राष्ट्रीय कवि संगम के द्वितीय राष्ट्रीय अधिवेशन 2 जनवरी (प्रात: 10:00 बजे) से 3 जनवरी 2010(सायं 6:00)पर आप सादर आमंत्रित हैं। कार्यक्रम सम्बन्धी सूचनायें इस प्रकार हैं-
1) आयोजन स्थल ‘अध्यात्म साधना केन्द्र’(छत्तरपुर मन्दिर के साथ) महरौली, दिल्ली है। 2) आवास व्यवस्था (केवल कवियों- कवयित्रियों की ही) 3 जनवरी रात्रि तक ही रहेगी। 1 जनवरी रात्रि में उनकी भी व्यवस्था रहेगी, जिनके आगमन की पूर्व सूचना होगी। 3) अपने आने-जाने की सूचना यातायात प्रमुख श्रीकांत श्री को ईमेल/पत्र/मोबाईल पर शीघ्र दें, जिससे आने पर आपको असुविधा न हो। ई-मेल – srikant.kavi@gmail.com, मो॰- 09711061019 4) नई दिल्ली, दिल्ली, निजामुद्दीन रेलवे स्टेशनों पर सम्पर्क केन्द्र रहेगा। वहां से कार्यक्रम स्थल पर जाने की व्यवस्था रहेगी। 5) आने-जाने का आरक्षण स्वयं करवा लें। 6) कार्यक्रम पर आने वाले कवियों-कवयित्रियों के लिए अपने स्थान से आने-जाने के मार्ग व्यय (Non A.C. Sleeper II रेल/बस), आवास एवं भोजन व्यवस्था राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा रहेगी। 7) अपने पंजीकरण के समय अपना परिचय विवरण दो फोटो, अपनी दो कवितायें व अपने आने का टिकट दे दें। (पंजीकरण शुल्क -100/- रु॰) 8) यह दो दिवसीय कार्यक्रम एक कार्यशाला के रुप में होगा, जिसमें वरिष्ठ कवियों द्वारा विभिन्न सत्रों में मार्गदर्शन प्राप्त होगा। 9) सभी प्रतिभागीयों को अपनी एक संक्षिप्त प्रस्तुति का अवसर भी मिलेगा। 10) इस आयोजन पर कवियों-कवयित्रियों की राष्ट्रीय निर्देशिका प्रकाशित की जा रही है। उसके लिए अपना परिचय एवं फोटो श्री चिराग जैन को ईमेल-advt@kavisangam.com पर अथवा उपरोक्त पते पर डाक द्वारा भेजें। कार्यक्रम की सफलता हेतु आपके सहयोग का विश्वास मन में संजोए।
आपका अपना- जगदीश मित्तल
(निमंत्रण-पत्र को बड़ा करके देखने और पूरा विवरण पढ़ने के लिए निम्नलिखित चित्रों पर क्लिक करें)
Indian Society of Authors हर महीने के तृतीय शुक्रवार को India International Centre के Dining hall में ‘मेरी पसंददीदा कविताएँ’ शीर्षक से एक गोष्ठी करती है, जिस में मंच से कोई प्रसिद्ध कवि अन्य कवियों द्वारा रचित अपनी मनपसंद कविताएँ प्रस्तुत करता है. दि. 18 दिसंबर 2009 की गोष्ठी Indian Society of Authors की एक यादगार गोष्ठी थी जिस में प्रसिद्ध कवियत्री ममता किरण ने अपने अध्ययन के आधार पर विश्व भर के कवियों की हिंदी में अनूदित रचनाओं में से अपनी पसंदीदा रचनाएँ प्रस्तुत की. इस गोष्ठी की अध्यक्षता पूर्व सांसद व कवि उदय प्रताप सिंह ने की तथा हिंदी के प्रकाशक कवि विश्वनाथ इस गोष्ठी के मुख्य अतिथि रहे. मंच पर अन्य विशिष्ट अतिथि के रूप में थे ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक कवि दिनेश मिश्र तथा प्रसिद्ध हिन्दीसेवी डॉ. कुसुम वीर.
ममता किरण ने विश्व भर के लगभग 36 सशक्त हस्ताक्षर प्रस्तुत किये जिनमें अमरीका के वाल्ट व्हिटमैन व ब्रायन टर्नर, पुर्तगाल के फर्नांडो पेसोवा, गुयाना के मार्टिन कार्टर व लीबिया के इदरीस मुहम्मद तैय्यब के अतिरिक्त पोलैंड के कई कवि व भारत से पंजाबी, डोगरी, बांग्ला, बोडो और हिंदी-उर्दू के सर्वप्रिय हस्ताक्षर यथा गोपालदास नीरज, गुलज़ार, निदा फाज़ली, बशीर बद्र, दुष्यंत कुमार, कुंवर नारायण, ज्ञानेंद्र पति, नरेश सक्सेना, लीलाधर मंडलोई, विष्णु नगर, सुनीता जैन, राजेंद्र नाथ रहबर, कन्हैयालाल वाजपेयी आदि सम्मिलित थे.
गुयाना के कवि मार्टिन कार्टर जो अपने देश के स्वाधीनता संघर्ष से जुड़े रहे, की कविता ‘जेल की कोठरी’ आज प्रस्तुत सशक्त-तम कविताओं में से एक रही. इस की कुछ पंक्तियाँ:
हाँ/ वह दिन आग की लपटों की तरह/ पूरी दुनिया को भर देगा/अपनी आगोश में/ लाएगा उजियारा/ आलोकित हो उठेगा धरती का कण कण/ऐसा होगा जब/तब एक बार फिर/उठ कर खड़ा हो जाऊँगा मैं/और अट्ठाहस करता निकल जाऊंगा/ बाहर इस कैदखाने से (अनुवाद अक्षय कुमार).
लीबिया के कवि इदरीस मुहम्मद तैय्यब की छंद-मुक्त कविता की कुछ सशक्त पंक्तियाँ:
कुछ महीने पहले/महसूस हुआ/कि जिंदगी मेरे साथ समझौता कर रही है/ मुझे नहीं मालूम था/ कि नियति गुप्त रूप से हंस रही थी मुझ पर/अपने अगले वार की तैयारी करते हुए (अनुवाद इन्दुकांत आंगरीस).
उक्त दोनों विदेशी कविताओं से एक अह्सास बहुत शिद्दत से होना स्वाभाविक था कि मानव-मन कदाचित दुनिया के हर कोने में एक सा है. जीवन-शैली में ज़मीन-आसमान का फर्क हो, देश-काल के अनुसार घटना-दुर्घटना के रूप बदलते रहें, लेकिन अहसास अपने शाश्वत, सार्वभौमिक रूप में वही का वही, जैसे समुद्र का पानी वही का वही, पहाड़ का ठोसत्व वही की वही, और मौसम के रंग भी वही के वही. उक्त दोनों कविताएँ भिन्न विषयों पर हैं, फिर भी एक सार्वभौमिक मानव-मन से साक्षात्कार कराती हैं, जिन में अगर पंजाबी कवियत्री अमृता प्रीतम की निम्न पंक्तियाँ जोड़ें तो लगे कि पूरी मानव जाति आपस में जुड कर बेहद अलौकिक रूप से एक ही पदार्थ में बदल गई है:
मैं तुझे फिर मिलूंगी/ कहाँ किस तरह, पता नहीं/शायद तेरे तखय्युल की चिंगारी बन/ तेरे कैनवास पर उतरूंगी/...मैं और कुछ नहीं जानती/ पर इतना जानती हूँ/ कि वक्त जो भी करेगा/ यह जनम मेरे साथ चलेगा/यह जिस्म खत्म होता है/ तो सब कुछ खत्म हो जाता है/पर चेतना के धागे/ कायनात के कण होते हैं/ मैं उन कणों को चुनूंगी/मैं तुझे फिर मिलूंगी.
ममता किरण अपनी रचनाओं की प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए जानी-मानी कवियत्री हैं और अपनी उसी छवि को बनाए रख कर उन्होंने सभागार में उपस्थित कई विशिष्टजनों यथा उद्योगपति काशीनाथ मेमानी, फ़िल्मकार लवलीन थधानी, कमला सिंघवी, पद्मश्री सुनीता जैन, डॉ. गंगाप्रसाद विमल, अजित कुमार, वीरेंद्र सक्सेना तथा ‘देशबंधु’ पत्र के संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव आदि को मन्त्र-मुग्ध सा बांधे रखा.
ममता किरण का एक प्रिय विषय माँ और उस से जुडी संवेदनाएं भी है, सो न्यू यार्क की हुमेरा रहमान की निम्न पंक्तियाँ भी उनकी ही संवेदनशील चयन दृष्टि का परिणाम हो सकती हैं:
वो एक लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ कहा मुझ को/ मैं एक शाख से कितना घना दरख़्त हुई.
और मुनव्वर राणा का यह शेर:
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
मानवीय संवेदनाओं से अस्तित्व तथा रोज़ी-रोटी भी शायद अभिन्न रूप से जुड़े हैं, यह मैराज़ फैज़ाबादी के निम्नलिखित शेर से स्पष्ट है:
जिंदा रखे है मुझे मेरी ज़रूरत का पहाड़ मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते.
कविता-प्रेमी जानते हैं कि कविता को उस के असंख्य विषयों को एक ही थाल में सजाने से ही सम्पूर्णता प्राप्त होती है, सो उक्त रंगों में आत्माभिव्यक्ति पर बशीर बद्र का यह दो टूक शेर जोड़ कर पढ़िए:
मुखालिफत से मेरी शख्सियत संवरती है मैं दुश्मनों का बहुत एहतिराम करता हूँ
या कृष्ण बिहारी नूर का यह शेर:
हज़ार गम सही दिल में मगर खुशी तो है हमारे होंठों पे मांगी हुई हंसी तो नहीं
देश के माहौल से भी कविता भला कैसे विलग हो सकती है. इस के केवल दो उदहारण काफी हैं:
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
यह बताना तक ज़रूरी नहीं लगता कि ऐसी अमर पंक्तियाँ हिंदी गज़ल पढ़ने वालों के दिलों की धड़कन दुष्यंत कुमार ने रची हैं.
और रसूल अहमद सागर का यह शेर:
मंदिरों से मस्जिदों तक का सफर कुछ भी न था बस हमारे ही दिलों में दूरियां रख दी गई
कुल मिला कर आज की शाम कविताओं, गज़लों, दोहों व नज़्मों के एक नायाब से गुलदस्ते सी लगी जिस में ममता किरण की चयन-दृष्टि की उत्कृष्टता का पूरा योगदान रहा.
मीडिया की भाषा आँख खोलने वाली होनी चाहिए जिसे हमारे मनीषियों ने पश्यन्ती कहा है। ऐसी भाषा जो जन सामान्य की अभिरुचि को सुसंस्कृत करे और उन्हें सजग बनाए। सुपरिचित कवि-आलोचक डॉ. सत्यनारायण व्यास ने ’मीडिया और भाषा’ विषयक परिसंवाद में उक्त विचार व्यक्त किए। जनार्दराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित इस परिसंवाद में डॉ. व्यास ने कहा कि मीडिया की शब्द रचना के केन्द्र में संवेदना होनी चाहिए क्यों कि संवेदना का मूल मानवीय करूणा है। उन्होंने मीडिया और साहित्य की बढ़ती दूरी को चिन्ताजनक बताते हुए कहा कि भूलना नहीं चाहिए कि प्रेमचन्द, माखनलाल चतुर्वेदी और रघुवीर सहाय ने मीडिया की भाषा को साहित्य के संस्कार दिये हैं। अजमेर विजय सिंह पथिक श्रमजीवी महाविद्यालय के प्राचार्य और कवि डॉ. अनन्त भटनागर ने कहा कि मीडिया में भाषा के स्तर पर हुए स्खलन ने हमारी सामाजिक चेतना को प्रभावित किया है। उन्होंने कुछ चर्चित विज्ञापनों की भाषा का उल्लेख कर स्पष्ट किया कि बाजार की शक्तियां भाषा को संवेदनहीन बना ग्लेमर से जोड़ती है। डॉ. भटनागर ने कहा कि सचेत पाठक वर्ग हस्तक्षेप कर भाषा के दुरूपयोग को रोक सकता है। प्रभाष जोशी जैसे पत्रकारों के अवदान को रेखांकित कर उन्होंने बताया कि हिन्दी में लोक का मुहावरा अपनाकर मीडिया की भाषा को व्यापक जन सरोकारों से जोड़ा जा सकता है। परिसंवाद में राजस्थान विद्यापीठ के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया ने नयी प्रौद्योगिकी के कारण मीडिया में आए बदलावों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी निरपेक्ष नहीं होती, वह अपने साथ अपनी संस्कृति को लाती है जो मीडिया की भाषा और मुहावरे को भी बदलने का काम करती है। प्रो. चण्डालिया ने भाषा और संवाद के सम्बन्धों की ऐतिहासिक सन्दर्भ में व्याख्या कर बताया कि संवाद का चरित्र भाषा को निर्धारित करता है। इससे पहले मीडिया अध्ययन केन्द्र के समन्वयक डॉ. पल्लव ने परिसंवाद की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि मीडिया के चरित्र को समझने के लिए भाषा की संरचना और प्रयोग का विश्लेषण बेहद आवश्यक है। केन्द्र के अध्यापक आशीष चाष्टा ने केन्द्र की गतिविधियों की जानकारी दी एवं अतिथियों का स्वागत किया। परिसंवाद में केन्द्र के विद्यार्थियों मनोज कुमार, निखिल चिश्रोड़ा ने विषय-विशेषज्ञों से अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त किया। आयोजन में डॉ. मलय पानेरी, डॉ. मुकेश शर्मा, डॉ. योगेश मीणा, एकलव्य नन्दवाना सहित विद्यार्थी, शोध छात्र और अध्यापक उपस्थित थे। अन्त में केन्द्र की छात्रा मंजु जैन ने आभार प्रदर्शित किया।
भारतीय भाषाओं में मौलिक साहित्य लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु दिये जाने वाले प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा कल एक प्रेस-वार्ता आयोजित करके की गई। हिन्दी के लिए यह पुरस्कार हिन्दी के वरिष्ठ कवि, चिंतक और विचारक कैलाश वाजपेयी को इनके कविता-संग्रह 'हवा में हस्ताक्षर' के लिए प्रदान किया गया।
कविता की 8 पुस्तकों, लघुकथा की 6 पुस्तकों, 4 उपन्यासों, 4 आलोचना पुस्तकों, एक निबंध-संग्रह और एक नाटक को इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है।
ये पुरस्कार अकादमी प्रमुख सुनील गंगोपाध्याय की अध्यक्षता में निर्णायक मंडल में शामिल 24 भारतीय भाषाओं के विद्वानों की अनुशंसा और उसके बाद अकादमी के कार्यकारी बोर्ड के अनुमोदन के बाद तय किये गये।
पुरस्कार के लिए पुस्तकों के चुनाव हर भाषा के लिए चुने गये तीन निर्णायकों की सर्वसम्मति या अधिकतम सहमति से हुआ। इस अवार्ड के लिए 1 जनवरी 2005 से 31 दिसम्बर 2007 के मध्य प्रकाशित पुस्तकों (कृतियों) को सम्मिलित किया गया था।
साहित्य अकादमी के सचिव अग्रहार कृष्णमूर्ति ने पत्रकारों को बताया कि ये पुरस्कार सम्मानित लेखकों को आगामी 16 फरवरी 2010 को नई दिल्ली में आयोजित होने वाले एक समारोह में दिये जायेंगे। पुरस्कार मंजूषा के रूप में होगा जिसमें नाम लिखा हुआ ताम्रपत्र और रु 50,000 का चेक सम्मिलित होगा।
इस बार सबसे अधिक कविता की पुस्तकों को सम्मानित किया गया। अकविता के इस दौर में कविता को यह सम्मान मिलना दुर्लभ है। कैलाश वाजपेयी के अतिरिक्त सम्मानित होने वाले अन्य कवियों के नाम हैं- प्रद्युम्न सिंह 'जिन्द्राहिया' (डोंगरी), जस फर्नांडिस (कोंकणी), रघु लीशड़थम (मणिपुरी), वसंत आबाजी डहाके (मराठी) फणि मोहांती (ओड़िया) दमयंती बेसरा (संथाली) और पुविआरसू (तमिल)।
कवियों के बाद 6 कथाकारों वैदेही (कन्नड), दिवंगत मनमोहन झा (मैथिली), समीरण क्षेत्री 'प्रियदर्शी' (नेपाली) मेजर रतन जांगिड़ (राजस्थानी), प्रशस्य मित्र शास्त्री (संस्कृत) और आनंद खेमानी (सिंधी) को साहित्य अकादमी पुरस्कारों के लिए चुना गया।
