विस्मित हुए बिना नहीं रह पाए। राहुल देव बर्मन द्वारा बचपन में बनाई गई दो धुनों का सचिन देव बर्मन का फ़ंटूश एवं प्यासा फ़िल्मों में इस्तेमाल; ऑल इंडिया रेडियो के प्रख्यात बांसुरी वादक पन्ना लाल घोष द्वारा अपनी धुन जीना है इस जहान में तो मुस्कुराइये की चोरी का बर्मन दादा पर आरोप; सचिन देव बर्मन द्वारा फ़िल्मों में कैबरे गीतों की शुरूआत; साहिर लुधियानवी, शैलेन्द्र, कैफ़ी आज़मी और मजरू सुल्तानपुरी जैसे साहित्यिक शायरों एवं गीतकारों की रचनाओं का अपनी फ़िल्मों के लिये इस्तेमाल जैसी बहुत सी जानकारी तेजेन्द्र शर्मा के अनूठे संचालन से श्रोताओं को मिली।
नेहरू सेन्टर के उप-निर्देशक श्री राजेश श्रीवास्तव ने कार्यक्रम का परिचय दिया। एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स के उपाध्यक्ष श्री शमील चौहान ने श्रोताओं का स्वागत करते हुए कहा, “बंगाल के रवीन्द्र संगीत की मिठास, शास्त्रीय संगीत की गहराई और मॉडर्न संगीत की थाप मिल कर सचिन देव बर्मन का संगीत बनाते हैं।”
कार्यक्रम में लंदन, बर्मिंघम, वूलवरहैम्पटन एवं मैन्चैस्टर शहरों के संगीत प्रेमियों ने भाग लिया जिनमें डा. मधुप मोहता, काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री आनंद कुमार, प्रो. मुग़ल अमीन, प्रो. श्याम मनोहर पाण्डे, डा. बोस, बीबीसी हिन्दी की पूर्व अध्यक्ष डा. अचला शर्मा, दिव्या माथुर, ग़ज़ल गायक सुरेन्द्र कुमार, कथाकार महेन्द्र दवेसर, नाटककार इस्माइल चुनारा, रक्षा संघानी, पत्रकार मंजी पटेल वेखारिया आदि शामिल थे।

रिपोर्टः दीप्ति शर्मा

Thursday, April 8, 2010

बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा भोपाल में सम्मानित



बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल (म.प्र.) द्वारा आयोजित समारोह में बाल साहित्यकार गोविन्द शर्मा को उनके समग्र योगदान के लिए ‘भीष्मसिंह चौहान स्मृति बाल साहित्य सम्मान’ प्रदान कर सम्मानित किया गया। भोपाल में
आयोजित इस सम्मान समारोह की अध्यक्षता मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान सांसद कैलाश जोशी ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश की स्कूल शिक्षा मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस पधारीं। समारोह में केन्द्र के संचालक महेश सक्सेना ने केन्द्र की गतिविधियों का परिचय दिया। विशिष्ट अतिथि देवेन्द्र दीपक (पूर्व निदेशक, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी) ने उपस्थित साहित्यकारों का स्वागत किया। सांसद कैलाश जोशी शॉल ओढ़ा कर एवं श्रीमती अर्चना चिटनिस ने प्रतीक चिन्ह देकर गोविन्द शर्मा को सम्मानित कया। श्रीमती अर्चना चिटनिस ने अपने उद् बोधन में कहा कि अब सभी को शिक्शा का मौलिक अधिकार प्राप्त हो गया है। कोई भी सरकार अकेली सभी को शिक्षित नहीं कर सकती। इसके लिए जन सहयोग, विशेषत: बालसाहित्य के रचनाकारों की भूमिका महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।

अब्बू का तोहफा का लोकार्पण



विगत दिनों वरिष्ठ बालसाहित्यकार शमशेर अहमद खान की उर्दू ज़ुबान में लिखित बच्चों का मशहूर नावेल अब्बू का तोहफा का लोकार्पण फिल्म समारोह निदेशालय के अपर महानिदेशक श्री एस. एम.खान द्वारा किया गया. इस मौके पर बांसी स्टेट के राजकुमार श्री जय प्रताप सिंह भी मौजूद थे. श्री खान साहब ने लेखक को मुबारकबाद देते हुए उनकी दोनों जुबानों में की जा रही खिदमात पर रोशनी डाली और उम्मीद जाहिर की कि आगे भी वे इसी तरह देश की दोनों जुबानों में अपने नए शाह्कार से बच्चों को एक नेक इंसान बनने और कौम की खिदमत करने योग्य बनाते रहेंगे.उनकी इन सेवाओं पर राष्ट्र को फख्र है.आज बहुत कम लोग ऐसे हैं जो जिंदगी के जद्दोजेहद से निकलकर कौम की खिदमात को अंजाम देते हैं. जनाब शमशेर साहब को मैं अर्से से देख रहा हूं वे बिना किसी लोभ या लालच के बड़ी बेबाकी से इस तरफ मायल हैं.उनकी कलम की ताकत दिन-ब-दिन ताक़तवर होती जा रही है जोकि सकारात्मक दिशा में है जबकि इस अवस्था में अधिकांश अपनी ऊर्जा नहीं बचा पाते. हमारी नेक ख्वाहिसात उनके साथ है.

श्री जयप्रताप सिंह ने कहा यद्दपि मुझे उर्दू नहीं आती लेकिन मैं उनके इस शाहकार की कद्र करता हूं. आज मैं जिस कार्यालय में आया हूं वह फिल्म समारोह का कार्यालय है लिहाजा मेरी इच्छा है कि श्मशेर केवल कागजों को ही स्याह न करते रहें बल्कि बच्चों के लिए फिल्में भी बनाएं ताकि जहां कागज की पहुंच न हो वहां वे फिल्म के माध्यम से अपनी बात पहुंचा सकें.शमशेर को मैं भलीभांति जानता हूं, वे हमारे गृह जनपद सिद्धार्थ नगर से संबंधित हैं. बुद्ध के प्रति प्रेम और श्रद्धा भाव उनकी लेखनी में एक नई ऊर्जा का संचार करता है.आज जबकि भौतिकवाद से चारों तरफ मारकाट और गलाघोटूं स्पर्धा मची हुई है ऐसे में केवल बुद्ध का अहिंसात्मक मार्ग बचता है. इसलिए मैं यह कहूंगा कि वे बच्चों के फिल्म निर्माण में कदम रखें जो वक्त की सख्त जरूरत है.