प्रसिद्ध उपन्यासकारों ध्रूबज्योति बोरा (आसामी), स्वर्गीय मनोरंजन लाहरी (बोडो), यू॰ए॰ खादर (मलयालम) और यार्लागद्दा लक्ष्मी प्रसाद (तेलगू) के उपन्यासों को साहित्य अकादमी पुरस्कार 2009 से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।
सचिव अग्रहार कृष्णमूर्ति ने आगे बताया कि वर्ष 2009 के साहित्य अकादमी पुरस्कारों के लिए आलोचना की 4 पुस्तकों को भी चुना गया है जिसके लिए चतुर्वेदी बद्रीनाथ (अंग्रेज़ी), शीरिष पांचाल (गुजराती), मशाल सुल्तानपुरी (कश्मिरी) और अब्दुल कलाम क़ासमी (उर्दू) को चुना गया है।
इनके अतिरिक्त सौरीन भट्टाचार्य (बंगाली) को इनके निबंध संग्रह और आत्मजीत (पंजाबी) को इनके नाटक के लिए वर्ष 2009 का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया जायेगा।
19 दिसम्बर 2009। इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र। फ़ेनिक्स, मॉरिशस
मॉरिशस में भारतीय उच्चायोग द्वारा विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में एक कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। 19 दिसम्बर को केन्द्र के कक्ष में चयनित रचनाकारों द्वारा कविता पाठ किया गया। हिन्दी के मूर्धन्य कवि श्री सूर्यदेव सिबोरत और वरिष्ठ कथाकार श्री रामदेव धुरन्धर निर्णायक थे। उनका निर्णय 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के सन्दर्भ में आयोजित कार्यक्रम के अंतर्गत घोषित किया जाएगा। लेकिन बन्द लिफ़ाफ़े में पड़े उस निर्णय से पहले ही एक विजेता की घोषणा हो गई है, वह है- मॉरिशस की हिन्दी कविता।
असल में उच्चायोग और डॉ. करदम के इस आयोजन में सबसे सराहनीय बात यह है कि इस प्रतियोगिता में मॉरिशस की कविता की एक नई पीढ़ी उभरती हुई नज़र आई। मॉरिशस के स्थापित कवियों के स्थान पर इसमें उन युवा कवियों को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ जो अभी लिखना प्रारम्भ कर रहे है और सभी कविताएँ भी उच्च कोटि की थी।
अंजली हजगयबी, वशिष्ठ झमन, अरविन्द सिन्ह, नेकित सिन्ह, विनय गुदारी, सेहलील तोपासी, जिष्णु होरीसोरन, रितेश मोहाबीर जैसे कुछ ऐसे नाम राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस कार्य में उभर कर आए जो कि मॉरिशस के साहित्य के भविष्य के लिए बहुत शुभ संकेत है।
सभी रचनाकारों को बधाई और मॉरिशस की कविता का भविष्य सँवारने के कार्य में शुभकामनाएँ।
इस कविता पठन के तुरंत बाद मॉरिशस में महिला लेखन की आधारशिला सुश्री भानुमति नागदान का आख्यान रहा। उन्होंने अपनी कहानियों में नारी विषय पर चर्चा की। यह न केवल बहुत रोचक और विचारोत्तेजक रही साथ ही जैसे मॉरिशस में लिखित साहित्य के एक अविच्छिन्न पक्ष पर परिचर्चा की महत्वपूर्ण शुरुआत भी रही। आशा है इस से अब मॉरिशस के साहित्य में नारी विष्य पर समालोचना को नई गति मिलेगी।
रिपोर्ट- गुलशन सुखलाल वरिष्ट व्याख्याता महात्मा गान्धी संस्थान मॉरिशस
मीडिया के छात्र समाज की बुराइयों को पहचान कर उनका निदान करने वाले भावी चिकित्सक हैं। ये विचार कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष डा. शाहिद अली ने व्यक्त किए। डा. अली में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्र-छात्राओं से एक संवाद में कहा कि जनसंचार के क्षेत्र में काम करने वालों की जिम्मेदारियां बहुत बड़ी हैं। जनसंचारकर्मी वास्तव में समाज की पहचान करता है और उसके आधार पर समस्याओं का निदान करते हैं। उन्होंने कहा कि आनेवाली पीढ़ी ही मीडिया जगत के अंदर आ गई विकृतियों का निदान भी खोजेगी और उसे जनोन्मुखी बनाने में मदद करेगी। उन्होंने कहा कि मीडिया पर पड़े रहे बाजार के प्रभावों से मिल रही चुनौतियों का सामना करने के लिए पत्रकारिता के मूल्यों की ओर लौटने की ओर लौटने की जरूरत है। समाज और राष्ट्र के निर्माण में संचार माध्यमों की जागरूकता जरूरी है। मीडिया का नया परिदृश्य गंभीर और चिंतनशील जनसंचार के शोधार्थियों का है जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। वर्तमान को कोसने से नहीं उसका सामना करने और नए रास्ते बनाने से ही यह क्षेत्र पुनः एक नई उर्जा को प्राप्त कर सकेगा।
कार्यक्रम के प्रारंभ में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने डा.अली का स्वागत किया। आभार प्रदर्शन डा. मोनिका वर्मा ने किया। आयोजन में विभाग के छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
15 दिसंबर की शाम को कस्तूरबा गांधी मार्ग, कनॉट प्लेस स्थित मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के सभागार में आनंदम् की इस वर्ष की अंतिम काव्य गोष्ठी हिन्दी, उर्दू और पंजाबी की रचनाओं की रंगबिरंगी छटा के साथ अत्यंत उल्लास पूर्ण माहौल में संपन्न हुई। गोष्ठी में दिल्ली के अलावा अलीगढ़, ग़ाज़ीयाबाद व रेवाड़ी इत्यादि अन्य नगरों से पधारे नए, पुराने, युवा एवं अनुभवी सभी रचनाकारों ने छन्दबद्ध एवं छन्दमुक्त दोनों तरह की उत्कृष्ट रचनाएँ पेश कीं और श्रोताओं की ख़ूब वाहवाही लूटी।
निम्न लिखित रचनाकारों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से गोष्ठी की शोभा बढ़ाई- सर्वश्री मुनव्वर सरहदी, नाशाद देहलवी, जगदीश जैन, नागेश चन्द्र, मासूम ग़ाज़ियाबादी, रमेश सिद्धार्थ, डॉ. रज़ी अमरोहवी, नश्तर अमरोहवी, दरवेश भारती, सोढी प्रीतपाल सिंह पाल, डॉ. मनमोहन तालिब, पंडित प्रेम बरेलवी, मजाज़ मरोहवी, भूपेन्द्र कुमार, जगदीश रावतानी, क़ैसर अज़ीज़, प्रेमचंद सहजवाला, शिव कुमर मिश्र मोहन, शैलेश सक्सैना, पुरुषोत्तम वज्र, सतीश सागर, जितेन्द्र प्रीतम, रमेश भम्भानी, श्रीमती दिनेश आहूजा एवं श्रीमती ममता किरण।
अपने ख़ूबसूरत अंदाज़ में गोष्ठी का संचालन श्रीमती ममता किरण ने किया जिसकी अध्यक्षता जनाब जगदीश जैन ने की। गोष्ठी में प्रस्तुत की गई कुछ रचनाओं की बानगी देखें –
दरवेश भारती- एक ख़ुदा को छोड़ कर सजदा करे है दर-ब-दर आज हर शख़्स ने कितने ख़ुदा बना लिए
मासूम ग़ाज़ियाबादी- हमेशा तंगदिल दानिश्वरों से फ़ासला रखना मणि मिल जाए तो क्या साँप डसना छोड़ देता है
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी- बाज़ार में मिले हैं चीज़ें ही नहीं नक़ली नक़ली का ही रोना है रिश्तों की दुकानों में
रमेश सिद्धार्थ- यूँ उजालों का इंतज़ार करोगे कब तक ग़म के सायों से बार-बार डरोगे कब तक
ममता किरण- चाहे जितना वो रूठ लें मुझ से, मान ही जाएँगे मनाने से घर में आएगा जब नया बच्चा, घर हँसेगा इसी बहाने से
सतीश सागर- कुआँ उन्होंने भी खोदा था, कुआँ इन्होंने भी खोदा है असली बात ये है कि पानी न तब था न पानी अब है
नश्तर अमरोहवी- अभी पे नहीं मिली, तू आजकल क्रीम पाउडर को भूल जा शलवार को कमीज़ को जम्पर को भूल जा घर के हर एक ख़ाली कनस्तर को भूल जा बिस्तर हो तुझको याद तो बिस्तर को भूल जा बस रख यही ख़याल, अभी पे नहीं मिली
पंडित प्रेम बरेलवी- जाने वालों से रोता है दिल कितना नाज़ुक होता है
जितेन्द्र प्रीतम- देश तो महान ये, धरती की शान ये देखिए तो कैसे बदनाम हो गया है जी जाति धर्म प्रांत और भाषाओं के झगड़े में स्वाभिमान इसका नीलाम हो गया है जी
रज़ी अमरोहवी- मेरी ग़ज़ल का तुम्हें इंतज़ार बाक़ी है सुनार पढ़ चुके सारे, लुहार बाक़ी है
गोष्ठी के अंत में आनंदम् के संस्थापक जगदीश रावतानी जी ने सभी को सूचित किया कि जिस प्रकार आनंदम् के अंतर्गत संगीत के कार्यक्रम निरंतर आयोजित हो रहे हैं उसी प्रकार आनंदम् की योजना है कि नव वर्ष के आरंभ से ही हर माह में तीन चार अन्य गोष्ठियाँ आयोजित की जाएँ जिसके लिए उन्होंने उपस्थित विद्वजनों से इस संबन्ध में सुझाव मांगे। कुछ लोग इस पक्ष में थे कि लघुकथा गोष्ठी आयोजित की जाए तो कुछ का सुझाव था कि सामयिक विषयों पर चर्चा गोष्ठी आयोजित की जाए तथा कभी-कभी पुस्तक चर्चा के साथ-साथ किसी कवि का एकल काव्य पाठ भी आयोजित किया जाए। उन्होंने आश्वासन दिया कि इन सुझावों पर यथासंभव अमल किया जाएगा। अंत में सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी संपन्न हुई।
प्रथम "राजीव सारस्वत स्मृति सम्मान" सुप्रसिद्ध लेखक विभा रानी को आज के आयोजित कार्यक्रम में प्रदान किया गया। राजीव सारस्वत हिन्दुस्तान पेट्रोलियम में प्रबंधक (राजभाषा) के रूप में कार्य कर रहे थे। पिछले साल यानी 2008 के 26/11 के आतंकवादी हमले के वे शिकार हो गए। हादसे के वक़्त वे ताज होटल में कंपनी की तरफ से दी गई अपनी ड्यूटी पर थे। ताज होटल, ट्राइडेंट होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, नरीमन हाउस - इन सभी पर उस रात आतंकवादियों ने कहर ढाया था, जिसकी चपेट में सैकड़ों लोग आ गए थे। राजीव सारस्वत भी उनमें से एक थे। राजीव न केवल एक कुशल अधिकारी थे, बल्कि एक कुशल वक्ता, चुटकीदार कवि, अच्छे मंच संचालक भी थे। हाज़िरजवाबी भी उनकी बडी तेज़ तर्रार थी। मुंबई की कई साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से वे जुड़े हुए थे और उनकी गतिविधियों में नियमित रूप से उनकी शिरकत रहती थी।
उनकी स्मृति में उनके नियोक्ता हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने "राजीव सारस्वत स्मृति सम्मान" का गठन किया। इसके तहत हिन्दी को सृजनात्मक तरीके से आगे बढानेवाले को यह सम्मान दिए जाने की घोषणा की गई। इसी के तहत इस साल का प्रथम "राजीव सारस्वत स्मृति सम्मान" विभा रानी को 18 दिसम्बर, 2009 को आयोजित कार्यक्रम में हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के निदेशक (मानव संसाधन) श्री वी विजियासारधि के द्वारा प्रदान किया। सम्मान के तहत शॉल व प्रमाणपत्र के अतिरिक्त 10001/- की राशि का चेक दिया गया।
विभा रानी हिन्दी व मैथिली की सुपरिचित कथाकार, नाटककार, रंगमंच की कुशल अभिनेत्री व् सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं। हिन्दी व मैथिली में अबतक उनकी बारह से भी अधिक किताबें आ चुकी हैं। दस से अधिक नाटक वे लिख चुकी हैं। 'सावधान पुरुरवा', दुलारीबाई', पोस्टर', 'कसाईबाडा', 'मि. जिन्ना', 'लाइफ इज नॉट ए ड्रीम', 'बालचन्दा' जैसे नाटकों व 'चिट्ठी', 'धधक' जैसी फिल्मों में काम कर चुकी हैं। फिल्म्स डिविजन की फिल्में 'जयशंकर प्रसाद' व 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' का लेखन कर चुकी हैं। कई टीवी कार्यक्रमों के लिए वे वॉयसओवर का काम भी किया है। रेडियो की वे पुरानी आवाज़, नाटक कलाकार हैं और अभी भी रेडियो से कथाओं के माध्यम से जुडी हुई हैं। विभिन्न सामाजिक विषयों पर वे अपनी तंज शैली में छम्मकछल्लोकहिस ब्लॉग लिखती हैं। 'छुटपन की कविताएं' तथा 'बस यूं ही नहीं' उनके अन्य ब्लॉग हैं। इनके अलावा विभा 'नो योरसेल्फ बेटर', सेल्फ एक्सप्लोरेशन', टाइम मैनेजमेंट', गिल्ट मैनेजमेंट' जैसे बिहेवियरल प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन करती हैं और मुख्य धारा के बच्चों के लिए थिएटर वर्कशॉप आदि का भी आयोजन करती हैं।
सामाजिक गतिविधियों में भी विभा की सक्रिय सहभागिता रही है। उनके सामाजिक योगदान में सबसे प्रमुख है- वंचित वर्ग के बच्चों को शैक्षणिक सहायता उपलब्ध कराना, वृद्धाश्रमों के लिए कार्यक्रम आयोजित करना और उनसे भी महत्वपूर्ण है, मुंबई और पुणे की जेलों के बन्दियों और महिला बन्दियों के बच्चों के साथ कला, थिएटर, साहित्य आदि के माध्यम से उनके मध्य सार्थक हस्तक्षेप करना। वर्तमान में "निर्मल आनंद सेतु' कार्यक्रम के माधयम से वे लगातार बन्दियों के साथ संवाद कर रही हैं ताकि उनके जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आए. सम्मान ग्रहण करते समय विभा ने सम्मान के प्रति अपना आभार व्यक्त किया उअर कहा कि सम्मानस्वरूप मिली राशि का उपयोग समाज के विभिन्न वंचित वर्ग के लिए आयोजित कार्यक्रमों में किया जाएगा।
----अनुभूति की काव्य शृंखला से श्रोतागण मुग्ध-----
4 दिसंबर 2009 । नई दिल्ली साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी के दौरान २ दिसंबर को रविन्द्र भवन प्रांगण में कवियों ने कविताओं की बारिश की। इस काव्यपाठ में गगन गिल(हिन्दी), अनुभूति चतुर्वेदी (हिन्दी), शाहीना खान (अंग्रेजी), नुसरत जहीर(उर्दू) ने भाग लिया। गगनजी की "थोड़ी सी उम्मीद चाहिये" ,शाहीना खान की मानवाधिकार पर अंग्रेजी कविता तथा नुसरत जहीद की गजल और नज्म "शाखों पर दरख्तों को कुर्बान नहीं करते" , "ख्वाबों में ही कुछ शक्ल आए तो आ जाए", " "मोहब्बत अब नही होगी" को सराहना मिली।