-मुनीश परवेज़ राणा

Monday, April 5, 2010

अ.भा. बाल, युवा एवं वरिष्ठ प्रतिभा प्रदर्शन व सम्मान समारोह का आयोजन

04 अप्रैल, 2010 । नई दिल्ली



यहॉं गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में काजल एवं हम सब साथ साथ पत्रिका द्वारा संयुक्त रूप से अपने वार्षिक आयोजन के अवसर पर पद्मश्री डा. श्याम सिंह 'शशि' के मुख्य आतिथ्य में अ.भा. बाल युवा एवं वरिष्ठ प्रतिभा प्रदर्शन व सम्मान समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर बोलते हुए डा. शशि ने साहित्य एवं कला क्षेत्र की विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए दिल्ली व देश के अन्य भागों से आई विभिन्न प्रतिभाओं को मंच व सम्मान देने के लिए काजल व हम सब साथ साथ पत्रिकाओं की ईमानदार प्रयासों की सराहना की।
समारोह का प्रारंभ ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा’ गीत के साथ हुआ। तत्पश्चात कु. दीपश्री ने सरस्वती वंदना एवं रेडियो कलाकार श्रीमती सुधा उपाध्याय ने मधुर स्वर में राष्ट्रगीत प्रस्तुत किया। इसके बाद काजल पत्रिका की संपादक श्रीमती उषा नेगी, प्रबंध संपादक श्री संजीव सूरी एवं हम सब साथ साथ की संपादक श्रीमती शशि श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर काजल पत्रिका के वार्षिक अंक एवं श्री किशोर श्रीवास्तव की जन चेतना कार्टून प्रदर्शनी से संबंधित व्यंग्य चित्रों की पुस्तक ‘खरी-खरी’ का माननीय अतिथियों ने विमोचन भी किया।
समारोह के दौरान सर्वश्री डॉ. अनवर बेग, बाबूलाल दोषी, दिनेश पोखरियाल (दिल्ली) को पत्रकारिता एवं समाजसेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए काजल द्वारा सम्मानित किए जाने के साथ ही हम सब साथ साथ के सदस्यों में से चुनी गई प्रतिभाओं सर्वश्री कु. विस्मिता रस्तोगी को बाल प्रतिभा सम्मान, डॉ. हरीश अरोड़ा, सुषमा भंडारी (दिल्ली), कु. नसीम अख्तर (भोपाल, मप्र), डॉ. सुधीर सागर (फरीदाबाद, हरियाणा), अनार सिंह वर्मा (कासगंज, उप्र), रमेश सोनी (बसना, मप्र) को युवा प्रतिभा सम्मान एवं प्रो. डा. शरद नारायण खरे (मंडला, मप्र) व डा. तेजिन्द्र (कैथल, हरियाणा) को वरिष्ठ प्रतिभा सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर बेलगाम के श्री रमेश वी. कुलकर्णी को हम सब साथ साथ का इस वर्ष का लाइफ टाइम अचीवमेंट्स अवार्ड देने की घोषणा भी की गई।



कार्यक्रम के दौरान सम्मान हेतु चयनित विभिन्न प्रतिभाओं ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन भी किया। इस समारोह में समारोह के विशिष्ट अतिथियों सर्वश्री डा. सरोजिनी प्रीतम, डा. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, हरिसुमन बिष्ट, श्रवन कमार उर्मलिया, शशिकांत भारती एवं डा. ज्योति नंदा ने भी अपनी सुमधुर रचनाएं एवं वक्तव्य प्रस्तुत करके समा बांध दिया। समस्त कार्यक्रमों का सुंदर संचालन प्रसिद्ध साहित्यकार श्री विनोद बब्बर एवं कवयित्री नमिता राकेश ने किया। समारोह को सफल बनाने में सर्वश्री अखिलेश द्विवेदी अकेला, मीनू श्रीवास्तव, पूनम शर्मा, लाल बिहारी लाल एवं इरफान आदि का सहयोग सराहनीय रहा।


प्रस्तुतिः लाल बिहारी लाल
(मीडिया प्रभारी, हससासा)
मो. 9868163073
हम सब साथ साथ- 9868709348

Saturday, April 3, 2010

प्रवासी कवयित्रियों अंजना संधीर और रेखा मैत्र के सम्मान में काव्य-गोष्ठी

दिनांक 27, मार्च 2010 मुंबई में प्रवासी कवयित्रियों अंजना संधीर और रेखा मैत्र के सम्मान में काव्य-गोष्ठी का आयोजन हिन्दी-उर्दू-सिंधी की लोकप्रिय ग़ज़लकारा देवी नागरानी के निवास स्थान पर आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ गज़लकार श्री आर. पी. शर्मा की अध्यक्षता और संपादक-कवि-मंच संचालक अरविंद राही के संचालन ने एक खुशनुमा समाँ बांध दिया।
काव्य गोष्टी आरंभ करने के पूर्व देवी नागरानी ने पुष्प गुच्छ से महरिष जी का सम्मान किया। फिर देवमणि पांडेय ने दोनों कवयित्रियों का परिचय दिया। आगाज़ी शुरूआत देवमणी पांडेय जी ने अंजना संधीर और रेखा जी के परिचय के साथ की और उन्होंने अंजना जी के कार्य विस्तार पर रोशनी डाली। अंजना जी अब देश-विदेश के बीच की स्थाई पुल बना रही हैं। अंजना जी एक ऐसी विभूति हैं जिन्होंने साहित्य के प्रचार में, संस्कृति के प्रचार में अपना योगदान दिया है। रेखा जी भी निरंतर साहित्य सृजन का कार्य करती आ रही हैं।
हिंदुस्तानी प्रचार सभा की कार्यकर्ता डा. सुशीला गुप्ता जी ने अंजना के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए उनके हिंदी भाषा के प्रति साराहनीय क़दम के उल्लेख किया और उनके प्रयासों की साराहना की।



काव्य सुधा रस के पहले अंजना संधीर, महरिष, अरविंद राही, शिवानी जोशी, देवी नागरानी, एवं संतोष श्रीवास्तव के हाथों डा. राजाम पिल्लै नटराजन की संपादित त्रेमासिक पत्रिका "कुतुबनुमा" के 9वें अंक का विमोचन हुआ। इसके बाद महरिष जी ने रेखा जी का और अंजना जी का देवी नागरानी ने सुमन शाल से सम्मान किया ।



काव्य सुधा की सरिता शाम भर बहती रही जिसमें प्रवाह की पहली अंजुली प्रदान की सुप्रसिद्ध कथाकार-कवयित्री संतोष श्रीवास्तव ने। उन्होंने जब यह कविता पढ़ी तो सभी उपस्थित कवि वाह-वाह कह उठे। "जिन की गंध बटोर सकूँ मैं ऐसी कुछ कलियां दे देना" इस पंक्ति से जो ध्वनि तरंगित होती है, वह प्रवासी कवयित्रियों अंजना संधीर और रेखा मैत्र का प्रतिनिधित्व पूर्ण रूप से करती जान पड़ती हैं। सिलसिले को आगे बढ़ाया देवमणी पांडेय ने (एक समंदर पी चुकूँ और तिश्नगी बाकी रहे), रेखा मैत्र (उंगलियों की फितरत और चाबी वाली गुड़िया), ज़ाफर रज़ा( आज शाम के चेहरे पे उदासी क्यों है), डा. सुशीला गुप्ता( बूंद), अंजना संधीर(निकले गुलशन से तो गुलशन को बहुत याद किया),



खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी( दोनों कवयित्रियों पर कुँडली और ग़ज़ल), कुमार शैलेन्द्र (दुनिया की बातें बहुत हुईं अब घर आंगन की बात करो ), देवी नागरानी ( छू गई मुझको ये हवा जैसे), अरविंद शर्मा "राही"(कुछ खट्टी मीट्ठी यादें है कुछ बीती बातों की), ज्योती गजभिये(सब कुछ बदल देने का हौसला लिये बैठी हूँ), सुषमा सेनगुप्ता ( माली), कुलवंत सिंह (शहीद भगतसिंह), गिरीश जोशी (प्यार मौजों की रवानी सा कभी लगता है), माणिक मुंडे (जाग जाने के लिये सपने दिखाता हूं मैं), कपिल कुमार (कुंडलियों के अनेक रंग), मुहमुद्दिल माहिर ( ऐसा नहीं है कि सारे के सारे चले गए), अंत में अध्यक्ष श्री आर. पी. शर्मा ने कई गज़लों का पाठ भरपूर ताज़गी के साथ किया। शिवानी जोशी, और चंद्रकांत जोशी भी इस संध्या का गौरव बढ़ाने के लिये मौजूद रहे।

काव्या गोष्टी सफलता पूर्वक संपूर्ण हुई। देवी नागरानी ने सभी कवि गण का तहे दिल से आभार व्यक्त किया। मधुर वातावरण में जलपान के साथ शाम ढली।