सबसे अंत में हिन्दी कवयित्री अनुभूति चतुर्वेदी की कविताओं ने ऐसा समा बाँधा कि श्रोतागण भावविभोर हो गए। अनुभूति ने कहा कि मैं ऐसी कविता सुनाऊँगी जो गरमी पैदा कर दे। उनकी कविता "वर्तमान राजनीति के संदर्भ में"-
"बरगद उग आए हैं /पूरे शहर को ढक लिया है/बर्षों से जी रहे हैं /फिर भी जीना चहते हैं और /जडें पाताल तक पहुँच गई हैं /डालें लटक गई हैं झुककर /पत्ते झड गए हैं /पीली पडती टहनियाँ /उनकी बीमारियों का खुला दस्तावेज है /न जाने कितनों ने अभी तक ,गिद्ध और चीलें पाली हुई हैं / अपनी हवस से यह ताजे उगते हरे पेडों को भी /मुरझा देना चाहते हैं / इन्हें हरी नरम पत्तियाँ /बहुत पसंद हैं/ खास तौर पर एकदम मुलायम/अभी -अभी खिली कलियाँ /कलियाँ तो क्या / पूरे शहर को ही लील जाना चाहते हैं /भूखे भेडिए।
संबंध पर यथार्थ चित्रण "पिता और उनके मित्र" कविता में ----
घर फोन किया था -पिता के स्वास्थ्य के लिए / भाभी ने बताया /थीक तो हैं लेकिन अभी भी कुछ -कुछ भूल जाते हैं / माँ भी अस्वस्थ रहती हैं -मैने पूछा/ क्या फोन आते हैं? /भाभी ने कहा ,थोडे-बहुत/ यों भी हमने फ़ोन कमरे से हटा दिया है/अच्छा किया ? / और ये फोन कम कैसे हो गए- मैंने पूछा/ भाभी बोली..../सभी ने पापा से अपने काम निकाल लिए / सारे रहस्य जान लिए मित्र बनकर/ अब उनको क्या लेना देना उनके स्वास्थ्य से / बात कितनी सही कही भाभी ने / सच है कि स्वार्थ का ही दूसरा रूप / रह गए हैं संबंध।
नए युग का विद्रूप चेहरा कुछ इस तरह प्रस्तुत किया अनुभूति ने- दस्तक:इक्कीसवीं सदी
इक्कीसवी सदी की घोषणा /किसी बिगुल से नहीं /किसी नगाडे की थाप से नहीं /केवल जलती हुइ आग / बिषैला एटमी धुआँ /बिलखते भूखंड /स्वागत करते हुए उपस्थित हुए / एक कारवाँ इंटरनेट और/ परमाणुओं का / जाल की तरह बिछ गया / युद्ध के मौके का फायदा ले / किए दनादन वार/ खत्म हुए नगर के नगर / हरी -भरी बस्तियाँ ,जंगल/ कब्रिस्तान में बदल गए / किस्मत से एक बूढा बच गया / अचरज से देखने लगा / यह सभी दृश्य / और सहसा बोल उठा ../सचमुच मैं नरक में हूँ।
अनुभूति ने विदूषक को काव्य रूप में इस तरह प्रस्तुत किया--
तेवर क्यों बदल रहे हो ?/ क्यों अपने आप को मथ रहे हो?/मथ लो तब तक / जब तक कि जड ना हो जाओ/ एक बिदूषक से लग रहे हो / इन बदलती मुद्राओं में/ अब तो मैं सभी नाटकीय मुद्राओं का / आनंद लेती हूँ ।
अपनी कविता के माध्यम से सूर्य को आगाज किया अनुभूति ने-
यह भीगी हुई चादर हटाकर /अपनी प्रचंड उष्मा के साथ सामने आओ/ हे सूर्य! /और मुझे आलिंगनबद्ध कर लो /विश्व ने कब गर्भ दिया है / किसी वसुन्धरा को / सिर्फ छला है , बाँटा है ,रौंदा है/बीघा-बीघा मूल्य ,बीघा- बीघा स्वामित्व/ ये व्यापारी , ये ग्राहक क्या मुझे प्रेम देंगे? / हे सूर्य, बाहर निकलो इन श्रावणी परदों से / और अपने प्रचंड प्रकाश में / मुझे रोम - रोम नहला दो / छुओ मुझे अपनी प्रेम उष्मा से /और पूरे विश्व के सामने /अंकुरित करो मेरे स्वप्न शिशु।
अनुभूति की कविता "बेटे के लिए"
बेटा बोलने लगा है / बात करता है इस नए संसार की / जिसे वह धीरे -धीरे समझ रहा है/ पूछता है सवाल / फ़ुटबॉल, कुश्ती, समाज, कंप्यूटर/और आतंकवाद के संबंध में / इतनी कम उम्र में वयस्कों सी बुद्धि/ क्या वह उम्र से बहुत पहले ही , सब कुछ परखना चाहता है? / उसको जबाब न देने पर / और अपनी व्यस्तताओं में / मैं भूल जाती हूँ कि वह गुस्से में तोड फोड कर / फर्श को तोड- मरोड देगा/ फौलादी बन रहा है बेटा !
अनुभूति ने "सृजन" शक्ति को अनोखे रूप में प्रस्तुत कर वाहवाही बटोरी-
हजारों खून के कतरे गिरकर/ बनते हैं शब्द/और एक खूनी नदी में / मथकर / डूबकर / होता है सृजन।
संक्षेप में कहा जाय तो अनुभूति ने अपनी कव्य प्रतिभा से सबों को प्रभावित किया क्योंकि उन्होने समसामयिक विषयों को बखूबी रूप में प्रस्तुत किया । अनुभूति चतुर्वेदी का सीधा सरोकार साहित्य और संस्कृति से रहा है। वह हिन्दी के विख्यात कवि , लेखक पद्मश्री जगदीश चतुर्वेदी की सुपुत्री हैं। अनुभूति साहित्य जगत में विगत ३० बर्षों से लिख रही हैं। उनके चार कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक उपन्यास हैं। उनकी कृतियों पर कई राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। अपनी संस्था पल्लवी आर्ट्स के द्वारा अनेक कवि, लेखक, पत्रकार, चित्रकार, नर्तक, गायक, मूर्तिकार के कई पीढ़ियों को जोडने का काम कर रही हैं। इसके अतिरिक्त ओडिसी में पिछले 22 बर्षों से वह साधनारत हैं। अपने नृत्य का उन्होने देश-विदेश में सफल प्रदर्शन किया है। इराक के बेबिलोन सम्मेलन में चित्रकार,कवियों को लेकर वह भरत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। लंदन में दो बार भारत के साहित्य, संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया है।
--------गोपाल प्रसाद संपादक, समय दर्पण mobile: 9289723145 email gopal.eshakti@gmail.com website: www.samaydarpan.com
मुम्बई हेमंत ऋतु की मध्यम ठण्ड में, नीली आभा लिए पहाड़ी के पास, 05 दिसंबर 2009 की शाम, मुम्बई अणुशक्ति नगर चेम्बूर में सबरस साहित्यिक समूह ने एक काव्य गोष्टी का आयोजन किया| इस गोष्ठी के कुछ दृश्य-
मुख्य अतिथि- श्री मनोज कुमार व परिवार (लखनऊ से) श्री चतुर्वेदी (मुम्बई अणुशक्ति नगर में वैज्ञानिक) श्री अविनाश वाचस्पति (नई दिल्ली से)
आयोजक- सबरस साहित्यिक समूह, मुम्बई अणुशक्ति नगर, चेम्बूर संचालक- श्री कुमार जैन व्यवस्थापक- श्री विपुल लखनवी, कवि कुलवंत सिंह (मुम्बई अणुशक्ति नगर में वैज्ञानिक)
कार्यक्रम की शुरूवात- शाम ढलते-ढलते, 6 बजे कार्यक्रम की शुरूआत माँ शारदा के समक्ष मुख्य अतिथिगणों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुयी| संचालक महोदय ने देवी को माल्यार्पण किया| मुख्य अतिथिगणों का सम्मान, विपुल लखनवी ने उपहार देकर किया| श्रीमती शकुन्तला शर्मा ने अपनी शारदा वन्दना से देवी को नमन कर कविता पाठ की शुरूआत की|
कविता पाठ- कविता पाठन एक अद्भुत गति से बढ़ता चला गया| श्रीमती अलका पाण्डेय ने अपनी नारी विशेष रचना से नारी जाति का गुणगान किया| अवनीश तिवारी ने आर्थिक मंदी पर अपनी दो रचनाओं से काव्य गोष्टी को समसामयिक रूप देने का प्रयास किया| नंदलाल थापर जी ने अपनी पंजाबी रचना को गाकर "मक्के की रोटी और सरसों के साग" की अमिट स्मृतियों को ताजा किया| गजलों की श्रेणी में, स्पर्श देशाई, सुरिंदर रत्ती और संचालक महोदय कुमार जैन ने रचनाएं प्रस्तुत की|
कुलवंत जी ने अपने गहरे अर्थ लिए मुक्तकों से वाह-वाह लुटी| जहां अपने राज को चलाने के लिए एक वर्ग हिन्दी विरोध करता है, वहीं एक ऐसा शख्स था जो अपनी मराठी में लिखी रचना को पढ़कर सांस्कृतिक संयोजन की मिशाल दे रहा था| मराठी रचनाकार दत्रातय शेतवादेकर ने अपनी मराठी रचना कही| कवयित्रियों की पंक्ति में श्रीमती शैली ओझा और श्रीमती मंजू गुप्ता ने रचना पाठ किया| दिल्ली से आये अविनाश वाचस्पति ने अपना व्यंग लेख पढ़ कर गोष्टी को विविध विधा पूर्ण बना दिया| आयोजन के मुख्य प्रबंधक विपुल लखनवी ने अपने ओजपूर्ण, व्यंगात्मक रचना "खादी" से माहौल में चेतना का संचार करने का सफल प्रयास किया| गोष्ठी की विशिष्टता संचालक की कुशल संचालन क्षमता से निखर गयी| सटीक, सार्थक और उपयुक्त पद्यात्मक टिप्पणियों से संचालक ने अंत तक गोष्ठी के बहाव की डोर को थाम कर एक सही दिशा दिया|
युवा कवि अवनीश एस॰ तिवारी व अन्य
कार्यक्रम का समापन- कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और मशहूर मंच कवि मनोज कुमार ने अपने शेर, ओजपूर्ण रचनाओं और अनुभवों से गोष्ठी को एक सफल निष्कर्ष प्रदान किया| अंत में लोगों ने रात्रि का भोजन साथ कर, मेल मिलाप से विदाई ली|
बाएं से प्रो. रमेश दवे, तेजेन्द्र शर्मा, ज्ञान चतुर्वेदी, मनोज श्रीवास्तव
भोपाल संस्कृति, साहित्य तथा ललित कलाओं के लिए समर्पित संस्था स्पंदन भोपाल द्वारा दिनांक 26 नवंबर 09 को स्वराज भवन, भोपाल में लंदन के प्रतिष्ठित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा की अब तक प्रकाशित संपूर्ण कहानियों के प्रथम खण्ड सीधी रेखा की परतें का लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर तेजेन्द्र शर्मा ने इस संग्रह से अपनी बहुचर्चित कहानी कैंसर का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, चिंतक तथा शिक्षाविद् प्रो. रमेश दवे ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात व्यंग्यकार डा. ज्ञान चतुर्वेदी उपस्थित थे। विशिष्ट अतिथि थे श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव, आयुक्त जनसंपर्क म.प्र.शासन।
इससे पूर्व संस्था के अध्यक्ष डा. शिरीष शर्मा तथा सचिव गायत्री गौड़ ने अतिथियों का स्वागत किया।
श्री मनोज श्रीवास्तव ने अपने लिखित आलेख का पाठ करते हुए तेजन्द्र शर्मा की कहानियों को ख़ालिस हिन्दुस्तानी कहानियां बताया। उनका मानना था कि तेजेन्द्र की कहानियां करुण हैं। उनके पात्र स्मृतियों में रहते हैं। मृत्यु की अनेक अंतरछवियां इन कहानियों में देखने को मिलती हैं।
डा. आनंद सिंह ने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा सामान्य कहानीकार नहीं हैं। वे इंटेलिजेण्ट और नॉलेजेबल कहानीकार हैं। वे घटनाओं का तार्किक चित्रण करते हैं। वे ऐसी पृष्ठभूमि तथा परिवेश के रचनाकार हैं जिसकी तुलना अन्य किसी रचनाकार से नहीं की जा सकती। वे अपनी कहानियों में महीन आध्यात्मिकता का सृजन करते हैं। उनकी कहानियों में मानवता का समग्र वेदना तरल रूप में काम करती है। तेजेन्द्र शर्मा के कहानी पाठ करने के नाटकीय ढंग की भी उन्होंने तारीफ़ की।
मुख्य अतिथि डा. ज्ञान चतुर्वेदी ने कहानी की परम्परा को विस्तार से रखा। प्रेमचन्द से लेकर नये कहानीकारों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने प्रत्येक धारा की विशिष्टताओं को रेखांकित किया। डा. ज्ञान चतुर्वेदी के अनुसार कहानी में किस्सागोई तथा भाषा की कलात्मकता तथा सौन्दर्य बोध होना चाहिये। तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों में ये तत्व हैं। उन्होंने आगे कहा कि कैंसर एक बड़ी कहानी बनते बनते रह गयी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. रमेश दवे ने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा की कहानियां लोग और रोग के बीच कंट्राडिक्शन को सामने लाती हैं। उनकी कहानियां मृत्यु का बोध करवाती हैं। कैंसर कहानी हो या अन्य इनमें वैकल्पिक जीवन उभर कर आता है। कहानियां जो व्यक्ति और परिवार की संवेदना को लोक संवेदना में बदल देती हैं। कैंसर जैसी कहानियों में आई करुणा को ट्रांसफ़ॉर्म कर देना रचनात्मक लेखक का फ़र्ज़ बनता है। तेजेन्द्र अपनी कहानियों में मानसिक द्वन्द्वों को बख़ूबी निभाते हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत है भाषा का प्रयोग।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए उर्मिला शिरीष ने तेजेन्द्र शर्मा के व्यापक अनुभव जगत की बात कही। कार्यक्रम में अन्य गणमान्य अतिथियों के अतिरिक्त राजेश जोशी, हरि भटनागर, वीरेन्द्र जैन, राजेन्द्र जोशी, मुकेश वर्मा, स्वाति तिवारी, आशा सिंह तथा अल्पना नारायण भी उपस्थित थे।
‘समझ का माध्यम’ के मुद्दे पर एनसीईआरटी की गोष्ठी में रखे गए ये विचार
17 दिसम्बर, 2009 । नई दिल्ली एनसीईआरटी के भाषा विभाग ने समझ का माध्यम: शृंखला की समीक्षा पर 16 दिसम्बर 2009 को नई दिल्ली में एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन किया।
बच्चों की समझ के माध्यम को ध्यान में रखते हुए इस गोष्ठी में शिक्षक की तैयारी, अकादमिक और प्रशासनिक तैयारी तथा सामाजिक तैयारी और मीडिया की भूमिका संबंधी मुद्दों और चुनौतियों पर चर्चा हुई। गोष्ठी की शुरूआत करते हुए प्रो. कृष्ण कुमार, निदेशक एनसीईआरटी ने कहा कि पढना लिखना सीखने की पूरी प्रक्रिया के केन्द्र में भाषा है। भाषा का विस्तार अन्य विषयों के साथ जुड़ने से होता है। इसलिए सीखने सिखाने की प्रक्रिया में बच्चे की समझ कैसे और किस भाषा में बनती है इस पर ध्यान देना होगा।
अकादमिक तैयारी को ध्यान में रखते हुए श्री रोहित धनकर ने कहा कि हमें भाषा सीखने से जुडे़ हिन्दी में कई तरह के शोध करने की ज़रूरत होगी। ये शोध स्थानीय सर्दभों को ध्यान में रखते हुए किये जाने चाहिए।