रिपोर्टः कपिल कुमार और देवी नागरानी

Friday, April 2, 2010

अंग्रेजी परस्त हैं सरकार की नीतियाँ: इलना



डीएवीपी और आरएनआई समाचारपत्र और पत्रिकाओं के अस्तित्व में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब डीएवीपी और आरएनआई जैसे संगठन सही तरह से अपना काम नहीं करते हैं, तो पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का कार्य प्रभावित होता है. जिस से प्रकाशकों के सामने बहुत सारी परेशानियां खड़ी हो जाती हैं. इस की सब से बड़ी वजह प्रकाशकों का एकसाथ बैठ कर इन समस्याओं पर गंभीरता से विचार न करना होता है. इसी का परिणाम है कि केंद्रीय मंत्रालय, डीएवीपी, आरएनआई और दूसरे विभाग भी भाषाई समाचारपत्रों की घोर उपेक्षा करते हैं. केंद्र ही नहीं, राज्य सरकारों का भी यही हाल रहता है. समाचारपत्रों के प्रकाशकों को इधर से उधर भटकना पड़ता है.
भारतीय भाषाई समाचारपत्र संगठन (इलना) ने देशभर में प्रकाशकों को एकसाथ बैठा कर इन समस्याओं पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया है. इस कड़ी में नागपुर और आगरा के बाद 01 अप्रैल, 2010 को एक मीटिंग का आयोजन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के राज्य सूचना केंद्र, हजरतगंज में किया गया. इस में देश के अलगअलग हिस्सों से आकर 30 से अधिक प्रकाशकों ने भाग लिया.
इलना के राष्ट्रीय अध्यक्ष परेश नाथ की अगुआई में संपन्न हुई इस मीटिंग में डीएवीपी की एंपैनल प्रक्रिया में संशोधनों की आवश्यकता, डीएवीपी द्वारा गठित रेट स्ट्रक्चर कमेटी, विज्ञापन बिलों की प्रक्रिया और भुगतान, डीएवीपी और अन्य सरकारी विभागों के द्वारा विज्ञापनों का असामान्य वितरण, आरएनआई की भूमिका और पीआरबी एक्ट में बदलाव की कोशिशों पर विस्तार से चर्चा हुई.
इलना सदस्यों ने माना कि सरकार और डीएवीपी की विज्ञापन नीतियां अंगरेजी अखबारों को फायदा पहुंचाने वाली हैं. इलना सदस्यों ने किसी को विज्ञापन देने का विरोध नहीं किया, बल्कि उन का यह कहना था कि जनगणना, बालिका शिक्षा, पोलियो जैसे विज्ञापन उन भाषाई अखबारों को भी दिए जाएं, जो विज्ञापन के लिए पंजीकृत हैं. पेड न्यूज मसले पर सदस्यों की राय यह थी कि यह मसला एडीटर और रीडर के बीच छोड़ दिया जाना चाहिए.
भाषाई अखबारों के प्रकाशकों ने तय किया कि वह स्थानीय नेताओं और अफसरों पर दबाव बना कर विज्ञापन की सरकारी नीतियों में बदलाव करने के लिए मजूबर करें.
मीटिंग में इलना के महासचिव रवि कुमार विश्नोई सहित कार्यकारिणी के सदस्य दैनिक नारदवाणी से राजीव वशिष्ठ, मेरठ भूमि से गिरीश कुमार अग्रवाल, बच्चों के संग से विपिन मोहन शर्मा, दैनिक राजपथ से अशोक नवरत्न, संजय कुमार और सदभाव मिलन, देहरादून से जय प्रकाश पांडेय शामिल थे. इस के अलावा पूरे प्रदेश से आए प्रकाशकों, संपादकों में नामांतर से डाक्टर मनसा पांडेय, ऊर्जा टाइम्स से एसके शुक्ला, मधुर सौगात से शिवेंद्र प्रकाश द्विवेदी, इंडिया इनसाइड से अरुण सिंह, सिनैरियो से राजीव कुमार सिंह, इंडियन हेराल्ड से वीके पांडेय, रोजाआना से मो. हफीजउल्ला खान, सफीर टाइम्स से कफील खां, नवसंवाद से एके श्रीवास्तव, कीर्ति प्रकाश से देवेंद्र कुमार शर्मा, फिल्मको फोटो न्यूज से केसी विश्नोई, खरी कसौटी के सरोज चंद्रा, ऊर्जा टाइम्स से शंकर त्रिपाठी, अमर प्रकाश से रतन वाष्णेय, स्वतंत्र चेतना से उमेश मिश्रा, शहीदी दुनिया से डीके शर्मा, नामांतर से नमिता श्रीवास्तव, राम सिंह तोमर, मोहम्मद अतहर सलीम, शहूर अहमद, अब्दुल अतीक और शिव सिंह प्रमुख थे.

टोहाना ने दी शहीदों को श्रद्धाँजलि

टोहाना । फतेहाबाद


रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन पर कोरियोग्राफी करते हुए धरोहर थियेटर गु्रप के कालाकार

शहीद भगत सिह के भान्जे जगमोहन जी व कारगिल शहीद मनोहरलाल के पिता जी रामेश्वर दास जब एक साथ कला व साहित्य सदन द्वारा आयोजित कार्यक्रम "श्रदांजलि" में पहुचे तो वहाँ पर मौजुदू सभी लोग उनके सम्मान में अपने स्थानों से उठ कर खडे हो गए एक साथ दो शहीद परिवारों के इस कार्यक्रम में पहुचने से मौहोल देशप्रेम के नारो से गूँज उठा। भगत सिह, राजगुरू,सुखदेव व कारगिल शहिद मनोहरलाल की तस्वीरों के सामने शहीद भगत सिह के भान्जे जगमोहन जी व कारगिल शहीद मनोहरलाल के पिता जीज्योती प्रज्जवित करने के बाद कार्यक्रम की शुरूआत हुई शहीद परिवारों के सम्मान में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रो॰ जगमोहन ने "भगतसिह व उनके साथियों के विचारों की वर्तमान समय में प्रांसगिकता पर विस्तार से अपना वक्तव्य रखा, उन्होनें कहा कि भगत सिह व उनके साथियों के विचारों आजाद भारत को लेकर बिल्कुल ही साफ थे, उनका मानना था कि आजाद भारत में आजादी सभी के लिए हो पर आज देश में बेरोजगारी, मंहगाई, भष्ट्राचार, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद व तुष्टीकरण की नितियाँ फैली हुई है। उनके विचारों को आम जन तक नही पहुचाया जा रहा उन शहीदों की सोच विज्ञानिक होनें के साथ ही तर्कपुर्ण भी थी आज भी उनके विचारों में हमें कई समस्याओं के हल मिल सकते हैं उन्होनें बताया कि भगत सिह का अपने छोटे भाई को लिखा पत्र आज के विद्यार्थियों के लिए निःसिन्देह ही प्ररेणा देने वाला हैं उन्होंनें कहा था कि हिम्मत रखों और मन लगा कर पढो- इसी तरह से उन्होंने अपने दूसरे भाई को लिखा कि हाथ को कोई काम सिख लो तो बेहतर है। आज देश के लोगों को शहीदों के बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
कारगिल शहिद के पिता जी ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम होते रहने चाहिएं मौके पर बजरंग माडल स्कूल के बच्चों ने कारगिल युद पर कोरियोग्राफी पेश की। "धरोहर" थियेटर गुप ने कोरियोग्राफी शायर रामप्रसाद बिस्मल "विरासत" नामक कोरियोग्राफी के माध्यम से शहीद विस्मिल के जीवन के कई पहलुओं को उजागर किया ।
सदन के सचिव नवल सिह ने कार्यक्रम में आने वाले सभी अथितियो का स्वागमत करते हुए कहा कि सदन का उद्देश्य जमीन से जुड़ी प्रतिभाओं को सामने लाना है इसके लिए भविष्य में भी कार्यक्रमों को सिलसिला शहरवासियों के सहयोग से चलाया जाता रहेगा।
इस मौके पर भारत विकास परिषद, आजाद युवा सगठन, यंग इण्डिया फाउंडेशन, मानव सेवा संगम, लक्कड मार्किट कमेटी ऐशोसियन, विधि र्स्पोटस कल्ब, आजाद र्स्पोटस कल्ब के आलावा अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