शिक्षक की तैयारी पर बल देते हुए प्रो. अनीता रामपाल ने कहा कि हमें शिक्षक प्रशिक्षण संबंधी पाठ्यक्रमों मे बड़े स्तर पर बदलाव करना होगा। अभी तक पाठ्यक्रमों में भाषा समस्या के रूप में पढ़ी जाती रही है। इस मानसिकता को पूरी तरह उलटते हुए सेवापूर्व और सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों मे हिन्दी भाषा से संबंधित भ्रान्तियों का भी निराकरण करना होगा।
प्रो. अरूण कमल ने सामाजिक तैयारी और मीडिया की भूमिका पर बल देते हुए कहा कि अंग्रेजी ही सफलता का एकमात्र साधन नही हैं, यह बात हमें अभिभावकों और समुदायों तक पहुँचाना ही होगा। इसके लिए हमें मीडिया के साथ मिलकर एक योजना के तहत अभिभावकों और समुदाय के साथ लगातार संवाद करना होगा।
समापन सत्र में इस बात पर विशेष चर्चा हुई कि उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए समझ का माध्यम संबंधी अवधारणा को विश्व विद्यालयों तक पहुँचाना होगा। इसके लिए पढना लिखना सीखने के साथ-साथ परीक्षा के माध्यम के रूप में भी हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को शामिल करना होगा।
इस चर्चा/परिचर्चा में विभिन्न विश्व विद्यालयों और संस्थाओं से आए शिक्षाविद - एस. रघुनाथन, एच. के. दीवान, शुभा राव, अपूर्वानन्द, मनीन्द्र नाथ ठाकुर,, कीर्ति जयराम, प्रेमपाल शर्मा, राजेश भूषण, शारदा कुमारी, ज्ञानदेव त्रिपाठी तथा एनसीईआरटी के रामजन्म शर्मा, संध्या सिंह, कीर्ति कपूर तथा ए. के मिश्रा इत्यादि शामिल हुए।
इससे पहले एनसीईआरटी इस शृंखला को पटना, वाराणसी और उदयपुर में आयोजित कर चुकी है। दिल्ली में आयोजित यह गोष्ठी उनकी समीक्षा थी।
भोजपुरी साहित्यिक-सांस्कृतिक मंच, जे.एन.यू., नई दिल्ली
भोजपुरी के प्रख्यात नाटककार भिखारी ठाकुर के जन्म-दिवस पर संगोष्ठी
विषय:- "भिखारी ठाकुर और भोजपुरी समाज"
आमंत्रित वक्ता:- प्रो० केदारनाथ सिंह (प्रख्यात कवि) प्रो० मैनेजर पाण्डेय (प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक) प्रो० गोपेश्वर सिंह ( दिल्ली विश्वविद्यालय ) श्री संजीव (कार्यकारी संपादक,हंस) डा० चन्द्रदेव यादव (जामिया मिल्लिया इस्लामिया,नई दिल्ली) डा० केदार चौधरी (र.सि.कृ.महाविद्दालय,मैइल,देवरिया ,उ०प्र०)
शोध-पत्र प्रस्तुतिकरण:- डा० धनंजय सिंह - भिखारी ठाकुर की रचना मे जन चेतना का स्वर श्री प्रमोद कुमार तिवारी - भिखारी ठाकुर की कविता और भोजपुरी समाज श्री मृत्युंजय प्रभाकर - भिखारी ठाकुर के नाटक और भोजपुरी लोक जीवन
स्थान:- समिति कक्ष , भाषा,साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, जे.एन.यू., नई दिल्ली दिनांक:- 18-12-2009 समय:- सुबह 10 बजे
एनसीईआरटी के भाषा विभाग ने ‘समझ का माध्यम’ परिसंवाद शृंखला की शुरुआत की है। इस परिसंवाद शृंखला की शुरुआत पटना में (27-28 अगस्त 2008) हुई थी। दूसरा कार्यक्रम वाराणसी में (19-20 नवंबर 2008) और तीसरा कार्यक्रम उदयपुर में 5-6 फरवरी, 2009 हुआ था। इन तीनों कार्यक्रमों में देश के जाने-माने शिक्षाविद, विषय-विशेषज्ञ, राज्य शैक्षिक संस्थान और बोर्ड के सदस्य के साथ-साथ देश के कोने-कोने से आए अध्यापक शामिल हुए और विचार रखे।
इन परिसंवादों से यह बात निकलकर आई कि बच्चों की समझ बनाने के लिए माध्यम के रूप मे उनकी अपनी भाषा, बहुभाषिक शिक्षा और भाषाओं में संवाद का होना जरूरी है।
आज़ादी के बाद के पिछले सारे शिक्षा संबंधी दस्तावेजों में भी मातृभाषा को समझ के माध्यम (खासतौर से प्राथमिक शिक्षा) के रूप में लागू किए जाने की बात कही गई और बच्चों की समझ में सहायक उनकी अपनी भाषा, उनकी स्वतंत्रा अभिव्यक्ति को महत्व दिया गया। लेकिन आज लगभग 60 वर्षों बाद भी ऐसा पूरी तरह न हो सका। एक ओर घर की भाषा और स्कूल की भाषा में अंतर बढ़ता चला गया तो दूसरी ओर अंग्रेज़ी सहित भारतीय भाषाओं के बीच संवाद भी टूटा। मानसिक बोझ इस कदर बढ़ा कि बच्चों की अपनी समझ, अपनी अभिव्यक्ति कहीं दब कर रह गई। इसीलिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2005) में इस बात को पुरजोर तरीके से पिफर से कहने की जरूरत पड़ी कि बच्चों की घर की भाषा स्कूल में भी उनकी समझ का माध्यम बने ताकि बच्चे रटने की बजाय समझकर पढ़ने की दिशा में आगे बढ़ें। शिक्षा उनके लिए बोझ न बनकर एक आनंददायी अनुभव बने।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए एन सी ई आर टी के भाषा विभाग ने एक पहल की और शिक्षाविदों और अध्यापकों के साथ मिलकर देश भर में एक बहस चलाई। यह बहस पटना, वाराणसी और उदयपुर में दो दिवसीय परिसंवाद के रूप के आयोजित हुई। बच्चों की अपनी भाषा ही उनकी समझ का माध्यम हो सकती है - इस बात पर सबकी सहमति भी बनी। पर इसमें सबसे बड़ी समस्या क्रियान्वयन की है। इन गोष्ठियों से उभरकर यह बात भी आई कि इस दिशा में एक व्यापक तैयारी की ज़रूरत होगी, न केवल अकादमिक बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक भूमिका को लेकर एक तैयारी करनी होगी।
इस कार्यक्रम में प्रो. कृष्ण कुमार, प्रो. अनिता रामपाल, प्रो. अरूण कमल, श्री रोहित ध्नकर, डॉ. एच. के दिवान, प्रो. राजेश सचदेवा, प्रो. रामजन्म शर्मा, प्रो. ए. के . मिश्रा, डॉ. संध्या सिंह, डॉ. कीर्ति कपूर, एनसीईआरटी, एससीईआरटी, विभिन्न बोर्ड के सदस्य तथा शिक्षक और शिक्षक प्रशिक्षक शामिल होगें।
डॉ. हरिवंशराय बच्चन की 102वीं जयंती की पूर्व संध्या पर 26 नवंबर 2009 को सूरीनाम में भारत के राजदूतावास ने पारामारिबो स्थित भारतीय सांस्कृतिक केंद्र में "एक शाम डॉ. हरिवंशराय बच्चन के नाम" कायर्क्रम आयोजित किया गया, कार्यक्रम का आरंभ संगीत छात्रों ने सरस्वती वंदना से किया जिसका निर्देशन संगीत अध्यापिका श्रीमती मधुमिता बोस ने किया। भारतीय दूतावास की हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी श्रीमती भावना सक्सैना ने डॉ. हरिवंशराय बच्चन के जीवन व रचनाओं पर प्रकाश डाला। छायावाद के प्रमुख कवि को जीवन संघर्ष का कवि बताते हुए उन्होंने कहा कि बच्चन जी सिर्फ मधुशाला के ही कवि नहीं वह आज के युग को भी यह चेतना प्रदान करते हैं कि विकास का मार्ग हमें स्वयं बनाना है; और इस कार्यक्रम का उद्देश्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन को श्रद्धांजली अर्पित करने के साथ साथ सूरीनाम के हिंदी प्रेमियों को साहित्य रचना की ओर प्रेरित करना भी है। 25 नवंबर 2009 को सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था के आठ वर्ष पूरे होने व उस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम पर बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि सूरीनाम में साहित्य रचना हो तो रही हे किंतु प्रकाशन के अभाव में विश्व तक पहुँच नहीं पा रही, इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
इस कायर्क्रम में भारत के राजदूतावास के द्वितीय सचिव व चाँसरी प्रमुख, श्री अरुण कुमार शर्मा, सूरीनाम हिंदी परिषद के अध्यक्ष, श्री हरनारायण जानकीप्रसाद, सचिव श्री भोलानाथ नारायण, और परीक्षा समिति के अध्यक्ष पंडित पाटनदीन भी उपस्थित थे।
कायर्क्रम में हिंदी छात्रों ने डॉ. हरिवंशराय बच्चन की कविताओं का वाचन किया। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती और जो बीत गई सो बात गई कविताएँ बहुत पसंद की गईं।
सूरीनाम हिंदी परिषद के सचिव श्री भोलानाथ नारायण ने भी डॉ बच्चन के काव्य और भाषा पर चर्चा की और कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी व्यक्तियों से ङिंदी साहित्य से जुड़ने का आग्रह किया।
कार्यक्रम का अंत द्वितीय सचिव श्री अरुण कुमार शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
पटना पुस्तक मेला में वरिष्ठ पत्रकार, कथाकार हरीश पाठक की पुस्तक ‘त्रिकोण के तीनों कोण’ का लोकार्पण करते हुए ख्यातिलब्ध साहित्यकार चित्रा मुद्गल ने रचनाकारों से कहा कि ‘कम लिखो पर वह लिखो जो लिखना चाहिए’। एक लेखक के लिए यह जरूरी है कि वह उन समस्याओं को उठाए और समाज के सामने लाए जो उसके आसपास व्याप्त है। समाज में छिपी खामियों को उजागर करना रचनाकार के साहस का प्रतीक है। हरीश पाठक की रचना में वह आग है। उन्होंने कहा कि मेरे सीने में न हो/ तेरे सीने में सही/ हो कहीं भी आग पर वह आग लेकिन आग होनी चाहिए। त्रिकोण के तीनों कोण में वह आग दिखाई देती है। आम जनता के भीतर आज न्यायपालिका, विधायिका एवं कार्यपालिका से न्याय की उम्मीद कहीं खो गई है। यह किताब जनता की उस व्यथा के कुरूप और वीभत्स रूप को उजागर करती है जिसमें आज की संवेदनहीन समाज एक जलती हुई महिला को देखकर भी मूक तमाशबीन बना रहता है। उन्होंने कहा कि त्रिकोण का चौथा कोण लेखक स्वयं है। लेखक पत्रकारिता में भी गुंडों और दलालों के बढ़ते वर्चस्व पर बेबाकी से टिप्पणी करता हैं। यह लेखक के असीम साहस का परिचायक है जो सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् की झलक प्रदान करती है। पुस्तक का विमोचन करते हुए उन्होंने कहा कि उम्मीद करती हूँ कि इस किताब का असर समाज के तीनों स्तंभों पर जरूर पड़ेगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार तथा श्रम विभाग के प्रधान सचिव श्री व्यास जी ने किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि पुस्तक समाज व देष की चर्चा करती है। लेखक जो कहना चाहता है वह सारा कुछ सामने आ जाता हैं। इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता के रूप में अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कथाकार, आलोचक डॉ॰ कलानाथ मिश्र ने कहा कि त्रिकोण के तीनों कोण समाज को आईना दिखाता है तथा उसकी त्रिआयामी तस्वीर उकेरता है। लेखक पत्रकारिता कर्म और साहित्य के बीच की दूरी को कम कर दोनों के बीच एक संतुलन बनाकर चलता है जो आज की आवश्कता है। इस अवसर पर कथाकार जियालाल आर्य, लेखक शैलेष्वर सती प्रसाद, डॉ ध्रुव कुमार ने भी पुस्तक के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन नईधारा के संपादक डॉ शिवनारायण ने किया तथा अतिथियों का स्वागत प्रभात प्रकाशन के निदेषक श्री पीयूष कुमार ने किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय सहारा के यूनिट मैनेजर मृदुल बाली, श्रीमती कमलेश पाठक, पटना पुस्तक मेला के सचिव श्री ए.के.झा, साहित्यकार श्री रिपुदमन सिंह, पूर्व कुलपति श्री अभिमन्यु सिंह, ए.एन. नन्द, मीरा मिश्र समेत बिहार के प्रमुख बुद्धिजीवी, साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे।
भगत सिंह पर चर्चा और प्रेमचंद सहजवाला की पुस्तक का लोकार्पण सम्पन्न
पुस्तक का अनावरण करते भारत भारद्वाज, प्रो॰ चमन लाल, विभूति नारायण राय, हिंमाशु जोशी, साथ में खड़े हैं लेखक प्रेमचंद सहजवाला
नई दिल्ली । 12 नवम्बर हिन्द-युग्म ने गाँधी शांति प्रतिष्ठान सभागार में प्रेमचंद सहजवाला द्वारा लिखित पुस्तक 'भगत सिंहः इतिहास के कुछ और पन्ने' का विमोचन-कार्यक्रम आयोजित किया। पुस्तक का विमोचन प्रसिद्ध साहित्यकार और महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायाण राय ने किया। इस कार्यक्रम में भगत सिंह विषय के घोषित विशेषज्ञ प्रो॰ चमन लाल, वरिष्ठ कथाकार हिमांशु जोशी और वरिष्ठ आलोचक भारत भारद्वाज ने 'बदलते दौर में युवा चेतना और भगत सिंह की परम्परा' विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में अपने-अपने विचार रखे।
उल्लेखनीय है कि यह पुस्तक हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया से पहली ऐसी पुस्तक है जो किसी खास विषय पर केन्द्रित है और पहले ब्लॉग पर सिलसिलेवार ढंग से प्रकाशित है। इस पुस्तक के सभी 13 अध्याय पहले हिन्द-युग्म पर प्रकाशित हैं, जिनमें भगत सिंह के जीवन, जीवन दर्शन और गाँधी के साथ इनके मतांतर को रेखाकिंत किया गया है। प्रेमचंद सहजवाला ने इसे पुस्तक रूप देने से पहले सभी अध्यायों को संशोधित और परिवर्धित भी किया है।
प्रेमचंद सहजवाला ने बताया कि उन्होंने किस तरह से भगत सिंह पर कलम चलाने का विचार बनाया। प्रेमचंद ने कहा कि 1990 में भारत में हुए कई राजनैतिक-धार्मिक और साम्प्रादायिक उथल-पुथल ने उन्हें कथा-कहानियों से अलग भारतीय इतिहास को परखने के लिए प्रेरित किया। प्राचीन भारतीय इतिहास से होते-होते ये आधुनिक भारतीय इतिहास तक पहुँचे और गाँधी-नेहरू-भगत सिंह की शौर्यगाथा में उलझ गये और यह खँगालने की कोशिश करने लगे कि भगत सिंह आखिर क्या हैं!
हिन्द-युग्म ने विमोचन कार्यक्रम के साथ 'बदलते दौर में युवा चेतना और भगत सिंह की परम्परा' विषय पर एक गोष्ठी भी आयोजित किया था, जिसमें जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र के अध्यक्ष और भगत सिंह से संबंधित कई पुस्तकों और दस्तावेज़ों के संपादक प्रो॰ चमन लाल, मशहूर कथाकर हिमांशु जोशी, पुस्तक-वार्ता के संपादक और वरिष्ठ आलोचक भारत भारद्वाज और इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विभूति नारायण राय अपने-अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किये गये थे।
इस विषय पर सबसे पहले हिमांशु जोशी ने अपने विचार रखे। हिमांशु जी ने बताया कि आज़ादी हमें तीन तरह से मिल सकती थीं- गाँधी जी के तरीके से, दूसरा भगत सिंह-चंद्रशेखर आज़ाद का और तीसरा सैन्य विद्रोह यानी सुभाष चंद्र बोस से। ये तीनों शक्तियाँ मिली और भारत आज़ाद हो गया। इन्होंने आगे कहा कि भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे बल्कि एक क्रांतिदर्शी थे।
भारत भारद्वाज ने इस बात का खुलासा किया कि एक बलिदानी ने भगत सिंह के लिए अपनी कुर्बानी दी। भगत सिंह के खिलाफ इकबालिया गवाही देने वाले फणीन्द्रनाथ घोष को मारने वाले बैकुंठ शुक्ल को फाँसी दी गई थी।
मुख्य अतिथि विभूति नारायण ने कहा कि भगत सिंह होना एक खास तरह का सपना देखना है। भगत सिंह केवल उत्साही, भावुक या देशभक्त किस्म के युवा नहीं थे, बल्कि भगत सिंह एक दर्शन, एक विचार का नाम है। सहजवाला जी ने इस पुस्तक को लिखकर हिन्दी में एक कमी को पूरा किया है। सहजवाला जी ने बहुत से किताबों में बिखरे पड़े तथ्यों और बातों को एक जिल्द में समेटा है।
इसके बाद कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो॰ चमन लाल को संचालक प्रमोद कुमार तिवारी जी ने आवाज़ दी। प्रो॰ चमन लाल ने लगभग 55 मिनटों में अपनी बात रखी। चमन लाल ने कहा कि भगत सिंह के जीवन के अनेक पहलू हैं, जिनपर हम घंटों बात कर सकते हैं। इनके वक्तव्य की कुछ मुख्य बातें-
1)भगत सिंह ने 5 साल से लेकर साढ़े 23 साल की उम्र तक (लगभग 18 वर्ष तक) पूरी तरह से सजग और चैतन्य इंसान की तरह जिया। 2) भगतसिंह का ताल्लुक पूरी तरह से वहाँ से रहा है जो आज पाकिस्तान में है। 3) 1922 में जिस चंद्रशेखर आज़ाद ने 'महात्मा गाँधी की जय' कह-कह कर अपनी पीठ पर 30 बेंत खाये थे और ऊफ तक नहीं की थी, भगत सिंह के साथ सत्याग्रह आंदोलन से इसलिए नाता तोड़ लिया था क्योंकि गाँधी जी ने 22 पुलिस वालों की मौत से अचानक अपना आंदोलन वापिस ले लिया था। 4)भगत सिंह के लिए देश का मतलब देश की मिट्टी से, इसके शहर-गाँव से नहीं था, बल्कि देश की जनता से था। इसीलिए भगत सिंह मानते थे कि देश पर चाहे कालों का राज रहे या गोरों का, जब तक यह व्यवस्था नहीं बदलेगी तब तक भारत की हालत में सुधार नहीं होगा। भगत सिंह पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनमें सबसे पहले सामाजिक चेतना जागी थी। इनसे पहले के क्रांतिकारी 'भारत माता की जय' तक सीमित थी। 5) गाँधी जी का रास्ता अंग्रेजों को बहुत अच्छा लगता था, क्योंकि गाँधी जी अंग्रेजों के शोषण को खत्म करने के लिए कोई कोशिश नहीं कर रहे थे। अंग्रेज़ों को मालूम था कि यदि भगत सिंह ज़िंदा रहा, या भगत सिंह का विचार ज़िंदा रहा तो यहाँ की जनता हमसे शोषण का हिसाब माँगेंगी। इसीलिए अंग्रेजों ने भारत को विभाजन का रास्ता का दिखाया। विभाजन का फायदा अंग्रेजों को हुआ, अमेरिका को हुआ। विभाजन का जिम्मेदार जिन्ना नहीं था। विभाजन का जिम्मेदार ब्रिटिश थी। यह अंग्रेज़ों की चाल थी। जिन्ना को अकेले दोष देना एक अंधराष्ट्रभक्त है। नेहरू, पटेल सभी जिम्मेदार थे। गाँधी कुछ हद जिम्मेदार इसलिए भी हैं क्योंकि इन्होंने उस समय कुछ नहीं बोला जब उन्हें बोलना चाहिए था। गाँधी यदि पटेल-नेहरू की सत्तालोलुपता को समझकर विभाजन को रोक लेते तो आज जितने महान हैं, उससे अधिक महान होते। 6) भगत सिंह ने एक महान काम यह भी किया कि सबकुछ अपनी डायरी में लिखकर रखा। जिससे आज भगत सिंह के वास्तविक दस्तावेज और असलियत हमारे सामने है। भगत ने फाँसी से मरने से पहले भी लिखा कि मेरे मरने के बाद क्या करना है। भगत सिंह पहला ऐसा क्रांतिकारी था, जो कहता था कि देश को आज़ाद होने के लिए मेरा मरना ज़रूरी है। भगत सिंह ने अपनी फाँसी खुद चुनी थी। 7) भगत सिंह 'बम-बारूद' के खिलाफ थे। वे कहते थे कि यदि पुलिस जनता पर प्रहार नहीं करेगी, तो जनता पर भी उन पर पत्थर नहीं फेंकेगी, पुलिस-स्टेशन को बम से नहीं उड़ायेगी। वॉयलेंस की शुरूआत हमेशा पुलिस/स्टेट/ब्रिटिश करती थी। 8) गाँधी जी और भगत सिंह की आज़ादी का फर्क यह है कि 1861 में अंग्रेज़ों का बना क़ानून आज भी हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में लागू है। भगत सिंह वाली आज़ादी हमें मिली होती तो कोई भी स्वाभिमानी देश कॉलोनियल क़ानून 1 दिन भी लागू नहीं रहने देता। 15 अगस्त 1947 से 1 दिन भी आगे भी ये कानून नहीं चलते। 9) हिन्दुस्तान में सबसे अधिक किताबें भगत सिंह पर लिखी गई हैं। 350 से अधिक किताबें जिनकी सूची मैं बना रहा हूँ, इनमें से पौने 200 से भी अधिक किताबें हिन्दी में है। भारत की लगभग हर भाषा में भगत सिंह के ऊपर किताबें हैं। हिन्दुस्तान में गाँधी और नेहरू को छोड़कर शायद ही कोई और नेशनल लीडर हो, जिनपर भारत की हर भाषा में किताबें हों। 10) सिंधी के मशहूर कवि शेख़ हयाज़ ने भगत सिंह पर सिंधी में काव्य-नाटक लिखा। 11) अंग्रेज़ों ने सबसे अधिक किताबें भगत सिंह पर बैन की।
इसके बाद आनंदम् संस्था के प्रमुख जगदीश रावतानी ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का धन्यवाद किया। मंच का संचालन युवा कवि प्रमोद कुमार तिवारी ने किया।
कार्यक्रम में अल्का सिंहा, युवा कवयित्री सुनीता चोटिया, हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी, वरिष्ठ कवि मुनव्वर सरहदी, वरिष्ठ शायर मनमोहन तालिब, परिचय-संस्था की प्रमुख उर्मिल सत्यभूषण, इस कार्यक्रम के संयोजक और युवा कवि रामजी यादव, कवि-लेखक रंजीत वर्मा, कामरेड पीके साही, सपर-प्रमख राकेश कुमार सिंह, कवयित्री ममता किरण इत्यादि उपस्थित थे। जो लोग इस कार्यक्रम में किसी कारणवश उपस्थित नहीं हो पाये थे, वे नीचे के प्लेयर से पूरा कार्यक्रम सुन सकते हैं।
यदि आप उपर्युक्त प्लेयर से ठीक तरह से नहीं सुन पा रहे हैं या अपनी सुविधानुसार सुनना चाहते हैं तो यहाँ से डाउनलोड कर लें। अन्य झलकियाँ-
सभागार के प्रवेश द्वार पर मुख्य अतिथि का स्वागत
दीप प्रज्ज्वलन के वक़्त प्रेमचंद सहजवाला के साथ हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी
उपस्थित श्रोतागण
अपने विचार रखते पुस्तक के लेखक प्रेमचंद सहजवाला
मुख्य अतिथि को स्मृति-चिह्न भेंट करते शैलेश भारतवासी
प्रो॰ चमन लाल को स्मृति-चिह्न भेंट करते कार्यक्रम के संयोजक रामजी यादव
हिमांशु जोशी को स्मृति-चिह्न भेंट करतीं अलका सिंहा
भारत भारद्वाज को स्मृति-चिह्न भेंट करतीं अनुराधा शर्मा
श्रोताओं से मुख़ातिब मुख्य अतिथि
अपना वक्तव्य पेश करते प्रो॰ चमन लाल
ईटीवी न्यूज से पुस्तक के बारे में बात करते प्रो॰ चमन लाल
सलूम्बर, 4 नवंबर। स्थानीय गांधीचैक में मंगलवार देर शाम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं केंद्रीय ग्रामीण एवं पंचायतराज मंत्री डॉ. सीपी जोशी ने साहित्यकार विमला भंडारी की दो पुस्तकों का लोकार्पण किया। एक पुस्तक हिन्दी भाषा में लिखित नाटक ‘‘मां! तुझे सलाम’’ एवं दूसरी राजस्थानी भाषा की पुस्तक ‘‘सत री सैनाणी’’ का लोकार्पण समारोह पूर्वक किया गया।
पुस्तकों की विषय-वस्तु: सलूम्बर की हाड़ीरानी का अनुपम त्याग, अद्भुत शौर्य और अद्वितीय बलिदान मेवाड़ की गरिमामयी परम्परा का एक अम्लान पुष्प रहा है। विमला भंडारी ने इस कृति के माध्यम से वीरांगना हाड़ीरानी के गौरवमयी इतिहास को जन-जन के समक्ष लाने का श्लाघनीय प्रयास किया है। मेवाड़, बूंदी व किशनगढ़ राजघरानों की संदर्भ सामग्री का उपयोग करते हुए 120 पृष्ठों का यह नाटक छः भागों में विभाजित है जिसमें 11 दृश्य समाहित है। लघु कलेवर में इस नाटक में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह, बूंदी, किशनगढ़ व सलूम्बर के राजघरानों की सांस्कृतिक विरासत से परिचय कराते हुए ऐतिहासिक पात्रों को बड़े संतुलन के साथ संयत भाव से गढ़ा है। 12 लोकगीत व 16 चित्रों की चित्रावली का समावेश कर लेखिका ने सर्वथा नया रूप दिया है। राजस्थान के ऐतिहासिक वातावरण को जीवन्त करने का सफल प्रयास है। कन्याभ्रूण हत्या जैसे घिनौने पापकर्म के विरोध में इतिहास का वर्तमान औचित्य को प्रासंगिकता लिए लेखिका ने यह दिखाने की कोशिश की है कि शिक्षा दीक्षा द्वारा बेटियां भी सौ पुत्रों से अधिक सार्थक एवं सुंदर कर्तव्य द्वारा दो वंशों का यश बढाती हैं। नाटक लेखन की प्राचीन परंपरानुसार चारण-चारणी के माध्यम से कथा प्रवाह बनाकर धर्मवीर भारती के ‘अंधायुग’ की याद ताजा होती हैं।