ज्योति को प्रज्जलवित करते हुए प्रो॰ जगमोहन व रामेश्वर दास के साथ संस्था के सदस्य

प्रस्तुति-
नवल सिह
सचिव, कला व साहित्य सदन

Thursday, April 1, 2010

सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था के प्रथम कविता संग्रह का विमोचन



29 मार्च 2010 को भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, पारामारिबो के सभागार में सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था द्वारा प्रकाशित प्रथम कविता संग्रह एक बाग के फूल का विमोचन सूरीनाम के ही 95 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक और हिंदी के प्रचार प्रसार में सक्रिय रहे श्री भागू अवतार के हाथों कराया गया। सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था के अध्यक्ष पंडित हरिदेव सहतू ने बताया कि श्री भागू अवतार सूरीनाम से कोविद परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले प्रथम व्यक्ति हैं और निरंतर हिंदी अध्यापन करते रहे हैं और हिंदी व रामायण के प्रचार-प्रसार से जुड़े हैं।

एक बाग के फूल सूरीनाम के वरिष्ठ और नवोदित 27 कवियों की कविताओं का संग्रह है और यह पहला अवसर है कि इस तरह का संग्रह प्रकाशित हुआ है। इसमें सरनामी व खड़ी बोली हिंदी में लिखी देश-प्रेम व आम जनजीवन के लगभग प्रत्येक पहलू पर लिखी कविताएँ हैं। संग्रह के सभी कवि विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हैं और हिंदी भाषा को धरोहर के समान न सिर्फ संभाल रहे हैं उसे अगली पीढ़ी को भी सौंप रहे हैं। इसका साक्ष्य था वरिष्ठतम कवि श्री अमरसिंह रमण के पौत्र द्वारा उनकी कविता निकेरी का वाचन। श्री अमरसिंह रमण कुछ समय से अस्वस्थ होते हुए भी निरंतर हिंदी अध्यापन कर रहे हैं।

युवा कवयित्री ऩिशा झाकरी ने अपनी कविता वाचन के साथ-साथ अपने भाव प्रकट करते हुए कहा कि आज इन वरिष्ठ कवियों के साहित्य के बीच मेरी कविताएँ एक बूँद मात्र हैं, किंतु यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपनी भाषा, सीखने का अवसर मिला क्योंकि भाषा मनुष्य की पहचान है।

सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था का गठन वर्ष 2001 में किया गया था और तब से पंडित हरिदेव सहतू के दिशानिर्देश में संस्था के सभी सदस्य सुचारू रूप से साहित्य सृजन कर रहे हैं। संस्था का उद्देश्य हिंदी लेखकों को प्रेरित करना है।

इस अवसर पर उपस्थित भारत के राजदूत श्री कँवलजीत सिंह सोढी ने सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था के सभी सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि सूरीनामवासियों का हिंदी प्रेम व उनके द्वारा हिंदी साहित्य रचना गौरव की बात है।

विराट का कविता संग्रह और विजयशंकर चतुर्वेदी का एकल काव्य-पाठ



मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् की साहित्य अकादमी के द्वारा संचालित पाठक मंच सतना की मासिक गोष्ठी पिछले दिनों वरिष्ठ कवि चंद्रसेन विराट के कविता संग्रह 'चुटकी चुटकी चांदनी' को केंद्र में रखकर आयोजित की गयी. इस अवसर पर मुंबई से पधारे युवा कवि विजयशंकर चतुर्वेदी का विशेष काव्य पाठ भी आयोजित किया गया. बता दें कि विजयशंकर का पहला कविता संग्रह 'पृथ्वी के लिए तो रुको' राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली से पिछले दिनों छपा है. कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद डॉक्टर एआर तिवारी ने की और विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध आलोचक डॉक्टर सेवाराम त्रिपाठी उपस्थित थे. गोष्ठी का संयोजन सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं एडवोकेट संतोष खरे ने किया.