उदयपुर। 10 नवम्बर सूचनाएं संवेदनाओं को पोषित करती हैं और रक्त शिराओं की भांति सामाजिक हृदय के स्पंदन को गतिशील रखती है। यदि आज का मीडिया विज्ञापन के दबाव में अपनी देह को विखंडित कर रहा है तो यह पत्रकारिता के समक्ष बड़ा जोखिम है। सुपरिचित कवि-कथाकार शैलेय ने उदयपुर के माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के नवगठित मीडिया अध्ययन केन्द्र में ’पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार’ विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि अखबार आदमी का सबसे बड़ा दोस्त है जो सहकार का भाव पैदा करता है। यह हमें सजग-सतर्क बनाते हुए देश-काल-परिस्थिति का सही मूल्यांकन करने की शक्ति भी देता है। उन्होंने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी को वह संस्कार किये जाने की जरूरत है जिससे वह सामाजिक सरोकारों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सके। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (मान्य विश्वविद्यालय) द्वारा आयोजित पंचायत राज स्वर्ण जयन्ती समारोह के अन्तर्गत आयोजित इस व्याख्यान के मुख्य अतिथि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, उदयपुर केन्द्र निदेशक प्रो. अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि बाजार वाद और भूमण्डलीकरण के बीच से ही भूखमरी, रोजगार और सूचनाओं की बहसों ने जन्म लिया है। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि यह ऐसा समय है जब श्वेत-श्याम में चीजों का विभाजन पूर्णतः बेमानी हो गया है और परिदृश्य धुंधला गया है। उन्होने हालिया घटनाओं का उल्लेख कर बताया कि जब हमारी सहिष्णुताएं खतरे में हैं तब मीडिया को वह विवेकपूर्ण संस्कार देना होगा जो मनुष्यता के लिए आवश्यक है। प्रो. चतुर्वेदी ने मीडिया पाठ्यक्रमों को तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ समकालीन देश व समाज के अध्ययन से भी जोड़ने की आवश्यकता प्रतिपादित की। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार और ’प्रत्यूष’ के सम्पादक विष्णु शर्मा ’हितैषी’ ने पत्रकारों की युवा पीढ़ी का आह्वान किय की वह अपनी सामाजिक प्रतिबद्वता को चिन्हित करे ताकि पत्रकारिता के सरोकारों की सचमुच व्यापक प्रतिष्ठा सम्भव हो। हितैषी ने कहा कि विकृतियों के लिये केवल मीडिया को दोष देना अनुचित होगा क्योंकि बदलाव के लिये सबकी जिम्मेदारी साझी है। उन्होने उदाहरण देकर बताया कि बाजार के दबावों के बीच भी अपने सामाजिक सरोकारों को मीडिया ने चुनौती की तरह निभाया है। मानविकी संकाय अध्यक्ष प्रो. श्रीनिवासन अय्यर ने कहा कि क्षरण के विरूद्व अक्षर धर्म को अपनी भूमिका फिर से रेखांकित करनी होगी जिसे पत्रकारिता, शिक्षा और साहित्य की त्रिवेणी बनाती है। इससे पहले महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एन. के. पण्ड्या ने अतिथियों का स्वागत किया और मीडिया अध्ययन केन्द्र के समन्वयक डॉ. पल्लव ने विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो. भवानी शंकर गर्ग के संदेश का वाचन किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (मान्य विश्वविद्यालय) की कुलपति प्रो. दिव्य प्रभा नागर ने कहा कि सामाजिक सरोकारों वाली पत्रकारिता ने ही राजस्थान विद्यापीठ जैसी संस्थाओं को जन्म दिया है। उन्होने विश्वविद्यालय द्वारा मीडिया अध्ययन केन्द्र के प्रारम्भ को गौरवपूर्ण उपलब्धि बताते हुए कहा कि यहा होने वाला अध्ययन अध्यापन पत्रकारिता के सामाजिक सरोकारों को प्रगाढ़ करेगा। प्रो. नागर ने मीडिया के समक्ष अभावग्रस्त दुनिया की जरूरतों को उजागर करने की चुनौती बतायी। समारोह में प्रो. नागर ने केन्द्र द्वारा प्रकाशित परिचय पुस्तिका का विमोचन भी किया। संचालन केन्द्र की छात्रा मुक्ता व्यास ने किया। लोक शिक्षण प्रतिष्ठान के निदेशक सुशील कुमार ने आभार व्यक्त किया। समारोह में आकाशवाणी के निदेशक डॉ. इन्द्र प्रकाश श्रीमाली, बुनियादी शिक्षा के सम्पादक के. आर. शर्मा, डॉ. लक्ष्मी नारायण नन्दवाना, प्रो. सुरेन्द्र भाणावत, प्रो. पी. आर. व्यास सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, पत्रकार और विद्यार्थी उपस्थित थे।
हिन्दी व्यंग्य एवं आलोचना पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
लखनऊ, 30 नवम्बर। हिन्दी व्यंग्य साहित्यिक आलोचना की परिधि से बाहर है? इस विषय पर आज उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और माध्यम साहित्यिक संस्थान की ओर से अट्टहास समारोह के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी में यह निष्कर्ष निकला कि व्यंग्यकारों को आलोचना की चिन्ता न करते हुये विसंगतियों के विरूद्ध हस्तक्षेप की चिन्ता करनी चाहिये, क्योंकि वैसे भी अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं।
राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरूआत प्रख्यात व्यंग्यकार के.पी. सक्सेना की चर्चा से शुरू हुयी। श्री सक्सेना का कहना था कि हिन्दी आलोचना को अब व्यंग्य विधा को गंभीरता पूर्वक लेना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं है। व्यंग्य लेखन अपने उस मुकाम पर पहुंच गया है जिसमें राजनीति, समाज एवं शिक्षा जैसे सभी पहलुओं को अपने दायरे में ले लिया है अब वह किसी आलोचना का मोहताज नहीं है।
यह गोष्ठी राय उमानाथ बली प्रेक्षागार के जयशंकर प्रसाद सभागार में आयोजित की गयी थी जिसमें देश गिरीश पंकज, अरविन्द तिवारी, बुद्धिनाथ मिश्र, सुश्री विद्याबिन्दु सिंह, डा0 महेन्द्र ठाकुर, वाहिद अली वाहिद, अरविन्द झा, सौरभ भारद्वाज, आदित्य चतुर्वेदी, पंकज प्रसून, श्रीमती इन्द्रजीत कौर नरेश सक्सेना, महेश चन्द्र द्विवेदी, एवं अन्य प्रमुख लेखकों ने अपने विचार प्रकट किये। गोष्ठी का समापन माध्यम के महामंत्री श्री अनूप श्रीवास्तव के धन्यवाद प्रकाश से हुआ। इससे पूर्व संस्था के उपाध्यक्ष श्री आलोक शुक्ल ने आशा प्रकट की कि प्रस्तुत संगोष्ठी के माध्यम से व्यंग्य लेखन को उसका आपेक्षित सम्मान मिल सकेगा।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष और सुविख्यात व्यंग्यकार श्री गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्यकार लेखन करते रहें एक न एक दिन आलोचना उनकी ओर आकर्षित होगी। उन्होंने नये व्यंग्यकारों से आग्रह किया कि वे समाज की बेहतरी के लिये लिखते रहें और आलोचना की परवाह न करें।
अट्टहास शिखर सम्मान से कल नवाजे गये डा0 शेरजंग गर्ग का कहना था कि आज जितने भी व्यंग्यकार स्थापित हैं वे अपनी गंभीर लेखनी के कारण ही प्रतिष्ठित हैं। आलोचकों की कृपा पर नहीं हैं। कवि आलोचक नरेश सक्सेना ने नागार्जुन की व्यंग्य का जिक्र करते हुये व्यंग्य की शक्ति प्रतिपादित की।
हिन्दी संस्थान के निदेशक डा0 सुधाकर अदीब का कहना था अगर व्यंग्य लेखन में गुणवत्ता का ध्यान रखा जाय तो हमें आलोचना से घबराना नहीं चाहिये। श्री महेश चन्द्र द्विवेदी का कहना था कि हास्य और व्यंग्य अलग-अलग हैं इनको परिभाषित करने की आवश्यकता है। श्री सुभाष चन्दर जिन्होंने व्यंग्य का इतिहास लिखा है का कहना था कि व्यंग्य लेखन को दोयम दर्जे का साहित्य समझा जाता रहा है लेकिन हिन्दी के संस्थापक सम्पादक स्व0 बाल मुकुन्द गुप्त ने लिखा है कि मैंने व्यंग्य के माध्यम से लोहे के दस्ताने पहनकर अंग्रेज नाम के अजगर के मुंह में हाथ डालने का प्रयास किया था। आवश्यकता इस बात की है कि हम व्यंग्य के सौन्दर्य शास्त्र को समझें और आलोचना की समग्र पक्षों के अनुरूप व्यंग्य लेखन का विकास हो। हरिशंकर परसाई पुरस्कार से विभूषित सुश्री अलका पाठक ने कहा- व्यंग्य की आलोचना अनुचित है हम असंभव लेखन को भी संभव करके अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। श्री अरविन्द तिवारी का कहना था कि व्यंग्य के माध्यम से हम आम जनता का ध्यान तमाम विषयों पर दिला पाते हैं। श्री बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा- व्यंग्य कोई नयी विधा नहीं है विदूषकों की परम्परा रही है। व्यंग्य को निंदारस मानना गलत होगा। वास्तव में यथार्थ की विदू्रपता पर आक्रोश व्यंग्य के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। श्री गोपाल मिश्र का कहना था कि अच्छा व्यंग्य छोटा साहित्य होता है अतः इसे परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है।
डा॰ महेन्द्र कुमार ठाकुर का कहना था कि हम व्यंग्यकार हैं और हमें अपने साहित्यिक शिल्प को मजबूत करने की आवश्यकता है। श्री वाहिद अली वाहिद का कहना था कि व्यंग्य हमारी परम्परा में रहा है और नई पीढ़ी को इसे आगे बढ़ाना चाहिये। श्री रामेन्द्र त्रिपाठी का कहना था कि व्यंग्यकार मूलतः आलोचक ही है इसकी लोकप्रियता ही इसकी सफलता का मापदण्ड बनता है। श्री आदित्य चतुर्वेदी के विचार मे समाज के सुधार में व्यंग्य की प्रमुख भूमिका है। श्री भोलानाथ अधीर के विचार में लेखक का दायित्व है कि वह समाज की कमियों को उजागर करे और उन पर प्रहार करे इसके लिये व्यंग्य एक सशक्त माध्यम है।
अनाथ, गरीब बच्चे !!! कैसे होते होंगे उनके ख्वाब ! ख्वाहिशें क्या कहती होंगी सपनों में ! क्या माँ आती होगी ? एक चौकलेट उनकी आँखों में किस तरह अंगडाई लेता होगा ! अकेले नींद कैसे आती होगी ! ............................. प्रश्न ही प्रश्न .............जवाब किससे ? आइये हम अपना एक दिन उनके नाम कर दें....... क्या एक दिन बहुत महंगा होगा? .......................................................
अपराजिता कल्याणी एक दिन उन बच्चों के नाम कर रही हैं, जो अनाथ, गरीबी और लाचारी में अपना बचपन कहीं खो देते हैं। .......25 दिसम्बर से पहले सांता क्लॉज़ उनके लिए आ रहे हैं........जी हाँ, अपराजिता ने निमंत्रण दिया है। 24 दिसम्बर को सांता उनसे कहने आ रहे हैं 'आओ तुम्हें चाँद पे ले जाएँ'............
अपराजिता को इस कार्यक्रम को आयोजित करने का दायित्व इनके ही कॉलेज सिम्बॉयसिस इंस्ट्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड कम्यूनिकेशन ने सौंपा है। इस कार्यक्रम में अनाथ-गरीब बच्चों के उत्थान के लिए काम कर रही तीन गैरसरकारी संगठनों आश्रय इनीशिएटिव (150 बच्चों और 15 बड़ों सहित), SOS चिल्ड्रैन्स विलेज ऑफ इंडिया (168 बच्चों और 15 बड़ों सहित) और सरस्वती अनाथ शिक्षण आश्रम (50 बच्चों और 5 बड़ों सहित) ने भाग लेना स्वीकार किया है।
चूँकि यह पूरा कार्यक्रम अपराजिता अकेले कर रही हैं, इसलिए इन्हें आपके किसी भी प्रकार के सहयोग ( आर्थिक, या कोई उपहार) की बहुत ज़रूरत है। इस दिन को सफल बनाने के लिए दिल से अपना योगदान दें और उनके मासूम सपनों को हकीकत की बानगी दे जाएँ ।
यदि आप आर्थिक सहयोग देना चाहें तो निम्नलिखित में से किसी खाते में ऑनलाइन मनी ट्रांसफर करें-
खुश्बू प्रियदर्शिनी (Khushboo Priyadarshini) खाता क्रमांक.544302010003104 बैंक का नाम- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शाखा - विमान विहार, पुणे
या
खुश्बू प्रियदर्शिनी (Khushboo Priyadarshini) खाता क्रमांक. 30124854596 बैंक - भारतीय स्टेट बैंक शाखा- बोरिंग रोड, पटना
आप चाहें तो कार्यक्रम में उपस्थित होकर सहयोग राशि नगद भी जमा कर सकते हैं।
"आओ तुम्हे चाँद पे ले जाएँ... " दिनांक: 24 दिसम्बर 2009 समय: अपराह्न 3 बजे से रात्रि 9 बजे तक। स्थान: विट्ठ्लांजन मंगल कार्यालय, पुणे
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।। मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है। ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है।।
इन पंक्तियों से काव्यजगत और कविसम्मेलनी मंचों पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाकर लोकप्रियता के नये रिकार्ड कायम करने वाले युवा कवि और गीतकार डॉ. कुमार विश्वास ने जब खचाखच भरे एकेडेमी सभागार में माइक सम्हाला तो वातावरण मिश्रित भावों से भर उठा था। एक तरफ़ स्व.कैलाश गौतम की पुण्य तिथि के अवसर पर सहज ही उतर आयी उदासी का भाव सबके मन में बैठा हुआ था तो दूसरी ओर कैलाश जी की लिखी कविताओं के अनेक उद्धरण पूर्व वक्ताओं से सुनकर सभी श्रोता उनके विलक्षण कवित्व से आह्लादित भी थे।
कुमार विश्वास ने गौतम जी को याद करते हुए कहा कि कैलाश गौतम एक सच्चे और साहसी कवि थे। समाज की विडम्बनाओं को जिस हिम्मत और ताकत से व्यक्त करते थे वैसा बिरले लोगों में ही मिलता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कैलाश जी काव्यजगत में हमेशा अण्डरएस्टिमेटेड रहे।
अपनी कविताओं में उन्होंने आदमी की आम संवेदनाओं के विविध रूपों को प्रस्तुत किया। उनकी रूमानी कविताओं ने विशेषकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अपने अनेक प्रसिद्ध मुक्तक सुनाकार खूब तालियाँ बटोरी।
1. बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया
2. बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन
3. तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
4. पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
5. समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता
उन्होंने अपनी चुटीली व्यंग्योक्तियों से मीडिया और चैनलों पर प्रहार किया और कैलाश गौतम को याद करते हुए कहा कि कैलाश गौतम एक बड़े कवि हैं क्योंकि वे जिम्मेदारियों के बोध के कवि हैं। उन्होंने ग्लोबल विलेज की बात करते हुए कहा कि भारत में उपनिषदों में ग्लोबल विलेज की बात ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के रूप में बहुत पहले ही कही गयी है। उन्होंने अपने वक्तव्यों के माध्यम से समाज में फैली विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने देशभक्ति के जज्बे को प्रदर्शित करते हुए गीत पढ़ा-
शौहरत न अता करना मौला, दौलत न अता करना मौला। बस इतना अता कना चाहें, जन्नत न अता करना मौला।। शम्ए वतन की लौ पर, जब कुर्बान पतंगा हो। होठो पर गंगा हो हाथों पर तिरंगा हो।
उन्होंने अपनी लम्बी कविता ‘पगली लड़की’ के कुछ अंश भी सुनाए जो बहुत सराहे गये।
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है, जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसू के संग होते हैं, जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं, जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं, जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं, जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है, तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
इससे पहले कार्यक्रम का शुभारम्भ माता सरस्वती एवं स्व० श्री कैलाश गौतम जी के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ श्री रामकेवल जी, श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, डॉ० शिव गोपाल मिश्र, डॉ० कुमार विश्वास ने किया। इस अवसर पर सुधांशु उपाध्याय, प्रदीप कुमार, यश मालवीय एवं कैलाश गौतम जी के मित्र एवं सहयोगियों ने कैलाश गौतम जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करके भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
एकेडेमी के सचिव राम केवल जी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि स्व० कैलाश गौतम जी की स्मृति में आयोजित यह कार्यक्रम एक बहुत ही छोटा सा प्रयास है जिसके माध्यम से गौतम जी को स्मरण किया जा रहा है। एकेडेमी के कोषाध्यक्ष श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने शाल भेंट कर आमंत्रित कवि डा० कुमार विश्वास का स्वागत किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी श्री संजय प्रसाद (आई०ए०एस०) ने कहा कि स्व० श्री कैलाश गौतम जी को मंच के माध्यम से मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। हमारे समाज में जो साम्प्रदायिक जहर है उनके प्रति कवि की संवेदना मात्र रचना नहीं है। कवि की वाणी में लेखनी में हर वर्ग के लिए कोई सन्देश होता है। रचनाएं शक्ति प्रदान करती है। आदमी दुविधा में हो तो वह सही मार्ग प्रदर्शित करती है। इस शहर ने बड़े नामचीन कवियों, साहित्यकारों को जन्म दिया है। यहां के चप्पे-चप्पे में इतिहास है। सही मायने में गौतम जी को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब उनके बताये मार्ग पर चलने का प्रयास करें। हर नागरिक की एक जिम्मेदारी होती है, उसे निभाये तो सपनों के भारत को साकार कर सकता है।
इस अवसर पर शहर के प्रतिष्ठत और लोकप्रिय गीतकार यश मालवीय ने स्व० कैलाश गौतम को याद करते हुए कहा कि मैं कैलाश गौतम जी के जाने के पश्चात उनको लिखी हुई एक चिट्ठी सुनाता हूं। इस चिट्ठी में मालवीय जी ने कैलाश गौतम की स्मृतियों को मार्मिक ढंग से याद करते हुए कहा कि "तुम गंगा के देवव्रत थे, तुम यमुना के बंधु जैसे थे, तुममें संस्कृतियों का संगम लहराता था। तुम झूंसी से अरैल, अरैल से किले तक शरद की धूप और चांदनी आत्मा में उतरने देते थे, कहते थे- "याद तुम्हारी मेरे संग वैसे ही रहती है, जैसे कोई नदी किले से सटके बहती है।" साथ ही यश मालवीय जी ने गौतम जी की स्मृति में एक कविता भी प्रस्तुत की।
माध्यमिक शिक्षा परिषद के अपर सचिव श्री प्रदीप कुमार जी ने कहा कि मैं गाजीपुर में था जब समाचार पत्रों में पढ़ा कि कैलाश गौतम जी नहीं रहे। सुनते ही उनकी कविता अमौसा का मेला आंखों के सामने आ गयी ऐसा लगा मानो अमौसा के मेले में सब खो गया। कैलाश गौतम देह से शहर में रहे पर मन गांव में था। कैलाश गौतम के काव्य में ग्रामीण जीवन की विसंगतियां आंखों के समक्ष आ जाती थीं वह निश्चित रूप से अतुलनीय थे।
उपस्थित श्रोतागण
श्लेष गौतम ने अपने पिता श्री कैलाश गौतम को गीतात्मक शब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित की।
उनके गीत के बोल थे - सूरज डूबा चांद छिपा, तारे भी टूट गये। नेह का बन्धन बना रहा पर देह के छूट गये
उनके दूसरे गीत के बोल थे हुआ न कोई न होई होगा पिता तुम्हारे बाद, पल पल तुमको याद कर रहा आज इलाहाबाद।।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ० शिवगोपाल मिश्र ने कहा कि मैं कैलाश गौतम को बहुत पहले से जानता हूं। मैं उनकी ग्रामीण पृष्ठभूमि की कविताओं को पसन्द करता हूं। जो कवि जनता के बीच से आयेगा उसे शासन-प्रशासन से डर नहीं लगेगा। हमारे नये कवि कई विधाओं में काम कर रहे हैं। आज सभागार की भीड़ को देखकर प्रसन्नता हो रही कि लोग कवि गोष्ठियों में शामिल हो रहे हैं और नये लोगों को सम्मानित कर रहे हैं।
कार्यक्रम का संचालन इमरान प्रतापगढ़ी ने कैलाश गौतम से जुड़ी भावविभोर कर देने वाली यादों को स्मरण करते हुए किया। वह बीच-बीच में कैलाश गौतम से जुड़े संस्मरणों से गौतम जी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए एक कविता प्रस्तुत की-
सूनी सूनी दीवारे सूना सूना ये घर है, है उदास तारीखें और चुप कलेण्डर है। मैंने खुद से जब पूंछा क्यों उदास मंजर है तो दिल ये चीख कर बोला, आज नौ दिसम्बर है।
कार्यक्रम के अन्त में एकेडेमी के कोषाध्यक्ष श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
युवा कवि राकेश रंजन को उनके कविता संग्रह ‘चांद में अटकी पतंग‘ के लिए वर्ष 2009 का हेमंत स्मृति कविता सम्मान तथा चर्चित लेखक राजू शर्मा को उनके उपन्यास ‘विसर्जन‘ के लिए वर्ष 2009 का विजय वर्मा कथा सम्मान दिए जाने की घोषणा हेमंत फाउंडेशन की प्रबंध न्यासी कथाकार संतोष श्रीवास्तव तथा सचिव कथाकार प्रमिला वर्मा ने की। पुरस्कार के निर्णायक भारत भारद्वाज ने अपनी संस्तुति में लिखा है कि- "राकेश रंजन की कविताएं प्रकृति और प्रेम के ताजे बिम्बों का ही स्पर्श नहीं करतीं हैं, बल्कि अपने समय के आतंक को परिवेश की निरर्थकता बोध के साथ प्रस्तुत करती हैं। राजू शर्मा के उपन्यास ‘विसर्जन‘ की रचनात्मकता में भूमंडलीकरण का खतरा अपने वजूद के साथ गल्प और यथार्थ में उभरा है।
हेमंत फाउंडेशन के महासचिव कवि आलोक भट्टाचार्य ने बताया कि 2 जनवरी 2010 को मुंबई में आयोजित भव्य समारोह में ये पुरस्कार प्रदान किये जायेंगे। पुरस्कार के अंतगर्त ग्यारह हजार रुपये की सम्मान राशि, शॉल, श्रीफल, स्मृति चिह्नन प्रदान किये जायेंगे। इससे पहले यह सम्मान प्रियवंद, लवलीन, जयशंकर, अवधेश प्रीत, बोधिसत्व, संजय कुंदन, यतीन्द्र मिश्र, योगेन्द्र आहूजा आदि को प्रदान किया जा चुका है।
उर्मिल सत्यभूषण की संस्था 'परिचय साहित्य पारिषद' समय-समय पर काव्य गोष्ठियों के अतिरिक्त अन्य कई कार्यक्रम भी आयोजित करती है जिन में पुस्तक लोकार्पण भी एक महत्वपूर्ण गतिविधि है. दि. 19 नवम्बर 2009 को 'परिचय' की गोष्ठी हर माह की तरह नई दिल्ली में फिरोज़ शाह रोड स्थित 'Russian Centre of Science and Culture ' के सभागार में हुई तथा इस दिन सुपरिचित कवि हरस्वरूप 'भंवर' के, 'अनुभव प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह, 'मर्यादा के सेतु' का लोकार्पण हुआ. यह गोष्ठी विश्व-प्रसिद्ध रूसी कवियत्री व समालोचिका ज़िनैदा गिपीअस, जिन्हें रूसी काव्य जगत में 'प्रेम-कवियत्री' (The Poetess of Love ) के रूप में जाना जाता है, की याद को समर्पित थी. दि. 19 नवम्बर 2009 उनका जन्म-दिवस था. गोष्ठी की पूर्व सूचना के अनुसार लोकार्पण प्रसिद्ध साहित्य समालोचक डॉ. हरदयाल को करना था, पर उनके सहसा अस्वस्थ हो जाने के कारण सुप्रसिद्ध कवि बालस्वरूप राही द्वारा यह लोकार्पण किया गया. मंच पर उनके साथ श्याम 'निर्मम' , शेरजंग गर्ग तथा 'मर्यादा के सेतु' के रचनाकर हरस्वरूप 'भंवर' थे व 'परिचय' अध्यक्षा उर्मिल सत्यभूषण. गोष्ठी का संचालन अनिल 'मीत' ने किया.
प्रायः पुस्तक-लोकार्पण के किसी भी कार्यक्रम में औपचारिक बधाई सन्देश, रचनाकार की प्रशंसा व तालियों की गड़गड़ाहट के अतिरिक्त चाय का लुत्फ़ उठा कर लोग रचनाकार को बधाई दे कर चल पड़ते हैं. पर हरस्वरूप 'भंवर' के कविता संग्रह की यह लोकार्पण गोष्ठी केवल गले मिल कर खुश होने वाली गोष्ठी न लग कर एक पुस्तक-चर्चा या काव्य-चर्चा की गोष्ठी लग रही थी, जिस में समकालीन कविता को ले कर सभी वक्ताओं ने बहुत महत्वपूर्ण बातें कही. इन सभी भाषणों में रचनाकार की अब तक बनाई साख की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही थी, जिसे औपचारिक सम्मान सन्देश कह कर हल्के तौर पर नहीं लिया जा सकता था.
कवि हर स्वरुप 'भंवर' के इस से पूर्व दो गीत-संग्रह 'सिलवटों के वृत्त' ('हिंदी अकादमी' दिल्ली के 'साहित्यिक कृति पुरस्कार' से पुरस्कृत) व 'प्रभा के नीड़' प्रकाशित हो चुके हैं तथा वे 'हिंदी अकादमी' दिल्ली के उक्त पुरस्कार के अतिरिक्त 'कवि सभा' दिल्ली के काव्य-श्री पुरस्कार व महामना सम्मान 2004 आदि मिला कर कई पुरस्कार सम्मान प्राप्त कर चुके हैं.
गोष्ठी के प्रारंभ में रचनाकार को अपनी कुछ कविताएँ प्रस्तुत करने को कहा गया और उन्होंने सब से पहले एक लम्बी कविता प्रस्तुत की जिस में अंतिम पंक्तियों तक
आते आते सहसा एक दार्शनिकता सी अवतरित होने लगती है. कवि कई वर्ष पहले का एक बाल अनुभव वर्णित करते हैं जिसमें उन्हें प्रातः जनपथ पर चलते चलते ज़मीन पर एक रजत अठन्नी पड़ी मिल जाती है. कवि की कल्पना में असंख्य इच्छाएँ एक दौड़ सी लगाने लगती हैं और वे सोचते हैं कि इस रुपहली अठन्नी के वे पेड़े खाएं या एक पेन खरीद लें, या पंत निराला या बच्चन के मधुर गीतों की पुस्तक ले लें. पर जब वे वह अठन्नी एक मिठाई वाले को देते हैं तो मिठाई वाला उसे उलट-पलट कर उन के दिल को एक धक्का सा पहुंचा देता है कि यह अठन्नी तो खोटी है! तब कवि सहसा एक संत-नुमा प्रवचन कविता की अंतिम पंक्तियों में देते हैं:
तब मैंने समझा माया जग/ रजत अठन्नी सा/ सिक्का है केवल खोटा/ रूपजाल केवल धोखा है. वैसे गोष्ठी में हुए भाषणों से भी और डॉ. हरदयाल द्वारा लिखी भूमिका में भी यह कहा गया है कि कवि हर स्वरुप 'भंवर' के पास विषयों की विविधता है. पर विविधता भानुमती के पिटारे का रूप धारण करती है या कवि के विस्तृत अनुभव की ओर संकेत करती है, यह फैसला समीक्षक या सुधी पाठक, संग्रह को पूरी तरह पढ़ कर ही कर पाएंगे. रचनाकार जब हर-फन-मौला बनता है तो अच्छा परिणाम निकलता है या वह अपने किसी विशिष्ट रूप से वंचित रह जाता है, यह प्रश्न स्वयं कवि के लिए भी महत्वपूर्ण बन जाता है. कवि द्वारा कविता-पाठ के बाद नमिता राकेश ने साहित्यकार अश्विनी कुमार द्वारा लिखा हुआ एक पत्र पढ़ा, क्यों कि अश्विनी कुमार स्वयं उपस्थित न हो सके थे. इस पत्र में कहा गया कि 'साहित्यकार किसी भी मत या वाद से प्रभावित हो, पर मानवीयता के मूल्यों में उस की गहरी आस्था होनी चाहिए. 'मर्यादा के सेतु' पढ़ कर कहा जा सकता है कि 'भंवर' जी हिंदी के शीर्ष एवं गंभीर साहित्यकारों में से हैं. वे एक जागरूक, सजग एवं आत्म-विश्वासी व्यक्ति हैं. जीवन के प्रति उनका अनुभव वैविध्यपूर्ण और परिपक्व हो चुका है. प्रकृति के प्रति उन का आसक्ति-भाव व उस का मानवीयकरण जहाँ उन्हें छायावादी कवियों के समकक्ष खड़ा करता है, वहीं शोषितों एवं दलितों के प्रति सहानुभूति व आक्रोश उन्हें प्रगतिवादी बनाता है'. पत्र में संग्रह की कविता 'व्यवधान' (p 24 ) उद्धृत की गई जिस में एक चट्टान किसी मेनका सरीखी सरिता के मोहपाश में न बंध कर अपने चरित्र के ठोसत्व को बर-करार रखे स्वयं टूटते हुए झुकते हुए दूसरों को उठाती है और मासूम चेहरों के आंसुओं को पोंछती हुई उन्हें सीने से लगती है. सरिता का चरित्र-चित्रांकन करती निम्न पंक्तियाँ पत्र में पढ़ी गई व सभागार में तालियों द्वारा उन्हें सराहा भी गया:
सरिता मेरे जीवन से/ अठखेली करना चाहती है/ मेनका रुनझुन/ नृत्य से मेरे अस्तित्व को/ डिगाना चाहती है/ मुझे अपने घुंघराले अलक-पाश में/ बाँध लेना चाहती है/ मर्यादा के पथ से भटका कर / मेरे अंतस के कुंवारेपन को / लूट लेना चाहती है/ मुझे अनन्य प्रलोभन दे कर/ चरणों को अनचाहे ही/ पखारती हुई मुझे सद्मार्ग से/ विचलित करना चाहती है.