चंद्रसेन विराट के उक्त कविता संग्रह पर राय व्यक्त करने के लिए नगर के कई प्रमुख साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे. युवा समीक्षक अनिल अयान ने विराट के कविता संग्रह पर एक आलेख प्रस्तुत किया जिसे काफी सराहा गया. चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर अजय तिवारी ने कहा कि चंद्रसेन विराट अपने दोहों के माध्यम से आधुनिक विचार, बाज़ारवाद तथा कई सामाजिक चित्र उपस्थित करते हैं. आर के श्रीवास्तव का कहना था कि विराट ने कविवर बिहारी से शिष्यत्व तो लिया है लेकिन उस ऊंचाई तक अभी नहीं पहुँच सके हैं. चिंतामणि मिश्र ने राय दी कि कवि ने परम्परा से हट कर दोहे लिखे हैं लेकिन ये अनायास नहीं बल्कि सायास लिखे गए दोहे लगते हैं. इस गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार एवं कवि सुदामा शरद, निरंजन शर्मा, मुकुल दुबे तथा वरिष्ठ लेखक रामदास गर्ग, विष्णुस्वरूप श्रीवास्तव, मोहनलाल वर्मा 'मुकुट', डॉक्टर राजन चौरसिया, भरत कुमार जैन, एमएल रैकवार, रामशैल गर्ग एवं ठाकुर खिलवानी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही.

इस अवसर पर विनोद पयासी ने नोट किया कि प्राचीन कवियों के दोहे सामान्य जनता को मौखिक याद रहते थे जबकि विराट के दोहों में वह शक्ति नज़र नहीं आती. डॉक्टर सेवाराम त्रिपाठी का आक्षेप था कि विराट के दोहे लिखने के लिए लिखे गए प्रतीत होते हैं. डॉक्टर त्रिपाठी ने जोड़ा कि यद्यपि कवि के लिए कोई भी विषय वर्जित नहीं होता तथापि समाज को देखने और उसे पकड़ने की क्षमता का अपना महत्त्व होता है और ऐसा ही काव्य स्थायी प्रभाव डालता है. गोष्ठी के अध्यक्ष डॉक्टर आर के तिवारी ने दोहा का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत करते हुए विराट के संग्रह की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसमें जहां तुलसी की भक्ति भावना देखने को मिलती है वहीं ऋषि अगस्त के पात्र के सामान समस्त को समेट लेने की क्षमता और ललक दिखाई देती है.

गोष्ठी के दूसरे चरण में कविता पाठ से पूर्व डॉक्टर सेवाराम त्रिपाठी ने जनसत्ता, मुंबई के पूर्व उप-सम्पादक विजयशंकर चतुर्वेदी का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि युवा कवि विजयशंकर अपने समय का सच लिखते हैं और उनकी कविताओं का फलक सृष्टि के आरम्भ से लेकर मनुष्य की यात्रा के विभिन्न पड़ावों तक फैला हुआ है. उनकी कवितायें समाज की चिंता, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष में आस्था और मानवीय मूल्यों में उनके विश्वास का घोषणापत्र हैं. इस अवसर पर विजयशंकर ने संबंधीजन, भरम, पृथ्वी के लिए तो रुको, क्यों जाऊं, चौपाल, साहचर्य और खरीद-फरोख्त जैसी करीब दर्ज़न भर कवितायें सुनाईं, जिन्हें उपस्थित लोगों ने बड़ी गंभीरता और ध्यान देकर सुना.

अंत में संयोजक संतोष खरे ने सभी उपस्थितों का तहे दिल से आभार माना।