मुझे व्यक्तिगत तौर पर कहीं लगा कि इस प्रकार की अभिव्यक्ति बीते हुए ज़मानों के महाकाव्यों के उदात्त पात्रों की सी लगती है तथा इन्हें पढ़ कर मन को एक सुखद अनुभूति सी होती है. अगला भाषण श्याम 'निर्मम' का था और उन्होंने छंद व छंद-मुक्त कविता पर कहा कि इन दोनों की लड़ाई आज की नहीं वरन बरसों पुरानी है. जब निराला जी ने छंद-बद्ध गीत लिखने के बाद सहसा छंद-मुक्त कविताएँ लिखनी शुरू की तब लोगों ने उसे नहीं माना, लेकिन 'अज्ञेय' के तार सप्तक के बाद कविता की धारा ही एकदम से बदल गई. पर उन्होंने एक बेहद महत्वपूर्ण बात यह कही कि गीत या छंद से छंद-मुक्त कविता की तरफ जाना महज़ एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. यह इस पर निर्भर करता है कि रचनाकार का अनुभव व उस की चेतना किस तरह से बाहर आना चाहते हैं तथा सायास ही गीत या ग़ज़ल लिखने बैठना ज़रूरी नहीं. 'भंवर' जी की कविताओं के बारे में निर्मम' जी ने यह कहा कि इन कविताओं की भाषा के स्तर को ले कर पाठक को शिकायत हो सकती है, क्यों कि यह भाषा आधुनिक नहीं लगती. पर साथ ही यह भी कि इन कविताओं को पढ़ कर पाठक को शांति का अनुभव हो सकता है. यदि मेरी ऊपर कही हुई बात को श्याम 'निर्मम' जी की बात से मिलाया जाए तो 'मर्यादा के सेतु' के रचनाकार हर स्वरुप 'भंवर' की शख्सियत कुछ हद तक आध्यात्मिकता-दार्शनिकता से प्रभावित लगती है. पर केवल यही तत्व इस संग्रह को परिभाषित करता हो, ऐसा नहीं है. एक नज़र संग्रह की एक कविता 'गुनाहों के पड़ाव' (जो मैंने बाद में आकर घर में पढ़ ली) के निम्न अंश पर डालें:
हृदयहीनता इस का एगमार्क है/ कटुता इस का विज्ञापन है/ दया से इसका कोई लगाव नहीं/ कामुकता इस की धरोहर है/ गंदे नालों में इस के अरमान तैरते हैं/ वासना धमनियों में गतिमान है/ आँखों में खुमार का आलम है/ सच्चाई इस के के नाम से कतराती है/ शराफत कोसों दूर भागती है/ झूठ को सच और सच को झूठ साबित करना/ इसका बाएँ हाथ का काम है/ व्यर्थ में ही गुनहगार/ दादागिरी के लिए बदनाम है/ गुनाहों के अपने कानून हैं/ न्याय से इस का कोई सरोकार नहीं/ अदालत के शिकंजों से भी/ वह बच निकलता है/ मानवता का गला दबा कर ही / वह शरीफों पर राज करता है... उक्त उक्त पंक्तियाँ आज के पूरे संसार पर भी लागू हो सकती हैं, सियासत पर भी व आज के किसी भी गुनाहगार पर भी
अगले वक्ता शेरजंग गर्ग थे और अपने भाषण में उन्होंने 'भंवर' जी द्वारा पढ़ी गई कविताओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी कविताएँ सुनते हुए उन्हें अनायास कई अच्छे अच्छे कवि याद आए, यथा शिवमंगल 'सुमन' आदि और एक बात उन्हें अच्छी लगी कि 'भंवर' जी ने हिंदी के बड़े-बड़े कवियों के सामानांतर कुछ लिखने का प्रयास किया है. उन्होंने भी एक महत्वपूर्ण बात कही कि 'भंवर' जी ने पहले गीत लिखे और अब मुक्त-छंद कविता पर आ गए हैं पर केवल कविता के रूपों को बदलते रहने से काम नहीं चलेगा. सुरेन्द्र वर्मा के प्रसिद्ध उपन्यास 'मुझे चाय चाहिए' का सन्दर्भ दे कर वे बोले कि लोग तो गद्य में भी कविता लिखते हैं. 'भंवर' जी के व्यक्तित्व की प्रशंसा कर के उन्होंने कहा कि वे बहुत भले इंसान हैं और ऐसे भले इंसान ही सच्चे कवि हैं व कविता लिखने के अधिकारी हैं. फिर सभागार में हास्य का प्रसार सा करते उन्होंने कहा कि सच्चे कवियों के संकलन बहुत कम हैं. अपने अध्यक्षीय भाषण में बालस्वरूप राही ने सभागार में अपने चिर-परिचित हास्य-विगलित तरीके से कहकहे बिखेर दिए. उन्होंने कहा कि व्यंग्यकार प्रेम जनमजेय के किसी व्यंग्य-संग्रह के लोकार्पण पर प्रसिद्ध साहित्यकार ज्ञान चतुर्वेदी भी आए थे और उन्होंने कहा था कि किसी भी पुस्तक का जब लोकार्पण होता है तो उस पुस्तक की स्थिति नव-वधु जैसी होती है और जिस प्रकार नव-वधु की सब तारीफ करते हैं कि यह बहुत सुन्दर है, वैसे ही लोकार्पित पुस्तक की भी हर प्रकार से तारीफ होती है. पर उन्होंने यह माना कि आज 'भंवर' जी की कविताओं की जो भी प्रशंसा की गई, वह केवल औपचारिक नहीं थी, बल्कि जो भी कहा गया वह सब सही कहा गया. सभागार में निरंतर हास्य बिखेरते हुए उन्होंने कहा कि 'भंवर' जी की प्रशंसा ऐसे लोगों ने की है जो स्वयं बहुत अच्छे कवि हैं और जिस प्रकार एक सुन्दर नारी दूसरी सुन्दर नारी की प्रशंसा नहीं करती, ऐसे ही एक कवि यदि दूसरे कवि की प्रशंसा करता है तो यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है.
संग्रह के शीर्षक की और संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल 'मर्यादा के सेतु' नहीं हैं बल्कि ये वो सेतु हैं जिन पर चल कर एक छंद-बद्ध कविता लिखने वाला कवि मुक्त-छंद की ओर जाता है और मुक्त छंद लिखने वाला कवि छंद बद्ध कविता की ओर जाता है. वैसे मैंने एक बात लक्ष्य की कि हर स्वरुप 'भंवर' जी ने अपने संग्रह के शीर्षक के नीचे लिखा है 'मुक्त छंद कविता संग्रह'. मेरे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक था कि क्या कविता संग्रह को अलग से छंद-बद्ध या मुक्त छंद कविता संग्रह लिखना उचित है? ऐसे तो कविता अकारण खानों में बाँट जाएगी और एक कविता की तुलना दूसरी कविता से केवल उस पर लगे लेबल के आधार
पर होगी. यानी छंद-बद्ध कविता की तुलना छंद-बद्ध से और मुक्त-छंद की मुक्त-छंद से.
बहु-चर्चित कवि अभिरंजन कुमार ने तो अपने कविता संग्रह 'उखड़े हुए पौधे का बयान' (नेशनल पुब्लिशिंग हाउस 2006) की भूमिका 'छंद अब स्वछन्द' में छंद-मुक्त कविता को भी तीन खानों में बाँट दिया है: (1) लगभग छंद (2) मध्यवर्ती छंद और (3) लगभग मुक्त! कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले कविता-संग्रहों के लेबल भी इसी प्रकार हों: लगभग-छंद कविता-संग्रह, मध्यवर्ती-छंद कविता-संग्रह और लगभग-मुक्त कविता-संग्रह! इतनी जटिलता व छूआ-छूत की उपलब्धि क्या है, यह समझ से परे है. कम से कम मेरी. मुमकिन है कि इस बात की भी डिमांड होने लगे कि समीक्षक अपनी अलग पहचान बनाएं कि आप कौन से समीक्षक हैं: छंद-बद्ध कविता के, लगभग-छंद कविता के या मध्यवर्ती-छंद के या लगभग-मुक्त के! मैंने इस गोष्ठी में खड़े हो कर शेरजंग गर्ग से यह प्रश्न किया. परन्तु समय के अभाव में उस समय उत्तर नहीं मिल पाया. इस के कुछ दिन बाद मैंने स्वयं कवि हर स्वरुप 'भंवर' जी से ही यह प्रश्न पूछा कि क्या कविता-संग्रह पर मुक्त छंद कविता-संग्रह लिखना ज़रूरी है. कवि स्वयं कोई ठोस विचार नहीं रखते थे सो उन्होंने कहा कि कुछ भी लिखा जा सकता है. कुछ दिन बाद शेरजंग गर्ग जी को फ़ोन कर के पूछा तो वे स्पष्ट बोले कि 'मुक्त छंद कविता संग्रह' लिखने की कोई ज़रुरत ही नहीं थी. वे यहाँ तक बोले कि गीत-संग्रह पर भी कविता-संग्रह लिख कर कोष्ठक में गीतों का संकलन लिखा जा सकता है'. कोई ज़माना था कि कहानी व उपन्यास का मूल्यांकन करने के लिए कथावस्तु, उद्देश्य, चरित्र-चित्रांकन, वातावरण, शिल्प व शैली नाम के छः तत्व बनाए गए थे. परन्तु बाद के दशकों के कहानीकारों-उपन्यासकारों ने कृति को समग्र रूप में लेना अधिक समीचीन समझा. जब सब कुछ अच्छी तरह घुलमिल गया तो अब कविताओं के बीच यह साम्प्रदायिकता कैसी?
लोकार्पण के बाद गोष्ठी के अंतिम सत्र में 'खुला मंच' के रूप में उपस्थित कई कवियों ने अपनी कवितायेँ पढ़ी. पर इस सत्र की अंतिम दो पंक्तियाँ अध्यक्ष बाल स्वरुप 'राही' की थी जो मुझे आज की यादगार पंक्तियाँ लगी:
एक बाज़ार सी लगती है ये दुनिया 'राही' तुम भी दो चार दुकानों से बना कर रखना !
काव्यपाठ करते कवि हर स्वरुप 'भंवर'
पुनश्च - इस रिपोर्ट के बहाने मैंने चंद प्रश्न उछाले हैं. रिपोर्ट के सुधी पाठक इन तमाम प्रश्नों के बारे में क्या विचार रखते हैं, जानना चाहूँगा.
हिंदी में विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए विगत कई वर्षों में किये गये अनेकानेक प्रयासों के लिये वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी कुलवंत सिंह को अपने व्यक्तिगत प्रयासों के लिए ’भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र’ द्वारा ’परमाणु ऊर्जा विभाग’ के अध्यक्ष डा अनिल काकोडकर के हाथों 22 अक्टूबर 2009 को ’राजभाषा गौरव पुरुस्कार’ से सम्मानित किया गया. डा. श्री कुमार बनर्जी, डायरेक्टर, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा हस्ताक्षरित प्रशस्ति पत्र के साथ.
हिंदी में विज्ञान के क्षेत्रों में किये गये (एवं किये जा रहे) कार्यों का संक्षिप्त विवरण - १. गत १५ वर्षों से ’हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद’ में सेवाभाव से समर्पित. २. गत ८ वर्षों से त्रैमासिक पत्रिका ’वैज्ञानिक’ पत्रिका का व्यवस्थापन. ३. गत ८ वर्षों से प्रति वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर ’डा. होमी भाभा हिंदी विज्ञान लेख प्रतियोगिता’ का आयोजन. ४. परिषद द्वारा प्रति वर्ष संचालित गोष्ठियों, सेमिनार, वार्ताओं के आयोजन में प्रमुख भूमिका एवं सहयोग ५. परमाणु ऊर्जा विभाग के स्कूली छात्रों के लिये हिंदी विज्ञान प्रश्न मंच का विस्तार मुंबई से बढ़ा कर अखिल भारतीय स्तर पर अपने विशेष प्रयासों द्वारा किया. ६. गत ६ वर्षों से इस प्रश्न मंच प्रतियोगिता का संचालन एवं क्विज मास्टर की विशेष सराहनीय भूमिका. ७. स्कूली छात्रों को इस प्रतियोगिता में सहायता एवं मार्गदर्शन के लिए कुलवंत सिंह ने ’विज्ञान प्रश्न मंच’ पुस्तक लिखी. ८. डा अरविंद कुमार द्वारा लिखी ’एटम्स एंड डेवेलपमेंट’ पुस्तक का कुलवंत सिंह ने अपने सहयोगी के साथ इस पुस्तक का अनुवाद हिंदी में ’परमाणु एवं विकास’ नाम से किया. ९. कण-क्षेपण (sputtering) पर कुलवंत सिंह ने पाण्डुलिपि तैयार की है.
(विवरण देखने के लिए नीचे के चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं)
हिन्दी की बहुचर्चित वेबपत्रिका हिन्द-युग्म प्रेमचंद सहजवाला द्वारा लिखित पुस्तक ‘भगत सिंहः इतिहास के कुछ और पन्ने’ के विमोचन कार्यक्रम और विचार गोष्ठी में आपको आमंत्रित करता है। हिन्दी ब्लॉगिंग में यह पहली बार है कि किसी खास विषय पर क्रमवार प्रकाशित लेखों को पुस्तक की शक्ल दी गई है। इससे भी पहले भी 1-2 बार हिन्दी ब्लॉगों ने अपनी स्मारिका या काव्य-संग्रह, कहानी-संग्रह जैसी पुस्तकें प्रकाशित किये हैं, लेकिन किसी व्यक्तित्व को समर्पित लेखों की शृंखला प्रकाशित करने का यह पहला मौका है। कार्यक्रम में पधारकर हमारा प्रोत्साहन करें। कार्यक्रम का विवरण निम्नवत् है-
‘भगत सिंहः इतिहास के कुछ और पन्ने’ पुस्तक का विमोचन और विचार गोष्ठी
विचार गोष्ठी के विषय- 1॰ बदलते दौर में युवा चेतना और भगत सिंह की परम्परा 2॰ हिन्दी में इंटरनेटीय रचनाकर्म- कितना गंभीर, कितना असरदार
मुख्य अतिथि- विभूति नारायण राय (वरिष्ठ साहित्यकार और महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति) अन्य विशिष्ट अतिथि व वक्ता- प्रो॰ चमन लाल (चर्चित लेखक, भगत सिंह के दुलर्भ दस्तावेजों और चिट्ठियों के संकलनकर्त्ता तथा संपादक, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय शिक्षा संघ के अध्यक्ष) हिमांशु जोशी (प्रसिद्ध कथाकार) पंकज बिष्ट (प्रसिद्ध कथाकार और 'समयांतर' के संपादक) संचालन- प्रमोद कुमार तिवारी, युवा कवि
स्थानः गाँधी शांति फाउँडेशन (प्रतिष्ठान) सभागार (221/223, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, आई टी ओ के पास), नई दिल्ली दिन व समयः शनिवार, 12 दिसम्बर 2009, शाम 5 से 8 बजे तक चाय का समयः शाम 5 से 6 बजे तक
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निवेदक- शैलेश भारतवासी (नियंत्रक व प्रधान सम्पादक) रामजी यादव (संयोजक) हिन्द-युग्म (www.hindyugm.com)
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